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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 07 Mar, 2025
  • 12 min read
प्रारंभिक परीक्षा

निवारक निरोध

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने मुर्तुजा हुसैन चौधरी बनाम नगालैंड राज्य, 2025 में पुनः पुष्टि की कि निवारक निरोध एक कठोर उपाय है, जिसके लिये संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा उपायों का कड़ाई से पालन आवश्यक है। 

  • इस फैसले में उचित औचित्य के अभाव तथा कानूनी सिद्धांतों का उल्लंघन करने के कारण नगालैंड के निरोध आदेशों को रद्द कर दिया गया।

निवारक निरोध के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?

  • मामला: दो व्यक्तियों को मादक पदार्थ जब्ती के बाद स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अवैध व्यापार निवारण अधिनियम, 1988 (PITNDPS अधिनियम) के तहत निवारक रूप से हिरासत में लिया गया था, जो पुलिस के इस आरोप पर आधारित था कि रिहा किये जाने पर वे फिर से तस्करी शुरू कर देंगे, लेकिन इसके लिये कोई अलग आधार नहीं था।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि हिरासत आदेशों में पृथक, विशिष्ट आधारों का अभाव होने के कारण PITNDPS अधिनियम की धारा 6 का उल्लंघन हुआ है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि हिरासत में लिये गए ऐसे लोग जो अंग्रेज़ी नहीं समझते थे, उन्हें मौखिक रूप से उनकी भाषा में जानकारी दी गई, लेकिन इसे अपर्याप्त माना गया। सर्वोच्च न्यायालय ने हरिकिसन बनाम महाराष्ट्र राज्य (1962) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि हिरासत के आधार के बारे में केवल मौखिक संचार अपर्याप्त है।
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि निवारक निरोध से मूल अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है और इसमें वैधानिक मानदंडों का सख्ती से पालन करना चाहिये। परिणामस्वरूप, न्यायालय ने निरोध आदेशों को रद्द कर दिया।

निवारक निरोध क्या है?

  • परिचय: इसका तात्पर्य संभावित गैर-कानूनी गतिविधियों को रोकने के क्रम में किसी व्यक्ति को बिना सुनवाई के हिरासत में लेना है।
    • दंडात्मक निरोध के विपरीत (जिसमें उचित प्रक्रिया और दोषसिद्धि नियमों का पालन किया जाता है) निवारक निरोध के तहत संदेह के आधार पर व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जाता है।
  • संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद 22 के अंतर्गत गिरफ्तारी तथा निरोध के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है। इसका पहला भाग आपराधिक जाँच से जुड़े सामान्य विधिक मामलों से संबंधित है जबकि दूसरा भाग निवारक निरोध से संबंधित है।
    • किसी व्यक्ति को बिना विचारण के तीन माह तक हिरासत में रखा जा सकता है, जब तक कि सलाहकार बोर्ड (जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिये अर्हित व्यक्ति शामिल होते हैं)  द्वारा अवधि न बढ़ा दी जाए।
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को हिरासत में लिये जाने के कारणों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए, जब तक कि इससे सार्वजनिक हित को नुकसान न पहुंचे। उन्हें विधिक  प्रतिनिधित्व का अधिकार है, हालाँकि कुछ मामलों में इस अधिकार को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
  • निवारक निरोध से संबंधित प्रमुख कानून:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980: राष्ट्रीय सुरक्षा और लोक व्यवस्था को खतरे से बचाने के लिये नज़रबंदी की अनुमति का प्रावधान।
    • विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967: भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता को खतरा पहुँचाने वाली गतिविधियों की रोकथाम किये जाने का प्रावाधन।
    • लोक सुरक्षा अधिनियम, 1978: इसका उपयोग जम्मू-कश्मीर में लोक व्यवस्था और सुरक्षा के आधार पर निवारक निरोध के लिये किया जाता है।
    • न्यायिक निर्णय: अमीना बेगम बनाम तेलंगाना राज्य (2023) में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि निवारक निरोध एक असाधारण उपाय है और इसका मनमाना रूप से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
    • जसीला शाजी बनाम भारत संघ मामले (2024) में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि बंदियों को उनकी हिरासत में आक्षेप करने हेतु उचित अवसर सुनिश्चित किया जाना चाहिये।


रैपिड फायर

सगोत्रीय विवाह

स्रोत: बीएल

एक अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार सगोत्रीय विवाह ने भारत में जनसंख्या-विशिष्ट आनुवंशिक रोगों और औषधि चयापचय में विविधताओं में योगदान दिया है।

  • अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष: भारतीय समुदायों में अंतःप्रजनन (आनुवांशिक रूप से निकट रूप से संबंधित व्यक्तियों का प्रजनन) के कारण आनुवंशिक विकारों की व्यापकता अधिक पाई गई।
    • उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश के रेड्डी समुदाय में एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (गठिया का एक प्रकार) की उच्च घटना पाई जाती है।
  • सगोत्रीय विवाह (Endogamy): पहचान, धन और परंपराओं को बनाए रखने के लिये एक विशिष्ट जातीय, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक या जनजातीय समूह के भीतर विवाह करने की प्रथा, बहिर्विवाह के विपरीत, जिसमें अपने सामाजिक समूह के बाहर विवाह करना शामिल है।
  • अंतर्जातीय विवाह के नकारात्मक प्रभाव:
    • सीमित जीन पूल: अंतर्विवाही समूहों में कम आनुवंशिक विविधता बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति अनुकूलनशीलता को सीमित करती है।
    • सामाजिक परिणाम: इससे सम्मान के नाम पर हत्याएँ और कठोर जाति-आधारित पदानुक्रम जैसी प्रतिबंधात्मक सामाजिक प्रथाओं को बढ़ावा मिलता है।

