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  • 24 Sep, 2024
  • 31 min read
शासन व्यवस्था

रक्षा निर्यात में भारत की सामरिक अभिवृद्धि

यह संपादकीय 24/09/2024 को द हिंदू में प्रकाशित " India’s defense exports and humanitarian law" पर आधारित है। यह लेख भारत के रक्षा निर्यात में विधिक और नैतिक दोषों को प्रस्तुत करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय विधि (IHL) अनुपालन समीक्षा की अनुपस्थिति पर प्रकाश डालता है। यह आयुधों के ज़िम्मेदार निर्यात को सुनिश्चित करने और भारत की रक्षा महत्त्वाकांक्षाओं को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाने के लिये व्यापक विधि की आवश्यकता पर बल देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का रक्षा क्षेत्र, सर्वोच्च न्यायालयब्रह्मोस मिसाइल, रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति, रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टररक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया   

मेन्स के लिये:

भारत के रक्षा निर्यात के विकास के कारक, भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता से प्रेरित भारत के बढ़ते रक्षा क्षेत्र ने देश को वैश्विक आयुध बाज़ार में प्रणोदित कर दिया है, जिससे महत्त्वपूर्ण विधिक और नैतिक मुद्दे प्रकट हुए हैं। युद्ध अपराधों के आरोपों के बावजूद इज़रायल को आयुधों के निर्यात के विरुद्ध एक मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निरस्त करने से भारत के विधिक ढाँचे का दोष प्रकट हुआ है, क्योंकि प्राप्तकर्ता देशों के अंतर्राष्ट्रीय मानवीय विधि (IHL) अनुपालन का आकलन करने की कोई स्पष्ट आवश्यकता नहीं है। नीदरलैंड और संयुक्त राष्ट्र(ब्रिटेन) जैसे देशों के विपरीत, विदेशी व्यापार अधिनियम सहित भारत के मौजूदा नियमों में IHL समीक्षा के लिये प्रावधान नहीं हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय विधि के प्रति इसकी प्रतिबद्धता के विषय में चिंताओं में वृद्धि हुई हैं।

यद्यपि भारत एक प्रमुख आयुध निर्यातक बनने की आकांक्षा रखता है, इसलिये IHL अनुपालन समीक्षा को अनिवार्य बनाने वाली व्यापक विधि निर्मित करने से न केवल भारत की प्रतिष्ठा सुरक्षित रहेगी, बल्कि आयुधों के दुरुपयोग को रोकने के वैश्विक प्रयासों को भी समर्थन मिलेगा। रक्षा निर्माताओं के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्वदेशीकरण प्रक्रिया में नैतिक मानकों को और सुनिश्चित करेंगे, जिससे भारत की रक्षा महत्त्वाकांक्षाएँ उसके अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के साथ संरेखित होंगी।

भारत के रक्षा निर्यात की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • हालिया प्रदर्शन: वित्त वर्ष 2024-25 (अप्रैल-जून 2024) की पहली तिमाही में, भारत का रक्षा निर्यात ₹6,915 करोड़ तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2023-24 की इसी अवधि के दौरान ₹3,885 करोड़ की तुलना में 78% की पर्याप्त वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
  • विकास प्रक्षेपपथ: वित्त वर्ष 2017 से भारत का रक्षा निर्यात 12 गुना से अधिक तथा वित्त वर्ष 2013-14 से 31 गुना बढ़ा है। 
    • यह तीव्र विस्तार भारत को वैश्विक आयुध बाज़ार में एक उभरते हुए अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करता है।
    • भारत अब शीर्ष 25 आयुध निर्यातक देशों में शामिल है, जो लगभग 85 देशों को रक्षा उत्पाद आपूर्ति करता है।
  • निर्यात उत्पाद: भारत के निर्यात पोर्टफोलियो में रक्षा उपकरणों की विविध शृंखला शामिल है, जिसमें डोर्नियर-228 जैसे विमान, तोपें, ब्रह्मोस मिसाइलें, पिनाका रॉकेट और लांचर, रडार, सिमुलेटर, बख्तरबंद वाहन, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण और निगरानी प्रणाली शामिल हैं।

भारत के रक्षा निर्यात के विकास के कारक क्या हैं? 

