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एडिटोरियल

  • 02 Aug, 2024
  • 25 min read
सामाजिक न्याय

वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में भारत की भूमिका

यह एडिटोरियल 01/08/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The global struggle for a pandemic treaty” लेख पर आधारित है। इसमें WHO सदस्य देशों द्वारा ऐतिहासिक महामारी समझौते को अंतिम रूप देने में विफलता पर चर्चा की गई है और रोगजनकों तक पहुँच एवं लाभ साझेदारी, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण के विवादास्पद मुद्दों को रेखांकित किया गया है। लेख में वैश्विक महामारी हेतु तैयारी और समतामूलकता में सुधार के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा आपसी एकजुटता की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य सभा, एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण, बौद्धिक संपदा (IP) अधिकार, ट्रिप्स, हृदय रोग, मलेरिया, HIV/एड्स, गैर-संचारी रोग, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, भारत का CoWIN प्लेटफॉर्म, आयुष्मान भारत। 

मेन्स के लिये:

वर्तमान में दुनिया को प्रभावित करने वाली प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियाँ, वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रयासों में भारत की भूमिका

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों में संशोधन और महामारी संधि के लिये वार्ता के विस्तार के साथ वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया। हालाँकि, इस संधि का अंगीकृत होना अभी अनिश्चित बना हुआ है। विवाद का मुख्य बिंदु रोगजनकों और संबंधित लाभों के बँटवारे को लेकर है, जहाँ विकासशील देश उनके आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उत्पादित टीकों और निदान तक समतामूलक पहुँच की मांग कर रहे हैं। इसके साथ ही, जबकि ‘वन हेल्थ’ का दृष्टिकोण (One Health approach) गति पकड़ रहा है, विकासशील देशों में संसाधन की कमी के कारण इसके कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

वैश्विक स्वास्थ्य में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये इन वार्ताओं में सक्रिय रूप से संलग्न होना चाहिये। उसे एक प्रबल रोगजनक अभिगम्यता (Pathogen Access) और लाभ साझाकरण तंत्र (Benefit Sharing mechanism) की पैरोकारी करनी चाहिये, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एवं बौद्धिक संपदा छूट पर बल देना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि देश में ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण लागू हो।