और पढ़ें: रक्त संबंध


रैपिड फायर

ग्रहों का संरेखण

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स  

प्लेनेटरी परेड अर्थात् ग्रहों का संरेखण एक दुर्लभ खगोलीय घटना है, जिसमें सात ग्रह- बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून, सूर्य के एक ओर पंक्तिबद्ध होते हैं।

  • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि ग्रह सूर्य की परिक्रमा एक समतल, डिस्करूपी पथ पर करते हैं जिसे क्रांतिवृत्त तल (Ecliptic Plane) कहते हैं।
  • बारंबारता: ग्रहों का ऐसा संरेखण अत्यंत दुर्लभ है, जो कुछ दशकों में केवल एक बार होता है। अगली बार इस घटना का वर्ष 2040 में घटित होने के अनुमान हैं।
  • दृश्यता: बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि को बिना किसी यंत्र की सहायता से नग्न आँखों से देखा जा सकता है, जबकि यूरेनस और नेपच्यून को उनकी दूरी और धुँधलेपन के कारण दूरबीन से  देखा जा सकता है।

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और पढ़ें: दुर्लभ ग्रह संरेखण


रैपिड फायर

महिला PRI नेताओं का सशक्तीकरण

स्रोत: पी.आई.बी.

पंचायती राज मंत्रालय ने ज़मीनी स्तर पर जेंडर-सेंसिटिव शासन को आगे बढ़ाने हेतु सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान और आदर्श महिला-अनुकूल ग्राम पंचायत (MWFGP) शुरू किया है ।

  • सशक्त पंचायत-नेत्री अभियान: यह एक राष्ट्रव्यापी क्षमता निर्माण पहल है जिसका लक्ष्य पंचायती राज संस्थाओं (PRI) की महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों (WER) के नेतृत्व कौशल को सुदृढ़ बनाना है।
    • उद्देश्य: ग्रामीण शासन में महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों के नेतृत्व, निर्णयन और सक्रिय भागीदारी को सुदृढ़ बनाना।
  • MWFGP: इसका उद्देश्य प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक आदर्श महिला-अनुकूल ग्राम पंचायत की स्थापना करना है, जो जेंडर-सेंसिटिव और बालिका-अनुकूल शासन प्रथाओं के लिये एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगी।
  • लैंगिक हिंसा का निवारण: पंचायत के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिये लैंगिक हिंसा और हानिकारक प्रथाओं की रोकथाम हेतु कानून पर एक व्यापक पाठ्यक्रम भी पेश किया गया।
  • पंचायती राज संस्थाओं में 1.4 मिलियन से अधिक महिलाएँ निर्वाचित हुई हैं, तथा बिहार (50%) जैसे राज्यों में कोटा से परे उच्च प्रतिनिधित्व (33% से कम नहीं) देखा गया है।
  • WER द्वारा स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों का प्रयोग सुनिश्चित करने हेतु मंत्रालय ने "मुखिया पति" या "सरपंच पति" संस्कृति को समाप्त करने पर भी ज़ोर दिया।

और पढ़ें: पंचायतों में प्रधान पति संबंधी मुद्दा


रैपिड फायर

नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

हाल ही में, प्रधानमंत्री ने पुराने और अप्रचलित कानूनों को निरस्त करने के सरकार के प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए, नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 का संदर्भ दिया।

  • यह कानून अंग्रेज़ों द्वारा उभरती भारतीय राष्ट्रवादी भावना पर अंकुश लगाने के लिये बनाए गए कानूनों में से एक था। 
  • संविधान का अनुच्छेद 372 स्वतंत्रता-पूर्व कानूनों को लागू रहने की अनुमति देता है, लेकिन औपनिवेशिक कानूनों में संवैधानिकता की धारणा का अभाव है, जिसके कारण चुनौती दिये जाने पर सरकार को बचाव की आवश्यकता होती है।
  • नाट्य प्रदर्शन अधिनियम, 1876 ने सरकार (ब्रिटिश) को “सार्वजनिक नाट्य प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने” की शक्तियाँ दीं, जो निंदनीय, अपमानजनक, राजद्रोही या अश्लील हैं।
    • इस अधिनियम को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज्य बनाम बाबू लाल एवं अन्य मामले, 1956 में असंवैधानिक घोषित किया था। अप्रचलित कानूनों को हटाने के सरकार के प्रयास के तहत वर्ष 2018 में इस कानून को औपचारिक रूप से निरस्त कर दिया गया था। 
  • वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट, 1878 और 1870 का राजद्रोह कानून इस अवधि के दौरान राष्ट्रवादी गतिविधियों को दबाने और औपनिवेशिक शासन के विरोध को दबाने के लिये बनाए गए कठोर कानूनों में से थे ।

और पढ़ें: प्रेस, नियतकालिक पत्रिका रजिस्ट्रीकरण विधेयक, 2023


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