एडिटोरियल (15 Nov, 2024)



इथेनॉल सम्मिश्रण: ऊर्जा सुरक्षा का मार्ग

यह संपादकीय 10/11/2024 को ‘द हिंदू बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित “Ethanol blending is proving messy” पर आधारित है। लेख में भारत के 90% फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा देने में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ, नीतिगत तनाव और जलवायु प्रभाव शामिल हैं, साथ ही संपूर्ण लागत-लाभ विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

इथेनॉल समिश्रण, इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम, रूस-यूक्रेन संघर्ष, पश्चिम एशियाई तनाव, COP26, नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, कार्बन फुटप्रिंट, पंजाब में पैलेटाइज़ेशन इकाइयाँ 

मेन्स के लिये:

भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण की वर्तमान स्थिति, भारत के लिये इथेनॉल सम्मिश्रण से जुड़े प्रमुख मुद्दे। 

ब्राज़ील से प्रेरित होकर भारत द्वारा 90% फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा देने के प्रयासों के लिये वर्ष 2024 में 15% इथेनॉल समिश्रण का लक्ष्य प्राप्त करने के बावजूद बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जबकि इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम ने विदेशी मुद्रा में ₹1.01 लाख करोड़ की बचत की है जिसमें गन्ना, चावल और मक्का जैसी खाद्य फसलों को इथेनॉल के लिये इस्तेमाल करने से खाद्य सुरक्षा पर चिंताएँ बढ़ रही हैं। यह कार्यक्रम ब्राज़ील के बाज़ार-संचालित मॉडल के विपरीत निरंतर नीति समायोजन पर निर्भर करता है, जिससे तेल विपणन कंपनियों और सरकारी वित्त दोनों पर दबाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन एवं अप्रत्याशित मानसून सम्मिश्रण लक्ष्यों को और भी जटिल बनाते हैं, जिससे फ्लेक्स-फ्यूल के अंगीकरण को बढ़ावा देने से पहले एक व्यापक लागत-लाभ विश्लेषण की आवश्यकता पर बल दिया जाता है।

भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • इथेनॉल के संदर्भ में: इथेनॉल एक प्रकार का अल्कोहल है जिसका विरचन मुख्य रूप से शर्करा के किण्वन से होता है, जो प्रायः गन्ना, मक्का या अन्य बायोमास जैसी फसलों से प्राप्त होता है। 
    • इसका प्रयोग आमतौर पर जैव ईंधन, विलायक और विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है। 
    • इथेनॉल सम्मिश्रण से तात्पर्य इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाकर इथेनॉल-मिश्रित ईंधन बनाने की प्रक्रिया से है। 
      • इससे शुद्ध पेट्रोल की खपत कम होती है, पर्यावरण प्रदूषण कम होता है, तथा घरेलू स्तर पर उत्पादित जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ावा मिलता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा और धारणीयता में योगदान मिलता है।
    • विश्व के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में भारत ने तेल आयात को कम करने के लिये इथेनॉल सम्मिश्रण की ओर रुख किया है। इथेनॉल सम्मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम में सुधार, ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाएगा और ग्रामीण आय को समर्थन देगा।
      • भारत ने इथेनॉल पर GST घटाकर 5% कर दिया है तथा उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये ब्याज अनुदान योजना शुरू की है।

  • भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण की प्रगति:
    • प्रारंभिक लक्ष्य: वर्ष 2030 तक 20% इथेनॉल सम्मिश्रण, जिसे बाद में वर्ष 2025 तक बढ़ाया गया।
    • उत्पादन वृद्धि: इथेनॉल उत्पादन क्षमता दोगुनी से अधिक होकर सितंबर 2024 तक 1,623 करोड़ लीटर तक पहुँच गई है।
    • सम्मिश्रण में वृद्धि: सम्मिश्रण वर्ष 2014 में 1.53% से बढ़कर वर्ष 2024 में 15% हो गया, सत्र 2023-24 में 545 करोड़ लीटर से अधिक सम्मिश्रण किया जाएगा।
  • उपलब्धियाँ: भारत के इथेनॉल सम्मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम ने उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, जिसमें सम्मिश्रण वर्ष 2014 में 1.53% से बढ़कर वर्ष 2024 में 15% हो गया है तथा वर्ष 2025 तक 20% का लक्ष्य रखा गया है। 
    • इस पहल से विदेशी मुद्रा में ₹1.06 लाख करोड़ की बचत हुई, CO₂ उत्सर्जन में 544 लाख मीट्रिक टन की कमी आई और ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई

भारत के ऊर्जा संक्रमण के लिये इथेनॉल सम्मिश्रण क्यों आवश्यक है?

  • ऊर्जा सुरक्षा और आयात निर्भरता: भारत वर्तमान में अपनी कच्चे तेल की आवश्यकताओं का 85% से अधिक आयात करता है, जिससे यह वैश्विक मूल्य अस्थिरता और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील हो गया है। 
    • हाल ही में रूस-यूक्रेन संघर्ष और पश्चिम एशियाई तनाव ने इस कमज़ोरी को उजागर किया है, क्योंकि तेल की कीमतों में उल्लेखनीय रूप से उतार-चढ़ाव हो रहा है। 
    • इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम से आयात में कमी के कारण पहले ही 1.06 लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की बचत हो चुकी है।
    • वर्ष 2024 में 15% सम्मिश्रण लक्ष्य प्राप्त करके, भारत ने आयात निर्भरता को उल्लेखनीय रूप से कम करने के लिये कार्यक्रम की क्षमता का प्रदर्शन किया है। वर्ष 2025 तक 20% लक्ष्य के साथ, भारत संभावित रूप से विदेशी मुद्रा भंडार में सालाना अरबों डॉलर की बचत कर सकता है।
  • कृषि क्षेत्र के लिये आर्थिक लाभ: EBP ने किसानों और चीनी मिलों के लिये एक स्थायी राजस्व मॉडल बनाया है, जिसमें तेल विपणन कंपनियाँ (OMC) किसानों को सीधे 87,558 करोड़ रुपए और डिस्टिलर्स को 1.45 लाख करोड़ रुपए का भुगतान करती हैं।
    • इस अतिरिक्त आय स्रोत ने गन्ना बकाया की दीर्घकालिक समस्या को सुलझाने में मदद की है, जो ऐतिहासिक रूप से कृषि क्षेत्र के लिये चिंता का विषय रही है। 
    • इस कार्यक्रम ने निजी निवेश को प्रोत्साहित किया है, जिसके तहत डिस्टिलर्स सितंबर 2024 तक 16.2 बिलियन लीटर की इथेनॉल क्षमता स्थापित करना है। 
    • गुणक प्रभाव ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है और जैव ईंधन क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर सृजित किये हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव और जलवायु प्रतिबद्धताएँ: इथेनॉल सम्मिश्रण से वाहनों से होने वाले उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आती है, अध्ययनों से पता चलता है कि E20 ईंधन के साथ कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन में 20% की कमी आती है। 
    • COP26 में भारत की वर्ष 2030 तक कार्बन आधिक्य को 45% तक कम करने की प्रतिबद्धता, जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में इथेनॉल सम्मिश्रण को एक महत्त्वपूर्ण उपागम बनाती है। 
    • हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि इथेनॉल सम्मिश्रण से CO2 उत्सर्जन में 544 लाख मीट्रिक टन की कमी आने का अनुमान है। 
