एडिटोरियल (19 Nov, 2024)



भारत की दक्षिण एशिया रणनीति

यह संपादकीय 19/11/2024 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Is India really ‘neighborhood first’?” पर आधारित है। लेख में नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ भारत के तनावपूर्ण संबंधों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें आपसी सम्मान तथा गैर-हस्तक्षेप के आधार पर एक मुखर दृष्टिकोण से "पड़ोसी पहले" नीति पर स्थानांतरित होने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

दक्षिण एशिया, नेबरहुड फर्स्ट नीति, चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति, भारत-मालदीव-श्रीलंका समुद्री अभ्यास 'दोस्ती’, सार्क क्षेत्र, भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, चाबहार बंदरगाह, बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) विद्युत व्यापार समझौता, सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र, बिम्सटेक, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, 2020 में गलवान घाटी गतिरोध, श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा  

मेन्स के लिये:

भारत के लिये पड़ोसी प्रथम का महत्त्व, दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ।

भारत स्वयं को दक्षिण एशिया में एक ऐसे चौराहे पर पाता है, जहाँ नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों के साथ तनावपूर्ण संबंध क्षेत्रीय कूटनीति के प्रति उसके पारंपरिक दृष्टिकोण के प्रति बढ़ते असंतोष का संकेत देते हैं। भौगोलिक प्रभुत्व और मुखर नीतियों पर निर्भरता तेज़ी से प्रतिकूल होती जा रही है, क्योंकि छोटे देश भारत के प्रभाव को संतुलित करने के लिये चीन का बुद्धिमत्ता से लाभ उठा रहे हैं। इसके लिये नेबरहुड फर्स्ट नीति से अधिक समावेशी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ दृष्टिकोण की ओर बदलाव की आवश्यकता है, जिसमें आपसी सम्मान, गैर-हस्तक्षेप और छोटे देशों की आकांक्षाओं की पूर्ति करने पर बल दिया जाता है। 

भारत के लिये पड़ोसी प्रथम का क्या महत्त्व है? 

  • सामरिक सुरक्षा अनिवार्यताएँ: भारत की 15,106.7 किमी. लंबी स्थलीय सीमा और 7,516.6 किमी. लंबी समुद्र तट, पड़ोस की स्थिरता को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। 
  • आर्थिक एकीकरण और विकास: 2 अरब की आबादी वाला दक्षिण एशिया महत्त्वपूर्ण आर्थिक क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • सार्क क्षेत्र में भारत का औसत निर्यात हिस्सा उसके कुल उत्पाद का 5.9% रहा है, जो बढ़ते क्षेत्रीय व्यापार महत्त्व को दर्शाता है। 
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और ईरान में चाबहार बंदरगाह विकास जैसी बुनियादी ढाँचागत पहल महत्त्वपूर्ण व्यापार संपर्क प्रदान करती हैं। 
    • ये आर्थिक संबंध भारत के वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा और संसाधन प्रबंधन: साझा संसाधनों, विशेष रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियों के जल के प्रबंधन के लिये क्षेत्रीय सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
    • बढ़ती ऊर्जा मांग के लिये क्षेत्रीय समाधान की आवश्यकता है– उदाहरण के लिये, भारत ने नेपाल को अतिरिक्त 251 मेगावाट विद्युत ऊर्जा निर्यात करने की अनुमति दे दी है, जोकि हिमालयी राष्ट्र द्वारा बिहार को विद्युत ऊर्जा आपूर्ति करने का पहला उदाहरण है।
    • बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) विद्युत व्यापार समझौता जैसी सीमा पार विद्युत व्यापार पहल, संसाधनों के इष्टतम उपयोग को सुगम बनाती है।
  • सांस्कृतिक और सभ्यतागत बंधन: यह क्षेत्र हज़ारों वर्षों से गहरे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को साझा करता है। 
    • बौद्ध सर्किट पर्यटन जैसी भारत की सॉफ्ट पावर पहल इन संबंधों को और प्रगाढ़ करती है। 
    • दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय जैसी पहलों के माध्यम से सांस्कृतिक कूटनीति क्षेत्रीय समझ का निर्माण करती है। ये संबंध पड़ोसी देशों में बढ़ते भारत विरोधी आख्यानों का मुकाबला करने में मदद करते हैं।
  • समुद्री क्षेत्र जागरूकता और नियंत्रण: हिंद महासागर के प्रमुख व्यापार मार्गों पर भारत की रणनीतिक स्थिति क्षेत्रीय समुद्री सहयोग को महत्त्वपूर्ण बनाती है। 
    • वर्ष 2018 में शुरू किया गया सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) क्षेत्रीय भागीदारों के साथ समुद्री डोमेन जागरूकता को बढ़ावा देता है। 
    • तटीय सुरक्षा सहयोग समुद्री अपराधों से निपटने में मदद करता है– जैसे मार्च 2024 में, NCB, भारतीय नौसेना और गुजरात ATS के एक संयुक्त अभियान में हिंद महासागर तट से 60 समुद्री मील दूर एक नाव से 3,300 किलोग्राम ड्रग्स ज़ब्त किया गया तथा संदिग्ध पाकिस्तानी संबंधों वाले पाँच विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया गया, जो भारत में सबसे बड़ा अपतटीय ड्रग ज़ब्ती था।
  • वैश्विक शक्ति आकांक्षाएँ: ग्लोबल साउथ के नेतृत्वकर्त्ता के रूप में भारत की वैश्विक शक्ति महत्त्वाकांक्षाओं के लिये सुदृढ़ क्षेत्रीय प्रभाव महत्त्वपूर्ण है। 

दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • क्षेत्रीय विवाद: क्षेत्रीय विवाद दक्षिण एशिया में शांति और सहयोग के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा बने हुए हैं। 
    • भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद तनाव को बढ़ा रहा है, जबकि चीन के साथ अनसुलझे सीमा मुद्दे ने जटिलता को और बढ़ा दिया है। 
      • भारत द्वारा वर्ष 2025 चैंपियंस ट्रॉफी (क्रिकेट) के लिये पाकिस्तान की यात्रा न करने का हाल का निर्णय, ऐसे रिश्तों में सामान्य स्थिति बनाए रखने में व्यापक चुनौतियों को दर्शाता है।
    • ये विवाद प्रायः सैन्य टकराव और कूटनीतिक गतिरोध का कारण बनते हैं, जैसे कि वर्ष 2020 में गलवान घाटी गतिरोध जो क्षेत्रीय विकास पर सहकारी प्रयासों से ध्यान भ्रमित करता है। 
  • बढ़ता चीनी आर्थिक प्रभाव और ऋण कूटनीति: बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव (BRI) ने दक्षिण एशिया में चीन की उपस्थिति में उल्लेखनीय वृद्धि की है तथा इस क्षेत्र में 200 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।
    • श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह, जिसे ऋण न चुकाने के बाद 99 वर्षों के लिये चीन को पट्टे पर दिया गया है, ऋण-जाल कूटनीति का एक स्पष्ट उदाहरण है। 
    • पाकिस्तान को चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के माध्यम से 62 बिलियन डॉलर से अधिक प्राप्त हुए हैं, जबकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में चीन ने नेपाल को 254.7 बिलियन नेपाली रुपए देने का वादा किया है, जो देश के कुल विदेशी निवेश का 51.4% है।
    • पारंपरिक रूप से भारत का करीबी सहयोगी बांग्लादेश ने बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं में 26 अरब डॉलर का चीनी निवेश स्वीकार किया है।
    • इस आर्थिक पैठ ने क्षेत्र के प्राथमिक विकास साझेदार के रूप में भारत की ऐतिहासिक भूमिका को सीधे चुनौती दी है।
  • घटती राजनीतिक पूंजी और विश्वास की कमी: हाल के राजनीतिक परिवर्तनों ने भारत के घटते प्रभाव को उजागर किया है– मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने भारतीय सैन्य उपस्थिति को हटाने की मांग को बढ़ावा दिया है।
    • केपी ओली के नेतृत्व में नेपाल ने स्पष्ट रूप से चीन समर्थक झुकाव दिखाया है। नेपाल की वर्ष 2015 की संविधान निर्माण प्रक्रिया में भारत के कथित हस्तक्षेप और उसके बाद अनौपचारिक नाकेबंदी के कारण संबंधों में खटास बनी हुई है। 
    • मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की नई सरकार, पहले की भारत-अनुकूल सरकार से बदलाव का प्रतिनिधित्व करती है।
    • म्याँमार के सैन्य तख्तापलट और चल रहे गृह संघर्ष का भारत की एक्ट ईस्ट नीति तथा उत्तर पूर्वी सीमा के प्रबंधन पर प्रभाव पड़ेगा। 
