एडिटोरियल (27 Aug, 2024)



भारत-अमेरिका साझेदारी

यह एडिटोरियल 26/08/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित Whether it is President Trump or President Harris, US-India relations must continue on an upward arc लेख पर आधारित है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की अलग-अलग सरकारों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने एवं सुदृढ़ करने, साथ ही आव्रजन, व्यापार एवं भू-राजनीतिक संरेखण की चुनौतियों को संबोधित करने की भारत की अद्वितीय क्षमता की चर्चा की गई है। लेख में भारत के लिये अपने रणनीतिक लाभों, जैसे कि सुदृढ़ प्रवासी संबंधों और हिंद-प्रशांत में अपनी भूमिका का लाभ उठाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है, ताकि इन जटिलताओं को दूर किया जा सके और एक तेज़ी से बहुध्रुवीय होते जा रहे विश्व के अनुकूल बना जा सके।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-अमेरिका साझेदारी, शीत युद्ध, रणनीतिक साझेदारी हेतु अगले कदम, असैन्य परमाणु समझौता, 2008, अमेरिका-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी, महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पहल, चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता, अमेरिका के CAATSA प्रतिबंध, ब्रिक्स, रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल, हरित ऊर्जा गलियारा

मुख्य बिंदु:

भारत-अमेरिका संबंधों का विकास, भारत-अमेरिका संबंधों में टकराव के प्रमुख क्षेत्र।

संयुक्त राज्य अमेरिका में संभावित राजनीतिक परिवर्तनों के परिदृश्य में भारत एक अनूठी स्थिति का सामना कर रहा है। अमेरिका के कई अन्य सहयोगी राष्ट्रों के विपरीत भारत ने रिपब्लिकन एवं डेमोक्रेटिक दोनों प्रशासनों के तहत अमेरिका के साथ अपने संबंधों को सफलतापूर्वक सुदृढ़ किया है और स्वयं को व्यापार, प्रौद्योगिकी एवं सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित किया है।

पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका साझेदारी में लगातार वृद्धि देखी गई है, लेकिन आव्रजन, व्यापार नीतियों और भू-राजनीतिक संरेखन (विशेष रूप से रूस और चीन के संबंध में) जैसे क्षेत्रों में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। जब भारत इन जटिलताओं के बीच आगे बढ़ रहा है तो उसे अपने रणनीतिक लाभों—जिसमें अमेरिकी नीति-निर्माताओं के साथ उसका सुदृढ़ जुड़ाव, सशक्त प्रवासी संबंध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का बढ़ता महत्त्व शामिल हैं—का दोहन करना चाहिये, ताकि तेज़ी से बहुध्रुवीय हो रहे विश्व में इस महत्त्वपूर्ण संबंध को और सुदृढ़ एवं अनुकूल बनाया जा सके।

समय के साथ भारत और अमेरिका के संबंध किस प्रकार विकसित हुए?