    • यह कार्यक्रम भारत की व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण रणनीति के अनुरूप है तथा सौर और पवन ऊर्जा पहलों को पूरक बनाता है।
  • तकनीकी नवाचार और औद्योगिक विकास: इथेनॉल सम्मिश्रण को बढ़ावा देने से ऑटोमोबाइल प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ावा मिला है, जिसके तहत प्रमुख निर्माता फ्लेक्स-फ्यूल इंजन विकसित कर रहे हैं। 
    • हाल ही में फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को GST रियायत दिये जाने की घोषणा से इस क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास निवेश में तेज़ी आई है। 
    • इस कार्यक्रम से जैव प्रौद्योगिकी और रासायनिक प्रसंस्करण उद्योगों में वृद्धि को बढ़ावा मिला है तथा नए द्वितीय पीढ़ी के इथेनॉल संयंत्रों की स्थापना की गई है। 
    • अनाज आधारित भट्टियों के विकास से एक नया औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित हुआ है, जिससे रोज़गार और तकनीकी उन्नति उत्पन्न हुई है।
    • सेकंड जनरेशन के इथेनॉल उत्पादन के लिये चावल के भूसे और मकई के भुट्टों के प्रयोग को हाल ही में दी गई मंज़ूरी से पराली दहन की समस्या का समाधान हो गया है।
  • सामरिक भू-राजनीतिक स्थिति: भारत का इथेनॉल कार्यक्रम वैश्विक जलवायु वार्ता में इसकी स्थिति को सुदृढ़ करता है और ब्राज़ील तथा अन्य जैव ईंधन उत्पादक देशों के साथ सहयोग को बढ़ाता है। 
    • हाल ही में हस्ताक्षरित  वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन, 2023 में प्रौद्योगिकी अंतरण और विशेषज्ञता साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। 
    • यह कार्यक्रम सतत् विकास, हरित निवेश और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को आकर्षित करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
    • जैव ईंधन अंगीकरण में भारत का नेतृत्व इसे ऊर्जा संक्रमण में विकासशील देशों के लिये एक आदर्श के रूप में स्थापित करता है।
  • बाज़ार विकास और मूल्य स्थिरता: गारंटीकृत इथेनॉल बाज़ार की स्थापना ने चीनी क्षेत्र में मूल्य स्थिरता उत्पन्न की है, जो ऐतिहासिक रूप से अस्थिरता के लिये जाना जाता है।
    • इस कार्यक्रम ने कृषि उपज के लिये एक पूर्वानुमानित मांग वक्र तैयार किया है, जिससे बेहतर फसल नियोजन में मदद मिली है।
    • निश्चित मूल्य निर्धारण प्रणाली, हालाँकि ब्राज़ील के मॉडल से भिन्न है, लेकिन यह क्षेत्र में निवेश के लिये निश्चितता प्रदान करती है।

