नवीन उपभोग सर्वेक्षण का पुनर्मापन
यह एडिटोरियल 12/03/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Moving to a Better Count” लेख पर आधारित है। इसमें सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा आयोजित अखिल भारतीय घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) के विभिन्न पहलुओं की पड़ताल की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (CPI), नीति आयोग, प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय, सी. रंगराजन समिति, तेंदुलकर समिति। मेन्स के लिये:घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 की मुख्य विशेषताएँ। |
हाल ही में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) द्वारा आयोजित घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (Household Consumption Expenditure Survey- HCES), 2022-23 के सारांश निष्कर्ष जारी किये गए। ये निष्कर्ष गरीबी के मामले में चिह्नित किये गए रुझानों से संबंधित तीन मुद्दों के विश्लेषण की मांग करते हैं, जो हैं: NSSO द्वारा और राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (National Accounts Statistics- NAS) द्वारा प्रस्तुत निजी उपभोग व्यय के आँकड़ों के बीच अंतर; उपभोग पैटर्न में बदलाव; और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) एवं मौद्रिक नीति के लिये इसके निहितार्थ।
HCES की मुख्य बातें
- परिचय:
- HCES आमतौर पर प्रत्येक 5 वर्ष पर राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा आयोजित किया जाता है। उल्लेखनीय है कि CSO और NSSO के विलय के साथ वर्ष 2019 में NSO का गठन किया गया।
- इसे परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के उपभोग के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- HCES में संग्रहित डेटा का उपयोग सकल घरेलू उत्पाद (GDP), गरीबी दर और CPI जैसे विभिन्न मैक्रोइकोनॉमिक संकेतकों को प्राप्त करने के लिये भी किया जाता है।
- नीति आयोग (NITI Aayog) ने कहा है कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर 5% रह गई है।
- वर्ष 2017-18 में आयोजित पिछले HCES के निष्कर्ष सरकार द्वारा ‘डेटा गुणवत्ता’ पर सवाल उठाने के बाद जारी नहीं करने का निर्णय लिया गया था।
- सूचना सृजन:
- यह वस्तुओं (खाद्य एवं गैर-खाद्य वस्तुओं सहित) और सेवाओं, दोनों पर सामान्य व्यय की सूचना प्रदान करता है।
- इसके अतिरिक्त, यह घरेलू मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय (Monthly Per Capita Consumer Expenditure- MPCE) के अनुमानों की गणना करने और विभिन्न MPCE श्रेणियों में परिवारों एवं व्यक्तियों के वितरण का विश्लेषण करने में सहायता करता है।
- नवीनतम सर्वेक्षण की एक मुख्य विशेषता: इसमें औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय का अनुमान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना जैसे विभिन्न सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के माध्यम से परिवारों द्वारा प्राप्त मुफ्त वस्तुओं के मूल्य आँकड़ों को शामिल किये बिना किया गया।
- MPCE में वृद्धि:
- इससे उजागर होता है कि वर्ष 2011-12 के बाद से शहरी परिवारों में MPCE में 33.5% की वृद्धि हुई है, जो 3,510 रुपए तक पहुँच गई है, जबकि ग्रामीण भारत का MPCE 40.42% बढ़कर 2,008 रुपए हो गया है।
- वर्ष 2022-23 में ग्रामीण घरेलू व्यय का 46% और शहरी घरेलू व्यय का 39% खाद्य पदार्थों पर हुआ।
- जनसंख्या प्रतिशत के आधार पर MPCE का वितरण:
- MPCE द्वारा रैंक किये गए भारत की ग्रामीण आबादी के निचले 5% का औसत MPCE 1,373 रुपए है जबकि शहरी क्षेत्रों में समान श्रेणी की जनसंख्या के लिये यह 2,001 रुपए है।
- MPCE द्वारा रैंक किये गए भारत की ग्रामीण और शहरी आबादी के शीर्ष 5% का औसत MPCE क्रमशः 10,501 रुपए 20,824 रुपए है।
- राज्यवार MPCE भिन्नताएँ:
- सिक्किम में ग्रामीण (7,731 रुपए) और शहरी क्षेत्रों (12,105 रुपए) दोनों में अधिकतम MPCE है, जबकि छत्तीसगढ़ में ग्रामीण परिवारों के लिये 2,466 रुपए और शहरी परिवारों के लिये 4,483 रुपए के साथ यह न्यूनतम है।
- औसत MPCE के मामले में ग्रामीण-शहरी अंतराल मेघालय (83%) में सबसे अधिक है, जिसके बाद छत्तीसगढ़ (82%) है।
- केंद्रशासित प्रदेशों में MPCE भिन्नताएँ:
- केंद्रशासित प्रदेशों में, चंडीगढ़ में अधिकतम MPCE (ग्रामीण 7,467 रुपए एवं शहरी 12,575 रुपए), जबकि लद्दाख (4,035 रुपए) और लक्षद्वीप (5,475 रुपए) में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिये क्रमशः न्यूनतम MPCE पाया गया।
- खाद्य पर व्यय के रुझान:
- वर्ष 1999-2000 के सर्वेक्षण के बाद से, खाद्य पर व्यय का हिस्सा धीरे-धीरे कम होता गया है और शहरी एवं ग्रामीण दोनों परिवारों के लिये गैर-खाद्य वस्तुओं का हिस्सा बढ़ गया है।
- खाद्य व्यय में गिरावट को आय में वृद्धि के रूप में समझा जाता है, जिसका अर्थ है चिकित्सा, कपड़े, शिक्षा, परिवहन, टिकाऊ वस्तुओं, ईंधन, मनोरंजन जैसे अन्य व्ययों के लिये अधिक धन होना।
- हालिया सर्वेक्षण परिणाम से पता चला है कि ग्रामीण और शहरी दोनों घरों में कुल खाद्य उपभोग व्यय में अनाज एवं दालों की हिस्सेदारी कम हो रही है।
- गैर-खाद्य वस्तुओं में, परिवहन पर व्यय की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी।
- वर्ष 2022-23 तक गैर-खाद्य वस्तुओं में ईंधन और प्रकाश पर सर्वाधिक उपभोग व्यय किया जा रहा था।
- पिछले सर्वेक्षण की तुलना में पद्धति (methodology) में परिवर्तन :
- HCES 2022-23 में उपभोग व्यय के पिछले सर्वेक्षणों की तुलना में कुछ बदलाव किये गए। ये हैं:
- शामिल वस्तुओं का दायरा (आइटम कवरेज);
- प्रश्नावली में परिवर्तन;
- डेटा संग्रह के लिये एकाधिक दौरे और पेन-पेपर साक्षात्कार की तुलना में CAPI (computed assisted personal interviews) का प्रयोग।
- HCES 2022-23 में उपभोग व्यय के पिछले सर्वेक्षणों की तुलना में कुछ बदलाव किये गए। ये हैं:
गरीबी के आकलन में चिह्नित किये गए रुझानों से संबंधित तीन भिन्न मुद्दे:
- NSSO और NAS द्वारा प्रदान किये गए उपभोग पैटर्न में परिवर्तन:
- पहला मुद्दा उपभोग व्यय पर नई सूचना का उपयोग कर गरीबी में बदलाव का परीक्षण करना है:
- विशेषज्ञ समूह (तेंदुलकर) पद्धति के आधार पर वर्ष 2011-12 के लिये गरीबी रेखा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये क्रमशः 816 रुपए और 1,000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह निर्धारित की गई थी।
- SBI की एक रिपोर्ट में गरीबी रेखा को अद्यतन कर वर्ष 2022-23 में गरीबी अनुपात का अनुमान लगाया गया है। नई अद्यतन गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 1,622 रुपए और शहरी क्षेत्रों के लिये 1,929 रुपए है।
- SBI की इस रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी वर्ष 2011-12 में 25.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में 7.2% हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 13.7% से घटकर 4.6% हो गई। ग्रामीण और शहरी आबादी की हिस्सेदारी का उपयोग करते हुए तेंदुलकर समिति पद्धति के आधार पर देखें तो कुल गरीबी अनुपात 6.3% है।
- विशेषज्ञ समूह (रंगराजन) पद्धति के आधार पर वर्ष 2011-12 के लिये गरीबी रेखा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये क्रमशः 972 रुपए और 1,407 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह थी।
- CPI का उपयोग करते हुए गरीबी रेखा को अद्यतन किया गया जो वर्ष 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 1,837 रुपए और शहरी क्षेत्रों के लिये 2,603 रुपए है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी अनुपात वर्ष 2011-12 में 30.9% से घटकर 2022-23 में 12.3% हो गया।
