भारतीय अर्थव्यवस्था
13वाँ वैश्विक शिखर सम्मेलन, 2022
प्रिलिम्स के लिये:13वाँ FICCI वैश्विक शिखर सम्मलेन 2022, नई शिक्षा नीति (NEP), संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 4, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, संकल्प (SANKALP) कार्यक्रम, STRIVE परियोजना। मेन्स के लिये:भारत में कौशल विकास का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कौशल विकास और उद्यमिता मंत्री ने 13वें भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (The Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry- FICCI) वैश्विक शिखर सम्मलेन 2022 का उद्घाटन किया।
- थीम: शिक्षा से रोज़गार तक-इसे संभव बनाना (Education to Employability-Making It Happen)
FICCI:
- यह एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संगठन है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1927 में हुई थी तथा यह भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष व्यापार संगठन है। इसका इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।
- यह नीति निर्माताओं और नागरिक समाज के साथ जुड़कर बहस को प्रोत्साहित करने के लिये नीति को प्रभावित करता है। FICCI उद्योग संबंधी विचारों और चिंताओं को व्यक्त करता है। यह भारतीय निजी और सार्वजनिक कॉर्पोरेट क्षेत्रों एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अपने सदस्यों को सेवाएँ प्रदान करता है।
- यह भारतीय उद्योग, नीति निर्माताओं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुदायों के बीच नेटवर्किंग एवं आम सहमति बनाने के लिये मंच प्रदान करता है।
13वें वैश्विक शिखर सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:
- यह देश के युवाओं के लिये शिक्षा से रोज़गार तक के मार्ग को आसान बनाने पर केंद्रित है।
- यह शिखर सम्मेलन नई शिक्षा नीति (NEP) के नज़रिये से इस बात पर ध्यान केंद्रित करेगा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य 4 (SDG 4) को एक आधार मानते हुए "विश्व की कौशल राजधानी" कैसे बन सकता है।
भारत में कौशल विकास की स्थिति:
- विषय:
- राष्ट्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता नीति पर वर्ष 2015 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि भारत में कुल कार्यबल के केवल 7% ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया था, जबकि अमेरिका में यह 52%, जापान में 80% और दक्षिण कोरिया में 96% था।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation- NSDC) द्वारा वर्ष 2010-2014 की अवधि के लिये किये गए एक कौशल अंतराल अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2022 तक 24 प्रमुख क्षेत्रों में 10.97 करोड़ कुशल जनशक्ति की अतिरिक्त निवल वृद्धिशील आवश्यकता होगी।
- इसके अलावा 29.82 करोड़ कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के कामगारों की स्किलिंग, री-स्किलिंग एवं अप-स्किलिंग की आवश्यकता होगी।
- समस्याएँ:
- उत्तरदायित्त्व का अतिरिक्त बोझ: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का तीसरा चरण वर्ष 2020-21 में 8 लाख से अधिक व्यक्तियों के कौशल विकास के लिये शुरू किया गया।
- तथापि यह ज़िला कलेक्टरों की अध्यक्षता वाली ज़िला कौशल विकास समितियों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण परेशान है, जो कि अपने अन्य कामों को देखते हुए इस भूमिका को प्राथमिकता देने में सक्षम नहीं होंगे।
- नीति प्रक्रिया में अनिरंतरता: राष्ट्रीय कौशल विकास एजेंसी (NSDA) की स्थापना वर्ष 2013 में अंतर-मंत्रालयी और अंतर-विभागीय मुद्दों को हल करने तथा केंद्र के प्रयासों के दोहराव को खत्म करने के लिये की गई थी।
- अब इसे राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण परिषद (NCVT) के भाग के रूप में समाहित कर लिया गया है।
- यह न केवल नीति प्रक्रिया में अस्थिरता बल्कि नीति निर्माताओं के बीच अस्पष्टता को भी दर्शाता है।
- रोज़गार बाज़ार में लोगों की अधिक संख्या: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) के 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, 15-59 वर्ष आयु वर्ग के 7 करोड़ अतिरिक्त लोगों के वर्ष 2023 तक श्रम बाज़ार में शामिल होने की उम्मीद है।
- नियोक्ताओं की अनिच्छा: भारत की बेरोज़गारी का मुद्दा केवल कौशल की समस्या नहीं है बल्कि यह रोज़गार देने में उद्योगपतियों और SMEs की उदासीनता को भी दर्शाता है।
- बैंकों के NPAs के कारण ऋण तक सीमित पहुँच के साथ निवेश दर में गिरावट आई है जिससे रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- उत्तरदायित्त्व का अतिरिक्त बोझ: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का तीसरा चरण वर्ष 2020-21 में 8 लाख से अधिक व्यक्तियों के कौशल विकास के लिये शुरू किया गया।
कार्यबल के कौशल विकास की आवश्यकता क्यों है?
