यमुना नदी में अमोनिया का उच्च स्तर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यमुना नदी के जल में अमोनिया की उच्च मात्रा पाई गई है जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में जल आपूर्ति लगातार बाधित हो रही है।
प्रमुख बिंदु:
- अमोनिया का स्तर कुछ स्थानों पर 7.3 पार्ट्स प्रति मिलियन (Parts Per Million-ppm) तक बढ़ गया है।
- जब जल में अमोनिया की सांद्रता दिल्ली जल बोर्ड (Delhi Jal Board’s -DJB’s) की उपचार क्षमता (0.9 ppm) से अधिक हो जाती है तो जल उपचार संयंत्रों का जल के उत्पादन को या तो बंद करना होता है या फिर इसे कम किया जाता है।
- भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards-BIS) के अनुसार, पीने के पानी में अमोनिया की स्वीकार्य अधिकतम सीमा 0.5 ppm है।
यमुना में प्रदूषण के कारण:
- औद्योगिक प्रदूषण:
- यमुना नदी हरियाणा से होते दिल्ली में प्रवेश करती है तथा हरियाणा में यमुना के किनारे अवस्थित सोनीपत ज़िले में कई औद्योगिक इकाइयाँ विद्यमान हैं जो यमुना के जल को प्रदूषित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। उर्वरकों, प्लास्टिक और रंजक के उत्पादन में अमोनिया का उपयोग एक औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
- नालों का मिलना:
- पीने के पानी और सीवेज या औद्योगिक कचरे को प्रवाहित करने वाले दो नाले जो कि सोनीपत में है, अक्सर ओवरफ्लो के कारण या फिर वह दीवार जो इन दोनों नालों को अलग करती है उसमे क्षति के कारण आपस में मिल जाते हैं।
अमोनिया के उच्च स्तर का प्रभाव:
- अमोनिया जल में ऑक्सीजन की मात्रा को कम कर देती है।
- यह नाइट्रोजन के ऑक्सीकरण रूप को परिवर्तित कर देती है जिससे जल में ‘जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग’ ( Biochemical Oxygen Demand- BOD) बढ़ जाती है।
- यदि जल में अमोनिया की मात्रा 1 ppm से अधिक हो तो यह जल मछलियों के लिये विषाक्त होता है।
- मनुष्यों द्वारा 1 ppm या उससे ऊपर के अमोनिया स्तर वाले जल के दीर्घकालिक अंतर्ग्रहण से आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है।
समाधान:
- जल में 4 ppm तक अमोनिया के स्तर को उपचारित करने हेतु जल उपचार संयंत्रों में ओज़ोन-आधारित इकाइयांँ स्थापित की जानी चाहिये।
- पीने योग्य पानी और सीवेज के पानी के लिये अलग-अलग पाइपलाइन बिछाई जानी चाहिये।।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति के अनुसार, नाली/पाइपलाइन बनाने के लिये फास्ट ट्रैक स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिये।
- वर्ष 2020 की शुरुआत में समिति ने जल मंत्रालय से यमुना नदी में अधिक स्वच्छ जल (Fresh Water) उपलब्ध कराकर इसे पुनर्जीवित करने हेतु उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और यूपी के मध्य हुए वर्ष 1994 के जल बँटवारे संबंधी समझौते पर पुनः कार्य करने की सिफारिश की थी।
अमोनिया:
- इसका रासायनिक सूत्र NH3 है।
- यह एक रंगहीन गैस है और इसका उपयोग उर्वरक, प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, रंजक तथा अन्य उत्पादों के निर्माण में एक औद्योगिक रसायन के रूप में किया जाता है।
- इसकी उत्पत्ति पर्यावरण में जैविक अपशिष्ट पदार्थ के स्वाभाविक विघटन के परिणामस्वरूप होती है तथा भूमिगत एवं सतही जल स्रोतों में यह औद्योगिक अपशिष्टों, सीवेज द्वारा संदूषण या कृषि अपवाह के माध्यम से रिसकर यह अपना मार्ग स्वयं बना लेता है।
यमुना:
- यह गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में निम्न हिमालय के मसूरी रेंज में बंदरपूँछ चोटी के पास यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
- यह उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में बहती हुई उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (संगम) में गंगा नदी में मिल जाती है।
- लंबाई: युमना नदी की कुल लंबाई 1376 किमी. है।
- महत्त्वपूर्ण बांँध: लखवार-व्यासी बांँध (उत्तराखंड), ताजेवाला बैराज बांध (हरियाणा) आदि।