  • सुरक्षा चुनौतियाँ और रणनीतिक कमज़ोरियाँ: चीन-पाकिस्तान सैन्य गठजोड़ एक अधिक परिष्कृत खतरे के रूप में विकसित हो गया है, क्योंकि पाकिस्तान ने J-10सी लड़ाकू विमानों और टाइप 054A/P फ्रिगेट सहित उन्नत चीनी सैन्य प्रौद्योगिकी हासिल कर ली है। 
  • आर्थिक एकीकरण में बाधाएँ: भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण SAARC की अप्रभावीता ने क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को अवरुद्ध कर दिया है।
    • दक्षिण एशिया के कुल व्यापार में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार की हिस्सेदारी बमुश्किल 5% है, जबकि आसियान क्षेत्र में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार की हिस्सेदारी 25% है।
    • बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल (BBIN) पहल की धीमी प्रगति, विशेष रूप से मोटर वाहन समझौते के कार्यान्वयन में, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी चुनौतियों का उदाहरण है। 
    • सीमा पार अवसंरचना परियोजनाओं में विलंब हो रहा है- उदाहरण के लिये, वर्ष 1996 की महाकाली संधि के तहत परिकल्पित भारत-नेपाल पंचेश्वर बहुउद्देशीय परियोजना में बहुत विलंब हो रहा है।
  • संसाधन एवं पर्यावरणीय चुनौतियाँ: इस क्षेत्र में जल-बँटवारे के विवाद बढ़ गए हैं, विशेष रूप से बांग्लादेश के साथ भारत के तीस्ता नदी समझौते के अनसुलझे रहने के कारण।
    • इसके साथ ही, चीन द्वारा अपने ऊपरी तटवर्ती क्षेत्रों से बहने वाली नदियों पर व्यापक बाँध निर्माण गतिविधियाँ भारत की जल सुरक्षा के लिये खतरा बनती जा रही हैं, जिससे ब्रह्मपुत्र जैसी महत्त्वपूर्ण नदियों का प्रवाह कम हो सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, विशेषकर मालदीव और बांग्लादेश के लिये खतरा बन रहे बढ़ते समुद्री स्तर के कारण बड़े पैमाने पर विस्थापन एवं क्षेत्रीय अस्थिरता की संभावना उत्पन्न हो रही है।
    • ऊर्जा सुरक्षा की चिंताएँ बढ़ रही हैं, क्योंकि भारत क्षेत्रीय संसाधनों तक अभिगम के लिये चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहा है- जो म्याँमार के गैस क्षेत्रों और श्रीलंका की ऊर्जा परियोजनाओं के लिये प्रतिस्पर्द्धा से स्पष्ट है। 
  • सांस्कृतिक एवं पहचान की राजनीति: पूरे क्षेत्र में धार्मिक राष्ट्रवाद का उदय भारत के धर्मनिरपेक्ष कूटनीतिक रुख को जटिल बनाता है।
    • पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार (जैसे- पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू) भारतीय विदेश नीति पर घरेलू राजनीतिक दबाव बनाता है। 
    • रोहिंग्या शरणार्थी संकट संसाधनों पर दबाव डालता है तथा क्षेत्रीय संबंधों को प्रभावित करता है।
    • नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) जैसे मुद्दों ने भारत के रिश्तों को प्रभावित किया है, विशेष रूप से बांग्लादेश के साथ, जहाँ शरणार्थियों के संभावित आगमन को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं। 