वर्तमान में विश्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • हृदय संबंधी रोग: हृदय संबंधी रोग (CardioVascular Diseases- CVDs) विश्व स्तर पर मृत्यु का प्रमुख कारण हैं।
    • निम्न और मध्यम-आय देश इससे असमान रूप से प्रभावित हैं। वर्ष 2021 में 20.5 मिलियन CVDs संबंधी मौतों में से लगभग 80% निम्न और मध्यम-आय देशों में हुईं।
    • भारत में कुल मौतों में से 26% से अधिक मौतें हृदय संबंधी रोगों के कारण होती हैं।
  • संक्रामक रोग: जबकि कोविड-19 सुर्ख़ियों में छाया रहा, अन्य संक्रामक रोग भी गंभीर चुनौतियाँ पेश करते रहे हैं।
    • मलेरिया प्रतिवर्ष 200 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है, जिनमें से 94% मामले अफ्रीका में सामने आते हैं।
    • एचआईवी/एड्स, यद्यपि बेहतर ढंग से प्रबंधित है, फिर भी विश्वभर में 39.9 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं।
    • क्षय रोग/टीबी गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है, जिसके कारण वर्ष 2022 में 1.3 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई।
    • भारत उभरते संक्रमणों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जहाँ प्रतिवर्ष 58,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मृत्यु दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के कारण हो जाती है।
      • इसके अलावा, भारत के त्रिपुरा राज्य में प्रतिवर्ष एचआईवी/एड्स के 1,500 नए मामले दर्ज हो रहे हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य विकार (Mental Health Disorders): वैश्विक स्तर पर 8 में से 1 व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य विकारों से प्रभावित है, जिनमें अवसाद (depression) और दुश्चिंता (anxiety) सबसे आम हैं।
    • वर्ष 2030 तक मानसिक स्वास्थ्य दशाओं की आर्थिक लागत 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • इस समस्या की वृहतता के बावजूद, उपचार में व्यापक अंतराल मौजूद है, जहाँ निम्न और मध्यम-आय देशों में 75% से अधिक लोगों को कोई उपचार नहीं मिल पाता है।
    • भारत में अनुमानतः 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता है।
  • कुपोषण और मोटापा: विडंबना यह है कि विश्व एक साथ कुपोषण और मोटापे की चुनौतियों का सामना कर रहा है।
    • वर्ष 2022 में 2.5 बिलियन वयस्क अधिक वजन या ओवर-वेट के शिकार थे, जिनमें 890 मिलियन अत्यधिक मोटापे (obesity) से ग्रस्त थे। 390 मिलियन लोग कम वजन या अंडर-वेट की समस्या के शिकार थे।
    • बाल कुपोषण के कारण प्रतिवर्ष पाँच वर्ष से कम आयु के 3.1 मिलियन बच्चों की मृत्यु हो जाती है, जबकि बाल्यावस्था मोटापे में पिछले चार दशकों में दस गुना वृद्धि हुई है।
    • यह दोहरा बोझ, विशेष रूप से विकासशील देशों में, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर दबाव डालता है।
  • गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases- NCDs): कैंसर, मधुमेह और क्रोनिक श्वसन रोगों सहित विभिन्न गैर-संचारी रोग प्रतिवर्ष वैश्विक मृत्यु में 71% का योगदान करते हैं।
    • निम्न और मध्यम-आय देशों में यह बोझ तेज़ी से बढ़ रहा है, जहाँ असामयिक NCDs मौतों के 85% मामले सामने आते हैं।
    • तंबाकू का उपयोग, शारीरिक निष्क्रियता और अस्वास्थ्यकर आहार जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारक इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • भारत में 77 मिलियन मधुमेह रोगी हैं, जो विश्व में दूसरी अधिकतम संख्या है।
      • विश्व आर्थिक अध्ययन (World Economic Study) का आकलन है कि वर्ष 2012-2030 के बीच गैर-संचारी रोगों के कारण भारत को 4.58 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की हानि हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य: जलवायु परिवर्तन को वैश्विक स्वास्थ्य के लिये एक बड़े खतरे के रूप में चिह्नित किया जा रहा है।
    • तापमान में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाएँ ग्रीष्म या हीट संबंधी बीमारियों, श्वसन संबंधी बीमारियों और वेक्टर-जनित रोगों के प्रसार में योगदान करती हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 से 2050 के बीच प्रति वर्ष लगभग 250,000 अतिरिक्त मौतें होंगी।
    • वायु प्रदूषण, जो जलवायु परिवर्तन से निकटता से जुड़ा हुआ है, प्रतिवर्ष 7 मिलियन लोगों की असामयिक मृत्यु का कारण बनता है।
      • वर्ष 2019 में इसके कारण भारत में लगभग 1.67 मिलियन मौतें हुईं।
  • जल, सफाई एवं स्वच्छता (Water, Sanitation, and Hygiene- WASH): स्वच्छ जल, सफाई एवं स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुँच वैश्विक स्तर पर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करती है।
    • 2.2 बिलियन लोग सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल तक पहुँच का अभाव रखते है, जबकि 4.2 बिलियन लोगों की सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
    • इससे जल जनित रोगों के प्रसार में वृद्धि होती है, जहाँ अकेले दस्त के कारण प्रतिवर्ष 829,000 लोगों की मौत हो जाती है।
    • ‘WASH’ की बदतर स्थिति कुपोषण को बढ़ाती है और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
  • वृद्ध होती आबादी और स्वास्थ्य सेवा: वैश्विक आबादी तेज़ी से वृद्ध हो रही है, जिसका स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है।
    • वर्ष 2050 तक विश्व में हर छह में से एक व्यक्ति 65 वर्ष से अधिक आयु का होगा, जबकि 2019 में यह अनुपात ग्यारह में से एक रहा था।
    • यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन मनोभ्रंश (dementia) जैसी आयु-संबंधी दशाओं की व्यापकता को बढ़ाता है।
    • अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में वृद्धजन आबादी 319 मिलियन (कुल आबादी का 19.5%) तक पहुँच जाएगी।

ये प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियाँ समन्वित अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई और सहयोग की आवश्यकता को उजागर करती हैं। हालाँकि, इस तरह का समन्वय प्राप्त करना इतना आसान नहीं है, जैसा कि महामारी संधि (Pandemic Treaty) पर वैश्विक सहमति की वर्तमान कमी से स्पष्ट है।

महामारी संधि पर वैश्विक सहमति का अभाव क्यों है?

