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डेली न्यूज़

  • 31 Dec, 2021
  • 37 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

डेयरी क्षेत्र और मुक्त व्यापार का विरोध

प्रिलिम्स के लिये:

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), श्वेत क्रांति

मेन्स के लिये:

भारत का डेयरी क्षेत्र RCEP का विरोध, महत्त्व, चुनौतियाँ, डेयरी क्षेत्र से संबंधित समाधान।

चर्चा में क्यों?

कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी ( Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) से भारत का हटना किसान संगठनों, ट्रेड यूनियनों, छोटे और मध्यम औद्योगिक उत्पादकों के संघों के लिये एक बड़ी जीत है।

  • इसी तरह का विचार भारतीय डेयरी क्षेत्र द्वारा भी व्यक्त किया जाता है, जिन्होंने डेयरी उत्पादों में मुक्त व्यापार का विरोध किया था।

RCEP विश्व के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉकों में से एक है, जिस पर 15 देशों (चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और आसियान के 10 देशों का समूह) के बीच हस्ताक्षर किये गए हैं। वर्ष 2020 में भारत RCEP वार्ता से हट गया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत के डेयरी क्षेत्र द्वारा RCEP का विरोध:

    • ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे वैश्विक दुग्ध उत्पादक देश RCEP समझौते में शामिल हैं।
    • पिछले 25 वर्षों में, भारतीय नीति ने जानबूझकर निजी दूध कंपनियों के विकास को प्रोत्साहित किया है। फिलहाल ये कंपनियांँ भारतीय किसानों से दूध खरीदने को बाध्य हैं।
      • कारण यह है कि भारत में विदेशी डेयरी उत्पादों पर लागू टैरिफ लगभग 35% है।
      • यदि भारत ने RCEP पर हस्ताक्षर किये होते तो बाध्य शुल्क शून्य हो जाता।
    • तब भारतीय किसानों से दूध खरीदने के बजाय न्यूजीलैंड या ऑस्ट्रेलिया से दूध आयात करना कहीं अधिक लाभदायक होता। इसलिये भारत समझौते के विरोध में था।
    • इसके अलावा निकट भविष्य में ऐसा कोई नहीं है जो भारत दूध से वंचित होगा। नीति आयोग के अनुसार, भारत के वर्ष 2033 तक दुग्ध-अधिशेष देश होने की संभावना है।

नोट:

  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) एक देश को एक निश्चित सीमा तक अधिकतम टैरिफ या किसी दिये गए कमोडिटी लाइन के लिये बाध्य टैरिफ तय करने की अनुमति देता है ।
    • दूसरी ओर RCEP देशों को अगले 15 वर्षों के भीतर उस स्तर को शून्य करने के लिए बाध्य करता है।
    • किसी उत्पाद श्रेणी में अधिकतम टैरिफ को बाध्य टैरिफ दर कहा जाता है।
    • हालांँकि टैरिफ दरें सभी उत्पादों और देशों में भिन्न हैं। वास्तविक टैरिफ दर को लागू टैरिफ दर कहा जाता है।

श्वेत क्रांति (1970):

  • भारत में श्वेत क्रांति की अवधारणा ‘डॉ. वर्गीज़ कुरियन’ द्वारा प्रस्तुत की गई थी।
  • उनके अधीन गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) जैसे कई महत्त्वपूर्ण संस्थान स्थापित किये गए थे।
  • ग्राम दुग्ध उत्पादकों की सहकारी समितियों को इस क्रांति की आधारशिला माना जाता हैं। ‘ऑपरेशन फ्लड’ के दौरान उनकी प्रमुख भूमिका को विकास के इंजन के रूप में देखा जाता है।
  • नीति ने संयुक्त उद्यमों: विलय और अधिग्रहण के माध्यम से भारतीय डेयरी क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय डेयरी निगमों के प्रवेश का भी समर्थन किया है।


भारतीय डेयरी क्षेत्र

  • डेयरी क्षेत्र का महत्त्व:

    • श्रम गहन क्षेत्र: खेत पर निर्भर आबादी में वैसे किसान और खेतिहर मज़दूर भी शामिल हैं जो डेयरी एवं पशुधन पर निर्भर हैं। इनकी संख्या लगभग 70 मिलियन है।
      • इसके अलावा मवेशी और भैंस पालन में कुल कार्यबल 7.7 मिलियन में 69 प्रतिशत महिला श्रमिक हैं।
    • अर्थव्यवस्था में योगदान: कृषि से सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) में पशुधन क्षेत्र का योगदान 2019-20 में 28 प्रतिशत था।
      • दुग्ध उत्पादन में प्रति वर्ष 6 प्रतिशत की वृद्धि दर से किसानों को सूखे और बाढ़ के दौरान एक बड़ा आर्थिक सहारा प्राप्त होता है।
    • आपदा के समय किसानों की मदद करना: प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल खराब होने पर दूध का उत्पादन बढ़ जाता है क्योंकि किसान तब पशुपालन पर अधिक निर्भर होते हैं।
    • संबद्ध मुद्दे

      • अदृश्य श्रम: किसान प्रायः पाॅंच में से दो दुधारू पशु आजीविका के लिये रखते हैं। ऐसे में परिवार के उपयोग हेतु दुग्ध उत्पादन के लिये आवश्यक श्रम परिवार की अवैतनिक या औपचारिक रूप से बेरोज़गार महिलाओं के हिस्से आता है।
        • उनमें से भूमिहीन और सीमांत किसानों के पास दूध के लिये खरीदारों की कमी होने पर आजीविका का कोई विकल्प नहीं है।
      • डेयरी क्षेत्र की असंगठित प्रकृति: गन्ना, गेहूँ और चावल उत्पादक किसानों के विपरीत पशुपालक असंगठित हैं और उनके पास अपने अधिकारों की वकालत करने के लिये राजनीतिक ताकत नहीं है।
      • अलाभकारी मूल्य निर्धारण: हालाॅंकि उत्पादित दूध का मूल्य भारत में गेहूँ और चावल के उत्पादन के संयुक्त मूल्य से अधिक है लेकिन उत्पादन की लागत और दूध के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई आधिकारिक प्रावधान नहीं है।
      • अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव: भले ही डेयरी सहकारी समितियाँ देश में दूध के कुल विपणन योग्य अधिशेष का लगभग 40% संभालती हैं, लेकिन वे भूमिहीन या छोटे किसानों का पसंदीदा विकल्प नहीं हैं।
        • ऐसा इसलिये है क्योंकि डेयरी सहकारी समितियों द्वारा खरीदा गया 75% से अधिक दूध अपनी कम मूल्य सीमा पर है।

डेयरी क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:

आगे की राह

  • उत्पादकता में वृद्धि: पशुओं की उत्पादकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है ताकि बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन सुविधाएँ और डेयरी पशुओं का प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके तथा इससे दूध उत्पादन की लागत कम हो सकती है।
    • साथ ही पशु चिकित्सा सेवाओं, कृत्रिम गर्भाधान (एआई), चारा और किसान शिक्षा की उपलब्धता सुनिश्चित करके दूध उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
    • सरकार और डेयरी उद्योग इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
  • उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढाँचे में वृद्धि: भारत के लिये एक डेयरी निर्यातक देश के रूप में उभरने के लिये:
    • उचित उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढाँचे को विकसित करना अनिवार्य है जो अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।
    • इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे और बिजली की कमी को दूर करने के लिये सौर ऊर्जा संचालित डेयरी प्रसंस्करण इकाइयों में निवेश करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही डेयरी सहकारी समितियों को मज़बूत करने की ज़रूरत है। इस प्रयास में सरकार को किसान उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देना चाहिये।

https://www.youtube.com/watch?v=ShKBAHNW8kM

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारतीय सेना की ‘क्वांटम कंप्यूटिंग प्रयोगशाला’ और ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता केंद्र’

प्रिलिम्स के लिये:

क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता/आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, औद्योगिक क्रांति 4.0

मेन्स के लिये:

क्वांटम टेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग और इससे जुड़ी चुनौतियाँ, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इसके फायदे एवं नुकसान।

चर्चा में क्यों?

