लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 13 Dec, 2023
  • 15 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बदलते परिदृश्य के बीच भारत की विकास रणनीति

यह एडिटोरियल 10/12/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “Calibrating a strategy for India’s future growth” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक और घरेलू परिवेश के संदर्भ में भारत के आर्थिक विकास के समक्ष विद्यमान चुनौतियों एवं अवसरों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

SWIFT, वर्ष 2007-2008 का वैश्विक वित्तीय संकट, Brexit, वृद्धिशील पूंजी उत्पादन अनुपात (ICOR), हरित ग्रिड पहल (GGI), वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG), राजकोषीय घाटा

मेन्स के लिये:

वैश्विक आर्थिक स्थितियों में बदलाव, निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट के पीछे कारण, निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट का भारत पर प्रभाव, इन परिवर्तनों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपाय।

  • वर्ष 2023-24 में भारत की वृद्धि दर वर्तमान में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 7% अनुमानित है जबकि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक ने इसे 6.3% आँका है। अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करने वाले इन तमाम अनुमानों के बीच भारत के निर्यात में गिरावट का रुख चिंता का कारण बन सकता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) की रिपोर्ट के अनुसार, श्रम-प्रधान क्षेत्रों के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी पिछले 5 वर्षों से घट रही है। बदलती वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए भारत की भविष्य की विकास रणनीति को संतुलित करने की आवश्यकता है।

बदलती वैश्विक परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?

  • विवैश्वीकरण की प्रवृत्ति: रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़राइल-हमास संघर्ष जैसे जारी भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण वि-वैश्वीकरण (Deglobalization) की एक स्पष्ट वैश्विक प्रवृत्ति नज़र आती है। 
  • प्रतिबंधों का आरोपण: भू-राजनीतिक संघर्षों के परिणामस्वरूप कुछ देशों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं। इन प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप आपूर्ति शृंखलाएँ विघटित हुई हैं और अंतर्राष्ट्रीय निपटान (international settlements) में व्यवधान उत्पन्न हुआ है। स्विफ्ट (SWIFT) जैसी महत्त्वपूर्ण प्रणालियों तक सीमित पहुँच, जो चुनिंदा देशों के लिये ही उपलब्ध है, ने इन चुनौतियों को और बढ़ा दिया है।
  • विश्व की वास्तविक जीडीपी में गिरावट: विश्व की वास्तविक जीडीपी वृद्धि में गिरावट के परिणामस्वरूप वैश्विक निर्यात मांग में कमी आई है। यह प्रवृत्ति वैश्विक अर्थव्यवस्था में समग्र मंदी का प्रतिबिंब है, जो राजनीतिक अस्थिरता, व्यापार तनाव और उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव जैसे कई कारकों द्वारा प्रकट होता है।
  • अनिश्चितता और मूल्य अस्थिरता: आपूर्ति संबंधी अनिश्चितताओं और मूल्य अस्थिरता के कारण भारत सहित कई देश आयातित पेट्रोलियम पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं, जिससे वैश्विक मांग में और कमी आई है।
  • निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट: निर्यात आधारित विकास रणनीति (Export led Growth strategy) एक आर्थिक विकास दृष्टिकोण है जो विदेशी बाज़ारों में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात पर निर्भर करती है। इस रणनीति को हाल के वर्षों में, विशेष रूप से वर्ष 2007-2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और 2020-2021 की कोविड-19 महामारी के बाद कई चुनौतियों एवं सीमाओं का सामना करना पड़ा है।
    • उदाहरण के लिये, भारत के मामले में वर्ष 2003-04 से 2008-09 के दौरान निर्यात में सकल घरेलू उत्पाद की हिस्सेदारी में तीव्र वृद्धि देखी गई। वर्ष 2013-14 में यह 25% के शीर्ष स्तर तक पहुँच गया। वर्ष 2022-23 में यह 22.8% थी, जो वर्ष 2019-20 और 2020-21 में गिरकर 18.7% के निम्न स्तर पर आ गई।

निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट के पीछे कारण:

  • वैश्विक मांग में मंदी: संकट और महामारी ने कई विकसित एवं विकासशील देशों से निर्यात की प्रभावी मांग को कम कर दिया है, विशेष रूप से पर्यटन, विनिर्माण और कमोडिटी जैसे क्षेत्रों में।
    • इससे कई निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्थाओं के निर्यात राजस्व एवं विकास संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
  • संरक्षणवाद का उदय: संकट और महामारी ने प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के बीच संरक्षणवादी उपायों और व्यापार तनाव की एक लहर भी पैदा कर दी है, जैसे कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, ब्रेग्जिट (Brexit) और आपूर्ति शृंखलाओं का क्षेत्रीयकरण।
    • इनसे निर्यातकों के लिये अनिश्चितताएँ एवं बाधाएँ उत्पन्न हुई हैं और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली कमज़ोर हुई है।
  • वेतन कटौती की सीमाएँ: कई निर्यात-आधारित विकास रणनीतियों ने प्रतिस्पर्द्धात्मकता एवं लाभप्रदता बनाए रखने के लिये श्रमिकों के वेतन एवं आय को दमित करने पर भरोसा किया है। लेकिन इसके परिणामस्वरूप असमानता, सामाजिक असंतोष और घरेलू मांग की बाधाएँ बढ़ी हैं।
    • इसके अलावा, निम्न वेतन वाले देशों या स्वचालन एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो गया है।

निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट का भारत पर क्या प्रभाव पड़ा है?

  • निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट का भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यह देश के आर्थिक प्रदर्शन, रोज़गार सृजन और वैश्विक एकीकरण को प्रभावित करता है।
  • कमज़ोर वैश्विक मांग, बढ़ता संरक्षणवाद और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में गिरावट जैसे विभिन्न कारकों ने हाल के वर्षों में भारत के निर्यात को मंद कर दिया है।
    • इससे भारत की जीडीपी वृद्धि में गिरावट आई है क्योंकि देश की जीडीपी में निर्यात की हिस्सेदारी लगभग 19% है।
  • इसने विशेष रूप से परिधान, रत्न एवं आभूषण और फार्मास्यूटिकल्स जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों में रोज़गार सृजन को सीमित कर दिया है।

भारत को क्या उपाय करने चाहिये?

  • घरेलू बचत को बढ़ावा देना: बचत और निवेश को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को लागू करने के माध्यम से घरेलू क्षेत्र की बचत में गिरावट, विशेष रूप से वित्तीय परिसंपत्तियों में गिरावट, को संबोधित किया जाना चाहिये। इसके अलावा, इस गिरावट में योगदान देने वाले कारकों का विश्लेषण करना।
    • उत्तर-कोविड रुझानों की निगरानी करना: अस्थायी प्रतिक्रियाओं और संभावित निरंतर परिवर्तनों के बीच अंतर करने के लिये घरेलू बचत में उत्तर-कोविड रुझानों की लगातार निगरानी एवं विश्लेषण करें। यदि गिरावट जारी रहती है तो रुझान को पलटने के उपाय लागू करना।
    • घरेलू क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करना: परिवारों को अपनी बचत को उत्पादक निवेश में लगाने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु वित्तीय साक्षरता एवं जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए। सरकार और कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये वित्तपोषण का एक स्थिर स्रोत सुनिश्चित करने के लिये वित्तीय परिसंपत्तियों में निवेश के लिये प्रोत्साहनों (incentives) का विकास किया जाए।
  •  निवेश दक्षता को अनुकूलित/इष्टतम करना: नियमित रूप से वृद्धिशील पूंजी - उत्पादन अनुपात (Incremental Capital-Output Ratio - ICOR) का आकलन करें और निवेश की दक्षता बढ़ाने के लिये इसे कम करने की दिशा में कार्य करें। यदि IOCR का स्तर निम्न है तो इससे उच्च प्राप्य वृद्धि (higher achievable growth) की स्थिति बन सकती है, इसलिये संसाधन उपयोग की दक्षता में सुधार के प्रयास किये जाने चाहिये।
  • रोज़गार संबंधी चुनौतियों को संबोधित करना: श्रम-बचत नवाचारों (labor-saving innovations) के बीच अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभ और रोज़गार सृजन की संभावित चुनौती की पहचान की जाए। गैर-कृषि और प्रौद्योगिकी-गहन क्षेत्रों के लिये कार्यबल तैयार करने हेतु प्रशिक्षण एवं कौशल कार्यक्रमों के लिये संसाधन आवंटित करें।
  • गैर-कृषि विकास को बढ़ावा देना: कृषि से निर्मुक्त श्रम को अवशोषित करने के लिये गैर-कृषि विकास को बढ़ावा देने पर ध्यान दें। ऐसी नीतियाँ लागू करें जो समग्र आर्थिक विकास में योगदान देने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं और जेनरेटिव AI सहित उत्पादकता बढ़ाने वाली अन्य प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण की सुविधा प्रदान करना।
  • जलवायु-अनुकूल विकास: सेवा क्षेत्र, जो अपेक्षाकृत जलवायु-अनुकूल क्षेत्र है, पर बल देकर आर्थिक विकास को पर्यावरणीय संवहनीयता के साथ संरेखित करें। स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये ग्रीन ग्रिड इनिशिएटिव (Green Grids Initiative- GGI) एवं वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड (One Sun One World One Grid- OSOWOG) जैसी पहलों को जारी रखें और इन्हें संवर्द्धित करना।

राजकोषीय उत्तरदायित्व: सतत् आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये राजकोषीय उत्तरदायित्व लक्ष्यों का पालन करना। उन नीतियों को प्राथमिकता देना जो संयुक्त राजकोषीय घाटे और ऋण-जीडीपी अनुपात को क्रमशः 6% और 60% तक कम कर सकें। इससे ब्याज भुगतान को प्रबंधित करने, सरकारी बचत को कम करने तथा अर्थव्यवस्था की समग्र बचत दर को बढ़ाने में मदद मिलेगी।

निष्कर्ष:

भारत एक बदलते वैश्विक परिदृश्य का सामना कर रहा है जो वैश्वीकरण एवं आर्थिक अनिश्चितताओं जैसे कारकों से चिह्नित हो रहा है। निर्यात-आधारित विकास मॉडल की चुनौतियों को हल करने की आवश्यकता स्पष्ट है। भारत को आगे बढ़ने के लिये घरेलू प्रत्यास्थता, नवाचार और संवहनीय अभ्यासों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। व्यापार का विविधिकरण, शिक्षा में निवेश और राजकोषीय उत्तरदायित्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारत अनुकूलनशीलता और रणनीतिक सुधारों को अपनाकर न केवल वर्तमान चुनौतियों से निपट सकता है बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रत्यास्थी एवं नवोन्मेषी शक्ति के रूप में भी उभर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की अर्थव्यवस्था और रोज़गार परिदृश्य पर निर्यात आधारित विकास रणनीति में गिरावट के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने और सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये भारत के लिये आवश्यक रणनीतिक उपायों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2