डेली न्यूज़ (30 Jul, 2022)



राज्य विधानसभा की बैठकें

प्रिलिम्स के लिये:

राज्य विधानमंडल, संसद, अध्यादेश, गैर-सरकारी सदस्य विधेयक, संविधान के कामकाज़ की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग

मेन्स के लिये:

सदन की बैठकों का महत्त्व, निष्क्रिय बैठकों पर सुझाव, बैठकों में वृद्धि से संबंधित लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा "राज्य कानूनों की वार्षिक समीक्षा, 2021"  नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई थी।

  • रिपोर्ट के अनुसार केरल को वर्ष 2021 में पहला स्थान प्राप्त हुआ, जिसमें इसकी विधानसभा की बैठक 61 दिनों तक चली, जो किसी भी राज्य में सबसे अधिक है।
  • केरल में 144 अध्यादेश भी जारी किये गए, जो पिछले साल देश में सबसे अधिक थे।

State-assemblies

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • बैठकें:
    • मणिपुर, ओडिशा, पंजाब और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने प्रक्रिया नियमों के माध्यम से बैठक के दिनों की न्यूनतम संख्या निर्धारित की है, जो पंजाब में 40 दिनों से लेकर उत्तर प्रदेश में 90 दिनों तक भिन्न-भिन्न है।
    • वर्ष 2005 में कर्नाटक सरकार ने कम-से-कम 60 दिनों तक की बैठक की शर्त के साथ कर्नाटक राज्य विधानमंडल में सरकारी कामकाज का संचालन अधिनियम भी प्रस्तुत किया था।
  • अध्यादेश:
    • इस मामले में केरल के बाद 20 अध्यादेशों के साथ आंध्र प्रदेश और 15 के साथ महाराष्ट्र का स्थान रहा, जिनमें से 33 अध्यादेशों को प्रतिस्थापित करने के लिये लाए गए विधेयकों ने अधिनियम का रूप लिया।
    • आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश ने भी बजट प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिये अध्यादेश जारी किये।
  • विधेयकों के पारित होने की स्थिति:
    • 28 राज्य विधानसभाओं द्वारा अपनाए गए विधेयकों में से 44% विधेयकों को पेश किये जाने के एक दिन के भीतर ही पारित कर दिया गया।
      • गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और बिहार उन आठ राज्यों में शामिल थे, जिन्होंने पुरःस्थापन के दिन सभी विधेयकों को पारित किया।
    • कर्नाटक, केरल, मेघालय, ओडिशा और राजस्थान ने अपने अधिकांश विधेयकों को पारित करने में पाँच दिन से अधिक का समय लिया।
      • केरल में 94% विधेयकों को विधायिका में पेश किये जाने के कम-से-कम पाँच दिनों के बाद पारित किया गया।
      • मेघालय के संबंध में यह दर 80% और कर्नाटक के मामले में 70% रही।
  • बैठकों के फोकस क्षेत्र:
    • इस विषय से संबंधित वर्ष 2021 में पारित सभी कानूनों में से 21% के साथ शिक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता थी।
    • शिक्षा, कराधान और शहरी शासन के बाद वर्ष 2021 में पारित राज्य कानूनों का सबसे बड़ा हिस्सा था।
    • ऑनलाइन गेमिंग, राज्य के स्थानीय उम्मीदवारों के लिये नौकरियों में आरक्षण तथा महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कई अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण कानून शामिल हैं।

एक निष्क्रिय राज्यसभा:

  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग:
    • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग (2000-02), जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वेंकटचलैया ने की थी:
      • विधायिका वाले राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के सदन:
        • 70 से कम सदस्यों (उदाहरण: पुद्दुचेरी) वाली विधायिका को वर्ष में कम-से-कम 50 दिन की बैठक करनी चाहिये।
        • अन्य राज्यों के सदनों (जैसे-तमिलनाडु) के लिये वर्ष में कम-से-कम 90 दिन की बैठक करना अनिवार्य है।
  • पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन:
    • जनवरी 2016 के दौरान गांधीनगर में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन ने सुझाव दिया:
      • राज्य विधानसभाओं में एक वर्ष में कम-से-कम 60 दिन की बैठक हो।
        • PRS के अनुसार, वर्ष 2016 और 2021 के बीच 23 राज्य विधानसभाओं में औसतन 25 दिनों की बैठक हुई थी।

सदन की बैठकों में वृद्धि से लाभ:

  • यथेष्ठ/पर्याप्त चर्चा:
    • सदनों (राज्य या संसद) में बैठक के दिनों में वृद्धि कर सदस्यों को विधेयकों पर चर्चा के लिये अधिक समय मिलेगा, साथ ही तथ्य और तर्क के आधार पर स्वस्थ बहस होगी जो अंततः सदन के स्वस्थ कामकाज को सुनिश्चित करेगी।
  • विधेयकों को पारित करने में सुगमता:
    • जैसे-जैसे सदन में बैठकों की संख्या बढ़ती है, किसी विशेष सत्र के दौरान सदन के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले विधेयकों की संख्या में वृद्धि होती है, इसके साथ ही पारित होने वाले विधेयकों की संख्या में भी वृद्धि होती है।
      • विभिन्‍न क्षेत्रों में पारित विधेयकों की संख्‍या में वृद्धि सरकार को कुशल एवं प्रभावी शासन लाने में सक्षम बनाएगी।
  • गिलोटिन समापन:
    • यह तब होता है जब समय की कमी के कारण एक विधेयक (जिस पर चर्चा हो चुकी है) के साथ किसी अन्य विधेयक या प्रस्ताव के ऐसे खंडों को भी मतदान के लिये रखा जाता है जिस पर चर्चा नहीं की गई है (क्योंकि चर्चा के लिये आवंटित समय समाप्त हो चुका होता है)।
      • बैठकों में वृद्धि से चर्चा के लिये अधिक समय मिलेगा और गिलोटिन समापन के मामलों में कमी आएगी।
  • निजी सदस्य विधेयक:
    • वर्ष 1952 के बाद से हज़ारों में से केवल 14 निजी सदस्य विधेयक ही कानून बने।
      • बैठकों में वृद्धि से निजी सदस्यों को न केवल विधेयक तैयार करने और सदन में पेश करने के लिये अधिक समय मिलेगा, बल्कि इसके पारित होने हेतु विस्तृत एवं स्वस्थ चर्चा भी होगी।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न. जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भेजा जाता है, तो उसे किसके द्वारा पारित किया जाता है: (2015)

(a) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से
(b) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के तीन-चौथाई बहुमत से
(c) सदनों के दो-तिहाई बहुमत से
(d) सदनों के पूर्ण बहुमत

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 108 संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक से संबंधित है। संसद की संयुक्त बैठक राष्ट्रपति द्वारा तब बुलाई जाती है जब एक सदन द्वारा पारित विधेयक (साधारण) दूसरे सदन द्वारा अस्वीकार कर दिया जाता है, या दोनों सदन अंततः विधेयक में किये जाने वाले संशोधनों पर असहमत होते हैं, या यदि 6 महीने से अधिक समय बीत चुका है तो जिस सदन में पेश किया गया है वह विधेयक पर कोई कार्रवाई के बिना पारित कर दिया हो।

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न. भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों के संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों को गिनाइये, जब सामान्यत: ऐसा होता है और उन अवसरों को भी जब ऐसा नहीं किया जा सकता है, इसके कारण भी बताइये? (2017)

स्रोत: द हिंदू


चाबहार बंदरगाह

प्रिलिम्स के लिये:

शंघाई सहयोग संगठन (SCO), चाबहार बंदरगाह, ओमान की खाड़ी, इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)।

मेन्स के लिये:

क्षेत्रीय कनेक्टिविटी बढ़ाने में चाबहार बंदरगाह का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की विदेश मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान भारत ने इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने में चाबहार बंदरगाह की एक बड़ी भूमिका पर ज़ोर दिया।

  • भारत अगले वर्ष SCO की अध्यक्षता संभालेगा।

अन्य बिंदु:

  • इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत ने अफगानिस्तान को भुखमरी और खाद्य असुरक्षा से लड़ने में मदद करने के लिये मानवीय सहायता प्रदान की।
  • यूक्रेन संघर्ष से उत्पन्न ऊर्जा संकट और खाद्य संकट की समस्याओं को उठाया गया।
  • आतंकवाद के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • संगठन में ईरान के प्रवेश की भी सराहना की गई।
    • ईरान के शामिल होने से SCO फोरम मज़बूत होगा क्योंकि अब सभी सदस्य देशों को ईरान में चाबहार बंदरगाह की सुविधाओं का उपयोग करने का अवसर मिलेगा।

चाबहार बंदरगाह:

  • परिचय:
    • चाबहार बंदरगाह दक्षिणपूर्वी ईरान में ओमान की खाड़ी में स्थित है।
    • यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिसकी समुद्र तक सीधी पहुँच है।
    • यह ऊर्जा संपन्न ईरान के दक्षिणी तट पर सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है।
    • चाबहार बंदरगाह को मध्य एशियाई देशों के साथ भारत, ईरान और अफगानिस्तान द्वारा व्यापार के सुनहरे अवसरों का प्रवेश द्वार माना जाता है।

