अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सिंधु जल संधि के 60 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:सिंधु जल संधि, स्थायी सिंधु आयोग मेन्स के लिये:सिंधु जल संधि और भारत-पाकिस्तान जल विवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में लागू की गई सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के 60 वर्ष पूरे हो गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty):
- सिंधु नदी तंत्र में मुख्यतः 6 नदियाँ सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज शामिल हैं।
- इन नदियों के बहाव वाले क्षेत्र (Basin) को मुख्य रूप से भारत और पाकिस्तान द्वारा साझा किया जाता है, हालाँकि इसका एक छोटा हिस्सा चीन और अफगानिस्तान में भी मिलता है।
- 19 सितंबर, 1960 को विश्व बैंक (World Bank) की मध्यस्थता के माध्यम से भारत और पाकिस्तान के बीच कराची (पाकिस्तान) में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की तीन पूर्वी नदियों (रावी, सतलज और ब्यास) के जल पर भारत को पूरा अधिकार दिया गया, जबकि तीन पश्चिमी नदियों (झेलम, चिनाब और सिंधु) के जल को पाकिस्तान को दिया गया (संधि के तहत भारत के लिये निर्दिष्ट घरेलू, गैर-उपभोग और कृषि उपयोग को छोड़कर)।
- इसके साथ ही भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ (Run of the River- RoR) प्रोजेक्ट के तहत पनबिजली उत्पादन का अधिकार भी दिया गया है।
- स्थायी सिंधु आयोग: सिंधु जल संधि, 1960 के अनुच्छेद-8 के अंतर्गत इस संधि के क्रियान्वयन हेतु एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) के गठन का प्रावधान किया गया है। इस संधि के तहत आयोग की बैठक वर्ष में कम-से-कम एक बार अवश्य आयोजित की जानी चाहिये तथा संधि के अनुसार, यह बैठक हर वर्ष बारी-बारी भारत और पाकिस्तान में आयोजित की जाएगी।
संधि का परिणाम और भारत का दृष्टिकोण :
- इस समझौते से पाकिस्तान को सीधा लाभ प्राप्त हुआ, क्योंकि इसके तहत भारत ने 80.52% जल पाकिस्तान को देने पर सहमति व्यक्त की जबकि भारत को मात्र 19.48% जल ही प्राप्त हुआ।
- इसके अतिरिक्त भारत ने पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर नहरों के निर्माण के लिये 83 करोड़ रुपए (पाउंड स्टर्लिंग में) देने पर भी सहमति व्यक्त की।
- भारत ने पूर्वी नदियों पर पूर्ण अधिकार के लिये पश्चिमी नदियों पर अपनी मज़बूत स्थिति के बावजूद भी इसके जल को पाकिस्तान में जाने दिया।
- गौरतलब है कि पाकिस्तान के लगभग 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई सिंधु नदी या इसकी सहायक नदियों पर निर्भर है।
- स्वतंत्रता के बाद भारत के विकास में जल की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी इसलिये प्रस्तावित राजस्थान नहर और भाखड़ा बांध के लिये ’पूर्वी नदियों’ के जल को प्राप्त करना बहुत ही आवश्यक था। इसके बिना पंजाब और राजस्थान में सूखा एवं कृषि उपज की भारी कमी जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता था।
- तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इस बात को लेकर भी सचेत थे कि भाखड़ा नहरों के निर्माण के कारण पाकिस्तान को जल की आपूर्ति कम नहीं होनी चाहिये हालाँकि वे इस बात पर भी स्पष्ट थे कि पूर्वी नदियों पर भारत के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- इस दृष्टिकोण के पीछे उनका मत था कि भविष्य में भारत और पाकिस्तान भी अमेरिका तथा कनाडा की तरह मित्रवत एवं शिष्टाचारपूर्वक साथ रह सकेंगे।
विवाद और चुनौतियाँ :
- वर्ष 1976 के बाद से भारत द्वारा पश्चिमी नदियों पर ‘सलाल पनबिजली परियोजना’ (चिनाब नदी पर), वुलर बैराज परियोजना, बागलीहार जलविद्युत परियोजना और किशनगंगा पनबिजली परियोजना जैसी कई परियोजनाओं पर कार्य शुरू होने के बाद से ही पाकिस्तान ने भारत पर संधि के उल्लंघन तथा पाकिस्तान में पानी की कमी के लिये ज़िम्मेदार होने का आरोप लगाया है।
- पाकिस्तान के अनुसार, पश्चिमी नदियों पर भारत की परियोजनाएँ संधि के तहत निर्धारित तकनीकी शर्तों का पालन नहीं करती हैं।
- गौरतलब है कि सिंधु और सतलज नदी तिब्बत से निकलती है और वर्तमान में चीन इन नदियों के भारत में प्रवेश करने से पहले इन पर बांध निर्माण या अन्य परियोजनाओं पर कार्य कर रहा है।
भारत का पक्ष:
- संधि के तहत पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों का पानी आवंटित किया गया है, परंतु यह भारत को इन नदियों के पाकिस्तान में प्रवेश करने से पहले जलविद्युत क्षमता का दोहन करने की अनुमति देता है।
- संधि के तहत भारत को सामान्य उद्देश्य, बिजली उत्पादन और फ्लड स्टोरेज के लिये पश्चिमी नदियों पर क्रमशः 1.25, 1.60, और 0.75 मिलियन एकड़ फीट (MAF) [कुल 3.6 MAF] भंडारण इकाइयों के निर्माण की अनुमति देता है। हालाँकि भारत ने अब तक किसी भंडारण इकाई का निर्माण नहीं किया है।
