डेली न्यूज़ (30 Dec, 2020)



अच्छे और प्रतिकारक अभ्यास तथा नवाचारों पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से 7वें अच्छे और प्रतिकारक अभ्यास तथा नवाचारों पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन (National Summit on Good, Replicable Practices & Innovations) का उद्घाटन किया।

  • इस सम्मेलन के दौरान नई स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) के माध्यम से आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर्स में ‘तपेदिक सेवाओं के लिये परिचालन संबंधी दिशा-निर्देश’ और ‘कुष्ठ रोग के सक्रिय मामलों की पहचान व उनकी नियमित निगरानी संबंधी दिशा-निर्देश 2020’ जारी किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु:

सम्मेलन के बारे में:

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में अच्छे और प्रतिकारक अभ्यास तथा नवाचारों पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन आयोजित करता है।
    • इस तरह का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2013 में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में विभिन्न सर्वोत्तम प्रथाओं और नवाचारों को पहचानने, प्रस्तुत करने और उनका दस्तावेज़ीकरण करने के लिये श्रीनगर में आयोजित किया गया था।
    • इन सम्मेलनों में प्रस्तुत अभ्यास और नवाचार प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल स्वास्थ्य और किशोर स्वास्थ्य (RMNCH+A- Reproductive, Maternal, Neonatal, Child Health and Adolescent Health) से लेकर संचारी रोगों (क्षय रोग, मलेरिया और अन्य वेक्टर जनित रोग और कुष्ठ रोग सहित) के गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रमों से संबंधित होते हैं।
    • इनमें ऐसे नवाचार भी शामिल हैं जो स्वास्थ्य समस्याओं से संबंधित प्रणालियों को लागू करते हैं जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल में निरंतरता को मज़बूत करने के लिये क्षमता निर्माण में मानव संसाधन की कमी और चुनौतियों के समाधान के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।

7वें राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2020 में ‘नेशनल हेल्थकेयर इनोवेशन पोर्टल’ पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा 210 नवाचार प्रस्तुत किये गए।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नवप्रवर्तन पोर्टल को अच्छे व्यवहार और नवाचारों के संग्रहण और उनके प्रसार की सुविधा हेतु सार्वजनिक डोमेन में एक मंच के तौर पर सेवा देने के लिये शुरू किया गया था, जो प्रतिकृति के रूप में पाए जाते हैं।
  • कोविड-19 महामारी ने पीपीई किट, वेंटीलेटर, मास्क, वैक्सीन आदि के निर्माण के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बना दिया है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के ई-संजीवनी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर 1 मिलियन से अधिक टेली-परामर्श किये गए हैं।
    • ई-संजीवनी एक ‘डॉक्टर-टू-डॉक्टर’ (Doctor to Doctor) टेलीमेडिसिन प्रणाली है, जिसे आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र कार्यक्रम के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने ई-संजीवनी डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिये ओपन डेटा चैंपियन श्रेणी के तहत डिजिटल इंडिया पुरस्कार, 2020 जीता है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ( National Informatics Centre- NIC) ई-गवर्नेंस और सरकारी सेवा वितरण तंत्र के डिजिटल परिवर्तन में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये द्विवार्षिक डिजिटल इंडिया अवार्ड का आयोजन कर रहा है।
  • डिजिटल परिवर्तन ने देश को एक राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने में सक्षम बनाया है जो कुशल, सुलभ, समावेशी, सस्ते एवं समय पर तथा सुरक्षित तरीके से यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज का समर्थन करता है।
  • स्वास्थ्य सेवा पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचारों पर विचार मंथन के लिये ज़मीनी स्तर के स्वास्थ्यकर्मियों को शामिल कर उन्हें एकीकृत करने की आवश्यकता है। जो लोगों के स्वास्थ्य वितरण प्रणाली के साथ काम करने के उनके अनुभव और विशेषज्ञता से उत्पन्न होता है।

स्वास्थ्य डिजिटलीकरण के हालिया उदाहरण:

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM)

