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एडिटोरियल

  • 16 Feb, 2024
  • 29 min read
सामाजिक न्याय

मासिक धर्म के सवैतनिक अवकाश संबंधी दुविधाएँ

यह एडिटोरियल 15/02/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A demand that could hamper gender equality” लेख पर आधारित है। इसमें मासिक धर्म के बारे में जागरूकता बढ़ाने के महत्त्व और मासिक धर्म के लिये सवैतनिक अवकाश देने में निहित लैंगिक असमानता संबंधी चिंताओं पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

बहिनी योजना, मासिक धर्म स्वच्छता योजना, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम, NFSH-5, महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुँच विधेयक, 2022, एनीमिया

मेन्स के लिये:

मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य - चुनौतियाँ, परिणाम और आगे की राह।

सबरीमाला मंदिर विवाद ने मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव को उजागर किया, जहाँ फिर लैंगिक समानता और ऐसी प्रथाओं के उन्मूलन की आवश्यकता पर एक बहस छिड़ गई। हालाँकि, मासिक धर्म के लिये सवैतनिक अवकाश की मांग इस विमर्श को कमज़ोर करती है। मासिक धर्म चक्र चुनौतीपूर्ण हो सकता है, कुछ महिलाओं के मामले में उनके शरीर एवं मन के लिये अत्यंत दुर्बलकारी, लेकिन संभावित प्रतिकूल प्रभावों पर विचार किये बिना एक लिंग से संबंधित सभी लोगों को सामूहिक रूप से लेबल करना, महिला सशक्तीकरण आंदोलन को कमज़ोर कर सकता है।

सबरीमाला मंदिर विवाद:

  • पाँच महिला अधिवक्ताओं के एक समूह ने केरल हिंदू सार्वजनिक पूजा स्थल (प्रवेश प्राधिकरण) नियम, 1965 के नियम 3 (b) को न्यायालय के समक्ष चुनौती दी, जो मंदिर में ‘मासिक धर्म आयु’ की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को अधिकृत करता है। केरल उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सदियों पुराने इस प्रतिबंध को बरकरार रखा और यह कहा कि कि परंपराओं पर निर्णय लेने का अधिकार केवल तंत्री (पुरोहित) के पास है। इस निर्णय के बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
  • याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रतिबंध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता), 15 (धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) और 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) के विरुद्ध है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार, यह निषेध एक प्राकृतिक, शारीरिक प्रक्रिया पर आधारित था। जहाँ यह कहा जा रहा हो कि मासिक धर्म वाली महिलाएँ मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं तो वस्तुतः उन्हें उनके लिंग के आधार पर अपमानित किया जा रहा है।
  • न्यायालय के बहुमत के निर्णय में कहा गया कि समानता का अधिकार आचरण के अधिकार पर हावी होगा।

सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश लैंगिक असमानता को कैसे बढ़ाएगा?

