एडिटोरियल (29 Mar, 2025)



भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को प्रोत्साहन

यह एडिटोरियल 27/03/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “​Going electric: On India and the electric vehicle space” पर आधारित है। इस लेख में घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने वाले प्रमुख EV बैटरी घटकों पर आयात शुल्क छूट की तस्वीर पेश की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, मेक इन इंडियाEV परिनियोजन, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम, PM E-DRIVE स्कीम, फेम II, PM गति शक्ति, गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस  

मेन्स के लिये:

भारत के इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में हालिया प्रगति, भारत में EV अंगीकरण से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

भारत द्वारा हाल ही में महत्त्वपूर्ण EV बैटरी घटकों पर आयात शुल्क में छूट देने का कदम घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और स्वच्छ प्रौद्योगिकी अंगीकरण की दिशा में एक रणनीतिक मोड़ का संकेत देता है। वर्ष 2024 में यात्री कार की बिक्री में EV का हिस्सा केवल 2% होने के बावजूद, देश ने इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों में आशाजनक गति दिखाई है। अपने परिवहन क्षेत्र में वास्तव में क्रांति लाने के लिये, भारत को न केवल अनुकूल व्यापार नीतियों का लाभ उठाना चाहिये, बल्कि वैश्विक बैटरी मूल्य शृंखला में अनुसंधान, विकास एवं एकीकरण में भी पर्याप्त निवेश करना चाहिये, ताकि प्रौद्योगिकी आयातक से प्रतिस्पर्द्धी निर्माता में तब्दील हो सके।

भारत के इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र में हाल की प्रगति क्या है?

