प्रिलिम्स फैक्ट्स (05 Feb, 2024)



भारत में रामसर स्थल

स्रोत: पी. आई.बी

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने घोषणा की कि विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2024 की पूर्व संध्या पर, भारत ने पाँच आर्द्र्भूमि को रामसर साइट्स  के रूप में नामित किया है जिससे इनकी संख्या मौजूदा 75 से बढ़ाकर 80 कर दी है।

  • इनमें से तीन स्थल अंकसमुद्र पक्षी संरक्षण रिज़र्व, अघनाशिनी मुहाना और मगादी केरे संरक्षण रिज़र्व कर्नाटक में स्थित हैं, जबकि दो, कराईवेट्टी पक्षी अभयारण्य तथा लॉन्गवुड शोला रिज़र्व वन तमिलनाडु में हैं।
  • सबसे अधिक रामसर साइट्स (16 साइटें) तमिलनाडु में हैं, उसके बाद उत्तर प्रदेश (10 साइट्स ) में हैं।

रामसर अभिसमय क्या है? 

  • यह एक अंतर-सरकारी संधि है, जिसे 2 फरवरी, 1971 को कैस्पियन सागर के दक्षिणी तट पर स्थित ईरानी शहर रामसर में अपनाया गया था।
    • भारत में यह 1 फरवरी, 1982 को लागू किया गया, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमियों को रामसर स्थल के रूप में घोषित किया गया।
  • विश्व आर्द्रभूमि दिवस (WWD):
    • यह 2 फरवरी, 1971 को आर्द्रभूमि पर इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते को अपनाने के उपलक्ष्य में विश्व भर में मनाया जाता है।
    • विश्व आर्द्रभूमि दिवस-2024 का विषय 'वेटलैंड्स एंड ह्यूमन वेलबीइंग' है जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में आर्द्र्भूमि की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। 
    • यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे आर्द्रभूमियाँ बाढ़ सुरक्षा, स्वच्छ जल, जैवविविधता, जो मानव जाति के स्वास्थ्य तथा समृद्धि के लिये आवश्यक हैं।

नव नामित रामसर स्थलों की विशेषताएँ क्या हैं? 

