विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का विस्तार
यह एडिटोरियल 28/10/2024 को द हिंदू में प्रकाशित "The private sector holds the key to India’s e-bus push" पर आधारित है। लेख में चर्चा की गई है कि पीएम ई-ड्राइव योजना सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक बसों को बढ़ावा देती है, लेकिन निजी ऑपरेटरों के बहिष्कार से इसकी स्केलेबिलिटी सीमित हो सकती है। EV को व्यापक तौर पर अपनाने के लिये वित्तपोषण के विकल्प तथा साझा चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रिलिम्स के लिये:पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवोल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट (PM E-DRIVE), इलेक्ट्रिक वाहन (EV), भारत में (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक वाहनों का तेज़ी से अपनाना और विनिर्माण (फेम इंडिया), बैटरी-एज़-ए-सर्विस (BaaS), नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, ध्वनि प्रदूषण, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024, फेम इंडिया स्कीम, मेक इन इंडिया, लिथियम-आयन सेल, चार्जिंग स्टेशन। मेन्स के लिये:भारत में सार्वजनिक परिवहन को समर्थन देने और प्रदूषण को कम करने में ई-वाहन का महत्त्व। |
भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव रिवोल्यूशन इन इनोवेटिव व्हीकल एन्हांसमेंट (PM E-DRIVE) योजना को मंज़ूरी दे दी है, जिसमें नौ शहरों में 14,028 इलेक्ट्रिक बसों की खरीद हेतु सब्सिडी के लिये 4,391 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं। यह सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है।
वर्तमान में, इलेक्ट्रिक वाहनों की तैनाती मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की पहलों, विशेष रूप से भारत में (हाइब्रिड और) इलेक्ट्रिक वाहनों के तेजी से अपनाने और विनिर्माण (FAME India) योजना द्वारा संचालित है। पर्याप्त फंडिंग के बावजूद, भारत में पंजीकृत 24 लाख बसों में से केवल एक छोटा सा हिस्सा ही इलेक्ट्रिक है, जबकि निजी ऑपरेटर कुल बसों का 93% हिस्सा बनाते हैं, लेकिन उनके पास महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन नहीं हैं।
इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के क्या लाभ हैं?
- पर्यावरणीय प्रभाव: इलेक्ट्रिक वाहन शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं, जिससे वे स्वच्छ होते हैं और शहरी वायु गुणवत्ता के लिये लाभकारी होते हैं।
- वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को महत्त्वपूर्ण रूप से घटाते हैं, विशेष रूप से जब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों द्वारा संचालित होते हैं, जिससे भारत को अपने कार्बन तटस्थता लक्ष्यों की दिशा में कार्य करने में सहायता मिलती है।
- कम परिचालन लागत: इलेक्ट्रिक वाहन लंबे समय तक चलाने के लिये किफायती होते हैं तथा विद्युत की लागत आमतौर पर ईंधन लागत से कम होती है।
- EV चार्जिंग के लिये विद्युत दरों में कमी जैसे सरकारी प्रोत्साहन इसे और भी अधिक आर्थिक रूप से लाभकारी बनाते हैं।
- रखरखाव की कम आवश्यकताएँ: आंतरिक दहन इंजन की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहनों में चलने वाले हिस्से कम होते हैं, जिसके कारण टूट-फूट कम होती है और परिणामस्वरूप रखरखाव की लागत भी कम हो जाती है।
- वित्तीय प्रोत्साहन और कर लाभ: सरकार कम पंजीकरण शुल्क, कर लाभ और सब्सिडी जैसे विभिन्न प्रोत्साहन प्रदान करती है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन अधिक किफायती बनते हैं और व्यापक रूप से अपनाए जाने को प्रोत्साहन मिलता है।