- सहायक नदियाँ: युमना नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ चंबल, सिंध, बेतवा और केन हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
तिहान-आईआईटी हैदराबाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत की स्वायत्त नौवहन प्रणाली (स्थलीय और हवाई) के लिये प्रथम परीक्षण स्थल– ‘तिहान-आईआईटी हैदराबाद’ (TiHAN-IIT Hyderabad) की वर्चुअल तरीके से आधारशिला रखी गई।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने राष्ट्रीय अंतर-विषयी साइबर-फिज़िकल सिस्टम (National Mission on Interdisciplinary Cyber-Physical Systems- NM-ICPS) मिशन के तहत स्वायत्त नौवहन एवं डेटा अधिग्रहण प्रणाली (UAVs, RoVs आदि) पर एक प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र स्थापित करने हेतु आईआईटी हैदराबाद (IIT-H) के लिये 135 करोड़ रुपए मंज़ूर किये थे।
- IIT-H में मानव रहित वायुयानों (UAVs) तथा दूरस्थ नियंत्रित वाहनों (RoVs) के लिये स्वायत्त नौवहन प्रणाली अथवा ऑटोनोमस नेविगेशन सिस्टम पर आधारित प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र को 'तिहान फाउंडेशन' (TiHAN Foundation) के रूप में जाना जाता है। संस्थान द्वारा जून 2020 में इसे खंड-8 कंपनी के रूप में मान्यता दी गई है।
- यह एक बहु-विभागीय पहल है जिसमें प्रतिष्ठित संस्थानों और उद्योगों के सहयोग तथा समर्थन के साथ IIT-H में इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर साइंस, मैकेनिकल एवं एयरोस्पेस, सिविल, गणित व डिज़ाइन के शोधकर्त्ता शामिल हैं।
- यह 'आत्मनिर्भर भारत', 'स्किल इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' की दिशा में एक बेहतरीन कदम है।
तिहान-आईआईटी (TiHAN-IIT):
- स्वायत्त नौवहन और डेटा अधिग्रहण प्रणाली के विशिष्ट डोमेन क्षेत्र में अंतर-विषयी प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान एवं विकास पर आवश्यकतानुसार ध्यान देने के साथ ही यह केंद्र मानव रहित एवं स्वायत्त वाहनों से संबंधित विभिन्न चुनौतियों के तत्काल समाधान पर ज़ोर देता है।
- वर्तमान में, भारत में वाहनों के ऑटोनोमस नेविगेशन का मूल्यांकन करने के लिये ऐसी कोई परीक्षण सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसलिये IIT-H परिसर के एक हिस्से को कनेक्टेड ऑटोनोमस व्हीकल्स (CAVs) के लिये समर्पित कर पूरी तरह से कार्यात्मक और अनुकरणीय परीक्षण स्थल की सुविधा विकसित करते हुए इस कमी को पूरा करने की कल्पना की गई है।
- कनेक्टेड वाहन तकनीक का उपयोग एक-दूसरे के साथ संचार स्थापित करने, ट्रैफिक सिग्नल से जुड़ने, संकेत और सड़क से संबंधित अन्य वस्तुओं से जुड़ने अथवा क्लाउड डेटा प्राप्त करने के लिये किया जाता है। यह सुरक्षित तरीके से सूचना विनिमय में मदद करता है और सूचना के प्रवाह में सुधार करता है।
- इसमें शामिल प्राथमिक उद्देश्य:
- UAVs, RoVs के क्षेत्र में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी का विकास।
- औद्योगिक सहयोग:
- संयुक्त अनुसंधान एवं विकास पहल, परामर्श, प्रौद्योगिकी आउटरीच योजनाएँ, उद्योगों के कर्मियों के लिये प्रशिक्षण, सतत् शिक्षा।
- मानव संसाधन और कौशल विकास
- नवाचार, उद्यमशीलता और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र:
- टेक्नोलॉजी वर्टिकल, निजी वित्त को आकर्षित करना (कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी, स्वैच्छिक योगदान और इक्विटी आधारित), तकनीक के व्यावसायीकरण हेतु स्टार्ट-अप्स और इनक्यूबेशन।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
- शिक्षा और उद्योग, संकाय/छात्र विनिमय कार्यक्रम।
TiHAN-IIT की विशेषताएँ:
कुल क्षेत्रफल:
- IIT-H परिसर में इसके लिये पहले ही 2 एकड़ भूमि आवंटित की जा चुकी है और चरणबद्ध रूप से सुविधाओं के विकास की योजना बनाई गई है।
सुविधाएँ:
- परीक्षण ट्रैक, वास्तविक-विश्व परिदृश्यों का अनुकरण, कला सिमुलेशन टेक्नोलॉजी का स्तर, सड़क अवसंरचना, ड्रोन रनवे और लैंडिंग क्षेत्र, यांत्रिक एकीकरण सुविधा, केंद्रीयकृत नियंत्रण कक्ष/ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन, स्मार्ट पोल आदि।