  • चिकित्सा प्रति उपायों (Medical Countermeasures) के प्रति समानता और पहुँच का संकट: वैश्विक असहमति के मूल में भविष्य की किसी महामारी के दौरान टीकों, उपचारों और निदान तक समतामूलक पहुँच का मुद्दा है।
    • निम्न और मध्यम-आय देश (LMICs) इन संसाधनों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से (कम से कम 20%) तक पहुँच की गारंटी के लिये दबाव बना रहे हैं, जबकि उच्च-आय देश ऐसे बाध्यकारी समझौतों के लिये प्रतिबद्ध होने के प्रति अनिच्छुक हैं।
    • यह कोविड-19 महामारी के दौरान देखी गई घोर असमानताओं को परिलक्षित करता है, जहाँ धनी देशों ने आरंभ में ही अधिकांश वैक्सीन आपूर्ति को अपने लिये सुरक्षित कर लिया था।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: विवाद का एक अन्य प्रमुख मुद्दा बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से संबंधित है।
    • LMICs ऐसे प्रावधानों की वकालत कर रहे हैं जो टीकों और उपचारों के स्थानीय उत्पादन को सक्षम करने के लिये प्रौद्योगिकी एवं सूचना के हस्तांतरण को सुगम बनाएँगे।
      • इसमें स्वास्थ्य संबंधी आपातस्थितियों के दौरान बौद्धिक संपदा छूट की मांग भी शामिल है।
    • उच्च-आय देशों और दवा कंपनियों का तर्क है कि अनुसंधान एवं विकास (R&D) में नवाचार और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये प्रबल बौद्धिक संपदा संरक्षण आवश्यक है।
    • वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिये अनिवार्य तंत्र के स्थान पर स्वैच्छिक तंत्र को प्राथमिकता देते हैं।
    • वैश्विक असहमति बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलू (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights- TRIPS) से जुड़े लचीलेपन की व्याख्या और उपयोग तक विस्तारित होती है, जहाँ LMICs प्रस्तावित संधि में इस लचीलेपन के स्पष्ट समर्थन के लिये दबाव डाल रहे हैं।
  • वित्तपोषण और संसाधन आवंटन: महामारी की तैयारी और प्रतिक्रिया के वित्तपोषण के तरीके पर, विशेष रूप से संसाधन-सीमित परिस्थितियों में, गंभीर बहस जारी है। 
    • LMICs मज़बूत स्वास्थ्य प्रणालियों के निर्माण और रखरखाव के लिये धनी देशों से पर्याप्त, पूर्वानुमानित वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं की मांग कर रहे हैं।
    • उच्च-आय देश, समर्थन की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भी, अनिश्चित/अनिर्धारित वित्तीय प्रतिबद्धताओं के प्रति सतर्क बने हुए हैं।
    • एक महामारी कोष (Pandemic Fund) के गठन के प्रस्ताव को मिश्रित प्रतिक्रिया ही मिली है।
  • संप्रभुता और राष्ट्रीय स्वायत्तता: कई देश राष्ट्रीय संप्रभुता के संभावित उल्लंघन को लेकर चिंता रखते हैं।
    • स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्राधिकार के बारे में जारी चर्चा में यह बात विशेष रूप से स्पष्ट होती है।
    • कुछ राष्ट्र किसी अंतर्राष्ट्रीय निकाय को निर्णय लेने की शक्ति सौंपने के प्रति अनिच्छुक हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि इससे राष्ट्रीय नीतियों या हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • वन हेल्थ दृष्टिकोण और बहुक्षेत्रीय समन्वय: वन हेल्थ दृष्टिकोण—जो मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के बीच अंतर्संबंध को मान्यता देता है, को शामिल करने के विचार पर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ मिली हैं।
    • जबकि कई उच्च-आय देश इस समग्र दृष्टिकोण का दृढ़ता से समर्थन करते हैं, कुछ LMICs इसे अपने पहले से ही तनावग्रस्त संसाधनों पर एक अतिरिक्त बोझ के रूप में देखते हैं।
    • चुनौती इस दृष्टिकोण को विभिन्न क्षेत्रों में क्रियान्वित करने तथा यह सुनिश्चित करने में है कि यह संसाधन-सीमित परिस्थितियों में तात्कालिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं से संसाधनों को विचलित न करे।
  • भू-राजनीतिक तनाव और विश्वास की कमी: इन तकनीकी मुद्दों के मूल में व्यापक भू-राजनीतिक तनाव और राष्ट्रों के बीच आपसी विश्वास की कमी है।
    • वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में ऐतिहासिक असमानताएँ, जैव आतंकवाद का उदय और कोविड-19 महामारी के दौरान प्राप्त अनुभवों ने संदेह को बढ़ा दिया है तथा उत्तर-दक्षिण विभाजन को मज़बूत किया है।
    • इस संदर्भ में विश्वास का पुनर्निर्माण करना और वास्तविक सहयोग को बढ़ावा देना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

वैश्विक स्वास्थ्य सेवा प्रयासों को आगे बढ़ाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है?