  • अंकसमुद्र पक्षी संरक्षण रिज़र्व (कर्नाटक):
    • यह सदियों पहले बनाया गया एक मानव निर्मित ग्रामीण सिंचाई टैंक है और अंकासमुद्र गाँव के पास 244.04 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
  •  अघनाशिनी ज्वारनदमुख (कर्नाटक):
    • यह 4,801 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है और अरब सागर और अघानाशिनी नदी के संगम पर स्थित है।
    • ज्वारनदमुख (Estuary) का खारा जल बाढ़ और कटाव जोखिम शमन, जैवविविधता संरक्षण तथा आजीविका सहायता सहित विविध पारिस्थितिक सेवाएँ प्रदान करता है। 
    • आर्द्रभूमि मछली पकड़ने, कृषि, खाद्य द्विजों और केकड़ों के संग्रह, झींगा जलीय कृषि, एश्चुरी चावल के खेतों में पारंपरिक मत्स्य पालन (स्थानीय रूप से गजनी चावल के खेतों के रूप में जाना जाता है) तथा नमक उत्पादन का समर्थन करके आजीविका भी प्रदान करती है।
    • खाड़ी की सीमा पर स्थित मैंग्रोव तटों को तूफानों और चक्रवातों से बचाने में मदद करते हैं।
  • मगादी केरे संरक्षण रिज़र्व (कर्नाटक):
    • यह लगभग 50 हेक्टेयर क्षेत्र वाली एक मानव निर्मित आर्द्रभूमि है जिसका निर्माण सिंचाई उद्देश्यों के लिये वर्षा जल को संग्रहीत करने हेतु किया गया था।
    • आर्द्रभूमि में दो कमज़ोर प्रजातियाँ कॉमन पोचार्ड (अयथ्या फेरिना) और रिवर टर्न (स्टर्ना ऑरेंटिया) हैं तथा चार लगभग खतरे वाली प्रजातियाँ हैं- ओरिएंटल डार्टर (एनहिंगा मेलानोगास्टर), ब्लैक-हेडेड आइबिस (थ्रेस्कियोर्निस मेलानोसेफालस), वूली-नेक्ड स्टॉर्क (सिसोनिया एपिस्कोपस) और पेंटेड स्टॉर्क (माइक्टेरिया ल्यूकोसेफला)।
    • मगादी केरे दक्षिणी भारत में बार-हेडेड हंस (एंसर इंडिकस) के लिये सबसे बड़े शीतकालीन आश्रय स्थलों में से एक है। इसे विश्व स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र (IBA) घोषित किया गया है।
  • कराईवेट्टी पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु): 
    • आर्द्रभूमि के पानी का उपयोग ग्रामीणों द्वारा धान, गन्ना, कपास, मक्का और लाल चने जैसी कृषि फसलों की खेती के लिये किया जाता है।
    • यहाँ पक्षियों की लगभग 198 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं; कुछ महत्त्वपूर्ण आगंतुकों में बार-हेडेड गूज़, पिन-टेल्ड डक, गार्गेनी, नॉर्दर्न शॉवेलर, कॉमन पोचार्ड, यूरेशियन विजियन, कॉमन टील और कॉटन टील शामिल हैं।
  • लॉन्गवुड शोला रिज़र्व फॉरेस्ट (तमिलनाडु):
    • इसका नाम तमिल शब्द "सोलाई" से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'उष्णकटिबंधीय वर्षावन'।
    • 'शोला' तमिलनाडु में नीलगिरि, अनामलाई, पलनी पहाड़ियों, कालाकाडु, मुंडनथुराई और कन्याकुमारी के ऊपरी इलाकों में पाए जाते हैं। 
    • ये वनाच्छादित आर्द्रभूमि विश्व स्तर पर लुप्त हो रहे ब्लैक-चिन्ड नीलगिरि लाफिंग थ्रश (स्ट्रोफोसिनक्ला कैचिनन्स), नीलगिरि ब्लू रॉबिन (मायोमेला मेजर) और कमज़ोर नीलगिरि वुड-कबूतर (कोलंबा एल्फिन्स्टनी) के लिये आवास के रूप में काम करती हैं। 

आर्द्रभूमि के संरक्षण हेतु अन्य क्या पहल की गई हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यदि अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के एक आर्द्रभूमि को 'मोंट्रेक्स रिकॉर्ड' के अंतर्गत लाया जाता है, तो इसका क्या अर्थ है? (2014)

(A) मानवीय हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप आर्द्रभूमि के पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुआ है, हो रहा है या होने की संभावना है।
(B) जिस देश में आर्द्रभूमि स्थित है उसे आर्द्रभूमि के किनारे से पाँच किलोमीटर के भीतर किसी भी मानवीय गतिविधि को प्रतिबंधित करने के लिये एक कानून बनाना चाहिये।
(C) आर्द्रभूमि का अस्तित्व इसके आसपास रहने वाले कुछ समुदायों की सांस्कृतिक प्रथाओं एवं परंपराओं पर निर्भर करता है और इसलिये वहाँ की सांस्कृतिक विविधता को नष्ट नहीं किया जाना चाहिये।
(D) इसे 'विश्व विरासत स्थल' का दर्जा दिया गया है।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • मॉन्ट्रो रिकॉर्ड अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के आर्द्रभूमि की सूची में वेटलैंड साइटों का एक रजिस्टर है जहाँ तकनीकी विकास, प्रदूषण अथवा अन्य मानवीय हस्तक्षेपों के परिणामस्वरूप पारिस्थितिक स्वरूप में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं अथवा होने की संभावना है। इसे रामसर सूची के भाग के रूप में बनाए रखा गया है।
  • आर्द्रभूमि अभिसमय, जिसे रामसर अभिसमय कहा जाता है, एक अंतर-सरकारी संधि है जो आर्द्रभूमि एवं उनके संसाधनों के संरक्षण व उचित उपयोग के लिये रूपरेखा प्रदान करती है। यह अभिसमय वर्ष 1971 में ईरानी शहर रामसर में अंगीकृत किया गया तथा वर्ष 1975 में क्रियान्वित हुआ।

