भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की व्यापारिक गतिशीलता
यह एडिटोरियल 02/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “In an uncertain world, India's trade push” लेख पर आधारित है। इसमें वैश्विक व्यापार गतिशीलता और भारत द्वारा अपने व्यापार को बढ़ावा देने के प्रयासों तथा एक प्रमुख निर्यातक राष्ट्र के रूप में इसकी क्षमता की पड़ताल की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:विदेश व्यापार नीति 2023, व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, मेक इन इंडिया, PLI योजना, मुक्त व्यापार समझौते, विशेष रुपए वोस्ट्रो खाते (SRVA), रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, भारत के खाद्य एवं फार्मा उत्पादों को अस्वीकृति। मेन्स के लिये:स्वतंत्रता के बाद भारत की व्यापार गतिशीलता, भारत के व्यापार को बढ़ावा देने वाले क्षेत्र। |
वैश्विक चुनौतियों और अवसरों के बीच भारत का व्यापार परिदृश्य विकसित हो रहा है। जबकि निम्न अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी मूल्यों ने पेट्रोलियम निर्यात जैसे पारंपरिक क्षेत्रों को प्रभावित किया है, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि जैसे उभरते क्षेत्र आशाजनक दिख रहे हैं। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के साथ भारत के हाल के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) आर्थिक संबंधों को गहरा करने और अधिक बाज़ार पहुँच हासिल करने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
भारत द्वारा व्यापार को बढ़ावा देना (trade push) न केवल एक आर्थिक अनिवार्यता है, बल्कि वैश्विक व्यापार परिदृश्य की जटिलताओं से निपट सकने तथा एक प्रमुख निर्यातक राष्ट्र के रूप में अपनी वास्तविक क्षमता को उजागर कर सकने की इसकी क्षमता का एक लिटमस परीक्षण भी है।
स्वतंत्रता के बाद भारत की व्यापार गतिशीलता:
- स्वतंत्रता के बाद (वर्ष 1947 से 1990 के दशक तक): भारत ने एक संरक्षणवादी व्यापार रुख अपनाया, जो उच्च आयात बाधाओं, कठोर औद्योगिक विनियमन और आयात प्रतिस्थापन पर केंद्रित ध्यान से चिह्नित होता है।
- इस अवधि में व्यापार में सीमित खुलापन तथा अत्यधिक विनियमित अर्थव्यवस्था देखी गई, जिसे ‘लाइसेंस राज’ प्रणाली के रूप में जाना जाता है।
- उदारीकरण सुधार (वर्ष 1991 के बाद): वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन के गंभीर संकट से विवश होकर भारत ने आर्थिक उदारीकरण की राह अपनाई।
- इसमें ‘लाइसेंस राज’ को समाप्त करना, व्यापार को उदार बनाना, विदेशी निवेश के लिये अर्थव्यवस्था को खोलना और बाज़ार-उन्मुख नीतियों को अपनाना शामिल था।
- वैश्विक बाज़ारों के लिये क्रमिक रूप से खुलना (1990 के दशक से 2000 के दशक तक): आगे के दशकों में भारत ने अपनी व्यापार नीतियों को उदार बनाना जारी रखा और धीरे-धीरे वैश्विक बाज़ारों के लिये अपनी अर्थव्यवस्था के द्वार खोल दिए।
- इसने विभिन्न क्षेत्रीय एवं द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये, जिनमें आसियान, जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों के साथ संपन्न समझौते शामिल थे।
- वैश्विक आर्थिक एकीकरण पर फोकस (2010 के दशक से अब तक): हाल के वर्षों में भारत ने वैश्विक आर्थिक एकीकरण पर पुनः ध्यान केंद्रित किया है।
- भारत की विदेश व्यापार नीति 2023 ‘निर्यात उत्कृष्ट शहर योजना’ (Towns of Export Excellence Scheme) के माध्यम से नए शहरों की मान्यता को प्रोत्साहित कर रही है।
- भारत व्यापार संबंधों के विविधीकरण और बेहतर बाज़ार पहुँच के लिये यूरोपीय संघ (EU) और यूनाइटेड किंगडम (UK) के साथ व्यापक व्यापार समझौतों पर वार्ता कर रहा है।
- रुपया व्यापार और डिजिटल अवसंरचना को अपनाना: भारत अपनी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संभावनाओं को रूपांतरित करने के लिये यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) जैसी डिजिटल अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकी का तेज़ी से लाभ उठा रहा है।
- संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, मॉरीशस, श्रीलंका सहित विभिन्न विदेशी बाज़ार UPI भुगतान को स्वीकार कर रहे हैं।
- भारत रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण (Internationalisation of Rupees) पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 18 देशों के बैंकों को भारतीय रुपए में भुगतान का निपटान करने के लिये विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते (Special Vostro Rupee Accounts- SVRAs) खोलने की अनुमति दी है।
भारत के व्यापार विकास को बढ़ावा दे रहे प्रमुख क्षेत्र:
- सेवा क्षेत्र: यह एक प्रमुख चालक है जिसने व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में निर्यात में 11% से अधिक की वृद्धि दर्ज की। इसके प्रमुख उप-क्षेत्रों में शामिल हैं:
- IT और IT-सक्षम सेवाएँ (ITES): यह ‘पावरहाउस’ है, जो सॉफ्टवेयर विकास, बैक-ऑफिस संचालन और कॉल सेंटरों के लिये वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करता है।
- भारत का विशाल प्रतिभा पूल और प्रतिस्पर्द्धी मूल्य निर्धारण इसे प्राप्त प्रमुख लाभ हैं।
- पर्यटन एवं आतिथ्य: भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविध भूदृश्यों के साथ तेज़ी से एक आकर्षक पर्यटन गंतव्य के रूप में उभर रहा है।
- ‘देखो अपना देश’ जैसी सरकारी पहलों, G-20 जैसे आयोजनों में छोटे शहरों को बढ़ावा देने आदि से इस क्षेत्र को और बढ़ावा मिल रहा है।
- चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर्यटन: भारत में वहनीय स्वास्थ्य लागत के साथ ही कुशल चिकित्सा पेशेवरों के कारण विदेशों से रोगियों की आमद हो रही है। चिकित्सा पर्यटन के इस क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
- सरकार के आँकड़े के अनुसार वर्ष 2022 में 1.4 मिलियन से अधिक चिकित्सा पर्यटक भारत आए।
- IT और IT-सक्षम सेवाएँ (ITES): यह ‘पावरहाउस’ है, जो सॉफ्टवेयर विकास, बैक-ऑफिस संचालन और कॉल सेंटरों के लिये वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करता है।
- माल/वस्तु क्षेत्र: जहाँ सेवा क्षेत्र प्रबल स्थिति रखता है, वहीं माल निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके प्रमुख उप-क्षेत्रों में शामिल हैं:
- इंजीनियरिंग वस्तु: इस क्षेत्र में मशीनरी, वाहन और जनरेटर एवं ट्रांसफॉर्मर जैसी पूंजीगत वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि देखी जा रही है।
- सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल और PLI योजना घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण कारक सिद्ध हुई हैं।
- भारत के माल निर्यात में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की हिस्सेदारी वर्ष 2017-18 में लगभग 2% से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 6.5% हो गई है।
- फार्मास्यूटिकल्स: भारत एक अग्रणी जेनेरिक दवा निर्माता है, जो वैश्विक स्तर पर सस्ती दवाएँ उपलब्ध कराता है।
- वहनीय/सस्ते स्वास्थ्य देखभाल समाधानों की बढ़ती वैश्विक मांग के साथ इस क्षेत्र में निरंतर वृद्धि होने की उम्मीद है।
- वाणिज्य मंत्रालय ने भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात में 10% की वृद्धि की सूचना दी है, जो वित्त वर्ष 2024 में 28 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- वस्त्र एवं परिधान: भारत का वस्त्र उद्योग अपने पारंपरिक सामर्थ्य के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों की मांग को पूरा करने के लिये आधुनिकीकरण के दौर से गुज़र रहा है।
- कुशल श्रम और सुदृढ़ कपास उत्पादन आधार इसकी सफलता में योगदान दे रहे हैं।
- भारत ने अप्रैल 2023 से फ़रवरी 2024 के दौरान 30.96 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का वस्त्र निर्यात किया।
- कृषि एवं प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ: भारत चावल, गेहूँ और मसालों जैसे कृषि उत्पादों का एक प्रमुख उत्पादक है।
