भारत की जीडीपी वृद्धि: चुनौतियाँ और अवसर
यह एडिटोरियल 30/10/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “An unfolding economic tragedy” लेख पर आधारित है। इसमें तर्क दिया गया है कि भारत कोविड-19 महामारी, सरकार के कुप्रबंधन और संरचनात्मक सुधारों की कमी के कारण गंभीर आर्थिक मंदी का सामना कर रहा है।
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद (GDP), वर्ष 2007-08 का वैश्विक वित्तीय संकट, रुपए के मूल्य में वृद्धि, वस्तु और सेवा कर (GST), निगम कर में कटौती, दिवाला और दिवालियापन संहिता, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, श्रम संहिता मेन्स के लिये:भारत का विकास पथ, पिछले वर्षों में विकास दर में गिरावट के पीछे के कारण, सकारात्मक कारक जो भारत को मंदी से उबरने में मदद कर सकते हैं, भारत की विकास दर को और अधिक मज़बूत बनाने के लिये आगे की राह |
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अगस्त के अंत में घोषणा की कि भारत के वस्तु और सेवा कर (GST) में अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि हुई है, जो 7.8% के आकर्षक वार्षिक वृद्धि दर को दर्शाता है। इस उल्लेखनीय आर्थिक प्रदर्शन ने व्यापक उत्साह उत्पन्न किया है, क्योंकि इसने दुनिया में सबसे तेज़ी से विकास करती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की स्थिति की पुष्टि की है।
अतीत में विकास का प्रक्षेपवक्र
- 2000 के दशक का मध्य: 2000 के दशक के मध्य में भारत की जीडीपी ने वार्षिक 9% की वृद्धि दर्ज की थी जहाँ ऐतिहासिक रूप से उच्च विश्व व्यापार वृद्धि ने सभी अर्थव्यवस्थाओं को वृद्धि का अवसर प्रदान किया था।
- वित्तीय क्षेत्र-रियल एस्टेट-निर्माण क्षेत्र के एक बुलबुले ने उस विकास को और बढ़ावा दिया जो सतत नहीं रहा।
- वर्ष 2007-08 का वैश्विक वित्तीय संकट के बाद विकास दर 6% तक धीमी हो गई क्योंकि विश्व व्यापार में तेज़ी से गिरावट आई।
- वर्ष 2012-15: वर्ष 2012-13 तक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि लगभग 4.5% तक गिर गई, लेकिन जनवरी 2015 में डेटा संशोधन के बाद उस वर्ष और अगले तीन वर्षों के लिये पुनः विकास में उछाल नज़र आया। उल्लेखनीय है कि तब से सरकार ने फैक्टरी मूल्य के बजाय बाज़ार मूल्य के आधार पर सकल घरेलू उत्पाद की गणना शुरू कर दी है।
- पद्धति में इस बदलाव से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर संख्यात्मक रूप से तो बढ़ गई लेकिन वास्तविक रूप से इसमें वृद्धि नहीं हुई।
- वर्ष 2016-18: नोटबंदी और वस्तु और सेवा कर (GST) लागू होने के साथ मंदी की शुरुआत हुई और एक बार जब वर्ष 2018 में IL&FS के दिवालियापन के बाद वित्तीय क्षेत्र-रियल एस्टेट का बुलबुला टूट गया तो महामारी से ठीक पूर्व के वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर घटकर 3.9% रह गई।
- पूर्व-कोविड वर्ष: वस्तुतः पूर्व-कोविड वृद्धि प्रचारित अनुमान की तुलना में गंभीर रूप से कम रही थी।
- भारतीय सांख्यिकीय अधिकरियों ने उत्पादन से प्राप्त आय को सकल घरेलू उत्पाद के माप का आधार बनाया।
- सैद्धांतिक रूप से, भारतीय उत्पादों पर व्यय (राष्ट्रीय निवासियों और विदेशियों द्वारा) आय के बराबर होना चाहिये क्योंकि उत्पादकों को आय तभी प्राप्त होती है जब कोई उनका माल खरीदता है।
- लेकिन पूर्व-कोविड वर्ष में व्यय की वृद्धि महज 1.9% की दर से हुई।
- सैद्धांतिक रूप से, भारतीय उत्पादों पर व्यय (राष्ट्रीय निवासियों और विदेशियों द्वारा) आय के बराबर होना चाहिये क्योंकि उत्पादकों को आय तभी प्राप्त होती है जब कोई उनका माल खरीदता है।
