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एडिटोरियल

  • 14 Jun, 2024
  • 22 min read
आंतरिक सुरक्षा

आतंकवाद का उन्मूलन

यह एडिटोरियल 12/06/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Terror attack in Reasi underscores fragility of a hard-won peace in J&K” लेख पर आधारित है। इसमें रियासी में हाल ही में हुए आतंकवादी हमले के परिदृश्य में जारी सुरक्षा चुनौतियों को रेखांकित करते हुए जम्मू-कश्मीर में भंगुर शांति के विषय में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम (UAPA) 1967, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA) अधिनियम 2008, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद, राजनयिक एजेंटों सहित अंतर्राष्ट्रीय रूप से संरक्षित व्यक्तियों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम और दंड पर कन्वेंशन (1973), बंधक बनाने के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (1979), आतंकी वित्तपोषण के दमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (1999), वामपंथी उग्रवाद, वित्तीय कार्रवाई कार्यबल। 

मेन्स के लिये:

आतंकवाद के विभिन्न उभरते रूप, भारत के समक्ष आतंकवाद से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

आतंकवाद का साया पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। नागरिकों पर समन्वित हमलों से लेकर लक्षित हत्याओं तक, आतंकवादी समूह अपने राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये हिंसा और भय का इस्तेमाल करते रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आतंकवाद का मुक़ाबला करने की दिशा में प्रगति तो की है, लेकिन इसकी पहुँच और रणनीति अभी भी अस्थिर है, जो निरंतर सतर्कता एवं अनुकूलन की आवश्यकता रखता है।

आतंकवाद से संघर्ष का लंबा इतिहास रखने वाले भारत को विशिष्ट चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर के अशांत क्षेत्र में यह विशेष रूप से प्रकट है, जहाँ रियासी ज़िले में तीर्थयात्रियों पर हाल ही में हुए हमले जैसी घटनाएँ शांति की भंगुरता को उज़ागर करती हैं। पूर्व में आतंकवाद से कम प्रभावित रहे रियासी जैसे ज़िले में ऐसी घटना का सामने आना क्षेत्र में शांति की भंगुरता को उज़ागर करता है।

आतंकवाद के विरुद्ध भारत के संघर्ष को बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। घुसपैठ के प्रयासों को रोकने और आतंकी नेटवर्कों को ध्वस्त करने के लिये कठोर सुरक्षा उपाय अत्यंत आवश्यक हैं। केवल एक व्यापक रणनीति के माध्यम से ही, जिसमें सुदृढ़ सुरक्षा उपायों के साथ अंतर्निहित शिकायतों को दूर करने के प्रयास शामिल हों, भारत अपने नागरिकों के लिये स्थायी शांति एवं सुरक्षा की प्राप्ति की उम्मीद कर सकता है।

भारत में आतंकवाद से संबंधित ढाँचा

  • परिचय: आतंकवाद हिंसा और धमकी का, विशेष रूप से नागरिकों के विरुद्ध, मंशापूर्ण एवं अवैध उपयोग है, जिसका उद्देश्य भय पैदा करना और राजनीतिक, धार्मिक या वैचारिक लक्ष्य प्राप्त करना है।
    • यह भय, व्यवधान और अनिश्चितता का माहौल बनाकर सरकारों या समाजों को प्रभावित करने का ध्येय रखता है।
    • भारत आतंकवाद के विरुद्ध ‘शून्य सहनशीलता’ की नीति के साथ कठोर रुख रखता है।
    • हालाँकि आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, जिससे विशिष्ट गतिविधियों को आतंकवादी कृत्य के रूप में वर्गीकृत करना कठिन हो जाता है।
      • यह अस्पष्टता आतंकवादियों को लाभ पहुँचाती है और कुछ देशों को चुप रहने तथा वैश्विक संस्थाओं में किसी कार्रवाई पर वीटो लगाने में सक्षम बनाती है।
  • घरेलू कानून:
  • संस्थागत ढाँचा:
    • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS): राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की देखरेख एवं समन्वय करता है जिसमें आतंकवाद-रोधी प्रयास भी शामिल हैं। 
    • गृह मंत्रालय (MHA): घरेलू स्तर पर आतंकवाद विरोधी अभियानों और खुफिया सूचना संग्रहण का नेतृत्व करता है।
    • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA): यह आतंकवाद-संबंधी बड़े मामलों की जाँच और अभियोजन में भूमिका निभाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समझौते: भारत आतंकवाद-रोधी विभिन्न संयुक्त राष्ट्र अभिसमयों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, जिनमें शामिल हैं:
    • राजनयिक एजेंटों सहित अंतर्राष्ट्रीय रूप से संरक्षित व्यक्तियों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम और दंड पर अभिसमय (Convention on the Prevention and Punishment of Offences against Internationally Protected Persons, including Diplomatic Agents), 1973
    • बंधकों बनाने के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (International Convention against the Taking of Hostages), 1979
    • आतंकी वित्तपोषण के दमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (International Convention for the Suppression of the Financing of Terrorism), 1999

आतंकवाद के विभिन्न उभरते रूप कौन-से हैं?