अनुसंधान को बढ़ावा:
- विकसित परीक्षण स्थल स्वायत्त नौवहन के क्षेत्र में व्यापक अनुसंधान एवं विकास करने वाले सभी उद्योगों, प्रयोगशालाओं, शिक्षाविदों के उपयोग के लिये उपलब्ध होगा।
राष्ट्रीय अंतर-विषयी साइबर-फिज़िकल सिस्टम पर राष्ट्रीय मिशन (NM-ICPS):
- NM-ICPS एक व्यापक मिशन है जिसका उद्देश्य सभी हितधारकों के साथ मिलकर शिक्षा, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के मध्य मज़बूत संबंध स्थापित करना है। यह मिशन सभी संबंधित मंत्रालयों/विभागों के साथ मिलकर तकनीकी आवश्यकताओं की पहचान करने, समाधान ढूँढने के साथ ही साइबर-फिज़िकल सिस्टम के कार्यान्वयन में तकनीकी सहायता प्रदान करेगा।
- यह साइबर-फिज़िकल सिस्टम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर भारत के भविष्य को सुरक्षित करेगा।
- साइबर-फिज़िकल सिस्टम (CPS) डिजिटल/साइबर तत्त्वों को भौतिक वस्तुओं (जैसे मशीनों, स्वायत्त वाहनों) और संचार, डेटा संग्रह एवं प्रसंस्करण, कंप्यूटिंग, निर्णय लेने तथा कार्रवाई की क्षमताओं को डेटा के साथ एकीकृत करती है।
- CPS एक एकीकृत प्रणाली है जिसमें सेंसर, कम्युनिकेशन, एक्चुएटर्स, कंट्रोल, इंटरकनेक्टेड कंप्यूटिंग नेटवर्क और डेटा एनालिटिक्स शामिल हैं।
- कुछ संभावित अनुप्रयोग: स्मार्ट सड़कों पर सुरक्षित रूप से एक-दूसरे के साथ संवाद करने वाली चालक रहित कारों में , स्वास्थ्य की स्थिति का पता लगाने हेतु घर के सेंसर आदि में।
मिशन की चार प्रमुख गतिविधियाँ हैं::
- प्रौद्योगिकी विकास,
- मानव संसाधन एवं कौशल विकास,
- नवाचार, उद्यमिता और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र तथा
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
स्रोत: PIB
मत्स्य पालन पर भारत-श्रीलंका संयुक्त कार्य समूह
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मत्स्य पालन पर भारत-श्रीलंका संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group- JWG) की चौथी बैठक वर्चुअल माध्यम में आयोजित की गई।
- पाक जलडमरूमध्य (Palk Strait) और मन्नार की खाड़ी दोनों देशों के मछुआरों के लिये मछली पकड़ने के प्रमुख क्षेत्र हैं।
प्रमुख बिंदु
चौथी बैठक
- संयुक्त कार्य समूह (JWG) की चौथी बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने भारत और श्रीलंका की नौसेना तथा तटरक्षक बल के बीच गश्त, तटरक्षक बलों के बीच मौजूदा हॉटलाइन व्यवस्था एवं समुद्री पर्यावरण के संरक्षण जैसे मुद्दों को लेकर आपसी सहयोग के साथ-साथ संयुक्त कार्य समूह (JWG) की पाँचवीं बैठक के कार्यक्रम पर भी विचार-विमर्श किया।
- श्रीलंका ने अपने देश के मछुआरों के लिये अरब सागर में प्रवेश हेतु एक सुरक्षित मार्ग की भी मांग की है।
- भारत का पक्ष
- भारत ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति द्वारा नवंबर 2019 में भारत यात्रा के दौरान व्यक्त की गई प्रतिबद्धता के अनुरूप श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिये गए सभी मछुआरों को रिहा करने की बात दोहराई।
- भारत द्वारा पाक खाड़ी (Palk Bay) में मछली पकड़ने के दबाव को कम करने और इसमें विविधता लाने के लिये प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना तथा भारत सरकार की अन्य योजनाओं एवं तमिलनाडु व पुद्दुचेरी की सरकारों की योजनाओं के तहत किये गए प्रयासों को रेखांकित किया गया।
- भारत ने गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की प्रकिया में विविधता लाने हेतु की गई पहलों, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की सुविधा हेतु तैयार अवसंरचना, समुद्री शैवाल की खेती के माध्यम से वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देने, समुद्री कृषि (Mariculture) और अन्य जलीय कृषि गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान की।
- समुद्री कृषि का आशय भोजन तथा अन्य उत्पादों जैसे फार्मास्यूटिकल्स, खाद्य योगज और गहने आदि के लिये समुद्री जीवों की कृषि से है।