- कोविड वर्ष: औसत निकालने की इस पद्धति से महामारी वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में 2.9% की वृद्धि दर्ज की गई।
- 2000 के दशक के मध्य में सकल घरेलू उत्पाद की 9% वृद्धि से महामारी से पूर्व के वर्षों में महज 3%-4% की वृद्धि मांग में गंभीर कमज़ोरी को दर्शाती है।
- यह कमज़ोरी निजी कॉर्पोरेट नियत निवेश (private corporate fixed investment) में वर्ष 2007-8 में सकल घरेलू उत्पाद के 17% के शीर्ष स्तर से वर्ष 2019-20 में 11% तक की भारी गिरावट के रूप में भी प्रकट हुई।
- नौकरी और आय अर्जन की संभावनाओं से भयभीत घरेलू उपभोक्ताओं की सीमित क्रय शक्ति को चिह्नित करते हुए निजी निगमों ने निवेश में कटौती कर दी, जबकि विदेशियों क्रेताओं में भारतीय वस्तुओं के लिये सीमित भूख ही नज़र आई।
- 2000 के दशक के मध्य में सकल घरेलू उत्पाद की 9% वृद्धि से महामारी से पूर्व के वर्षों में महज 3%-4% की वृद्धि मांग में गंभीर कमज़ोरी को दर्शाती है।
- उत्तर-कोविड वर्ष: कोविड -19 के बाद के वर्षों में अर्थव्यवस्था में पुनः उछाल आया। यह पहले तेज़ी से गिरी, फिर इसमें मामूली सुधार हुआ, फिर यह गंभीर रूप से मंद पड़ी और वर्ष 2022 के अंत से इसमें एक अस्थायी सुधार (dead cat bounce) का अनुभव हुआ।
- कोविड चरण का आकलन करने का एकमात्र तरीका यह होगा कि पूरी अवधि में औसत विकास दर का निर्धारण किया जाए।
- हालाँकि यह भी इतना सरल नहीं है। यदि हम कोविड से पहले की चार तिमाहियों की तुलना में नवीनतम चार तिमाहियों पर विचार करें तो वार्षिक वृद्धि दर (आय और व्यय औसत की) 4.2% है।
- यदि हम केवल नवीनतम तिमाही की तुलना कोविड से पहले की तिमाही से करें तो वार्षिक वृद्धि महज 2% से कुछ ही अधिक है।
- कोविड के बाद मांग में कमज़ोरी का स्पष्ट संकेत वर्ष 2021-22 में निजी कॉर्पोरेट निवेश में जीडीपी के 10% तक की और गिरावट से भी प्रकट होता है।
- विश्लेषकों का मानना है कि वर्ष 2022-23 में भी यह ‘एनीमिक’ या कमज़ोर बना रहा है।
पिछले वर्षों में विकास दर में गिरावट के पीछे के प्राथमिक कारण
- कमज़ोर बाहरी मांग: बाहरी मांग आर्थिक विकास का एक और महत्त्वपूर्ण स्रोत है, क्योंकि यह विश्व के साथ अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और एकीकरण को दर्शाती है। हालाँकि वर्ष 2013-14 से भारत के निर्यात-जीडीपी अनुपात (exports to GDP ratio) में गिरावट आ रही है। वर्ष 2011-12 में यह अनुपात 25% था जो वर्ष 2019-20 तक घटकर 18% रह गया।
- इस गिरावट के लिये विभिन्न कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे कि वैश्विक विकास में मंदी, रुपए के मूल्य में वृद्धि, बाज़ार हिस्सेदारी में कमी और व्यापार बाधाएँ।
- निम्न पूंजी निवेश: भारत की निवेश दर वर्ष 2010 में सकल घरेलू उत्पाद के 39.8% से गिरकर वर्ष 2021 में अनुमानित रूप से 29.3% रह गई। यह अर्थव्यवस्था में आत्मविश्वास और मांग की कमी के साथ-साथ भूमि अधिग्रहण, पर्यावरण मंज़ूरी और ऋण उपलब्धता जैसी संरचनात्मक बाधाओं को दर्शाता है।
- नीतिगत अनिश्चितता और झटके: सरकार ने कई नीतिगत बदलाव और सुधार लागू किये हैं जिनका अर्थव्यवस्था पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है। इनमें विमुद्रीकरण/नोटबंदी, वस्तु और सेवा कर (GST), कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती, दिवाला और दिवालियापन संहिता आदि शामिल हैं।
- हालाँकि इनमें से कुछ के दीर्घकालिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिये अल्पकालिक व्यवधान एवं अनिश्चितताएँ भी पैदा कीं।