मेन्स:

प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के संदर्भ में 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर संकल्पना को स्पष्ट कीजिये। भारत से रामसर स्थलों के दो उदाहरणों का उद्धरण दीजिये। (2018)


नीतीश (NITISH) डिवाइस

बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Bihar State Disaster Management Authority) ने नीतीश (Novel Initiative Technological Intervention for Safety of Humanlives - NITISH) डिवाइस लॉन्च किया है, जो किसानों और जनता को समय पर अलर्ट प्रदान करने के लिये अभिकल्पित एक अभिनव लॉकेट/पेंडेंट-आकार की तकनीक है। यह तकनीक विशेष रूप से तड़ित (lightning), बाढ़, ग्रीष्म लहर (Heatwaves) और शीतलहर (Coldwaves) को लक्षित करती है।

  • यह पहल आकाशीय बिजली गिरने और फ्लैश फ्लड यानी अचानक आई बाढ़ के कारण होने वाली किसानों की मौतों को ध्यान में रखते हुए शुरू की गई थी, जिसमें जीवन बचाने में डिवाइस की भूमिका पर ज़ोर दिया गया था।
  • NITISH डिवाइस को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IIT), पटना के सहयोग से प्रस्तुत किया गया है।
  • यह उपकरण बिहार मौसम विज्ञान सेवा केंद्र (Bihar Meteorological Service Centre) से संबद्ध है, जो वास्तविक समय/रियल टाइम और सटीक मौसम संबंधी अलर्ट सुनिश्चित करता है।
  • NITISH डिवाइस आकाशीय बिजली गिरने या बाढ़ आने से आधे घंटे पहले अपने उपयोगकर्त्ताओं को अलर्ट देगा।
  • पेंडेंट शरीर की ऊष्मा से चार्ज होगा। यह डिवाइस तीन तरह से अलर्ट जारी करेगा: सबसे पहले यह ध्वनि संदेश भेजेगा; तत्पश्चात इसका रंग हरे से लाल हो जाएगा; और अंत में यह डिवाइस तब तक गर्म होता रहेगा जब तक उसका उपयोगकर्त्ता इसे बंद नहीं कर देता
  • किसानों के समक्ष आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, इस उपकरण को वाटरप्रूफ बनाया गया है, ताकि यह मौसम की विभिन्न स्थितियों में सुचारू ढंग से कार्य कर सके।

और पढ़ें: आपातकालीन चेतावनी प्रणाली


कलरीपयट्टू

हरियाणा के युवाओं ने कलरीपयट्टू/कलारीपयट्टू (Kalaripayattu) को अपनाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति दर्शाते हुए  खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2023 में केरल के बाद दूसरा स्थान हासिल किया।

  • कलारी पयट्ट (कलारीपयट्टु) का अर्थ है 'युद्ध का मैदान' या 'व्यायामशाला' - (कलारी), 'विधि' या 'कला' - (पयट्ट), जिसे कलारी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक भारतीय मार्शल आर्ट है जिसकी उत्पत्ति तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ई.पू. के दौरान केरल में हुई थी। अब यह केरल और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
    • इसे विश्व की सबसे प्राचीन और सर्वाधिक कुशल मार्शल आर्ट में से एक माना जाता है, जिसका इतिहास 3,000 वर्ष से भी अधिक पुराना है।
  • कलारीपयट्टू, व्यक्तिगत युद्ध प्रशिक्षण की एक प्रणाली है, जिसमें निहत्थे युद्ध के लिये त्वरित सजगता विकसित करने तथा लाठी, खंजर, चाकू, भाले, तलवार, ढाल आदि जैसे विभिन्न हथियारों पर कुशल महारत हासिल करने के उद्देश्य से परिकल्पित अभ्यास शामिल हैं।