- साथ ही संधि के तहत पश्चिमी नदियों पर भारत द्वारा जल विद्युत परियोजना पर कोई मात्रात्मक सीमा या ‘रन ऑफ द रिवर’ परियोजनाओं की संख्या पर कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
संधि को निरस्त करने की मांग:
- पाकिस्तान द्वारा भारत में सीमापार आतंकवाद और चरमपंथ को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों के बाद कई बार भारत में इस संधि (IWT) को निरस्त करने की मांग उठती रही है।
- इस संधि में किसी भी पक्ष के द्वारा एकतरफा तरीके से इसे समाप्त करने का प्रावधान नहीं है, हालाँकि भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी घटनाओं (वर्ष 2001 संसद हमला, वर्ष 2008 मुंबई हमला, वर्ष 2016 में उरी और वर्ष 2019 में पुलवामा आदि) के बाद भारत ‘वियना समझौते’ के लॉ ऑफ ट्रीटीज़ की धारा-62 के अंतर्गत इस संधि से अलग हो सकता था।
- हालाँकि संधि को निरस्त करने से क्षेत्र में एक बार पुनः अस्थिरता बढ़ने का खतरा बना रहेगा।
संधि का भविष्य:
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान को सिंधु नदी तंत्र के जल के आर्थिक महत्त्व को देखते हुए इसकी क्षमता का अधिक-से-अधिक लाभ लेने के लिये IWT के अनुच्छेद-7 (भविष्य में सहयोग) के तहत इसके विकास हेतु साझा प्रयासों को बढ़ावा देने चाहिये।
- हालाँकि वर्तमान में पाकिस्तान और चीन के बीच इस क्षेत्र में बढ़ते सहयोग को देखते हुए पाकिस्तान के साथ साझा सहयोग पर कोई समझौता बहुत कठिन होगा।
- IWT के अनुच्छेद-12 के तहत किसी उद्देश्य के लिये इस संधि में संशोधन (दोनों सरकारों के बीच उस उद्देश्य के लिये एक विधिवत पुष्टि संधि के द्वारा) का प्रावधान है, परंतु पाकिस्तान संधि में संशोधन के माध्यम से वर्ष 1960 में मिले बड़े हिस्से में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहेगा।
- वर्तमान परिस्थिति में भारत के पास इस संधि के प्रावधानों का अधिकतम लाभ लेना ही सबसे बेहतर विकल्प होगा।
- भारत द्वारा बेहतर जल प्रबंधन परियोजनाओं के अभाव में 2-3 MAF जल पाकिस्तान में चला जाता है, इसके साथ ही पश्चिमी नदियों पर विद्युत उत्पादन की कुल अनुमानित क्षमता 11406 मेगावाट में से अब तक केवल 3034 मेगावाट का दोहन किया जा सका है।
- भारत सरकार द्वारा सिंधु जल संधि के तहत प्राप्त अपने अधिकारों का पूरा लाभ लेने के लिये शीघ्र ही इन परियोजनाओं की कमियों को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ संबंधी नियम
प्रिलिम्स के लियेरूल्स ऑफ ओरिजिन, आसियान, मुक्त व्यापार समझौता मेन्स के लियेरूल्स ऑफ ओरिजिन संबंधी नए नियम और इन नियमों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
वित्त मंत्रालय के निर्देशानुसार, 21 सितंबर, 2020 से देश भर के आयातकों को किसी भी वस्तु का आयात करने से पूर्व अपेक्षित सतर्कता बरतते हुए आयातित वस्तुओं पर ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules Of Origin) से संबंधित नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा।
प्रमुख बिंदु
- गौरतलब है कि 21 अगस्त, 2020 को राजस्व विभाग द्वारा अधिसूचित किया गया सीमा शुल्क (व्यापार समझौतों के लिये उत्पत्ति नियमों के प्रशासन) नियम 21 सितंबर से लागू हो जाएगा।
- वित्त मंत्रालय ने आयातकों और अन्य हितधारकों को नए प्रावधानों से परिचित कराने और अपनी कार्यप्रणाली को इसके अनुरूप बनाने के लिये 30-दिन का समय दिया था, जो कि 21 सितंबर, 2020 को समाप्त हो जाएगा।
नए नियम
- नवीनतम नियमों के अनुसार, आयातकों को अब सीमा शुल्क अधिकारियों को आयातित किये गए माल के लिये उस देश में 35 प्रतिशत मूल्यवर्द्धन का प्रमाण देना होगा, जिसके साथ भारत ने मुक्त व्यापार समझौता (FTA) किया हुआ है और यदि वे यह प्रणाम-पत्र प्रदान करने में विफल रहते हैं तो उन्हें समझौते के तहत उपलब्ध विभिन्न रियायतें प्राप्त नहीं होंगी।
- सरकार के इस निर्णय का अर्थ होगा कि चीन से उत्पादित और किसी अन्य देश के रास्ते भारत में आने वाली वस्तुओं को मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के तहत सीमा शुल्क रियायतों का लाभ नहीं मिल पाएगा।
- इसके अलावा आयातकों को वस्तुओं का आयात करते समय प्रविष्ट बिल (Bill of Entry) पर वस्तु के उद्गम स्थान (वस्तु के उत्पादन के स्थान) (Origin) से संबंधित जानकारी भी प्रदान करनी होगी।
उद्देश्य
- इस प्रकार की व्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य चीन को भारत के मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) से अनुचित लाभ प्राप्त करने से रोकना है, दरअसल भारत ने आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है, जिसका लाभ प्राप्त करते हुए चीन अपने कई उत्पादों को आसियान देशों के माध्यम से भारत में बेचता है, जिसके कारण उसे इन उत्पादों के लिये किसी भी प्रकार के शुल्क का भुगतान नहीं करना पड़ता है।
महत्त्व