भारत के लिये इथेनॉल सम्मिश्रण से जुड़े प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • खाद्य सुरक्षा बनाम ईंधन उत्पादन संघर्ष: सरकार ने हाल ही में नवंबर 2024 से शुरू होने वाले इथेनॉल उत्पादन के लिये शर्करा के प्रयोग पर लगी सीमा हटा दी है। 
    • दिसंबर 2023 में गन्ने के रस को इथेनॉल में परिणत करने पर रोक लगाने वाला सरकारी निर्देश इस अनिश्चित संतुलन को उजागर करता है।
    • देश की निवल शर्करा खपत सत्र 2024-25 सत्र में अभूतपूर्व 30 मिलियन टन तक पहुँच सकती है और इथेनॉल की ओर अधिक रुझान की उम्मीद है।
    • यह खाद्य-ईंधन संघर्ष निम्न मानसून वाले वर्षों में और अधिक गहन हो जाता है, जिससे कार्यक्रम की स्थिरता पर सवाल उठते हैं।
  • जल संसाधन पर दबाव: गन्ना, जो प्राथमिक इथेनॉल फीडस्टॉक है, को उत्पादित शर्करा के प्रति किलोग्राम के लिये लगभग 2,500 लीटर जल की आवश्यकता होती है। 
    • इथेनॉल के बढ़ते उत्पादन के कारण महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में भूजल स्तर में गंभीर कमी आई है। 
    • हाल के अध्ययनों से पता चला है कि भारत में इथेनॉल उत्पादन के लिये लाइफ साईकल वाटर फूटप्रिंट प्रति लीटर इथेनॉल में 230-7150 लीटर जल होता है, जो अवशिष्ट और प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है, जिससे जल आपूर्ति पर और अधिक बोझ पड़ता है।
  • आर्थिक व्यवहार्यता और मूल्य तंत्र: ब्राज़ील के बाज़ार-संचालित मॉडल के विपरीत, इथेनॉल के लिये भारत का प्रशासित मूल्य निर्धारण तंत्र कृत्रिम अर्थशास्त्र का निर्माण करता है। 
    • हाल ही में खरीद मूल्य में ₹43-59 से ₹49-66 प्रति लीटर (वित्त वर्ष 2019-वित्त वर्ष 2023 के दौरान) की वृद्धि से OMC की वित्तीय स्थिति पर दबाव पड़ा है। 
    • विभिन्न फीडस्टॉक्स (गन्ने का रस, B-हेवी गुड़, अनाज) के लिये अलग-अलग मूल्य निर्धारण से बाज़ार में विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। 
  • वैकल्पिक खाद्य उद्योगों पर प्रभाव: मक्के को इथेनॉल में रूपांतरित करने से पोल्ट्री और पशु आहार क्षेत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ा है, जिससे कीमतों में 20% की वृद्धि हुई है।
    • पोल्ट्री उद्योग की ओर से शुल्क मुक्त मक्का आयात की हालिया मांग, आपूर्ति शृंखला में व्यवधान को उजागर करती है। 
    • मक्का को कच्चे माल के रूप में उपयोग करने वाले स्टार्च उद्योग ने फीडस्टॉक की कमी के कारण उत्पादन में कटौती की सूचना दी है।
    •  प्रतिवर्ष मक्का के अनुमानित विचलन से शुद्ध मक्का निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को खतरा उत्पन्न हो गया है।
      • भारत आमतौर पर सालाना 2 से 4 मिलियन मीट्रिक टन मक्का निर्यात करता है। हालाँकि वर्ष 2024 में निर्यात घटकर केवल 450,000 टन रह जाने का अनुमान है, जबकि देश मुख्य रूप से म्याँमार और यूक्रेन से रिकॉर्ड 1 मिलियन टन मक्का आयात करने वाला है।
  • पर्यावरणीय नुकसान: हालाँकि इथेनॉल वाहन उत्सर्जन को कम करता है, लेकिन संपूर्ण जीवनचक्र मूल्यांकन जटिल पर्यावरणीय प्रभाव दर्शाता है। 
    • हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि शून्य तरल निर्वहन मानदंडों के बावजूद डिस्टिलरी निर्वहन से जल प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
    • भूमि-उपयोग परिवर्तन और परिवहन सहित इथेनॉल उत्पादन का कार्बन फुटप्रिंट, उत्सर्जन लाभ को आंशिक रूप से संतुलित करता है।
      • हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि इथेनॉल उत्पादन के जीवन चक्र में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 123.10 किग्रा CO2-eq/किलोग्राम निर्जल इथेनॉल पाया गया।
      • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का मुख्य स्रोत प्रक्रिया चरण में प्रयुक्त विद्युत ऊर्जा (97.83%) थी।
    • इसके अलावा, गन्ने की गहन कृषि से मृदा क्षरण होता है और कृषि क्षेत्रों में जैवविविधता प्रभावित होती है।
  • तकनीकी और वाहन अनुकूलता: मौजूदा वाहन बेड़े को E20 से परे उच्च इथेनॉल सम्मिश्रण के लिये महत्त्वपूर्ण संशोधनों की आवश्यकता है। 
    • वर्तमान वाहन जो विशेष रूप से E20 ईंधन के लिये डिज़ाइन नहीं किये गए हैं, उन्हें इंजन घटकों के बढ़ते क्षरण, इथेनॉल की संक्षारक प्रकृति के कारण रबड़ सील और गैसकेट को संभावित नुकसान, ईंधन दक्षता में कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
    • इथेनॉल-मिश्रित ईंधन की कम ऊर्जा सामग्री को देखते हुए उपभोक्ता स्वीकृति अनिश्चित बनी हुई है।