और पढ़ें: खेलो इंडिया यूथ गेम्स का छठा संस्करण


अभ्यास वायुशक्ति - 2024

भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) 17 फरवरी, 2024 को जैसलमेर के निकट पोखरण के एयर-टू-ग्राउंड रेंज में अभ्यास वायु शक्ति-2024 (Vayu Shakti-24) का आयोजन करेगी। 

  • अभ्यास वायु शक्ति में भारतीय वायुसेना की दिन और रात के समय संचालित की जाने वाली आक्रामक एवं रक्षात्मक क्षमताओं का प्रदर्शन किया जाएगा।
  • इस अभ्यास में भारतीय सेना (Indian Army) के साथ भी संयुक्त अभियानों का संचालन किया जाएगा।
  • अभ्यास के दौरान लंबी दूरी व सटीक मारक क्षमता के साथ-साथ पारंपरिक हथियारों को सही ढंग से तथा समय पर पहुँचाने और शत्रु का विनाश करने के मामले में वायुसेना की क्षमता किया को प्रदर्शित किया जाएगा। भारतीय वायुसेना के परिवहन विमान और हेलीकॉप्टर बेड़े द्वारा विशेष अभियान संचालित किया जाएगा, जिसमें गरुड़ तथा भारतीय सेना के अन्य विमान भी शामिल होंगे।
    • इस वर्ष, अभ्यास में स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस, प्रचंड, ध्रुव, राफेल, मिराज-2000, सुखोई-30 MKI, जगुआर, हॉक, C-130J, चिनूक, अपाचे और Mi-17 सहित 121 विमान शामिल होंगे। स्वदेशी रूप से निर्मित सतह से हवा में मार करने वाली हथियार प्रणालियाँ आकाश और समर घुसपैठ करने वाले शत्रुओं के विमान को ट्रैक करने तथा उसे मार गिराने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन करेंगे।

और पढ़ें: अभ्यास वायुशक्ति


डस्टेड अपोलो तितली

हाल ही में डस्टेड अपोलो (Parnassius stenosemus), को हिमाचल प्रदेश के चंबा में पहली बार देखा गया और उसकी तस्वीरें ली गईं।

  • डस्टेड अपोलो तितली की खोज वर्ष 1890 में की गई थी और इसका वितरण क्षेत्र लद्दाख से पश्चिम नेपाल तक विस्तारित है। यह आंतरिक हिमालय में 3,500 से 4,800 मीटर के बीच उड़ान भरने में सक्षम होती  है।
    • यह स्वेलोटेल परिवार के स्नो अपोलो वर्ग (Parnassius) से संबंधित है।
  • हालाँकि लद्दाख बैंडेड अपोलो (Parnnasius stoliczkanus) तथा डस्टेड अपोलो प्रजातियाँ समान हैं लेकिन लद्दाख बैंडेड अपोलो का डिस्कल बैंड केवल चार शिरों तक पहुँचता है, जबकि डस्टेड अपोलो का डिस्कल बैंड पूर्ण होता है साथ ही उसका ऊपरी अग्र पंख पर कोस्टा से शिराओं एक तक फैला हुआ होता है।
    • हिंडविंग में डिस्कल बैंड होता है जो लगभग गोल होता है, और चमकीले लाल रंग के अर्धचंद्राकार धब्बों की सीमांत पंक्तियाँ होती हैं।
  • इसमें एक अन्य दुर्लभ प्रजाति रीगल अपोलो (Parnnasius charltonius) भी शामिल है, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची II के तहत संरक्षित है।

और पढ़ें… तितलियों का अनुकूलन एवं विकास प्रक्रियाएँ