- बढ़ी हुई दक्षता: EV 60% तक की विद्युत ऊर्जा को प्रणोदन में बदलने में सक्षम होते हैं, जबकि पारंपरिक दहन इंजन (जैसे पेट्रोल या डीज़ल कार) केवल 17% से 21% तक ही ऊर्जा को परिवर्तित कर पाते हैं, जिससे EV अधिक ऊर्जा-कुशल सिद्ध होते हैं।
- ध्वनि प्रदूषण में कमी: इलेक्ट्रिक वाहन शांतिपूर्वक चलते हैं, जिससे भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में ध्वनि प्रदूषण कम करने, आरामदायक ड्राइविंग में सुधार करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाने में सहायता मिलती है।
सार्वजनिक परिवहन के रूप में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- उच्च प्रारंभिक लागत: इलेक्ट्रिक बसें और अन्य सार्वजनिक परिवहन वाहन डीज़ल विकल्पों की तुलना में 1.5 से 2 गुना अधिक महँगे हैं।
- यह वित्तीय बोझ विशेष रूप से छोटे निजी ऑपरेटरों के लिये चुनौतीपूर्ण है, जिनके पास पर्याप्त धन का अभाव है।
- यद्यपि इलेक्ट्रिक इंटरसिटी बसें अपने सेवाकाल के दौरान अधिक लाभदायक हो सकती हैं, लेकिन उच्च ब्याज दरें और ऋण लागत उन्हें ऋण अवधि के दौरान वित्तीय रूप से कम व्यवहार्य बनाती हैं।
- सीमित चार्जिंग अवसंरचना: चार्जिंग स्टेशन शहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं और बड़े पैमाने पर राज्य द्वारा संचालित परिवहन केंद्रों में केंद्रित हैं।
- उदाहरण के लिये, फरवरी 2024 तक, पूरे देश में केवल 12,146 सार्वजनिक इलेक्ट्रिक वाहन चार्जिंग स्टेशन सक्रिय थे।
- निजी बस ऑपरेटर को अक्सर किफायती चार्जिंग सुविधाओं की स्थापना या उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से अर्द्ध-शहरी या ग्रामीण क्षेत्रों में।
- वित्तीय जोखिम और ऋण तक सीमित पहुँच: बैंक सीमित पुनर्विक्रय मूल्य और अनिश्चित बैटरी जीवन के कारण EV निवेश को उच्च जोखिम वाला मानते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च ब्याज दरें और कम ऋण अवधि होती है।
- यह वित्तीय जोखिम निजी स्पर्द्धियों को EV बाज़ार में प्रवेश करने से रोकता है।
- बैटरी जीवन और रखरखाव: बैटरी प्रतिस्थापन लागत काफी अधिक है और कई ऑपरेटर समय के साथ इसके खराब होने की चिंता करते हैं।
- इसके अतिरिक्त, EV प्रौद्योगिकी को विशेष रखरखाव की आवश्यकता होती है, जिससे तकनीकी जानकारी और विशेष सेवाओं पर निर्भरता बढ़ती है।
- ग्रिड स्थिरता और विद्युत आपूर्ति: EV को चार्ज करने के लिये ऊर्जा की मांग अधिक है, विशेषकर घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों में।
- जिन क्षेत्रों में विद्युत कटौती अक्सर होती है, वहाँ ग्रिड स्थिरता चिंता का विषय बन जाती है, जिससे EV बुनियादी ढाँचे की विश्वसनीयता पर प्रभाव पड़ता है।
- कुशल कार्यबल का अभाव: इलेक्ट्रिक वाहनों के रखरखाव और मरम्मत के लिये विशिष्ट कौशल की आवश्यकता होती है और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी सार्वजनिक परिवहन में इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन दक्षता तथा दीर्घायु को प्रभावित करती है।
- निजी क्षेत्र का बहिष्कार: सार्वजनिक क्षेत्र ने FAME इंडिया योजना के तहत सब्सिडी द्वारा समर्थित इलेक्ट्रिक बस तैनाती को आगे बढ़ाया है, जिसने FAME I (2015-2019) के तहत 425 बसों और FAME II (2019-2024) के तहत 7,120 बसों को वित्त पोषित किया।
- हालाँकि, भारत में पंजीकृत बसों में सार्वजनिक परिवहन बसों की हिस्सेदारी केवल 7% है, जबकि निजी बसें, जिनकी हिस्सेदारी 93% है, प्रमुख राष्ट्रीय योजनाओं में शामिल नहीं हैं।
- सीमित वित्तपोषण, उच्च जोखिम और कम पुनर्विक्रय मूल्य के कारण निजी क्षेत्र में इलेक्ट्रिक बसों को अपनाना जटिल हो जाता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये सरकार की क्या पहल हैं?