भारत अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • आर्थिक एकीकरण और व्यापार सुविधा: विशेष रूप से दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के लिये कम टैरिफ और सरलीकृत सीमा शुल्क प्रक्रियाओं के साथ एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) शुरू करने की आवश्यकता है। 
    • सीमा पार व्यापार और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने के लिये नेपाल, बांग्लादेश तथा म्याँमार के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थापित किये जाने चाहिये।
    • व्यापार बाधाओं को कम करने के लिये आधुनिक सुविधाओं, एकल खिड़की निकासी और डिजिटल भुगतान प्रणाली के साथ एकीकृत चेक पोस्ट (ICP) विकसित किये जाने चाहिये।
    • क्षेत्र के भीतर प्रत्यक्ष बिज़नेस-टू-बिज़नेस और बिज़नेस-टू-कंज़्यूमर व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये एक क्षेत्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म लॉन्च किया जाना चाहिये।
  • बुनियादी अवसंरचना और कनेक्टिविटी में वृद्धि: भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी चल रही परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करने तथा इसे कंबोडिया और वियतनाम तक विस्तारित करने की आवश्यकता है।
    • रेल, सड़क और अंतर्देशीय जलमार्गों के माध्यम से भारतीय बंदरगाहों को स्थलबद्ध पड़ोसियों से जोड़ने वाले बहु-मॉडल परिवहन गलियारे विकसित किये जाने चाहिये।
    • एकीकृत क्षेत्रीय ऊर्जा बाज़ार बनाने के लिये सीमा पार ऊर्जा ग्रिड और गैस पाइपलाइन स्थापित किये जाने चाहिये।
    • उन्नत निगरानी प्रणालियों, बेहतर सड़कों और व्यापार सुविधाओं के साथ सीमावर्ती बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण किया जाना चाहिये।
    • BBIN मोटर वाहन समझौते को प्रौद्योगिकी आधारित ट्रैकिंग और दस्तावेज़ीकरण प्रणालियों के साथ पूर्णतः क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
  • डिजिटल और प्रौद्योगिकी सहयोग: फिनटेक, ई-गवर्नेंस और डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी अवसंरचना में विशेषज्ञता साझा करने के लिये एक दक्षिण एशियाई डिजिटल हब का निर्माण करने की आवश्यकता है।
    • सीमा पार डिजिटल लेन-देन को सुविधाजनक बनाने के लिये इंडिया स्टैक (UPI, आधार) प्रौद्योगिकियों को पड़ोसी देशों तक विस्तारित किया जाना चाहिये।
    • साइबर खतरों से निपटने और खुफिया जानकारी साझा करने के लिये एक क्षेत्रीय साइबर सुरक्षा समन्वय केंद्र की स्थापना की जानी चाहिये। बेहतर क्षेत्रीय संपर्क और आपदा प्रबंधन के लिये समर्पित उपग्रहों को लॉन्च किया जाना चाहिये।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान: तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पड़ोसी देशों के छात्रों के लिये भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की छात्रवृत्ति में वृद्धि की आवश्यकता है। 
    • सीमावर्ती राज्यों में क्षेत्रीय भाषाओं, संस्कृति और विकास अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिक दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय स्थापित किया जाना चाहिये।
    • सीमाओं के पार बौद्ध, इस्लामी और हिंदू विरासत स्थलों को जोड़ने वाले क्षेत्रीय सांस्कृतिक सर्किट बनाए जाने चाहिये।
    • विषय-वस्तु के सह-निर्माण और पत्रकार विनिमय कार्यक्रमों सहित संयुक्त मीडिया पहल शुरू की जानी चाहिये।
  • सुरक्षा सहयोग रूपरेखा- खुफिया जानकारी को रियल टाइम साझाकरण की क्षमता के साथ एक क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी समन्वय केंद्र की स्थापना आवश्यक है।