भारतीय सेना ने मध्य प्रदेश के महू में ‘क्वांटम कंप्यूटिंग’ प्रयोगशाला और ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ हेतु एक केंद्र स्थापित किया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय

    • इस ‘क्वांटम कंप्यूटिंग प्रयोगशाला’ की स्थापना विभिन्न प्रमुख तकनीकी क्षेत्रों में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण का नेतृत्व करने हेतु ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय’ (NSCS) की मदद से की गई है।
      • राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ एक त्रिस्तरीय संगठन है जो सामरिक चिंता के राजनीतिक, आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा मुद्दों का प्रबंधन करता है।
    • भारतीय सेना ने इसी संस्थान में एक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ (AI) केंद्र भी स्थापित किया है, जिसमें विभिन्न अग्रणी क्षेत्रों में 140 से अधिक उद्योगविदो और शिक्षाविदों का सक्रिय समर्थन शामिल है।
    • भारतीय सेना द्वारा अत्याधुनिक साइबर रेंज और साइबर सुरक्षा प्रयोगशालाओं के माध्यम से साइबर युद्ध पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
  • उद्देश्य:

    • दोनों केंद्र सशस्त्र बलों द्वारा उपयोग के लिये परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकियों के विकास में व्यापक शोध करेंगे।
    • साथ ही ये केंद्र क्वांटम प्रोद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धि जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अनुसंधान और प्रशिक्षण की सुविधा भी प्रदान करेंगे।
    • ये केंद्र संचार के क्षेत्र में प्रगति सुनिश्चित करने में मदद करेंगे और क्रिप्टोग्राफी की वर्तमान प्रणाली को पोस्ट-क्वांटम क्रिप्टोग्राफी में बदलने में भी मददगार साबित होंगे।
    • क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन, क्वांटम कंप्यूटिंग और क्वांटम संचार, क्वांटम प्रौद्योगिकी के प्रमुख क्षेत्र हैं।
      • ‘क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन’ जिसे ‘क्वांटम क्रिप्टोग्राफी’ भी कहा जाता है, सुरक्षित संचार विकसित करने का एक तंत्र है।

क्वांटम प्रौद्योगिकी/कंप्यूटिंग

  • परिचय:

    • क्वांटम प्रौद्योगिकी, क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों पर आधारित है जिसे 20वीं शताब्दी की शुरुआत में परमाणुओं और प्राथमिक कणों की प्रकृति का वर्णन करने के लिये विकसित किया गया था।
      • क्वांटम सुपरपोज़िशन इनक्रिपटेड कोड या सुपर-स्पीड सूचना प्रसंस्करण का एक सेट है जो समानांतर में काम करने वाले कई क्लासिकल कंप्यूटरों की नकल कर सकता है।
    • क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स में गणना करते हैं। वे क्वांटम यांत्रिकी के गुणों का फायदा उठाते हैं और यह नियंत्रित करता है कि परमाणु पैमाने पर पदार्थ कैसे व्यवहार करता है।
    • इस क्रांतिकारी तकनीक के पहले चरण ने प्रकाश तथा पदार्थ की अंतःक्रिया सहित भौतिक जगत के बारे में हमारी समझ विकसित करने के लिये आधार प्रदान किया और लेज़र एवं अर्द्धचालक ट्रांजिस्टर जैसे आविष्कारों को बढ़ावा दिया।
  • अनुप्रयोग:

    • सुरक्षित संचार:
      • चीन ने हाल ही में स्थलीय स्टेशनों और उपग्रहों के बीच सुरक्षित क्वांटम संचार लिंक का प्रदर्शन किया।
      • यह अन्य क्षेत्रों के साथ उपग्रहों, सैन्य और साइबर सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह अपने उपयोगकर्त्ताओं को अकल्पनीय रूप से तीव्र कंप्यूटिंग और सुरक्षित एवं हैकरहित उपग्रह संचार की सुविधा प्रदान करता है।
    • अनुसंधान:
      • यह गुरुत्वाकर्षण, ब्लैक होल आदि से संबंधित भौतिकी के कुछ मूलभूत प्रश्नों को हल करने में मदद कर सकता है।
      • इसी तरह, क्वांटम पहल जीनोम इंडिया परियोजना को बड़ा बढ़ावा दे सकती है।
    • आपदा प्रबंधन:
      • क्वांटम अनुप्रयोगों से सुनामी, सूखा, भूकंप और बाढ़ का अधिक सटीकता से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
      • क्वांटम प्रौद्योगिकी के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से संबंधित आंँकड़ों के संग्रह को बेहतर तरीके से सुव्यवस्थित किया जा सकता है।
    • फार्मास्युटिकल:
      • क्वांटम कंप्यूटिंग नए अणुओं और संबंधित प्रक्रियाओं की खोज की समय सीमा को 10 साल तक कम कर सकता है जिसका अनुमान वैज्ञानिकों द्वारा लगाया है।
    • औद्योगिक क्रांति 4.0 को बढ़ावा:
  • क्वांटम कंप्यूटिंग से जुड़ी चुनौतियाँ:

    • क्वांटम कंप्यूटिंग का एक चुनौतिपूर्ण पक्ष विघटनकारी प्रभाव है जो क्रिप्टोग्राफिक एन्क्रिप्शन (जो संचार और कंप्यूटर को सुरक्षित करता है) से संबंधित हो सकता है।
    • यह सरकार के लिये एक चुनौती भी हो सकती है क्योंकि अगर यह तकनीक गलत हाथों में चली जाती है, तो सरकार के सभी आधिकारिक और गोपनीय डेटा के हैक होने और दुरुपयोग होने का खतरा होगा।
  • संबंधित भारतीय पहल:

    • बजट 2020 में पाँच साल की अवधि के लिये ‘क्वांटम टेक्नोलॉजीज एंड एप्लिकेशन’ (NM-QTA) पर एक राष्ट्रीय मिशन को 8000 करोड़ रूपए आवंटित किये गए।
    • वर्ष 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत को साइबर-भौतिक प्रणालियों में अग्रणी बनाने के लिये अंतःविषयक साइबर-भौतिक प्रणालियों पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS) के शुभारंभ को मंज़ूरी दी गई।
    • वर्ष 2018 में सरकार ने क्वांटम प्रौद्योगिकियों पर गंभीर चर्चा शुरू की और QUEST - क्वांटम सक्षम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के तहत 51 संगठनों में अनुसंधान परियोजनाओं को शुरू किया। हालाँकि NM-QTA तक इस क्षेत्र में कोई महत्त्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चिली के संविधान का पुनर्लेखन

प्रिलिम्स के लिये:

लिथियम आयन बैटरी, भारत-चिली संबंध, चिली की अवस्थिति और भौगोलिक विशेषताएँ।

मेन्स के लिये:

लिथियम खनन द्वारा उत्पन्न जलवायु चुनौतियाँ, भारत के लिये चिली का महत्त्व।


चर्चा में क्यों?

दक्षिण अमेरिकी देश चिली ने ‘जलवायु और पारिस्थितिक आपातकाल’ से निपटने के लिये एक नया संविधान लिखने हेतु एक ‘संविधान कन्वेंशन’ का गठन किया है।

  • जैसे-जैसे जलवायु आपदाएँ अपरिहार्य हो जाती हैं, वैसे देश जो पहले से ही संसाधन की कमी (चिली के मामले में जल) से ज़ूझ रहे हैं, उन्हें अपने नागरिकों द्वारा कार्रवाई करने हेतु मज़बूर होना हो रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि

    • चिली के राजनेता देश को समृद्ध बनाने हेतु यहाँ मौजूद लिथियम का लाभ उठाना चाहते हैं। हालाँकि चिली के अधिकांश नागरिक सरकार के दृष्टिकोण से असहमत हैं, क्योंकि अतीत में इसी तरह के उपायों (पानी के निजीकरण सहित) ने उन लोगों को काफी प्रभावित किया था, जिन्हें इन संसाधनों की सबसे अधिक आवश्यकता है।
    • सैन्य शासक ‘ऑगस्टो पिनोशे’ (जिन्होंने वर्ष 1980 के तख्तापलट में कम्युनिस्ट ‘सल्वाडोर अलेंदे’ को उखाड़ फेंका था) के नेतृत्व में, चिली ने संसाधनों के शोषण को शुरू किया था।
    • लिथियम खनन में एक समस्या मौजूद है, क्योंकि इसके कारण मिट्टी की नमी कम हो जाती है और दिन के तापमान में वृद्धि होती है जिससे क्षेत्र में सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है। जबकि अधिक-से-अधिक लिथियम निकाला जाना भी मनुष्यों के लिये अनुपयुक्त हो सकता है।
  • परिचय

    • यह नया संविधान लिथियम खनन और उसके विनियमन पर फोकस करेगा। इसके अलावा यह पूर्वाभास करेगा कि लिथियम खनन से स्वदेशी समुदायों को किस प्रकार लाभ होता है। नए संविधान के निर्माता यह भी आकलन करेंगे कि चिली की राजनीतिक व्यवस्था में सुधार की
    • ज़रूरत है या नहीं।
    • उनका कार्य न केवल यह निर्धारित करेगा कि 19 मिलियन का यह देश किस प्रकार शासित होगा, बल्कि यह एंडीज़ पर्वत के पास स्थित विशाल रेगिस्तान के नीचे खारे पानी में मौजूद नरम, चमकदार धातु- लिथियम के भविष्य का भी निर्धारण करेगा।
    • संविधान का यह पुनर्विक्रय जलवायु आपदाओं की ओर बढ़ रहे विश्व में बदलती प्राथमिकताओं को चिह्नित करता है।
  • चुनौतियाँ

    • कई लोगों को डर है कि नया संविधान खनन पर भारी रॉयल्टी और प्रतिबंध लगाएगा तथा स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • चिली में लिथियम

    • चिली में अत्यधिक लिथियम (ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा लिथियम उत्पादक) मौजद है, जो कि बैटरी का एक अनिवार्य घटक है और लगभग सभी आधुनिक स्मार्ट उपकरणों में प्रयोग किया जाता है।
    • जैसे-जैसे विश्व स्तर पर जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित किया जा रहा है, लिथियम की मांग और इसकी कीमत में वृद्धि हो रही है।

भारत-चिली संबंध

  • चिली लैटिन अमेरिका और प्रशांत गठबंधन के लिये भारत के द्वार के रूप में कार्य करता है।
  • चिली लैटिन अमेरिकी क्षेत्र में भारत का पाँँचवाँँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
  • भारत-चिली ने व्यापार बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में वरीयता व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • द्विपक्षीय व्यापार बढ़ रहा है और वर्ष 2017-18 में 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
  • भारत और चिली अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में भी भागीदार हैं।
  • दोनों देश बहुपक्षीय मंचों में बड़े पैमाने पर सहयोग करते हैं और जलवायु परिवर्तन/नवीकरणीय ऊर्जा मुद्दों और UNSC (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) के विस्तार और सुधारों पर समान विचार साझा करते हैं।
  • भारत-चिली ने खनन, संस्कृति, विकलांगता के क्षेत्र में तीन समझौता ज्ञापनों (MOU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