  • NDHM एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र है। डिजिटल प्लेटफॉर्म चार प्रमुख विशेषताओं के साथ लॉन्च किया जाएगा- स्वास्थ्य आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री।

आरोग्य सेतु एप

  • इसका उद्देश्य ब्लूटूथ आधारित संपर्क स्थापित करने में सक्षम बनाने और संभावित हॉटस्पॉटों की मैपिंग तथा कोविड-19 के बारे में प्रासंगिक जानकारी का प्रसार करना है।

स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन प्रणाली

  • यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रमों की निगरानी, नीति निर्माण तथा उचित कार्यक्रमों के हस्तक्षेप से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने हेतु ‘सरकार-से-सरकार’ (G2G) वेब-आधारित निगरानी सूचना प्रणाली है।
  • HMIS को अक्तूबर 2008 में लॉन्च किया गया था। वर्तमान में HMIS वेब पोर्टल पर लगभग 2 लाख स्वास्थ्य सुविधाएँ (सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में) उपलब्ध हैं, जिसके अंतर्गत मासिक आधार पर सेवा वितरण डेटा, तिमाही आधार पर प्रशिक्षण डेटा और वार्षिक आधार पर आधारभूत संरचना संबंधी डेटा अपलोड किया जाता है।
  • HMIS का उपयोग स्वास्थ्य सुविधाओं की ग्रेडिंग, आकांक्षी ज़िलों की पहचान, राज्य कार्यक्रम कार्यान्वयन योजना (PIPs) की समीक्षा आदि में किया गया है।
  • HMIS के माध्यम से प्राप्त विश्लेषणात्मक रिपोर्ट भी अंतर विश्लेषण और साक्ष्य आधारित कार्यप्रणाली संबंधी सुधार प्रदान करती है।
  • सेवा वितरण डेटा में प्रजनन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य संबंधी, टीकाकरण, परिवार नियोजन, वेक्टर जनित रोग, तपेदिक, रुग्णता, मृत्यु दर, ओपीडी (OPD), आईपीडी सेवा (IPD Services), सर्जरी आदि शामिल हैं।
    • प्रशिक्षण डेटा (प्रशिक्षण ज़िला और राज्य स्तर पर मेडिकल एवं पैरामेडिकल स्टाफ को त्रैमासिक आधार पर प्रदान किया जाता है)।
    • आधारभूत संरचना डेटा- श्रमशक्ति, उपकरण, स्वच्छता, भवन, चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता जैसे सर्जरी आदि, सुपर स्पेशियलिटी सर्विसेज़, कार्डियोलॉजी, डायग्नोस्टिक्स, पैरा मेडिकल व क्लिनिकल सर्विसेज़ आदि (वार्षिक आधार पर) ।
  • HMIS पोर्टल एक वेब आधारित स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली इंटरफेस का उपयोग करके उप-ज़िला, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक इसके भौतिक प्रदर्शन के प्रवाह को सुविधाजनक बनाता है।
  • नवीन HMIS डेटा, सूचना और बुनियादी ढाँचे की सेवाओं की विस्तृत श्रंखला के माध्यम से एक समेकित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।

स्रोत- PIB


लद्दाख: त्सो कर आर्द्रभूमि क्षेत्र

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत ने लद्दाख के त्सो कर (Tso Kar) आर्द्रभूमि क्षेत्र (Wetland Complex) को अपने 42वें रामसर स्थल के रूप में शामिल किया है इसे यह दर्जा  आर्द्रभूमियों पर अंतर्राष्ट्रीय रामसर कन्वेंशन (International Ramsar Convention on Wetlands) द्वारा प्रदान किया गया है।

  • इससे पहले महाराष्ट्र में लोनार झील और आगरा में सुर सरोवर (जिसे केथम झील भी कहा जाता है) को रामसर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।

प्रमुख बिंदु: 

Ramsar-Site

त्सो कर आर्द्रभूमि क्षेत्र के बारे में:

  • त्सो कर बेसिन एक उच्च ऊंँचाई वाला आर्द्रभूमि क्षेत्र है, जिसमें दो प्रमुख जलप्रपात शामिल हैं:
    • दक्षिण में लगभग 438 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली मीठे पानी की झील स्‍टारत्‍सपुक त्सो
    • उत्तर में 1800 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली खारे पानी की झील त्सो कर 
  • त्‍सो कर का अर्थ है सफेद झील। अत इस क्षेत्र में मौजूद अत्‍यधिक खारे पानी के वाष्पीकरण के कारण किनारे पर सफेद नमक की पपड़ी पाई जाती है।
  • ‘बर्ड लाइफ इंटरनेशनल’ (Bird Life International) के अनुसार त्सो कर घाटी ए 1 श्रेणी का एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (आईबीए) है तथा प्रवासी पक्षियों के लिये ‘मध्य एशियाई फ्लाईवे’ (Central Asian Flyway) एक महत्त्वपूर्ण मार्ग प्रदान करता है।
    • महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (Important Bird Area-IBA):
      • बर्ड लाइफ इंटरनेशनल के IBA कार्यक्रम का उद्देश्य वैश्विक पक्षियों और संबंधित जैव विविधता के संरक्षण हेतु IBA के एक वैश्विक नेटवर्क की पहचान, निगरानी और सुरक्षा करना है।
      • बर्ड लाइफ इंटरनेशनल गैर-सरकारी संगठनों की एक वैश्विक साझेदारी है जो पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण के लिये प्रयासरत है।
    • मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF):
      • इसमें आर्कटिक और भारतीय महासागरों तथा संबंधित द्वीप शृंखलाओं के मध्य यूरेशिया का एक बड़ा महाद्वीपीय क्षेत्र शामिल है।
      • फ्लाईवे में जल-मार्ग के कई महत्वपूर्ण प्रवास मार्ग/देशांतर गमन शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश रूसी संघ (साइबेरिया) के उत्तरी प्रजनन मैदानों से लेकर दक्षिण पश्चिम एशिया में मालदीव तथा हिंद महासागर क्षेत्र और दक्षिणी ब्रिटेन के गैर-प्रजनन (शीतकालीन) मैदानों तक फैले हुए हैं।
      • इसमें 182 प्रवासी जल-प्रजातियों की कम से कम 279 संख्या शामिल है, जिसमें विश्व स्तर पर 29 संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • यह क्षेत्र भारत में काले गर्दन वाले सारस पक्षी (ग्रस नाइग्रीकोलिस) का एक महत्त्वपूर्ण प्रजनन क्षेत्र है।
  •  यह आईबीए ग्रेट क्रेस्टेड ग्रीबे (पोडिसेक्रिस्ट्रैटस), बार-हेडेड गीज यानी कलहंस (अनसेरुंडिकस), रूडी शेल डक यानी बतख (टाडोर्नफ्रेग्यूनिएना), ब्रान-हेडेड गल (लार्सब्रोननिसेफालस), लेस रैंड-प्लवेर (चारेड्रियसमुंगोलस) और कई अन्‍य प्रजातियों के लिये एक प्रमुख प्रजनन क्षेत्र है।

 आर्द्रभूमि क्षेत्र का महत्त्व:

  •  आर्द्रभूमि को "स्थलीय और जलीय इको-सिस्टम के मध्य संक्रमणकालीन भूमि के रूप में परिभाषित किया जाता है जहांँ पानी का स्तर सामान्यत: सतह के पास या भूमि उथले पानी से ढकी होती है"।
  • आर्द्रभूमियांँ भोजन, पानी, रेशे, भूजल पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़, कटाव नियंत्रण और जलवायु विनियमन जैसे महत्त्वपूर्ण संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करते हैं।
  • वास्तव में आर्द्रभूमि क्षेत्र जल का प्रमुख स्रोत है तथा मुख्य रूप से मीठे जल की आपूर्ति करता है जो वर्षा जल को सोखकर भूजल के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।