    • समन्वित गश्त और संकट प्रतिक्रिया के लिये पड़ोसी देशों के साथ संयुक्त सीमा प्रबंधन दल बनाए जाने चाहिये।
    • स्वचालित पोत ट्रैकिंग और खतरा आकलन के साथ एक साझा समुद्री डोमेन जागरूकता मंच विकसित किया जाना चाहिये। 
  • पर्यावरण एवं संसाधन प्रबंधन: पर्यावरणीय चुनौतियों पर समन्वित प्रतिक्रिया के लिये एक क्षेत्रीय जलवायु कार्रवाई कार्य बल की स्थापना की जानी चाहिये।
    • प्राकृतिक आपदाओं और पर्यावरणीय आपात स्थितियों के लिये साझा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली लागू की जानी चाहिये। स्वच्छ विकास को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय कार्बन ट्रेडिंग बाज़ार बनाए जाने चाहिये।
  • कौशल विकास और रोज़गार: उच्च रोज़गार क्षमता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए क्षेत्रीय कौशल विकास पहल शुरू करने की आवश्यकता है।
    • मानकीकृत प्रमाणन प्रणालियों के साथ सीमा पार औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान बनाए जाने चाहिये। बेहतर कौशल-मांग मिलान के लिये क्षेत्रीय श्रम बाज़ार सूचना प्रणाली विकसित किये जाने चाहिये।  
    • पूरे क्षेत्र में व्यावसायिक योग्यताओं की पारस्परिक मान्यता लागू की जानी चाहिये।
  • स्थानीय सरकार सहयोग: सांस्कृतिक और आर्थिक सहयोग के लिये सीमावर्ती शहरों के बीच सिस्टर सिटी साझेदारी स्थापित करने की आवश्यकता है। 
    • समन्वित योजना के साथ सीमावर्ती ज़िलों के लिये संयुक्त विकास परिषदें बनाई जानी चाहिये। 
    • साझा सुविधाओं के साथ सीमावर्ती शहरों के लिये एकीकृत शहरी नियोजन विकसित किये जाने चाहिये। स्थानीय सरकारी अधिकारियों के बीच नियमित संवाद के लिये तंत्र बनाए जाने चाहिये।
  • ग्रीन बॉर्डर पहल: पड़ोसी देशों द्वारा संयुक्त रूप से संचालित सौर और पवन परियोजनाओं के साथ सीमा पार नवीकरणीय ऊर्जा गलियारे स्थापित किये जाने चाहिये। 
  • संयुक्त वन प्रबंधन और जैवविविधता संरक्षण के साथ सीमाओं पर 'ग्रीन बफर ज़ोन' बनाए जाने चाहिये। 
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में साझा अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण सुविधाएँ विकसित की जानी चाहिये। साथ ही, सीमावर्ती क्षेत्रों में संयुक्त जलवायु-अनुकूल कृषि परियोजनाएँ शुरू की जानी चाहिये।

निष्कर्ष: 

दक्षिण एशिया में भारत हेतु आगे की राह के लिये अपने पड़ोसियों के प्रति दृष्टिकोण में मौलिक बदलाव की आवश्यकता है। आपसी विकास, गैर-हस्तक्षेप और आम चिंताओं को दूर करने के लिये एक वास्तविक प्रतिबद्धता सर्वोपरि है। आर्थिक एकीकरण को प्राथमिकता देकर, सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करके और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देकर, भारत एक क्षेत्रीय नेतृत्वकर्त्ता के रूप में अपना उचित स्थान पुनः प्राप्त कर सकता है तथा दक्षिण एशिया में शांति, समृद्धि एवं साझा प्रगति के युग की शुरुआत कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों का समाधान करने में भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में आने वाले एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस देश के मामलों के संदर्भ में किया जाता है? (2009)

(a) बांग्लादेश
(b) भारत 
(c) नेपाल
(d) श्रीलंका

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत् वृद्धि हुई है।
  2. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में “कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों का व्यापर प्रमुख है।  
  3. पिछले पाँच वर्षों में, दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017)