- गैर-बासमती चावल एवं गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध और अन्य नियंत्रणों के बावजूद समग्र कृषि एवं संबद्ध निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- हाल की वृद्धि मांस, पोल्ट्री उत्पाद, मसाले, फल, सब्जियाँ, खली (oil meals), तिलहन और असंसाधित तंबाकू जैसी श्रेणियों से प्रेरित थी।
- इंजीनियरिंग वस्तु: इस क्षेत्र में मशीनरी, वाहन और जनरेटर एवं ट्रांसफॉर्मर जैसी पूंजीगत वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि देखी जा रही है।
- विकास को प्रेरित कर रहे अन्य कारक:
- मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements- FTAs): यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (European Free Trade Association- EFTA), मॉरीशस और UAE के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौतों से टैरिफ एवं व्यापार बाधाएँ कम हो गई हैं, जिससे भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन रहा है।
- दुबई में हाल ही में उद्घाटित ‘भारत मार्ट’ (Bharat Mart) इसी दिशा में एक कदम है, जो भारतीय MSMEs के लिये एक भंडारण सुविधा है।
- स्टार्टअप पारितंत्र: भारत में तेज़ी से उभरता स्टार्टअप पारितंत्र नवाचार को बढ़ावा दे रहा है और वैश्विक बाज़ारों के लिये नए उत्पादों एवं सेवाओं का निर्माण कर रहा है।
- भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा टेक स्टार्टअप पारितंत्र बना हुआ है, जहाँ वर्ष 2023 में 950 से अधिक टेक स्टार्टअप स्थापित किये गए।
- जनसांख्यिकीय लाभांश: भारत की युवा आबादी एक बड़ा कार्यबल और बढ़ता हुआ घरेलू बाज़ार प्रदान करती है, जिससे व्यापार को आगे और बढ़ावा मिल रहा है।
- वर्तमान में भारतीय जनसंख्या का 65% भाग 35 वर्ष से कम आयु वर्ग का है।
- भारत द्वारा अवसंरचना को बढ़ावा (Infrastructure Push): ‘भारतमाला’ और ‘सागरमाला’ जैसी पहलों के माध्यम से आधारभूत संरचना के विकास में सरकार का उल्लेखनीय निवेश परिवहन लागत एवं पारगमन समय को पर्याप्त कम कर रहा है।
- यह बेहतर कनेक्टिविटी देश भर में और अंतरराष्ट्रीय बंदरगाहों तक माल परिवहन को आसान एवं द्रुत बना रही है, जिससे वैश्विक व्यापार में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ रही है।
- मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreements- FTAs): यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (European Free Trade Association- EFTA), मॉरीशस और UAE के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौतों से टैरिफ एवं व्यापार बाधाएँ कम हो गई हैं, जिससे भारतीय निर्यात अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन रहा है।
भारत के व्यापार विकास में प्रमुख बाधाएँ
- अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी/पण्य मूल्यों में गिरावट: भारत के सामने सबसे प्रमुख बाधाओं में से एक अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी मूल्यों में, विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में, हो रही तेज़ गिरावट है।
- कच्चे तेल के मूल्यों में गिरावट से भारत के निर्यात बिल को भारी झटका लगा है, जहाँ वित्त वर्ष 2023-24 में पेट्रोलियम निर्यात में 13.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की भारी गिरावट आई।
- यह गिरावट वैश्विक कमोडिटी बाज़ारों में उतार-चढ़ाव के प्रति भारत की संवेदनशीलता को रेखांकित करती है, क्योंकि इसकी निर्यात टोकरी में तेल एक बड़ी हिस्सेदारी रखता है।
- श्रम-प्रधान क्षेत्र: वस्त्र, रत्न एवं आभूषण तथा चर्म उत्पादों जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों से निर्यात में गिरावट आई है। एक दशक से अधिक समय से देखी जा रही इस प्रवृत्ति को उलटने की आवश्यकता है ताकि अधिक रोज़गार सृजित हो सकें।
- खाद्य एवं फार्मा उत्पादों की अस्वीकृति: विकसित देशों में कठोर गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के कारण भारतीय खाद्य एवं फार्मास्यूटिकल निर्यात को अस्वीकार किया जा रहा है जहाँ सुरक्षा मानकों या विनियमों के अनुपालन संबंधी चिंताएँ व्यक्त की जाती हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत में कफ सिरप बनाने वाली 50 से अधिक कंपनियाँ गुणवत्ता परीक्षण में विफल रही हैं।
