लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

एडिटोरियल

  • 08 Dec, 2022
  • 13 min read
कृषि

प्रभावी मृदा प्रबंधन की ओर

यह एडिटोरियल 05/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Poor soil management will erode food security” लेख पर आधारित है। इसमें मृदा के क्षरण और मानव एवं पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य पर इसके परिणामों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

पृथ्वी पर 87% जीवनरूप—जैसे मनुष्य, सूक्ष्मजीव, कृमि, कीड़े-मकोड़े, पक्षी, जंतु और पादप पृथ्वी की एक ऊपरी पतली परत पर निर्भर हैं जिसे मृदा (soil) कहते हैं। वर्तमान में मृदा एक गंभीर खतरे का सामना कर रही है।

  • पिछले 40 वर्षों में विश्व की 40% ऊपरी मृदा नष्ट हो गई है। संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, हमारे पास लगभग 80 से 100 फसलों के लिये ही मृदा बची है, जिसका अभिप्राय यह है कि महज अगले 60 वर्षों के लिये ही कृषि की जा सकेगी। उसके बाद फसल उत्पादन के लिये हमारे पास मृदा नहीं होगी।
  • भारत की 30% भूमि पहले से ही क्षरण का शिकार हो चुकी है और भारत के 90% राज्य उर्वर भूमि के मरुस्थलीकरण का सामना कर रहे हैं। इस परिदृश्य में भावी पीढ़ियों के लिये मृदा की रक्षा करना न केवल खाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिये, बल्कि मानव जाति के लिये भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

स्वस्थ मृदा का क्या महत्त्व है?

  • खाद्य और पोषण सुरक्षा: मृदा प्रबंधन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि पृथ्वी पर लोगों की कुल संख्या की तुलना में एक चम्मच मृदा में अधिक जीवित जीव मौजूद होते हैं।
    • मृदा में खनिज, जैविक घटक और जीव मौजूद होते हैं तथा पृथ्वी पर पोषक तत्वों से भरपूर पादप जीवन की सुनिश्चितता के लिये इसे क्षरण से बचाने की आवश्यकता है।
    • वे स्वस्थ पादप विकास का संपोषण करते हैं और इसके पोषण मूल्य को बढ़ाते हैं।
  • ‘कार्बन सिंक’: मृदा कार्बन का भंडारण करती है और महासागरों के बाद दूसरे सबसे बड़े कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में भूमिका निभाती है; इस प्रकार, सूखे और बाढ़ के प्रति भूदृश्य को लचीला/प्रत्यास्थी बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • प्राकृतिक फिल्टर: मृदा द्वारा सतह जल से धूल, रसायन और अन्य दूषित पदार्थों को फिल्टर किया जाता है, जिससे भूमिगत जल पृथ्वी के सबसे साफ जल में से एक के रूप में अस्तित्व रखते हैं।
  • आजीविका और बसावट: मृदा इमारतों और राजमार्गों को सहारा देती है और इस प्रकार हमारे शहरों की अर्थव्यवस्था में योगदान करती है।
    • उदाहरण के लिये, गंगा मैदान की समृद्ध, गहरी उपजाऊ मृदा (विशेष रूप से इसके डेल्टा क्षेत्र में) और केरल के तटीय मैदान कृषि समृद्धि के माध्यम से उच्च जनसंख्या घनत्व का संपोषण करते हैं।

मृदा स्वास्थ्य से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • कृषि-रसायनों का अत्यधिक प्रयोग: कृषि-रसायनों (Agrochemicals) का अत्यधिक प्रयोग मृदा के अम्लीकरण (soil acidification) में योगदान देता है, जिसके परिणामस्वरूप मृदा में जैविक पदार्थ (ह्यूमस सामग्री) की कमी आती है, पौधों की वृद्धि बाधित होती है और यहाँ तक कि यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का कारण बनता है।
    • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme) का विश्लेषण पूरे भारत में मृदा जैविक कार्बन (Soil Organic Carbon- SOC)—जो मृदा स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है, के चिंताजनक निम्न स्तर को दर्शाता है।
  • वनों की कटाई: तेज़ी से वनों की कटाई और शहरीकरण (जहाँ वनों को कृषि भूमियों में और कृषि भूमियों को आवासीय क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है) के कारण मृदा स्वास्थ्य व्यापक रूप से क्षरित हो रहा है।
    • मृदा का क्षरण अप्रत्यक्ष रूप से विश्व के 2 बिलियन लोगों को प्रभावित कर रहा है, जो सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पीड़ित हैं। इस समस्या को ‘गुप्त भुखमरी’ (Hidden Hunger) के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसका पता लगाना कठिन होता है।
  • जल-जमाव: अत्यधिक सिंचाई जल-जमाव का कारण बनती है जो प्रायः मृदा लवणता (Soil Salinity) की समस्या भी उत्पन्न करती है, क्योंकि जल-जमाव से ग्रस्त मृदा सिंचाई जल द्वारा आयातित लवणों के निक्षालन (leaching) को बाधित करती है।
    • जल-जमाव पौधों की वृद्धि के लिये एक इष्टतम माध्यम प्रदान करने की मृदा की क्षमता को बाधित करता है और काफी हद तक इसके भौतिक एवं रासायनिक गुणों को बदल देता है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: यद्यपि जलवायु परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया है जिसमें लंबे समय तक तापमान और वर्षण में अपेक्षाकृत छोटे परिवर्तन शामिल होते हैं, फिर भी जलवायु में ये धीमे परिवर्तन विभिन्न मृदा प्रक्रियाओं, विशेष रूप से मृदा की उर्वरता से संबंधित प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं।

मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिये प्रमुख पहलें

मृदा स्वास्थ्य में कैसे सुधार किया जा सकता है?

