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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 02 Apr, 2022
  • 14 min read
प्रारंभिक परीक्षा

लघु बचत योजनाएँ

हाल ही में सरकार ने मुद्रास्फीति के ऊँचे स्तर के कारण वर्ष 2022-23 (अप्रैल-जून) की पहली तिमाही के लिये राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (National Savings Certificate- NSC) और सार्वजनिक भविष्य निधि  (Public Provident Fund- PPF) सहित लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा है।

लघु बचत योजनाएँ/उपकरण:

  • परिचय:
    • ये भारत में घरेलू बचत के प्रमुख स्रोत हैं और इसमें 12 उपकरण/प्रपत्र (Instrument) शामिल हैं।
    • इसमें जमाकर्त्ताओं को उनके धन पर सुनिश्चित ब्याज मिलता है।
    • सभी लघु बचत प्रपत्रों से संग्रहीत राशि को राष्ट्रीय लघु बचत कोष (NSSF) में जमा किया जाता है।
    • कोविड-19 महामारी के कारण सरकारी घाटे में वृद्धि की वजह से उधार की उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिये छोटी बचतें सरकारी घाटे के वित्तपोषण के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरी हैं।
  • वर्गीकरण: लघु बचत उपकरणों को तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • डाक जमा: इसमें बचत खाता, आवर्ती जमा, अलग-अलग परिपक्वता की सावधि जमा और मासिक आय योजना शामिल है।
    • बचत प्रमाणपत्र: राष्ट्रीय लघु बचत प्रमाणपत्र (NSC) और किसान विकास पत्र (KVP)।
    • सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: सुकन्या समृद्धि योजना, सार्वजनिक भविष्य निधि (PPF) और वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS)।
  • दरों का निर्धारण:
    • छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों को तिमाही आधार पर निर्धारित किया जाता है जो कि समान परिपक्वता वाले बेंचमार्क सरकारी बॉण्डों में संचलन के अनुरूप होता है। वित्त मंत्रालय द्वारा समय-समय पर दरों की समीक्षा की जाती है।
    • लघु बचत योजना पर गठित श्यामला गोपीनाथ समिति (2010) ने छोटी बचत योजनाओं के लिये बाज़ार संबद्ध ब्याज दर प्रणाली का सुझाव दिया था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रारंभिक परीक्षा

शिव कुमारस्वामी

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने कर्नाटक के तुमकुर के सिद्धगंगा मठ में डॉ. श्री श्री श्री शिव कुमारस्वामी के 115वें जन्मदिन समारोह का उद्घाटन किया तथा गुरुवंदना समारोह भाग लिया। 

Shiva-Kumaraswami

शिवकुमार स्वामी:

  • शिवकुमार स्वामी तुमकुर में सिद्धगंगा मठ के लिंगायत-वीरशैव आस्था के एक श्रद्धेय द्रष्टा तथा श्री सिद्धगंगा मठ के लिंगायत धार्मिक प्रमुख थे।
  • उनका जन्म 1 अप्रैल, 1907 को रामनगर (कर्नाटक) के वीरपुरा गाँव में हुआ था, वे अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिये जाने जाते थे।
  • उन्होंने बसवेश्वर के विचार को साकार करने के लिये 88 वर्षों तक कार्य किया तथा समानता, शिक्षा और लोगों को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
  • उनके द्वारा किये गए सामाजिक कार्यों को मान्यता देने करने हेतु उन्हें वर्ष 2015 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, पद्म भूषण और वर्ष 2007 में कर्नाटक रत्न से सम्मानित किया गया था।
  • उन्हें वर्ष 1965 में कर्नाटक विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ लिटरेचर की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया गया था।
  • उन्होंने श्री सिद्धगंगा एजुकेशन सोसाइटी ट्रस्ट की स्थापना की, जो कर्नाटक में प्राथमिक स्कूलों, नेत्रहीनों के लिये स्कूल से लेकर कला, विज्ञान, वाणिज्य और इंजीनियरिंग के लगभग 125 शैक्षणिक संस्थानों का संचालन करता है।
  • वह अपने अनुयायियों के बीच “वॉकिंग गॉड (Walking God)" के रूप में जाने जाते थे।
  • वर्ष 2019 में उनका निधन हो गया।

लिंगायत कौन हैं?