रामसर साइट

  • आर्द्रभूमियों पर रामसर कन्वेंशन को वर्ष 1971 में ईरानी शहर जो कि रामसर में कैस्पियन सागर के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, में अपनाया गया यह एक अंतर-सरकारी संधि है।
  •  भारत द्वारा इसे 1 फरवरी, 1982 में लागू किया गया।
  • वे आर्द्रभूमि क्षेत्र जो अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के हैं, रामसर स्थल के रूप में घोषित किये गए हैं।
  • इस कन्वेंशन का उद्देश्य विश्व में सतत विकास की दिशा में योगदान देते हुए स्थानीय और राष्ट्रीय कार्यों तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से सभी आर्द्रभूमियों का संरक्षण व उपयोग करना है।
  • मोंट्रेक्स रेकॉर्ड (Montreux Record) उन आर्द्रभूमि स्थलों की एक सूची हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के हैं जहांँ के पारिस्थितिक में चरित्र में परिवर्तन हुए हैं, हो रहे हैं, या तकनीकी विकास, प्रदूषण या अन्य मानव हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप परिवर्तन होने की संभावना है।
    • यह रामसर सूची के भाग के रूप में शामिल है।
  • वर्तमान में भारत के दो आर्द्रभूमियों को मोंट्रेक्स रिकॉर्ड में शामिल किया गया हैं:
    • केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान)। 
    • लोकटक झील (मणिपुर)।
  • चिलिका झील (ओडिशा) को इस रिकॉर्ड में शामिल किया गया था लेकिन बाद में हटा दिया गया

स्रोत: पीआईबी


कोलार लीफ-नोज़्ड बैट

चर्चा में क्यों?

कर्नाटक वन विभाग, बैट कंज़र्वेशन इंडिया ट्रस्ट (BCIT) के साथ मिलकर कोलार लीफ-नोज़्ड बैट (Kolar Leaf-Nosed Bat) को विलुप्त होने से बचाने के लिये तैयारी कर रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • BCIT एक गैर-लाभकारी संगठन है जिसकी स्थापना भारत में चमगादड़ों के निवास स्थान की रक्षा करके उनकी प्रजातियों के संरक्षण के लिये की गई थी। इसका मुख्यालय बंगलूरु, कर्नाटक में है।
  • कोलार लीफ-नोज़्ड बैट का वैज्ञानिक नाम हिप्पोसाइडरोस हाइपोफिलस (Hipposideros hypophyllus) है
  • भौगोलिक सीमा: यह भारत के लिये स्थानिक है। वर्तमान में यह केवल कर्नाटक के कोलार ज़िले के हनुमानहल्ली गाँव में एक गुफा से जाना जाता है।
  • खतरे: भूमि उपयोग परिवर्तन शिकार और पत्थर खदान की वजह से आवास की हानि।
    • कई वर्ष पहले तक हनुमानहल्ली गाँव में केवल दो गुफाओं में कोलार लीफ-नोज़्ड बैट पाया गया था। परंतु इन दो गुफाओं से चमगादड़ की विलुप्ति का कारण अभी भी अज्ञात है।

सुरक्षा की स्थिति:

  • आईयूसीएन रेड लिस्ट: गंभीर रूप से संकटग्रस्त
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: इस अधिनियम के तहत कानूनी संरक्षण नहीं दिया गया है।

संरक्षण के प्रयास

  • सरकार ने गुफाओं के आसपास 30 एकड़ क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया था।
    • नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण सहित यहाँ नए विकास कार्य, वन्यजीवों के लिये राष्ट्रीय बोर्ड की अनुमति की आवश्यकता होगी।
  • चमगादड़ की इस प्रजाति के संरक्षण के लिये ‘चमगादड़ संरक्षण भारतीय ट्रस्ट’ को अनुदान दिया गया है।
    • यह आस-पास के समुदायों में एक गहन जागरूकता अभियान चला रहा है और उसने प्रजातियों के लिये उत्पन्न इस खतरे को समझा है तथा अतिक्रमणकारियों से इस क्षेत्र की रक्षा करना का कार्य शुरू कर दिया है।

चिंताएँ:

  • चमगादड़ देश में सबसे कम अध्ययन किये गए स्तनधारियों में से एक हैं, हालाँकि भारत में चमगादड़ की 130 प्रजातियाँ हैं।
    • एक पोलिनेटर के रूप में चमगादड़ पारिस्थितिकी के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • चमगादड़ कीट नियंत्रण में भी मदद करते हैं और इसलिये फसलों की सुरक्षा में मदद करते हैं।
  • ये बहुत अनुकूली जीव हैं और इसलिये वे अक्सर मानव बस्ती के पास या शहरी बस्तियों में भी पाए जा सकते हैं, जो उन्हें असुरक्षित बनाता है।
  • चमगादड़ों की खराब छवि बीमारियों के वाहक के रूप में भी होती है।

सुझाव:

  • इस क्षेत्र में अन्य भूमिगत गुफाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये पाँच से दस किमी. के दायरे में अवैध ग्रेनाइट खनन और उत्खनन पर रोक लगाने की तत्काल आवश्यकता है।
  • इस बीच प्रजातियों के वितरण को समझने के लिये व्यापक गुफा अन्वेषण और ध्वनिक नमूने की सिफारिश की जाती है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने उत्तर प्रदेश में खुर्जा और भाऊपुर के बीच ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) के 351किमी. लंबे खंड और एक ऑपरेशन कंट्रोल सेंटर (OCC) का उद्घाटन किया है।

  • ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) 1,839 किलोमीटर लंबी भारत की एक  सबसे बड़ी रेल अवसंरचना परियोजना है, जिसे वर्ष 2006 में शुरू किया गया था।

प्रमुख बिंदु 

  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC)
    • यह उच्च गति और उच्च क्षमता वाला विश्व स्तरीय तकनीक के अनुसार बनाया गया एक रेल मार्ग होता है, जिसे विशेष तौर पर माल एवं वस्तुओं के परिवहन हेतु बनाया जाता है।
    • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) में बेहतर बुनियादी ढाँचे और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण शामिल होता है।
  • सरकार द्वारा दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर- ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (WDFC) बनाए जा रहे हैं।
  • ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC)
    • यह डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर पंजाब में साहनेवाल (लुधियाना) से शुरू होकर पश्चिम बंगाल के दनकुनी में समाप्त होता है।
    • ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) के मार्ग में कोयला खदानें, थर्मल पावर प्लांट और औद्योगिक शहर मौजूद हैं।
    • इसके मार्ग में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल आदि राज्य शामिल हैं।
    • इस परियोजना का अधिकांश हिस्सा विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित है।
    • 351 किमी. लंबा ‘न्यू भूपुर-न्यू खुर्जा खंड’ ’मौजूदा कानपुर-दिल्ली लाइन पर भीड़ को कम करेगा और साथ ही यह मालगाड़ियों की गति को 25 किमी. प्रति घंटा से 75 किमी. प्रति घंटा कर देगा।
  • वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (WDFC)
    • 1504 किलोमीटर लंबा वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, जवाहरलाल नेहरू पोर्ट टर्मिनल (महाराष्ट्र) से दादरी (उत्तर प्रदेश) तक है और यह देश के प्रमुख बंदरगाहों से होकर गुज़रता है।
    •  इसमें हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
    • यह जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) द्वारा वित्तपोषित है।
  • ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर को आपस में जोड़ने के लिये दादरी और खुर्जा के बीच एक खंड निर्माणाधीन है।

Map

महत्त्व

  • क्षमता में बढ़ोतरी
    • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) भारत के परिवहन क्षेत्र में सुधार करेगा और भारतीय रेलवे के ट्रंक मार्गों की क्षमता में बढ़ोतरी करेगा, क्योंकि इस मार्ग पर माल गाड़ियाँ बिना किसी रोक-टोक के स्वतंत्र रूप से आवागमन कर सकेंगी।
  • भीड़ में कमी
    • वर्तमान में भारतीय रेलवे नेटवर्क पर चलने वाली लगभग 70 प्रतिशत माल गाड़ियाँ डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) पर स्थानांतरित कर दी जाएंगी, जिससे यात्री ट्रेनों को अधिक रास्ता मिल सकेगा।
  • व्यापार सृजन
    • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) रेल लाइन को भारतीय रेलवे की अन्य रेल लाइनों की तुलना में अधिक भार उठाने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो कि व्यावसायिक एवं व्यापारिक दृष्टि से भी काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • सामयिकता
    • इस नए फ्रेट रेल मार्ग से भारतीय रेलवे की मुख्य लाइनों पर अधिक गाड़ियाँ चलाई जा सकेंगी, जिससे भारतीय ट्रेनें अधिक समयबाद्ध हो सकेंगी।