Gwadar

  • महत्त्व:
    • चाबहार बंदरगाह सभी को वैकल्पिक आपूर्ति मार्ग का विकल्प प्रदान करता है, इस प्रकार व्यापार के संबंध में पाकिस्तान के महत्त्व को कम करता है।
    • यह भारत को समुद्री-भूमि मार्ग का उपयोग करके अफगानिस्तान में माल के परिवहन में पाकिस्तान को बायपास करने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
      • वर्तमान में पाकिस्तान, भारत को अपने क्षेत्र से अफगानिस्तान तक यातायात की अनुमति नहीं देता है।
    • यह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को गति प्रदान करेगा, जिसमें दोनों रूस के साथ प्रारंभिक हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
      • ईरान इस परियोजना का प्रमुख प्रवेश द्वार है।
      • यह अरब में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करेगा।

INSTC

अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC):

  • परिचय:
    • यह सदस्य देशों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सेंट पीटर्सबर्ग में 12 सितंबर, 2000 को स्थापित एक बहु-मॉडल परिवहन परियोजना है।
      • अज़रबैजान आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिज़ गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया पर्यवेक्षक हैं। 
    • यह माल परिवहन के लिये जहाज़, रेल और सड़क मार्ग के 7,200 किलोमीटर लंबे मल्टी-मोड नेटवर्क को लागू करता है, जिसका उद्देश्य भारत और रूस के बीच परिवहन लागत को लगभग 30% कम करना तथा पारगमन समय को 40 दिनों के आधे से अधिक कम करना है।
    • यह कॉरिडोर इस्लामिक गणराज्य ईरान के माध्यम से हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ता है तथा रूसी संघ के माध्यम से सेंट पीटर्सबर्ग एवं उत्तरी यूरोप से जुड़ा हुआ है।
    • इस मार्ग से मुख्य रूप से भारत, ईरान, अज़रबैजान और रूस से माल ढुलाई शामिल है।
  • उद्देश्य:
    • कॉरिडोर का उद्देश्य मुंबई, मॉस्को, तेहरान, बाकू, अस्त्रखान आदि जैसे प्रमुख शहरों के बीच व्यापार संपर्क बढ़ाना है।
  • महत्त्व: 
    • इसे चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के व्यवहार्य और उचित विकल्प के रूप में प्रदान किया जाएगा।
    • इसके अलावा यह क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाएगा।

आगे की राह

  • यह परियोजना व्यापार को बढ़ावा देगी क्योंकि भारत को अफगानिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिज़स्तान, कज़ाखस्तान, रूस और यूरोप से आगे तक पहुँच प्राप्त होगी।
  • यह परियोजना अरब सागर में चीनी उपस्थिति का मुकाबला करने में भी महत्त्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा यह इस क्षेत्र में लोगों के बीच संपर्क और व्यापार एवं निवेश को भी बढ़ावा देगा, भविष्य में इसे यूरोपीय संघ या आसियान जैसे बाज़ार में आकार दिया जा सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

Q. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है?(2017)

(a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी।
(b) तेल-उत्पादक अरब देशों से भारत के संबंध सुदृढ़ होंगे।
(c) अफगानिस्तान और मध्य एशिया में पहुँच के लिये भारत को पाकिस्तान पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।
(d) पाकिस्तान, इराक और भारत के बीच गैस पाइपलाइन का संस्थापन सुकर बनाएगा और उसकी सुरक्षा करेगा।

उत्तर: C 

  • चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन के लिये वर्ष 2016 में भारत और ईरान के बीच एक वाणिज्यिक अनुबंध (10 साल की अवधि के लिये) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • चाबहार बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान तथा मध्य एशियाई क्षेत्र में पहुँच के लिये एक वैकल्पिक व विश्वसनीय व प्रत्यक्ष समुद्री मार्ग प्रदान करेगा।
  • यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच के लिये पाकिस्तान पर निर्भरता को समाप्त करेगा। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

मेन्स:

Q. आप 'द स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' से क्या समझते हैं? यह भारत को कैसे प्रभावित करता है? इसका मुकाबला करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों की संक्षिप्त रूपरेखा तैयार कीजिये। (2013)

स्रोत: द हिंदू


सांसदों के निलंबन के संबंध में नियम

प्रिलिम्स के लिये:

संसद सदस्यों का निलंबन, संसद के सदनों से संबंधित प्रावधान

मेन्स के लिये:

सांसदों के निलंबन के नियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने चार (संसद सदस्य) सांसदों को निलंबित कर दिया और राज्यसभा ने भी 23 सांसदों को निलंबित कर दिया क्योंकि वे सदन की कार्यवाही को बाधित कर रहे थे।

सांसदों द्वारा किया गया व्यवधान:

  • राजनीतिक नेताओं और पीठासीन अधिकारियों द्वारा किये गए विश्लेषण के अनुसार, व्यवधान पैदा करने के चार मुख्य कारण हैं:
  • महत्त्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिये सांसदों के पास पर्याप्त समय का न होना।
  • सरकार की गैर-जवाबदेही तथा और ट्रेज़री बेंच (मंत्री पक्ष) का प्रतिशोधी रवैया।
  • राजनीतिक दलों द्वारा जान-बूझकर राजनीतिक या प्रचार कारणों से अशांति पैदा करना।
  • संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने वाले सांसदों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की विफलता

सांसदों को कौन निलंबित कर सकता है?