- बढ़ती असमानता और गरीबी: भारत की आर्थिक वृद्धि समावेशी या समतामूलक नहीं रही है। आबादी के शीर्ष 10% की आय हिस्सेदारी वर्ष 1980 में 31% से बढ़कर वर्ष 2016 में 56% हो गई, जबकि निचले 50% की हिस्सेदारी 24% से गिरकर 15% रह गई। वर्ष 2011 के बाद से गरीबी दर भी लगभग 20% पर गतिहीन बनी हुई है।
- विनिर्माण क्षेत्र का कमज़ोर प्रदर्शन: विनिर्माण आर्थिक विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह मूल्यवर्द्धन, निर्यात और रोज़गार में योगदान करता है। लेकिन भारत का विनिर्माण क्षेत्र पिछले एक दशक से कमज़ोर प्रदर्शन कर रहा है, जहाँ वर्ष 2019-20 में इसके वास्तविक सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) में लगभग 3% की गिरावट आई।
- इस गिरावट के लिये विभिन्न कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे नोटबंदी, GST लागू किया जाना, वैश्विक व्यापार तनाव और प्रतिस्पर्द्धा की कमी।
- उपभोग में गिरावट: उपभोग जीडीपी का एक अन्य प्रमुख घटक है, क्योंकि यह लोगों की क्रय शक्ति और जीवन स्तर को दर्शाता है। हालाँकि, भारत का उपभोग व्यय (जीडीपी के हिस्से के रूप में) भी वर्ष 2019-20 में 60.5% से गिरकर वर्ष 2021-22 में 57.5% रह गया।
- इस गिरावट के लिये निम्न आय वृद्धि, उच्च मुद्रास्फीति, ग्रामीण संकट, रोज़गार हानि और ऋण उपलब्धता की कमी जैसे विभिन्न कारणों को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।
- बचत में कमी: उपभोग को बनाए रखने के लिये परिवारों ने अपनी बचत दरों को वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद के 11.9% से घटाकर 5.1% कर लिया है। क्रेडिट कार्ड के लिये पात्र लोगों पर ऋण का चिंताजनक स्तर बढ़ता जा रहा है।
वे कौन-से सकारात्मक कारक हैं जो भारत को इस मंदी से उबरने में मदद कर सकते हैं?
- एक बड़ी और युवा आबादी: रिपोर्टों के अनुसार, भारत की आबादी 1.4 बिलियन से अधिक है, जिसमें 40% से अधिक लोग 25 वर्ष से कम आयु के हैं। यह आर्थिक विकास के लिये एक बड़ा जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करता है, क्योंकि यह एक बड़े एवं बढ़ते कार्यबल और उपभोक्ता आधार को इंगित करता है।
- हालाँकि इसके लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल जैसे मानव पूंजी विकास में पर्याप्त निवेश की भी आवश्यकता है।
- एक प्रत्यास्थी और विविध अर्थव्यवस्था: भारत की एक विविध अर्थव्यवस्था है जो विभिन्न सेक्टर और क्षेत्र (region) तक विस्तृत है। यह सेक्टर-विशिष्ट या क्षेत्र-विशिष्ट झटकों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है और व्यापक आर्थिक स्थिरता (macroeconomic stability) बनाए रखने में मदद करता है।
- इसके अलावा, भारत ने अतीत में विभिन्न संकटों, जैसे कि वर्ष 2007-08 का वैश्विक वित्तीय संकट और 2020-21 की कोविड-19 महामारी, से निपटने में प्रत्यास्थता का प्रदर्शन किया है।
- एक सुधार-उन्मुख और सक्रिय सरकार: भारत सरकार उन सुधारों और नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है जो आर्थिक वृद्धि एवं विकास को बढ़ा सकते हैं।
- सरकार द्वारा हाल ही में की गई कुछ पहलों में आत्मनिर्भर भारत पैकेज, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन और श्रम संहिता विधेयक शामिल हैं।
- हालाँकि इन पहलों के लिये प्रभावी कार्यान्वयन और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वयन की भी आवश्यकता है।
- सरकार द्वारा हाल ही में की गई कुछ पहलों में आत्मनिर्भर भारत पैकेज, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन और श्रम संहिता विधेयक शामिल हैं।
भारत की विकास दर को और अधिक सुदृढ़ करने के लिये क्या करने की आवश्यकता है?
