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डेली न्यूज़

  • 30 Dec, 2024
  • 46 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति और प्रगति 2023-24

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, अनर्जक परिसंपत्तियाँ, पूंजी पर्याप्तता अनुपात, शहरी सहकारी बैंक, डार्क पैटर्न, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था पर अरक्षित ऋणों का प्रभाव, वित्तीय स्थिरता और मुद्रास्फीति प्रबंधन, ऋण चूक तथा NPA के आर्थिक परिणाम

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अरक्षित ऋण और निजी ऋण पर बढ़ती निर्भरता पर चिंता व्यक्त करते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट भारत में बैंकिंग की प्रवृत्ति तथा प्रगति वर्ष 2023-24 में अधिक सतर्कता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

  • सकल अनर्जक परिसंपत्तियों (GNPA) में लगातार गिरावट और बैंकों की अविरत लाभप्रदता के बावजूद, केंद्रीय बैंक ने वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में उभरते जोखिमों का निवारण किये जाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

RBI के रिपोर्ट संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं? 

    • NPA में गिरावट: GNPA मार्च 2024 में 13 वर्ष के निम्नतम स्तर 2.7% पर पहुँच गया, जो सितंबर वर्ष 2024 तक और गिरकर 2.5% हो गया। 
      • सितंबर वर्ष 2024 में खुदरा ऋण खंड का GNPA अनुपात सबसे कम, 1.2% था, जबकि कृषि ऋण में सबसे अधिक GNPA अनुपात 6.2% था। 
      • शिक्षा ऋणों के लिये GNPA अनुपात में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जो मार्च 2023 में 5.8% से घटकर सितंबर वर्ष 2024 तक 2.7% हो गया, हालाँकि यह खुदरा क्षेत्रों में सबसे अधिक है।

    • लाभप्रदता: बैंकों की लाभप्रदता में वृद्धि जारी रही जिसमें परिसंपत्तियों पर प्रतिलाभ (RoA) 1.4% (2024-25 की पहली छमाही) और इक्विटी पर प्रतिलाभ (RoE) वित्त वर्ष 24 में 14.6% रहा, जो लगातार छह वर्षों से लाभ में वृद्धि को दर्शाता है।

      • NBFC क्षेत्र में बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता और सुदृढ़ पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CRAR) के साथ दोहरे अंक की ऋण वृद्धि हुई।

      • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) की समेकित बैलेंस शीट में ऋण और जमा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई तथा शहरी सहकारी बैंकों (UCB) की परिसंपत्ति गुणवत्ता, पूंजी बफर एवं लाभप्रदता में सुधार हुआ।
    • अरक्षित ऋणों की बढ़ती हिस्सेदारी: SCB के कुल ऋण में अरक्षित ऋणों की हिस्सेदारी मार्च 2023 में बढ़कर 25.5% हो गई, जो मार्च 2024 में नगण्य गिरावट के साथ 25.3% हो गई।
      • इसकी प्रतिक्रिया में RBI ने नवंबर 2024 में कड़े मानदंड प्रस्तुत करने के साथ जोखिम भार बढ़ाया और जोखिम सीमा (किसी उधारकर्त्ता या समूह को अधिकतम उधार) निर्धारित की। 
      • RBI ने टॉप-अप ऋणों (जिन्हें प्रायः न्यूनतम जाँच-पड़ताल एवं दिशा-निर्देशों के प्रति कमज़ोर अनुपालन के साथ स्वीकृत किया जाता है) पर भी चिंता व्यक्त की।
        • वर्ष 2023 में RBI ने मूल्यह्रास वाली चल संपत्तियों के आधार पर आवंटित टॉप-अप ऋणों को असुरक्षित ऋण के रूप में संदर्भित किया जाना अनिवार्य कर दिया।
    • डार्क पैटर्न का उदय: इस रिपोर्ट में डार्क पैटर्न पर चिंता व्यक्त की गई। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने ऐसी प्रथाओं को विनियमित करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं तथा RBI द्वारा विनियमित संस्थाओं (RE) के बीच डार्क पैटर्न की व्यापकता का मूल्यांकन किया जा रहा है।
    • कर्मचारियों का अधिक पलायन: कर्मचारी पलायन (संगठन छोड़ने वाले कर्मचारी) की दर पिछले तीन वर्षों में 25% तक बढ़ गई है जिससे सेवा में व्यवधान, संस्थागत ज्ञान की हानि एवं उच्च भर्ती लागत जैसे परिचालन जोखिमों के संबंध में चिंताएँ बढ़ गई हैं।