राष्ट्रीय स्तर की पहल:
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 (EMPS): इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम 2024 का परिव्यय 778 करोड़ रुपए है और यह 1 अप्रैल, 2024 से 30 सितंबर, 2024 तक प्रभावी रहेगी।
- यह योजना इलेक्ट्रिक दोपहिया (e-2W) और तिपहिया (e-3W) वाहनों के खरीदारों को प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- भारत में (हाइब्रिड एवं) इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाना और विनिर्माण (फेम इंडिया) योजना: भारत में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2015 में फेम इंडिया योजना शुरू की गई थी।
- चरण-I (2015-2019) का परिव्यय 895 करोड़ रुपए था। इसने लगभग 2.8 लाख इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों का समर्थन किया, 425 इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड बसें तैनात कीं और 520 चार्जिंग स्टेशन स्वीकृत किये।
- चरण- II (2019-2024) के लिये कुल बजटीय सहायता 11,500 करोड़ रुपए है और इसका ध्यान सार्वजनिक और साझा परिवहन के विद्युतीकरण पर केंद्रित है।
- लक्ष्यों में 7,262 इलेक्ट्रिक बसें, 155,536 इलेक्ट्रिक तिपहिया वाहन, 30,461 इलेक्ट्रिक यात्री कारें (Electric Passenger Cars) और 1,550,225 इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन शामिल हैं।
- ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक उद्योग के लिये उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI-AAT): इसका बजटीय परिव्यय 25,938 करोड़ रुपए है।
- यह योजना e-2W, e-3W, e-4W, ई-बसों और ई-ट्रकों सहित विभिन्न श्रेणियों के इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करती है।
- उन्नत रसायन सेल के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI-ACC): इसका परिव्यय 18,100 करोड़ रुपए है। इस योजना का उद्देश्य भारत में उन्नत बैटरी प्रौद्योगिकियों के विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
- इलेक्ट्रिक यात्री कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना: यह योजना वैश्विक इलेक्ट्रिक वाहन निर्माताओं से निवेश आकर्षित करने और भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों के विनिर्माण गंतव्य के रूप में बढ़ावा देने के लिये तैयार की गई है।
- चार्जिंग अवसंरचना के लिये सहायता: भारी उद्योग मंत्रालय ने 7,432 इलेक्ट्रिक वाहन सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिये पूंजीगत सब्सिडी के रूप में 800 करोड़ रुपए मंज़ूर किये हैं।
- अब तक 560 करोड़ रुपए जारी किये जा चुके हैं तथा 980 सार्वजनिक फास्ट चार्जिंग स्टेशनों की स्थापना या उन्नयन के लिये अतिरिक्त 73.50 करोड़ रुपए मंज़ूर किये गए हैं।
- चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP): यह श्रेणीबद्ध शुल्क संरचना के माध्यम से EV घटकों के स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देता है, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देता है और आयात निर्भरता को कम करता है।
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP): इसका उद्देश्य देश में हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय ईंधन सुरक्षा हासिल करना और वर्ष 2030 तक 950 मिलियन लीटर ईंधन की बचत करना है।
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन: इसका उद्देश्य बैटरी उत्पादन के स्थानीयकरण को प्रोत्साहित करके और समय के साथ EV की लागत को कम करके EV क्षेत्र में "मेक इन इंडिया" को बढ़ावा देना है।