- पिछले छह माह में अमेरिकी कस्टम अधिकारियों ने साल्मोनेला संदूषण के कारण महाशियान दी हट्टी (MDH के रूप में मशहूर) के 31% मसाला शिपमेंट को प्रवेश देने से इनकार कर दिया है।
- निर्यात का भौगोलिक संकेंद्रण: भारत का निर्यात परंपरागत रूप से कुछ प्रमुख बाज़ारों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय क्षेत्र में संकेंद्रित रहा है।
- जबकि निर्यात गंतव्यों में विविधता लाने के प्रयास किये जा रहे हैं, कुछ ही बाज़ारों पर अत्यधिक निर्भरता भारत के व्यापार को उन क्षेत्रों में आर्थिक दशाओं के प्रति भेद्य बना सकती है।
आगे की राह
- श्रम-प्रधान क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना: इन क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों को आकर्षित करने और बनाए रखने के लिये अत्याधुनिक अवसंरचना, कौशल विकास केंद्रों एवं वित्तीय प्रोत्साहन के साथ समर्पित ‘कारीगर क्षेत्र’ (Artisan Zones) की स्थापना की जानी चाहिये।
- भारतीय शिल्प कौशल को प्रदर्शित करने वाली अनूठी उत्पाद शृंखला के निर्माण के लिये अंतर्राष्ट्रीय फैशन हाउस और लक्जरी ब्रांडों के साथ सहयोग किया जाए।
- इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने और कारीगरों के लिये स्थायी आजीविका के सृजन के लिये ‘शिल्प पर्यटन’ (Craft Tourism) पहल लागू किया जाए।
- ‘फार्म-टू-फोर्क’ ट्रैसेबिलिटी प्रणाली: संपूर्ण आपूर्ति शृंखला में पारदर्शिता एवं अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ‘फार्म-टू-फोर्क’ ट्रैसेबिलिटी प्रणाली ('Farm-to-Fork' traceability system) लागू की जाए।
- लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों और सर्वोत्तम अभ्यासों के अंगीकरण में सहायता प्रदान करने के लिये ‘गुणवत्ता अनुपालन त्वरक’ (Quality Compliance Accelerator) कार्यक्रम का निर्माण किया जाए।
- निर्यात की त्वरित मंज़ूरी/क्लीयरेंस हेतु सामंजस्यपूर्ण मानक एवं पारस्परिक मान्यता समझौते विकसित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय नियामक निकायों के साथ साझेदारी का निर्माण किया जाए।
- ‘ब्रांड इंडिया’ वैश्विक विपणन अभियान: भारतीय उत्पादों एवं सेवाओं के प्रचार-प्रसार के लिये एक व्यापक ‘ब्रांड इंडिया’ वैश्विक विपणन अभियान शुरू किया जाए जहाँ उनकी गुणवत्ता, शिल्प कौशल और अद्वितीय मूल्य प्रस्तावों को उजागर किया जाए।
- नए बाज़ारों तक पहुँच बनाने और भारतीय निर्यात के बारे में धारणा को बदलने के लिये सोशल मीडिया, प्रभावशाली विपणन एवं लक्षित विज्ञापन अभियानों का लाभ उठाया जाए।
- भारतीय उत्पादों का समर्थन एवं प्रचार करने के लिये प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों और मशहूर हस्तियों के साथ सहकार्यता स्थापित की जाए ताकि उनकी वैश्विक अपील और मान्यता बढ़े।
- क्षेत्रीय व्यापार समझौतों पर ध्यान केंद्रित करना: एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में नवीन एवं उभरते बाज़ारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते संपन्न किये जाएँ। इससे निर्यात गंतव्यों में विविधता लाने और पारंपरिक बाज़ारों पर निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।
अभ्यास प्रश्न: भारत की व्यापार गतिशीलता में प्रमुख चुनौतियों, अवसरों एवं रूपांतरणों पर प्रकाश डालते हुए संरक्षणवाद से उदारीकरण तक भारत की व्यापार नीति के विकास की चर्चा कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015) (a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना उत्तर: (c) प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास के उच्च स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रहता है। उत्तर: (c) प्रश्न. "बंद अर्थव्यवस्था" एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011) (a) मुद्रा की आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है। उत्तर: (d) |