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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वनों की कटाई का प्रारूप बताता भौतिक सिद्धांत

  • 26 Feb 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

आमतौर पर पारिस्थितिकी में संख्याओं के बढ़ने संबंधी खबर एक खुशी का मुद्दा होती है लेकिन यदि बात जंगल के टुकड़ों में बँटने की हो तो प्रतिक्रिया एकदम उलट होगी। हाल ही में हुए एक अध्ययन से प्राप्त जानकारी के अनुसार, यदि वनों की कटाई अर्थात् वनोन्मूलन की वर्तमान दर के संदर्भ में बात की जाए तो आगामी 50 वर्षों में जंगल के टुकड़ों में 33 गुना की वृद्धि हो सकती है।

वनोन्मूलन क्या है?

  • इसका अर्थ होता है वन क्षेत्रों में पेड़ों को जलाना या काटना। ऐसा करने के कई कारण होते हैं।
  • पेडों की निरंतर कटाई करने तथा उन्हें पुनः न लगाने के परिणामस्वरुप पर्यावरण पर इसका बहुत गंभीर असर पड़ता है। जिन क्षेत्रों से पेड़ों की कटाई की जाती है वे बंजर भूमि में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • वनोन्मूलन के परिणामस्वरूप अक्सर विलोपन (extinction), जलवायु परिवर्तन, मरुस्थलीकरण (desertification) एवं विस्थापन जैसी प्रक्रियाएँ देखने को मिलती हैं।
  • वनोन्मूलन, दिनोंदिन आवासों की स्थिति में हो रहे परिवर्तन और लकड़ी के उत्पादन सहित बहुत से मानवीय कारक इसका कारण होते हैं।
  • इसका कारण यह है कि जैसे-जैसे हम बड़े जंगलों को काटते जाते है वैसे-वैसे उस क्षेत्र विशेष की जैव विविधता नष्ट होने लगती है और कार्बन में कमी आने लगती है।

दूरसंवेदी चित्रों की सहायता से संपन्न अध्ययन 

  • उष्णकटिबंधीय वनों के विखंडन संबंधी प्रारूप का अध्ययन करने के लिये जर्मनी के हेल्महोल्त्ज़ सेंटर फॉर एनवायरन्मेटल रिसर्च (Helmholtz Centre for Environmental Research) के वैज्ञानिकों द्वारा अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में 427 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैले तकरीबन 130 मिलियन से अधिक वन टुकड़ों का मानचित्रण करने के लिये दूरसंवेदी चित्रों का इस्तेमाल किया गया।
  • इस शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि तीन महाद्वीपों में वनों के टुकड़ों के आकार में लगभग एकसमान आवृत्ति वितरण का पालन किया गया।
  • उदाहरण के लिये 10,000 हेक्टेयर से छोटे वन टुकड़ों की संख्या मध्य और दक्षिण अमेरिका में 11.2%, अफ्रीका में 9.9% तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में 9.2% पाई गई।
  • यह बेहद आश्चर्यजनक है क्योंकि इन सभी जगहों पर ज़मीन का प्रयोग अलग-अलग रूप में किया गया, उसके बावज़ूद इसमें काफी समानताएँ हैं।

समान विखंडन पैटर्न के क्या कारण हैं? 