- इस निर्णय के माध्यम से भारत के घरेलू उद्योगों को मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) के कारण उत्पन्न होने वाली अनुचित प्रतिस्पर्द्धा से बचाया जा सकेगा।
- नए नियमों की मदद से सीमा शुल्क विभाग को मज़बूती मिलेगी और विभिन्न व्यापार समझौतों के तहत सीमा शुल्क में छूट का गलत लाभ लेने की कोशिशों पर लगाम लगेगी।
पृष्ठभूमि
- ध्यातव्य है कि भारत ने 10 आसियान देशों के साथ वर्ष 2009 में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये थे, जिसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल थे।
- यह मुक्त व्यापार समझौता 10 आसियान देशों की अधिकांश वस्तुओं के शून्य अथवा कुछ रियायती दरों के आधार पर आयात का प्रावधान करता है, हालाँकि भारत में अधिकांश आयात मुख्यतः पाँच सदस्य देशों- इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, सिंगापुर और वियतनाम से ही होता है।
- नियमों के अनुसार, रियायती सीमा शुल्क दर का लाभ केवल तभी दिया जाता है जब कोई आसियान सदस्य देश से आयात होने वाला माल पर ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ के सिद्धांत को पूरा करे।
- ‘कंट्री ऑफ ओरिजिन’ के सिद्धांत का निर्धारण करते समय कुछ निश्चित शर्तों का प्रयोग किया जाता है, पूर्ववर्ती नियमों के मुताबिक यह आवश्यक है कि वस्तुओं के निर्यात मूल्य का कम-से-कम 35 प्रतिशत का मूल्यवर्द्धन आसियान सदस्य देश में ही हुआ हो, हालाँकि पहले यह सिद्ध करने के लिये आसियान देश में अधिसूचित एजेंसी द्वारा जारी किया गया प्रमाण-पत्र ही काफी होता था, किंतु नए नियमों के अनुसार, आयातकों को अधिकारियों के समक्ष आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे।
- कई बार जाँच में यह पाया गया है कि गैर-आसियान देशों की वस्तुओं में केवल कुछ छोटा-मोटा परिवर्तन करके उन्हें आसियान देशों के माध्यम से भारत भेजा जा रहा था और 35 प्रतिशत के मूल्यवर्द्धन नियम का सही ढंग से पालन नहीं किया जा रहा था।
‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin):
- रूल्स ऑफ ओरिजिन, किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत के निर्धारण के लिये आवश्यक मापदंड है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कई मामलों में वस्तुओं पर शुल्क और प्रतिबंध का निर्धारण ‘आयात के स्रोत’ पर निर्भर करता है।
- इसका प्रयोग ‘एंटी-डंपिंग शुल्क’ (Anti-Dumping Duty) या देश की वाणिज्य नीति के तहत अन्य सुरक्षात्मक कदम उठाने, व्यापार आँकड़े तैयार करने व सरकारी खरीद आदि में किया जाता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
प्रिलिम्स के लियेप्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना मेन्स के लियेयोजना के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana-PMGSY) के बारे में जानकारी दी।
प्रमुख बिंदु
योजना का परिचय
- एकमुश्त विशेष हस्तक्षेप के रूप में PMGSY के पहले चरण की शुरुआत वर्ष 2000 में की गई। PMGSY का प्रमुख उद्देश्य निर्धारित जनसंख्या वाली असंबद्ध बस्तियों को ग्रामीण संपर्क नेटवर्क प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों का सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण करना है। योजना के अंतर्गत जनसंख्या का आकार मैदानी क्षेत्रों में 500+ और उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों, मरुस्थलीय और जनजातीय क्षेत्रों में 250+ निर्धारित किया गया है।
- इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य निर्धारित मानकों को पूरा करने करने वाली असंबद्ध बस्तियों को सड़क नेटवर्क प्रदान करना है। प्रारंभ में राज्यों के लिये सड़कों की लंबाई/वित्तीय लक्ष्य/आवंटन के संदर्भ में कोई भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गए थे। स्वीकृत परियोजनाओं के मूल्यों के अनुरूप राज्यों को निधि का आवंटन बाद के वर्षों में किया गया है।
- भारत सरकार द्वारा वर्ष 2013 में समग्र दक्षता में सुधार हेतु ग्रामीण सड़क नेटवर्क में 50,000 किमी. के उन्नयन के लिये PMGSY-II की शुरुआत की गई।
- ग्रामीण कृषि बाज़ार (GrAMs), उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों और अस्पतालों को प्रमुख ग्रामीण संपर्क मार्गों से जोड़ने हेतु वर्ष 2019 में 1,25,000 किमी. के समेकन के लिये PMGSY-III को प्रारंभ किया गया।
- PMGSY के तहत ग्रामीण सड़कों का निर्माण और विकास ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में प्रस्तावित ज्यामितीय डिज़ाइन और भारतीय सड़क कॉन्ग्रेस (Indian Road Congress-IRC) के मैनुअल और अन्य प्रासंगिक IRC कोड और मैनुअल के अनुसार किया जाता है।
- मंत्रालय द्वारा योजना के अंतर्गत कार्य संबंधित राज्य सरकारों द्वारा प्रस्तुत ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट’ (Detailed Project Report-DPR) के आधार पर स्वीकृत किये जाते हैं।