  • विमुखता से संलग्नता की ओर – शीत युद्ध का नरम पड़ना: शीत युद्ध के दौरान भारत और अमेरिका विपरीत पक्षों में थे, जहाँ भारत गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन कर रहा था जबकि भारत का तत्कालीन प्रमुख प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान अमेरिका के साथ था।
    • 1990 के दशक में भारत के आर्थिक उदारीकरण और शीत युद्ध की समाप्ति के साथ दोनों देशों के संबंधों में नरमी आनी शुरू हुई।
    • वर्ष 2000 में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत यात्रा से इस संबंध में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया, जो 20 वर्षों से भी अधिक की अवधि के बाद किसी अमेरिकी राष्ट्रपति की पहली भारत यात्रा थी।
    • इस अवधि में रणनीतिक वार्ता की शुरुआत हुई और आर्थिक सहयोग की वृद्धि हुई।
    • वर्ष 2004 में ‘रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण’ (Next Steps in Strategic Partnership- NSSP) पर हस्ताक्षर ने बढ़ते संबंधों को और सुदृढ़ किया।
  • परमाणु सहयोग – विश्वास के नए युग का उभार: वर्ष 2008 में संपन्न असैन्य परमाणु समझौते ने भारत-अमेरिका संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया।
    • इस समझौते ने प्रभावी रूप से भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया और उसे एक उत्तरदायी परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता प्रदान की गई।
    • इस समझौते ने, भारत के परमाणु अप्रसार संधि के हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं होने के बावजूद, वैश्विक परमाणु व्यवस्था में उसके एकीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
    • इससे रक्षा और उच्च प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग की भी वृद्धि हुई। वर्ष 2008 में समझौते के क्रियान्वयन ने भारत के वैश्विक कद को बढ़ाने में अमेरिका की प्रतिबद्धता को परिलक्षित किया।
  • रक्षा संबंध – खरीदार से भागीदार बनने की ओर: 2000 के दशक के प्रारंभ से भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
    • एक परिधीय खरीदार रहे भारत को अमेरिका ने वर्ष 2016 से प्रमुख रक्षा भागीदार (Major Defense Partner) होने का दर्जा प्रदान किया।
      • वर्ष 2018 में भारत के दर्जे को बढ़ाकर उसे रणनीतिक व्यापार प्राधिकरण स्तर 1 (Strategic Trade Authorization tier 1) में शामिल किया गया, जिससे भारत को अमेरिका के वाणिज्य विभाग द्वारा विनियमित सैन्य एवं दोहरे उपयोग वाली प्रौद्योगिकियों (dual-use technologies) की एक विस्तृत शृंखला तक लाइसेंस-मुक्त पहुँच प्राप्त करने की अनुमति मिली।
    • LEMOA (2016), COMCASA (2018) और BECA (2020) जैसे आधारभूत समझौतों पर हस्ताक्षर से गहन सैन्य सहयोग संभव हुआ है।
    • मालाबार जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास तथा वर्ष 2018 में 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता की स्थापना ने रणनीतिक संबंधों को और मज़बूत किया है।
  • आर्थिक तालमेल – व्यापार से आगे बढ़कर रणनीतिक सहयोग की ओर: आर्थिक संबंध भारत-अमेरिका साझेदारी के प्रमुख चालक रहे हैं।
    • भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023-24 में 118.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
    • अमेरिका वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
    • यह सहयोग व्यापार से आगे बढ़कर स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों तक विस्तृत हुआ है।
    • वर्ष 2021 में अमेरिका-भारत रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) जैसी पहलों का शुभारंभ और कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन में सहयोग आर्थिक संबंधों की उभरती प्रकृति को परिलक्षित करता है।
  • डिजिटल युग में सहयोग: प्रौद्योगिकीय सहयोग 21वीं सदी में भारत-अमेरिका संबंधों की आधारशिला के रूप में उभरा है।
    • दोनों देशों ने AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और 5G जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग के लिये कई मंच स्थापित किये हैं।
    • वर्ष 2009 में स्थापित अमेरिका-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एंडोमेंट फंड (US-India Science and Technology Endowment Fund) ने नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया है।
    • यूएस-इंडिया आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस इनिशिएटिव और क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव (iCET) जैसी हाल की पहलें द्विपक्षीय संबंधों में तकनीकी सहयोग के रणनीतिक महत्त्व को रेखांकित करती हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण – हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भागीदार: चीन के उदय ने भारत और अमेरिका को अपने रणनीतिक दृष्टिकोण में एक-दूसरे के निकट किया है।
    • भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की संलग्नता के साथ ‘क्वाड’ (Quadrilateral Security Dialogue- Quad) का पुनरुद्धार इस संरेखण को परिलक्षित करता है।
    • अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति (Indo-Pacific strategy) में भारत को शामिल किया जाना बढ़ते अभिसरण को दर्शाता है।
    • ‘स्वतंत्र एवं खुले हिंद-प्रशांत’ पर बल देने वाले संयुक्त वक्तव्य और आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता पहल (Supply Chain Resilience Initiative) जैसे कदम दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक सहयोग की गहराई को प्रदर्शित करते हैं।