  • ऐसे में यह जानना काफी रोचक हो जाता है कि आखिर स्थानीय स्तर पर हुई वनों की कटाई के बावज़ूद वैश्विक स्तर पर समान विखंडन पैटर्न के कारण क्या हो सकते हैं?
  • इस शोध हेतु वैज्ञानिकों द्वारा पर्कोलेशन थ्योरी (percolation theory) का इस्तेमाल किया गया। इस थ्योरी की सहायता से इस बात का पता लगाया गया कि कैसे एक ऑब्जेक्ट क्लस्टर के अलग-अलग कण एक महत्त्वपूर्ण बिंदु पर पहुँचने के बाद स्वयं ऑब्जेक्ट को परिवर्तित कर देते है।
  • इस थ्योरी का इस्तेमाल मिट्टी के माध्यम से जल के बहाव और क्रिस्टल की संरचनाओं के रूप में विभिन्न प्रकार की घटनाओं को समझने के लिये किया गया।
  • इस थ्योरी के अनुसार, वनों की कटाई के एक निश्चित चरण में वन परिदृश्य संरचनाओं को दर्शाया गया है, जिन्हें निरंतर देखा जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा यह पाया गया कि वर्तमान में वन विखंडन एक बेहद महत्त्वपूर्ण बिंदु पर पहुँच चुका है, इसके बावज़ूद इनके टुकड़ों की संख्या में ज़ोरदार वृद्धि होने का अनुमान है।
  • विभिन्न वनों की कटाई और पुनर्नवीनीकरण दर का अनुमान व्यक्त करने वाले परिदृश्यों का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों द्वारा यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि वर्ष 2050 तक इन महाद्वीपों में कितने वन टुकड़े पाए जाने की उम्मीद की जा सकती है।
  • उदाहरण के लिये, अगर मध्य और दक्षिण अमेरिकी उष्णकटिबंधीय वनों या दक्षिण-पूर्व एशियाई वनों की कटाई की वर्तमान दर जारी रहती है तो आने वाले समय में इस क्षेत्र में वनों की टुकड़ों की संख्या 33 गुना बढ़ जाएगी और उनका औसत आकार 17 हेक्टेयर से 0.25 हेक्टेयर तक घट जाएगा।


उपाय 

  • विघटन की इस समस्या को रोकने हेतु वनों की कटाई को धीमा करते हुए अधिक से अधिक वनारोपण करना होगा।
  • इसके अतिरिक्त वन संरक्षण हेतु स्वैच्छिक संगठनों द्वारा योगदान दिया जाना चाहिये ताकि इस विषय में अधिक-से-अधिक जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जा सके।
  • वन संरक्षण हेतु प्रतिवर्ष वन महोत्सव का आयोजन किया जाना चाहिये।
  • वर्षा ऋतु में सामुदायिक वानिकी द्वारा पौधरोपण करके वन क्षेत्रफल में वृद्धि की जानी चाहिये।
  • इतना ही नहीं क्योटो प्रोटोकॉल और इसके क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज़्म (CDM) के अंतर्गत भी "वनीकरण और पुनर्वनरोपण" के संबंध में प्रभावी कदम उठाए गए हैं।
  • जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCC) द्वारा वनों की कटाई और इसमें कमी लाने हेतु बेहतर वन प्रबंधन पर विशेष बल दिया गया है।
  • इसका उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये वनारोपण को बढ़ावा देना तथा वनोन्मूलन में गिरावट लाते हुए जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करना है।

भारतीय वन सर्वेक्षण
(Forest Survey of India - FSI)

  • भारत में वनों की सुरक्षा हेतु वर्ष 1981 में भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की स्थापना की गई।
  • यह भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन एक महत्त्वपूर्ण संस्थान है। 
  • इसका प्रमुख उद्देश्य देश में वन सर्वेक्षण करना तथा वन संसाधनों का आकलन करना है।

उद्देश्य 

  • द्वी-वार्षिक वन स्थिति रिपोर्ट तैयार करना
  • देश की वनावरण संबंधी आकलन रिपोर्ट तैयार करना 
  • साथ ही इस स्थिति में होने वाले परिवर्तन का अनुश्रवण करना।
  • वन संसाधनों का डाटाबेस तैयार करना।
  • वन संसाधनों का स्थानीय डाटाबेस एकत्रीकरण, संकलन, भंडारण एवं प्रसारण हेतु एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करना।
  • संसाधनों का सर्वेक्षण करना, सुदूर संवेंदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली आदि की सहायता से वानिकी कार्मिकों के लिये प्रशिक्षण का आयोजन करना आदि।
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