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एडिटोरियल

  • 06 Nov, 2023
  • 25 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से शांति स्थापना

यह एडिटोरियल 03/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Is the United Nations toothless in ending wars?” लेख पर आधारित है। इसमें इज़राइल-हमास संघर्ष और समकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के व्यापक सुरक्षा संबंधी मुद्दों को संबोधित करने में संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी, रासायनिक हथियार अभिसमय, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, कश्मीर विवाद, सूडान में दारफुर संघर्ष, इराक पर आक्रमण, रोहिंग्या संकट, पी5, अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की सफलता, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की सीमाएँ, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारत का योगदान, संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के सामने आने वाली चुनौतियाँ,

इज़राइल-हमास संघर्ष में युद्धविराम ला सकने की संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) की क्षमता पर बदलती वैश्विक शक्ति गतिशीलता के कारण सवाल उठाया जा रहा है। गुज़रते समय के साथ संघर्ष समाधान में संयुक्त राष्ट्र की प्रभावशीलता कम हो गई है और हाल के दशकों में इसके प्रभाव में व्यापक कमी देखी गई है। प्रमुख शक्तियों के परस्पर विरोधी हित प्रायः संयुक्त राष्ट्र को शांति निर्माण, सुरक्षा और युद्धविराम समझौतों से संबंधित मामलों पर आम सहमति तक पहुँच सकने से बाधित करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा किस प्रकार बनाए रखता है?

संयुक्त राष्ट्र विभिन्न तंत्रों और कार्रवाइयों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखता है, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर अध्याय VII में उल्लिखित है: शांति के लिये खतरों, शांति के उल्लंघन और आक्रामकता के कृत्यों के संबंध में कार्रवाई (अनुच्छेद 39-51)।

निम्नलिखित प्रमुख उपायों के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र अपनी भूमिका निभाता है:

  • सामूहिक सुरक्षा (Collective Security): संयुक्त राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के माध्यम से सामूहिक सुरक्षा को बढ़ावा देता है, जो अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये उत्तरदायी एक प्रमुख अंग है। सुरक्षा परिषद के पास अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के खतरों से निपटने के लिये बल प्रयोग सहित अन्य उपाय करने का अधिकार है।
  • शांति-रक्षा अभियान (Peacekeeping Operations): संयुक्त राष्ट्र संघर्षग्रस्त क्षेत्रों में शांति-रक्षा मिशन की तैनाती करता है। मिशन में सदस्य देशों के सैन्य, पुलिस और नागरिक कर्मी शामिल होते हैं जो युद्धविराम की निगरानी करने, सुलह वार्ता को सुविधाजनक बनाने और शांति समझौतों के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिये कार्य करते हैं।
  • कूटनीति और संघर्ष समाधान (Diplomacy and Conflict Resolution): संयुक्त राष्ट्र राजनयिक वार्ता और संघर्ष समाधान के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है। यह संघर्षरत पक्षों के बीच संवाद एवं सुलह वार्ता को प्रोत्साहित करता है और शांतिपूर्ण समाधान तक पहुँचने के लिये विवादों में मध्यस्थता करने में सहायता करता है।
  • प्रतिबंध (Sanctions): सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये खतरा पैदा करने वाले देशों या संस्थाओं के विरुद्ध व्यापार प्रतिबंध एवं यात्रा प्रतिबंध जैसे आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध अधिरोपित कर सकता है।
  • निवारक कूटनीति (Preventive Diplomacy): संयुक्त राष्ट्र अग्रसक्रिय रूप से संभावित संघर्षों की पहचान करने और उनकी वृद्धि को रोकने के लिये प्रयास करने के रूप में निवारक कूटनीति में संलग्न होता है।
  • संघर्ष की रोकथाम (Conflict Prevention): संयुक्त राष्ट्र संघर्षों के प्रसार को रोकने के लिये गरीबी, असमानता और मानवाधिकारों के हनन जैसे संघर्ष के मूल कारणों को संबोधित करने के लिये कार्य करता है।
  • मानवीय सहायता (Humanitarian Assistance): संयुक्त राष्ट्र संघर्षों और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित आबादी को मानवीय सहायता प्रदान करता है। यह सहायता पीड़ा कम करने, जीवन की रक्षा करने और संघर्षों के परिणामों का समाधान करने में मदद करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय कानून (International Law): संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय कानून, संधियों एवं अभिसमयों के पालन को बढ़ावा देता है जो राज्यों के बीच व्यवहार को नियंत्रित करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि विश्व के देश संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता एवं अन्य राज्यों के मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांतों का सम्मान करें।
  • निरस्त्रीकरण और अप्रसार (Disarmament and Non-Proliferation): संयुक्त राष्ट्र सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रसार को कम करने और निरस्त्रीकरण प्रयासों को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है।

अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र किस हद तक सफल रहा है?

अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की सफलता:

  • विश्व युद्धों की रोकथाम:
    • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भविष्य के किसी अन्य वैश्विक संघर्ष को रोकने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ की गई थी।
    • संयुक्त राष्ट्र के गठन के बाद से किसी तृतीय विश्व युद्ध की स्थिति का नहीं उभरना वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने में इसकी सफलता के रूप में देखा जा सकता है।
  • परमाणु प्रसार को रोकना:
    • पाँच दशकों से अधिक समय से अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) विश्व के परमाणु निरीक्षक के रूप में कार्य कर रही है।
    • IAEA विशेषज्ञ यह सत्यापित करने के लिये सक्रिय बने रहते हैं कि सुरक्षित परमाणु सामग्री का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है। इस संदर्भ में एजेंसी ने अभी तक 180 से अधिक देशों के साथ सुरक्षा समझौते (safeguards agreements) संपन्न किये हैं।
  • निरस्त्रीकरण का समर्थन:
    • संयुक्त राष्ट्र संधियाँ निरस्त्रीकरण प्रयासों को कानूनी रीढ़ प्रदान करती हैं:
  • शांति-रक्षा अभियान:
    • संयुक्त राष्ट्र ने संघर्ष को कम करने और संघर्ष के बाद की स्थिरता का समर्थन करने के लिये कई शांति मिशन चलाए हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों और राजनयिक प्रयासों के माध्यम से क्षेत्रीय स्तर पर, विशेषकर अफ्रीका में, संघर्षों को रोकने और हल करने में अधिक सफल रहा है।
  • अंतर्राज्यीय संघर्षों का समाधान:
    • संयुक्त राष्ट्र ने कुछ अंतर्राज्यीय संघर्षों में सफलतापूर्वक मध्यस्थता की है और विभिन्न देशों के बीच विवादों का निवारण या समाधान किया है।
      • उदाहरण: वर्ष 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट।
  • मानवीय और राहत प्रयास:

अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की विफलता या सीमाएँ

  • इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष (वर्ष 1948 से अब तक): संयुक्त राष्ट्र इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को हल करने में विफल रहा है, जहाँ इज़राiल ने फिलिस्तीन के ऐतिहासिक क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रखा है और उसे उसके कृत्यों के लिये अधिक जवाबदेह नहीं ठहराया गया है।
  • कंबोडिया हिंसा (वर्ष 1975-1979): संयुक्त राष्ट्र ने मानवाधिकार उल्लंघन की अनदेखी करते हुए ख्मेर रूज (Khmer Rouge) शासन को मान्यता प्रदान की और कंबोडिया में नरसंहार को रोकने में विफल रहा।
  • सोमालिया और दक्षिण सूडान में गृह युद्ध (वर्ष 1991 से अब तक): सोमालिया में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन वहाँ संलग्नता के लिये किसी सरकार के अभाव और संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों के विरुद्ध बार-बार हमलों के कारण विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप नागरिकों की मौत हुई।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की मौजूदगी के बावजूद दक्षिण सूडान में जारी गृहयुद्ध में हज़ारों लोग मारे गए हैं।
  • सूडान में दारफुर संघर्ष (वर्ष 2003 से अब तक): दारफुर में संघर्ष शुरू होने के कई वर्षों बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा हस्तक्षेप किया गया और वहाँ स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है जिससे लाखों लोग प्रभावित हो रहे हैं।
  • इराक पर आक्रमण (वर्ष 2003-2011): संयुक्त राष्ट्र संकल्प 1483 के तहत सामूहिक विनाश के हथियारों (Weapons of mass destruction- WMDs) के बारे में चिंताओं को आधार बनाते हुए इराक पर अमेरिका के नेतृत्व में आक्रमण किया गया जिससे भारी अस्थिरता उत्पन्न हुई और बाद में यह ISIS के उदय का कारण बना। ISIS ने इराक और सीरिया के वृहत क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया, जिससे एक बड़ा क्षेत्रीय एवं वैश्विक संकट उत्पन्न हुआ।
  • सीरियाई गृहयुद्ध (वर्ष 2011 से अब तक): सीरियाई युद्ध में सुरक्षा परिषद की सीमित कार्रवाई के कारण क्षेत्र में दीर्घकालिक एवं विनाशकारी संघर्ष की स्थिति बनी रही है जहाँ लाखों सीरियाई विस्थापित हुए हैं।
  • यमन गृहयुद्ध (वर्ष 2014 से अब तक): यमन में सऊदी नेतृत्व वाले गठबंधन के हस्तक्षेप से मानवीय सहायता प्रदान करने के संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई है।
  • रोहिंग्या संकट, म्यांमार (वर्ष 2017 से अब तक): संयुक्त राष्ट्र म्यांमार में रोहिंग्या आबादी के उत्पीड़न और विस्थापन को रोकने में विफल रहा। 

संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षा अभियानों के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ 

रणनीतिक चुनौतियाँ:

  • पर्याप्त प्रतिनिधित्व का अभाव: सुरक्षा परिषद कम प्रभावकारी है क्योंकि यह कम प्रतिनिधिक है। इसमें अफ्रीका (54 देशों का महाद्वीप) के प्रतिनिधित्व की कमी सर्वाधिक प्रकट है।
  • नेतृत्व प्रणाली: संयुक्त राष्ट्र शांति-रक्षा अभियानों की प्रभावशीलता नेतृत्व की विफलताओं, अकुशल प्रबंधन, अनुशासन संबंधी मुद्दों और पारंपरिक शांति स्थापना दृष्टिकोणों में अक्षमताओं के कारण बाधित हुई है।
  • विधान: सैन्य और पुलिस बल का योगदान करने वाले देशों द्वारा SOFA (Status of Forces Agreements), शासनादेश (mandates) और संलग्नता नियमावली (Rules of Engagement) की अलग-अलग व्याख्या की जाती है।
  • वैश्विक व्यवस्था: शक्तिशाली देशों के भू-राजनीतिक और रणनीतिक हित संयुक्त राष्ट्र के निर्णयन को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे हितों के टकराव की स्थिति बन सकती है।

परिचालन संबंधी चुनौतियाँ:

  • सशस्त्र संघर्ष की प्रकृति: हिंसक उग्रवाद, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद और संगठित अपराध के उभरते खतरों ने शांति सैनिकों के लिये नागरिकों की रक्षा करना तथा सुरक्षा बनाए रखना चुनौतीपूर्ण बना दिया है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ शांति एवं स्थिरता स्थापित करना कठिन है।
  • वीटो शक्ति का दुरुपयोग: वीटो शक्ति की विभिन्न विशेषज्ञों के साथ-साथ अधिकांश देशों द्वारा आलोचना की जाती है जहाँ इसे अलोकतांत्रिक और ‘विशेषाधिकार प्राप्त देशों का स्व-चयनित क्लब’ (self-chosen club of the privileged) कहा गया है। इसकी इस आधार पर आलोचना की जाती है कि P-5 समूह में से किसी भी देश की असंतुष्टि पर सुरक्षा परिषद आवश्यक निर्णय नहीं ले पाता है।
  • अभियान के तरीके: शांति-रक्षा अभियानों के लिये अब मेज़बान देश की सरकार और सामाजिक संस्थानों को समर्थन देने या पुनर्स्थापित करने के लिये सामाजिक एवं सैन्य गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला की आवश्यकता होती है।
  • तत्परता/पूर्व-तैयारी: संयुक्त राष्ट्र के पास अपनी कोई स्थायी सेना या पुलिस बल नहीं है, जिससे बहुराष्ट्रीय सदस्य देशों की सेना और पुलिस बलों को क्षेत्रीय मिशनों के लिये जुटाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

कार्यनीति संबंधी चुनौतियाँ:

  • P-5 के बीच भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों (P-5) के बीच भूराजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने इसे अफगानिस्तान पर आक्रमण जैसे वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिये प्रभावी तंत्र के साथ सामने आने से बाधित किया।
  • अभियानों के बारे में सामान्य समझ का अभाव: शांति सैनिकों के बीच अभियानों की सामान्य समझ का अभाव अप्रभावी तैनाती का कारण बन सकता है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: अभियान क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र और गैर-संयुक्त राष्ट्र संगठनों को एकीकृत करने वाली व्यापक एवं प्रभावशील नेतृत्व प्रणाली पा सकना चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
  • अनुशासन और आचार संहिता: शांतिरक्षक, पुलिस और नागरिक कर्मी संयुक्त राष्ट्र की संपत्तियों के संबंध में कदाचार एवं दुरुपयोग से संलग्न हो सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भारत का योगदान 