  • महिलाओं की कार्य-नियुक्ति के मामले में कंपनियों का हतोत्साहित होना:
    • विश्व आर्थिक मंच (WEF) की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021 में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लिंग अंतराल घटने के बजाय और बढ़ गया है।
    • मौजूदा स्थिति में लैंगिक समानता प्राप्त करने में दुनिया को 135.6 वर्ष लगेंगे। विशेष रूप से कार्यबल स्तर पर देखें तो एक महिला एक पुरुष द्वारा अर्जित प्रत्येक डॉलर की तुलना में 84 सेंट ही कमाती है।
    • श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में पर्याप्त कम है, जबकि नेतृत्व के स्तर पर तो उनका प्रतिनिधित्व और भी कम है।
      • यदि इसमें मासिक धर्म के लिये अनिवार्य सवैतनिक अवकाश को भी जोड़ दिया जाए तो यह कंपनियों को महिलाओं को कार्य पर रखने से हतोत्साहित कर देगा।
  • मासिक धर्म के संबध में विद्यमान सामाजिक कलंक को मान्य करना:
    • यदि सरकार मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं के लिये ‘विशेष दर्जा’ की पुष्टि करती है तो यह मासिक धर्म के संबध में विद्यमान सामाजिक कलंक को मान्य करेगा। यह ऐसे देश में ‘पीरियड शेमिंग’ को और बढ़ाएगा जहाँ बड़ी संख्या में लोग (पुरुष और महिलाएँ दोनों) मासिक धर्म को ‘अशुद्ध’ मानते हैं।
    • मासिक धर्म के लिये सवैतनिक अवकाश के पक्षकर्ताओं का यह दावा है कि मासिक धर्म को विशेष दर्जा देने का उद्देश्य विषय संबंधी जागरूकता पैदा करना है। लेकिन इससे प्रतिकूल प्रभाव ही उत्पन्न होगा। यह ऐसा कदम साबित हो सकता है जिसकी मंशा तो अच्छी है लेकिन यह अनजाने में लिंग अंतराल को और बढ़ा देगा।
  • लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में जापान का उदाहरण:
    • जापान जैसे कई देश हैं जो पीड़ादायी माहवारी के लिये अवकाश प्रदान करते हैं, लेकिन यह प्रायः अवैतनिक होता है और अप्रयुक्त रहता है। महिलाओं का दावा है कि वे यौन उत्पीड़न के भय से इस अवकाश का लाभ उठाने के प्रति संकोच रखती हैं और यह ‘प्रसारित’ करती हैं कि वे माहवारी से गुज़र रही हैं।
    • आँकड़े बताते हैं कि जापान में कार्यबल में केवल 0.9% महिलाएँ ही मासिक धर्म अवकाश का का लाभ उठाती हैं। वर्ष 2019 में WEF की रैंकिंग के अनुसार लैंगिक समानता के मामले में जापान 153 देशों में 121वें स्थान पर था। वर्ष 2023 में वह फिसलकर 125वें स्थान पर पहुँच गया।
    • उल्लेखनीय है कि यद्यपि जापान में युवा महिलाओं का शिक्षा स्तर पुरुषों की तुलना में अधिक है, लेकिन कार्यबल में असमानताएँ नज़र आती हैं। जापान में महिलाओं की पुरुषों की तुलना में नियोजित होने की संभावना कम पाई जाती है (समान योग्यता के साथ भी) और प्रायः उन्हें अपेक्षाकृत कम वेतन दिया जाता है।
  • इसके कार्यान्वयन से जुड़ी चिंताएँ:
    • मासिक धर्म के लिये सवैतनिक अवकाश की शुरुआत की जाए तो असल चुनौती इसके कार्यान्वयन में है। ऐसे अवकाश का वैध उपयोग निर्धारित करना और संभावित दुरुपयोग को रोकना जटिल होगा।
    • इसके अतिरिक्त, नियोक्ताओं के लिये स्वीकार्य प्रवर्तन तरीकों को परिभाषित करना एक और दुविधा पैदा करता है। गुजरात के भुज में वर्ष 2020 की घटना जैसे उदाहरण, जहाँ मासिक धर्म की स्थिति को सत्यापित करने के लिये 66 बालिकाओं को कपड़े उतारने के लिये विवश किया गया था या मुजफ्फरनगर में वर्ष 2017 का मामला जहा 70 बालिकाओं को इसी तरह के व्यवहार का सामना करना पड़ा, मासिक धर्म के संबंध में संवेदनशील एवं सम्मानजनक नीतियों की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • सामान्य शारीरिक परिघटना:
    • मासिक धर्म एक सामान्य शारीरिक परिघटना है और केवल कुछ ही महिलाएँ या बालिकाएँ गंभीर कष्टार्तव (dysmenorrhea) या इस तरह की अन्य पीड़ाओं से गुज़रती हैं; और इनमें से अधिकतर मामलों को दवा द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश का समर्थन करने वाले प्रमुख तर्क:

  • ‘पीरियड पॉवर्टी’:
    • मासिक धर्म स्वच्छता और संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता की कमी भारत में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। कई बालिकाओं और महिलाओं को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, मासिक धर्म स्वास्थ्य—जिसमें उचित स्वच्छता अभ्यास, स्वच्छता उत्पादों का उपयोग और मासिक धर्म संबंधी असुविधा का प्रबंधन शामिल है, के बारे में सीमित ज्ञान प्राप्त है।
      • ग़ैर-सरकारी संगठन ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (CRY) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि कई बालिकाओं की सैनिटरी पैड तक पहुँच सीमित थी, जहाँ 44.5% बालिकाओं ने स्वीकार किया कि वे घर में बने अवशोषक या कपड़े का उपयोग करती हैं।
      • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि लगभग 11.3% लड़कियों को मासिक धर्म का सही कारण नहीं पता था और उन्होंने कहा कि यह भगवान का शाप था या किसी बीमारी का परिणाम था।
    • भारत में मासिक धर्म से गुज़रती 20% महिलाएँ/बालिकाएँ पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) की शिकार हैं और लगभग 25 मिलियन एंडोमेट्रियोसिस (endometriosis) से पीड़ित हैं।
  • सस्ते स्वच्छता उत्पादों तक पहुँच का अभाव:
    • भारत में सस्ते एवं स्वच्छ मासिक धर्म उत्पादों तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है। कई महिलाएँ, विशेष रूप से जो निम्न-आय पृष्ठभूमि की हैं, सैनिटरी पैड या टैम्पोन खरीदने का खर्च वहन नहीं कर पाती हैं।
      • नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 15 से 24 आयु वर्ग की लगभग 50% महिलाएँ मासिक धर्म सुरक्षा के लिये कपड़े के उपयोग पर निर्भर रहती हैं।
      • विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि कपड़े का दुहरावपूर्ण उपयोग से कई तरह के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है और वे इसके लिये अपर्याप्त जागरूकता एवं मासिक धर्म के बारे में सामाजिक वर्जना के संयोजन को ज़िम्मेदार मानते हैं। बालिकाओं को मासिक धर्म के दौरान स्कूल नहीं जाने या सामाजिक अपवर्जन का सामना करने जैसी स्थिति से गुज़रना होता है।
  • कलंक और शर्म:
    • भारत के कई भागों में मासिक धर्म अभी भी सामाजिक कलंक और सांस्कृतिक वर्जनाओं से ग्रस्त है। मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं को प्रायः भेदभाव, प्रतिबंध और अलगाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनमें शर्म एवं शर्मिंदगी की भावना पैदा होती है। यह कलंक खुली चर्चा को बाधित कर सकता है, सूचना एवं संसाधनों तक पहुँच को सीमित कर सकता है और मासिक धर्म स्वच्छता के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को कायम बनाये रख सकता है।
      • CRY रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दुकानों से पैड खरीदने में झिझक या शर्म, पैड के निपटान में कठिनाई, अपर्याप्त उपलब्धता और पैड के बारे में जानकारी का अभाव इसका व्यापक उपयोग न करने के प्रमुख कारण थे।
      • 61.4% बालिकाओं ने स्वीकार किया है कि मासिक धर्म को लेकर समाज में शर्मिंदगी की भावना मौजूद है।
  • अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ:
    • कई क्षेत्रों में स्वच्छ शौचालय एवं जल आपूर्ति सहित उचित स्वच्छता सुविधाओं की कमी मासिक धर्म स्वच्छता में एक प्रमुख बाधा उत्पन्न करती है। स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों और घरों में अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे से महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये अपने मासिक धर्म को सुरक्षित एवं गरिमा के साथ प्रबंधित करना कठिन सिद्ध हो सकता है।
    • अनौपचारिक कार्य (जैसे निर्माण कार्य, घरेलू कार्य आदि) से संलग्न महिलाओं की प्रायः शौचालय, नहाने के लिये साफ पानी और लागत प्रभावी स्वच्छता उत्पादों एवं उनके सुरक्षित निपटान तक पहुँच नहीं होती है। उनके पास प्रायः अपने मासिक धर्म उत्पादों को बदलने के लिये निजता की भी कमी होती है।
  • सीमित स्वास्थ्य सेवाएँ:
    • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः ऐसे डॉक्टरों, नर्सों और दाइयों सहित अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कमी का सामना करना पड़ता है, जिन्हें विशेष रूप से मासिक धर्म स्वास्थ्य मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रशिक्षित किया जाता है।
    • यह कमी महिलाओं की जानकार स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों तक पहुँच को और बाधित करती है। स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना की कमी भी मासिक धर्म के बारे में मिथकों एवं गलत धारणाओं के बने रहने में योगदान देती है।
  • सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथाएँ:
    • कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ एवं प्रथाएँ मासिक धर्म स्वच्छता में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। उदाहरण के लिये, कुछ समुदाय मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं को अशुद्ध मानते हैं और धार्मिक गतिविधियों या सामाजिक समारोहों में उनकी भागीदारी को प्रतिबंधित करते हैं। इस तरह की प्रथाएँ कलंक को और सुदृढ़ कर सकती हैं तथा उचित मासिक धर्म स्वच्छता अभ्यासों में बाधा डाल सकती हैं।
    • महाराष्ट्र में एक अध्ययन में पाया गया कि मासिक धर्म से गुज़रती बालिकाओं एवं महिलाओं को स्वच्छता एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं से रहित ‘कूर्मघर’ या ‘पीरियड हट्स’ में अलग करने की प्रथा महिलाओं के बीच अनुकूल यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य परिणामों में एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है।
  • नीतिगत उपायों का अभाव:

प्रभावी मासिक धर्म अवकाश नीतियों को अपनाने हेतु सुझाव:

  • मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ प्रायः असफल रही हैं क्योंकि वे भ्रमित समस्या पर ध्यान केंद्रित करती हैं। समस्या मासिक धर्म से गुज़रते मानव शरीर की नहीं है। समस्या यह है कि, विशेष रूप से उन जगहों पर जहाँ मासिक धर्म अवकाश पहले ही लागू किया जा चुका है, महिला कामगारों की सभ्य कार्य दशाओं, आराम या शौचालय अवकाश, बीमारी अवकाश या चिकित्सा उपचार तक अपर्याप्त पहुँच है। इसके अलावा, महिलाएँ अवैतनिक बाल देखभाल जिम्मेदारियों में असमान हिस्सेदारी निभाती रही हैं। इस परिदृश्य में संबंधित नीतियों को निम्नलिखित दृष्टिकोणों को बढ़ावा देना चाहिये:
  • मासिक धर्म स्वास्थ्य संबंधी साक्षरता को बढ़ावा देना:
    • अपर्याप्त मासिक धर्म शिक्षा (स्कूलों और चिकित्सा प्रशिक्षण में) के कारण अधिकांश लोग मासिक धर्म के लक्षणों की प्रकृति, व्यापकता या प्रभावी उपचार विकल्पों के बारे में बहुत कम जानते हैं।
    • इसलिये, कार्यस्थल में मासिक धर्म स्वास्थ्य में सुधार का एक महत्त्वपूर्ण अंग यह सुनिश्चित करना होगा कि नियोक्ता, कर्मचारी (और उनके डॉक्टर) सभी की मासिक धर्म स्वास्थ्य के बारे में उच्च गुणवत्तापूर्ण सूचना तक पहुँच हो।
  • पर्याप्त विश्राम अवकाश शामिल करना:
    • मासिक धर्म से गुज़रती कामगारों के लिये ‘ब्रेक’ ले सकना छुट्टी लेना और शौचालय एवं स्वच्छ जल तक पहुँच रखना विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। इसके अलावा, बेहतर कार्य दशाओं से सभी कामगारों को लाभ प्राप्त होगा।
    • यह देखा गया है कि विश्राम अवकाश से कार्यस्थल पर चोट लगने या बीमारी की संभावना कम हो जाती है, साथ ही उत्पादकता एवं दक्षता में भी सुधार होता है। स्वच्छ शौचालय सुविधाएँ प्रदान करने से कार्यबल में खांसी, सर्दी और अन्य संक्रामक बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है।
  • प्रभावी उपचार तक पहुँच:
    • यूके में अधिकांश कार्यस्थल (और स्कूल आदि) आसानी से मुफ्त ‘आपातकालीन’ अवधि के उत्पाद (जैसे टैम्पोन और पैड), इबुप्रोफेन (सूजनरोधी दवा), गर्म पैड या गर्म पानी की बोतलें, गर्म पेय आदि प्रदान करते हैं।
    • मासिक धर्म संबंधी गंभीर लक्षणों के मामले में कामगारों को जल्द से जल्द गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सलाह एवं उपचार विकल्पों तक पहुँच बनाने के लिये समर्थन एवं प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
  • लचीली कार्य दशाएँ:
    • कार्यस्थल में मासिक धर्म नीतियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिये जहाँ कार्य अभ्यास में अधिक लचीलापन हो, क्योंकि अधिकांश लोगों को पुनः काम पर लौटने से पहले आराम करने/मासिक लक्षणों को प्रबंधित करने के लिये अपेक्षाकृत कम समय की ही आवश्यकता होती है।
    • इस प्रकार, घर से काम करने में सक्षम होना (यदि लागू हो) या कार्य दिवस में ‘ब्रेक’ लेना पूरे दिन की छुट्टी लेने से बेहतर सिद्ध होगा।
    • लिंग-विशिष्ट नीतियों को नहीं अपनाना:
    • पिछले कई दशकों से अपनाई गई रोज़गार नीतियों के वैश्विक मूल्यांकन से बार-बार पुष्टि हुई है कि लिंग-विशिष्ट नीतियाँ (चाहे उनका इरादा कितना भी अच्छा क्यों न रहा हो) उन्हीं लोगों को अधिक नुकसान पहुँचाती हैं जिनकी वे मदद करना चाहती हैं।
    • बेहतर यह होगा कि महिलाओं (और आदर्शतः हाशिये पर स्थित अन्य समूहों) की ज़रूरतों की पहचान की जाए और सभी कर्मचारियों के लिये नीतियाँ तैयार की जाए जो उन्हें उचित ध्यान में रखती हैं।
    • इस प्रकार, कार्यान्वित नीतियाँ सभी कामगारों की सहायता करेंगी और अनजाने में सहकर्मियों या नियोक्ताओं को महिलाओं (या किसी भी वंचित समूह) के प्रति कोई असंतोष महसूस नहीं कराएँगी।
  • समान वेतन और नौकरी के अवसर सुनिश्चित करना:
    • यह कोई संयोग नहीं है कि जिन देशों में मासिक धर्म अवकाश लागू किया गया है, वहाँ अपेक्षाकृत बड़ा लैंगिक वेतन अंतराल पाया जाता है। वर्ष 2017 के OECD रिपोर्ट में भारत (56%), कोरिया (37%), इंडोनेशिया (34%) और जापान (26%) के लैंगिक वेतन अंतराल का उल्लेख किया गया है। उल्लेखनीय है कि OECD औसत या ‘कंट्री एवरेज’ 15% है।
    • वृहत लैंगिक वेतन अंतराल क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर दोनों लैंगिक अलगाव को दर्शाते हैं। इसका अर्थ यह है कि महिलाएँ एवं पुरुष अलग-अलग तरह की नौकरियों में संलग्न हैं और महिलाओं से जुड़ी नौकरियों में कम वेतन मिलता है। इसके परिणामस्वरूप महिला कामगारों को कार्यस्थल पर और व्यापक समाज में कम शक्ति प्राप्त होती है।
    • समान वेतन और रोज़गार अवसर सुनिश्चित करना कार्यस्थल पर लैंगिक समानता में सुधार लाने में मासिक धर्म अवकाश से कहीं अधिक योगदान करेगा और यह दुर्घटनावश किसी भी मासिक धर्म/लिंग मिथकों को सुदृढ़ नहीं करेगा।
  • कार्य दशाओं और श्रम अधिकारों के लिये उपयुक्त मानक:
    • मासिक धर्म अवकाश का समर्थन करने वाले अधिकांश देशों में इसका तात्पर्य विशेष रूप से ‘स्वेटशॉप लेबर’ (sweatshop labour) दशाओं में सुधार या उन्मूलन से है। यूके और इस तरह की अन्य अर्थव्यवस्थाओं में, यह ज़ीरो-आर अनुबंध (zero-hour contracts) वाले लोगों या अन्य कमज़ोर कामकाजी आबादी (जैसे प्रवासी श्रमिक) या कम वेतन पर लंबे समय तक काम करने के लिये विवश या असुविधाजनक या खतरनाक परिस्थितियों में काम करने वाले लोगों की सुरक्षा से संबंधित है।
    • यदि वैश्विक न्यूनतम श्रम मानकों में कार्य घंटों (लचीले/अधिकतम), वेतन (उचित एवं निर्वाहक), उचित आराम एवं शौचालय अवकाश, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानकों (सभी श्रमिकों पर लागू), बीमारी अवकाश और समान अवसरों (माहवारी स्वास्थ्य साक्षरता सहित) के संबंध में सुधार किया जाए तो किसी भी अतिरिक्त ‘मासिक धर्म अवकाश’ जैसी नीति की आवश्यकता नहीं होगी।
      • वस्तुतः विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) यह अपेक्षा रखता भी है कि सरकारों को स्कूलों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक संस्थानों को ऐसा समर्थनकारी बनाना चाहिये जो मासिक धर्म के सहज एवं गरिमापूर्ण प्रबंधन में सहायक हो।

