यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर: भारत के निर्यात पर प्रभाव
यह एडिटोरियल 22/10/2023 को ‘हिंदू बिजनेसलाइन’ में प्रकाशित “India must strategise against EU carbon tax” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की निर्यात और जलवायु नीति के लिये यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के निहितार्थ के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, कार्बन ट्रेड, कार्बन उत्सर्जन, यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS), हरित ऊर्जा, डीकार्बोनाइज़ेशन, मुक्त व्यापार समझौता (FTA), साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व मेन्स के लिये:कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) और भारत पर इसके प्रभाव। |
विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोपीय संघ (EU) द्वारा कार्बन सीमा कर (Carbon Border Tax- CBT) संग्रहण की योजना (1 जनवरी, 2026 से प्रभावी) भारत की निर्यात लागत को बढ़ा सकती है। अक्तूबर 2023 से भारतीय निर्यातकों को लगभग प्रत्येक दो माह पर अपनी प्रक्रियाओं के संबंध में दस्तावेज़ जमा करने होंगे। यूरोपीय संघ के पास जल्द ही भारतीय निर्यातकों की प्रक्रियाओं पर पेश दस्तावेज़ की जाँच करने के लिये ‘सत्यापनकर्त्ता’ (verifiers) होंगे। वर्तमान में यह केवल इस्पात, एल्यूमीनियम, सीमेंट, उर्वरक, हाइड्रोजन और बिजली पर लागू होता है, लेकिन भविष्य में इसे यूरोपीय संघ में सभी आयातों तक विस्तारित किया जाएगा।
EU का ‘कार्बन सीमा कर’ क्या है?
- EU का कार्बन सीमा कर (CBT) या कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) एक नीतिगत उपाय है जिसका उद्देश्य EU में आयातित कुछ वस्तुओं के उत्पादन के दौरान उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन पर उचित मूल्य अधिरोपित करना है।
- यह ‘फिट फॉर 55 इन 2023 पैकेज’ (Fit for 55 in 2030 package) का एक भाग है, जो यूरोपीय जलवायु कानून के अनुपालन में वर्ष 1990 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम से कम 55% तक कम करने की यूरोपीय संघ की एक योजना है।
- CBAM उन देशों से सीमेंट, लौह एवं इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन के आयात पर लागू होगा जिनकी जलवायु नीतियाँ यूरोपीय संघ की तुलना में कम कठोर हैं।
- इन वस्तुओं के आयातकों को कार्बन प्रमाणपत्र (carbon certificates) की खरीद करनी होगी जो उनके उत्पादों में निहित कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को दर्शाएँगे।
- इन प्रमाणपत्रों का मूल्य EU उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (EU Emissions Trading System- ETS) में कार्बन के मूल्य के बराबर होगा। ETS एक बाज़ार-आधारित प्रणाली है जो EU के भीतर उद्योगों के उत्सर्जन को नियंत्रित करती है।
- इसका उद्देश्य गैर-EU देशों में स्वच्छ औद्योगिक उत्पादन को प्रोत्साहित करना और कार्बन लीकेज को रोकना है, जो निम्न पर्यावरणीय मानकों वाले देशों में कार्बन-सघन गतिविधियों का स्थानांतरण है।
CBAM को लेकर भारत की चिंताएँ
- लागत की वृद्धि और प्रतिस्पर्द्धात्मकता की कमी: CBAM लागत में वृद्धि कर सकता है और यूरोपीय संघ को भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर सकता है, विशेष रूप से इस्पात एवं एल्यूमीनियम जैसे क्षेत्रों में, जो यूरोपीय संघ के साथ भारत के व्यापार का एक बड़ा भाग है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, CBAM 1 जनवरी 2026 से यूरोपीय संघ में चुनिंदा आयात पर 20-35% कर/टैक्स के रूप में अभिव्यक्त होगा।
- भारत के लौह अयस्क पेलेट्स, लौह, इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों के निर्यात का 26.6% यूरोपीय संघ को जाता है।
- ये उत्पाद CBAM से प्रभावित होंगे। भारत EU को सालाना लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के माल का निर्यात करता है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार, CBAM 1 जनवरी 2026 से यूरोपीय संघ में चुनिंदा आयात पर 20-35% कर/टैक्स के रूप में अभिव्यक्त होगा।
- अनुपालन संबंधी मुद्दे: CBAM अनुपालन के दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण है। यह भारतीय उत्पादकों और आयातकों के लिये प्रशासनिक एवं तकनीकी चुनौतियाँ भी पैदा कर सकता है, जिन्हें यूरोपीय संघ के मानकों के अनुरूप अपने उत्सर्जन की निगरानी, गणना, रिपोर्ट एवं सत्यापन की आवश्यकता होगी।
- भारत की छोटी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है, जैसा कि वर्ष 2006 में भी हुआ था जब यूरोपीय संघ ने रासायनिक आयात को विनियमित करने के लिये एक कठोर व्यवस्था (EU REACH) लागू की थी।
- FTA मानदंडों के विरुद्ध: CBAM की एक ‘नॉन-टैरिफ बैरियर’ के रूप में आलोचना की जा रही है जो शून्य शुल्क FTAs की अवहेलना करती है। भारत लेवी का भुगतान करता है, जबकि कथित ‘हरित’ उत्पादों के लिये शुल्क-मुक्त प्रवेश की अनुमति देता है, जिसे विरोधाभासी स्थिति के रूप में देखा जा रहा है।
- हरित संक्रमण के प्रति यूरोपीय संघ और विकसित देशों की प्रतिबद्धता के विपरीत: आयात पर कार्बन कर का अधिरोपण—जो प्रलेखित कार्बन उत्सर्जन द्वारा निर्धारित होता है, अन्य देशों के हरित संक्रमण (Green Transition) का समर्थन करने के यूरोपीय संघ और विकसित देशों की प्रतिबद्धता के विपरीत है। हरित संक्रमण के समर्थन के बजाय इसके परिणामस्वरूप विपरीत दिशा में धन का प्रवाह होगा।
भारत को EU के CBAM के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया देनी चाहिये?