  • ‘लोन वुल्फ’ हमले (Lone Wolf Attacks): ऐसे कट्टरपंथियों का उभार हुआ है जो किसी बड़े समूह का अंग हुए बिना स्वयं के स्तर पर हमले कर रहे हैं, जो खुफिया एजेंसियों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गई है।
    • इन ‘लोन वुल्फ’ आतंकवादियों का पता लगाना कठिन होता है और वे बिना किसी चेतावनी के भी हमला कर सकते हैं।
  • जैव आतंकवाद संबंधी जोखिम: कोविड-19 महामारी ने जैव आतंकी हमले की संभावना की ओर ध्यान आकृष्ट किया है, जहाँ बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा करने के लिये वायरस, बैक्टीरिया या अन्य जैविक विषाक्त पदार्थों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • विनाशकारी मंशा रखने वाले अराजक तत्त्वों द्वारा ऐसे जैव एजेंटों की अवैध खरीद एवं तैनाती एक बड़ा खतरा बनी हुई है, जिस पर निरंतर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
  • मानवरहित यान/ड्रोन संबंधी खतरे: उन्नत लेकिन सस्ती वाणिज्यिक ड्रोन प्रौद्योगिकियों के तीव्र प्रसार ने एक नए खतरे का द्वार खोल दिया है, जहाँ आतंकवादी खुफिया सूचना संग्रहण, लक्षित हमलों या विस्फोटकों/रासायनिक प्रसरण उपकरणों के वितरण प्लेटफॉर्म के रूप में इनका उपयोग कर सकते हैं। इससे एक नई सुरक्षा चुनौती उत्पन्न हुई है।
    • उदाहरण के लिये, भारत ने जून 2021 में जम्मू में वायु सेना स्टेशन पर एक गंभीर ड्रोन हमले का सामना किया।
      • भारत-पाकिस्तान सीमा से 14 किमी दूर स्थित इस एयरबेस पर लो-फ्लाइंग ड्रोनों द्वारा हमला किया गया, जहाँ एयरबेस पर दो इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IEDs) गिराए गए।
  • आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकाने: अफ्रीका और मध्य-पूर्व के कुछ भू-भागों में लंबे समय से संघर्षग्रस्त एवं सीमित शासन वाले संवेदनशील क्षेत्र आतंकवादी समूहों को सुरक्षित आश्रय पाने, प्रशिक्षण अवसंरचनाएँ स्थापित करने और सीमा-पार हिंसा फैलाने के लिये अनुकूल आधार प्रदान करते हैं, जिससे ये अस्थिर क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के लिये सहायक बन जाते हैं।
  • आतंकवाद-अपराध गठजोड़: आतंकवादी समूहों और अंतर्राष्ट्रीय संगठित आपराधिक सिंडिकेट के बीच गहराता अभिसरण उनके अवैध वित्तीय संसाधनों (क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से), वितरण नेटवर्क (जैसे पंजाब में नशीली दवाओं का आपूर्ति तंत्र) और हथियारों की खरीद एवं मानव तस्करी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता के साथ संयुक्त होकर एक शक्तिशाली खतरा गुणक के रूप में उभरा है जो निरंतर आतंकवाद विरोधी अभियानों की मांग रखता है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों द्वारा प्रेरित आतंकवाद: आतंकवादी समूह भर्ती, कट्टरपंथ के प्रसार, अभियान संबंधी योजना-निर्माण और हमले के निष्पादन के सभी चरणों में अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिये एन्क्रिप्टेड संचार एवं डार्क वेब जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं।
    • आतंकवाद-रोधी बलों के लिये इस प्रौद्योगिकीय वक्र से आगे बने रहना एक सतत् चुनौती बनी हुई है।

भारत के समक्ष विद्यमान आतंकवाद संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ 