  • कृषि-वानिकी (Agroforestry): कृषि अभ्यासों में वृक्षों एवं झाड़ियों को शामिल किये जाने से जल अपवाह को कम किया जा सकता है, जल अंतःस्यंदन को बढ़ाया जा सकता है और उनके बाधाकारी प्रभाव से मृदा की हानि को कम किया जा सकता है।
    • वे पादप और जड़ अवशेषों के क्षय के माध्यम से मृदा के जैविक पदार्थ को बनाए रखने में भी मदद करते हैं।
  • नियमित मृदा लेखा परीक्षण: मृदा के प्रबंधन के लिये केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर एक विशेष निकाय की आवश्यकता है। उन्हें स्थानीय पंचायतों की मदद से मृदा की गुणवत्ता की निगरानी करने और नियमित रूप से मृदा का लेखा परीक्षण करने के लिये ज़िम्मेदार बनाया जाना चाहिये।
  • फसल चक्रण और पुनर्वनीकरण: मकई, चारा (hay) और छोटे अनाज जैसी उच्च अवशेष देने वाली फसलों के रूप में फसल चक्रण (Crop Rotation) से मृदा कटाव को कम करने में मदद मिल सकती है क्योंकि मृदा के ऊपर फसल अवशेषों की परत ऊपरी मृदा को हवा और जल द्वारा बहा ले जाने से बचाती है।
    • एक क्षरित पारिस्थितिकी तंत्र की पुनर्बहाली और मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा मृदा कटाव नियंत्रण को पर्याप्त रूप से सुनिश्चित कर सकती है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि ठीक से लगाए गए और रखरखाव किये गए एक पेड़ से 75% तक कटाव कम हो जाता है।
  • कुशल कृषि की ओर: भारत कृषि पद्धतियों की विविधता के लिये जाना जाता है। मृदा प्रबंधन और संवहनीय खेती के लिये उपयुक्त समाधान की खोज के लिये राष्ट्रीय स्तर के संवाद में विविध दृष्टिकोणों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत को मृदा स्वास्थ्य का प्रबंधन करने और उपयुक्त शाकनाशी एवं कीटनाशी का उपयोग करने के लिये सेंसर तथा अन्य वैज्ञानिक उपकरणों का उपयोग कर कुशल एवं परिशुद्ध खेती (Smart And Precision Farming) की ओर आगे बढ़ने की ज़रूरत है।
    • भेद्य/संवेदनशील किसानों को फसल विकल्पों पर सूचित निर्णय लेने में सहायता देने के उद्देश्य से पूर्वानुमान उपकरण विकसित करने के लिये (डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके) खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण (National Rainfed Area Authority) तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) के साथ सहयोग का निर्माण किया है जो एक सकारात्मक कदम है।
  • कार्बन खेती (Carbon Farming): कृषि प्रबंधन के कार्बन खेती के तरीकों का अभ्यास करने की आवश्यकता है जो भूमि को अधिक कार्बन भंडारण करने में मदद कर सकते हैं और वातावरण में GHG उत्सर्जन की मात्रा को कम कर सकते हैं; इस प्रकार, मृदा स्वास्थ्य और वायुमंडलीय स्थिरता को बनाए रखने में सहायक होंगे।
  • मृदा प्रबंधन के प्रति बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण: अवक्रमित/क्षरित मृदा की पहचान, प्रबंधन और पुनर्बहाली के साथ-साथ अग्रिम उपायों को अपनाने के लिये शिक्षाविदों, नीति-निर्माताओं और समाज के बीच संचार चैनलों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • ऊपरी मृदा की रक्षा के लिये पेड़ लगाकर, होम/किचन गार्डन का विकास एवं रखरखाव कर और मुख्यतः स्थानीय रूप से प्राप्त तथा मौसमी खाद्य पदार्थों का सेवन करके उपभोक्ता और नागरिक भी मृदा संरक्षण में योगदान कर सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: मृदा क्षरण के विभिन्न कारणों की पहचान करें तथा प्रभावी मृदा प्रबंधन उपायों के सुझाव दें।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

Q1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2017)

राष्ट्रव्यापी 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' का उद्देश्य है-

  1. सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
  2. मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का आकलन करने में बैंकों को सक्षम बनाना।
  3. खेतों में उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग की जाँच करना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (A) केवल 1 और 2
 (B) केवल 3
 (C) केवल 2 और 3
 (D) 1, 2 और 3

 उत्तर: (B)


Q2. एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कृषि उत्पादन को बनाए रखने में कहाँ तक सहायक है?  (वर्ष 2019)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2