6 डिजिट अल्फान्यूमेरिक HUID

भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) ने 31 मार्च, 2023 के बाद बिना 6 अंकों के अल्फान्यूमेरिक हॉलमार्क विशिष्ट पहचान संख्या (Hallmark Unique Identification Number- HUID) के हॉलमार्क वाले सोने के आभूषणों या सोने की कलाकृतियों की बिक्री पर रोक लगा दी है। हालाँकि पुरानी योजनाओं के अनुसार उपभोक्ताओं के पास हॉलमार्क वाले गहने मान्य रहेंगे।

  • इससे पहले 4 अंकों वाले पुराने हॉलमार्क के आभूषणों की बिक्री की अनुमति थी और आभूषण विक्रेता 6 अंकों के HUID चिह्न वाले गहनों के साथ इसे भी बेच सकते थे।

हॉलमार्क:

  • पहचान:
    • कीमती धातु के सामानों में कीमती धातु की आनुपातिक सामग्री का सटीक निर्धारण और आधिकारिक रिकॉर्डिंग को हॉलमार्किंग के रूप में जाना जाता है।
    • आभूषणों के संदर्भ में हॉलमार्किंग योजना BIS द्वारा वर्ष 2000 में शुरू की गई थी। भारत में वर्तमान में हॉलमार्किंग के दायरे में सोने और चाँदी जैसी दो कीमती धातुओं को शामिल किया गया है।
    • हालाँकि 23 जून, 2021 से गोल्ड ज्वेलरी और गोल्ड आर्टिफैक्ट्स ऑर्डर, 2022 के अनुसार देश के 288 ज़िलों में अनिवार्य हॉलमार्किंग को सफलतापूर्वक कार्यान्वित किया गया है।
    • वर्ष 2021 में 6-अंकीय HUID की शुरुआत के बाद हॉलमार्क में 3 प्रतीक अर्थात्, BIS लोगो, आभूषणों की शुद्धता और छह-अंकीय अल्फान्यूमेरिक HUID शामिल थे। प्रत्येक हॉलमार्क किये गए आभूषण में अद्वितीय HUID संख्या होती है, जिससे आभूषणों का पता लगाया जा सकता है।

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  • व्यावहारिक क्रियाविधि:
    • एक उपभोक्ता BIS CARE एप में 'सत्यापित HUID' का उपयोग करके HUID संख्या के साथ हॉलमार्क किये गए सोने के आभूषणों की जाँच कर और उसे प्रमाणित कर सकता है।
    • जिस आभूषण को हॉलमार्क किया जाता है, उसकी पंजीकरण संख्या, आभूषण की शुद्धता, आभूषण के प्रकार के साथ-साथ हॉलमार्किंग केंद्र का विवरण, जो आभूषणों का परीक्षण और हॉलमार्क प्रदान करता है, आदि के संदर्भ में आभूषण विक्रेता को जानकारी प्रदान करता है।
      • इस जानकारी का उपयोग करते हुए एक सामान्य उपभोक्ता आभूषणों के प्रकार के साथ मिलान करके खरीदे जाने वाले आभूषणों को सत्यापित कर सकता है और साथ ही उनकी शुद्धता की भी जाँच करता है।

हॉलमार्क का क्या महत्त्व है?

  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) नियम, 2018 के अनुसार, यदि कोई उपभोक्ता हॉलमार्क वाले आभूषण खरीदता है और वे आभूषण उन पर अंकित गुणवत्ता की तुलना में कम शुद्धता वाले पाए जाते हैं, तो खरीदार/ग्राहक ऐसी वस्तु के वज़न और परीक्षण शुद्धता की कमी के आधार पर गणना से ज्ञात अंतर के दो गुना के बराबर मुआवज़े का हकदार होगा।
  • यह उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिये एक ऐसा उपकरण है जो ट्रेसेबिलिटी की क्षमता और गुणवत्ता के आश्वासन के साथ हॉलमार्क वाले सोने के आभूषणों को खरीदने में ग्राहकों का विश्वास बढ़ाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्षेत्र के लिये CEA विनियम