- आपूर्ति और मांग के मुद्दे: आपूर्ति पक्ष के अनुरूप भारत पर्याप्त रोज़गार के अवसर पैदा करने में विफल हो रहा है; और मांग पक्ष में बाज़ार में रोज़गार पाने वालों में कौशल की कमी है जिससे रोज़गार की कमी के साथ-साथ बेरोज़गारी में वृद्धि देखी जा रही है।
- बढ़ती बेरोज़गारी: सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के अनुसार, भारत में बेरोज़गारी दर वर्ष 2022 में लगभग 7% या 8% रही है, जो पाँच साल पहले की तुलना में लगभग 5% अधिक है।
- इसके अलावा कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के कारण नौकरी की कमज़ोर संभावनाओं के चलते कार्यबल में कमी आई है।
- श्रम बल भागीदारी दर (यानी जो लोग काम कर रहे हैं या काम की तलाश कर रहे हैं) छह साल पहले के 46% से गिरकर 40% (वैध उम्र के 900 मिलियन भारतीय) पर आ गई है ।
- कार्यबल में कौशल की कमी: रोज़गार सृजन के साथ श्रम बाज़ार में प्रवेश करने वालों की रोज़गार के अनुसार क्षमता और उत्पादकता एक मुद्दा बना हुआ है।
- इंडिया स्किल्स रिपोर्ट 2015 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल 37.22% को रोज़गार योग्य पाया गया जिसमें से पुरुषों में यह आँकड़ा 34.26% व महिलाओं में 37.88% था।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के 2019-20 के आँकड़े के अनुसार, 15 से 59 वर्ष के 1% लोगों ने कोई व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था। शेष 13.9% ने विविध औपचारिक और अनौपचारिक माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
- कुशल कार्यबल की मांग: भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) द्वारा वृद्धिशील मानव संसाधन आवश्यकताओं का अनुमान वर्ष 2022 तक 201 मिलियन लगाया गया और कुशल कार्यबल की कुल आवश्यकता वर्ष 2023 तक 300 मिलियन होगी।
- इन नौकरियों का एक बड़ा हिस्सा विनिर्माण क्षेत्र से आना था। राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (2011) में वर्ष 2022 तक विनिर्माण क्षेत्र में 100 मिलियन नई नौकरियों का लक्ष्य रखा गया था।
- कौशल विकास मंत्रालय द्वारा जारी अध्ययन रिपोर्टों में वर्ष 2022 तक 24 क्षेत्रों में 109.73 मिलियन वृद्धिशील मानव संसाधन आवश्यकता का आकलन किया गया।
कौशल विकास के लिये की गई प्रमुख पहलें:
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना: सरकार की फ्लैगशिप ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ वर्ष 2015 में ITIs के माध्यम से और अप्रेंटिसशिप योजना (Apprenticeship Scheme) के तहत अल्पकालिक प्रशिक्षण व कौशल प्रदान करने के लिये शुरू की गई थी।
- वर्ष 2015 से अब तक सरकार इस योजना के तहत 10 मिलियन से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित कर चुकी है।
- ‘संकल्प’ और ‘स्ट्राइव’: संकल्प कार्यक्रम (SANKALP Programme) ज़िला-स्तरीय स्किलिंग पारितंत्र पर केंद्रित है और ‘स्ट्राइव योजना’ (STRIVE project) जिसका उद्देश्य ITIs के प्रदर्शन में सुधार करना है, एक अन्य महत्त्वपूर्ण कौशल निर्माण आयाम है।
- विभिन्न मंत्रालयों की पहल: 20 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों द्वारा लगभग 40 कौशल विकास कार्यक्रम कार्यान्वित किये जा रहे हैं। कुल कौशल निर्माण में कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय’ का योगदान लगभग 55% है।
- इन सभी मंत्रालयों की पहल के परिणामस्वरूप वर्ष 2015 से लगभग चार करोड़ लोगों को विभिन्न औपचारिक कौशल कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है।
- कौशल निर्माण में अनिवार्य CSR व्यय: कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत अनिवार्य CSR व्यय के कार्यान्वयन के बाद से भारत में निगमों ने विविध सामाजिक परियोजनाओं में 100,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
- इनमेसे करीब 6,877 करोड़ रुपए स्किलिंग और आजीविका बढ़ाने वाली परियोजनाओं पर खर्च किये गए। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक और गुजरात शीर्ष पाँच प्राप्तकर्त्ता राज्य थे।
- कौशल के लिये TEJAS पहल: हाल ही में TEJAS (ट्रेनिंग फॉर अमीरात जॉब्स एंड स्किल्स), प्रवासी भारतियों को प्रशिक्षित करने के लिये एक स्किल इंडिया इंटरनेशनल प्रोजेक्ट दुबई एक्सपो, 2020 में लॉन्च किया गया था।
- इस परियोजना का उद्देश्य भारतीयों को कौशल प्रमाणन और विदेशों में रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाना तथा भारतीय कार्यबल को UAE जैसे देशों में कौशल एवं बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार सक्षम बनाने हेतु मार्ग प्रशस्त करना है।
