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एडिटोरियल

  • 20 Aug, 2024
  • 22 min read
शासन व्यवस्था

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा का पुनरुद्धार

यह एडिटोरियल 19/08/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Mental health of medical students can no longer be ignored” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में विद्यमान प्रमुख समस्याओं की चर्चा की गई है और आबादी के सभी वर्गों को प्रभावित करने वाले मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों से निपटने के लिये रणनीतियों सुझाई गई हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (NIMHANS), किरण हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम 2017। 

मेन्स के लिये:

भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकारों की व्यापकता, भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के सामने प्रमुख चुनौतियाँ, भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा में सुधार के लिये आगे की राह।  

पिछले पाँच वर्षों में 122 छात्रों द्वारा आत्महत्या किये जाने के परिदृश्य में मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को संबोधित करने के लिये हाल ही में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (National Medical Commission- NMC) द्वारा एक कार्यबल का गठन किया गया। आयोग द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन सर्वेक्षण से पता चला कि 27.8% स्नातक मेडिकल छात्र मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं, जबकि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोगके मन में आत्महत्या के विचार आए हैं। इससे प्रकट होता है कि मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय है और इसके लिये एक सुनियोजित नीति की आवश्यकता है।

मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) क्या है?

  • परिचय: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य मानसिक कल्याण की एक स्थिति है जो लोगों को जीवन के तनावों से निपटने, अपनी क्षमताओं को पहचानने, अच्छी तरह से सीखने एवं कार्य करने और अपने समुदाय में योगदान करने में सक्षम बनाता है।
  • अच्छा मानसिक स्वास्थ्य: अच्छे मानसिक स्वास्थ्य की पहचान भावनात्मक स्थिरता, प्रत्यास्थता, आत्म-सम्मान और तनाव से प्रभावी ढंग से निपटने की क्षमता से होती है। इसमें सकारात्मक संबंध बनाए रखना और जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण बनाए रखना भी शामिल है।
  • मानसिक स्वास्थ्य दशाएँ: मानसिक स्वास्थ्य दशाओं में मानसिक विकार और मनोसामाजिक निःशक्तता के साथ ही भारी तनाव, कार्य करने में बाधा या आत्म-क्षति के जोखिम से संबद्ध अन्य मानसिक स्थितियाँ शामिल हैं।
    • मानसिक विकार (mental disorder) किसी व्यक्ति की अनुभूति, भावनात्मक विनियमन या व्यवहार में नैदानिक रूप से गंभीर व्यवधान के रूप में चिह्नित होता है।
  • मानसिक विकारों के सामान्य प्रकार:
    • दुश्चिंता विकार (Anxiety Disorders):
      • यह अत्यधिक भय एवं चिंता के साथ ही व्यवहारगत समस्या से चिह्नित होता है।
      • वर्ष 2019 में 301 मिलियन लोग दुश्चिंता विकार से पीड़ित थे, जिनमें 58 मिलियन बच्चे और किशोर शामिल थे।
    • अवसाद (Depression):  
      • इसमें लगातार उदासी, निराशा और गतिविधियों में रुचि या आनंद की कमी की भावना बनी रहती है।
      • वर्ष 2019 में 280 मिलियन लोग अवसाद से ग्रस्त थे, जिनमें 23 मिलियन बच्चे और किशोर शामिल थे।
    • द्वि-ध्रुवीय भावदशा विकार (Bipolar Disorder):  
      • इस विकार से पीड़ित लोग अवसाद और उन्माद (mania) के प्रत्यावर्ती दौर का अनुभव करते हैं।
      • अवसाद के दौर में वे लंबे समय तक उदासी या गतिविधियों में अरुचि का अनुभव कर सकते हैं। उन्माद के दौर में ख़ुशमिजाजी, अत्यंत सक्रियता, बातूनीपन, ज़हनी उपद्रव और आवेगपूर्ण व्यवहार की विशेषताएँ प्रकट हो सकती हैं।
      • द्विध्रुवी विकार से ग्रस्त लोगों में आत्महत्या का जोखिम अधिक होता है।
    • अभिघातजन्य तनाव विकार (Post-Traumatic Stress Disorder- PTSD): 
      • किसी आघातजनक घटना के संपर्क में आने के बाद विकसित होने वाले PTSD में ‘फ्लैशबैक’ या दुःस्वप्न और अत्यधिक उत्तेजना के रूप में आघात की लगातार पुनरावृत्ति देखी जाती है।
    • मनोविदलता/स्कित्ज़ोफ़्रेनिया (Schizophrenia):  
      • यह एक गंभीर मानसिक विकार है जिसमें विकृत सोच, धारणाएँ और भावनाएँ पाई जाती हैं। यह व्यक्ति के सोचने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करता है, जहाँ प्रायः वास्तविकता से उसका संपर्क टूट जाता है।
      • स्कित्ज़ोफ़्रेनिया या सिज़ोफ्रेनिया से दुनिया भर में लगभग 24 मिलियन लोग या प्रत्येक 300 में से 1 व्यक्ति प्रभावित हैं।
    • आहार ग्रहण विकार (Eating Disorders):
      • आहार ग्रहण विकार, जैसे एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa) और बुलीमिया नर्वोसा (bulimia nervosa) में असामान्य खान-पान और आहार के प्रति अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना, साथ ही शरीर के वजन और आकार को लेकर चिंताएँ करना शामिल होता है।
      • इसके लक्षणों या संबद्ध व्यवहारों के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य के लिये गंभीर जोखिम उत्पन्न होते हैं, गंभीर तनाव या कार्यकलाप में गंभीर निःशक्तता प्रकट होती है।
    • विघटनकारी व्यवहार और असामाजिक विकार (Disruptive Behaviour and Dissocial Disorders):
      • विघटनकारी व्यवहार और असामाजिक विकार व्यवहार संबंधी नियमित समस्याओं से चिह्नित होते हैं, जैसे कि लगातार विद्रोही या अवज्ञाकारी व्यवहार, जो लगातार दूसरों के मूल अधिकारों या प्रमुख आयु-उपयुक्त सामाजिक मानदंडों, नियमों या कानूनों का उल्लंघन करते हैं।
    • तंत्रिका-विकास संबंधी विकार (Neurodevelopmental Disorders):
      • ये व्यवहारगत और संज्ञानात्मक विकार हैं, जो विकासात्मक अवधि के दौरान उत्पन्न होते हैं और विशिष्ट बौद्धिक, चलन संबंधी, भाषाई या सामाजिक कार्यों के अधिग्रहण एवं निष्पादन में गंभीर कठिनाइयाँ उत्पन्न करते हैं।
      • इन विकारों में बौद्धिक विकास संबंधी विकार, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस-ऑर्डर और ADHD (attention deficit hyperactivity disorder) शामिल हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य विकार की व्यापकता:

  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16):
  • आत्महत्या की दर:
    • भारत विश्व में सर्वाधिक आत्महत्या वाला देश होने की कुख्याति रखता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में भारत में 1.71 लाख लोगों ने आत्महत्या की।
    • देश में आत्महत्या की दर बढ़कर 12.4 प्रति 1 लाख हो गई है।
  • नैराश्य विकार (Depressive Disorders):
    • WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत गंभीर मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है, जहाँ अनुमानतः 56 मिलियन लोग अवसाद से और 38 मिलियन लोग दुश्चिंता विकारों से पीड़ित हैं।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • निम्न नीति प्राथमिकता:
    • मानसिक स्वास्थ्य ऐतिहासिक रूप से भारतीय नीति निर्माताओं के लिये निम्न प्राथमिकता का विषय रहा है।
    • मानसिक स्वास्थ्य के लिये 93,000 करोड़ रुपए से अधिक की अनुमानित आवश्यकता के बावजूद, सरकार ने वर्ष 2019 में केवल 600 करोड़ रुपए और नवीनतम बजट में केवल 1,000 करोड़ रुपए आवंटित किये, जिसमें से अधिकांश धनराशि तृतीयक सेवा संस्थानों को प्रदान की गई।
  • अपर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना:
    • देश में मानसिक स्वास्थ्य के लिये समर्पित स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना की भारी कमी पाई जाती है। बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त संख्या में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों, अस्पतालों या अन्य प्रतिष्ठानों का अभाव है।
    • भारत में प्रति 100,000 जनसंख्या पर 0.75 मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं, जबकि वांछनीय संख्या प्रति 100,000 पर 3 मनोचिकित्सक से अधिक है।
  • उच्च उपचार लागत:
    • निजी स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की लागत बहुत से लोगों के लिये अवहनीय या निषिद्धकारी है।
    • हाल ही में आयोजित राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NMHS) के अनुसार, भारत में किसी भी मानसिक विकार के लिये उपचार का अंतराल 83% तक पाया गया है।
    • मानसिक बीमारियों के इलाज पर व्यय के परिणामस्वरूप लगभग 20% भारतीय परिवार गरीबी के शिकार हो जाते हैं।
  • नीति कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
    • भारत के नीति-निर्माण में एक सामान्य मुद्दा यह है कि आवश्यकता और व्यवहार्यता के बीच अंतर पाया जाता है।
    • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति 2014 और मानसिक स्वास्थ्य सेवा अधिनियम 2017 का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना था, लेकिन इनमें कार्यान्वयन, संसाधन आवंटन और समयसीमा के बारे में स्पष्टता का अभाव है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन:
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ शहरी क्षेत्रों में केंद्रित हैं, जिससे ग्रामीण आबादी के लिये देखभाल तक सीमित पहुँच या पहुँच के अभाव की स्थिति पाई जाती है। यह भौगोलिक विषमता ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा देती है।
  • कलंक और भेदभाव:
    • भारत में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को प्रायः कलंकित किया जाता है, जिससे सामाजिक भेदभाव उत्पन्न होता है। इससे लोग मदद लेने के लिये हतोत्साहित होते हैं और उनकी स्थिति बदतर होती जाती है।
  • जागरूकता और शिक्षा का अभाव:
    • मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी है, जिसके कारण गलत धारणाओं और उपेक्षा की स्थिति बनती है। मानसिक स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देने के लिये शैक्षिक पहल अपर्याप्त हैं।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिये सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?