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने मसौदा केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्षेत्र में विद्युत लाइनों का निर्माण) विनियमन, 2023 जारी किया है, जिसमें 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) क्षेत्र' के माध्यम से विद्युत लाइनों को भूमिगत या ओवरहेड किया जाना अनिवार्य बना दिया गया है।

  • लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पर खतरे के मुद्दे को सर्वोच्च न्यायालय (SC) में एक मामले के आलोक में विनियमित किया गया।
  • नियमों के अनुसार, 'ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्षेत्र' से गुज़रने वाली 33 kV और उससे कम की सभी विद्युत लाइनें भूमिगत होंगी, जबकि 33 kV से ऊपर की लाइनें बर्ड फ्लाइट डायवर्टर के साथ ओवरहेड लाइनें होंगी।
  • डायवर्टर का उद्देश्य पक्षियों के लिये विद्युत लाइन दृश्यता में सुधार करना और टक्कर के ज़ोखिम को कम करना है।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड क्षेत्र:

  • परिचय:
    • द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Ardeotis nigriceps), राजस्थान का राजकीय पक्षी है, इसे भारत का सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी माना जाता है।
    • इसे प्रमुखतः घास के मैदान की प्रजाति माना जाता है, जो चरागाह पारिस्थितिकी का प्रतिनिधित्त्व करता है।
    • इसकी अधिकतम आबादी राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह प्रजाति कम संख्या में पाई जाती है।

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GIB की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:

  • प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम:
    • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) के वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH) के तहत प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के अंतर्गत रखा गया है।
  • नेशनल बस्टर्ड रिकवरी प्लान:
    • वर्तमान में इसे संरक्षण एजेंसियों (Conservation Agencies) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • संरक्षण प्रजनन सुविधा:
    • जून 2019 में MoEFCC, राजस्थान सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा जैसलमेर में डेज़र्ट नेशनल पार्क में एक संरक्षण प्रजनन सुविधा स्थापित की गई है।
  • प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:
    • राजस्थान सरकार ने इस प्रजाति के प्रजनन बाड़ों के निर्माण और उनके आवासों पर मानव दबाव को कम करने के लिये एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के उद्देश्य से ‘प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ’लॉन्च किया है।
  • पर्यावरण अनुकूल उपाय:
    • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सहित वन्यजीवों पर पावर ट्रांसमिशन लाइन्स (Power Transmission Lines) और अन्य पावर ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चरर्स (Power Transmission Infrastructures) के प्रभावों को कम करने के लिये पर्यावरण के अनुकूल उपायों का सुझाव देने हेतु टास्क फोर्स का गठन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कोरोनरी हृदय रोग

चर्चा में क्यों?

हृदय रोग दुनिया भर में मृत्यु का प्रमुख कारण है, कोरोनरी हृदय रोग शोधकर्ताओं के बीच एक प्रमुख चिंता का विषय है।

कोरोनरी हृदय रोग क्या हैं?