बैटरियों में लिथियम का उपयोग

  • जिन देशों में डीकार्बोनाइज़ करने के त्वरित तरीके खोजे जा रहे हैं, लिथियम को धातु की पसंद के रूप में देखा जा रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों को परिवहन के भविष्य के रूप में पेश किया जा रहा है और सभी उद्योग स्वच्छ विकल्पों की तलाश कर रहे हैं, लिथियम को उनके सबसे अच्छे विकल्प के रूप में देखा जाता है।
    • इसे अक्षय ऊर्जा के एक प्रमुख भाग के रूप में देखा जाता है, लिथियम आयन बैटरी को "ऊर्जा-सघन, सस्ता और सुरक्षित" माना जाता है।
  • लिथियम आयन बैटरी लंबे जीवन-चक्र के साथ एक छोटे पैकेज़ में बहुत अधिक शक्ति और ऊर्जा पैक करती हैं।
    • स्मार्टफोन और लैपटॉप सहित अधिकांश गैजेट लिथियम-पॉलीमर बैटरी का उपयोग करते हैं, जो लिथियम आयन बैटरी का विकल्प है।
  • चूँकि लिथियम को मानक गैर-नवीकरणीय खनिज माना जाता है जो अक्षय ऊर्जा को संभव बनाता है, इसकी मांग में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है।
  • लेकिन जलवायु परिवर्तन के खिलाफ इस लड़ाई में, लिथियम खनन से ज़हरीले क्षेत्र बन सकते हैं, जहाँ पानी (खारे पानी की नमकीन) मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त है और वनस्पति बढ़ने की संभावना कम है।

चिली

Chile

  • चिली दक्षिण अमेरिका में एंडीज़ पर्वतमाला और प्रशांत महासागर के मध्य स्थित है।
  • चिली के उत्तर में पेरू, उत्तर-पूर्व में बोलीविया, पूर्व में अर्जेंटीना और दक्षिण छोर पर ड्रेक पैसेज स्थित है।
  • चिली दक्षिण अमेरिका के उन दो देशों (दूसरा इक्वाडोर) में से है जिसकी सीमाएँ ब्राजील से नहीं मिलती है।
  • विश्व के प्रमुख रेगिस्तानों में से एक 'अटाकामा रेगिस्तान' उत्तरी चिली में स्थित एक तटीय रेगिस्तान है।
  • चिली की राजधानी ‘सैंटियागो’ चिली के मध्य में स्थित है।
  • सैंटियागो शराब उत्पादन के लिये प्रसिद्ध है।
  • विश्व का सबसे शुष्क स्थान ‘अरिका’ उत्तरी चिली में अवस्थित है।
  • विश्व का सबसे बड़ा ताँबा उत्पादक शहर ‘चुक्वीकमाटा’ चिली में अवस्थित है ।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक क्रॉपलैंड विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

क्रॉपलैंड क्षेत्र, क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन, सतत् विकास लक्ष्य, वनों की कटाई, खाद्य और कृषि संगठन (FAO)।

मेन्स के लिये:

क्रॉपलैंड क्षेत्र के विस्तार का प्रभाव और इसे दूर करने के लिये उठाए जा सकने वाले कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक नए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2003-2019 तक विश्व में क्रॉपलैंड क्षेत्र (Copland Area) में 9% और क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (Net Primary Production- NPP) में 25% की वृद्धि हुई है।

  • वृद्धि का मुख्य कारण अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में कृषि का विस्तार था।

क्रॉपलैंड क्षेत्र

  • क्रॉपलैंड को 'मानव उपभोग, चारा (घास सहित) और जैव ईंधन हेतु वार्षिक शाकाहारी फसलों के लिये उपयोग की जाने वाली भूमि' के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • वार्षिक फसलें, स्थायी चरागाह और स्थानांतरित खेती को परिभाषा से बाहर रखा गया है।
    • शाकाहारी ऊर्जा फसलें (Herbaceous Energy Crops) बारहमासी होती हैं जिनकी सालाना कटाई की जाती है।

