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एडिटोरियल

  • 20 Jun, 2023
  • 20 min read
भूगोल

चक्रवातों के लिये भारत कितना तैयार?

यह एडिटोरियल 19/06/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Preparedness pays off’’ लेख पर आधारित है। इसमें क्षति को न्यूनतम कर सकने के लिये चक्रवात के खतरे से निपटने में तैयारियों की प्रभावकारिता के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), चक्रवात बिपरजॉय, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, चक्रवातों की रंग कोडिंग:

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), चक्रवात के प्रभाव, शमन उपाय।

चक्रवात बिपरजॉय (Cyclone Biparjoy) एक प्रचंड चक्रवाती तूफ़ान था जिसने गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया। इसने अवसंरचना को व्यापक क्षति पहुँचाई और पशुधन के लिये आघात एवं मृत्यु का कारण बना, लेकिन केवल दो लोगों की ही जान गई।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की पूर्व चेतावनियों और तटीय क्षेत्रों से लोगों की समय पर निकासी के कारण भारत इस चक्रवात के प्रकोप से बचने में सफल रहा। पिछले कुछ वर्षों में भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली में व्यापक सुधार हुआ है; हालाँकि भविष्य के लिये अभी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

चक्रवात क्या है?

चक्रवात के विरुद्ध सामान्य शमन एवं तैयारी उपाय कौन-से हैं?

  • खतरों का मानचित्रण:
    • चक्रवाती खतरों का मानचित्रण मानचित्र पर चक्रवात जोखिमों के मूल्यांकन के परिणामों को प्रदर्शित करता है जो विभिन्न तीव्रताओं या अवधियों की आवृत्ति/संभावना को इंगित करता है।
  • भूमि उपयोग का विनियमन:
    • भूमि उपयोग को नियंत्रित करने और भवन संहिता लागू करने के लिये नीतियों का कार्यान्वयन।
    • ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों को मानव बस्तियों के बजाय पार्कों, चरागाहों या बाढ़ अपवर्तन (flood diversion) के लिये उपयोग किया जाना चाहिये।
  • इंजीनियर्ड संरचनाएँ (Engineered Structures):
    • सामान्य अच्छे निर्माण अभ्यास के कुछ उदाहरणों में शामिल हैं:
      • खंभों (stilts) या मिट्टी के टीलों (earthen mounds) पर भवनों का निर्माण करना।
      • इन भवनों को हवा और जल प्रतिरोधी होना चाहिये।
    • खाद्य सामग्री का भंडारण करने वाले भवनों को हवा और जल के खतरों से सुरक्षित होना चाहिये।
  • चक्रवात आश्रय स्थल (Cyclone Shelters):
    • जो लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं जहाँ प्रायः चक्रवात आते हैं, अपनी सुरक्षा के लिये चक्रवात आश्रय स्थलों की आवश्यकता रखते हैं।
    • चक्रवात आश्रय स्थलों का निर्माण महँगा होता है, इसलिये वे आमतौर पर मदद के लिये सरकार पर या बाहरी दानकर्ताओं पर निर्भर करते हैं।
    • क्षेत्र के भूगोल का मानचित्रण करने वाली प्रणाली का उपयोग करके चक्रवात आश्रय स्थलों के लिये सर्वोत्तम स्थानों का चयन किया जा सकता है।
  • बाढ़ प्रबंधन (Flood Management):
    • चक्रवाती तूफ़ान कई तरीकों से बाढ़ का कारण बन सकते हैं। समुद्र जल आगे बढ़ सकता है और और तटीय भूमि को निमग्न कर सकता है। भूमि के जल अवशोषित कर सकने की क्षमता की तुलना में वर्षा बहुत अधिक और तेज़ हो सकती है।
    • नदियों और समुद्र तटों के किनारे बाँधों या अवरोधों का निर्माण कर जल को उन भूमियों तक पहुँचने से रोका जा सकता है जो बाढ़ प्रवण हैं।
    • जल संग्रह लिये स्थानों का निर्माण कर, जल की गति को कम करने के लिये छोटे बाँध बनाकर और जल अपवाह/निकासी के अन्य तरीकों का उपयोग कर जल के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • मैंग्रोव रोपण (Plantation of Mangroves):
    • मैंग्रोव तूफ़ानी लहरों और चक्रवातों के साथ आने वाली तेज़ हवाओं से तटीय क्षेत्र की रक्षा करते हैं।
    • समुदायों को मैंग्रोव रोपण में भागीदारी करनी चाहिये जो स्थानीय अधिकारियों, गैर सरकारी संगठनों या स्वयं समुदाय द्वारा आयोजित किये जा सकते हैं।
    • मैंग्रोव कटाव-नियंत्रण और तटीय संरक्षण में भी मदद करते हैं।
  • जन जागरूकता का निर्माण (Public Awareness Generation):
    • सार्वजनिक शिक्षा के माध्यम से सूचना का प्रभावी ढंग से प्रसार करके बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है। अनुसंधान ने लगातार दिखाया है कि जन जागरूकता और शिक्षा की कमी जीवन एवं आजीविका पर होने वाली क्षति में उल्लेखनीय योगदान देती है।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System):
    • तीव्र और कुशल प्रतिक्रिया को सुगम बनाने के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली को संवृद्ध करना
    • चक्रवात संबंधी पूर्व चेतावनी संकेतों (Cyclone Early Warning Signals) के बारे में जागरूकता और पहुँच को बढ़ावा देना
    • चक्रवात पूर्व चेतावनी के लिये सूचना प्रसार चैनलों को बढ़ावा देना
  • सामाजिक सहभागिता (Community Participation):