- शहरी क्षेत्रों के लिये, यह वर्ष 2011-12 में 26.4% से घटकर 2022-23 में 8% हो गया। उल्लेखनीय है कि विशेषज्ञ समूह (तेंदुलकर) पद्धति का उपयोग कर प्राप्त गरीबी अनुपात की तुलना में विशेषज्ञ समूह (रंगराजन) पद्धति से प्राप्त गरीबी अनुपात ग्रामीण क्षेत्रों में 71% और शहरी क्षेत्रों में 74% अधिक है।
- रंगराजन पद्धति से गणना करें तो वर्ष 2022-23 के लिये समग्र गरीबी अनुपात 10.8% होगा। जबकि इस पद्धति के तहत गरीबी अनुपात अधिक है, ग्रामीण क्षेत्रों में दोनों पद्धतियों के तहत दोनों अवधियों के बीच प्रतिशत अंकों में गिरावट का क्रम समान है। लेकिन शहरी क्षेत्रों में इस पद्धति के तहत देखें तो अधिक गिरावट आई है।
- विशेषज्ञ समूह (तेंदुलकर) पद्धति के आधार पर वर्ष 2011-12 के लिये गरीबी रेखा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये क्रमशः 816 रुपए और 1,000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति माह निर्धारित की गई थी।
- हालाँकि, वर्ष 2022-23 में उपभोग व्यय का डेटा पूर्व के सर्वेक्षणों से वास्तविक रूप से तुलनीय नहीं है। तुलनीय डेटा ने संभवतः रंगराजन समिति पद्धति के तहत, विशेषकर शहरी क्षेत्रों के लिये, अधिक उच्च गरीबी के आँकड़े दिए होते।
- पहला मुद्दा उपभोग व्यय पर नई सूचना का उपयोग कर गरीबी में बदलाव का परीक्षण करना है:
- NSSO और NAS द्वारा प्रस्तुत कुल निजी उपभोग व्यय के बीच अंतर:
- दूसरा मुद्दा NSSO द्वारा प्रस्तुत कुल निजी उपभोग व्यय और NAS द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के बीच चिंताजनक अंतर है:
- चिंता की बात यह है कि निजी व्यय को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त पद्धतिगत बदलाव के बावजूद वर्ष 2022-23 में NSSO की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि ही हुई।
- हालाँकि, उपभोग के ये दोनों अनुमान (NSSO एवं NAS) किसी भी देश में मेल नहीं खाते हैं और भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
- हैरान करने वाली बात यह है कि भारत में NSS और NAS उपभोग के बीच का अंतर समय के साथ बढ़ता जा रहा है। यह वर्ष 1970 के दशक के अंत में 10% से कम के अंतर से बढ़ता हुआ वर्ष 2011-12 में 53% हो गया है।
- वर्ष 2022-23 में यह अंतर मामूली रूप से घटकर 52% हुआ। हालाँकि, 50% से अधिक के अंतर के जारी रहने के साथ, अंतर में योगदान देने वाले कारकों के गहन विश्लेषण का समय आ गया है। इतने बड़े अंतर का गरीबी अनुपात की गणना पर प्रभाव पड़ता है।
- चिंता की बात यह है कि निजी व्यय को नियंत्रित करने के लिये पर्याप्त पद्धतिगत बदलाव के बावजूद वर्ष 2022-23 में NSSO की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि ही हुई।
- दूसरा मुद्दा NSSO द्वारा प्रस्तुत कुल निजी उपभोग व्यय और NAS द्वारा प्रदत्त आँकड़ों के बीच चिंताजनक अंतर है:
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के लिये HCES 2022-23 के निहितार्थ:
- तीसरा मुद्दा CPI के लिये HCES 2022-23 का निहितार्थ है। नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2011-12 और 2022-23 के बीच उपभोग पैटर्न में कुछ बदलाव हुए हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) में खाद्य की हिस्सेदारी वर्ष 2011-12 में 52.9% से घटकर वर्ष 2022-23 में 46.4% हो गया, जो 11 वर्षों में 6.5 प्रतिशत अंक की गिरावट को सूचित करता है।
- शहरी क्षेत्रों में इसी अवधि के दौरान कुल व्यय में खाद्य की हिस्सेदारी 42.6% से घटकर 39.2% हो गई जो 11 वर्षों में 3.5 प्रतिशत अंक की गिरावट को सूचित करती है।
- औसत MPCE में अनाज की हिस्सेदारी में ग्रामीण क्षेत्रों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जो वर्ष 2011-12 में 10.8% से घटकर वर्ष 2022-23 में 4.9% हो गई। शहरी क्षेत्रों में इसी अवधि में यह 6.7% से घटकर 3.6% हो गई।
- खाद्य पदार्थों में फल, पेय पदार्थ और प्रसंस्कृत खाद्य की हिस्सेदारी ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बढ़ी है जबकि सब्जियों की हिस्सेदारी में कुछ कमी आई है।
