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एडिटोरियल

  • 21 Jun, 2022
  • 14 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्रामीण महिलाओं की आर्थिक भागीदारी

यह एडिटोरियल 20/06/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Recognising the ‘Compulsory’ Woman Worker” लेख पर आधारित है। इसमें आजीविका कमाने हेतु भूमिकाएँ बदलने की प्रक्रिया में ग्रामीण महिला श्रमिकों के संघर्ष के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के साथ अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है और इस क्रम में ‘सशक्त नारी – सशक्त भारत’ (Empowered women- Empowered Nation) के नारे के साथ महिला सशक्तीकरण पर भी बल दे रहा है। 

  • अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी में सुधार की आवश्यकता एक दीर्घकालिक प्राथमिकता रही है और यह सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण है।
  • ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ (CMIE) की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण महिलाओं की श्रम भागीदारी दर मार्च 2022 में मात्र 9.92% थी, जबकि पुरुषों के लिये यह 67.24% थी।
  • आजीविका कमाने के लिये (यहाँ तक कि कम भुगतान और कठिन कार्य परिवेश में भी) विभिन्न प्रकार के कार्यों के बीच निरंतर भटकती हुई ऐसी महिला श्रमिकों को ‘अनिवार्य श्रमिक’ या ‘बलात्श्रम श्रमिक’ (Compulsory Workers) के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
  • चूँकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था भारत की राष्ट्रीय आय में एक महत्त्वपूर्ण योगदान करती है, इसलिये ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं पर ध्यान देने और तत्काल कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

ग्रामीण महिला श्रमिकों के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मशीनीकरण :
    • कृषि क्षेत्र में हाईटेक मशीनों के आगमन के साथ कार्यकलाप कम श्रम गहन रह गया है और इसके परिणामस्वरूप कार्य दिवस 3 माह प्रति वर्ष तक कम हो गए हैं। इसने कई ग्रामीण महिलाओं को पलायन के लिये और अंशकालिक निर्माण श्रमिक के रूप में कार्यरत होने के लिये विवश किया है।
  • डेटा की अपूर्ण प्रस्तुति:
    • जिन महिलाओं ने इस विश्वास के कारण कार्य की तलाश करना बंद कर दिया कि ‘कोई काम उपलब्ध नहीं है’, उन्हें भ्रमित रूप से कार्य ‘छोड़ने’ (Dropping out) या श्रम ‘बाज़ार छोड़ने’ वाली श्रमिक महिलाओं के रूप में वर्णित किया जाता है। इस प्रकार, उनके कार्य छोड़ने को विवशता के बजाय उनके ‘चयन’ के रूप में दर्शाया जाता है और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था नुकसान उठा रही है।
  • वेतन समता का अभाव:
    • शारीरिक श्रम कार्य के क्षेत्र में मात्रानुपाती दर (Piece rate) के संदर्भ में महिलाओं को पुरुषों से कम भुगतान किया जाता है क्योंकि भारी वजन उठाने में वे अपेक्षाकृत कम शारीरिक क्षमता रखती हैं।
      • कर्नाटक के कलबुर्गी ज़िले में अंतःस्रावी तालाबों के निर्माण पर केंद्रित एक परियोजना में महिला श्रमिकों को केवल इस आधार पर 309 रुपए मात्रानुपाती दर पर भुगतान के बजाय 280 से 285 रुपए दिये गए कि तालाबों की खुदाई के लिये प्रत्येक दिन लगभग 3,000 किलो मिट्टी उठाने की आवश्यकता थी और महिलाएँ इस लक्ष्य को पूरा करने में सक्षम नहीं थीं।
  • शिक्षा की कमी:
    • अधिकांश महिला निर्माण श्रमिक ‘निर्माण श्रमिक’ (Construction Workers) के रूप में पंजीकृत नहीं हैं और इसलिये निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड से किसी भी लाभ की प्राप्ति हेतु पात्रता नहीं रखतीं।
    • भुगतानयुक्त औपचारिक नौकरियाँ उच्च शैक्षणिक योग्यता-प्राप्त पुरुषों और महिलाओं के हिस्से में जाती हैं, जिससे माध्यमिक स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त महिलाओं को गैर-कृषि, निर्माण, घरेलू देखभाल कार्य और अन्य भूमिकाओं के लिये विवश होना पड़ता है।
  • मनरेगा की सीमितता:
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) एक श्रम मांग-संचालित कार्यक्रम है जो प्रति वर्ष सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं में केवल 100 दिनों के भुगतेय श्रम प्रदान करने तक ही सीमित है।
    • शेष अवधि के लिये महिला श्रमिकों को लगातार आय के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में रहना पड़ता है ताकि वे अपने खर्चों की पूर्ति कर सकें।
  • पौष्टिक आहार की कमी:
    • आवश्यक वस्तुओं की उच्च कीमतों के कारण महिलाएँ सब्जियों और दालों की खपत में भारी कटौती के लिये विवश होती हैं।
    • उच्च कीमतों और कम आय के कारण पोषण से वंचित होना इन ‘अनिवार्य’ महिला श्रमिकों के जीवन की एक और सच्चाई है।
    • पितृसत्तात्मक समाज में बालकों को अपेक्षाकृत अधिक पौष्टिक आहार दिया जाता है (विशेष रूप से यदि परिवार गरीब है और सभी बच्चों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने की स्थिति में नहीं है), क्योंकि उन्हें परिवार के लिये भविष्य के अर्जक सदस्य के रूप में देखा जाता है।
  • वित्तीय बाधाएँ:
    • महिलाएँ अपने विभिन्न कार्यों (जिनके लिये कोई निश्चित दर भी नहीं होती) से जो अर्जित करती हैं, वे उनके श्रम के उचित मूल्य की पुष्टि नहीं करता।
      पर्याप्त धन की अनुपलब्धता और ज्ञान की कमी के कारण वे ऋण जाल में फंसने के प्रति सर्वाधिक भेद्य या असुरक्षित होती हैं।