इथेनॉल सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • फीडस्टॉक स्रोतों का विविधीकरण: कृषि अवशेषों और अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग करके दूसरी पीढ़ी (2G) इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक नीति लागू करने की आवश्यकता है।
    • पंजाब में पैलेटाइजेशन इकाइयों के समान, ब्लॉक स्तर पर स्वचालित बेलिंग और भंडारण सुविधाओं के साथ फसल अवशेषों के लिये संग्रह केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। 
    • फसल अवशिष्ट संग्रहण के लिये किसानों को सीधे भुगतान करके प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • 2G इथेनॉल संयंत्रों की स्थापना के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी बनाए जाने चाहिये, जिसका वर्तमान सफल उदाहरण पानीपत का धान पराली संयंत्र है जो प्रतिदिन 100 किलोलीटर इथेनॉल का उत्पादन करता है। 
    • भंडारण और बुनियादी अवसंरचना का विकास: उच्च प्राथमिकता वाले गलियारों से शुरू करते हुए प्रमुख उत्पादन समूहों को उपभोग केंद्रों से जोड़ने के लिये एक समर्पित इथेनॉल पाइपलाइन नेटवर्क बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • संक्षारणरोधी प्रौद्योगिकियों और सुरक्षा उपायों सहित आधुनिक सुविधाओं के साथ क्षेत्रीय इथेनॉल भंडारण केंद्रों की स्थापना की जानी चाहिये।  
    • इथेनॉल परिवहन के लिये विशेष रेलवे वैगन विकसित की जानी चाहिये। मौसमी आपूर्ति में उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने के लिये आपातकालीन भंडारण सुविधाएँ बनाए जाने चाहिये।
  • प्रौद्योगिकी और अनुसंधान सहायता: कृषि विश्वविद्यालयों में समर्पित इथेनॉल अनुसंधान केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है, जो विशेष रूप से इथेनॉल उत्पादन के लिये उच्च उपज, अनावृष्टि प्रतिरोधी फसलों के विकास पर केंद्रित होंगे। 
    • भारतीय फीडस्टॉक किस्मों और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल एंज़ाइम तथा किण्वन प्रौद्योगिकियों के विकास में निवेश किया जाना चाहिये।
    • अनुसंधान अनुदान और कर प्रोत्साहन के माध्यम से लागत प्रभावी फ्लेक्स-ईंधन प्रौद्योगिकियों के विकास में ऑटोमोबाइल निर्माताओं को सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • मूल्य तंत्र सुधार: अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों और घरेलू फीडस्टॉक लागत से जुड़ी एक गतिशील मूल्य निर्धारण प्रणाली को लागू किया जाना चाहिये।
    • उत्पादक व्यवहार्यता और उपभोक्ता सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिये तिमाही आधार पर समीक्षा की जाने वाली पारदर्शी फार्मूला-आधारित मूल्य निर्धारण प्रणाली बनाए जाने चाहिये।
    • अस्थिरता को प्रबंधित करने के लिये मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की जाए सकती है, जिसका वित्तपोषण पेट्रोलियम उत्पादों पर एक छोटे से उपकर के माध्यम से किया जाएगा। 
  • आपूर्ति शृंखला अनुकूलन: डिस्टिलरी से ब्लेंडिंग केंद्रों तक इथेनॉल के आवागमन की रियल टाइम ट्रैकिंग के लिये एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाए जाने की आवश्यकता है।
    • परिवहन लागत को अनुकूलित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये क्षेत्रीय भंडारण तथा वितरण केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये।
    • मांग पूर्वानुमान और इन्वेंट्री प्रबंधन के लिये AI/ML का प्रयोग करके स्मार्ट लॉजिस्टिक्स समाधान लागू किये जाने चाहिये।
    • निर्यात क्षमता के लिये बंदरगाहों पर विशेष इथेनॉल हैंडलिंग सुविधाएँ विकसित की जानी चाहिये। आपूर्ति में व्यवधान के लिये आपातकालीन प्रतिक्रिया तंत्र बनाए जाने चाहिये।
  • नियामक फ्रेमवर्क में वृद्धि: एक समर्पित नियामक प्राधिकरण के तहत इथेनॉल परियोजनाओं के लिये एकल खिड़की अनुमोदन प्रणाली स्थापित की जाएगी।
    • सख्त अनुपालन मानकों को बनाए रखते हुए पर्यावरण मंज़ूरी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये। 