  • सैनिकों की तैनाती: वर्ष 1950 में कोरिया में अपनी पहली सैन्यबल तैनाती के बाद से भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है। भारतीय सैनिकों ने संयुक्त राष्ट्र के 72 मिशनों में से 49 में भागीदारी की है, जहाँ विश्व भर में कुल 253,000 से अधिक कर्मी तैनात किये गए हैं।
    • महिला शांतिरक्षक: भारत ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में संयुक्त राष्ट्र संगठन स्थिरीकरण मिशन (United Nations Organization Stabilization Mission) और अबेई के लिये संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सुरक्षा बल (United Nations Interim Security Force for Abyei) में महिला संलग्नता दलों (Female Engagement Teams) की तैनाती की, जो लाइबेरिया के बाद दूसरी सबसे बड़ी महिला टुकड़ी थी।
  • चिकित्सा और इंजीनियरिंग इकाइयाँ: भारत संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सा देखभाल और अवसंरचना विकास जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करने के लिये चिकित्सा दलों और इंजीनियरिंग इकाइयों की तैनाती करता है।
  • प्रशिक्षण में विशेषज्ञता प्रदान करना: भारत का संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (Centre for United Nations Peacekeeping- CUNPK) शांति स्थापना अभियानों में प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान करता है।
  • नेतृत्वकारी भूमिकाएँ: भारतीय अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र मिशनों में नेतृत्वकारी भूमिकाएँ (फ़ोर्स कमांडर सहित) निभाई हैं और प्रभावी मिशन प्रबंधन में योगदान किया है।
  • मानवीय सहायता: सैन्य योगदान के अलावा, भारत ने संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में चिकित्सा सहायता और आपदा राहत सहायता सहित मानवीय सहायता भी प्रदान की है।

संयुक्त राष्ट्र में कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • UNSC की संरचना और कार्यप्रणाली में सुधार:
    • स्थायी सदस्यों की संख्या का विस्तार करना।
    • सामूहिक उत्पीड़न के मामलों में वीटो के उपयोग पर सीमाएँ लागू करना और सामूहिक वीटो परामर्श (collective veto consultation) शुरू करना।
    • DPPA (Department of Political and Peacebuilding Affairs) और DPO (Department of Peace Operations) को पर्याप्त संसाधन प्रदान करना।
    • समन्वय को सुव्यवस्थित और उन्नत करने के लिये एकल राजनीतिक-संचालन संरचना का निर्माण करना
  • संघर्ष निवारण तंत्र को सुदृढ़ करना:
    • ख़ुफ़िया जानकारी संग्रहण को बेहतर बनाना और क्षेत्रीय पूर्व-चेतावनी केंद्रों का विकास करना।
    • राजनयिक प्रयासों में निवेश करना और विशेष दूतों की भूमिका का विस्तार करना।
  • शांति-रक्षा अभियानों को संवृद्ध करना:
    • क्रॉस-पिलर समन्वय (cross-pillar coordination) को बढ़ावा देने के साथ एक समन्वित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करना।
    • हाइब्रिड एवं अपरंपरागत युद्ध में प्रशिक्षण प्रदान करना और शांति सैनिकों को उन्नत तकनीक से लैस करना।
    • शांतिरक्षक अनुशासन को सुदृढ़ करते हुए कदाचार और यौन शोषण के मुद्दों को संबोधित करना।
  • भागीदारी को सुदृढ़ करना:
    • गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के साथ संबंध सुदृढ़ करना और ज़मीनी स्तर पर भागीदारी को बढ़ावा देना।
    • निजी क्षेत्र से संसाधनों और विशेषज्ञता का लाभ उठाना, व्यावसायिक हितों को शांति एवं सुरक्षा लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।
    •  अफ्रीकी संघ और यूरोपीय संघ जैसी क्षेत्रीय संस्थाओं के साथ संबंध बढ़ाना तथा संयुक्त शांति स्थापना पहल में भागीदारी करना।

निष्कर्ष

विश्व में संघर्षों, आतंकवाद, मानवीय संकटों एवं अन्य उभरते खतरों के साथ एक नवीन ऊर्जावान और अधिक कुशल संयुक्त राष्ट्र शांति एवं सुरक्षा तंत्र की आवश्यकता तेज़ी से स्पष्ट होती जा रही है। हालाँकि, यह स्वीकार करना भी महत्त्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र सुधारों को लागू करने के लिये सदस्य देशों की सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ-साथ लगातार निगरानी एवं मूल्यांकन की आवश्यकता होगी।

अभ्यास प्रश्न: समसामयिक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं वैश्विक व्यवस्था बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका के बारे में चर्चा कीजिये। इस महत्त्वपूर्ण मिशन में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्य महासभा द्वारा कितनी अवधि के लिये चुने जाते हैं? (2009)

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता लेने हेतु भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)


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