भूगोल
राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना
- 09 Oct 2020
- 6 min read
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना, चक्रवात मेन्स के लियेभारत में चक्रवाती मौसम तथा चक्रवात से जुड़ी विभिन्न समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department -IMD) जल्द ही एक गतिशील, प्रभाव-आधारित चक्रवात चेतावनी प्रणाली शुरू करेगा, जिसका उद्देश्य हर वर्ष भारतीय तटों पर आने वाले चक्रवातों के कारण होने वाली आर्थिक हानि और संपत्ति के नुकसान को रोकना है।
प्रमुख बिंदु:
- IMD के महानिदेशक ने यह घोषणा 06 अक्तूबर, 2020 को ‘इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग’ (Indian Society of Remote Sensing- ISRS) द्वारा आयोजित विश्व अंतरिक्ष सप्ताह समारोह में की।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project) नामक एक परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत NDMA, IMD और तटीय राज्यों की राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक ‘वेब-आधारित डायनेमिक कंपोज़िट रिस्क एटलस’ (Web-based Dynamic Composite Risk Atlas) विकसित कर रहा है।
- विश्व अंतरिक्ष सप्ताह समारोह के पहले दिन ही IMD ने डॉ. मृत्युंजय महापात्रा की अध्यक्षता में ऑन-लाइन प्री-साइक्लोन’ (On-line pre-Cyclone) अभ्यास बैठक आयोजित की, इस बैठक में अक्तूबर-दिसंबर, 2020 के चक्रवाती मौसम के लिये योजना बनाने, तैयारियों की समीक्षा करने, आवश्यकताओं का जायजा लेने और IMD द्वारा नई पहल साझा करने के लिये हिस्सेदारी धारकों के साथ चर्चा की गई।
चक्रवात और भारत
- चक्रवात कम वायुमंडलीय दाब के चारों ओर गर्म हवाओं की तेज़ आँधी को कहा जाता है। दोनों गोलार्द्धों के चक्रवाती तूफानों में अंतर यह है कि उत्तरी गोलार्द्ध में ये चक्रवात घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा में (Counter-Clockwise) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चलते हैं।
- उत्तरी गोलार्द्ध में इसे हरिकेन, टाइफून आदि नामों से जाना जाता है।
- ध्यातव्य है कि भारत में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से ही अधिकांश तूफानों की उत्पत्ति होती है, जिन्हें उष्णकटिबंधीय चक्रवात कहा जाता है।
- उष्ण-कटिबंधीय चक्रवात अपने निम्नदाब के कारण ऊँची सागरीय लहरों का निर्माण करते हैं और इन चक्रवातों का मुख्य प्रभाव तटीय भागों में पाया जाता है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निर्माण की अनुकूल स्थितियाँ:
- बृहत् समुद्री सतह;
- समुद्री सतह का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो;
- कोरिआलिस बल का उपस्थित होना;
- लंबवत पवनों की गति में अंतर कम होना;
- कमज़ोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना;
- समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।
- चक्रवातों का निर्माण व समाप्ति:
- चक्रवातों को ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं।
- चक्रवातों के स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं।
वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का मार्ग:
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा प्रारंभ में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। लेकिन लगभग 20° अक्षांश पर ये चक्रवात कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दाईं ओर विक्षेपित हो जाते हैं तथा लगभग 25° अक्षांश पर इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी ही जाती है। 30° अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं के प्रभाव के कारण इनकी दिशा पूर्व की ओर हो जाती है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम:
क्षेत्र | चक्रवात नाम |
हिंद महासागर | चक्रवात |
पश्चिमी अटलांटिक तथा पूर्वी प्रशांत महासागर | हरीकेन |
पश्चिमी प्रशांत महासगर और दक्षिणी चीन सागर | टाइफून |
ऑस्ट्रेलिया | विली-विली |
हाल के वर्षों में बेहतर प्रौद्योगिकी और उपग्रह-निर्देशित डेटा के उपयोग में वृद्धि के साथ, IMD ने चक्रवातों के पूर्वानुमान और समय पर चेतावनी जारी करने में बेहतर प्रबंधन किया है।