भारत-अमेरिका संबंधों में टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • व्यापार तनाव – आर्थिक उतार-चढ़ाव से निपटना: बढ़ते द्विपक्षीय व्यापार के बावजूद भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक टकराव बना हुआ है।
    • अमेरिका के लिये प्रमुख मुद्दों में भारत का व्यापार अधिशेष (वर्ष 2023-24 में 36.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर), बाज़ार पहुँच संबंधी बाधाएँ और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी चिंताएँ शामिल हैं।
    • अमेरिका ने भारत की डेटा स्थानीयकरण नीतियों और ई-कॉमर्स विनियमनों की आलोचना की है, जबकि भारत ने इस्पात एवं एल्यूमीनियम पर अमेरिकी टैरिफ पर आपत्ति जताई है।
    • वर्ष 2019 में भारत को सामान्यीकृत वरीयता प्रणाली (Generalized System of Preferences- GSP) से हटा दिया जाना तथा कृषि सब्सिडी को लेकर विश्व व्यापार संगठन (WTO) में जारी असहमति दोनों देशों के व्यापार संबंधों को और जटिल बना रही है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता बनाम गठबंधन की अपेक्षाएँ: भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की नीति प्रायः अमेरिका की घनिष्ठ संरेखण की अपेक्षाओं से टकराहट रखती है।
    • हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख से इसकी पुष्टि हुई, जहाँ यूक्रेन में रूसी कार्रवाइयों की निंदा से बचते हुए भारत ने संवाद पर बल दिया, जबकि भारत द्वारा रूसी सैन्य उपकरणों (जैसे S-400 मिसाइल प्रणाली) एवं तेल (जहाँ रूस भारत का प्रमुख आपूर्तिकर्ता है) की खरीद भी जारी है।
    • भारत की इन रक्षा खरीदों पर अमेरिका के CAATSA प्रतिबंधों का खतरा मंडरा रहा है।
    • इसी प्रकार, BRICS और SCO जैसे समूहों में भारत की भागीदारी, जिनमें अमेरिका के विरोधी देश (रूस, चीन) शामिल हैं, कभी-कभी टकराव उत्पन्न करती है।
    • एक सुदृढ़ साझेदारी बनाए रखते हुए इन भिन्न हितों के बीच संतुलन बनाए रखना दोनों देशों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा सहयोग: यद्यपि रक्षा संबंधों में अभूतपूर्व सुधार हुआ है, फिर भी प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त उत्पादन में मामले में समस्याएँ बनी हुई हैं।
    • भारत उन्नत प्रौद्योगिकी और वृहत प्रौद्योगिकी साझाकरण की इच्छा रखता है, लेकिन अमेरिकी निर्यात नियंत्रण विनियमन प्रायः ऐसे हस्तांतरणों को सीमित करते हैं।
    • सूचना सुरक्षा के बारे में भारतीय चिंताओं के कारण COMCASA एवं BECA जैसे समझौतों के कार्यान्वयन में देरी से भी गहन रक्षा सहयोग पर असर पड़ रहा है।
    • रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार पहल (Defense Technology and Trade Initiative- DTTI) जैसी हाल की पहलों का उद्देश्य इन मुद्दों का समाधान करना है, लेकिन प्रगति अपेक्षा से धीमी रही है।
  • मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्य: भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार सहित मानवाधिकार संबंधी विभिन्न मुद्दों पर अमेरिका की चिंताएँ कभी-कभी द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा करती हैं।
    • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (US Commission on International Religious Freedom) द्वारा वर्ष 2020 और 2021 में भारत को ‘विशेष चिंता के देश’ (Country of Particular Concern- CPCs) के रूप में नामित करने की अनुशंसा इन तनावों को उजागर करती है।
    • भारत ऐसी आलोचनाओं को आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है। मूल्य-आधारित कूटनीति के साथ रणनीतिक साझेदारी को संतुलित करना एक चुनौती बनी हुई है, जैसा कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाने जैसी विवादास्पद भारतीय नीतियों पर अमेरिका की शांत प्रतिक्रिया से स्पष्ट है।
  • वीज़ा और आव्रजन: आव्रजन नीतियाँ, विशेष रूप से भारतीय टेक कर्मचारियों और छात्रों को प्रभावित करने वाली नीतियाँ, क्षोभ का कारण रही हैं।
    • H-1B वीज़ा नियमों में परिवर्तन से भारत में चिंता उत्पन्न हुई है।
    • रोज़गार-आधारित ग्रीन कार्ड के लिये लंबित आवेदन, जो भारतीयों को असमान रूप से प्रभावित कर रहे हैं, एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
      • 10 लाख से अधिक भारतीय उच्च कुशल आप्रवासी वीज़ा (highly skilled immigrant visas) की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा: यद्यपि दोनों देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये प्रतिबद्ध हैं, फिर भी कार्रवाई की गति और पैमाने को लेकर मतभेद बने हुए हैं।
    • अमेरिका अधिक महत्वाकांक्षी उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों पर बल दे रहा है, जबकि भारत अपनी विकास आवश्यकताओं पर बल दे रहा है तथा विकसित देशों से अधिक वित्तीय सहायता की मांग कर रहा है।
    • कार्बन सीमा करों और कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने या कम करने जैसे मुद्दों पर असहमति विद्यमान चुनौतियों को उजागर करती है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार: बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual property rights- IPR) का संरक्षण भारत-अमेरिका संबंधों में एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
    • पेटेंट कानून, कॉपीराइट पाइरेसी और ट्रेडमार्क उल्लंघन पर चिंताओं का हवाला देते हुए अमेरिका ने भारत को लगातार स्पेशल 301 रिपोर्ट (Special 301 Report) की प्राथमिकता निगरानी सूची (Priority Watch List) में बनाए रखा है।
    • भारत द्वारा फार्मास्यूटिकल्स के लिये अनिवार्य लाइसेंसिंग का प्रयोग और कृषि पेटेंट पर उसका रुख भी टकराव के विशेष बिंदु रहे हैं।
    • यद्यपि भारत ने अपनी IPR व्यवस्था को सुदृढ़ करने के प्रयास किये हैं (जहाँ 2016 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा अधिकार नीति भी घोषित की गई), फिर भी नवाचार और प्रौद्योगिकी तक पहुँच के दृष्टिकोण में मतभेद बने हुए हैं।