देश में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में सुधार के लिये आगे की राह: 

  • मानसिक स्वास्थ्य के लिये वित्तपोषण में वृद्धि करना: कुल स्वास्थ्य बजट का एक बड़ा हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिये आवंटित किया जाए। दैनिक वेतनभोगियों और अन्य कमज़ोर समूहों द्वारा सामना की जाने वाली मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों को देखते हुए, मानसिक स्वास्थ्य अवसंरचना में अधिक निवेश करना अत्यंत आवश्यक है।
    • चालू वित्त वर्ष (वित्त वर्ष 2024-25) के लिये स्वास्थ्य बजट कुल बजट का मात्र 2% है, जबकि मानसिक स्वास्थ्य बजट कुल स्वास्थ्य बजट का लगभग 1% है।
  • सुविधाओं का विस्तार करना:
    • कम सुविधा वाले क्षेत्रों को कवर करने के लिये सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और आपातकालीन देखभाल इकाइयों सहित अधिक संख्या में मानसिक स्वास्थ्य सुविधाएँ विकसित की जाएँ।
    • मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों और टेलीमेडिसिन के माध्यम से ग्रामीण एवं दूरदराज के क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच बढ़ाया जाए।
  • आर्थिक स्थिरता का समर्थन करना:
  • राष्ट्रीय नीतियों और अधिनियमों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करना:  
    • नीति का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए, जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को सामान्य स्वास्थ्य देखभाल में एकीकृत करना और गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करना है।
    • नीतिगत निर्णय और संसाधन आवंटन के लिये मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों पर डेटा एकत्र करने तथा उसका विश्लेषण करने हेतु सुदृढ़ प्रणालियाँ स्थापित की जाएँ।
  • प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण:  
    • शीघ्र पहचान (early detection) और हस्तक्षेप में सुधार के लिये मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों, नर्सों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया जाए।
    • शैक्षिक कार्यक्रमों एवं प्रोत्साहनों के माध्यम से मनोचिकित्सकों, मनोवैज्ञानिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या में वृद्धि की जाए।
  • HIV-AIDS से निपटने से प्राप्त सबक से प्रेरणा ग्रहण करना:
    • HIV-AIDS से लड़ने में भारत की सफलता मानसिक स्वास्थ्य के लिये बहुमूल्य सबक प्रदान कर सकती है।
    • साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप, सामुदायिक संलग्नता और विभिन्न हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ प्रभावी रणनीतियों का प्रयोग कर देश की मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटा जा सकता है।
  • सहयोग और साझेदारी:
    • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार करने और हाशिये पर स्थित समुदायों तक पहुँच बनाने के लिये गैर-सरकारी संगठनों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और सामुदायिक संगठनों के साथ सहयोग स्थापित किया जाए।
    • बनयान (तमिलनाडु), संगथ (गोवा) और सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ लॉ एंड पॉलिसी (पुणे) जैसे संगठनों ने अभिनव एवं साक्ष्य-आधारित रणनीतियों के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • जागरूकता और स्वीकृति को बढ़ावा देना:
    • मानसिक स्वास्थ्य स्वीकृति और जागरूकता में सुधार लाने के लिये, विशेष रूप से समाज के कमज़ोर वर्गों के बीच, सक्रिय नीतियों का क्रियान्वयन किया जाए।
    • इसमें कलंक को कम करने और शीघ्र हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना शामिल हो सकता है।

निष्कर्ष:

भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिये वित्तपोषण में वृद्धि, प्राथमिक देखभाल में सेवाओं के एकीकरण और पहुँच का विस्तार करने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक है। हालाँकि मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिये हाल में कार्यबल का गठन एक सकारात्मक कदम है, यहीं तक सीमित नहीं रहते हुए अधिक व्यापक उपायों की आवश्यकता है। मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करना स्वास्थ्य के मूलभूत मानवाधिकार को बनाए रखने और ‘अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण’ (good health and well-being) के SDG-3 को आगे बढ़ाने के लिये अत्यंत आवश्यक है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों की चर्चा कीजिये। उन्हें प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से मूलतः समावेशी शासन के अंग कहे जा सकते हैं?

  1. गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों को बैंकिंग करने की अनुमति प्रदान करना।
  2. सभी जिलों में प्रभाव जिला योजना समितियाँ संगठित करना।
  3. जन-स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी करना।
  4. दोपहर का भोजन योजना का सशक्तीकरण करना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये

A) 1 और 2   
B) 3 और 4
C) 2, 3 और 4                               
D) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: C


मेन्स:

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के क्रम में विशेषकर जरा चिकित्सा एवं मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में सुदृढ़ और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल संबंधी नीतियों की आवश्यकता है। विवेचना कीजिये। (2020)


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