  • नीतिगत सुधार और सरकारी पहल: भारत सरकार ने रक्षा निर्यात को संवर्द्धित करने हेतु महत्त्वपूर्ण नीतिगत सुधारों को कार्यान्वित किया है, जिसमें रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्द्धन नीति (DPEPP) 2020 की शुरुआत भी शामिल है। 
    • इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2025 तक रक्षा विनिर्माण में 25 बिलियन अमरीकी डॉलर का व्यापार करना है, जिसमें 5 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात भी शामिल है। 
    • सरकार ने लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को भी सुव्यवस्थित किया है, स्वचालित मार्ग के तहत FDI सीमा को बढ़ाकर 74% कर दिया है, और स्वदेशी विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत'  जैसी योजनाएँ शुरू की हैं।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में रक्षा पूंजी अधिप्राप्ति बजट का रिकॉर्ड 75% घरेलू उद्योग के लिये निर्धारित किया गया, जो वर्ष 2022-23 में 68% था।
    • घरेलू रक्षा उत्पादन में भी सुदृढ़ प्रदर्शन देखा गया है, जो वित्त वर्ष 2024 में 1.27 ट्रिलियन रुपये तक पहुँच गया है।
    • हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने 346 वस्तुओं वाली पांचवीं सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची (PIL) को अधिसूचित किया है, जिससे घरेलू रक्षा विनिर्माण को और बढ़ावा मिलेगा। 
    • भारत में रक्षा निर्यात संवर्द्धन योजना के लिये मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) रक्षा निर्यात के प्रमाणन और परीक्षण हेतु दिशानिर्देश और प्रक्रियाएँ स्थापित करती है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी में वृद्धि: रक्षा क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलना निर्यात वृद्धि का एक महत्त्वपूर्ण कारक रहा है। 
    • सरकार ने रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) पहल सहित विभिन्न उपायों के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया है।
    • परिणामस्वरूप, वर्ष 2014 तक जारी किये गए 215 रक्षा लाइसेंसों की तुलना में मार्च 2019 तक जारी किये गए रक्षा लाइसेंसों की संख्या 440 हो गई। 
    • उल्लेखनीय उदाहरणों में टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड द्वारा बोइंग को एयरोस्पेस घटकों का निर्यात शामिल है। 
      • इस बढ़ी हुई भागीदारी के कारण रक्षा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र अधिक विविध और प्रतिस्पर्द्धी बन गया है, जिससे नवाचार और निर्यात वृद्धि को बढ़ावा मिला है।
    • भारत ने दो रक्षा औद्योगिक गलियारे भी स्थापित किये हैं- एक उत्तर प्रदेश में और दूसरा तमिलनाडु में। 
  • अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान: भारत ने रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिससे उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकियों का विकास हो रहा है जो वैश्विक बाज़ार में आकर्षक हैं। 
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) इस प्रयास में सबसे आगे रहा है, जिसका वित्त वर्ष 2024-25 में बजट 23,855 करोड़ रुपये है। 
    • इस निवेश के परिणामस्वरूप ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली, आकाश वायु रक्षा प्रणाली और  एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) जैसे निर्यात योग्य उत्पादों का विकास हुआ है। 
      • उदाहरण के लिये, जनवरी 2022 में, फिलीपींस ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के तट-आधारित एंटी-शिप संस्करण की तीन बैटरियों के लिये भारत के साथ 375 मिलियन डॉलर का संव्यवहार किया है।
  • सामरिक साझेदारियाँ और सरकार-से-सरकार समझौते: भारत रक्षा निर्यात को संवर्द्धित करने के लिये सामरिक साझेदारियों और G2G समझौतों को सक्रिय रूप से अग्रेषित कर रहा है। 
    • ये समझौते रक्षा उत्पादन और तीसरे देशों को निर्यात में सहयोग के लिये एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। 
    • इसका एक प्रमुख उदाहरण वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित भारत-जापान अधिग्रहण और क्रॉस-सर्विसिंग समझौता (ACSA) है, जो दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान की सुविधा प्रदान करता है। 
    • इसी प्रकार, भारत ने 53 से अधिक देशों के साथ रक्षा सहयोग समझौते किये हैं, जिससे भारतीय रक्षा उत्पादों के लिये नए बाज़ार खुल रहे हैं। 
  • प्रतिस्पर्द्धी मूल्य और गुणवत्ता: भारतीय रक्षा उत्पादों ने प्रतिस्पर्द्धी मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता प्रदान करने के लिये ख्याति प्राप्त कर ली है, जिससे वे कई विकासशील और मध्यम आय वाले देशों के लिये आकर्षक बन गए हैं। 
    • इसका आंशिक कारण भारत में विनिर्माण लागत कम होना तथा लागत प्रभावी समाधान विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत निर्मित आकाश सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली का मूल्य अन्य देशों की तुलनीय प्रणालियों की तुलना में काफी कम है, जिससे यह आर्मेनिया जैसे देशों के लिये एक आकर्षक विकल्प बन गया है।
  • समायोजन नीतियाँ और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: भारत की समायोजन नीति, जिसके तहत विदेशी रक्षा कंपनियों को अपने अनुबंध मूल्य का एक हिस्सा भारत में निवेश करना आवश्यक है, ने निर्यात को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। 
    • इस नीति से संयुक्त उद्यमों की स्थापना और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिला है, जिससे भारत की विनिर्माण क्षमताओं एवं निर्यात संभावनाओं में वृद्धि हुई है। 
    • उदाहरण के लिये, भारत में F-16 विंग सेट का उत्पादन करने के लिये टाटा-लॉकहीड मार्टिन संयुक्त उद्यम ने न केवल समयोजन आवश्यकताओं को पूरा किया है, बल्कि भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखला के एक भाग के रूप में भी स्थापित किया है। 

भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • आयात पर निर्भरता: स्वदेशी उत्पादन में हाल की प्रगति के बावजूद, भारत विश्व के सबसे बड़े आयुध आयातकों में से एक बना हुआ है, जो विदेशी प्रौद्योगिकी और उपकरणों पर निरंतर निर्भरता को प्रदर्शित करता है। 
    • स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, वर्ष 2019 और वर्ष 2023 के बीच, देश का कुल वैश्विक आयुध आयात में 9.8% का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2018 में रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणालियों के लिये 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुबंध जैसे प्रमुख आयात सौदे इस मुद्दे को रेखांकित करते हैं। 
      • यह निर्भरता न केवल विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है, बल्कि भू-राजनीतिक तनाव के समय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी संभावित खतरा उत्पन्न करती है।
  • प्रलंबित अधिप्राप्ति प्रक्रिया: भारत की रक्षा अधिप्राप्ति प्रक्रिया की प्रायः प्रलंबित, जटिल और लालफीताशाही प्रक्रिया के कारण आलोचना की जाती है, जिसके कारण आधुनिकीकरण प्रयासों में विलंब होता है। 
    • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DPP) में समय-समय पर संशोधन के बावजूद अभी भी कई चरण शामिल हैं।
    • इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण 126 मध्यम बहु-भूमिका लड़ाकू विमान (MMRCA) का अधिग्रहण है, जो वर्ष 2007 में शुरू हुआ था, परंतु जटिलताओं के कारण अंततः वर्ष 2015 में इसे निरस्त कर दिया गया था।
  • सीमित निजी क्षेत्र की भागीदारी: यद्यपि रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है, फिर भी इसे अभी भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • रक्षा उत्पादन विभाग के आँकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में निजी क्षेत्र की कंपनियों का योगदान केवल 22% था।
    • बाधाओं में उच्च प्रवेश लागत, निवेश पर प्रतिलाभ के लिये लंबी अवधि तथा प्रमुख अनुबंधों के लिये प्रायः सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को दी जाने वाली प्राथमिकता शामिल हैं। 
    • प्रमुख परियोजनाओं में रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों (DPSU) का प्रभुत्व निजी कंपनियों के लिये अवसरों को सीमित कर रहा है।
  • अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास: बजट आवंटन में वृद्धि के बावजूद, भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास अभी भी वैश्विक नेताओं से पीछे है। 
    • वर्ष 2023 में भारत के रक्षा व्यय में 4.2% की वृद्धि परिलक्षित हुई, फिर भी यह निरपेक्ष रूप से अमेरिका, चीन और रूस जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों से काफी कम है।
    • इस अपर्याप्त वित्तपोषण के कारण महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में देरी हुई है तथा लागत में वृद्धि हुई है। 
    • भारत के स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस के परिचालन हेतु 1980 के दशक में तैयार की गई परियोजना कावेरी इंजन विकास के दशकों बाद भी अनुपलब्ध है। 
  • प्रौद्योगिकी अंतराल: भारत को रक्षा अनुप्रयोगों के लिये इंजन विकास, उन्नत सामग्री और उच्च-स्तरीय इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी अंतराल का सामना करना पड़ रहा है।
    • यह बात प्रमुख घटकों के लिये विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निरंतर निर्भरता से स्पष्ट है।
    • उदाहरण के लिये, तेजस लड़ाकू विमान को स्वदेशी तौर पर विकसित करने के बावजूद, भारत अभी भी इसका इंजन (GE F404) संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात करता है। 
    • ये प्रौद्योगिकी अंतराल न केवल आत्मनिर्भरता को प्रभावित करते हैं, बल्कि उन्नत रक्षा प्रणालियों के निर्यात की भारत की क्षमता को भी सीमित करते हैं।
  • समायोजित नीति कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: यद्यपि समयोजन नीति को घरेलू रक्षा विनिर्माण और प्रौद्योगिकी अवशोषण को संवर्द्धित करने के लिये निर्मित किया गया था, परंतु इसके कार्यान्वयन को महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। 
    • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भारत की रक्षा समायोजन नीति के खराब प्रदर्शन की रिपोर्ट दी है।
      • ₹66,427 करोड़ (वर्ष 2005-2018) मूल्य के 46 समायोजन अनुबंधों में से केवल ₹11,396 करोड़ का दावा किया गया है। 
  • सुदृढ़ आयुध निर्यात नियंत्रण विधान का अभाव: भारत का आयुध निर्यात नियंत्रण ढाँचा, जो मुख्य रूप से विदेशी व्यापार अधिनियम 1992 और सामूहिक संहार के आयुध और उनकी परिदान प्रणाली अधिनियम, 2005 द्वारा शासित है, में प्राप्तकर्ता देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड या IHL अनुपालन का आकलन करने के लिये विशिष्ट प्रावधानों का अभाव है। 
    • यह विधायी अंतर तब प्रकट हुआ जब सर्वोच्च न्यायालय ने गाज़ा में युद्ध अपराधों के आरोपों के बीच इज़रायल को रक्षा निर्यात रोकने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज़ कर दिया।
      • भारत की विधि में निर्यातित आयुधों के अंतिम उपयोग की व्यापक समीक्षा का प्रावधान नहीं है। 
    • सख्त परीक्षण के अभाव में भारत अंतर्राष्ट्रीय विधि के उल्लंघन में  आलिप्त हो सकता है तथा एक आयुधों के ज़िम्मेदार निर्यातक के रूप में इसकी प्रतिष्ठा की हानि हो सकती है।