भारत अमेरिका के साथ अपने संबंधों को किस प्रकार और आगे बढ़ा सकता है?

  • ‘मेक इन इंडिया’ और ‘बाय अमेरिकन’ का मिलन: भारत ऐसे संयुक्त विनिर्माण पहलों का प्रस्ताव कर सकता है जो दोनों देशों के आर्थिक लक्ष्यों के अनुरूप हों।
    • इसमें इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा उपकरण जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
    • ऐसे संयुक्त उद्यमों के लिये त्वरित अनुमोदन प्रक्रिया लागू करना तथा अमेरिकी कंपनियों के लिये विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) स्थापित करना इस पहल को आकर्षक बना सकता है।
    • यह दृष्टिकोण संभावित रूप से दोनों पक्षों के लिये लाभ की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जहाँ रोज़गार सृजन के बारे में अमेरिका की चिंताएँ दूर होंगी तथा भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
  • हरित ऊर्जा गलियारा: भारत नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के संयुक्त विकास एवं उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक द्विपक्षीय हरित ऊर्जा गलियारे (Green Energy Corridor) का प्रस्ताव कर सकता है।
    • इसमें सौर, पवन एवं हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों पर सहयोगात्मक अनुसंधान, हरित ऊर्जा उपकरणों के विनिर्माण के लिये संयुक्त उद्यम और संवहनीय शहरी विकास के लिये साझा परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं।
    • यह पहल अमेरिका की प्रौद्योगिकीय विशेषज्ञता और भारत के पैमाने का लाभ उठाते हुए दोनों देशों के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी ला सकती है।
    • संयुक्त रूप से विकसित हरित प्रौद्योगिकियों के लिये अधिमान्य बाजार पहुँच की पेशकश करने से जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं का समाधान करते हुए इस साझेदारी को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाया जा सकता है।
  • डिजिटल लोकतंत्र पहल: भारत अमेरिका के साथ डिजिटल लोकतंत्र पहल (Digital Democracy Initiative) शुरू कर सकता है, जो ‘ओपन’ एवं सुरक्षित इंटरनेट के लिये साझा मानदंडों और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • इसमें साइबर सुरक्षा, दुष्प्रचार से मुक़ाबला करने और डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने जैसे विषयों में संयुक्त प्रयास शामिल हो सकते हैं।
    • निजता-संरक्षण प्रौद्योगिकियों और ओपन-सोर्स डिजिटल पब्लिक गुड्स के विकास के लिये क्रियान्वित सहयोगी परियोजनाएँ इसकी प्रमुख घटक हो सकती हैं।
    • भारत डिजिटल गवर्नेंस के दृष्टिकोणों को संरेखित कर अपनी टेक संबंधी नीतियों के बारे में अमेरिकी चिंताओं को संबोधित कर सकता है, साथ ही वैश्विक डिजिटल मानदंडों को आकार देने में अपनी भूमिका निभा सकता है। इस पहल में दोनों देशों में ‘डिजिटल डिवाइड’ को दूर करने के संयुक्त कार्यक्रम भी शामिल हो सकते हैं।
  • कौशल पासपोर्ट कार्यक्रम: भारत अमेरिका में श्रम की कमी को दूर करने और साथ ही भारतीय श्रमिकों के लिये अवसर प्रदान करने के लिये कौशल पासपोर्ट कार्यक्रम (Skills Passport Program) का प्रस्ताव कर सकता है।
    • इस कार्यक्रम में दोनों देशों द्वारा मान्यता प्राप्त मानकीकृत कौशल प्रमाणन, प्रमाणित श्रमिकों के लिये सुव्यवस्थित वीज़ा प्रक्रिया और संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हो सकते हैं।
    • अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा, IT और उन्नत विनिर्माण जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने से यह पहल पारस्परिक रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकती है।
    • ज्ञान हस्तांतरण और वापसी प्रवास (return migration) के लिये प्रावधान शामिल करने से चक्रीय प्रवासन (circular migration) को सुविधाजनक बनाते हुए प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन) की चिंताओं का समाधान किया जा सकता है।
  • रणनीतिक संसाधन साझेदारी: भारत महत्त्वपूर्ण संसाधनों के लिये अमेरिकी आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित एवं विविधीकृत करने में एक प्रमुख साझेदार बनने की पेशकश कर सकता है।