  • कोरोनरी हृदय रोग (सीएचडी) एक ऐसी स्थिति है जिसमें धमनियों के अंदर वसा के जमाव के कारण ह्रदय तक ऑक्सीजन युक्त रक्त कीआपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाएं संकीर्ण हो जाती हैं।
  • समय के साथ, यह जमाव धमनियों को सख्त और संकीर्ण कर सकते हैं, जिससे हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है।
    • कारण:
      • अस्वास्थ्यकर जीवन शैली, खराब आहार, शारीरिक निष्क्रियता, तम्बाकू का उपयोग और शराब के हानिकारक सेवन कोरोनरी हृदय रोग के प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
        • क्षतिग्रस्त हृदय के ऊतकों को मनुष्यों में फिर से विकसित नहीं किया जा सकता है, और इसका एकमात्र विकल्प हृदय प्रत्यारोपण से गुजरना है, जो कि अत्यंत जटिलताओं से भरा हुआ है।
    • हाल के अध्ययन:
      • वैज्ञानिकों का समूह एक ऐसा समाधान लेकर आया है जहाँ एक वयस्क की स्वस्थ त्वचा कोशिकाओं को विशेष प्रोटीन का उपयोग करके हृदय की कोशिकाओं में बदला जा सकता है।
      • कोशिकाओं को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करना, जिसे सेलुलर रिप्रोग्रामिंग के रूप में जाना जाता है, में विशिष्ट प्रोटीन शामिल होते हैं जिन्हें ट्रांसक्रिप्शन कारक कहा जाता है, जो एक कोशिका के भीतर जीन की अभिव्यक्ति को बदलते हैं और इसे एक नई कोशकीय पहचान लेने के लिये निर्देशित करते हैं।
      • शोधकर्ताओं ने एक पुनः रीकॉम्बीनेंट प्रोटीन टूलबॉक्स की स्थापना की जिसमें छह संभावित कार्डियक ट्रांसक्रिप्शन कारक शामिल हैं: GATA4, MEF2C, TBX5, ETS2, MESP1 और HAND2।
      • इनमें से प्रत्येक प्रोटीन फाइब्रोब्लास्ट को पुन: प्रोग्रामिंग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • रीकॉम्बीनेंट प्रोटीन का उपयोग करने का लाभ यह है कि वे अपने सामान्य प्रतिरूपों के विपरीत, केंद्रकके अंदर अपना काम करते हैं और अंततः अपने जहरीले अवशेष को पीछे छोड़े बिना लुप्त हो जाते हैं।

हृदय रोगों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये क्या पहलें की गई हैं?

निष्कर्ष

यह अध्ययन रीकॉम्बीनेंट प्रोटीन का उपयोग करके सीधे कार्डियक रिप्रोग्रामिंग के लिये एक सुरक्षित दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिसका उपयोग कार्डियक फाइब्रोब्लास्ट को फिर से प्रोग्राम करने हेतु किया जा सकता है और हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिये यह एक उम्मीद प्रदान करता है तथा एक व्यक्तिगत उपचार विकल्प विकसित करने की संभावना प्रदान करता है जो सुरक्षित और दक्ष दोनों है।

स्रोत : द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 09 मार्च, 2023

ड्राइवरों हेतु दृष्टि परीक्षण

सड़क सुरक्षा पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति के अवलोकन के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप प्रत्येक वर्ष 1.5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा योजना (National Road Safety Plan- NRSP) में ड्राइवरों हेतु दृष्टि परीक्षण कराना अनिवार्य किया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) के अनुसार, यातायात सुरक्षा अनुसंधान समूहों का मानना है कि ड्राइवरों के बीच अस्पष्ट दृष्टि का मुद्दा आम समस्या है और नियमित नेत्र परीक्षण के फलस्वरूप सड़क दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है एवं सड़क सुरक्षा तथा चालकों की भलाई के लिये नियमित नेत्र परीक्षण को शामिल किया जाना चाहिये। जबकि MoHFW ने इस कदम को मंज़ूरी दे दी है, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) को अब अपनी सड़क सुरक्षा गतिविधियों में नियमित दृष्टि परीक्षण को शामिल करना चाहिये। MoRTH वर्तमान में नेत्र जाँच शिविर का आयोजन एक बार करता है। MoRTH द्वारा आयोजित स्क्रीनिंग कैंप में भाग लेने के अलावा Sightsavers India पिछले पाँच वर्षों में प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों पर 'राही - नेशनल ट्रकर्स आई हेल्थ प्रोग्राम' नामक एक परियोजना चला रहा है।
और पढ़ें… भारत में सड़क दुर्घटनाएँ: प्रभाव और आगे की राह