क्रॉपलैंड शुद्ध प्राथमिक उत्पादन

  • शुद्ध प्राथमिक उत्पादन (NPP) को ऑटोट्रॉप (Autotrophs) और उनके श्वसन द्वारा निर्धारित ऊर्जा के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया गया है, जो आमतौर पर भूमि की सतह तथा समय की प्रति यूनिट जैवभार में वृद्धि के बराबर है।
    • ऑटोट्रॉप एक ऐसा जीव है जो प्रकाश, जल, कार्बन डाइऑक्साइड या अन्य रसायनों का उपयोग कर अपना भोजन स्वयं बना सकता है।
    • श्वसन एक रासायनिक प्रतिक्रिया है जो सभी जीवित कोशिकाओं में होती है, ग्लूकोज से ऊर्जा उत्पन्न होती है।


प्रमुख बिंदु

  • क्रॉपलैंड विस्तार:

    • अफ्रीका में सबसे बड़ा क्रॉपलैंड विस्तार देखा गया।
    • अफ्रीका में, वर्ष 2004-2007 से वर्ष 2016-2019 तक क्रॉपलैंड विस्तार में तेज़ी आई, वार्षिक विस्तार दरों में दो गुना से अधिक की वृद्धि हुई।
      • क्रॉपलैंड्स (शुष्क भूमि सिंचाई को छोड़कर) में प्राकृतिक वनस्पति रूपांतरण का सबसे बड़ा अनुपात अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका में पाया गया।
      • जनसंख्या वृद्धि के कारण इस अवधि के दौरान वैश्विक प्रति व्यक्ति फसल क्षेत्र में 10% की कमी आई, लेकिन गहन कृषि भूमि उपयोग के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति वार्षिक फसल भूमि NPP में 3.5% की वृद्धि हुई।
  • विस्तार का कारण:

    • कृषि विस्तार को अक्सर निरंतर जनसंख्या वृद्धि के कारण खाद्य और ऊर्जा आवश्यकताओं में वैश्विक वृद्धि के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में समझाया जाता है।
      • वर्ष 2003-2019 से वैश्विक जनसंख्या में 21% की वृद्धि हुई।
  • विस्तार के साथ मुद्दे:

    • SDG15 के विरुद्ध :
      • वन हानि में फसल भूमि का विस्तार एक प्रमुख कारक है, जो सतत् विकास लक्ष्य 15 (SDG 15) का प्रतिकूल है।
        • SDG 15 का उद्देश्य वनों की कटाई और प्राकृतिक आवासों के क्षरण को रोकना है।
        • नए क्रॉपलैंड के 49% क्षेत्र ने प्राकृतिक वनस्पतियों और वृक्षों के आवरण को बदल दिया, जो स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा हेतु स्थिरता लक्ष्य के साथ संघर्ष का संकेत देते हैं।
    • पारिस्थितिक खतरा:
      • यह ग्रह के पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है।
        • क्रॉपलैंड का विस्तार ज़्यादातर मध्य और दक्षिण अमेरिका में जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट को प्रभावित करता है, जबकि क्रॉपलैंड गहनता से विशेष रूप से सब-सहारा अफ्रीका, भारत तथा चीन में जैव विविधता को खतरा है।
          • कृषि गहनता को तकनीकी रूप से कृषि उत्पादन में वृद्धि प्रति यूनिट इनपुट के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
    • वनों की कटाई का कारण
      • कृषि विस्तार वनों की कटाई और वन विखंडन का मुख्य कारण बना हुआ है।
    • FAO’s का अनुमान:
      • खाद्य और कृषि संगठन (FAO’s) के अनुसार यदि वर्तमान रुझान कायम रहा तो वर्ष 2050 तक दुनिया की कृषि योग्य भूमि लगभग 70 मिलियन हेक्टेयर बढ़ जाएगी और अधिकांश नई कृषि भूमि उन क्षेत्रों में होगी जो वर्तमान में वनाच्छादित हैं।
  • भारत में कृषि भूमि:

    • वर्ष 2018 में भारत में कृषि भूमि 60.43% बताई गई थी।
      • कृषि भूमि, उन भूमि क्षेत्र के हिस्से को संदर्भित करती है जो स्थायी फसलों के तहत और स्थायी चरागाह के तहत कृषि योग्य है।
      • कृषि भूमि के तहत FAO द्वारा अस्थायी फसलों के तहत परिभाषित भूमि (दोहरी फसल वाले क्षेत्रों को एक बार गिना जाता है), घास काटने या चारागाह के लिये अस्थायी घास का मैदान के तहत भूमि तथा अस्थायी रूप से परती भूमि शामिल होती है।