  • EV अंगीकरण और उपभोक्ता रुचि में वृद्धि: भारत EV अंगीकरण में तेज़ी से वृद्धि देख रहा है, जो सहायक नीतियों, बढ़ती पर्यावरण जागरूकता और बेहतर उत्पाद उपलब्धता से प्रेरित है। 
    • शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी के प्रति बढ़ती रुचि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है, जो व्यवहार में बदलाव का संकेत है। यह न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता को दर्शाता है, बल्कि EV तकनीक और सामर्थ्य में बढ़ते भरोसे को भी दर्शाता है।
    • भारत में वर्ष 2023 में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 49.25% बढ़कर 1.52 मिलियन यूनिट हो गई। अकेले मई 2024 में बिक्री साल-दर-साल 20.88% बढ़कर 1.39 मिलियन यूनिट हो गई।
  • निजी और वाणिज्यिक खंड विद्युतीकरण लक्ष्य: सरकार के क्षेत्रवार EV संक्रमण लक्ष्य निजी और वाणिज्यिक दोनों वाहनों के लिये एक संरचित रोडमैप को दर्शाते हैं, जो सभी खंडों में रणनीतिक उद्देश्य को दर्शाते हैं। 
    • ये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भारत की नेट-ज़ीरो और ऊर्जा संक्रमण प्रतिबद्धताओं के अनुरूप हैं, साथ ही उद्योग नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। यह कदम मांग सृजन में क्षेत्रीय संतुलन भी सुनिश्चित करता है।
    • वर्ष 2030 तक, भारत ने निजी कारों में 30%, वाणिज्यिक वाहनों में 70%, बसों में 40% और दोपहिया व तिपहिया वाहनों में 80% EV बिक्री का लक्ष्य रखा है, इस प्रकार 80 मिलियन EV का लक्ष्य रखा गया है।
  • बैटरी विनिर्माण और घटक स्थानीयकरण: भारत ने EV बैटरी उत्पादन को स्थानीय बनाने, आयात निर्भरता को कम करने और रणनीतिक आपूर्ति शृंखलाओं को सुदृढ़ करने की दिशा में स्पष्ट प्रगति की है।
    • बजट में बैटरी से संबंधित पूंजीगत वस्तुओं पर सीमा शुल्क में छूट से घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा। यह मेक इन इंडिया’ के साथ संरेखित है और EV क्षेत्र में आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करता है।
    • भारतीय EV बैटरी मार्केट वर्ष 2023 में 16.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2028 तक 27.70 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। 
  • घरेलू और वैश्विक कंपनियों द्वारा बढ़ता निवेश: EV क्षेत्र भारतीय कंपनियों और विदेशी कंपनियों दोनों के लिये आकर्षण का केंद्र बन गया है, जिससे नवाचार एवं रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिल रहा है। 
    • ये निवेश बाज़ार की परिपक्वता और दीर्घकालिक विकास की संभावना का संकेत देते हैं। पूंजी प्रवाह इको-सिस्टम के विकास— अनुसंधान एवं विकास, विनिर्माण और चार्जिंग नेटवर्क को भी बढ़ावा देता है।
    • टाटा मोटर्स-JLR (1.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर), विनफास्ट (2 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और स्टेलेंटिस (238.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर) वर्ष 2024 के प्रमुख निवेशों में से हैं। एथर एनर्जी ने 600 करोड़ रुपए जुटाए और यूनिकॉर्न बन गई।
  • EV इको-सिस्टम विकास के लिये राज्य-स्तरीय प्रयास: राज्य अपनी स्वयं की EV नीतियों और लक्ष्यों के साथ नवाचार कर रहे हैं, जिससे EV अंगीकरण के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक एवं विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण तैयार हो रहा है। 
    • ये प्रयास राष्ट्रीय लक्ष्यों के पूरक हैं तथा क्षेत्रीय गतिशीलता आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। राज्य का समर्थन बुनियादी अवसंरचना, पंजीकरण और EV इको-सिस्टम प्रोत्साहन को भी गति देता है।
    • महाराष्ट्र ने दिसंबर 2025 तक नए पंजीकरण में 10% EV हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है; कर्नाटक ने वर्ष 2030 तक कार्गो 3W/4W के 100% विद्युतीकरण का लक्ष्य रखा है। 
  • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार और नवाचार: मज़बूत EV इंफ्रास्ट्रक्चर महत्त्वपूर्ण है और भारत अपने चार्जिंग नेटवर्क को तेज़ी से बढ़ा रहा है, जिसमें अल्ट्रा-फास्ट एवं बैटरी-स्वैपिंग मॉडल शामिल हैं। EV सुविधा और अंतिम-बिंदु व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये OEM, PSU और ऊर्जा फर्मों के बीच साझेदारी महत्त्वपूर्ण है।
    • फरवरी 2024 तक, भारत में 12,146 सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन थे। ह्यूंडई ने छह मेट्रो शहरों और राजमार्गों पर फास्ट चार्जिंग का विस्तार किया।
  • फाइनेंसिंग इको-सिस्टम और सामर्थ्य को बढ़ावा: NBFC और समर्पित प्लेटफॉर्मों के साथ एक स्वस्थ EV फाइनेंसिंग इको-सिस्टम विकसित हो रहा है, जो सामर्थ्य में सुधार और अंगीकरण में तेज़ी ला रहा है। 
    • छोटे इलेक्ट्रिक वाहनों और वाणिज्यिक बेड़े के रूपांतरण के लिये वित्तपोषण तंत्र महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से MSME और लास्ट-माइल यूज़र्स के लिये।
    • वर्ष 2030 तक भारत में EV वित्तपोषण 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर (3.7 लाख करोड़ रुपये) तक पहुँचने का अनुमान है। मैक्वेरी ग्रुप ने EV वित्तपोषण और फ्लीट मैनेजमेंट का समर्थन करने के लिये जून 2024 में 'वर्टेलो' प्लेटफॉर्म लॉन्च किया।
  • हरित रक्षा क्षेत्रक और संस्थागत EV उपयोग: रक्षा और संस्थागत निकायों द्वारा EV का अंगीकरण स्वच्छ गतिशीलता में विश्वसनीयता एवं आरंभिक चरण के भरोसे का संकेत देता है। यह जागरूकता, पायलट-स्केल नवाचारों और आधिकारिक बेड़े के भीतर हरित ऊर्जा एकीकरण में भी मदद करता है।
    • भारतीय सेना ने फरवरी 2024 में शांति स्टेशनों पर चरणबद्ध EV परिनियोजन की घोषणा की। IOC ने सन मोबिलिटी के सहयोग से दिसंबर 2023 में कोलकाता में अपना पहला EV बैटरी स्वैपिंग स्टेशन लॉन्च किया।