- राज्यों द्वारा विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जारी करते समय लागत को प्रभावित करने वाले भौतिक और पर्यावरणीय कारकों, जैसे- स्थलाकृति, मिट्टी के प्रकार, जलवायु, यातायात घनत्व, वर्षा और ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा निर्धारित तकनीकी विशिष्टताओं, जैसे- आवश्यक जल निकासी, नालियों और संरक्षण कार्यों की आवश्यकताओं पर विचार किया जाता है।
- सड़क निर्माण कार्यों के लिये लागत अनुमान तैयार करते समय भौगोलिक और संबंधित कारकों को ध्यान में रखा जाता हैं। PMGSY-I के अंतर्गत पात्र बस्तियों के आधार पर और PMGSY-II तथा III के मामले में सड़कों की लंबाई के आधार पर लक्ष्य आवंटित किये जाते हैं।
- योजना में विशेष वितरण के उपाय के रूप में केंद्र सरकार पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में परियोजना लागत का 90% वहन करती है, जबकि अन्य राज्यों में केंद्र सरकार लागत का 60% वहन करती है।
योजना के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ
- PMGSY के अंतर्गत निर्मित ग्रामीण सड़क नेटवर्क को वर्तमान में मरम्मत की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन राज्य इन सड़कों के रखरखाव के लिये पर्याप्त मात्रा में व्यय नहीं कर रहे हैं। योजना क्रियान्वयन के नोडल मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय के लिये यह एक चिंता का विषय है।
- मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार, योजना के अंतर्गत निर्मित सड़कों के रखरखाव के लिये वर्ष 2020-21 से प्रारंभ होकर अगले पाँच वर्षों की अवधि के दौरान 75,000-80,000 करोड़ रुपए खर्च करने की आवश्यकता होगी। राज्यों द्वारा चालू वित्त वर्ष में 11,500 करोड़ रुपए खर्च किये जाने की आवश्यकता है और वर्ष 2024-25 तक आवश्यक राशि बढ़कर 19,000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
- योजना के प्रारंभ होने के पश्चात् से अब तक लगभग 1.5 लाख बस्तियों को आपस में जोड़ने के लिये 6.2 लाख किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण किया जा चुका है। इन सड़कों में से लगभग 2.27 लाख किमी. से अधिक लंबाई की सड़कें 10 वर्ष से अधिक और लगभग 1.79 लाख किमी. लंबी सड़कें 5 से 10 वर्ष तक पुरानी है। इन सभी को मिलाकर लगभग 67% सड़कों के उचित रखरखाव की आवश्यकता है।
- राज्य ग्रामीण सड़क विकास एजेंसियों में प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारियों का बार-बार स्थानांतरण योजना निगरानी की प्रभावशीलता को बाधित करता है। कुछ राज्यों द्वारा ऑनलाइन निगरानी प्रबंधन और लेखा प्रणाली पर नियमित रूप से योजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति को अद्यतन नहीं करना भी चिंता का विषय है।
- अपर्याप्त परियोजना निष्पादन और अनुबंध क्षमता, भूमि तथा वन मंज़ूरी में देरी होना, आदि भी योजना की भौतिक प्रगति में आने वाली कुछ प्रमुख बाधाएँ हैं। PMGSY के कैग ऑडिट में देखा गया कि बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित नौ राज्य सड़कों के निर्माण में पिछड़े हुए थे।
आगे की राह
- योजना में भ्रष्ट और संदिग्ध ठेकेदारों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिये, जिससे भविष्य में उन्हें टेंडर देने से बचा जा सके।
- वर्तमान में विद्यमान मुद्दों के समाधान के लिये खरीद प्रक्रिया को उन्नत करने के साथ ही मंत्रालय को ठेकेदारों को समय पर भुगतान भी सुनिश्चित करना चाहिये ताकि श्रमिकों को समय पर भुगतान किया जा सके।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय राजव्यवस्था
गरीब छात्रों के लिये मुफ्त गैजेट और इंटरनेट
प्रिलिम्स के लियेशिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 मेन्स के लियेस्कूली शिक्षा पर महामारी का प्रभाव और यथासंभव उपाय |
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी में निजी और सरकारी विद्यालयों को निर्देश दिया कि वे ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिये गरीब छात्रों को मुफ्त में गैजेट और इंटरनेट पैकेज प्रदान करें।
प्रमुख बिंदु
- उच्च न्यायालय का निर्णय
- दिल्ली उच्च न्यायलय की खंडपीठ ने कहा कि यदि कोई विद्यालय शिक्षा के माध्यम के रूप में ऑनलाइन मोड का चयन करता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) और अन्य वंचित समूह से संबंधित बच्चे भी इस नई व्यवस्था में शामिल हो सकें और इसका यथासंभव लाभ प्राप्त कर सकें।
- निर्णय के अनुसार, निजी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूल शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम की धारा 12(2) के तहत सरकार से गैजेट और इंटरनेट पैकेज की खरीद के लिये उचित लागत की प्रतिपूर्ति (Reimbursement) का दावा कर सकते हैं।