भारत के सबसे अधिक भूस्खलन-प्रवण ज़िले

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के उपग्रह डेटा के अनुसार, देश में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल सबसे अधिक भूस्खलन-प्रवण ज़िले हैं। हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ का मामला भूस्खलन बड़ी घटनाओं में से एक है। कुछ अन्य उदाहरणों में 2013 में केदारनाथ में आपदा और 2011 में सिक्किम भूकंप के कारण हुए भूस्खलन शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं में होने वाली मौतों के मामले में भूस्खलन तीसरे स्थान पर है। भारत उन चार प्रमुख देशों में शामिल है जहाँ भूस्खलन का खतरा सबसे अधिक है। देश में लगभग 0.42 मिलियन वर्ग किलोमीटर भू-स्खलन संभावित क्षेत्र है, जो देश के कुल भूमि क्षेत्र का 12.6% है।

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और पढ़ें… भूस्खलन

H3N2 का प्रकोप

दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 तक पूरे भारत में सर्दी, गले में खराश, बुखार और थकान से संबंधित लक्षणों के साथ साँस की बीमारी का प्रकोप देखा गया है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार, इन्फ्लुएंज़ा का उपभेद H3N2 बीमारी का सत्यापित कारण रहा है। यह वायरस अन्य इन्फ्लुएंज़ाउपभेदों की तुलना में अस्पताल में अधिक मरीज़ों के भर्ती होने का कारण बना। टाइप ए, बी, सी और डी मौसमी इन्फ्लुएंज़ा वायरस के चार अलग-अलग उपप्रकार हैं। जब इन्फ्लुएंज़ा ए और बी वायरस फैलते हैं तो उसके परिणामस्वरूप बीमारी का वार्षिक प्रकोप देखने को मिलता है। इन्फ्लुएंज़ा वायरस एकमात्र इन्फ्लुएंज़ा वायरस है जो फ्लू महामारी (अर्थात् फ्लू रोग की वैश्विक महामारी) के रूप में पहचाना जाता है।
WHO ने जून 2009 में H1N1 महामारी की घोषणा की। स्वाइन फ्लू का प्रकोप इसका दूसरा सामान्य रूप है। वर्ष 2009 से पूर्व इन्फ्लुएंज़ा ए (H1N1) वायरस H1N1 महामारी का कोई भी मानवीय संक्रमण नहीं था। आनुवंशिक अध्ययनों के अनुसार, यह इन्फ्लुएंज़ा वायरस पशुओं के माध्यम से फैलता है जो मौसमी वायरस H1N1 वायरस से संबंधित नहीं है। हालाँकि भारत में वर्ष 2013 में एक महत्त्वपूर्ण स्वाइन फ्लू नामक महामारी की पहचान की गई।

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और पढ़ें… स्वाइन फ्लू महामारी, 2009

अट्टुकल पोंगल

विश्व में महिलाओं के सबसे बड़े महोत्सव में से एक माने जाने वाले इस त्योहार में लगभग 15 लाख महिलाओं ने तिरुवनंतपुरम, केरल के वार्षिक अट्टुकल पोंगल उत्सव में भाग लिया। इस उत्सव में केरल के तिरुवनंतपुरम में अट्टुकल भगवती मंदिर के देवता को चावल से बनी एक मिठाई पोंगल चढ़ाई जाती है। दस दिवसीय इस उत्सव का मुख्य आकर्षण नौवें दिन चढ़ाई जाने वाली सामूहिक भेंट है। जहाँ राजधानी में प्रदेश भर से बड़ी संख्या में महिलाएँ पहुँचती हैं। वर्ष 2009 में इस अनुष्ठान ने एक ही दिन में महिलाओं की सबसे बड़ी धार्मिक सभा के रूप में गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाई थी, जब इसमें 2.5 मिलियन से अधिक महिलाओं ने भाग लिया था। अट्टुकल मंदिर को "महिलाओं का सबरीमाला" कहा जाता है क्योंकि यहाँ केवल महिलाएँ ही अनुष्ठान करती हैं, जबकि सबरीमाला में मुख्य रूप से पुरुष ही भगवान अयप्पा के पहाड़ी मंदिर की तीर्थ यात्रा करते हैं।
और पढ़ें… सबरीमाला मंदिर, भारत में मंदिर