भारत में इलेक्ट्रिक वाहन अंगीकरण से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • अपर्याप्त चार्जिंग अवसंरचना और अंतर-संचालन संबंधी समस्याएँ: सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की धीमी गति एक बड़ी बाधा बनी हुई है, विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में।
    • इसके अतिरिक्त, चार्जर और कनेक्टर में मानकीकरण की कमी विखंडन एवं उपयोगकर्त्ता असुविधा का कारण बनती है। उपभोक्ताओं के बीच विश्वास बनाने के लिये इंटर-ऑपरेबिलिटी और अभिगम समता आवश्यक है।
    • फरवरी 2024 तक, भारत में केवल 12,146 सार्वजनिक EV चार्जिंग स्टेशन थे। CII का अनुमान है कि EVs के लिये 1:40 चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के अनुपात को प्राप्त करने की दिशा में भारत को वर्ष 2030 तक कुल 1.32 मिलियन चार्जर के साथ सालाना 400,000 से अधिक चार्जर स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
  • उच्च प्रारंभिक लागत और सीमित वित्तपोषण पहुँच: बैटरी की कीमतों में गिरावट के बावजूद, इलेक्ट्रिक वाहनों की प्रारंभिक लागत उनके ICE समकक्षों की तुलना में अधिक बनी हुई है।
    • अपर्याप्त उपभोक्ता वित्तपोषण विकल्प विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के खरीदारों के लिये अभिगम को और सीमित करते हैं। ईंधन और रखरखाव में दीर्घकालिक बचत के बावजूद यह लागत चुनौती बनी हुई है।
    • उच्च प्रारंभिक लागत के साथ-साथ सीमित चार्जिंग बुनियादी अवसंरचनाके कारण, ICRA को उम्मीद है कि वर्ष 2025 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की सुलभता कम (3-5%) रहेगी।
  • आपूर्ति शृंखला पर निर्भरता और बैटरी घटक हेतु कच्चे माल की भेद्यता: भारत लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर बहुत अधिक निर्भर है।
    • इससे भू-राजनीतिक तनाव, आयात लागत और घरेलू भंडार की कमी के कारण विफलताएँ उत्पन्न होती हैं। बैटरी उत्पादन में रणनीतिक स्वायत्तता अभी पूरी तरह से हासिल नहीं हुई है।
      • उदाहरण के लिये, भारत ने वर्ष 2023 में अपनी 70% लिथियम-आयन सेल्स का आयात किया। 
  • राज्य-स्तरीय EV इको-सिस्टम विकास में असमानताएँ: यद्यपि दिल्ली, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे कुछ राज्य EV नीति एवं बुनियादी अवसंरचना में अग्रणी हैं, वहीं अन्य राज्य योजना व कार्यान्वयन में पीछे हैं। 
    • एक समान राष्ट्रव्यापी EV रणनीति के अभाव के कारण असमान अंगीकरण होता है तथा राष्ट्रीय बाज़ार का निर्माण धीमा हो जाता है।
    • गोवा 14.2% के साथ इलेक्ट्रिक वाहन अंगीकरण में सबसे आगे है, जबकि उत्तर प्रदेश जैसे कई बड़े राज्यों में यह दर 5% से भी कम है। 
      • महाराष्ट्र ने दिसंबर 2025 तक नए पंजीकरण में 10% इलेक्ट्रिक वाहन हिस्सेदारी का लक्ष्य रखा है; कई अन्य राज्यों के पास कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं है।
  • अपूर्ण घरेलू विनिर्माण और नवाचार इको-सिस्टम: भारत का EV विनिर्माण इको-सिस्टम अभी भी उन्नत प्रौद्योगिकियों में सीमित घरेलू अनुसंधान एवं विकास के साथ घटकों के महत्त्वपूर्ण आयात पर निर्भर है। 
    • इससे मूल्य संवर्द्धन बाधित होता है, रोज़गार सृजन की संभावना प्रभावित होती है और यह क्षेत्र वैश्विक आपूर्ति आघात के संपर्क में आता है। स्वदेशी नवाचार बढ़ रहा है लेकिन अभी परिपक्व नहीं हुआ है।
    • बजट 2025-26 में कोबाल्ट पाउडर एवं अपशिष्ट, लिथियम-आयन बैटरी के स्क्रैप, सीसा, जस्ता और 12 अन्य क्रिटिकल मिनरल्स पर मूल सीमा शुल्क से पूरी तरह छूट देने का प्रस्ताव है, जो घरेलू क्षमता की आवश्यकता का संकेत देता है। 
  • कम उपभोक्ता जागरूकता और रेंज चिंता: संभावित EV खरीदारों के एक बड़े वर्ग में EV के लाभों, स्वामित्व की कुल लागत और रखरखाव मॉडल की समझ का अभाव है। 
    • वाहन की रेंज, बैटरी लाइफ और नजदीकी सर्विस सेंटर की कमी को लेकर चिंता बनी हुई है, विशेष तौर पर महानगरों के बाहर। धारणा का यह अंतर पहली बार EV वाहन अपनाने वालों को रोकता है।
    • हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण के अनुसार, वर्ष 2030 तक 83% भारतीय उपभोक्ता नई इलेक्ट्रिक गाड़ियों के अंगीकरण के लिये तैयार हैं, लेकिन उनमें से केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही चार्जिंग तकनीक एवं सब्सिडी योजनाओं को पूरी तरह से समझता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका अंगीकरण अभी भी प्रारंभिक चरण में है।
  • नीतिगत अस्थिरता और सब्सिडी की अनिश्चित निरंतरता: केंद्रीय और राज्य सब्सिडी, GST दरों और पंजीकरण लाभों के बारे में लगातार परिवर्तन एवं स्पष्टता की कमी निवेशकों व खरीदारों को संशय में डालती है। 
    • FAME II के संदर्भ में चरणबद्ध अनिश्चितता और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम जैसी नई योजनाओं में परिवर्तन से भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है।
    • फेम II (1.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर) मार्च 2024 में समाप्त हो गया; PM E-DRIVE स्कीम ने इसकी जगह ले ली है। उद्योग जगत व्यवसाय की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये दीर्घकालिक प्रोत्साहन कार्यढाँचे की मांग करता है।

भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?

  • एकीकृत राष्ट्रीय EV चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन विकसित करना: भारत को चार्जर प्रकारों को मानकीकृत करने, अंतर-संचालन को सक्षम करने और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में समान तैनाती सुनिश्चित करने के लिये एकल-खिड़की EV चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन स्थापित करना चाहिये।
    • इस मिशन में राज्य डिस्कॉम, ULB और निजी भागीदारों के बीच समन्वय शामिल होना चाहिये। अक्षय ऊर्जा एकीकरण के साथ स्मार्ट-ग्रिड-सक्षम चार्जिंग के लिये बल देना महत्त्वपूर्ण है।
    • स्टेशनों की वास्तविक काल उपलब्धता और अपटाइम के लिये एक सामान्य सार्वजनिक डेटा पोर्टल उपभोक्ता विश्वास को बढ़ा सकता है।
  • EV सब्सिडी कार्यढाँचे को युक्तिसंगत और स्थायी बनाना: भारत को संशोधित FAME III के तहत एक दीर्घकालिक, स्थायी सब्सिडी कार्यढाँचे की आवश्यकता है जो राज्य-स्तरीय EV नीतियों के साथ समन्वयित हो।  
    • इसमें मांग से जुड़े गतिशील प्रोत्साहन मॉडल को अपनाया जाना चाहिये तथा बाज़ार की परिपक्वता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से कटौती की जानी चाहिये। 
    • इसे इलेक्ट्रिक मोबिलिटी प्रमोशन स्कीम से जोड़ने से सहज बदलाव सुनिश्चित होता है। नीति समयसीमा में स्थिरता से निवेशकों और उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ता है।
  • PLI 2.0 के तहत घरेलू बैटरी विनिर्माण को प्राथमिकता देना: उन्नत बैटरी रसायन विज्ञान, ठोस-अवस्था भंडारण और बैटरी रीसाइक्लिंग इको-सिस्टम पर विशेष रूप से केंद्रित एक उन्नत PLI योजना भारत की EV मूल्य शृंखला को भविष्य के लिये सुरक्षित बना सकती है। 
    • इसे सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल को प्राथमिकता देनी चाहिये और डीप-टेक R&D को प्रोत्साहित करना चाहिये। 'आत्मनिर्भर भारत' कार्यढाँचे के तहत इसे सुदृढ़ करने से रणनीतिक सामग्रियों एवं सेल-टू-पैक नवाचार में दीर्घकालिक अनुकूलन सुनिश्चित होती है।
  • स्मार्ट शहरों और PM गति शक्ति के साथ EV गतिशीलता को एकीकृत करना: EV योजना को स्मार्ट सिटीज़ मिशन में शामिल किया जाना चाहिये और निर्बाध शहरी गतिशीलता एवं हरित परिवहन गलियारों के लिये PM गति शक्ति के तहत रसद योजना बनाई जानी चाहिये।
    • EV-रेडी ज़ोन, बैटरी स्वैपिंग हब और ग्रीन पार्किंग बुनियादी अवसंरचना को सह-विकसित किया जा सकता है। 
    • यह एकीकृत नियोजन दृष्टिकोण पुनरावृत्ति को कम करता है और प्रभावी निधि अभिसरण को सक्षम बनाता है।
  • MSME और अनौपचारिक क्षेत्र के लिये लक्षित EV वित्तपोषण योजनाएँ शुरू करना: छोटे बेड़े संचालकों, गिग श्रमिकों और MSME द्वारा वाणिज्यिक उपयोग के लिये EV अंगीकरण हेतु विशेष ऋण गारंटी एवं ब्याज अनुदान योजनाएँ बनाई जानी चाहिये। 
    • 'वर्टेलो' जैसे समर्पित NBFC-नेतृत्व वाले हरित वित्तपोषण मंच को केंद्रीय समर्थन के साथ विस्तारित किया जाना चाहिये। 
    • RBI के दिशानिर्देशों के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये प्राथमिकता वाले ऋण देने से संस्थागत वित्तपोषण को और बढ़ावा मिलेगा।
  • सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की खरीद में इलेक्ट्रिक वाहनों को शामिल करना अनिवार्य: सभी सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और रक्षा प्रतिष्ठानों को एक निर्धारित समय सीमा के भीतर न्यूनतम 30% इलेक्ट्रिक वाहनों के बेड़े को बदलने का अनिवार्य आदेश अपनाना चाहिये। 
    • इससे वॉल्यूम में वृद्धि होगी, उदाहरण स्थापित होंगे और मांग में स्पष्टता आएगी। इसे गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM) से जोड़ने से प्रक्रियागत सुगमता और मूल्य निर्धारण सुनिश्चित होगा।
  • कौशल भारत + EV उद्योग साझेदारी के तहत कौशल विकास को सुदृढ़ करना: EV स्टार्टअप और ऑटो दिग्गजों के सहयोग से कौशल भारत मिशन के तहत एक अनुरूप EV कार्यबल रणनीति लागू की जानी चाहिये। 
    • ITI में बैटरी रखरखाव, चार्जर सर्विसिंग, BMS (बैटरी प्रबंधन प्रणाली) और EV सॉफ्टवेयर डायग्नोस्टिक्स पर पाठ्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये। इससे रोज़गार क्षमता बढ़ेगी और उद्योग की तत्परता को बढ़ावा मिलेगा।
  • स्टार्टअप इंडिया + FAME तालमेल के माध्यम से स्थानीय नवाचार को बढ़ावा देना: एक क्रॉस-स्कीम तालमेल बनाया जाना चाहिये, जहाँ EV से संबंधित मुद्दों, थर्मल प्रबंधन, AI-आधारित ऊर्जा रूटिंग, या ग्रामीण EV चार्जिंग को हल करने वाले स्टार्टअप को FAME और स्टार्टअप इंडिया दोनों के तहत प्रोत्साहन के लिये तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए।
    •  इससे किफायती नवाचार और उन्नत घटकों एवं सॉफ्टवेयर लेयर्स के स्थानीयकरण को प्रोत्साहन मिलता है।
  • राष्ट्रीय ई.वी. जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन अभियान की स्थापना: जनसंचार माध्यमों, स्कूलों और समुदाय-आधारित कार्यक्रमों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर "हर घर EV, हर रास्ता ग्रीन" जैसे राष्ट्रीय अभियान को शुरू किया जा सकता है। 
    • इससे रेंज की चिंता, चार्जिंग मिथक, लागत तुलना, और सफल उपयोगकर्त्ताओं को उजागर करने में मदद मिलेगी। नागरिक-केंद्रित आउटरीच टियर-2/3 बाज़ारों में धारणा अंतर को समाप्त करता है।

निष्कर्ष: 

भारत का इलेक्ट्रिक वाहन क्षेत्र नीतिगत समर्थन, बढ़ते निवेश और बढ़ती उपभोक्ता स्वीकृति से प्रेरित होकर एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है। यद्यपि विनिर्माण, बुनियादी अवसंरचना और वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, फिर भी चार्जिंग अंतराल, आपूर्ति शृंखला निर्भरता एवं लागत बाधाओं जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। व्यापक संवहनीयता लक्ष्यों के साथ EV अंगीकरण को एकीकृत करके, भारत एक उभरते बाज़ार से स्वच्छ गतिशीलता में वैश्विक अग्रणी बन सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्षेत्र में हाल की प्रगति और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। नीतिगत हस्तक्षेप, घरेलू विनिर्माण एवं बुनियादी अवसंरचना का विकास दीर्घकालिक संवहनीयता सुनिश्चित करते हुए EV अंगीकरण को किस प्रकार गति दे सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

प्रश्न 1.  दक्ष और किफायती (ऐफोर्डेबल) शहरी सार्वजनिक परिवहन किस प्रकार भारत के द्रुत आर्थिक विकास की कुंजी है? (2019)