नोट:

  • ‘स्वेटशॉप लेबर’ (Sweatshop Labour): यह उन कार्य दशाओं को संदर्भित करता है जो कम वेतन, सुदीर्घ कार्य घंटे, खराब कार्य दशाएँ और प्रायः कामगारों के शोषण से चिह्नित होता है। ये स्थितियाँ आम तौर पर कारखानों में पाई जाती हैं, विशेष रूप से विकासशील देशों में, जहाँ कामगारों को (जिनमें प्रायः बच्चे भी शामिल होते हैं) विकसित देशों में निर्यात हेतु माल के उत्पादन के लिये नियोजित किया जाता है।
  • ज़ीरो-आर अनुबंध (Zero-Hour Contracts): ये ऐसे रोज़गार समझौते हैं जहाँ नियोक्ता कर्मचारी के लिये न्यूनतम कार्य घंटे प्रदान करने के लिये बाध्य नहीं है और कर्मचारी किसी भी प्रस्तावित कार्य को स्वीकार करने के लिये बाध्य नहीं है। इस प्रकार के अनुबंध की रोज़गार सुरक्षा एवं स्थिरता की कमी के साथ-साथ नियोक्ताओं द्वारा शोषण की संभावना के लिये प्रायः आलोचना की जाती है ।

मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएँ:

निष्कर्ष:

जबकि कुछ लोग जागरूकता बढ़ाने के लिये सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश की वकालत करते हैं, यह दृष्टिकोण अनजाने में लैंगिक अंतराल को बढ़ा सकता है। मासिक धर्म को एक जैविक अलाभ के रूप में वर्गीकृत करने के बजाय इसके विविध अनुभवों की पहचान करना और उनके अनुकूल समर्थन प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है।

ऐसी नीतियों का कार्यान्वयन संभावित दुरुपयोग के प्रति सचेत हो और व्यक्तिगत निजता एवं गरिमा का सम्मान सुनिश्चित करे। वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट लगातार बनी रही असमानताओं को उजागर करती है, जो लैंगिक समानता को आगे बढ़ाते हुए मासिक धर्म संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये सूक्ष्म, समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देती है।

अभ्यास प्रश्न: वैश्विक उदाहरणों का हवाला देते हुए लैंगिक समानता और कार्यबल की गतिशीलता पर सवैतनिक मासिक अवकाश लागू करने के निहितार्थ पर चर्चा कीजिये। कौन-से उपाय इसके प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स: 

प्रश्न 1: भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)

प्रश्न 3: महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013)


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