  • लिंगायत शब्द एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है, जो एक विशिष्ट दीक्षा समारोह के दौरान प्राप्त ‘लिंग’ (भगवान शिव का एक प्रतिष्ठित रूप) को अपने शरीर पर धारण करते हैं।
  • लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक-दार्शनिक कवि बसवेश्वर के अनुयायी हैं।
  • बसवेश्वर जाति व्यवस्था एवं वैदिक रीति-रिवाज़ों के खिलाफ थे।
  • लिंगायत सख्त एकेश्वरवादी हैं। वे केवल एक भगवान, लिंग (शिव) की पूजा का आदेश देते हैं।
  • 'लिंग' शब्द का अर्थ मंदिरों में स्थापित लिंग नहीं है, बल्कि सार्वभौमिक ऊर्जा (शक्ति) द्वारा योग्य सार्वभौमिक चेतना है।
  • लिंगायतों को "वीरशैव लिंगायत" नामक एक हिंदू उपजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था और उन्हें शैव माना जाता है।

लिंगायत हिंदू धर्म से अलग धर्म की मांग क्यों करते हैं?

  • लिंगायतों ने हिंदू वीरशैव से स्वयं को दूर कर लिया था, क्योंकि हिंदू वीरशैव वेदों का पालन करते थे तथा जाति व्यवस्था का समर्थन करते थे और बसवेश्वर इसके विरूद्ध थे।
  • वीरशैव पाँच पीठों (धार्मिक केंद्र) के अनुयायी हैं, जिन्हें ‘पंच पीठ’ भी कहा जाता है।
    • इन पीठों को आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों के समान ही माना जाता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


प्रारंभिक परीक्षा

पारंपरिक नववर्ष त्यौहार

भारत के राष्ट्रपति ने ‘चैत्र शुक्लादि, गुड़ी पड़वा, उगादि, चेटी चंड, वैसाखी, विसु, पुथंडु और बोहाग बिहू’ त्योहारों की पूर्व संध्या पर लोगों को बधाई दी।

  • वसंत ऋतु के ये त्योहार भारत में पारंपरिक नए साल की शुरुआत का प्रतीक हैं।

प्रमुख बिंदु

  • चैत्र शुक्लादि:
    • यह विक्रम संवत के नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक [हिंदू] कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है।
    • विक्रम संवत उस दिन से संबंधित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराया और एक नए युग का आह्वान किया।
    • उनकी देखरेख में खगोलविदों ने चंद्र-सौर प्रणाली के आधार पर एक नया कैलेंडर बनाया जिसका अनुसरण भारत के उत्तरी क्षेत्रों में अभी भी किया जाता है।
    • यह चैत्र माह (हिंदू कैलेंडर का पहला महीना) के ‘वर्द्धित चरण’ (जिसमें चंद्रमा का दृश्य पक्ष हर रात बड़ा होता जाता है) का पहला दिन होता है।
  • गुड़ी पड़वा और उगादि:
    • ये त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र सहित दक्कन क्षेत्र में मनाए जाते हैं।
    • दोनों त्योहारों/समारोहों में आम प्रथा है कि उत्सव में भोजन मीठे और कड़वे मिश्रण से तैयार किया जाता है।
    • दक्षिण में बेवु-बेला नामक गुड़ (मीठा) और नीम (कड़वा) परोसा जाता है, जो यह दर्शाता है कि जीवन सुख और दुख का मिश्रण है।
    • गुड़ी महाराष्ट्र के घरों में तैयार की जाने वाली एक गुड़िया है। गुड़ी बनाने के लिये बाँस की छड़ी को हरे या लाल ब्रोकेड से सजाया जाता है। इस गुड़ी को प्रमुख रूप से घर में या खिड़की/दरवाज़े के बाहर सभी को दिखाने के लिये से रखा जाता है।
    • उगादि के लिये घरों में दरवाज़े आम के पत्तों से सजाए जाते हैं, जिन्हें कन्नड़ में तोरणालु या तोरण कहा जाता है।
  • चेटी चंड:
    • सिंधी ‘चेटी चंड’ को नववर्ष के रूप में मनाते हैं। चैत्र माह को सिंधी में 'चेत' कहा जाता है।
    • यह दिन सिंधियों के संरक्षक संत उदयलाल/झूलेलाल की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
  • नवरेह:
    • यह कश्मीर में मनाया जाने वाला चंद्र नववर्ष है।
    • संस्कृत के शब्द 'नववर्ष'से 'नवरेह' शब्द की व्युत्पत्ति हुई है।
    • यह चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आयोजित किया जाता है।
    • इस दिन कश्मीरी पंडित चावल से भरे एक कटोरे के दर्शन करते हैं, जिसे धन और उर्वरता का प्रतीक माना जाता है।
  •  सजीबू चैरोबा:
    • मेतेईस (मणिपुर में एक जातीय समूह) एक प्रमुख अनुष्ठान त्योहार है जो मणिपुर चंद्र माह सजीबू (Manipur Lunar Month Shajibu) के पहले दिन मनाया जाता है, यह प्रत्येक वर्ष अप्रैल के महीने में मनाया जाता है।
    • त्योहार के दिन लोग संयुक्त परिवार भोज की व्यवस्था करते हैं जिसमें घरों के प्रवेश द्वार पर स्थानीय देवताओं को पारंपरिक व्यंजन पेश किये जाते हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)