- निवेश और उपभोग को बढ़ावा देना: ये घरेलू मांग के दो मुख्य चालक हैं, जो भारत की जीडीपी में लगभग 70% हिस्सेदारी रखते हैं।
- निवेश बढ़ाने के लिये सरकार उन सुधारों को लागू करना जारी रख सकती है जो नीतिगत अनिश्चितता, नियामक बाधाओं, ब्याज दरों और ‘बैड लोन्स’ को कम करते हैं।
- उपभोग बढ़ाने के लिये सरकार आय वृद्धि, मुद्रास्फीति नियंत्रण, ग्रामीण विकास, रोज़गार सृजन और ऋण उपलब्धता का समर्थन कर सकती है।
- विनिर्माण और निर्यात को बढ़ाना: ये मूल्यवर्द्धन, रोज़गार और बाहरी मांग के प्रमुख स्रोत हैं, जो भारत को अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने और वैश्विक बाज़ार के साथ एकीकृत होने में मदद कर सकते हैं।
- विनिर्माण और निर्यात में सुधार के लिये सरकार आत्मनिर्भर भारत पैकेज, प्रोडक्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना और राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन जैसी पहलों को लागू करना जारी रख सकती है।
- सरकार मुद्रा मूल्य वृद्धि (currency appreciation), बाज़ार हिस्सेदारी की हानि और व्यापार बाधाओं जैसे मुद्दों को भी संबोधित कर सकती है।
- मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश करना: ये भारत की बड़ी और युवा आबादी के जीवन स्तर एवं उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कारक हैं।
- सरकार मानव पूंजी और सामाजिक सेवाओं में निवेश करने के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल, पोषण, जल, स्वच्छता, ऊर्जा, आवास एवं स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ाने वाले कार्यक्रमों को लागू करना जारी रख सकती है।
- सरकार यह भी सुनिश्चित कर सकती है कि ये कार्यक्रम उन लोगों तक पहुँच सकें जिन्हें वास्तव में उनकी आवश्यकता है और उन्हें कुशलतापूर्वक वितरित किया जाए।
- व्यापक आर्थिक स्थिरता और प्रत्यास्थता बनाए रखना: आर्थिक विकास को बनाए रखने और विभिन्न झटकों एवं अनिश्चितताओं से निपटने के लिये ये आवश्यक शर्तें हैं।
- व्यापक आर्थिक स्थिरता और प्रत्यास्थता बनाए रखने के लिये, सरकार ऐसी विवेकपूर्ण राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों को आगे बढ़ाना जारी रख सकती है जो विकास एवं मुद्रास्फीति के उद्देश्यों को संतुलित करती हैं।
अभ्यास प्रश्न: हाल के वर्षों में भारत की आर्थिक वृद्धि में उल्लेखनीय उतार-चढ़ाव देखा गया है। सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में गिरावट के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारकों का विश्लेषण कीजिये और वे उपाय सुझाइये जो भारत सरकार को अर्थव्यवस्था को फिर से जीवंत करने के लिये आपनाने चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019) (a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020) प्रश्न. भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के वर्ष 2015 के पूर्व तथा वर्ष 2015 के बाद परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021) |