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एडिटोरियल

  • 12 Jul, 2022
  • 13 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

ऊर्जा निर्धनता

यह एडिटोरियल 08/07/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “The clock is ticking on the issue of energy poverty” लेख पर आधारित है। इसमें ऊर्जा निर्धनता और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने ऊर्जा निर्धनता (Energy Poverty) को संवहनीय आधुनिक ऊर्जा सेवाओं और उत्पादों तक पहुँच की कमी के रूप में परिभाषित किया है। यह उन सभी परिस्थितियों में पाया जा सकता है जहाँ विकास का समर्थन करने के लिये पर्याप्त, सस्ती, विश्वसनीय, गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल ऊर्जा सेवाओं की कमी है।

  • यह तथ्य है कि ‘ऊर्जा सभ्यता का इंजन है’, लेकिन इसके बावजूद वर्तमान में दुनिया में पर्याप्त और वहनीय स्रोतों तक पहुँच सभी के लिये एकसमान रूप से उपलब्ध नहीं है। केवल दक्षिण एशिया में ही 1 बिलियन से अधिक लोग ऊर्जा की अत्यंत सीमित पहुँच के साथ संघर्ष कर रहे हैं।
  • मानव विकास और ऊर्जा उपयोग मूलभूत रूप से परस्पर-संबद्ध हैं। स्वच्छ हवा, स्वास्थ्य, खाद्य एवं जल, शिक्षा और मानवाधिकार जैसी बुनियादी मानवीय ज़रूरतों की पूर्ति के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह प्रत्येक आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिये भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन विश्व भर में भू-राजनीतिक संघर्षों के कारण ऊर्जा लागतें आसमान छू रही हैं।
  • भारत में तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (LPG) और प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) क्रांतियों के बावजूद भारतीय घरों में, विशेष रूप से ग्रामीण घरों में, ऊर्जा तक सीमित पहुँच की ही स्थिति बनी हुई है।
  • इस परिदृश्य में, भारत के संदर्भ में ऊर्जा निर्धनता और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों पर विचार करना प्रासंगिक होगा।

भारत में ऊर्जा निर्धनता के प्रमुख कारण

  • ऊर्जा अवसंरचना की कमी:
    • बिजली संयंत्रों, पारेषण लाइनों, ग्रामीण क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस, पेट्रोलियम जैसे ऊर्जा संसाधनों के वितरण के लिये भूमिगत पाइपलाइनों जैसे आधुनिक ऊर्जा अवसंरचनाओं की कमी के कारण ऊर्जा निर्धनता की स्थिति बनी है।
      • वे आज भी लकड़ी ईंधन, काष्ठ कोयला, पराली और लकड़ी के छर्रों जैसे पारंपरिक बायोमास पर अत्यधिक निर्भर हैं।
      • बिजली कनेक्टिविटी रहित लोगों की संख्या के मामले में नाइजीरिया भारत के बाद दूसरे स्थान पर है, जबकि वह अफ्रीका का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।
      • प्राकृतिक गैस के संग्रहण या वितरण हेतु अवसंरचना के अभाव में नाइजीरिया के तेल क्षेत्रों में उत्पादित प्राकृतिक गैस का अधिकांश भाग जलकर हवा में उड़ जाता है।
  • वहनीयता की कमी:
    • आय और विकास के निचले स्तर पर स्थित परिवार ऊर्जा की सीढ़ी पर सबसे नीचे होते हैं, जो सस्ते और स्थानीय रूप से उपलब्ध ईंधन का उपयोग करते हैं जो स्वच्छ या कुशल ऊर्जा स्रोत नहीं होते।
  • ऊर्जा की अक्षमता:
    • ऊर्जा रूपांतरण के दौरान उपयोगी ऊर्जा की अनुपातहीन रूप से उच्च क्षति ऊर्जा निर्धनता का एक प्रमुख कारक है।
      • जब ऊर्जा दक्षता सूचकांक में 1 अंक की वृद्धि होती है तो ऊर्जा निर्धनता दर में 0.21% की गिरावट आती है, इस प्रकार ऊर्जा निर्धनता में ऊर्जा दक्षता का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देता है।
  • भू-राजनीतिक तनाव:
    • भू-राजनीतिक अस्थिरता वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति शृंखला को प्रभावित करती है।
      • 31 मार्च, 2022 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में भारत का तेल आयात बिल बढ़कर 119 बिलियन डॉलर का हो गया क्योंकि यूक्रेन संघर्ष के बाद ऊर्जा की कीमतों में भारी वृद्धि हुई।

भारत में ऊर्जा निर्धनता से आय निर्धनता कैसे संबद्ध है?