आगे की राह
कौशल विकास हमारे देश के विकास का सबसे आवश्यक पहलू है। भारत के पास विशाल 'जनसांख्यिकीय लाभांश' है, जिसका अर्थ है कि इसमें श्रम बाज़ार को कुशल जनशक्ति प्रदान करने की बहुत अधिक संभावना है। इसके लिये सरकारी एजेंसियों, उद्योगों, शैक्षिक और प्रशिक्षण संस्थानों तथा छात्रों, प्रशिक्षुओं एवं नौकरी चाहने वालों सहित सभी हितधारकों के समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न: "भारत में जनसांख्यिकी लाभांश केवल सैद्धांतिक रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और रचनात्मक नहीं हो जाती।" हमारी जनसंख्या की क्षमता को अधिक उत्पादक एवं रोज़गार योग्य बनाने के लिये सरकार द्वारा क्या उपाय किये गए हैं? (मुख्य परीक्षा, 2016) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
वायु प्रदूषण कम करने का नया लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने वर्ष 2026 तक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत आने वाले शहरों में कणों की सांद्रता में 40% की कमी का नया लक्ष्य निर्धारित किया है, जो वर्ष 2024 तक 20 से 30% की कमी के पहले के लक्ष्य को अद्यतन करता है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम:
- परिचय:
- इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जनवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
- यह देश में समयबद्ध कमी के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय ढाँचा तैयार करने का पहला प्रयास है।
- यह अगले पाँच वर्षों में भारी (व्यास 10 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM10 के कण पदार्थ) और महीन कणों (व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम या PM2.5 के कण पदार्थ) के संकेंद्रण में कम-से-कम 20% की कटौती करेगा, जिसकाआधार वर्ष 2017 है।
- इसमें 132 गैर-प्राप्ति वाले शहर शामिल हैं जिनकी पहचान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा की गई थी।
- गैर-प्राप्ति वाले शहर (Non- Attainment Cities) वे शहर हैं जो पाँच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा करने में विफल रहे हैं।
- NAAQs वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत CPCB द्वारा अधिसूचित विभिन्न पहचाने गए प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं। NAAQS के तहत प्रदूषकों की सूची में PM10, PM2.5, SO2, NO2, CO, NH3, ओज़ोन, लेड, बेंज़ीन, बेंजो-पाइरेन, आर्सेनिक और निकेल शामिल है।
- गैर-प्राप्ति वाले शहर (Non- Attainment Cities) वे शहर हैं जो पाँच वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (NAAQS) को पूरा करने में विफल रहे हैं।
- उद्देश्य:
- देश भर में प्रभावी एवं कुशल परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क में वृद्धि और विकसित करना।
- वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिये उचित समय पर उपायों हेतु कुशल डेटा प्रसार और बेहतर सार्वजनिक तंत्र उपलब्ध कराना।
- वायु प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के लिये एक व्यवहार्य प्रबंधन योजना बनाना।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये भारत द्वारा की गई पहल:
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली (The System of Air Quality and Weather Forecasting And Research- SAFAR
- वायु गुणवत्ता सूचकांक: AQI आठ प्रदूषकों अर्थात PM 2.5, PM 10, अमोनिया, सीसा, नाइट्रोज़न ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन तथा कार्बन मोनोऑक्साइड के लिये विकसित किया गया है।
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (दिल्ली के लिये)
- वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिये:
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये नया आयोग
- पराली जलाने को कम करने के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (THS) मशीन खरीदने हेतु किसानों को सब्सिडी
- वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड:
- NAQMP के तहत सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिये चार वायु प्रदूषकों अर्थात् SO 2, NO 2, PM 10 और PM 2.5 की पहचान की गई है।