सयुक्त कार्य समूह:
- वर्ष 2016 में भारत के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय तथा श्रीलंका के मत्स्य एवं जलीय संसाधन विकास मंत्रालय के मध्य मछुआरों के मुद्दे का स्थायी समाधान ढूँढने के लिये दोनों देशों द्वारा एक संयुक्त कार्यकारी समूह (JWG) के गठन पर सहमत व्यक्त की गई।
- JWG में दोनों देशों के विदेश मंत्रालय, तटरक्षक बल और नौसेना के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।
- JWG की शर्तें:
- अतिशीघ्र बॉटम ट्राॅलिंग (Bottom Trawling) के अभ्यास को समाप्त करने की दिशा में कार्य करना।
- बॉटम ट्राॅलिंग मछली पकड़ने की एक औद्योगिक विधि है जिसमें एक बड़े जाल को भारी वज़न के साथ समुद्री तल में डाला जाता है।
- जब भारित जाल और ट्रॉल को समुद्र तल से खींचा जाता है, तो उनके रास्ते में आने वाली प्रत्येक चीज़ जिनमें समुद्री घास तथा प्रवाल भित्तियाँ आदि शामिल हैं, जो कि शिकार के समय मछलियों के छिपने के प्रमुख स्थान होते हैं, नष्ट हो जाते हैं।
- दोनों पक्षों द्वारा गिरफ्तार मछुआरों को लौटाने के लिये प्रक्रिया तैयार करना।
- दोनों देशों के मध्य संयुक्त गश्त की संभावना।
- अतिशीघ्र बॉटम ट्राॅलिंग (Bottom Trawling) के अभ्यास को समाप्त करने की दिशा में कार्य करना।
मछुआरों से संबंधित मुद्दे:
- दोनों देशों के बीच स्थानीय जल की निकटता को देखते हुए विशेष रूप से पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी में मछुआरों के भटकने की घटनाएँ आम हैं।
- भारतीय नौकाएँ सदियों से अशांत जल क्षेत्र में मछली पकड़ रही हैं और वर्ष 1974-1976 में दोनों देशों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line-IMBL) के सीमांकन हेतु संधियों पर हस्ताक्षर किये जाने तक भारतीय नौकाएँ बंगाल की खाड़ी, पाक की खाड़ी तथा मन्नार की खाड़ी में स्वतंत्र आवागमन कर सकती थीं।
- हालाँकि मछुआरों के लिये बनी ये संधियाँ विफल हो गईं, क्योंकि इनके कारण हज़ारों पारंपरिक मछुआरे अपने मत्स्य पालन क्षेत्र में अल्प क्षेत्र तक ही सीमित रहने के लिये मज़बूर थे।
- हिथेरो जो कैटचैहेवु का एक छोटा टापू है, इसका उपयोग भारतीय मछुआरों द्वारा पकड़ी गई मछलियों को बीनने या अपने जाल को सुखाने के लिये इस्तेमाल किया जाता था अब यह IMB सीमा के दूसरी ओर चला गया है।
- मछुआरे अक्सर अपनी जान जोखिम में डालते हैं और खाली हाथ लौटने के बजाय IMBL को पार कर जाते हैं, इसके कारण श्रीलंकाई नौसेना द्वारा या तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है या उनके जाल को नष्ट कर दिया जाता है।
- हिथेरो जो कैटचैहेवु का एक छोटा टापू है, इसका उपयोग भारतीय मछुआरों द्वारा पकड़ी गई मछलियों को बीनने या अपने जाल को सुखाने के लिये इस्तेमाल किया जाता था अब यह IMB सीमा के दूसरी ओर चला गया है।
उठाए गए कदम:
- डीप सी फिशिंग योजना:
- यह योजना वर्ष 2019-20 तक ट्रॉलर के स्थान पर 2,000 डीप सी फिशिंग नौकाओं के प्रावधान की परिकल्पना करती है, जो कि योजना के कार्यान्वयन का तीसरा और अंतिम वर्ष होगा।
- इसका उद्देश्य दोनों देशों के मध्य उत्पन्न विवादों को समाप्त करना है।
- इसकी शुरुआत 'नीली क्रांति' योजना के तहत की गई है।
आगे की राह:
- श्रीलंका के साथ संबंध सुधारने के लिये भारत को अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंधों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- भारत और श्रीलंका के मध्य फेरी (नौका) सेवा शुरू किये जाने से लोगों के बीच आपसी संपर्क में सुधार हो सकता है।
- एक-दूसरे की चिंताओं और हितों पर ध्यान दिये जाने से दोनों देशों के मध्य संबंध बेहतर हो सकते हैं।
स्रोत: पीआईबी
डिजिटल इंडिया पुरस्कार 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति द्वारा डिजिटल इंडिया पुरस्कार 2020 (Digital India Awards 2020) का वितरण किया गया।
प्रमुख बिंदु:
डिजिटल इंडिया अवार्ड:
- डिजिटल-गवर्नेंस में अनुकरणीय पहलों/प्रथाओं को सम्मानित करने के लिये डिजिटल इंडिया पुरस्कार का गठन भारत के राष्ट्रीय पोर्टल (National Portal of India) के तहत किया गया है।