- बैटरी स्वैपिंग नीति: सरकार ने चार्जिंग समय को कम करने और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) की दक्षता में सुधार करने के लिये बैटरी स्वैपिंग नीति शुरू की, जिससे उपयोगकर्ताओं को चार्ज की गई बैटरियों के लिये समाप्त बैटरियों को बदलने की अनुमति मिल सके।
- फरवरी 2023 में जारी की जाने वाली यह नीति दोपहिया और तिपहिया वाहनों के लिये बैटरी के आकार को मानकीकृत करने पर केंद्रित है और इसमें सुरक्षा प्रोटोकॉल, पहचान कोड, रीसाइक्लिंग प्रक्रियाएँ तथा संभावित सब्सिडी शामिल हैं।
अन्य सरकारी पहल:
- वर्ष 2023-2024 के केंद्रीय बजट में सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी के लिये लिथियम-आयन सेल के निर्माण हेतु आवश्यक मशीनरी और उपकरणों के आयात के लिये सीमा शुल्क छूट बढ़ा दी है।
- वाणिज्यिक और निजी दोनों बैटरी चालित वाहन ग्रीन लाइसेंस प्लेट के लिये पात्र हैं और उन्हें परमिट आवश्यकताओं से छूट दी गई है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) को 12% से घटाकर 5% कर दिया गया है और EV चार्जिंग स्टेशनों पर GST को 18% से घटाकर 5% कर दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त, इलेक्ट्रिक वाहनों की प्रारंभिक लागत कम करने के लिये सड़क कर में छूट लागू की गई है।
राज्य स्तरीय पहल:
- महाराष्ट्र, दिल्ली एवं कर्नाटक, उत्तर प्रदेश सहित कई भारतीय राज्य EV खरीदारों के लिये सब्सिडी, कर छूट और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय EV बिक्री को बढ़ावा देना तथा चार्जिंग बुनियादी अवसंरचना की स्थापना करना है।
- उदाहरण के लिये: दिल्ली में, वर्ष 2024 तक सभी वाहन पंजीकरण में बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों (BEV) की हिस्सेदारी 25% होने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त, डिलीवरी सेवा प्रदाताओं को वर्ष 2025 तक अपने बेड़े के 100% को इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करना आवश्यक है।
आगे की राह क्या होना चाहिये?
- प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) में इलेक्ट्रिक बसों को शामिल करना: इलेक्ट्रिक बसों को प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत करके, बैंक छोटे निजी ऑपरेटरों को कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान कर सकते हैं, जिससे उनकी पूंजी तक पहुँच आसान हो जाएगी और अधिक न्यायसंगत EV संक्रमण संभव हो सकेगा।
- सार्वजनिक चार्जिंग अवसंरचना का विकास: राज्यों को उच्च यातायात वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक चार्जिंग हब स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो निजी और सार्वजनिक दोनों ऑपरेटरों के लिये सुलभ हों।
- इलेक्ट्रिक बसों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों और प्रमुख अंतर-शहरी गलियारों में साझा सार्वजनिक चार्जिंग अवसंरचना विकसित करना आवश्यक है।
- साझा सुविधाएँ अवसंरचना लागत को कम करती हैं और छोटे ऑपरेटरों के लिये EV को अपनाना व्यवहार्य बनाती हैं।
- बैटरी-एज़-ए-सर्विस (BaaS) मॉडल: ऐसे BaaS मॉडल को प्रोत्साहित करना, जहाँ ऑपरेटर बैटरी खरीदने के बजाय उसे पट्टे पर लेते हैं, इससे शुरुआती लागत कम होगी और बैटरी खराब होने की चिंताएँ दूर होंगी।
- वाणिज्यिक बेड़े के लिये डाउनटाइम कम करने हेतु बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये पट्टे की शर्तों का विस्तार: इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये ऋण की पट्टे की शर्तों को 10-12 वर्ष (वर्तमान 3-4 वर्ष से) तक बढ़ाने से निजी ऑपरेटरों को पुनर्भुगतान दायित्वों को फैलाने में सहायता मिल सकती है, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन दीर्घावधि में वित्तीय रूप से व्यवहार्य बन सकते हैं।