UPSC सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक के मूल्य की गणना में सामान्यतः निम्नलिखित में से किस वायुमंडलीय गैस को ध्यान में रखा जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प b सही है। मेन्सप्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के प्रमुख बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से यह किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC)। मेन्स के लिये:भारत की खाद्य सुरक्षा पर प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY) का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY) को दिसंबर 2022 तक (और तीन महीने के लिये) विस्तारित करने की घोषणा की।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY):
- परिचय:
- ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ को कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में गरीब और संवेदनशील वर्ग की सहायता करने के लिये ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज’ (PMGKP) के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था।
- इस योजना के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के माध्यम से पहले से ही प्रदान किये जा रहे 5 किलोग्राम अनुदानित खाद्यान्न के अलावा प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत 5 किलोग्राम अतिरिक्त अनाज (गेहूँ या चावल) मुफ्त में उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- प्रारंभ में इस योजना की शुरुआत तीन माह (अप्रैल, मई और जून 2020) की अवधि के लिये की गई थी, जिसमें कुल 80 करोड़ राशन कार्डधारक शामिल थे। बाद में इसे सितंबर 2020 तक बढ़ा दिया गया था।
- वित्त मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय है।
- देश भर में लगभग 5 लाख राशन की दुकानों से वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) योजना के तहत कोई भी प्रवासी श्रमिक या लाभार्थी पोर्टेबिलिटी के माध्यम से मुफ्त राशन का लाभ उठा सकता है।
- लागत: सभी चरणों के लिये PMGKAY का कुल खर्च लगभग91 लाख करोड़ रुपए होगा।
- चुनौतियाँ: एक प्रमुख मुद्दा यह है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लाभार्थी अंतिम जनगणना (2011) पर आधारित हैं, हालाँकि तब से खाद्य-असुरक्षा से जुड़े लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो कि अब इस योजना के तहत शामिल नहीं हैं।
- मुद्दे:
- महँगा: सस्ते अनाज की प्रचुर आपूर्ति की आवश्यकता को बनाए रखना और बढ़ाना सरकार के लिये बहुत महँगा है। वर्ष 2022 में भारत को गेहूँ और चावल के निर्यात को प्रतिबंधित करना पड़ा, क्योंकि अनिश्चित मौसम के कारण फसल को नुकसान हुआ, खाद्य कीमतों पर दबाव बढ़ गया, वैश्विक कृषि बाज़ारों में संकट की स्थिति देखी गई।
- राजकोषीय घाटे में वृद्धि: यह राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के4% तक सीमित करने के सरकार के लक्ष्य के लिये जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
- मुद्रास्फीति
- कार्यक्रम में लिये गए निर्णय मुद्रास्फीति को भी प्रभावित कर सकते हैं। चावल और गेहूँ की कीमतें जो कि भारत की खुदरा मुद्रास्फीति का लगभग 10% हिस्सा हैं, लू के प्रकोप और अनियमित मानसून के कारण इनके उत्पादन में कमी आई है तथा इसी वजह से उनकी कीमतों में तेज़ी देखी जा रही है।
सरकार की संबद्ध पहलें:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- तिलहन, दलहन, पाम ऑयल और मोटे अनाज पर एकीकृत योजनाएँ (ISOPOM)
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम
मेन्स:प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? खाद्य सुरक्षा विधेयक ने भारत में भुखमरी और कुपोषण को खत्म करने में कैसे मदद की है? (2021) |
स्रोत : द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
PFI पर बैन
प्रिलिम्स के लिये:पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम मेन्स के लिये:आंतरिक सुरक्षा के प्रबंधन एवं आतंकवाद से निपटने में सरकारी हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और उससे जुड़े संगठनों पर आतंकी संबंध रखने की वजह से पाँच साल के लिये प्रतिबंध लगा दिया है।
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया:
- PFI का गठन वर्ष 2007 में दक्षिण भारत में तीन मुस्लिम संगठनों के विलय द्वारा किया गया था। ये संगठन केरल में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु में मनिथा नीथी पासराय हैं।
- PFI के गठन की औपचारिक घोषणा 16 फरवरी, 2007 को “एम्पॉवर इंडिया कॉन्फ्रेंस” के दौरान बंगलूरू में आयोजित एक रैली में की गई थी।
केंद्र ने PFI पर क्या प्रतिबंध लगाए हैं?