- भारत का राष्ट्रीय पोर्टल: यह साइबर स्पेस के क्षेत्र में सरकारी सूचना और सेवाओं के लिये एकल बिंदु पहुँच की सुविधा प्रदान करने हेतु शुरू की गई एक फ्लैगशिप परियोजना है।
- डिजिटल-गवर्नेंस: यह एक संगठन की डिजिटल उपस्थिति के लिये जवाबदेही, भूमिका और निर्णय लेने का अधिकार स्थापित करने हेतु एक फ्रेमवर्क है।
- इसका संचालन केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के तहत कार्यरत 'राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र' (NIC) द्वारा किया जाता है।
- यह पुरस्कार इससे पहले 5 सत्रों ( वर्ष 2009, 2012, 2014, 2016 और 2018) में प्रदान किया जा चुका है। इस पुरस्कार को शुरू में (वर्ष 2014 तक) ‘वेब रत्न पुरस्कार’ के रूप में जाना जाता था और वर्ष 2016 के सत्र से इसे ‘डिजिटल इंडिया अवार्ड’ का नाम दिया गया।
वर्ष 2020 के पुरस्कार:
- सरकार द्वारा शुरू की गई 22 डिजिटल गवर्नेंस पहलों/उत्पादों को नवीन नागरिक-केंद्रित डिजिटल समाधानों के लिये डिज़ाइन तैयार करने और लागू करने तथा सभी नागरिकों के ईज़ ऑफ लिविंग में सुधार हेतु सात श्रेणियों में डिजिटल इंडिया अवार्ड 2020 प्रदान किये गए।
- इस वर्ष ‘महामारी में नवाचार पुरस्कार’ या इनोवेशन इन पैंडेमिक अवार्ड’ ('Innovation in Pandemic award’) नामक पुरस्कार की शुरुआत की गई।
- इस पुरस्कार के तहत स्वास्थ्य, श्रम, वित्त, सामाजिक न्याय और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में व्यापक डिजिटल उपस्थिति सुनिश्चित करने में अनुकरणीय पहल (जो सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में योगदान देते हैं) वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सम्मानित किया जाता है।
उल्लेखनीय विजेता:
सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति:
- ई-कोर्ट परियोजना न्याय विभाग, NIC और ई-समिति द्वारा विकसित एवं कार्यान्वित भारत सरकार की एक मिशन मोड परियोजना है।
- ई-कोर्ट सेवाओं की वेबसाइट, मोबाइल एप, एसएमएस सेवाओं के माध्यम से देश का कोई भी नागरिक किसी भी समय 3,293 अदालत परिसरों में चल रहे मामलों की स्थिति, मुकदमों की सूची आदि देख सकता है।
- यह भारत सरकार द्वारा विकसित एक मोबाइल एप है जो COVID-19 महामारी से निपटने के लिये लोगों को अतिअवाश्यक सेवाओं से जुड़ने में सहायता करता है।
- इस एप का उद्देश्य COVID-19 के जोखिम, सर्वोत्तम प्रथाओं और इससे संबंधित परामर्शों के संदर्भ में उपयोगकर्त्ताओं को सूचित करने तथा उन तक पहुँचने में भारत सरकार (विशेष रूप से स्वास्थ्य विभाग) की पहल को बढ़ावा देना है।
- यह NIC द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत विकसित और कार्यान्वित एक मिशन मोड परियोजना है।
- यह एक डिजिटल वर्कप्लेस सॉल्यूशन है। ई-ऑफिस का लक्ष्य सभी सरकारी कार्यालयों के लिये सरल, उत्तरदायी, प्रभावी और पारदर्शी कार्य प्रणाली की स्थापना करना है।
- यह 'केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय' का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
- इसके तहत दो प्रकार की टेलीमेडिसिन सेवाएँ सुनिश्चित की गई हैं। डॉक्टर-टू-डॉक्टर (ई-संजीवनी) और रोगी-से-डॉक्टर (ई-संजीवनी ओपीडी) टेली-परामर्श।
बिहार सहायता मोबाइल एप:
- यह राज्य के बाहर फँसे हुए 21 लाख प्रवासी श्रमिकों के बैंक खातों में सीधे धनराशि स्थानांतरित करने की एक अभिनव पहल थी।
मध्य प्रदेश श्रम विभाग का प्रवासी श्रमिक और रोज़गार सेतु पोर्टल:
- इस पोर्टल को कोरोनोवायरस महामारी के दौरान प्रवासियों और अन्य श्रमिकों की पहचान, उनके पंजीकरण, प्रशिक्षण तथा रोज़गार की सुविधा प्रदान करने के लिये सम्मानित किया गया है।
राज्य:
- हरियाणा, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने 'एक्सीलेंस इन डिजिटल गवर्नेंस - राज्य/केंद्रशासित प्रदेश’ श्रेणी के तहत पुरस्कार जीता।
स्रोत: पीआईबी
नर्मदा ज़िले में ESZ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
चर्चा में क्यों?