परंपरा राज्य
1. चापचर कुट उत्सव मिज़ोरम
2. खोंगजोम परबा गाथा गीत मणिपुर
3. थांग-ता नृत्य सिक्किम

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3 
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (b)

स्रोत: पी.आई.बी.


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 02 अप्रैल, 2022

विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस

विश्व भर में प्रत्येक वर्ष 2 अप्रैल को ‘विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस के आयोजन का प्राथमिक उद्देश्य ऑटिज़्म के बारे में जागरूकता फैलाना और आम लोगों को इस विकार से जुड़ी चुनौतियों को समझने में मदद करना है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अप्रैल, 2007 को विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस की घोषणा की थी। ऑटिज़्म (Autism) या आत्मविमोह/स्वलीनता, एक मानसिक रोग या मस्तिष्क के विकास के दौरान होने वाला एक गंभीर विकार है। नीले रंग को ऑटिज़्म का प्रतीक माना गया है। इस विकार के लक्षण जन्म के समय या बाल्यावस्था (पहले तीन वर्षों) में ही नज़र आने लगते है। यह विकार व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। यह जीवनपर्यंत बना रहने वाला विकार है। इस विकार से पीड़ित बच्चों का विकास अन्य बच्चों से भिन्न होता है। इससे प्रभावित व्यक्ति सीमित और दोहरावयुक्त व्यवहार करता है, जैसे- एक ही काम को बार-बार करना। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में 19 वर्ष से कम आयु वर्ग के दिव्यांग बच्चों की कुल संख्या 78,62,921 है, जिनमें से 5,95,089 बच्चे बौद्धिक दिव्यांगता से पीड़ित हैं।

आनंदी गोपाल जोशी

02 अप्रैल, 2022 को भारत की पहली महिला डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी की 157वीं जयंती मनाई गई। आनंदी गोपाल जोशी भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं, जिन्होंने अमेरिका से अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी की। आनंदी गोपाल जोशी का जन्म 31 मार्च, 1865 को एक ब्राह्मण परिवार में महाराष्ट्र के ठाणे ज़िले के कल्याण में हुआ था। 9 वर्ष की आयु में आनंदी जोशी की शादी विदुर गोपालराव जोशी से कर दी गई जो उनसे उम्र में 20 साल बड़े थे। गोपाल राव प्रगतिशील सोच के इंसान थे, उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ने के लिये प्रेरित किया और उन्हें ‘आनंदी’ नाम दिया। 14 वर्ष की छोटी आयु में आनंदी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन चिकित्सकीय सुविधाओं के अभाव में वह मर गया। इस हादसे का उनकी जिंदगी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके तुरंत बाद 16 वर्ष की उम्र में वह मेडिकल की पढ़ाई के लिये अमेरिका चली गईं। आनंदी ने पेनसिल्वेनिया के वूमेंस मेडिकल कॉलेज से डिग्री ली। 26 फरवरी, 1887 को 22 साल की होने से एक महीने पहले ही आनंदी का देहांत हो गया।


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