- न्यायालय ने गरीब और वंचित छात्रों की पहचान करने और इंटरनेट तथा गैजेट्स की आपूर्ति की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिये एक तीन-सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया है।
- महत्त्व
- इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुए डिजिटल डिवाइड को कम करना है।
- यह निर्णय इस दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि मौजूदा महामारी के आर्थिक प्रभाव के कारण छोटी उम्र के बच्चों में संसाधनों की कमी की वजह से शिक्षा छोड़ने और विद्यालय न जाने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
- इसलिये इस समस्या को जल्द-से-जल्द संबोधित करने की आवश्यक है, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है, तो आर्थिक रूप से कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग के बच्चों के सिखने की क्षमता काफी प्रभावित होगी।
- संबंधित कानूनी प्रावधान
- संसाधनों की कमी के कारण एक कक्षा के विद्यार्थियों के बीच उत्पन्न हुए डिजिटल डिवाइड से न केवल विद्यार्थी एक-समान अवसर प्राप्त करने में विफल रहते हैं, बल्कि इससे विद्यार्थियों के बीच ही एक भेदभाव की स्थिति बन जाती है, जो कि शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के प्रावधानों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 का उल्लंघन होता है।
- शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम: अधिनियम के अनुसार, निजी और विशेष श्रेणी के विद्यालय कक्षा एक या पूर्व-प्राथमिक कक्षाओं में भर्ती होने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग के बच्चों के लिये कम-से-कम 25 प्रतिशत सीटों का आवंटन करेंगे, और उन बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेंगे। इसके लिये उन विद्यालयों को सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति दी जाएगी।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भारत के सभी नागरिकों के लिये कानून के समक्ष समानता और भारत के राज्य क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण का प्रावधान करता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के अधिकार को 2002 के 86वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21(A) के तहत मौलिक अधिकार बना दिया गया है।
- संसाधनों की कमी के कारण एक कक्षा के विद्यार्थियों के बीच उत्पन्न हुए डिजिटल डिवाइड से न केवल विद्यार्थी एक-समान अवसर प्राप्त करने में विफल रहते हैं, बल्कि इससे विद्यार्थियों के बीच ही एक भेदभाव की स्थिति बन जाती है, जो कि शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 के प्रावधानों और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 तथा 21 का उल्लंघन होता है।
- महामारी और शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल डिवाइड
- संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) के आर्थिक परिणामों के प्रभावस्वरूप अगले वर्ष लगभग 24 मिलियन बच्चों पर स्कूल न लौट पाने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
- महामारी के कारण विद्यालय समेत अन्य शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94 प्रतिशत छात्र आबादी प्रभावित हुई है और इसका सबसे ज़्यादा प्रभाव निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों पर देखने को मिला है।
- दिल्ली के आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालय (DES) द्वारा कार्यान्वित एक हालिया सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण में सामने आया है कि सर्वेक्षण में शामिल 20.05 लाख परिवारों में से 15.7 लाख के पास कंप्यूटर या लैपटॉप नहीं हैं।
अन्य संबंधित मामले
- वर्ष 2019 में इंटरनेट की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य के मामले में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है।
- अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इंटरनेट पर मुक्त भाषा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्रदान की थी।
आगे की राह
- दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय राष्ट्रीय राजधानी में स्कूली विद्यार्थियों के बीच डिजिटल डिवाइड को कम करने में मदद करेगा, साथ ही यह देश के अन्य राज्यों को भी ऐसा निर्णय लेने के लिये प्रेरित करेगा।
- कोरोना वायरस महामारी ने तेज़ गति से ऑनलाइन शिक्षा की ओर एक बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया है, आवश्यक है कि सरकार द्वारा इस आवश्यकता को पहचाने और इस संबंध में आवश्यक बुनियादी ढाँचे के निर्माण का प्रयास किया जाए।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रोत्साहन के लिये उठाए गए कदम
प्रिलिम्स के लिये‘आयुष’ चिकित्सा पद्धति, आयुर्वेद, योग, होम्योपैथी, राष्ट्रीय आयुष मिशन मेन्स के लियेभारतीय चिकित्सा पद्धति के प्रोत्साहन के लिये उठाए गए कदम |
चर्चा में क्यों?