ग्रामीण महिला श्रमिकों के उत्थान के लिये विभिन्न पहल

  • ई-श्रम पोर्टल:
    • श्रम और रोज़गार मंत्रालय ने ई-श्रम (e-Shram) पोर्टल लॉन्च किया है।
    • इसका लक्ष्य निर्माण श्रमिक, प्रवासी कार्यबल, स्ट्रीट वेंडर्स और घरेलू कामगारों जैसे 38 करोड़ असंगठित कामगारों को पंजीकृत करना है।
    • यदि कोई कामगार ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत है तो दुर्घटना की स्थिति में मृत्यु या स्थायी विकलांगता का शिकार होने पर0 लाख रुपए और आंशिक विकलांगता पर 1.0 लाख रुपए पाने का पात्र होगा।
  • महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP):
    • ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2011 में MSKP लॉन्च किया था।
    • इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं के लिये कौशल विकास और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों की पेशकश करना है।
    • यह योजना DAY-NRLM (दीनदयाल अन्त्योदय योजना — राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) के एक उप-घटक के रूप में शुरू की गई थी और भारत भर में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLM) के माध्यम से लागू की गई।
    • NRLM योजना के तहत कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) और विस्तार एजेंसियों के माध्यम से महिला किसानों को नवीनतम कृषि एवं संबद्ध तकनीकों के उपयोग तथा कृषि-पारिस्थितिक सर्वोत्तम अभ्यासों के संबंध में पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ने वर्ष 2015 में PMKVY लॉन्च किया था।
    • यह ग्रामीण युवाओं एवं महिलाओं को अल्पकालिक प्रशिक्षण (STT) और पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) जैसे कई लघु आवधिक कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है ताकि वे आजीविका कमा सकें। दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY) ग्रामीण युवाओं के लिये मज़दूरी रोजगार हेतु नियोजन संबद्ध कौशल विकास कार्यक्रम है।
  • बायोटेक-कृषि नवाचार विज्ञान अनुप्रयोग नेटवर्क (Biotech-KISAN) कार्यक्रम
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने बायोटेक-किसान कार्यक्रम शुरू किया है।
    • यह उत्तर-पूर्व भारत के किसानों को वैज्ञानिक समाधान प्रदान करता है जहाँ नवीन कृषि प्रौद्योगिकियों को छोटे और सीमांत किसानों, विशेष रूप से क्षेत्र की महिला किसानों के लिये उपलब्ध कराया जाता है।
  • प्रधानमंत्री जन-धन योजना (PMJDY)
    • PMJDY ने आर्थिक गतिविधियों में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी के भरोसे और संभावनाओं को बढ़ाया है। जन धन अभियान ने ग्रामीण महिलाओं के लिये वहनीय तरीके से बैंकिंग/बचत एवं जमा खाते, विप्रेषण, ऋण, बीमा, पेंशन जैसी वित्तीय सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की है।
  • कुछ अन्य पहल