गुजरात के जनजातीय समुदायों द्वारा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ( MoEFCC) के उस आदेश का विरोध किया जा रहा है, जिसमें नर्मदा ज़िले के शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य के आसपास के 121 गाँवों को पर्यावरण संवेदी क्षेत्र (Eco-Sensitive Zones) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- उन्होंने विरोध को शांत करने के लिये केंद्र सरकार से अपील की है कि इस अधिसूचना को वापस लिया जाए।
- ताड़वी और वसावा जैसी जनजातियों के मन में चिंता तब से देखी जा रही है जब से नर्मदा ज़िले के केवडिया गांँव को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue of Unity- SoU) के आसपास एक पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
विरोध के पीछे कारण:
- पर्यावरण संवेदी क्षेत्र में शामिल होने वाली भूमि, जिसमें कृषि कार्य में उपयोग की जाने वाली भूमि तथा पार्क के लिये आरक्षित भूखंड शामिल हैं, को वाणिज्यिक, औद्योगिक या आवासीय प्रयोजनों तथा गैर-कृषि उपयोग हेतु स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
- किसी भी भूमि को सरकार के अनुमोदन के बाद ही हस्तांतरित किया जा सकता है।
- राज्य सरकार को 121 गाँवों की भूमि में सह-स्वामित्व (Co-Owner) प्रदान करने हेतु एक प्रक्रिया शुरू की गई है।
- जनजातीय समुदाय में इस आदेश को लेकर शंका है क्योंकि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया था।
- जारी अधिसूचना तथा एसओयू टूरिज़्म अथॉरिटी ( जिसे एसओयू एरिया डेवलपमेंट एंड टूरिज्म गवर्नेंस अथॉरिटी के नाम से भी जाना जाता है) के संयुक्त गठन ने तेज़ी से बढ़ते पर्यटन क्षेत्र हेतु प्रशासनिक ज़रूरतों को बढ़ाया है और आदिवासियों में अविश्वास और भय की स्थिति को बढ़ाया है।
- जनजातीय समुदायों का मानना है कि दोनों सरकारी आदेशों को एक साथ लागू करने से संविधान की अनुसूची V के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्रों में लागू पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (PESA अधिनियम), 1996 के तहत ग्रामीणों और ग्राम सभाओं में निहित 'शक्तियाँ' प्रभावित हो सकती हैं।
- पाँचवीं और छठी अनुसूचियाँ कुछ क्षेत्रों के लिये वैकल्पिक या विशेष शासन तंत्र प्रदान करती हैं।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996
- गुजरात ने जनवरी 2017 में राज्य PESA नियमों को अधिसूचित किया था, जो कि राज्य के आठ ज़िलों की 4,503 ग्राम सभाओं में लागू होते हैं।
- इस अधिनियम के तहत ग्राम सभाओं को स्वयं से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने की पूरी शक्ति देने की बात कही गई है।
- कानून के प्रावधानों के तहत ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्रों, आदिवासियों और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संबंधित मामलों से निपटने में ‘सबसे सक्षम’ माना गया है।
- हालाँकि कानूनी विशेषज्ञों की माने तो इस अधिनियम को सही ढंग से लागू नहीं किया गया है।
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी पर्यटन प्राधिकरण (SoUTA):
- सरकार ने वर्ष 2019 में SoU क्षेत्र विकास और पर्यटन प्रशासन प्राधिकरण या SoU पर्यटन प्राधिकरण (SoUTA) विधेयक पारित किया।
- यह बिल SoUTA द्वारा कार्यों और कर्तव्यों के निर्वहन के लिये राज्य के समेकित कोष से 10 करोड़ रुपए निर्धारित करता है।
- हालांँकि एक्टिविस्ट और कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह अधिनियम पेसा (PESA) के प्रावधानों को खत्म कर देगा, अधिकारियों का कहना है कि SoUTA के नियमों को स्पष्ट किया जाना चाहिये।
कार्य (Functions):
- यह मुख्य रूप से एक स्थानीय निकाय के रूप में कार्य करेगा जो एक विकास योजना या एक टाउन प्लानिंग योजना तैयार कर उसे क्रियान्वित करेगा, अतिक्रमणों को दूर करेगा तथा जल आपूर्ति, परिवहन, बिजली आपूर्ति, जल निकासी, अस्पतालों, चिकित्सा सेवाओं, स्कूलों, सार्वजनिक पार्कों, बाज़ारों, खरीदारी स्थलों और कचरे का निपटान जैसी नागरिक सुविधाएँ प्रदान करेगा।
शक्तियाँ (Powers):
- भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्वास अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे तथा पारदर्शिता के अधिकार के तहत अचल संपत्ति को प्राप्त करना।
- इसका उल्लंघन करने वाले या अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करना।
- पर्यटन विकास क्षेत्र की सीमाओं को परिभाषित करना।
- अधिकृत व्यक्ति सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच किसी भी भूमि या भवन में निर्मित अपने अधिवास में कम-से-कम 24 घंटे का नोटिस देकर प्रवेश कर सकता है।
- किसी भी कानूनी कार्यवाही या अभियोजन जो इस अधिनियम के प्रावधानों या इसके तहत किये गए किसी भी नियम या विनियम के अनुसरण में किया जा रहा है, से प्राधिकारी और उसके सदस्यों की रक्षा करता है।
सहायता (Assistance):