 भारत अपने रक्षा क्षेत्र में सुधार के लिये क्या उपाय कर सकता है? 

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और संयुक्त उद्यमों का संवर्द्धन: भारत को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों तक अभिगम्य बनाने और अपनी निर्यात क्षमता का विस्तार करने के लिये अग्रणी वैश्विक रक्षा निर्माताओं के साथ अधिक सामरिक साझेदारी तथा संयुक्त उद्यमों को सक्रिय रूप से अग्रेषित करना चाहिये।
    • इसमें भारत में सह-उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करना, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते और सहयोगात्मक अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएँ शामिल हो सकती हैं ।
    • ऐसी साझेदारियाँ न केवल भारत की प्रौद्योगिकीय क्षमताओं को उत्प्रेरित करेगी, बल्कि स्थापित वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं और बाज़ारों तक पहुँच भी प्रदान करेंगी। 
    • इसका एक प्रमुख उदाहरण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और जनरल इलेक्ट्रिक (GE) के बीच भारत में  F414 इंजन के सह-उत्पादन के लिये हाल ही में हुआ समझौता है, जिससे इन इंजनों या इनसे सुसज्जित विमानों के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
  • एक सुदृढ़ निर्यात वित्तपोषण प्रणाली की स्थापना: वैश्विक आयुध बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये, भारत को विशेष रूप से रक्षा निर्यात के लिये एक व्यापक निर्यात वित्तपोषण प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • इसमें सरकार समर्थित ऋण गारंटी, प्रतिस्पर्द्धी ऋण लाइनें तथा राजनीतिक और वाणिज्यिक ज़ोखिमों के लिये बीमा कवरेज़ शामिल हो सकते हैं।
    • ऐसी व्यवस्था से भारतीय रक्षा उत्पाद संभावित खरीदारों, विशेषकर विकासशील देशों के लिये अधिक आकर्षक बनेंगे।
  • एक व्यापक IHL अनुपालन ढाँचा का कार्यान्वयन: भारत को अपने आयुधों के निर्यात के लिये एक सुदृढ़ अंतर्राष्ट्रीय मानवीय विधि (IHL) अनुपालन ढाँचा स्थापित करना चाहिये।
    • इसमें आयुधों के निर्यात को मंजूरी देने से पहले संभावित प्राप्तकर्ता देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड और IHL अनुपालन का आकलन करने के लिये एक समर्पित निकाय का निर्माण करना शामिल होगा।
    • इस ढाँचे में अंतिम उपयोग की नियमित निगरानी तथा उल्लंघन की स्थिति में अनुबंधों को निलंबित या रद्द करने का प्रावधान शामिल होना चाहिये। 
    • इस तरह के ढाँचे को कार्यान्वित करने से न केवल भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप हो जाएगा, बल्कि आयुधों का एक ज़िम्मेदार निर्यातक के रूप में इसकी प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी। 
  • विशिष्ट प्रौद्योगिकियों और स्वदेशी नवाचार में निवेश: वैश्विक आयुध बाज़ार में एक विशिष्ट स्थान बनाने के लिये, भारत को विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के विकास और स्वदेशी नवाचार को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • इसमें रक्षा स्टार्टअप के लिये निधियन में वृद्धि, रक्षा नवाचार केंद्रों की स्थापना तथा एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग और हाइपरसोनिक प्रणालियों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये, रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के साथ भारत की सफलता, उन्नत आला उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को प्रदर्शित करती है। 
  • रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रक्रियाओं का सुव्यवस्थापन: भारत को दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संवर्द्धन हेतु अपने रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रक्रियाओं को महत्त्वपूर्ण रूप से सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है। 
    • इसमें रक्षा निर्यात के लिये एकल खिड़की मंजूरी प्रणाली बनाना, लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों और प्रमुख निजी क्षेत्र की कंपनियों के भीतर समर्पित निर्यात संवर्द्धन प्रकोष्ठों की स्थापना करना शामिल हो सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, सरकार को निर्यात के लिये रक्षा उत्पादों के परीक्षण और प्रमाणन में लगने वाले समय को कम करने पर भी कार्य करना चाहिये। 
    • रक्षा अधिग्रहण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने का यह एक सफल उदाहरण है, जिससे अधिप्राप्ति की समयसीमा कम हो गई है। निर्यात प्रक्रिया में इसी तरह की दक्षता में सुधार से वैश्विक बाज़ार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
  • एक सुदृढ़ समायोजित प्रबंधन प्रणाली का विकास: भारत को अपनी समायोजन नीति में सुधार करना चाहिये तथा निर्यात संवर्द्धन के लिये रक्षा आयात का लाभ उठाने हेतु एक सुदृढ़ समायोजित प्रबंधन प्रणाली का विकास करना चाहिये। 
    • इसमें एक समर्पित समायोजन प्रबंधन एजेंसी का निर्माण, समयोजन अवसरों के लिये एक पारदर्शी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का विकास तथा निर्यातोन्मुख परियोजनाओं के साथ समयोजन आवश्यकताओं को संरेखित करना शामिल हो सकता है। 
    • इस प्रणाली को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सह-विकास परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो भारत की निर्यात क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिये, भारत-इज़रायल के सफल समयोजन कार्यक्रम से प्रेरणा ले सकता है, जिसने इसके रक्षा औद्योगिक आधार और निर्यात क्षमताओं में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • क्षेत्रीय सेवा और संधारण केंद्रों की स्थापना: भारतीय रक्षा निर्यात के आकर्षण को बढ़ाने के लिये देश को सामरिक स्थानों पर क्षेत्रीय सेवा और संधारण केंद्रों की स्थापना करनी चाहिये। 
    • ये केंद्र विदेशी देशों को बेचे जाने वाले भारतीय रक्षा उपकरणों के लिये बिक्री के बाद सहायता, संधारण और उन्नयन प्रदान करेंगे।
    • इस दृष्टिकोण से न केवल अतिरिक्त राजस्व उत्पन्न होगा बल्कि ग्राहक देशों के साथ दीर्घकालिक संबंध भी बनेंगे। 
    • उदाहरण के लिये, भारत वियतनाम या संयुक्त अरब अमीरात जैसे मित्र देशों में ऐसे केंद्र स्थापित कर सकता है, जो क्रमशः दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व में भारत निर्मित उपकरणों के संधारण और उन्नयन के केंद्र के रूप में कार्य कर सकते हैं।