    • स्लिपेज अनुपात: वर्ष 2023-24 में स्लिपेज अनुपात में सुधार हुआ है। लगातार तीसरे वर्ष, निजी क्षेत्र के बैंकों (PVB) में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) की तुलना में स्लिपेज अनुपात अधिक रहा है, क्योंकि PVB के NPA में काफी वृद्धि हुई है।
    • RBI की सिफारिशें: 
      • RBI ने बैंकों को कर्मचारियों की संख्या में कमी को कम करने के लिये बेहतर ऑनबोर्डिंग, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन, प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ एवं सहायक कार्यस्थल संस्कृति को बढ़ावा देने जैसी रणनीतियाँ अपनाने की सिफारिश की।

      • RBI ने बैंकों से ऋण मूल्यांकन प्रक्रियाओं एवं विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों का बेहतर अनुपालन सुनिश्चित करने का आग्रह (विशेष रूप से असुरक्षित ऋणों के संबंध में बढ़ते जोखिमों के मद्देनजर) किया है। 

प्रमुख शब्दावली

  • परिसंपत्तियों पर प्रतिफल (RoA): इसका आशय किसी व्यवसाय की कुल परिसंपत्तियों के सापेक्ष लाभप्रदता से है।
  • इक्विटी पर रिटर्न (RoE): इसका आशय कुल शेयरधारकों की इक्विटी के सापेक्ष किसी कंपनी के वार्षिक रिटर्न (शुद्ध आय) का मापन है।
    • पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CRAR): यह बैंक की घाटे को अवशोषित करने एवं स्थिरता सुनिश्चित करने, जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा करने एवं वित्तीय प्रणाली दक्षता को बढ़ावा देने की क्षमता का मापन है।
    • स्लिपेज अनुपात: यह वर्ष के आरंभ में मानक अग्रिमों के हिस्से के रूप में NPA में नई वृद्धि का मापन है।
  • डार्क पैटर्न: डार्क पैटर्न अनैतिक उपयोगकर्त्ता इंटरफेस (UI)/उपयोगकर्त्ता अनुभव (UX) युक्तियाँ हैं, जिसके तहत उपयोगकर्त्ताओं को धोखा देकर उन्हें ऐसे कार्य हेतु प्रेरित किया जाता है जिन्हें वे नहीं करना चाहते हैं, जिससे कंपनी को लाभ होता है। 
  • इन प्रथाओं से उपयोगकर्त्ता नियंत्रण एवं पारदर्शिता सीमित होती हैं जैसे- छिपी हुई लागतें, जटिल रद्दीकरण विकल्प, भ्रामक विज्ञापन या निशुल्क परीक्षण के बाद स्वतः शुल्क लेना।
  • उदाहरण: छद्म विज्ञापन और लेन-देन हेतु अकाउंट ओपनिंग का दबाव।

भारत की अर्थव्यवस्था पर बढ़ते असुरक्षित ऋणों का क्या प्रभाव है?

      • उच्च डिफाॅल्ट दर और वित्तीय दबाव: जैसे-जैसे अधिक असुरक्षित ऋण जारी किये जाते हैं, डिफाॅल्ट का जोखिम बढ़ता है, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) में वृद्धि होती है और बैंकों तथा NBFC पर वित्तीय दबाव बढ़ता है।
      • मुद्रास्फीति दबाव: बढ़ते डिफॉल्ट और उच्च ब्याज दरों के कारण प्रयोज्य आय कम हो जाती है, विवेकाधीन व्यय पर अंकुश लगता है, मुद्रास्फीति बढ़ती है तथा आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
      • उपभोक्ताओं पर प्रभाव: उपभोक्ताओं के लिये, असुरक्षित ऋण की उपलब्धता ऋण तक आसान पहुँच प्रदान कर सकती है। 
        • हालाँकि इससे तात्पर्य उच्च ब्याज दरें और संभावित ऋण जाल भी है यदि इसे ज़िम्मेदारी से प्रबंधित नहीं किया गया।
      • ग्रामीण और शहरी प्रभाव: उच्च लागत वाले ऋणों में वृद्धि के कारण ग्रामीण और शहरी दोनों उपभोक्ताओं को वित्तीय अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उपभोक्ता विश्वास में कमी आ रही है।