- गैर-खाद्य वस्तुओं में, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रसाधन सामग्री एवं घरेलू वस्तुओं, परिवहन साधन और टिकाऊ वस्तुओं की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- CPI और मुद्रास्फीति में खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं के भार के निहितार्थ:
- यह नया डेटा CPI बास्केट में भार (weights) को समायोजित करने में मदद कर सकता है जो वर्तमान में वर्ष 2011-12 के भार पर आधारित है। खाद्य वस्तुओं के भार में गिरावट एक अच्छा संकेत है, क्योंकि खाद्य पदार्थों की कीमतें अस्थिर होती हैं और गैर-खाद्य वस्तुओं की तुलना में कई गुना अधिक होती हैं।
- हालाँकि, सवाल यह है कि क्या खाद्य हिस्सेदारी में मौजूदा गिरावट मुद्रास्फीति के स्तर पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने के लिये पर्याप्त है।
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में खाद्य की हिस्सेदारी अभी भी क्रमशः 46% और 39% के उच्च स्तर पर है। अनाज, सब्जियों एवं खाद्य तेलों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है लेकिन फलों की हिस्सेदारी बढ़ गई है, जबकि अंडा, मछली एवं मांस की हिस्सेदारी पूर्ववत बनी हुई है।
- खाद्य हिस्सेदारी में गिरावट से मुद्रास्फीति पर कुछ प्रभाव पड़ेगा। मौद्रिक नीति समिति को एक नए मूल्य सूचकांक पर विचार करना होगा।
- तीसरा मुद्दा CPI के लिये HCES 2022-23 का निहितार्थ है। नवीनतम आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2011-12 और 2022-23 के बीच उपभोग पैटर्न में कुछ बदलाव हुए हैं।
HCES डेटा को अधिक सुदृढ़ एवं सूचक बनाने के लिये क्या किया जा सकता है?
- सभी समूहों का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना:
- HCES 2022-23 में नमूना पद्धति में, स्तर और द्वितीय-चरण स्तर सहित, महत्त्वपूर्ण बदलाव लाया गया है। HCES 2022-23 के लिये ग्रामीण स्तर (rural stratum) में केवल दो स्तर (strata) शामिल हैं। पहले स्तर में ज़िला मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी के भीतर के ग्राम शामिल हैं, जबकि शेष अन्य दूसरे स्तर में हैं। शहरी स्तर को ‘जनसंख्या’ के साथ-साथ ‘समृद्धि’ (affluence) की स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
- नमूनाकरण इस तरह किया जाना चाहिये कि विभिन्न आर्थिक श्रेणियों के परिवारों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो, क्योंकि प्रतीत होता है कि HCES 2022-23 के नमूनाकरण दृष्टिकोण में संपन्न समूहों का अधिक प्रतिनिधित्व हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च उपभोग व्यय नज़र आता है और ज़मीनी वास्तविकता की अनदेखी हुई है।
- HCES 2022-23 में नमूना पद्धति में, स्तर और द्वितीय-चरण स्तर सहित, महत्त्वपूर्ण बदलाव लाया गया है। HCES 2022-23 के लिये ग्रामीण स्तर (rural stratum) में केवल दो स्तर (strata) शामिल हैं। पहले स्तर में ज़िला मुख्यालय से 5 किलोमीटर की दूरी के भीतर के ग्राम शामिल हैं, जबकि शेष अन्य दूसरे स्तर में हैं। शहरी स्तर को ‘जनसंख्या’ के साथ-साथ ‘समृद्धि’ (affluence) की स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
- वास्तविकता को श्रम बाज़ार दशाओं से समक्रमिक करना:
- नीति आयोग (NITI Aayog) द्वारा विकास के समावेशी एवं व्यापक होने तथा असमानता के कम होने के दावे में ग्रामीण आर्थिक संकट की अनदेखी की गई है और इसे श्रम बाज़ार के परिणामों के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिये। कार्यशील गरीबों की संख्या और वास्तविक मज़दूरी में गिरावट भारत में श्रम बाज़ार दशाओं की पड़ताल करने की आवश्यकता का संकेत देता है। इसके बाद ही यह दावा किया जा सकता है कि भारत अपनी गरीबी दूर करने में सफल हुआ है।
- सर्वेक्षण में ऋण और बचत को अलग-अलग करना:
- बैंक ऋण, समान मासिक किस्तों (EMIs) या किसान क्रेडिट कार्ड पर प्राप्त की गई कोई भी टिकाऊ या गैर-टिकाऊ वस्तु अंततः उपभोग का हिस्सा होगी, लेकिन इससे परिवारों का कर्ज़ भी बढ़ेगा।