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा लोकसभा में दिये गए एक लिखित उत्तर में भारतीय चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित करने के लिये उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी दी गई।
‘आयुष’ चिकित्सा पद्धति
- आयुष (AYUSH) का अभिप्राय आयुर्वेद, योगा, यूनानी, सिद्ध एवं होम्योपैथी से है। आयुष मंत्रालय इन सभी स्वास्थ्य प्रणालियों के संवर्द्धन एवं विकास, इन प्रणालियों के माध्यम से आमजन को स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना तथा इनसे संबंधित चिकित्सा शिक्षा के संचालन का कार्य देखता है।
- संबंधित चिकित्सा पद्धतियों के बारे में संक्षिप्त विवरण -
- आयुर्वेद- पूर्णरूप से प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित आयुर्वेद विश्व का प्राचीनतम चिकित्सा विज्ञान है। आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथों में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग हृदयम प्रमुख हैं। आयुर्वेद प्रमुख रूप से त्रिदोष- वात, पित्त और कफ पर आधारित है। तीनों दोष जब शरीर में में सम अवस्था में रहतें हैं तब मनुष्य स्वस्थ रहता है तथा दोषों की विषम अवस्था होने पर रोग उत्पन्न होते हैं।
- होम्योपैथी- होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का प्रादुर्भाव एक जर्मन डॉ. सैम्युल फ्रेडरिक हैनीमन द्वारा किया गया। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से विभिन्न रोगों का बहुत ही कम खर्च पर उपचार किया जा सकता है।
- योग: योग मुख्यतः एक जीवन पद्धति है, जिसे पतंजलि ने क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत किया था। इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि आठ अंग है।
- यूनानी: इस चिकित्सा पद्धति का उद्भव व विकास यूनान में हुआ। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति अरबों के द्वारा पहुँची और यहाँ के प्राकृतिक वातावरण एवं अनुकूल परिस्थितियों की वजह से इस पद्धति का बहुत विकास हुआ। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति के महान चिकित्सक और समर्थक हकीम अजमल खान (1868-1927) ने इस पद्धति के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस पद्धति के मूल सिद्धांतों के अनुसार, रोग शरीर की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। शरीर में रोग उत्पन्न होने पर रोग के लक्षण शरीर की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।
- सिद्ध: यह भारत में दवा की सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक है। 'सिद्ध' शब्द का अर्थ है उपलब्धियाँ। सिद्ध, संत पुरुष होते थे। कहा जाता है कि अठारह सिद्धों ने इस चिकित्सा प्रणाली के विकास की दिशा में योगदान दिया। सिद्ध साहित्य तमिल भाषा में लिखा गया है। यह भारत के तमिल भाषी हिस्से तथा विदेश में बड़े पैमाने पर प्रचलित है। सिद्ध प्रणाली काफी हद तक प्राकृतिक चिकित्सा में विश्वास रखती है।
उठाए गए प्रमुख कदम
- वैश्विक स्तर पर भारतीय चिकित्सा प्रणाली और आयुर्वेद की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये आयुष मंत्रालय ने विदेशी विश्वविद्यालयों/संस्थानों के साथ 13 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं। पारंपरिक चिकित्सा और होम्योपैथी के क्षेत्र में सहयोग के लिये 23 देशों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं जिनमें अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण, आदि में सहयोग के कुछ क्षेत्र भी शामिल हैं।
- आयुष मंत्रालय की फेलोशिप/छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत भारत के प्रमुख संस्थानों में आयुष प्रणालियों में स्नातक, स्नातकोत्तर और Ph.D. पाठ्यक्रमों में अध्ययन के लिये 99 देशों के पात्र विदेशी नागरिकों को प्रतिवर्ष 104 छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जाती हैं।
- प्रमाणन प्रक्रिया के माध्यम से योग पद्धति में पेशेवरों की क्षमता के स्तर को प्रमाणित करने के लिये आयुष मंत्रालय द्वारा शुरू की गई योजना का प्रमुख उद्देश्य निवारक और स्वास्थ्य प्रोत्साहन के रूप में ‘ड्रगलेस थेरेपी’ (Drugless Therapy) के रूप में प्रामाणिक योग को बढ़ावा देना है। प्रमाणन कार्यक्रमों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर योग पेशेवरों के ज्ञान और कौशल में समन्वय, गुणवत्ता और एकरूपता लाने के उद्देश्य से योग प्रमाणन बोर्ड (Yoga Certification Board-YCB) की स्थापना की गई है।