  • सीमा-पार आतंकवाद: भारत अपने पड़ोसी देशों, विशेषकर पाकिस्तान की ओर से, सीमा-पार आतंकवाद की समस्या से जूझ रहा है।
    • हाल के घटनाक्रमों में वर्ष 2019 का पुलवामा हमला शामिल है, जहाँ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह के एक आत्मघाती हमलावर ने भारतीय सुरक्षाकर्मियों के काफिले को निशाना बनाया था।
    • अभी हाल में रियासी (जून 2024) में तीर्थयात्रियों पर हमले जैसी घटनाओं से उज़ागर होता है कि राजौरी और पुंछ जैसे पारंपरिक रूप से आतंकवाद प्रभावित ज़िलों में सुरक्षा दबाव बढ़ने से अब आतंकवादी परिधीय क्षेत्रों की ओर आगे बढ़ सकते हैं।
  • वामपंथी उग्रवाद (LWE): वामपंथी उग्रवाद आंदोलन, जिसे नक्सलवादी विद्रोह के रूप में भी जाना जाता है, भारत के लिये एक सतत् चुनौती रहा है।
    • माओवादी विद्रोही समूह छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे कई राज्यों में सक्रिय हैं, जो हिंसा, जबरन वसूली और विकास परियोजनाओं में बाधा डालने में संलिप्त हैं।
    • वर्ष 2010 की तुलना में वर्ष 2022 में वामपंथी उग्रवाद से संबंधित हिंसक घटनाओं की संख्या में 76% की कमी आई है।
    • हालाँकि यह समस्या अभी भी बनी हुई है, जिसकी पुष्टि हाल ही में छत्तीसगढ़ के नारायणपुर ज़िले में हुई घटना से होती है।
  • अलगाववादी आंदोलन और आतंकवाद: भारत को पूर्वोत्तर और पंजाब सहित विभिन्न क्षेत्रों में अलगाववादी आंदोलनों और आतंकवाद का सामना करना पड़ा है।
    • जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद का मुद्दा विशेष रूप से जटिल रहा है, जहाँ लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह इसे हवा दे रहे हैं।
  • कट्टरपंथ का प्रसार और ऑनलाइन प्रोपेगेंडा: कट्टरपंथ का उभार (विशेष रूप से युवाओं में) और ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से चरमपंथी विचारधाराओं का प्रसार एक गंभीर चुनौती है।
    • भारत में युवाओं को ‘हनी ट्रैपिंग’ (जैसे हाल ही में पूर्व ब्रह्मोस इंजीनियर को लुभाने का मामला) जैसे तरीकों से कट्टरपंथी बनाये जाने और घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवादी संगठनों द्वारा भर्ती किये जाने के कई उदाहरण देखे गए हैं।
      • फरवरी 2024 में आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिये युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के मामले में NIA ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया था।
  • साइबर आतंकवाद: डिजिटल अवसंरचना पर बढ़ती निर्भरता और आतंकवादी समूहों या राज्य प्रायोजित अभिकर्ताओं द्वारा साइबर हमलों की संभावना भारत के लिये एक उभरती हुई चिंता है।
    • साइबर आतंकवाद महत्त्वपूर्ण अवसंरचना, वित्तीय प्रणालियों और संवेदनशील डेटा को निशाना बना सकता है, जिससे महत्त्वपूर्ण व्यवधान एवं आर्थिक क्षति की स्थिति बन सकती है।
    • हाल के एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की एक कंपनी ने लगभग 100 गीगाबाइट भारतीय आव्रजन डेटा का उल्लंघन किया है।
  • पाकिस्तान का FATF के ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर आना: चूँकि पाकिस्तान को FATF के ‘ग्रे लिस्ट’ से बाहर कर दिया गया है, आतंकवादी समूहों के विरुद्ध पाकिस्तान द्वारा उपयुक्त कार्रवाई के अभाव का भारतीय दावा अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उतने महत्त्व से नहीं देखा जाएगा।
    • वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की सूची में पाकिस्तान को शामिल किये जाने से भारत की चिंताओं की एक प्रकार से पुष्टि हुई थी।
    • इसके अलावा, इस मामले में ‘चाइना फैक्टर’ भी सामने आता है, जो हाफिज सईद को आतंकवादी घोषित करने की भारत की मांग को चीन द्वारा अवरुद्ध करने से उज़ागर होता है।

आतंकवाद के खतरे को रोकने के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?