आगे की राह

  • सर्वेक्षण का आयोजन:
    • समय-समय पर ग्रामीण सर्वेक्षण आयोजित किया जाना चाहिये ताकि वास्तविक परिदृश्यों का पता चल सके, क्योंकि ग्रामीण भारत में पूंजीवादी प्रक्रियाओं की गहरी पैठ के साथ ग्रामीण श्रमिकों के लिये आजीविका विकल्पों का संकट उत्पन्न हुआ है।
    • गरीब ग्रामीण महिलाओं और उनके दैनिक कार्यकलापों का व्यापक सर्वेक्षण कराना एक तात्कालिक आवश्यकता है।
  • प्रौढ़ शिक्षा और प्रशिक्षण:
    • महिलाओं के सतत् विकास में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक यह है कि वे गुणवत्तापूर्ण प्रौढ़ शिक्षा और प्रशिक्षण पहुँच की कमी रखती हैं।
      क्षमता निर्माण एवं प्रौढ़ प्रशिक्षण में प्रौढ़ शिक्षा तथा जीवन-संबंधी एवं सामाजिक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।
  • जब महिलाओं के पास गुणवत्तापूर्ण समग्र व्यक्तिगत, भावनात्मक और उद्यमशील विकास प्रशिक्षण के अवसर होंगे तो वे स्वयं के लिये आवाज़ उठा सकने में भी सशक्त होंगी।
  • स्वास्थ्य:
    • विभिन्न समुदायों के अंदर महिलाएँ मुख्य रूप से हर प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति अधिक भेद्य या संवेदनशील होती हैं।
    • व्यक्ति, संगठन और एजेंसियाँ ऐसी परियोजनाओं को अभिकल्पित कर सकती हैं जो महिलाओं को स्वस्थ जीवन, स्वच्छ जल तक पहुँच एवं प्राप्ति, स्वच्छ एवं हरित वातावरण बनाए रखने और बुनियादी मासिक माहवारी देखभाल एवं मातृ देखभाल तक पहुँच के लिये वहनीय स्वास्थ्य देखभाल और प्रशिक्षण प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करें।
  • पीएम-किसान योजना का विस्तार:
    • पीएम-किसान योजना के तहत भूस्वामी किसानों को प्रदत्त 6,000 रुपए वार्षिक नकद का विस्तार ग्रामीण भूमिहीन मज़दूरों के लिये भी किया जाना चाहिये।
  • न्यूनतम मज़दूरी:
    • विभिन्न प्रकार के महिला श्रमों के लिये निर्धारित मात्रानुपातिक दरों के साथ न्यूनतम मज़दूरी का कड़ाई से कार्यान्वयन किया जाना चाहिये।
  • मनरेगा में मानकों का निर्धारण:
    • मनरेगा के तहत निर्धारित प्रदर्शन मानकों को लिंगवार स्थापित किया जाना चाहिये और कार्यस्थलों को अधिकाधिक श्रमिक अनुकूल बनाया जाना चाहिये।
      ‘अनिवार्य’ महिला श्रमिकों को कानूनों और नीतियों द्वारा चिह्नित और संरक्षित किया जाना चाहिये जो उनकी समस्याओं को संबोधित करें।

अभ्यास प्रश्न: ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महिलाओं की स्थिति के उत्थान के लिये सरकार के निरंतर प्रयासों के बावजूद निम्न मजदूरी दर पर अस्थायी कार्य में संलग्न महिलाओं के लिये पारंपरिक संघर्ष अभी भी कायम है। चर्चा कीजिये।


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