आगे की राह

      • ऋण प्रथाओं को मज़बूत बनाना: उधारकर्त्ता जोखिम का आकलन करने और विफलता को कम करने के लिये प्रौद्योगिकी तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके ऋण मूल्यांकन प्रक्रियाओं को मज़बूत बनाना।
      • उपभोक्ता संरक्षण को बढ़ावा देना: वित्तीय साक्षरता, ऋण उत्पादों में पारदर्शिता और ऋण देने में डार्क पैटर्न के सख्त विनियमन पर ध्यान केंद्रित करना।
      • मुद्रास्फीति के दबावों का प्रबंधन करना: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और प्रयोज्य आय की रक्षा करने के लिये आर्थिक विकास के साथ ब्याज दरों को संतुलित करना।
      • परिसंपत्ति गुणवत्ता को मज़बूत करना: ऋण पोर्टफोलियो की सक्रिय निगरानी करना, मज़बूत पूंजी बफर बनाना और जोखिम को कम करने के लिये दबाव परीक्षण करना।
      • विनियामक निरीक्षण में सुधार: वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिये विवेकपूर्ण ऋण प्रथाओं और नियमित लेखा-परीक्षणों का कठोर प्रवर्तन सुनिश्चित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय बैंकिंग क्षेत्र और व्यापक अर्थव्यवस्था पर बढ़ते असुरक्षित ऋणों के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। भारतीय रिज़र्व बैंक इन उभरते जोखिमों का समाधान कैसे कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह RBI की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
  2. यह RBI के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) केवल 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
  3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न. वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने सेबी (SEBI) व इरडा (IRDA) नामक दोनों नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये(2013)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सोमालिया में अफ्रीकी संघ का समर्थन और स्थिरीकरण मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अफ्रीकी संघ (AU), सोमालिया में अफ्रीकी संघ समर्थन और स्थिरीकरण मिशन (AUSSOM), सोमालिया में अफ्रीकी संघ संक्रमण मिशन (ATMIS), सोमालीलैंड, पुंटलैंड, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, ब्लू बेरेट्स, तुत्सी

मेन्स के लिये:

संघर्षों के समाधान में शांति मिशनों की भूमिका, क्षेत्रीय शांति पहल।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने अफ्रीकी संघ (AU) शांति और सुरक्षा परिषद की पहल, सोमालिया में अफ्रीकी संघ समर्थन तथा स्थिरीकरण मिशन (AUSSOM) का समर्थन किया।

  • प्रस्ताव 2767 (2024) शीर्षक वाले प्रस्ताव का उद्देश्य सोमालिया के गृहयुद्ध और अल-शबाब तथा इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा उत्पन्न सोमालिया की सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करना है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के समान है। 

 नोट: शांति एवं सुरक्षा परिषद (PSC) संघर्षों की  रोकथाम, प्रबंधन और समाधान के लिये AU का स्थायी निर्णय लेने वाला अंग है।

  • यह अफ्रीकी शांति और सुरक्षा वास्तुकला (APSA) का प्रमुख स्तंभ भी है, जो अफ्रीका में शांति, सुरक्षा एवं स्थिरता को बढ़ावा देने की रूपरेखा है।
  • लेवेंट भूमध्य सागर का पूर्वी तट है जिसमें सीरिया, लेबनान, इज़रायल, जॉर्डन और फिलिस्तीन शामिल हैं।

ATMIS और AUSSOM क्या है?

  • ATMIS: सोमालिया में अफ्रीकी संघ संक्रमण मिशन (ATMIS) एक बहुआयामी मिशन (सैन्य, पुलिस और नागरिक) है, जो अफ्रीकी संघ द्वारा अधिकृत तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अधिदेशित है।
    • अधिदेश: यह सोमालिया में अफ्रीकी संघ मिशन (AMISOM) का स्थान लेगा तथा इसे सोमाली संक्रमण योजना (STP) को पूर्ण रूप से क्रियान्वित करने का स्पष्ट अधिदेश दिया गया है।
      • STP, अफ्रीकी संघ से सोमालिया की संघीय सरकार को सुरक्षा ज़िम्मेदारी हस्तांतरित करने के लिये सोमालिया और उसके साझेदारों द्वारा तैयार की गई एक व्यापक मार्गदर्शिका है।
  • AUSSOM: यह सोमालिया में अफ्रीकी संघ संक्रमण मिशन (ATMIS) के प्रतिस्थापन का प्रावधान करता है, जिसका कार्यकाल 31 दिसंबर, 2024 को समाप्त हो रहा है।
  • उत्तरदायित्व परिवर्तन: वर्ष 2022 से, 7,000 ATMIS सैनिकों को कम कर दिया गया है और AUSSOM राष्ट्र को स्थिर करने में सोमाली बलों को समर्थन देना जारी रखेगा।
  • अधिदेश और संचालन: आतंकवाद से लड़ने और सुरक्षा बनाए रखने के लिये AU सदस्य जून 2025 तक 1,040 पुलिस अधिकारियों सहित 12,626 कर्मियों को तैनात कर सकते हैं।
  • वित्तपोषण: अफ्रीकी शांति अभियानों के लिये स्थायी और पूर्वानुमानित वित्तपोषण सुनिश्चित करने के लिये मिशन को वित्तपोषित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र मूल्यांकित योगदान (75%) और अफ्रीकी संघ/भागीदार योगदान (25%) को मिलाकर एक संकर दृष्टिकोण प्रस्तावित किया गया है।
  • चुनौतियाँ: बुरुंडी और इथियोपियाई सैनिक AUSSOM में भाग नहीं लेंगे।
    • मिस्र AUSSOM में भाग ले सकता है, जिसके साथ इथियोपिया का नील नदी पर बने एक बाँध को लेकर विवाद है।
      • इथियोपिया के सोमालीलैंड (सोमालिया से अलग हुआ क्षेत्र) पर शासन करने वाले प्राधिकारियों के साथ अच्छे संबंध हैं।
    • अमेरिका ने चिंता व्यक्त की कि संयुक्त राष्ट्र ने इस मिशन को अनुपातहीन रूप से वित्त पोषित किया और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मतदान में भाग नहीं लिया।