चूँकि स्थानीय लोग अपने क्षेत्र, स्थान, संस्कृति और रीति-रिवाजों की शक्तियों एवं कमज़ोरियों के बारे में सबसे बेहतर रूप से अवगत होते हैं, इसलिये कुछ शमनकारी उपायों को स्वयं समुदाय द्वारा विकसित किया जाना चाहिये।

इन सामुदायिक शमन गतिविधियों को सरकार और अन्य नागरिक समाज संगठनों के समर्थन से आगे बढ़ाया जा सकता है।

चक्रवात की तैयारी के लिये सरकार की प्रमुख पहलें

  • राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project):
    • भारत ने चक्रवात के प्रभावों को कम करने के लिये संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपाय करने के लिये इस परियोजना की शुरुआत की है।
    • परियोजना का उद्देश्य चक्रवातों और अन्य जल-मौसम संबंधी आपदाओं (hydro-meteorological calamities) के प्रभाव से भेद्य/संवेदनशील स्थानीय समुदायों की रक्षा करना है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority- NDMA) के गठन के बाद इस परियोजना का प्रबंधन सितंबर 2006 में NDMA को सौंप दिया गया।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) परियोजना:
    • ICZM का उद्देश्य तटीय समुदायों की आजीविका में सुधार करना और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है।
    • ICZM योजना में तटीय ज़िलों में अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं और आजीविका सुधार के साधनों की पहचान करना शामिल है।
      • मैंग्रोव का संरक्षण भी इसके घटकों में शामिल है।
    • परियोजना के राष्ट्रीय घटक में देश की तट रेखा का मानचित्रण करना और खतरे की रेखा का सीमांकन करना शामिल है।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zones- CRZ):
    • उच्च ज्वार रेखा (High Tide Line- HTL) से 500 मीटर तक के ज्वार से प्रभावित होने वाले समुद्रों, खाड़ियों, सँकरी खाड़ियों, नदियों और बैकवाटर के तटीय क्षेत्रों और निम्न ज्वार रेखा (Low Tide Line- LTL) एवं उच्च ज्वार रेखा के बीच की भूमि को वर्ष 1991 में तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) घोषित किया गया।
    • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा विभिन्न तटीय विनियमन क्षेत्र घोषित किये गए हैं।
  • चक्रवातों की रंग कोडिंग (Color Coding of Cyclones):
    • यह एक मौसम संबंधी चेतावनी है जो भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा प्राकृतिक खतरों से पहले लोगों को सचेत करने के लिये जारी की जाती है।
    • IMD द्वारा उपयोग किये जाने वाले चार रंगों में हरा, पीला, नारंगी और लाल शामिल हैं।