लाभ

  • इससे रसद लागत कम हो जाएगी।
  • उच्च ऊर्जा दक्षता।
  • माल की तीव्रता से आवाजाही।
  • यह पर्यावरण के अधिक अनुकूल है।
  • यह व्यापार की सुगमता प्रदान करेगा।
  • रोज़गार सृजन में सहायक।

डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड

  • यह रेल मंत्रालय के तहत गठित एक इकाई है, जिसका उद्देश्य 3,306 किलोमीटर लंबे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से संबंधित योजना बनाना और इसके निर्माण का कार्य पूरा करना है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है और यह एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है।
  • यह डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के नियोजन एवं विकास, वित्तीय साधनों की तैनाती, निर्माण, रखरखाव और संचालन आदि गतिविधियों में संलग्न है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पुलिस संगठनों के आँकड़े: बीपीआरडी

चर्चा में क्यों: 

हाल ही में ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ (Bureau of Police Research and Development- BPRD) द्वारा ‘पुलिस संगठनों के आँकड़े’ (Data on Police Organisations) नामक रिपोर्ट जारी की गई है।

  • ये आँकड़े देश में पुलिसिंग के विभिन्न पहलुओं जैसे- महिला पुलिस, पुलिस खर्च, यातायात और संचार सुविधाएँ, पुलिस प्रशिक्षण केंद्रों और पुलिस सेवा में विभिन्न जाति एवं वर्गों के लोगों के प्रतिनिधित्त्व आदि की स्थिति को दर्शाते हैं। 

प्रमुख बिंदु:

सामान्य डेटा:

  • सरकार द्वारा वर्ष 2019-20 में पुलिस प्रशिक्षण और इससे जुड़े अन्य व्यय पर कुल 1566.85 करोड़ रूपए खर्च किये गए।
  • ये आँकड़े दर्शाते हैं कि यद्यपि देश की आबादी में पिछड़ी जातियों, दलितों और आदिवासियों की हिस्सेदारी लगभग 67% है परंतु देश के विभिन्न पुलिस बलों में उनकी भूमिका मात्र 51% ही है। 
    • सभी राज्य सरकारों द्वारा इन श्रेणियों में आरक्षण प्रदान किये जाने के बावजूद भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका है।

रिक्त पद:

  • वर्तमान में देश के विभिन्न राज्यों के पुलिस बलों में 5.31 लाख से अधिक पद और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (Central Armed Police Forces-CAPF) में 1.27 लाख पद खाली हैं।  
    • इन आँकड़ों में सिविल पुलिस, ज़िला सशस्त्र पुलिस, विशेष सशस्त्र पुलिस और इंडिया रिज़र्व बटालियन से जुड़े डेटा को शामिल किया गया है।

अनुसूचित जनजाति:

  • भारत की आबादी में अनुसूचित जनजाति की हिस्सेदारी 8.6% है और पुलिस बलों में उनका प्रतिनिधित्त्व 12% है। जो उन्हें तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में लाता है।  
  • देश की आबादी में अपनी हिस्सेदारी की तुलना में पुलिस बलों में केवल अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्त्व ही बेहतर है, जबकि इस मामले अन्य सभी पिछड़े वर्गों का प्रदर्शन खराब ही रहा है।  

दलित: 

  • वर्ष 2019 के अंत में देश भर में विभिन्न पुलिस बलों के कुल पदों में से 14% का प्रतिनिधित्त्व दलितों समाज से आने वाले लोगों द्वारा किया गया।  
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल आबादी में दलितों की हिस्सेदारी 16.6% थी।  

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC):