सोमालिया में गृह युद्ध का घटनाक्रम क्या है?

  • परिचय: इसकी शुरुआत वर्ष 1988 में राष्ट्रपति सियाद बार्रे के निरंकुशवादी शासन के दौरान हुई थी। जनवरी 1991 में उनका शासन खत्म हो गया, जिससे शक्ति शून्यता और अस्तव्यस्तता की स्थिति उत्पन्न हुई।
  • सोमालिया का विखंडन: बार्रे के पतन के बाद, सोमालिया मिलिशिया और अन्य समूहों द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों में विभाजित हो गया, जिसमें सोमालीलैंड और पुंटलैंड भी शामिल थे, जिन्होंने क्रमशः वर्ष 1991 में पूर्ण स्वतंत्रता एवं वर्ष 1998 में आंशिक स्वायत्तता की घोषणा की।
    • सोमालिया और इथियोपिया में समुद्री पहुँच समझौते को लेकर एक वर्ष से विवाद जारी है, जिसे इथियोपिया ने अलगाववादी सोमालीलैंड क्षेत्र के साथ किया था।

  • वंशवाद का उदय: वंशवाद प्रणाली से सोमालिया में तनाव की स्थिति बढ़ती गई, जिससे सरकार के एकता एवं शांति प्रयासों में बाधा उत्पन्न हुई, जबकि वंशीय प्रतिद्वंद्विता ने संघीय सरकार तथा क्षेत्रीय राज्यों के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया
    • वंशवाद का तात्पर्य वंश-आधारित राजनीति का प्रभुत्व है, जिसके अंतर्गत वंश एवं उप-वंश के हितों को प्राथमिकता दी जाती है और राष्ट्रीय एकता प्रभावित होती है। 
    • सोमालिया में चार मुख्य कुल हैं: दोराड, हाविये, दीर और राहनवेयम
  • शांति प्रयास: 
    • आर्टा घोषणा (2000): विकास पर अंतर-सरकारी प्राधिकरण (IGAD) जैसे क्षेत्रीय संगठनों ने अधिक प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने का प्रयास किया।
    • संक्रमणकालीन सरकार: संक्रमणकालीन राष्ट्रीय सरकार (TNG) और संक्रमणकालीन संघीय सरकार (TFG) की स्थापना की गई लेकिन इनमें अकुशलता, आपसी मतभेद और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ थीं। 
  • अल-शबाब का उदय: वर्ष 2007 में अल-शबाब, एक इस्लामी आतंकवादी समूह के उदय से संघर्ष और बढ़ गया। यह अल-कायदा का सबसे महत्त्वपूर्ण सहयोगी है
    • अल-शबाब का प्राथमिक लक्ष्य सोमालिया की संघीय सरकार (FGS) को अपदस्थ करना, विदेश की सेनाओं का निष्कासन करना तथा इस्लामी विधि (शरिया) की सख्त व्यवस्था स्थापित करना है। 
    • यह समूह "ग्रेटर सोमालिया" की मांग करता है, जिसका उद्देश्य पूर्वी अफ्रीका के जातीय सोमालियों को एक इस्लामी राज्य में एकजुट करना है।
      • ग्रेटर सोमालिया में सोमालिया, सोमालीलैंड, जिबूती और केन्या (उत्तरी क्षेत्र) का हिस्सा और इथियोपियाई ओगाडेन शामिल होंगे।

नोट: हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती, इरीट्रिया, इथियोपिया और सोमालिया देश शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन क्या है?