- विषय:
- गृह मंत्रालय ने PFI और उसके सहयोगियों को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया है जिसमें निन्मलिखित शामिल हैं:
- रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल (AIIC), नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO), नेशनल वीमेंस फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन तथा रिहैब फाउंडेशन, केरल।
- गृह मंत्रालय ने PFI और उसके सहयोगियों को "गैरकानूनी संगठन" घोषित किया है जिसमें निन्मलिखित शामिल हैं:
- प्रतिबंध का कारण:
- भारत सरकार के अनुसार, PFI के कुछ संस्थापक सदस्य स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के नेता हैं और जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) के साथ भी उनकेे संबंध हैं तथा ये दोनों ही प्रतिबंधित संगठन हैं।
- इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) जैसे वैश्विक आतंकवादी समूहों के साथ PFI के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के कई उदाहरण हमें देखने को मिलते हैं।
गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Act-UAPA):
- परिचय:
- मूल रूप से UAPA को वर्ष 1967 में लागू किया गया था। इसे वर्ष 2004 और वर्ष 2008 में आतंकवाद विरोधी कानून के रूप में संशोधित किया गया था।
- अगस्त 2019 में संसद ने कुछ आधारों पर व्यक्तियों को आतंकवादी के रूप में नामित करने के लिये UAPA (संशोधन) बिल, 2019 को मंज़ूरी दी।
- आतंकवाद से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये यह सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं से अलग है और इसके नियम सामान्य अपराधों के नियमों से अलग हैं। जहाँ अभियुक्तों के संवैधानिक सुरक्षा उपायों को कम कर दिया गया है।
- प्रावधान:
- धारा 7:
- UAPA की धारा 7 सरकार को "गैरकानूनी संगठन" द्वारा "धन के उपयोग पर रोक लगाने" की शक्ति देती है।
- इसमें कहा गया है कि किसी संगठन के प्रतिबंधित होने के बाद यदि केंद्र सरकार जाँच के बाद संतुष्ट हो जाती है कि "ऐसे किसी भी व्यक्ति/संगठन के पास उपलब्ध धन, प्रतिभूतियाँ या क्रेडिट हैं जो गैरकानूनी संगठन के उद्देश्य के लिये उपयोग किये जा रहे हैं या उपयोग किये जाने की संभावना है तो केंद्र सरकार लिखित आदेश द्वारा उस व्यक्ति/संगठन को ऐसे धन, प्रतिभूतियों के भुगतान करने, वितरित करने, स्थानांतरित करने या अन्यथा किसी भी तरीके से व्यवहार करने से रोक सकती है।
- यह कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे संगठनों के परिसरों की तलाशी लेने और उनकी लेखा पुस्तकों की जाँच करने का अधिकार भी देती है।
- धारा 8:
- UAPA की धारा 8 केंद्र सरकार को “किसी भी स्थान को अधिसूचित करने का अधिकार देती है, जो उसकी राय में इस तरह के गैरकानूनी संगठन के उद्देश्य के लिये उपयोग किया जाता है”।
- यहाँ “स्थान” में घर या इमारत, या इसका हिस्सा, या यहाँ तक कि एक तम्बू भी शामिल है।
- धारा 10 :
- UAPA की धारा 10 प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता को अपराध बनाती है।
- इसमें कहा गया है कि प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने पर दो साल की कैद की सज़ा हो सकती है और कुछ परिस्थितियों में इसे आजीवन कारावास तथा यहाँ तक कि मृत्युदंड तक बढ़ाया जा सकता है।
- यह प्रतिबंधित संगठन के उद्देश्यों की सहायता करने वाले किसी भी व्यक्ति पर लागू होता है।
- धारा 7:
- UAPA न्यायाधिकरण:
- परिचय:
- UAPA, सरकार द्वारा गठित उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के तहत न्यायाधिकरण का प्रावधान करता है, ताकि उसके प्रतिबंध लंबे समय तक कानूनी रूप से सुरक्षित रहे।
- UAPA की धारा 3 के तहत केंद्र द्वारा किसी संगठन को "गैरकानूनी" घोषित करने के आदेश जारी किये जाते हैं।
- प्रावधान के अनुसार "इस तरह की कोई भी अधिसूचना तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक कि न्यायाधिकरण ने धारा 4 के तहत किये गए आदेश द्वारा उसमें की गई घोषणा की पुष्टि नहीं कर दी हो और आदेश आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित नहीं हो गया हो"।
- सरकारी आदेश तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक न्यायाधिकरण इसकी पुष्टि नहीं कर देता।
- असाधारण परिस्थितियों में इसके कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने के बाद अधिसूचना तुरंत प्रभाव में आ सकती है। न्यायाधिकरण इसका समर्थन या अस्वीकार कर सकता है।