चक्रवात की तैयारी से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ 

  • नेतृत्त्व के लिये सीमित समय:
    • मौसम पूर्वानुमान के विषय में प्रगति के बावजूद चक्रवातों का सटीक प्रभाव केवल 36-60 घंटों की अपेक्षाकृत लघु समय सीमा के भीतर ही निर्धारित किया जा सकता है।
    • यह सीमित समय प्रभावी तैयारी और निकासी प्रयासों (evacuation efforts) के लिये चुनौतियाँ पेश करता है।
  • कमज़ोर तटीय अवसंरचना:
    • तटीय क्षेत्र अपनी भौगोलिक भेद्यता के कारण चक्रवात संबंधी क्षति के लिये अतिसंवेदनशील होते हैं।
    • अनुपयुक्त अवसंरचना (भवनों, सड़कों और पुलों सहित) तेज़ हवाओं, तूफ़ानी लहरों और चक्रवाती भारी वर्षा का सामना करने में अक्षम होने की संभावना रखती है।
    • तटीय अवसंरचना का उन्नयन और सुदृढ़ीकरण एक प्रमुख चुनौती है।
  • प्रभावी संचार नेटवर्क का अभाव:
    • पूर्व चेतावनियों को प्रसारित करने, निकासी प्रयासों को समन्वित करने और चक्रवातों के दौरान वास्तविक समय अद्यतन सूचना प्रदान करने के लिये कुशल संचार महत्त्वपूर्ण है।
    • हालाँकि तटीय क्षेत्रों को कमज़ोर सिग्नल, विद्युत की कटौती और क्षतिग्रस्त संचार नेटवर्क जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जो अत्यंत महत्त्वपूर्ण अवधि के दौरान प्रभावी संचार में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • निकासी संबंधी चुनौतियाँ:
    • संक्षिप्त अवधि में तटवर्ती समुदायों को बाहर निकालना विभिन्न कारकों के कारण चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकती है; कुछ व्यक्ति अपने घरों को छोड़ने के लिये अनिच्छुक हो सकते हैं, विशेष रूप से यदि उनके पास गलत पूर्व चेतावनी का अनुभव रहा हो या वे अपनी संपत्तियों को लेकर चिंता रखते हों।
    • इसके अतिरिक्त, परिवहन, लॉजिस्टिक्स और आश्रय स्थलों में क्षमता संबंधी सीमाओं से जुड़े मुद्दे समयबद्ध और सुचारू निकासी को बाधित कर सकते हैं।
  • विभिन्न आजीविका पैटर्न:
    • तटीय समुदाय प्रायः अपनी आजीविका के लिये मछली पकड़ने और अन्य समुद्री गतिविधियों पर निर्भर होते हैं।
      • चक्रवात की चेतावनियाँ उनकी आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकती हैं, जिससे निकासी के प्रतिरोध या निकासी में देरी की स्थिति बन सकती है।
    • तटीय समुदायों की आर्थिक वास्तविकताओं के साथ निकासी की आवश्यकता को संतुलित करना एक जटिल चुनौती है।
  • अपर्याप्त धन और संसाधन:
    • चक्रवात की प्रभावी तैयारी के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन, प्रशिक्षित कर्मी और आवश्यक साधन का होना आवश्यक है।
    • र्याप्त धन, संसाधनों का आवंटन और विभिन्न एजेंसियों एवं हितधारकों के बीच समन्वय सुनिश्चित करना, विशेष रूप से सीमित वित्तीय क्षमताओं वाले क्षेत्रों में, चुनौतीपूर्ण सिद्ध हो सकता है।