- NAS स्पष्ट रूप से बताता है कि वर्ष 2016 से घरेलू उपभोग की हिस्सेदारी घट रही है और घरेलू ऋण बढ़ रहा है। इसके साथ ही, वर्तमान सरकार के कार्यकाल में सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में बचत में गिरावट आई है। इस परिदृश्य में, ऋण विस्तार को परिवारों के उपभोग आँकड़े के मापन में शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
- खाद्य उपभोग व्यय आँकड़े पर अत्यधिक निर्भरता से बचना:
- अर्थशास्त्र में यह सुस्थापित अवधारणा है कि आर्थिक विकास और प्रगति के साथ कुल घरेलू व्यय में खाद्य उपभोग व्यय का हिस्सा कम होता जाता है। ग्रामीण परिवारों में कुल व्यय में खाद्य व्यय वर्ष 2011-12 में 52.90% से घटकर 2022-23 में 46.38% हो गया है, जबकि शहरी परिवारों में यह वर्ष 2011-12 में 42.62% से घटकर 39.17% हो गया है। आर्थिक प्रगति के आकलन में इस बात पर सतर्कता से विचार किया जाना चाहिये।
- कुल उपभोक्ता व्यय में खाद्य की हिस्सेदारी संयुक्त राज्य अमेरिका के लिये केवल 6.4% (वर्ष 2018), सिंगापुर के लिये 6.9% (2018), यूनाइटेड किंगडम के लिये 7.9% (2019) और स्विट्ज़रलैंड के लिये 8.9% (2019) है।
- अन्य विकसित देशों की तुलना में खाद्य व्यय में हमारी हिस्सेदारी उच्च बनी हुई है और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं स्विट्ज़रलैंड के उपभोग व्यय के स्तर तक पहुँचने में हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है। HCES 2022-23 के आधार पर ऐसे दावे नहीं किये जाने चाहिये जो इसमें मौजूद नहीं हो या जिसके बारे में यह कोई अनुमान प्रदान नहीं करता हो।
- अर्थशास्त्र में यह सुस्थापित अवधारणा है कि आर्थिक विकास और प्रगति के साथ कुल घरेलू व्यय में खाद्य उपभोग व्यय का हिस्सा कम होता जाता है। ग्रामीण परिवारों में कुल व्यय में खाद्य व्यय वर्ष 2011-12 में 52.90% से घटकर 2022-23 में 46.38% हो गया है, जबकि शहरी परिवारों में यह वर्ष 2011-12 में 42.62% से घटकर 39.17% हो गया है। आर्थिक प्रगति के आकलन में इस बात पर सतर्कता से विचार किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
NSSO द्वारा जारी HCES 2022-23 ने कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। सर्वप्रथम, विभिन्न पद्धतियों का उपयोग कर लगाये गए पूर्व के अनुमानों से तुलना करें तो नवीन सर्वेक्षण विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी दर में उल्लेखनीय गिरावट को उजागर करता है। दूसरा, NSSO और NAS के निजी उपभोग व्यय अनुमानों के बीच बढ़ता अंतर चिंता पैदा करता है और इन आँकड़ों के सामंजस्य के लिये गहन विश्लेषण की आवश्यकता रखता है। अंत में, बदलता उपभोग पैटर्न (खाद्य पदार्थों से दूसरी ओर एक उल्लेखनीय बदलाव के साथ) CPI और मुद्रास्फीति गणना के लिये निहितार्थ रखता है, जो CPI बास्केट में समायोजन की आवश्यकता प्रकट करता है। कुल मिलाकर, ये निष्कर्ष उपभोग आँकड़े को सटीक रूप से संग्रहित करने और नीति-निर्माण एवं आर्थिक विश्लेषण के लिये इसके निहितार्थ को रेखांकित करते हैं।
अभ्यास प्रश्न: घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (HCES) भारत में नीति निर्माण और आर्थिक योजना को किस प्रकार प्रभावित करता है? उदाहरण सहित चर्चा कीजिये।
प्रश्न: एन.एस.एस.ओ. के 70वें चक्र द्वारा संचालित ‘‘कृषक-कुटुम्बों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण’’ के अनुसार निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: राजस्थान में ग्रामीण कुटुम्बाें में कृषि कुटुम्बों का प्रतिशत सर्वाधिक है। उपर्युत्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 2 और 3 उत्तर: c प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखा अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर है, क्योंकि: (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है उत्तर: (b) |