    • इसमें दुर्लभ मृदा तत्वों (REEs) का संयुक्त अन्वेषण एवं उत्पादन, वैकल्पिक सामग्रियों पर सहयोगात्मक अनुसंधान और रणनीतिक संसाधनों का समन्वित भंडारण शामिल हो सकता है।
    • भारत अपने भूवैज्ञानिक संसाधनों और विनिर्माण क्षमताओं का लाभ उठाकर महत्त्वपूर्ण आपूर्ति शृंखलाओं में चीन के लिये एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकता है।
    • त्वरित पर्यावरणीय मंज़ूरी लागू करने तथा ऐसी परियोजनाओं के लिये वित्तीय प्रोत्साहन देने से इस साझेदारी में गति आ सकती है।
  • महामारी हेतु पूर्व-तैयारी और अन्य कदम: कोविड-19 महामारी के दौरान स्थापित सहयोग को आगे बढ़ाते हुए, भारत एक व्यापक स्वास्थ्य सुरक्षा गठबंधन (Health Security Alliance) का प्रस्ताव कर सकता है।
    • इसमें संयुक्त वैक्सीन विकास एवं उत्पादन सुविधाएँ, उभरते संक्रामक रोगों पर सहयोगात्मक अनुसंधान और संभावित महामारियों के लिये साझा पूर्व-चेतावनी प्रणालियाँ शामिल हो सकती हैं।
    • इसे टेलीमेडिसिन, चिकित्सा उपकरण विकास और स्वास्थ्य डेटा विश्लेषण जैसे क्षेत्रों तक विस्तारित करने से एक सुदृढ़ एवं बहुमुखी साझेदारी का निर्माण किया जा सकता है।
    • चिकित्सा योग्यताओं को पारस्परिक मान्यता प्रदान करना तथा संयुक्त चिकित्सा अनुसंधान के लिये सरल अनुमोदन प्रक्रिया प्रदान करना इस गठबंधन को और सुदृढ़ कर सकता है।
  • अंतरिक्ष वाणिज्यीकरण कंसोर्टियम: भारत वाणिज्यिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों एवं सेवाओं के संयुक्त विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिका के साथ एक अंतरिक्ष वाणिज्यीकरण कंसोर्टियम (Space Commercialization Consortium) की शुरुआत कर सकता है।
    • इसमें लघु उपग्रह विकास, अंतरिक्ष आधारित इंटरनेट सेवाएँ और अंतरिक्ष पर्यटन प्रौद्योगिकियों में सहयोगात्मक परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं।
    • यह कंसोर्टियम ISRO के लागत-प्रभावी दृष्टिकोण को NASA की उन्नत क्षमताओं के साथ संयोजित कर अंतरिक्ष वाणिज्यीकरण में गति ला सकता है
    • संयुक्त परियोजनाओं के लिये अधिमान्य प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करना और वाणिज्यिक अंतरिक्ष गतिविधियों के लिये साझा नियामक ढाँचा तैयार करना इस साझेदारी को दोनों देशों के लिये आकर्षक बना सकता है।
  • एग्री-टेक इनोवेशन हब: भारत अमेरिका के साथ साझेदारी में एग्री-टेक इनोवेशन हब (AgriTech Innovation Hub) स्थापित कर सकता है, जो उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों के विकास एवं क्रियान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • इसमें जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों, परिशुद्ध कृषि तकनीकों और AI-संचालित कीट प्रबंधन प्रणालियों पर संयुक्त अनुसंधान शामिल हो सकता है।
    • यह हब या केंद्र अमेरिकी कृषि अनुसंधान क्षमताओं को भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्रों के साथ संयुक्त कर खाद्य सुरक्षा में नवाचारों को गति दे सकता है।
    • संयुक्त रूप से विकसित प्रौद्योगिकियों के लिये भारत में क्षेत्र परीक्षण के अवसर प्रदान करना तथा कृषक विनिमय कार्यक्रम का सृजन करना इस पहल के व्यावहारिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
अभ्यास प्रश्न: पिछले दो दशकों में भारत-अमेरिका संबंधों में उल्लेखनीय बदलाव आया है, जो एक सतर्क संलग्नता से सुदृढ़ रणनीतिक साझेदारी तक पहुँच गया है। इस परिवर्तन को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये और उन चुनौतियों की चर्चा कीजिये जो द्विपक्षीय संबंधों को अभी भी आकार दे रही हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा , विगत वर्ष   

मेन्स

प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण  वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है,  जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट  कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)