- शक्तियाँ:
- न्यायाधिकरण के पास अपनी स्वयं की प्रक्रिया को विनियमित करने की शक्ति है, जिसमें वह स्थान भी शामिल है जहाँ वह अपनी बैठकें आयोजित करता है। इस प्रकार यह उन राज्यों से संबंधित आरोपों के लिये विभिन्न राज्यों में सुनवाई कर सकता है।
- पूछताछ करने के लिये न्यायाधिकरण के पास वही शक्तियाँ हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कोर्ट में निहित हैं।
- परिचय:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: भारत सरकार ने हाल ही में गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, (UAPA), 1967 और NIA अधिनियम में संशोधन करके आतंकवाद विरोधी कानूनों को मज़बूत किया है। मानवाधिकार संगठनों द्वारा UAPA का विरोध करने की संभवना और कारणों पर चर्चा करते हुए प्रचलित सुरक्षा वातावरण के संदर्भ में परिवर्तनों का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना
प्रिलिम्स के लिये:पूंजीगत निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता, प्रधानमंत्री गति शक्ति मास्टर प्लान, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, ऑप्टिकल फाइबर केबल। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, वृद्धि और विकास, बुनियादी ढाँचा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने वर्ष 2022-23 के लिये पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना शुरू की है।
पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना:
- परिचय:
- इस योजना के तहत राज्य सरकारों को पूंजी निवेश परियोजनाओं के लिये 50 वर्षीय ब्याज़ मुक्त ऋण के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये राज्यों को कुल 1 लाख करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता दी जाएगी।
- इस योजना के तहत दिया जाने वाला ऋण वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये राज्यों को दी जाने वाली सामान्य उधार सीमा से अधिक होगा और इसे उसी वित्तीय वर्ष में खर्च करना होगा।
- योजना हेतु पात्र:
- नई परियोजनाओं या चल रही पूंजीगत परियोजनाओं में लंबित बिलों के निपटान के लिये।
- राज्य अपनी वरीयता/प्राथमिकता दर्शाते हुए आवंटित निधि से अधिक मूल्य की परियोजनाएँ प्रस्तुत कर सकते हैं।
- योजना के विभिन्न भाग:
- पूंजीगत कार्यों के लिये (प्रधानमंत्री गति शक्ति मास्टर प्लान को प्राथमिकता मिलेगी); प्रधानमंत्री गति शक्ति से संबंधित खर्च; प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना; डिजिटलीकरण के लिये प्रोत्साहन; ऑप्टिकल फाइबर केबल; शहरी सुधार; विनिवेश और मुद्रीकरण।
- अयोग्यता: 5 करोड़ रुपए से कम (पूर्वोत्तर के लिये 2 करोड़) के पूंजीगत परिव्यय वाली परियोजनाएँ और पूंजीगत परिव्यय के बावजूद मरम्मत एवं खरखाव परियोजनाएँ पात्र नहीं हैं।
पूंजीगत व्यय:
- अर्थ:
- पूंजीगत व्यय मशीनरी, उपकरण, भवन, स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा आदि के विकास पर सरकार द्वारा खर्च किया गया धन है।
- इसमें सरकार द्वारा भूमि और निवेश जैसी अचल संपत्तियों के अधिग्रहण पर होने वाला खर्च भी शामिल है जो भविष्य में लाभ या लाभांश देता है।
- संपत्ति के निर्माण के साथ-साथ ऋण का पुनर्भुगतान भी पूंजीगत व्यय है, क्योंकि यह देयता को कम करता है।
- पूंजीगत व्यय निवेश या विकास संबंधी व्यय से जुड़ा होता है, जहाँ व्यय का लाभ भविष्य में वर्षों तक प्राप्त होता है।
- महत्त्व:
- पूंजीगत व्यय प्रकृति में दीर्घकालिक है और उत्पादन हेतु सुविधाओं के संयोजन या सुधार एवं परिचालन दक्षता को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को कई वर्षों तक राजस्व उत्पन्न करने की अनुमति देता है।
- इससे श्रम भागीदारी को बढ़ावा मिलने के साथ भविष्य में अर्थव्यवस्था में अधिक उत्पादन करने की क्षमता को बढ़ावा मिलता है।
- राजस्व व्यय से अंतर:
- पूंजीगत व्यय, जिससे भविष्य के लिये संपत्ति का निर्माण होता है, के विपरीत राजस्व व्यय से न तो संपत्ति का निर्माण होता और न ही इससे सरकार के किसी दायित्व में कमी आती है।
- कर्मचारियों का वेतन, पिछले कर्ज पर ब्याज़ भुगतान, सब्सिडी, पेंशन आदि राजस्व व्यय की श्रेणी में आते हैं। यह प्रकृति में आवर्ती है।
निम्नलिखित में से कौन भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल है/हैं? (2016)