  • प्रतिनिधित्त्व के मामले में OBCs की स्थिति सबसे खराब है, देश की कुल आबादी में OBCs की 41% हिस्सेदारी के बावजूद पुलिस बलों में उनका प्रतिनिधित्त्व मात्र 25% है। 

महिला पुलिस:

  • पुलिस बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व बहुत ही कम पाया गया है। देश की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी 48% होने के बावज़ूद देश के पुलिस बलों में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व मात्र 10% ही है।  
    • हालाँकि पिछले कुछ वर्षों में उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है, गौरतलब है कि वर्ष 2014 से पुलिस बलों में महिलाओं की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है।   
  • राष्ट्रीय स्तर पर प्रति महिला पुलिसकर्मी पर महिलाओं की आबादी का अनुपात 3,026 है जो कि बहुत ही कम है।
    • पुलिस बलों में महिलाओं का खराब प्रतिनिधित्त्व महिलाओं के खिलाफ अपराधों और महिला अपराधियों से निपटने में गंभीर चुनौती प्रस्तुत करता है।

अन्य अनुपात:

Police-Popn-ratio

  • स्वीकृत प्रति पुलिस कर्मचारी जनसंख्या (PPP)- 511.81। 
  • स्वीकृत  पुलिस जनसंख्या अनुपात (PPR) -195.39। 
    • PPR प्रति लाख जनसंख्या पर नियुक्त पुलिस कर्मियों की संख्या को दर्शाता है। गौरतलब है कि वर्ष 2018 (PPR-198) के आँकड़ों की तुलना में PPR में गिरावट देखने को मिली है। 
    • संयुक्त राष्ट्र  द्वारा अधिदिष्ट पुलिस-जनसंख्या अनुपात 220 से अधिक है।
  • स्वीकृत पुलिस एरिया अनुपात (PAR) (प्रति 100 वर्ग किलोमीटर)-  79.80। 

पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD):

  • भारत सरकार ने वर्ष 1970 में गृह मंत्रालय के अधीन इसकी स्थापना की। 
  • पुलिस बलों के आधुनिकीकरण के प्रमुख उद्देश्य के साथ इसने पुलिस अनुसंधान एवं परामर्श समिति (Police Research and Advisory Council, 1966) का स्थान लिया।
  • वर्ष 1995 में भारत सरकार ने सुधारात्मक प्रशासन से संबंधित कार्यों (Correctional Administration Work) को BPRD के अधीन सौंपने का निर्णय लिया।
    • फलस्वरूप कारागार सुधारों का क्रियान्वयन भी BPRD द्वारा ही सुनिश्चित किया जाता है।
  • वर्ष 2008 के दौरान भारत सरकार ने देश के पुलिस बलों का स्वरूप बदलने के लिये BPRD के प्रशासनिक नियंत्रण में नेशनल पुलिस मिशन (National Police Mission) के सृजन का निर्णय लिया।
  • वर्ष 2020 ने BPRD अपना 50वाँ स्थापना दिवस मनाया।
  • वर्ष1986 से ही यह ‘पुलिस संगठनों के आँकड़े’ प्रकाशित कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


डिजिटल ओशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने 'भारतीय राष्ट्रीय सागरीय सूचना प्रणाली केंद्र' (Indian National Centre for Ocean Information Services- INCOIS) द्वारा विकसित वेब आधारित एप्लीकेशन “डिजिटल ओशन” (DigitalOcean) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

डिजिटल ओशन के विषय में:

  • महासागरीय आँकड़ों के प्रबंधन (Ocean Data Management) हेतु यह अपनी तरह का पहला डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
  • यह एक ही स्थान पर सागर संबंधी आँकड़े उपलब्ध कराने वाला अपनी तरह का पहला प्लेटफॉर्म है।
  • इसमें भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी में हुई त्वरित प्रगति को अपनाते हुए विभिन्न प्रकार के सागरीय आँकड़ों को व्यवस्थित और प्रदर्शित करने के लिये विकसित एप्लीकेशंस का एक समूह शामिल है।
  • यह समुद्र संबंधी विशेषताओं के मूल्यांकन के लिये डेटा एकीकरण, 3D एवं 4D (टाइम एनीमेशन के साथ 3D विस्तार) डेटा विज़ुअलाइज़ेशन और डेटा विश्लेषण हेतु एक ऑनलाइन संवादयुक्त वेब-आधारित परिवेश उपलब्ध कराता है।