चक्रवात की तैयारी को संवृद्ध करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • पूर्वानुमान और पूर्व चेतावनी प्रणाली को सुदृढ़ करना:
    • चक्रवात के खतरों और जोखिमों की निगरानी, पूर्वानुमान एवं संचार के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं का विकास एवं वृद्धि करना।
    • चक्रवात पूर्वानुमानों और चेतावनियों की सटीकता, समयबद्धता और विश्वसनीयता में सुधार के लिये उपग्रहों, रडारों, संख्यात्मक मॉडलों जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग करना।
    • पूर्व चेतावनी प्रणाली से संलग्न विभिन्न एजेंसियों और मंचों के बीच समन्वय एवं सहयोग को सुदृढ़ करना।
    • चक्रवात संबंधी चेतावनियों और उनके प्रभावों के बारे में जन जागरूकता और समझ का विस्तार करना।
  • व्यापक तैयारी और तत्परता को बढ़ाना:
    • राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और स्थानीय स्तर पर व्यापक एवं सहभागितापूर्ण आपदा प्रबंधन योजनाओं का विकास एवं कार्यान्वयन करना। संवेदनशील क्षेत्रों, आबादी और संपत्तियों की पहचान करना तथा उनका मानचित्रण।
    • उपयुक्त परिवहन, संचार और बिजली नेटवर्क की स्थापना एवं रखरखाव। आवश्यक आपूर्ति और उपकरण स्टॉक करना।
    • इमरजेंसी किट और निकासी योजना तैयार करना तथा उन्हें अद्यतन करना।
    • विभिन्न अभिकर्ताओं की तैयारी एवं तत्परता तैयारी का परीक्षण करने और इनमें सुधार लाने के लिये नियमित अभ्यास, प्रशिक्षण एवं मॉक ड्रिल आयोजित करना।
  • जोखिम और भेद्यता को कम करना:
    • चक्रवात के प्रभावों को रोकने या कम करने के लिये संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपायों को कार्यान्वित करना।
    • सुदृढ़ एवं प्रत्यास्थी घरों, भवनों, अवसंरचना और सुविधाओं का निर्माण या इनमें सुधार करना।
    • मैंग्रोव, आर्द्रभूमि, प्रवाल भित्तियों जैसे प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों को पुनर्स्थापित करना और उनका संरक्षण करना ।
    • तटीय क्षेत्रों में विकास गतिविधियों को विनियमित करने के लिये तटीय विनियमन क्षेत्र मानदंडों और भूमि उपयोग योजना को लागू करना।
    • चक्रवात प्रवण क्षेत्रों पर निर्भरता कम करने के लिये आजीविका विविधीकरण और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देना:

अभ्यास प्रश्न: "हाल की घटनाओं में प्रकट चुनौतियों और सीखे गए सबक के आलोक में प्रचंड चक्रवातों के प्रभाव को कम करने में भारत की चक्रवात तैयारी उपायों की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये।"

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये (2020)

  1. जेट प्रवाह केवल उत्तरी गोलार्द्ध में होते हैं।
  2.  केवल कुछ चक्रवात ही केंद्र में वाताक्षि उत्पन्न करते हैं।
  3.  चक्रवाती की वाताक्षि के अंदर का तापमान आसपास के तापमान से लगभग 10º C कम होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2 
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: c

व्याख्या:

  • जेट प्रवाह एक प्रकार की जियोस्ट्रोफिक वायु है जो क्षोभमंडल की ऊपरी परतों, आमतौर पर पश्चिम से पूर्व की ओर, 20,000 - 50,000 फीट की ऊँचाई पर, क्षैतिज रूप से प्रवाहित होती है।
  • जेट प्रवाह का विकास वहाँ होता है जहाँ विभिन्न तापमानों की वायु राशियाँ परस्पर मिलती हैं। इसलिये आमतौर पर सतह का तापमान ही यह निर्धारित करता है कि जेट प्रवाह कहाँ निर्मित होगा।
  • तापमान में जितना अधिक अंतर होता है, जेट प्रवाह के अंदर वायु का वेग उतना ही तेज़ होता है। जेट प्रवाह का विस्तार दोनों गोलार्द्धों में 20° अक्षांश से ध्रुवों तक होता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • चक्रवात दो प्रकार के होते हैं, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और शीतोष्ण चक्रवात। एक उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केंद्र को 'वाताक्षि' के रूप में जाना जाता है, केंद्र में जहाँ हवा शांत होती है और वर्षा नहीं होती है।
  • हालाँकि, समशीतोष्ण चक्रवात में, एक भी जगह ऐसी नहीं होती है जहाँ हवाएँ और वर्षा निष्क्रिय होती हैं, इसलिये इनमें वाताक्षि जैसी संरचना नहीं मिलती है। अतः कथन 2 सही है।

मेन्स:

प्रश्न. उष्णकटिबंधीय चक्रवात बड़े पैमाने पर दक्षिण चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही सीमित हैं। क्यों? (2014)


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