  • परिचय: यह संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में सैन्य कर्मियों, पुलिस और नागरिक विशेषज्ञों के परिनियोजन के माध्यम से संघर्ष क्षेत्रों में शांति तथा सुरक्षा बनाए रखने में मदद करने के लिये संचालन का एक समूह है।
    • इसकी स्थापना मई 1948 में हुई थी, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इज़रायल और उसके अरब के पड़ोसी देशों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी के लिये संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षकों के परिनियोजन को अधिकृत किया था।
    • संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को प्रायः उनकी हल्के नीले रंग की टोपी या हेलमेट के कारण ब्लू बेरेट्स अथवा ब्लू हेलमेट्स कहते हैं।
  • वैश्विक उपस्थिति: गत 70 वर्षों में, 1 मिलियन से अधिक पुरुषों और महिलाओं ने 70 से अधिक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत सेवा की है। 
    • वर्तमान में 125 देशों के 1,00,000 से अधिक सैन्य, पुलिस और नागरिक कार्मिक 14 शांति अभियानों में कार्यरत हैं।

  • प्रभावशीलता: 
    • सफलता की कहानियाँ: 
      • सिएरा लियोन (1999-2005): शांति सैनिकों द्वारा बाल सैनिकों सहित 75,000 से अधिक पूर्व के लड़ाकों को निरस्त्र किया गया और 42,000 हथियारों को नष्ट किया, जिससे देश के स्थिरीकरण में काफी मदद मिली।
      • बुरुंडी (2004-2006): संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों ने देश को जातीय संघर्ष से उबरने में मदद की, गृह युद्ध से स्थिरता की ओर संक्रमण में सहायता की तथा इन उपलब्धियों को उन्नत बनाने के क्रम में अपने मिशन का विस्तार किया।
      • लाइबेरिया (2003-2018): लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (UNMIL) द्वारा शांति समझौतों में मध्यस्थता की गई, निरस्त्रीकरण को महत्त्व दिया गया और लाइबेरिया में लोकतांत्रिक चुनावों का समर्थन किया गया।
      • सिएरा लियोन (1999 से 2005): शांति सैनिकों ने गृह युद्ध को समाप्त करने के साथ लोम शांति समझौते के कार्यान्वयन में सहायता की। 
      • इस मिशन की सफलता शांति प्रक्रिया के प्रति दोनों युद्धरत पक्षों की प्रतिबद्धता, इसके स्पष्ट जनादेश एवं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से प्राप्त समर्थन से प्रेरित थी।
  •  विफलताएँ: 
    • सोमालिया (1992-1995): मोगादिशु के युद्ध (1993) में अमेरिकी सैनिक मारे गए, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिकी एवं संयुक्त राष्ट्र बलों को तुरंत वापस लौटना पड़ा। 
      • वर्ष 1995 तक संयुक्त राष्ट्र ने इससे पूरी तरह अलगाव कर लिया, जिससे यह मिशन असफल हो गया।
    • रवांडा (1994): वर्ष 1994 में 800,000 से अधिक लोग (जिनमें से अधिकांश तुत्सी जातीय समूह के थे) नरसंहार में  मारे गए।
      • प्रारंभिक चेतावनियों के बावजूद, संयुक्त राष्ट्र हस्तक्षेप करने या इसे रोकने के लिये पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने में विफल रहा।
    • स्रेब्रेनिका (1995): वर्ष 1995 में बोस्निया के स्रेब्रेनिका ("सुरक्षित क्षेत्र" घोषित होने के बावजूद) में संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक, बोस्नियाई सर्ब बलों द्वारा की गई 8,000 मुस्लिम पुरुषों एवं बालकों की हत्या को रोकने में विफल रहे।

संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारत का योगदान

  • भारत की भूमिका: भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा किसी भी अन्य देश की तुलना में इसमें सबसे अधिक सैनिकों का योगदान दिया है। वर्ष 1948 से अब तक 72 संयुक्त राष्ट्र मिशनों में से 49 में 253,000 से अधिक सैन्यकर्मी सेवा दे चुके हैं। 
    • जनवरी 2024 तक लगभग 5,900 भारतीय सैनिक 12 संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में संलग्न हैं। 
  • पूर्व के मिशन: 
    • हैती (2017-19): भारत ने नवंबर 2017 से जुलाई 2019 तक BSF, CISF और असम राइफल्स के लगभग 280 कर्मियों के साथ दो संगठित पुलिस इकाइयों (FPU) का योगदान दिया, जिससे इसकी सफलता में योगदान मिला।
    • लाइबेरिया (2007-16): लाइबेरिया में 125 सदस्यीय महिला पुलिस इकाई की प्रेरणा से पुलिस में भर्ती होने के लिये आवेदन करने वाली महिलाओं की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई।
    • सिएरा लियोन (1999-2001): भारत ने दो इन्फैंट्री बटालियन समूह, दो इंजीनियर कंपनियाँ, हमलावर हेलीकॉप्टर इकाई के साथ चिकित्सा इकाई के रूप में योगदान दिया।
    • सूडान (2005): भारत ने दो इन्फैंट्री बटालियन समूहों, इंजीनियर कंपनी, सिग्नल कंपनी आदि के रूप में योगदान दिया।
    • रवांडा (1994-96): एक इन्फैंट्री बटालियन, सिग्नल कंपनी, इंजीनियर कंपनी, स्टाफ अधिकारी एवं सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में योगदान दिया।
    • सोमालिया (1993-94): भारतीय सेना ने सभी रैंकों के 5,000 सैनिकों वाला एक ब्रिगेड समूह तैनात करने के साथ नौसेना के चार युद्धपोत तैनात किये।

निष्कर्ष

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा हाल ही में AUSSOM को समर्थन दिये जाने से सोमालिया में लंबे समय से चल रहे गृहयुद्ध के बीच उसे स्थिर करने के क्रम में जारी संघर्ष को रेखांकित किया गया है। ATMIS और AUSSOM जैसे अफ्रीकी नेतृत्व वाले मिशन महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन सोमालिया तथा रवांडा जैसे संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों की ऐतिहासिक विफलताओं से स्पष्ट जनादेश, संसाधनों एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता को बल मिलता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों की सफलताओं और असफलताओं का विश्लेषण कीजिये।


 

मेन्स

1.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की दिशा में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022, भूजल संदूषण, वायु प्रदूषण, मृदा क्षरण, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), खतरनाक अपशिष्ट के सीमा पार  आवागमन और उनके निपटान के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन, परसिस्टेंट कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन, खतरनाक और अन्य अपशिष्ट (प्रबंधन एवं सीमा पार  आवागमन) नियम 2016, लैंडफिलिंग

मेन्स के लिये:

ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नीतिगत पहल एवं कार्यक्रम, भारत में ई-अपशिष्ट का वर्तमान परिदृश्य, ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ और इसके सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्य मंत्री द्वारा उपलब्ध आँकड़ों से देश भर में इलेक्ट्रॉनिक तथा विद्युत उपकरणों के बढ़ते उपयोग पर प्रकाश पड़ा है। 

ई-अपशिष्ट

  • इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) से तात्पर्य ऐसे विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से है जो पुराने हो गए हैं या जो कार्यशील नहीं हैं।
  • ई-अपशिष्ट में अनेक विषैले रसायन होते हैं जिनमें सीसा, कैडमियम, पारा तथा निकल जैसी धातुएँ शामिल हैं।

भारत में ई-अपशिष्ट की स्थिति क्या है?

  • मात्रा में वृद्धि: भारत में पिछले पाँच वर्षों में ई-अपशिष्ट के उत्पादन में 72.54% की वृद्धि (जो वर्ष 2019-20 के 1.01 मिलियन मीट्रिक टन (MT) से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 1.751 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है) देखी गई है।
    • प्रतिवर्ष लगभग 57% ई-अपशिष्ट (990,000 मीट्रिक टन के बराबर) अनुपचारित रह जाता है।
    • भारत के 65 शहरों से कुल ई-अपशिष्ट का 60% से अधिक उत्पादित होता है जबकि 10 राज्यों की कुल ई-अपशिष्ट में 70% भागीदारी है।
  • पुनर्चक्रण अंतराल: वर्ष 2023-24 में केवल 43% ई-अपशिष्ट का पुनर्चक्रण (वर्ष 2019-20 में यह 22% था) किया गया।
    • ई-अपशिष्ट के प्रबंधन में अनौपचारिक क्षेत्रों का वर्चस्व है तथा इनमें पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों का अभाव है।
  • वैश्विक संदर्भ: चीन एवं अमेरिका के बाद भारत विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा ई-अपशिष्ट उत्पादक देश है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2019 में विश्व भर में लगभग 53.6 मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट उत्पन्न हुआ।

ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम

  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम 2022:
    • विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): उत्पादकों को पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के माध्यम से वार्षिक पुनर्चक्रण लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है।.
      • EPR प्रमाण-पत्र से पुनर्चक्रित उत्पादों हेतु जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
    • विस्तारित उत्पाद कवरेज: वित्त वर्ष 2023-24 से इसके तहत 106 विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (EEE) को शामिल किया गया।
    • थोक उपभोक्ताओं का एकीकरण: सार्वजनिक संस्थानों एवं कार्यालयों द्वारा पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं/नवीनीकरणकर्त्ताओं के माध्यम से ई-अपशिष्ट का निपटान कराने पर ज़ोर दिया गया।
      • पंजीकृत पुनर्चक्रणकर्त्ताओं और नवीनीकरणकर्त्ताओं को ई-अपशिष्ट के संग्रहण एवं प्रसंस्करण के प्रबंधन का कार्य सौंपा गया।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) द्वितीय संशोधन नियम, 2023: ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के नियम 5 के अंतर्गत, प्रशीतन एवं वातानुकूलन विनिर्माण में सुरक्षित, जवाबदेह तथा धारणीय रेफ्रिजरेंट प्रबंधन सुनिश्चित करने के क्रम में खंड 4 जोड़ा गया।
  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) संशोधन नियम, 2024:
  • केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, उसके अनुमोदन से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाण-पत्रों के व्यापार हेतु प्लेटफाॅर्म स्थापित कर सकती है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाण-पत्रों के लिये मूल्य सीमा निर्धारण किया जाएगा जो गैर-अनुपालन के क्रम में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति का 100% (अधिकतम) एवं 30% (न्यूनतम) होगा।

ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन/अभिसमय कौन-से हैं?

    भारत में ई-अपशिष्ट निपटान के सामान्य तरीके क्या हैं? 

    • लैंडफिलिंग: इसके तहत ई-अपशिष्ट को मृदा के अंदर डंप करना शामिल है।
      • एक गंभीर चिंता का विषय यह है कि संकटजनक पदार्थों का मृदा और भूजल में रिसकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचने का खतरा है।
    • भस्मीकरण (Incineration): उच्च तापमान (900-10,000 डिग्री सेल्सियस) पर ई-अपशिष्ट का नियंत्रित विधि से दहन करने से अपशिष्ट की मात्रा कम हो जाती है और कुछ संकटजनक पदार्थ निष्प्रभावी हो जाते हैं।
    • पुनर्चक्रण: मूल्यवान सामग्री (जैसे- धातु, प्लास्टिक) को पुनः प्राप्त करने के लिये ई-अपशिष्ट को नष्ट करना और विषाक्त घटकों का सुरक्षित रूप से विनष्टीकरण करना। यह पारा, कैडमियम और सीसा जैसे संकटजनक पदार्थों को कम करता है, जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं।
      • उदाहरण: मुद्रित सर्किट बोर्ड, सी.आर.टी., मोबाइल फोन और तारों का पुनर्चक्रण।

    ई-अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे और संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

    • अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण: ज्वलन और एसिड लीचिंग जैसी संकटजनक विधियों का उपयोग करके अनौपचारिक ई-अपशिष्ट पुनर्चक्रण से विषाक्त धुआँ उत्सर्जित होता है तथा मृदा एवं जल दूषित हो जाता है, जिससे पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
      • चीन, भारत, पाकिस्तान, वियतनाम और फिलीपींस के अनौपचारिक रीसाइक्लिंग बाज़ार विश्व के 50% से 80% ई-अपशिष्ट का प्रबंधन करते हैं।
    • बुनियादी ढाँचे का अभाव: ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लिये बुनियादी ढाँचे, जिसमें अपर्याप्त संग्रहण बिंदु और पुनर्चक्रण सुविधाएँ शामिल हैं, से अनुचित निपटान की समस्या उत्पन्न होती है। 
      • इसके परिणामस्वरूप ई-अपशिष्ट लैंडफिल में पहुँचता है, जिससे संकटजनक रसायनों से मृदा और जल संदूषित हो जाता है।
    • जागरूकता का अभाव: उचित निपटान और पुनर्चक्रण के संबंध में उपभोक्ताओं, व्यवसायों तथा नीति निर्माताओं में जागरूकता का अभाव है। 

      • उदाहरण के लिये, व्यक्ति अपने ई-अपशिष्ट को नियमित कूड़ेदानों में फेंक सकते हैं या उसे ऐसे दान-संस्थाओं को दान कर सकते हैं जिनके पास ई-अपशिष्ट का उचित रूप से प्रबंधन करने हेतु उचित संसाधन का अभाव है।

    • ई-अपशिष्ट के पर्यावरणीय प्रभाव: ई-अपशिष्ट से पर्यावरण को नुकसान होता है क्योंकि विषाक्त पदार्थ (जैसे- सीसा, कैडमियम और पारा) जल, मृदा तथा वायु को दूषित करते हैं, जिससे वन्य जीवन प्रभावित होता है। 

    किन कार्यनीतियों से भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन में सुधार किया जा सकता  है?