निष्कर्ष: 

यद्यपि भारत वैश्विक रक्षा बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बनने का प्रयास कर रहा है, इसलिये विधिक और नैतिक दोषों को दूर करना, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय मानवीय विधि (IHL) अनुपालन से संबंधित, महत्त्वपूर्ण है। व्यापक विधि कार्यान्वित करके और नवाचार को संवर्द्धित करके, भारत आयुधों का एक ज़िम्मेदार निर्यातक के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसकी रक्षा संबंधी महत्त्वाकांक्षाएँ वैश्विक मानकों के अनुरूप हों। यह सामरिक दृष्टिकोण न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा बल्कि अंतर्राष्ट्रीय रक्षा परिदृश्य में अधिनायक के रूप में भारत की स्थिति को भी सुदृढ़ करेगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

Q. भारत हाल के वर्षों में एक प्रमुख रक्षा निर्यातक बनने के अपने लक्ष्य को सक्रियता से प्राप्त करने में संलग्न है। इस स्थित्यंरण में योगदान देने वाले कारकों, रक्षा निर्यात को बढ़ाने में समक्ष प्रस्तुत होने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

Q.1. 'INS अस्रधारिणी' का, जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ था, निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वोत्तम वर्णन है?

(a) उभयचर युद्धपोत
(b) नाभिकीय शक्ति-चालित पनडुब्बी
(c) टॉरपीडो प्रमोचन और पुन्प्राप्ति (recovery) जलयान
(d) नाभिकीय शक्ति-चालित विमान-वाहक

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (सिम्पोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिये:

  1. प्रारंभी (इनॉगुरल) IONS भारत में 2015 में भारतीय नौसेना की अध्यक्षता में हुआ था। 
  2. IONS एक स्वैच्छिक पहल है जो हिंद महासागर क्षेत्र के समुद्रतटवर्ती देशों (स्टेट्स) की नौसेनाओं के बीच समुद्री सहयोग को बढ़ाना चाहता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स

Q. रक्षा क्षेत्रक में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफ० डी० आइ०) को अब उदारीकृत करने की तैयारी है। भारत की रक्षा और अर्थव्यवस्था पर अल्पकाल और दीर्घकाल में इसके क्या प्रभाव अपेक्षित हैं? (2014)

Q. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये।  (2020)


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