- विशिष्ट कौशल विकास कार्यक्रम: कुशल कार्यबल सुनिश्चित करने के लिये EV रखरखाव और मरम्मत के लिये समर्पित तकनीकी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये जा सकते हैं।
- इस पहल से परिचालन संबंधी चुनौतियों का समाधान करने तथा आयातित विशेषज्ञता पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी।
- बढ़ी हुई राजकोषीय सहायता और सब्सिडी: निजी क्षेत्र को FAME जैसे प्रोत्साहन देने से अधिक व्यक्ति इलेक्ट्रिक बसें अपनाने के लिये प्रोत्साहित होंगे।
- राज्य सरकारें वंचित क्षेत्रों में निजी चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने के लिये अतिरिक्त सब्सिडी भी दे सकती हैं।
- राज्य सरकारें वित्तीय सब्सिडी दे सकती हैं और चार्जिंग बुनियादी अवसंरचना में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये न्यूनतम ऊर्जा खपत की गारंटी सुनिश्चित कर सकती हैं।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये सहयोगात्मक PPP मॉडल विशेष रूप से शहरी और अंतर-शहरी मार्गों में चार्जिंग बुनियादी अवसंरचना में निजी निवेश को बढ़ाने में सहायता कर सकते हैं।
- सरकारें भूमि और कर प्रोत्साहन की पेशकश कर सकती हैं, जबकि निजी कंपनियाँ पूंजी एवं परिचालन विशेषज्ञता ला सकती हैं।
- बैटरी प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और नवाचार को मज़बूत करना: विशेष रूप से लिथियम-आयन और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के लिये बैटरी प्रौद्योगिकी अनुसंधान में निवेश से बैटरी की लागत तथा आयात पर निर्भरता कम हो सकती है, जिससे अधिक स्थाई EV इकोसिस्टम को सक्षम किया जा सकेगा।
- उद्योग पहल: बढ़ती ग्राहक जागरूकता के जवाब में उद्योग स्थाई विकल्पों की उपलब्धता बढ़ाने के लिये तकनीकी प्रगति और सरकारी सहायता का उपयोग कर रहा है।
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) मालिकों की सुविधा में सुधार के लिये फास्ट-चार्जिंग स्टेशन और सामुदायिक चार्जिंग सुविधाओं सहित नवीन समाधान विकसित किये गए हैं।
निष्कर्ष
जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने और शहरी वायु गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिये भारत का इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) में परिवर्तन महत्त्वपूर्ण है। हाल ही में शुरू की गई पीएम ई-ड्राइव योजना इलेक्ट्रिक बसों का समर्थन करती है, लेकिन निजी ऑपरेटरों को बाहर रखना समावेशी नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उच्च अग्रिम लागत, सीमित चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और कुशल कार्यबल की कमी को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी, अभिनव वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी उन्नति से सभी क्षेत्रों में EV को अपनाने में तेज़ी आएगी, जिससे स्वच्छ भविष्य के लिये एक स्थायी इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इकोसिस्टम स्थापित होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों में अपनाने की बाधाओं को दूर करने में विभिन्न सरकारी पहलों की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. 'ईंधन सेलों के संदर्भ में जिसमें हाइड्रोजन युक्त ईंधन और ऑक्सीजन का उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिये किया जाता है, निम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2015)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न: दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के द्रुत आर्थिक विकास की कुंजी है ?(2019) |