  • केवल दंड पर नहीं, बल्कि पुनर्वास पर भी ध्यान केंद्रित करना: कट्टरपंथ के प्रारंभिक चरण में पाए गए व्यक्तियों के लिये कट्टरपंथ मुक्ति कार्यक्रम विकसित किये जाएँ।
    • इन कार्यक्रमों को कट्टरपंथ के मूल कारणों को संबोधित करना चाहिये और प्रतिभागियों को पुनर्वास एवं समाज में पुनः एकीकरण के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये।
  • राष्ट्रीय आतंकवाद-रोधी डेटाबेस की स्थापना करना: एक ऐसा केंद्रीकृत एवं सुरक्षित डाटाबेस विकसित किया जाए जो कानून प्रवर्तन, खुफिया एजेंसियों और वित्तीय संस्थानों सहित विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त खुफिया सूचना को एकीकृत करता हो।
    • पैटर्न, कनेक्शन एवं संभावित खतरों की पहचान करने के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग तकनीकों का लाभ उठाया जाए, ताकि अग्रसक्रिय कार्रवाई संभव हो सके।
  • भौतिक सुरक्षा उपायों में वृद्धि करना: महत्त्वपूर्ण अवसंरचना, सार्वजनिक स्थानों और संभावित उच्च जोखिमयुक्त लक्ष्यों के लिये भौतिक सुरक्षा उपायों में सुधार किया जाए, जिसमें निगरानी प्रणाली, प्रवेश नियंत्रण और परिधि सुरक्षा शामिल है।
    • संभावित कमज़ोरियों की पहचान करने और उन्हें दूर करने के लिये नियमित सुरक्षा ऑडिट एवं भेद्यता आकलन का आयोजन किया जाए।
    • आतंकवादी हमलों की स्थिति में प्रबल संकट प्रबंधन प्रोटोकॉल और बचाव-निकासी योजनाओं (evacuation plans) को लागू किया जाए।
  • पुलिस के लिये ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस प्रशिक्षण: संभावित खतरों की पहचान करने और आतंकवादी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिये सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन मंचों पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का विश्लेषण करने हेतु ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) प्रौद्योगिकियों में पुलिस बलों को प्रशिक्षित किया जाए।
  • साइबर सुरक्षा और ऑनलाइन आतंकवाद-रोधी क्षमताओं को सुदृढ़ करना: महत्त्वपूर्ण अवसंरचना और ऑनलाइन प्रणालियों को आतंकवादी संगठनों के साइबर हमलों एवं डिजिटल जासूसी से बचाने के लिये उन्नत साइबर सुरक्षा उपायों के विकास में निवेश किया जाए।
  • सुरक्षा बलों के साथ ही समुदायों को भी सशक्त बनाना: समुदायों को, विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में, कट्टरपंथ के आरंभिक संकेतों और संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट करने के तरीके के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
    • चरमपंथी प्रभाव के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक शिकायतों का समाधान किया जाए। आशा की भावना पैदा करने और कट्टरपंथ को हतोत्साहित करने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा एवं आजीविका के अवसरों में सुधार लाया जाए।
      • जम्मू-कश्मीर में ‘हिमायत’ (Himayat) और ‘उम्मीद’ (UMEED) योजना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
      • युवाओं को नई दिशा प्रदान करने के साधन के रूप में कट्टरपंथ की संभावना वाले क्षेत्रों में ‘खेलो इंडिया सेंटर’ स्थापित किये जा सकते हैं।
      • आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों को मुख्यधारा में लाना और इस प्रकार उनके मन-मस्तिष्क को जीतना आवश्यक है। G20 अध्यक्षता के दौरान भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में संबंधित बैठक का आयोजन इसी दिशा में उठाया गया कदम था।
    • राष्ट्रीय सुरक्षा को साझा उत्तरदायित्व के रूप में बढ़ावा देने का यह उपयुक्त समय है। 
  • आतंक की वित्तीय जीवनरेखा को कमज़ोर करना: वित्तीय लेनदेन पर नज़र रखने और आतंकवाद के वित्तपोषण से जुड़े संदिग्ध पैटर्न की पहचान करने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विचार किया जा सकता है।
    • ब्लॉकचेन की पारदर्शिता और अपरिवर्तनीयता के कारण आतंकवादियों के लिये धन स्थानांतरित करना कठिन सिद्ध हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत के समक्ष विभिन्न उभरते आतंकवादी खतरों की चर्चा कीजिये। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर इन चुनौतियों के प्रभाव के शमन के लिये कौन-से उपाय कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)

(a) चीन
(b) जापान
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट के नियंत्रण के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधियन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)


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