महत्त्व:

  • डिजिटल ओशन प्रधानमंत्री की डिजिटल इंडिया, यानी भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान संपन्न अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करने की परिकल्पना की दिशा में एक बड़ा कदम है।
  • यह अनुसंधान संस्थानों, परिचालन संबंधी संस्थाओं, सामरिक उपयोगकर्त्ताओं, शैक्षणिक समुदायों, समुद्री उद्योग और नीति निर्माताओं समेत उपयोगकर्त्ताओं की एक विस्तृत श्रेणी के की जरूरत के सभी आँकड़ों के लिये एकमात्र स्थान (वन स्टॉप-सॉल्यूशन) के रूप में काम करेगा।
  • यह महासागरों के टिकाऊ प्रबंधन और सरकार की ‘ब्लू इकाॅनमी’ से जुड़े प्रयासों के विस्तार में केंद्रीय भूमिका निभाएगा।
  • इसे हिंद महासागर के किनारों पर बसे सभी देशों (Indian Ocean Rim countries) के लिये ओशन डेटा मैनेजमेंट में क्षमता निर्माण हेतु एक मंच के तौर पर बढ़ावा दिया जाएगा।

अन्य संबंधित पहल:

  • डीप ओशन मिशन
    • इसकी शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी
    • यह उद्देश्य गहरे महासागर का पता लगाना है।
    • यह मिशन गहरे समुद्र में खनन, समुद्री जलवायु परिवर्तन सलाहकार सेवाओं, अंडरवाटर वाहनों और अंडरवाटर रोबोटिक्स से संबंधित तकनीकों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • मिशन के तहत योजनाबद्ध दो प्रमुख परियोजनाएँ हैं:
    • महत्त्व: यह भारत को केंद्रीय हिंद महासागर बेसिन (Central Indian Ocean Basin- CIOB) में संसाधनों का दोहन करने में सक्षम बनाएगा।

भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS):

  • यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences- MoES) के तहत एक स्वायत्त संगठन है।
  • इसे वर्ष 1999 में हैदराबाद में स्थापित किया गया था।
  • यह पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (Earth System Science Organization (ESSO), नई दिल्ली की एक इकाई है।
    • ESSO अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के संचालन हेतु  पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहायक के रूप में कार्य करता है।
    • ईएसएसओ का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन विज्ञान और जलवायु सेवाओं से संबंधित पहलुओं को संबोधित करने सहित सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के लिये मौसम, जलवायु एवं आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का विकास एवं इसमें सुधार करना है।
  • यह निरंतर महासागर अवलोकन, व्यवस्थित केंद्रित अनुसंधान  सुधार के माध्यम से उद्योग, सरकारी एजेंसियों और वैज्ञानिक समुदाय को महासागर संबंधी जानकारी और सर्वोत्तम संभव  एवं सलाहकार सेवाएंँ प्रदान करने के लिए अनिवार्य रूप से अधिदिष्ट है।
  • इसने विभिन्न अत्याधुनिक तकनीकों और उपकरणों को अपनाया और विकसित किया है जिनमें संभावित मत्स्य पालन क्षेत्र (Potential Fishing Zone- PFZ), समुद्री स्थिति का पूर्वानुमान (Ocean State Forecast- OSF), हाई वेव अलर्ट, सुनामी की प्रारंभिक चेतावनी, तूफान पूर्वानुमान और तेल-रिसाव के संबंध में सलाह आदि शामिल हैं। 
  • यह राष्ट्रीय अर्गो डेटा केंद्र (National Argo Data Centre) और अंतर्राष्ट्रीय अर्गो प्रोग्राम (International Argo Programme) के क्षेत्रीय अर्गो डेटा सेंटर के रूप में अपनी सेवा प्रदान कर रहा है।

स्रोत: पी.आई.बी.