आहे की राह:

  • बेहतर कृषि पद्धतियाँ और प्रौद्योगिकी आवास हानि को कम तथा वन्यजीवों की रक्षा करते हुए कृषि उत्पादकता में वृद्धि कर सकती है।
    • "टिकाऊ गहनता" के रूप में जाना जाने वाला यह दृष्टिकोण का उद्देश्य एकीकृत फसल प्रबंधन और उन्नत कीट नियंत्रण जैसी तकनीकों का उपयोग करके मौज़ूदा कृषि भूमि के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
    • यदि व्यापक रूप से टिकाऊ गहनता लागू की जाती है तो वर्तमान में खेती के तहत भूमि की कुल मात्रा को भी कम किया जा सकता है।
  • वन्यजीव आवासों की रक्षा हेतु विकासशील देशों को अधिक टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करके भूमि के मौज़ूदा क्षेत्रों की उत्पादकता में वृद्धि करनी चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, ई-दाखिल पोर्टल।

मेन्स के लिये:

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की मुख्य विशेषताएंँ।


चर्चा में क्यों?

हाल ही में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण (ज़िला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग के क्षेत्राधिकार) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है।

  • अधिनियम, उपभोक्ता आयोग के प्रत्येक स्तर के आर्थिक क्षेत्राधिकार को निर्धारित करता है।
  • नए नियमों ने उपभोक्ता की शिकायतों के लिये आर्थिक क्षेत्राधिकार को संशोधित किया।
  • इससे पहले केंद्र ने प्रत्यक्ष बिक्री उद्योग के लिये उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम, 2021 को अधिसूचित किया था।

प्रमुख बिंदु:

  • संशोधित आर्थिक क्षेत्राधिकार:

    • ज़िला आयोगों के लिये 50 लाख रुपए (पहले 1 करोड़ से कम),
    • 50 लाख रुपए से अधिक 2 करोड़ रुपए राज्य आयोगों के लिये (पहले 1 करोड़ से 10 करोड़),
    • 2 करोड़ रुपए से अधिक राष्ट्रीय आयोग के लिये (पहले 10 करोड़ से अधिक)।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के बारे में:

    • उत्पाद दायित्त्व (Product Liability): यदि किसी उत्‍पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा। विधेयक के अनुसार, किसी उत्पाद में निम्नलिखित आधारों पर दोष हो सकता है:
      • त्रि-स्तरीय अर्ध-न्यायिक तंत्र: अधिनियम उपभोक्ता विवादों के निवारण के लिये एक त्रि-स्तरीय अर्ध-न्यायिक तंत्र जैसे ज़िला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग की घोषणा करता है।
    • शिकायत का समयबद्ध निपटान: अधिनियम में कहा गया है कि प्रत्येक शिकायत का यथासंभव शीघ्र निपटारा किया जाएगा।
      • यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं है तो विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने की अवधि के भीतर और यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता है तो विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 5 महीने की अवधि के भीतर शिकायत पर निर्णय लेने का प्रयास किया जाएगा।
    • इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत दर्ज करना: अधिनियम उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत दर्ज करने का विकल्प भी प्रदान करता है।
      • उपभोक्ताओं को अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करने में सुविधा हेतु केंद्र सरकार ने ‘ई-दाखिल’ पोर्टल की स्थापना की है।
    • मध्यस्थता मार्ग: अधिनियम में दोनों पक्षों की सहमति से मध्यस्थता के लिये उपभोक्ता विवादों का संदर्भ भी शामिल है।
      • इससे न केवल विवाद में शामिल पक्षों के समय और धन की बचत होगी, बल्कि लंबित मामलों को कम करने में भी मदद मिलेगी।

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स्रोत-पी.आई.बी


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