- पुलिस किसी भी उपद्रव को रोकने या इस तरह की किसी भी गतिविधि, प्रक्रिया, कार्रवाई को रोकने के लिये प्राधिकरण की सहायता कर सकती है, जिससे इस क्षेत्र की "पर्यटन क्षमता" को नुकसान पहुँचाने की आशंका हो।
- इस तरह के उपद्रव को हटाने या समाप्त करने में किया गया व्यय, ऐसे उपद्रव करने वाले व्यक्ति (यदि कोई हो) से भू-राजस्व की बकाया राशि के रूप में वसूल किया जाएगा।
दंड (Punishments):
- प्राधिकरण द्वारा दिये गए दिशा-निर्देशों का पालन न करने वाले व्यक्तियों को एक माह का कारावास या 50,000 रुपए का जुर्माना या दोनों दंड दिया जाएगा। इस अपराध को "संज्ञेय और गैर-जमानती" भी माना जाएगा।
शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य
- इसे पहली बार वर्ष 1982 में संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था।
- 150.87 वर्ग किलोमीटर में फैले इस क्षेत्र को प्रारंभ में 'डमखल अभयारण्य’ कहा जाता था, जिसे विशेष तौर पर सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर (Sloth Bear) के संरक्षण हेतु बनाया गया था।
- वर्ष 1987 और वर्ष 1989 में इस अभ्यारण्य में और अधिक भूमि शामिल की गई तथा अभयारण्य क्षेत्र को 607.70 वर्ग किमी. तक बढ़ाया गया था। साथ ही इसका नाम बदलकर इसे ‘शूलपनेश्वर वन्यजीव अभयारण्य’ कर दिया गया।
- वनस्पति: यह सागौन के वृक्ष, जलीय वनस्पति और पर्णपाती शुष्क वृक्षों का मिश्रित जंगल है।
- जीव-जगत: सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर, तेंदुए, रीसस मकाक, चार सींग वाले मृग, भौंकने वाला हिरण (Barking Deer), पैंगोलिन, सरीसृप और अलेक्जेंड्रिन पैराकीट समेत कई अन्य पक्षी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
एस्टोनिया, पराग्वे और डोमिनिकन गणराज्य में भारतीय मिशन
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2021 में एस्टोनिया, पराग्वे और डोमिनिकन गणराज्य में 3 भारतीय मिशन स्थापित करने की मंज़ूरी प्रदान की है।
प्रमुख बिंदु
उद्देश्य:
- इन देशों के साथ मैत्रीपूर्ण साझेदारी द्वारा भारत के विकास के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण करना।
संभावित लाभ:
- इन देशों में भारतीय मिशन की स्थापना से भारत के कूटनीतिक संबंधों के विस्तार के साथ ही, राजनीतिक संबंधों में मज़बूती आएगी तथाद्विपक्षीय व्यापार, निवेश और आर्थिक जुड़ाव विकास के चलते, लोगों के मध्य संपर्क को मज़बूत करने, विभिन्न मंचों के माध्यम से बहुपक्षीय राजनीतिक संपर्क को बढ़ावा देने तथा भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य के लिये समर्थन प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- भारतीय मिशन इन देशों में भारतीय समुदाय की बेहतर ढंग से सहायता करने में सक्षम होंगे तथा उनके हितों की रक्षा कर पाएंगे ।
- इससे वैश्विक स्तर पर भारत की राजनयिक उपस्थिति में वृद्धि होगी, साथ ही भारतीय कंँपनियों की वैश्विक बाज़ार तक पहुंँच, भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के परिणामस्वरूप निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
- इसका सीधा असर ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य के अनुरूप घरेलू उत्पादन और रोज़गार को बढ़ाने में होगा।
तीनों देशों के साथ संबंध:
- एस्टोनिया:
- यह तीन बाल्टिक देशों में सबसे उत्तरी देश है।
- बाल्टिक देशों में एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया शामिल हैं जो यूरोप के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बाल्टिक सागर के पूर्वी किनारे पर स्थित हैं।
- बाल्टिक क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध नहीं है। हालांँकि एस्टोनिया महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र है, बावजूद इसके यह खनिज और ऊर्जा संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है।
- एस्टोनिया ने भारतीय निर्णय का स्वागत किया है तथा कहा कि यह दोनों देशों के मध्य विशेष रूप से व्यापार और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में संबंधों को मज़बूत करेगा।
- भारत के इस फैसले का वर्ष 2013 से इंतजार किया जा रहा था जब एस्टोनिया ने दिल्ली में अपना दूतावास स्थापित किया। वहीँ भारत द्वारा पड़ोसी देश फिनलैंड में अपने दूतावास के माध्यम से एस्टोनिया से संबंधो को मज़बूती प्रदान करने के साथ ही अपने कार्यों का संचालन किया जाता है।
- भारत और एस्टोनिया अगले वर्ष ‘सुरक्षा परिषद’ के सदस्यों में भी शामिल होगें।
- दोनों देशों के मध्य सूचना प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा, ई-गवर्नेंस और ब्लॉक चेन के क्षेत्र में आर्थिक भागीदारी बढ़ाने की अपार संभावनाएँ हैं।
- दोनों देशों के मध्य वर्ष 2018-19 में कुल द्विपक्षीय व्यापार 172.53 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का था जो वर्ष 2017-18 की तुलना में 22.5% अधिक रहा।
- यह तीन बाल्टिक देशों में सबसे उत्तरी देश है।
- पराग्वे:
- यह दक्षिण अमेरिका के दक्षिण-मध्य में स्थित एक स्थल अवरुद्ध/लैंडलॉक देश है।