- भारतीय चिकित्सा पद्धति के पौराणिक और ऐतिहासिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष देश में आयुर्वेद दिवस, यूनानी दिवस और सिद्ध दिवस मनाए जाते हैं। 190 से अधिक देशों में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और 35 से अधिक देशों में आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है। मंत्रालय वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय योग सम्मेलन आयोजित कर रहा है।
- आयुष प्रणालियों के संवर्द्धन और विकास के लिये भारत सरकार राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के माध्यम से केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में ‘राष्ट्रीय आयुष मिशन’ को क्रियान्वित कर रही है। आयुष ग्राम की अवधारणा के अंतर्गत व्यवहार परिवर्तन, संचार और स्थानीय औषधीय जड़ी बूटियों की पहचान और उपयोग के लिये ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के प्रशिक्षण के माध्यम से आयुष आधारित जीवन शैली को प्रोत्साहित किया जाता है।
- आयुष में सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) को प्रोत्साहित करने के लिये योजना के अंतर्गत आयुष मंत्रालय राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर AROGYA मेले, मल्टीमीडिया अभियान, ऑडियो विजुअल सामग्री सहित प्रचार सामग्री का वितरण करना आदि कार्य करता है। COVID-19 महामारी के समय आयुष मंत्रालय प्रचार और प्रसार के लिये इलेक्ट्रॉनिक और डिज़िटल प्लेटफॉर्म का प्रभावी उपयोग कर रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करने की योजना (International Cooperation-IC Scheme) के अंतर्गत आयुष मंत्रालय संपूर्ण विश्व में आयुर्वेद सहित चिकित्सा की आयुष प्रणालियों को बढ़ावा देने और प्रचार-प्रसार के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैठकों, सम्मेलनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और सेमिनारों में भाग लेने के लिये विदेशों में आयुष विशेषज्ञों को नियुक्त करता है।
- आयुष प्रणाली और चिकित्सा के बारे में जनता के मध्य जागरूकता पैदा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों, सम्मेलनों, कार्यशालाओं, व्यापार मेलों आदि में भाग लेने के लिये आयुष दवा निर्माताओं, उद्यमियों, आयुष संस्थानों आदि को प्रोत्साहन दिया जाता है।
- मंत्रालय की आईसी योजना (IC Scheme) के अंतर्गत अब तक केन्या, अमेरिका, रूस, लातविया, कनाडा, ओमान, ताज़िकिस्तान और श्रीलंका आदि 8 देशों में 50 से अधिक यूनानी और आयुर्वेद उत्पादों को पंजीकृत किया जा चुका है।
- आयुष प्रणालियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी का प्रसार करने के लिये 31 देशों में 33 आयुष सूचना सेल की स्थापना की गई है। आयुष मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय के ITEC कार्यक्रम के अंतर्गत स्वास्थ्य मंत्रालय, मलेशिया में दो विशेषज्ञों (आयुर्वेद और सिद्ध) की प्रतिनियुक्ति की है।
- समावेशी, सस्ती, साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने हेतु नीति आयोग द्वारा व्यापक एकीकृत स्वास्थ्य नीति के ढाँचे को प्रस्तावित करने के लिये एकीकृत स्वास्थ्य नीति के निर्माण पर एक सलाहकार समिति का गठन किया गया है।
- 5 रेलवे ज़ोनल अस्पतालों में आयुष विंग्स की स्थापना के लिये आयुष मंत्रालय ने रेल मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
- रक्षा मंत्रालय/सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशालय (DGAFMS) के स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों के अंतर्गत आयुर्वेद के एकीकरण के लिये रक्षा मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
निष्कर्ष
सरकार द्वारा पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित करने के क्रम में उठाए गए इन कदमों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयुष विशेषज्ञों की प्रतिनियुक्ति करने, आयुष चिकित्सा पद्धति का विदेशों में प्रचार-प्रसार करने और लोगों तक सस्ती तथा प्रभावी उपचार सेवाएँ पहुँचाने में मदद मिलेगी। वर्तमान में COVID-19 महामारी को देखते हुए इस प्रकार के प्रयासों की नितांत आवश्यकता है।
स्रोत: पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क में स्लॉथ बीयर की मृत्यु