  • दवा विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला: भारत को अपनी दवा विनिर्माण क्षमताओं के विस्तार और आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो सस्ती दवाओं और टीकों की स्थिर वैश्विक आपूर्ति सुनिश्चित करने पर लक्षित हो।
    • जेनेरिक दवाओं से नवीन औषधि खोज की ओर मूल्य शृंखला को आगे बढ़ाने के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना अत्यंत आवश्यक है।
    • भारत वैश्विक दवा आपूर्ति शृंखला को सुदृढ़ करने की पहल का नेतृत्व कर सकता है, जिससे किसी एक देश पर निर्भरता कम हो जाएगी।
    • फार्मास्यूटिकल्स के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) जैसी योजनाओं का लाभ उठाने से भारत की विनिर्माण क्षमता बढ़ेगी।
    • गुणवत्ता संबंधी चिंताओं को संबोधित करते हुए घरेलू आवश्यकताओं को वैश्विक प्रतिबद्धताओं के साथ संतुलित करने से भारत निर्विवाद रूप से ‘विश्व के दवाख़ाना’ (pharmacy of the world) के रूप में स्थापित हो सकेगा।
  • डिजिटल स्वास्थ्य और टेलीमेडिसिन: भारत को स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिये अपनी डिजिटल स्वास्थ्य पहलों, विशेष रूप से राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, का लाभ उठाना चाहिये।
    • अन्य विकासशील देशों के साथ बड़े पैमाने पर डिजिटल स्वास्थ्य प्रणालियों के विकास एवं कार्यान्वयन में विशेषज्ञता की साझेदारी से भारत की नेतृत्वकारी भूमिका सुदृढ़ हो सकती है।
    • कोविड-19 वैक्सीन प्रबंधन के लिये भारत के CoWIN प्लेटफॉर्म की सफलता ने अन्य देशों को भी इसे अपनाने के लिये प्रेरित किया, जो डिजिटल स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी क्षमता को प्रदर्शित करता है।
  • पारंपरिक चिकित्सा और एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल: भारत को आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों में साक्ष्य-आधारित अनुसंधान को बढ़ावा देना चाहिये और आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल के साथ उनके एकीकरण को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के मानकीकरण और विनियमन में अग्रणी वैश्विक प्रयास भारत को इस क्षेत्र में एक प्राधिकार के रूप में स्थापित कर सकते हैं।
    • गुजरात में अवस्थित WHO ग्लोबल सेंटर फॉर ट्रेडिशनल मेडिसीन का लाभ उठाकर इन प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • वहनीय स्वास्थ्य सेवा मॉडल: भारत को आयुष्मान भारत जैसी वृहत स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को लागू करने से प्राप्त सर्वोत्तम अभ्यासों को वैश्विक समुदायों के साथ सक्रिय रूप से साझा करना चाहिये।
    • नवोन्मेषी, निम्न-लागतपूर्ण चिकित्सा उपकरणों और स्वास्थ्य सेवा वितरण मॉडल को बढ़ावा देने से भारत वहनीय स्वास्थ्य सेवा में अग्रणी स्थान प्राप्त कर सकता है।
    • देश सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में गैर-संचारी रोगों के वहनीय प्रबंधन के लिये विभिन्न पहलों की अगुवाई कर सकता है।
  • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी संबंधी तैयारी: भारत को वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिये अपनी वैक्सीन निर्माण क्षमताओं और संक्रामक रोगों के प्रबंधन के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।
    • वैश्विक रोग निगरानी नेटवर्क और पूर्व चेतावनी प्रणालियों में योगदान देना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा।
    • भारत टीबी और एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों के प्रबंधन में अपनी विशेषज्ञता को अन्य देशों के साथ साझा कर सकता है।
    • ‘क्वाड वैक्सीन पार्टनरशिप’ जैसी पहलों से आगे बढ़ते हुए भारत की स्थिति मज़बूत होगी।
  • चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा कार्यबल: भारत को चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण के लिये वैश्विक मानकों को विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये तथा विशाल स्वास्थ्य सेवा कार्यबल तैयार करने के अपने अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।
    • ‘ब्रेन ड्रेन’ के बजाय नैतिक भर्ती और प्रतिभा संचलन के लिये वैश्विक कार्यक्रम शुरू करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा।
    • राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) की स्थापना जैसे हाल के सुधारों की राह पर बढ़ना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • अनुसंधान और नैदानिक परीक्षणों को बढ़ावा देना: भारत को अपनी विशाल और विविध जनसंख्या का लाभ उठाते हुए नैतिक और समावेशी नैदानिक परीक्षण अभ्यासों को बढ़ावा देना चाहिये।
    • वैश्विक दक्षिण में व्याप्त बीमारियों पर अग्रणी अनुसंधान भारत को वैश्विक स्वास्थ्य अनुसंधान में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर सकता है।
    • चिकित्सा अनुसंधान में, विशेष रूप से जीनोमिक्स और वैयक्तिक चिकित्सा में, वैश्विक सहयोग को सुगम बनाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा।

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान में विश्व के समक्ष विद्यमान प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं की चर्चा कीजिये। भारत वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में योगदान देने के लिये अपने सामर्थ्य का किस प्रकार लाभ उठा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना। छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना। 
  2. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना। पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: A


मेन्स: 

प्रश्न "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021)


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एसएमएस अलर्ट
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