    • अनौपचारिक क्षेत्र का एकीकरण: संग्रहण दरों को बढ़ाने के लिये अनौपचारिक अपशिष्ट संचालकों को औपचारिक प्रणालियों में एकीकृत किया जाना चाहिये। सुरक्षित हैंडलिंग तकनीकों पर अनौपचारिक पुनर्चक्रणकर्त्ताओं के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करना आवश्यक है।
      • उदाहरण के लिये, चीन अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों (WEEE) की पुनर्प्राप्ति तथा निपटान के प्रबंधन पर विनियमन के माध्यम से प्रशिक्षण तथा वित्तीय सहायता के साथ अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाता है।
    • तकनीकी प्रगति: दक्षता बढ़ाने के लिये उन्नत रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये और बेहतर ई-अपशिष्ट ट्रैकिंग तथा संग्रहण प्रणालियों के लिये AI एवं IoT-आधारित समाधान विकसित करने की आवश्यकता है।
      • यूरोपीय संघ के "मरम्मत के अधिकार" नियम के अंतर्गत निर्माताओं के लिये वस्तुओं की मरम्मत के दायित्वों को स्पष्ट किया गया है तथा उपभोक्ताओं को मरम्मत के माध्यम से उत्पाद के जीवनचक्र को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। 
    • वैश्विक प्रथाओं से सीख लेना:
      • यूरोपीय संघ: कठोर पुनर्चक्रण लक्ष्य निर्धारित किये जाने चाहिये तथा उत्पादकों के लिये पारिस्थितिकी-डिज़ाइन प्रोत्साहन बढ़ाया जाना चाहिये।
        • उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ (EU) द्वारा अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) निर्देश।
      • जापान: रीसाइक्लिंग पहलों को प्रभावी ढंग से वित्तपोषित करने और समर्थन देने के लिये राष्ट्रव्यापी ई-अपशिष्ट रीसाइक्लिंग शुल्क क्रियान्वित किये जाने की आवश्यकता है।
    • नवीनीकरण और पुनः उपयोग कार्यक्रम: कंपनियों को पुनर्विक्रय के लिये प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक्स का नवीनीकरण करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये, जिससे उनके जीवन चक्र का संवर्द्धन किया जा सके।
      • उदाहरण: जर्मनी में उपभोक्ताओं को पुराने उपकरणों की मरम्मत या नवीनीकरण के लिये निर्दिष्ट केंद्रों पर इसे वापस किये जाने की सुविधा उपलब्ध है।
      • ई-अपशिष्ट को कम करते हुए वहनीय इलेक्ट्रॉनिक्स को सुलभ बनाने के लिये संगठित सेकेंड-हैंड बाज़ारों का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये।
    • जन जागरूकता और शिक्षा: ई-अपशिष्ट के खतरों और उचित निपटान विधियों पर शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों के लिये जन जागरूक अभियान आयोजित करना चाहिये।
      • जन संपर्क कार्यक्रमों के लिये गैर सरकारी संगठनों और थिंक टैंकों के साथ सहयोग किया जा सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग: रीसाइक्लिंग प्रौद्योगिकियों में क्षमता निर्माण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) जैसे संगठनों के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।

    दृष्टि मेन्स प्रश्न:

    प्रश्न. भारत में ई-अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इसके प्रभावी प्रबंधन के लिये उपायों का सुझाव दीजिये।


      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. पुराने और प्रयुक्त कंप्यूटरों या उनके पुर्जों के असंगत/अव्यवस्थित निपटान के कारण, निम्नलिखित में से कौन-से ई-अपशिष्ट के रूप में पर्यावरण में निर्मुक्त होते हैं? (2013)

    1. बोरिलियम 
    2. कैडमियम 
    3. क्रोमियम 
    4. हेप्टाक्लोर 
    5. पारा
    6. सीसा 
    7. प्लूटोनियम

    नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1, 3, 4, 6 और 7
    (b) केवल 1, 2, 3, 5 और 6
    (c) केवल 2, 4, 5 और 7
    (d) 1, 2, 3, 4, 5, 6 और 7

    उत्तर: (b)


    मेन्स:

    प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस अपशिष्ट की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे विषैले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


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