  • ऊर्जा निर्धनता को आय निर्धनता का एक पहलू माना जाता है।
    • बिजली जैसी ऊर्जा सेवाओं का प्रावधान देश में औद्योगिक और कृषि विकास को सुविधाजनक बनाता है।
    • इस तरह की वृद्धि और विकास रोजगार के वृहत स्तर और उद्यमशीलता के अवसरों के संदर्भ में आजीविका के अवसरों की वृद्धि करते हैं।
    • यह आगे परिवारों के लिये उच्च आय और फिर गरीबी के स्तर में कमी जैसे परिणाम देगा।
  • गरीब परिवार (शहरी और ग्रामीण दोनों) गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों की तुलना में अपने कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा ऊर्जा ईंधन प्राप्त करने पर खर्च करते हैं।
    • आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से परिवारों के लिये नियमित रूप से स्वच्छ ऊर्जा ईंधन तक पहुँच होना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

भारत में ऊर्जा निर्धनता के प्रभाव

  • व्यामोह (Labyrinth) का दुष्चक्र:
    • अपर्याप्त ऊर्जा आमतौर पर कृषि और विनिर्माण को विकसित करने की असंभावना के रूप में अभिव्यक्त होती है और इस प्रकार ऊर्जा निर्धनता से प्रभावित आबादी को एक दुष्चक्र में फँसाती है, जहाँ वे उस ऊर्जा का वहन ही नहीं कर सकते जो उन्हें निर्धनता से बाहर निकाल सकती है।
  • स्वास्थ्य को खतरा:
    • लकड़ी, गोबर, पराली जैसे पारंपरिक ऊर्जा ईंधन के दहन से घर के अंदर वायु प्रदूषण होता है जिससे मानव स्वास्थ्य को भारी हानि पहुँचती है।
      • आकलन किया जाता है कि घरेलू वायु प्रदूषण (HAP) के कारण होने वाली वार्षिक वैश्विक अकाल मृत्यु में प्रत्येक 4 में से 1 भारत में होती है।
      • इनमें से 90 प्रतिशत महिलाएँ होती हैं, क्योंकि वे अपर्याप्त हवादार रसोई में इन ईंधनों के निकट संपर्क में कार्य करती हैं।
  • ऊर्जा संकट:
    • ऊर्जा की मांग में वृद्धि और ऊर्जा उत्पादन एवं परिवहन के लिये जीवाश्म आधारित ईंधन पर निरंतर निर्भरता न केवल प्राकृतिक संसाधनों को कम कर रही है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में लगातार वृद्धि हो रही है। यह औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि के लिये भी ज़िम्मेदार है।
      • ग्रीनहाउस गैसों का सांद्रण स्तर लगातार बढ़ रहा है।

ऊर्जा निर्धनता को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • वैश्विक अंतर-सरकारी संगठन:
    • G20 और ब्रिक्स (BRICS) जैसे शक्तिशाली मंचों को ऊर्जा पहुँच, निर्धनता और सुरक्षा जैसे विषयों पर अधिक ध्यान देने की ज़रूरत है। ऊर्जा संक्रमण, ऊर्जा पहुँच एवं न्याय और ऊर्जा एवं जलवायु पर विशेष रूप से समर्पित वैश्विक अंतर-सरकारी संगठन स्थापित किया जाना चाहिये।
  • प्रभावी नीतिनिर्माण के लिये डेटाबेस का निर्माण:
    • नीतिनिर्माताओं एवं अन्य प्रासंगिक हितधारकों की सुविधा के लिये अंतर घरेलू और सामूहिक विभेदों का डेटा एकत्र करना महत्त्वपूर्ण है ताकि ऊर्जा, आय और लिंग असमानता के बीच संबंध को स्पष्ट रूप से स्थापित किया जा सके और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच ऊर्जा अंतर को दूर किया जा सके।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर विशेष ध्यान देना:
    • नवीकरणीय स्रोतों (सौर ऊर्जा, बायोगैस आदि) से उत्पन्न ऊर्जा स्वच्छ, हरित और अधिक संवहनीय होगी।
      • नवीकरणीय स्रोतों से संबद्ध परियोजनाएँ निम्न कार्बन विकास रणनीतियों में भी सकारात्मक योगदान दे सकती हैं और देश की कामकाजी आबादी के लिये रोज़गार के अवसर उत्पन्न करेंगी।
  • सुदृढ़ संस्थागत तंत्र:
    • भारतीय परिवारों को ऊर्जा कुशल मशीनरी और सब्सिडी प्रदान करने के लिये ऊर्जा क्षेत्र, विनिर्माण क्षेत्र, स्वास्थ्य क्षेत्र तथा वित्त क्षेत्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों के बीच संबंध आवश्यक है।
      • ऊर्जा निर्धनता को कम करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय संस्थानों को एक साथ आने और सामूहिक पेशकश के रूप में सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • लक्ष्यों को प्रवर्तनीय कार्रवाई में बदलना:
    • जागरूकता अभियान:
      • सब्सिडी के संबंध में जागरूकता अभियान और प्रौद्योगिकीय प्रगतियों से संबंधित शिक्षण का प्रसार समाज के निचले पायदान तक किये जाने की आवश्यकता है ताकि कुशल ऊर्जा उपभोग के प्रति जागरूकता की वृद्धि हो।
    • निगरानी:
      • नीतियों के कार्यान्वयन की वास्तविक स्थिति की निगरानी करने के लिये एक निगरानी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।

भारत के ऊर्जा संक्रमण को आकार देने वाली विभिन्न पहलें

अभ्यास प्रश्न: ‘‘ऊर्जा निर्धनता भारत में विकास को अवरुद्ध कर रही है।’’ तर्क दें। स्वच्छ ऊर्जा समाधानों ने भारत के ऊर्जा संक्रमण को किस हद तक आकार दिया है?


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