- बहुपक्षीय मंचों पर CBAM का विरोध: भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर CBAM का विरोध करना चाहिये क्योंकि यह तंत्र विकासशील विश्व की औद्योगीकरण की क्षमता को सीमित कर ‘साझा किंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ (common but differentiated responsibility) के सिद्धांत को कमज़ोर करता है।
- CBAM के अनुरूप नीतियाँ विकसित करना: भारत यूरोपीय संघ को अपने निर्यात पर CBT जैसा एक कर वसूलने पर विचार कर रहा है। हालाँकि इसके परिणामस्वरूप उत्पादकों पर सदृश कर का बोझ पड़ सकता है, लेकिन एकत्र किये गए धन को उत्पादन प्रक्रियाओं को अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाने के लिये पुनर्निवेश किया जा सकता है, जिससे संभावित रूप से भविष्य के करों को कम किया जा सकता है।
- हालाँकि इस बात को लेकर अनिश्चितता है कि यूरोपीय संघ इस तरह के कदम को स्वीकार करेगा या नहीं और क्या इसे घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विधिक रूप से प्रश्नगत किये बिना लागू किया जा सकता है।
- निर्यात बाज़ारों में विविधता लाना: भारत को एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की तलाश कर यूरोपीय संघ के बाज़ार पर निर्भरता कम करनी चाहिये। यह एक उपयुक्त रणनीतिक प्रतिक्रिया होगी। यह विविधीकरण देश को CBAM और अन्य आर्थिक परिवर्तनों के प्रभावों के प्रति अपनी संवेदनशीलता को कम करने में मदद कर सकता है।
- हरित उत्पादन को प्रोत्साहन देना:
- भारत तैयारी शुरू कर सकता है और वस्तुतः स्वच्छ उत्पादन को प्रोत्साहित कर उत्पादन को हरित एवं संवहनीय बनाने के अवसर का लाभ उठा सकता है। इससे भारत को अधिक कार्बन-सचेत भविष्य में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने का अवसर प्राप्त होगा।
- इसके साथ ही, भारत को अपने विकासात्मक लक्ष्यों और आर्थिक आकांक्षाओं से समझौता किये बिना अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली के अनुरूप ढलने और अपने ‘2070 शुद्ध शून्य लक्ष्य’ (2070 Net Zero Targets) प्राप्त करने की दिशा में तत्पर बने रहना होगा।
निष्कर्ष
यूरोपीय संघ का कार्बन सीमा कर (CBAM) भारत के निर्यात के लिये चुनौतियाँ पेश करता है, विशेष रूप से इस्पात एवं एल्यूमीनियम जैसे क्षेत्रों में। भारत को एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें CBAM का विरोध करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय होना, द्विपक्षीय समझौतों की तलाश करना, निर्यात बाज़ारों में विविधता लाना और हरित उत्पादन को बढ़ावा देना शामिल है। कार्बन-सचेत वैश्विक बाज़ार में भारत की स्थिति सुदृढ़ करने के लिये पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और आर्थिक समृद्धि को संतुलित करना आवश्यक है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये यूरोपीय संघ के कार्बन सीमा कर के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये और उन रणनीतिक प्रतिक्रियाओं की चर्चा कीजिये जो भारत इन चुनौतियों से निपटने के लिये आजमा सकता है।
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