प्रिलिम्स के लिये:सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर, एशियाई काला भालू, नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क मेन्स के लिये:लुप्तप्राय प्रजातियों का शिकार और उनके संरक्षण के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा के ‘नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क’ (Nandankanan Zoological Park) में लगातार दो स्लॉथ बीयर (Sloth Bear) की मृत्यु का मामला सामने आया है।
मुख्य बिंदु:
- नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क में 16 सितंबर, 2020 को एक 7 वर्षीय नर ‘स्लॉथ बीयर’ की मृत्यु हो गई थी।
- इसके अगले ही दिन (17 सितंबर) को एक 25 वर्षीय मादा स्लॉथ बीयर की भी समान लक्षणों के बाद मृत्यु हो गई, इस मादा स्लॉथ बीयर को सितंबर 2013 में राँची चिड़िया घर से नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क लाया गया था।
- गौरतलब है कि 30 अगस्त, 2020 को नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क में ही एक 28 वर्षीय हिमालयन ब्लैक बीयर (Himalayan black bear) की मृत्यु हो गई थी।
- वर्ष 2019 में ‘एलीफैंट एंडोथिलियोट्रोपिक हर्पीसवायरस’ (Elephant Endotheliotropic Herpesvirus- EEHV) के कारण एक माह के अंदर ही नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क के 8 में से 4 हाथियों की भी मृत्यु हो गई थी।
- EEHV से संक्रमित होने के बाद हाथियों के बिंबाणु या प्लेटलेट काउंट (Clatelet Count) में तीव्र गिरावट होती है जिससे उनमें आंतरिक रक्तस्राव होने लगता है।
नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क (Nandankanan Zoological Park):
- नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क की स्थापना वर्ष 1960 में की गई थी।
- यह ‘WAZA’ (World Association of Zoos & Aquarium) का सदस्य बनाने वाला भारत का पहला चिड़ियाघर है।
- WAZA, चिड़ियाघरों और एक्वैरियम, क्षेत्रीय संघों, राष्ट्रीय महासंघों का वैश्विक गठबंधन है, यह दुनिया भर में जानवरों और उनके आवासों की देखभाल और संरक्षण के लिये कार्य करता है।
- यह चिड़ियाघर दुनिया का पहला कैप्टिव मगरमच्छ प्रजनन केंद्र (Captive Crocodile Breeding Centre) था।
- भारतीय पैंगोलिन या इंडियन पैंगोलिन (Indian Pangolin) और सफेद बाघ (White Tiger) का प्रजनन केंद्र है।
सुस्त भालू या स्लॉथ बीयर (Sloth Bear):
- वैज्ञानिक नाम: मेलूरसस अर्सिनस (Melursus ursinus)
- वास स्थान: इसे हनी बीयर (Honey bear) और हिंदी भालु भी कहा जाता है, यह उर्सिडा/उर्सिडी (Ursidae) परिवार का हिस्सा है। ये भारत और श्रीलंका के उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
संरक्षण स्थिति:
- स्लॉथ बीयर को IUCN की रेडलिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) की श्रेणी में रखा गया है।
- इसे ‘वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के परिशिष्ट-I में शामिल किया गया है।
- साथ ही भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत स्लॉथ बीयर के शिकार को प्रतिबंधित किया गया है।
- खतरा: निवास स्थान की हानि, शरीर के अंगों के लिये अवैध शिकार स्लॉथ बीयर की प्रजाति के लिये सबसे बड़ा खतरा है। स्लॉथ बीयर को तमाशा दिखाने या प्रदर्शन में उपयोग के लिये पकड़ लिया जाता है। साथ ही उनके आक्रामक व्यवहार और फसलों को नुकसान पहुँचाने के कारण भी स्लॉथ बीयर का शिकार किया जाता है।
हिमालयन काला भालू (Himalayan Black Bear):
- वैज्ञानिक नाम: उर्सस थिबेटेनस (Ursus thibetenus)
- वास स्थान: इसे एशियाई काला भालू (Asiatic Black Bear) भी कहा जाता है, ये दक्षिणी और पूर्वी एशिया के पहाड़ी और घने जंगली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
संरक्षण स्थिति:
- एशियाई काले भालू को IUCN की रेडलिस्ट में सुभेद्य (Vulnerable) की श्रेणी में रखा गया है।
- एशियाई काले भालू को ‘वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन’ (The Convention of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora- CITES) के परिशिष्ट-I में शामिल किया गया है।
- भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत एशियाई काले भालू के शिकार को प्रतिबंधित किया गया है।
खतरा:
- एशियाई काले भालू का शरीर के अंगों की तस्करी के लिये अवैध शिकार किया जाता है। इसके साथ ही वनोंमूलन, मानव बस्तियों और सड़कों के विस्तार के कारण इनके प्राकृतिक निवास स्थान को भी भारी क्षति पहुँची है।