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स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
एकल महिलाओं के लिये गर्भपात अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:गर्भपात कानून, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP (2021), प्रजनन अधिकार। मेन्स के लिये:एकल महिलाओं के लिये गर्भपात का अधिकार, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी MTP एक्ट (2021) और इसका महत्त्व । |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने देश में सभी महिलाओं को (वैवाहिक स्थिति से इतर) सुरक्षित और कानूनी गर्भपात देखभाल प्राप्त करने के लिये 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति दी है।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- पुराने कानून का विस्तार:
- इसने 51 साल पुराने गर्भपात कानून (द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971) को विस्तारित किया है, जो अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने से रोकता है।
- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 और इसके नियम 2003 के तहत 20 सप्ताह से 24 सप्ताह की गर्भवती अविवाहित महिलाओं को पंजीकृत चिकित्सकों की मदद से गर्भपात करने का अधिकार नहीं है।
- MTP अधिनियम में नवीनतम संशोधन 2021 में किया गया था।
- इसने 51 साल पुराने गर्भपात कानून (द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971) को विस्तारित किया है, जो अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त करने से रोकता है।
- अनुच्छेद 21 के तहत चयन का अधिकार:
- न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और निजता के अधिकार अविवाहित महिला को यह चुनने का अधिकार देते हैं कि विवाहित महिला के समान ही बच्चे को जन्म देना है या नहीं।
- अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार:
- न्यायालय ने कहा है कि 20-24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्थ वाली सिंगल या अविवाहित महिलाओं को गर्भपात करने से रोकना, जबकि विवाहित महिलाओं को ऐसी स्थिति में गर्भपात की अनुमति देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
- एकल महिला को एक विवाहित गर्भवती महिला के समान "वैवाहिक परिस्थितियों में परिवर्तन" का सामना करना पड़ सकता है। हो सकता है कि उसे छोड़ दिया गया हो या वह बिना नौकरी के हो या वह गर्भावस्था के दौरान हिंसा का शिकार भी हो सकती है।
- संवैधानिक रूप से उचित नहीं:
- विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव संवैधानिक रूप से सही नहीं है।
- कानून के लाभ एकल और विवाहित महिलाओं को समान रूप से प्राप्त हैं।
- प्रजनन अधिकारों का विस्तार:
- प्रजनन अधिकार शब्द बच्चे होने या न होने तक ही सीमित नहीं है।
- महिलाओं के प्रजनन अधिकारों में "महिलाओं के अधिकारों एवं स्वतंत्रता को शामिल किया गया है।
- प्रजनन अधिकारों में शिक्षा तक पहुँच और गर्भनिरोधक एवं यौन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी का अधिकार, सुरक्षित तथा कानूनी गर्भपात चुनने का अधिकार और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल का अधिकार शामिल है।
- वैवाहिक बलात्कार से संबंधित दृष्टिकोण:
- MTP अधिनियम का उद्देश्य महिला के प्रजनन और निर्णयात्मक स्वायत्तता के अधिकार के तहत वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार की श्रेणी में शामिल करना है।
भारतीय संदर्भ में गर्भपात कानून:
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात अवैध था और ऐसा करने पर एक महिला के लिये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 के तहत तीन वर्ष की कैद और/अथवा ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया था।
- 1960 के दशक के मध्य में सरकार ने शांतिलाल शाह समिति का गठन किया और डॉ. शांतिलाल शाह की अध्यक्षता वाले समूह को गर्भपात के मामले की जाँच करने तथा यह तय करने के लिये कहा गया कि क्या भारत को इसके लिये एक कानून की आवश्यकता है अथवा नहीं।
- शांतिलाल शाह समिति की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में एक चिकित्सकीय समापन विधेयक पेश किया गया था तथा अगस्त 1971 में इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।