    • देश भर में इथेनॉल उत्पादन और सम्मिश्रण के लिये मानकीकृत गुणवत्ता नियंत्रण प्रोटोकॉल बनाए जाने चाहिये। 
  • संधारणीय कृषि पद्धतियाँ: फसल चक्र और अंतर-फसल प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। जो खाद्य सुरक्षा से समझौता किये बिना इथेनॉल फीडस्टॉक उत्पादन का समर्थन करते हैं। 
    • जल उपयोग दक्षता में सुधार के लिये गन्ने की खेती के लिये सटीक कृषि तकनीकों को लागू किया जाना चाहिये।
    • इथेनॉल फीडस्टॉक फसलों के लिये विशेष रूप से डिज़ाइन की गई सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों का विकास किया जाना चाहिये।
    • सतत् फीडस्टॉक उत्पादन पर केंद्रित किसान उत्पादक संगठन बनाए जाने चाहिये। 
  • क्षमता निर्माण और कौशल विकास: इथेनॉल संयंत्र संचालकों और प्रबंधन कर्मियों के लिये विशेष प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। 
    • इथेनॉल हैंडलिंग और सुरक्षा प्रक्रियाओं के लिये प्रमाणन कार्यक्रम बनाए जाने चाहिये।
    • कृषि महाविद्यालयों में जैव ईंधन फीडस्टॉक प्रबंधन पर केंद्रित व्यावसायिक पाठ्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: प्रौद्योगिकी अंतरण तथा सर्वोत्तम प्रथाओं के लिये ब्राज़ील और अमेरिका जैसे देशों के साथ तकनीकी सहयोग को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। 
    • उन्नत जैव ईंधन प्रौद्योगिकियों पर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम विकसित किये जाने चाहिये।
    • फ्लेक्स-फ्यूल वाहन प्रौद्योगिकी पर ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये ब्राज़ील के साथ द्विपक्षीय समझौते किये जाने चाहिये।
      • जैव ईंधन ब्राज़ील की राष्ट्रीय ऊर्जा योजना का हिस्सा है जो पूरे देश में ऊर्जा आपूर्ति और मांग की दिशा निर्धारित करने में मदद करता है। भारत इससे बहुत कुछ सीख सकता है। 
  • पर्यावरण निगरानी और प्रबंधन: इथेनॉल उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभावों के लिये रियल टाई मॉनिटरिंग सिस्टम लागू करने की आवश्यकता है। 
    • प्रोत्साहन तंत्र के साथ आसवनशालाओं के लिये जल पुनर्चक्रण और शून्य तरल निर्वहन प्रणाली विकसित किये जाने चाहिये।
    • स्थिरता मानदंड को पूरा करने वाले इथेनॉल उत्पादकों के लिये कार्बन क्रेडिट तंत्र स्थापित  किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत का इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम आशाजनक होने के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक व्यवहार्यता के बीच संतुलन बनाने में चुनौतियों का सामना कर रहा है। कार्यक्रम की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिये फीडस्टॉक विविधीकरण, तकनीकी प्रगति और नीति सुधारों को शामिल करने वाला एक व्यापक उपागम आवश्यक है। एक संधारणीय और ऊर्जा-सुरक्षित भविष्य की ओर भारत की यात्रा एक अच्छी तरह से संतुलित इथेनॉल सम्मिश्रण रणनीति पर निर्भर करती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न: भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण लक्ष्यों में इथेनॉल सम्मिश्रण के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इथेनॉल सम्मिश्रण लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किसकी कृषि इथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जेट्रोफा
(b) मक्का
(c) पोंगामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत की जैव-ईंधन की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किनका उपयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता है? (2020) 

  1. कसावा
  2. क्षतिग्रस्त गेहूँ के दाने
  3. मूँगफली के बीज
  4. कुलथी (Horse gram)
  5. सड़ा आलू
  6. चुकंदर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 5 और 6
(b) केवल 1, 3, 4 और 6
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6

उत्तर: (a)