- यहाँ बहने वाली नदियाँ अटलांटिक महासागर में गिरती हैं, जो पनबिजली संयंत्रों के प्रमुख केंद्रों के रूप में कार्य करती हैं इसी कारण पराग्वे को जलविद्युत के मामले में विश्व के सबसे बड़े निर्यातक देशों में शामिल किया जाता है।
- पराग्वे मर्कोसुर (MERCOSUR) का सदस्य है।
- दक्षिणी साझा बाज़ार जिसे स्पेनिश में मर्कोसुर कहाँ जाता है क्षेत्रीय एकीकरण की एक प्रक्रिया है। इसे अर्जेंटीना, ब्राज़ील, पराग्वे और उरुग्वे देशों द्वारा शुरू किया गया था तथा बाद में वेनेजुएला और बोलिविया भी इस प्रक्रिया में शामिल हो गए।
- भारत द्वारा मर्कोसुर से सुविधा प्राप्त करने के लिये व्यापार समझौता किया गया है।
- पराग्वे ने वर्ष 2006 में दिल्ली में अपना मिशन स्थापित किया।
- वित्त वर्ष 2018-19 में भारत द्वारा पराग्वे को कुल 161 मिलियन अमेरीकी डॉलर का निर्यात किया गया था, जबकि पराग्वे का कुल निर्यात मूल्य 21 मिलियन अमेंरीकी डॉलर का था। भारत द्वारा पराग्वे को किए गये निर्यात में 90% सोयाबीन तेल शामिल है।
- डोमिनिकन गणराज्य:
- यह वेस्टइंडीज़ (विभिन्न द्वीपीय देशों का समूह) का एक देश है जो कैरिबियन सागर में ग्रेटर एंटीलिज शृंखला के दूसरे सबसे बड़े द्वीप हिसपनिओला के पूर्व में दो-तिहाई हिस्से में फैला हुआ है।
- इसने वर्ष 2006 में दिल्ली में अपना मिशन स्थापित किया था।
- डोमिनिकन गणराज्य में भारत का निर्यात कम है परंतु यह बढ़ रहा है। वर्तमान में द्विपक्षीय व्यापार लगभग 120 मिलियन अमेंरीकी डाॅलर का है।
- भारत से निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुओं में सूती और रेडीमेड वस्त्र, ड्रग्स और फार्मास्यूटिकल्स, फर्नीचर, परिवहन उपकरण, धातु, रसायन, प्लास्टिक और लिनोलियम उत्पाद, चाय, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ तथा समुद्री उत्पाद शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
असम निरसन विधेयक, 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम विधानसभा में राज्य द्वारा धार्मिक शिक्षा केंद्रों के रूप में संचालित मदरसों को नियमित स्कूलों में परिवर्तित करने से संबंधित एक विधेयक पारित किया गया है ।
- मंत्रिमंडल द्वारा निर्णय लिया गया है कि 1 अप्रैल, 2022 से कुमार भास्कर वर्मा संस्कृत और प्राचीन अध्ययन विश्वविद्यालय, नलबाड़ी द्वारा शुरू किये जाने वाले सर्टिफिकेट/ डिप्लोमा/ डिग्री पाठ्यक्रम का अध्ययन करने हेतु मौज़ूदा प्रांतीय संस्कृत पाठशालाओं को अध्ययन केंद्र, अनुसंधान केंद्र और संस्थानों में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
- असम निरसन विधेयक, 2020 को वर्तमान में दो मौजूदा अधिनियमों को निरस्त करने हेतु लाया गया:
- असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) अधिनियम, 1995
- असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शैक्षणिक संस्थानों का पुन: संगठन) अधिनियम, 2018
- नए कानून में राज्य बोर्डों के तहत संचालित निजी मदरसों को भी शामिल किया गया है, हालाँकि वे मदरसे जो निजी तौर पर संचालित है परंतु किसी भी राज्य बोर्ड के अधीन नहीं हैं, इस विधेयक के दायरे से बाहर हैं।
- आमतौर पर इस्लामी शिक्षा संस्थानों हेतु संक्षिप्त में अंग्रेजी में ‘मदरसा’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- इतिहासकारों और अन्य विद्वानों द्वारा इस्लामिक विश्व में ऐतिहासिक मदरसा संस्थानों को संदर्भित करने हेतु इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है, जो एक ऐसा कॉलेज / स्कूल है जहाँ अन्य माध्यमिक विषयों के साथ-साथ इस्लामी कानून की भी शिक्षा दी जाती थी ।
- माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, असम (Board of Secondary Education, Assam- SEBA) द्वारा संचालित मदरसों के नियमित स्कूलों के रूप में तब्दील होने के बाद उनके नाम और कार्य से मदरसा ’हटा दिया जाएगा।
- मदरसों के कर्मचारियों, विशेष रूप से धार्मिक विषयों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को या तो अन्य विषयों को पढ़ाने हेतु प्रशिक्षित किया जाएगा या उनकी क्षमता के अनुसार किसी अन्य कार्य हेतु उन्हें प्रशिक्षित किया जाएगा ।
- इसे मुस्लिम समुदाय के सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है।
- यह बिल बी.आर.अंबेडकर के अनुकूल है जिनके अनुसार, धार्मिक शिक्षा का पाठ्यक्रम में कोई स्थान नहीं होना चाहिये।
- कुरान को सरकारी खर्च पर नहीं पढ़ाया जाना चाहिये क्योंकि बाइबल या भगवद्गीता या अन्य धर्मों के ग्रंथों को भी सरकारी खर्चें पर नहीं पढ़ाया जाता है
- सरकार द्वारा मदरसों और संस्कृत पाठशालाओं (संस्कृत शिक्षण केंद्र) पर सालाना 260 करोड़ रुपए खर्च किया जाता है।
- इसके अलावा धर्मनिरपेक्षता संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है।
- सरकार की इच्छा है कि भविष्य में निजी मदरसों में विज्ञान, गणित और धार्मिक विषयों के साथ अन्य विषयों को पढ़ाने के लिये भी एक कानून बनाया जाए।