- 1 अप्रैल, 1972 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971 जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू हुआ।
- इसके अलावा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312, गर्भवती महिला की सहमति से गर्भपात किये जाने पर भी स्वेच्छा से "गर्भपात का कारण" अपराध है, सिवाय इसके कि जब गर्भपात महिला के जीवन को बचाने के लिये किया जाता है।
- इसका अर्थ यह है कि स्वयं महिला पर या चिकित्सक सहित किसी अन्य व्यक्ति पर गर्भपात का मुकदमा चलाया जा सकता है।
- परिचय:
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP), 1971 एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
- गर्भधारण के 12 सप्ताह बाद तक के गर्भपात के लिये एक डॉक्टर की राय ज़रूरी थी।
- इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे- जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, बलात्कार के कारण गर्भधारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो। 12 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के संदर्भ में इन सभी बातों का निर्धारण करने के लिये दो डॉक्टरों की राय आवश्यक थी।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP), 1971 एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
- हाल के संशोधन:
- वर्ष 2021 में संसद ने 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक डॉक्टर की सलाह के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिये कानून में बदलाव किया।
- संशोधित कानून के तहत 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये दो डॉक्टरों की राय की आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये, नियम महिलाओं की सात श्रेणियों को निर्दिष्ट करते हैं जो MTP अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों की धारा 3 बी के तहत समाप्ति की मांग करने के लिये पात्र होंगी।
- यौन हमले या बलात्कार की स्थिति में।
- अवयस्क।
- विधवा और तलाक होने जैसी परिस्थितियों अर्थात् वैवाहिक स्थिति में बदलाव के समय की गर्भावस्था।
- शारीरिक रूप से विकलांग महिलाएँ (विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख विकलांगता)।
- मानसिक रूप से विक्षिप्त महिलाएँ।
- भ्रूण की विकृति जिसमें जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम होता है या यदि बच्चा पैदा होता है तो वह गंभीर रूप से विकलांग, शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है।
- मानवीय आधार या आपदाओं या आपात स्थितियों में गर्भावस्था वाली महिलाएँ।
चिंताएँ:
- असुरक्षित गर्भपात के मामले:
- संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु दर का तीसरा प्रमुख कारण असुरक्षित गर्भपात है और असुरक्षित गर्भपात के कारण हर दिन करीब 8 महिलाओं की मौत हो जाती है।
- विवाह से पूर्व गर्भधारण करने वाली और गरीब परिवारों की महिलाओं के पास अवांछित गर्भधारण को रोकने के लिये असुरक्षित या अवैध तरीकों का इस्तेमाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।
- ग्रामीण भारत में चिकित्सा विशेषज्ञ की कमी:
- लैंसेट के वर्ष 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, 2015 तक भारत में प्रतिवर्ष 15.6 मिलियन गर्भपात हुए।
- MTP अधिनियम केवल स्त्री रोग या प्रसूति विशेषज्ञ डॉक्टरों को गर्भपात करने की स्वीकृति देता है।
- हालाँकि ग्रामीण स्वास्थ्य साँख्यिकी पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण भारत में प्रसूति-स्त्री रोग विशेषज्ञों की 70% कमी है।
- अवैध गर्भपात के कारण मातृ मृत्यु दर में वृद्धि:
- चूँकि कानून अपनी मर्जी से गर्भपात की अनुमति नहीं देता है, यह महिलाओं को असुरक्षित परिस्थितियों में अवैध गर्भपात करने के लिये प्रेरित करता है, जिसके परिणामस्वरूप मातृ मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
आगे की राह
- गर्भपात पर भारत के कानूनी ढाँचे को काफी हद तक प्रगतिशील माना जाता है, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों की तुलना में जहाँ ऐतिहासिक रूप से और वर्तमान समय में गर्भपात पर गंभीर प्रतिबंध है।
- इसके अलावा सार्वजनिक नीति निर्माण में गंभीरता के साथ पुनर्विचार करने के साथ ही सभी हितधारकों को महिलाओं और उनके प्रजनन अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।