  • सामान्य सिद्धांत:
    • सामान्य सिद्धांत के अनुसार, यह लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति का कर्तव्य है कि वह व्यवस्था बनाए रखें ताकि सदन सुचारू रूप से चल सके।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि कार्यवाही उचित तरीके से संचालित हो, अध्यक्ष/सभापति को किसी सदस्य को सदन से हटने के लिये मज़बूर करने का अधिकार है।
  • प्रक्रिया और आचरण के नियम:
    • नियम 373: अध्यक्ष किसी सदस्य के आचरण में गड़बड़ी पाए जाने पर उसे तुरंत सदन से हटने का निर्देश दे सकता है।
      • जिन सदस्यों को हटने का आदेश दिया गया है वे तुरंत ऐसा करेंगे और शेष दिन की बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।
    • नियम 374: अध्यक्ष उस सदस्य का नाम ले सकता है जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या सदन के नियमों का लगातार और जान-बूझकर उल्लंघन कर कार्य में बाधा डालता है।
      • इस प्रकार नामित सदस्य को शेष सत्र की अनधिक अवधि के लिये सदन से निलंबित कर दिया जाएगा।
      • इस नियम के अधीन निलंबित कोई सदस्य सदन से तुरंत हट जाएगा।
    • नियम 374A: नियम 374A को दिसंबर 2001 में नियम पुस्तिका में शामिल किया गया था।
      • घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में अध्यक्ष द्वारा नामित किये जाने पर सदस्य को लगातार पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये स्वतः निलंबित हो जाएगा।
    • नियम 255 (राज्यसभा): राज्यसभा की प्रक्रिया के सामान्य नियमों के नियम 255 के तहत सदन का पीठासीन अधिकारी संसद सदस्य के निलंबन का आह्वान कर सकता है।
      • सभापति इस नियम के अनुसार किसी भी सदस्य को जिसका आचरण उसकी राय में सही नहीं था या उच्छृंखल था निर्देश दे सकता है।
    • नियम 256 (राज्यसभा): यह सदस्यों के निलंबन का प्रावधान करती है।
      • सभापति किसी सदस्य को शेष सत्र से अनधिक अवधि के लिये परिषद की सेवा से निलम्बित कर सकता है।

निलंबन की शर्तें:

  • निलंबन की अधिकतम अवधि शेष सत्र के लिये है।
  • निलंबित सदस्य कक्ष में प्रवेश नहीं कर सकते हैं या समितियों की बैठकों में शामिल नहीं हो सकते हैं।
  • वे चर्चा या प्रस्तुत करने के लिये नोटिस देने के पात्र नहीं होंगे।
  • वह अपने प्रश्नों का उत्तर पाने का अधिकार खो देता है।

न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप:

  • संविधान का अनुच्छेद 122 कहता है कि संसदीय कार्यवाही पर अदालत के समक्ष सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
  • हालाँकि अदालतों ने विधायिका के प्रक्रियात्मक कामकाज में हस्तक्षेप किया है, जैसे-
    • महाराष्ट्र विधानसभा ने अपने 2021 के मानसून सत्र में 12 भाजपा विधायकों को एक साल के लिये निलंबित करने का प्रस्ताव पारित किया।
    • यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के सामने आया, जिसने माना कि मानसून सत्र के शेष समय के बाद भी प्रस्ताव कानून में अप्रभावी था।

आगे की राह

  • प्रचार या राजनीतिक कारणों से नियोजित संसदीय अपराधों और जान-बूझकर गड़बड़ी से निपटना मुश्किल है।
    • इसलिये विपक्षी सदस्यों को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिये और उन्हें अपने विचार रखने तथा सम्मानजनक तरीके से खुद को व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
  • जान-बूझकर व्यवधान और महत्त्वपूर्ण मुद्दे को उठाने के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न: लोकसभा अध्यक्ष के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करता/करती है।
  2. चुनाव के समय उसे सदन का सदस्य होना आवश्यक नहीं है, लेकिन निर्वाचन की तिथि से छह माह के भीतर उसे सदन का सदस्य चुना जाना चाहिये।
  3. यदि वह त्यागपत्र देने का इरादा रखता/रखती है, तो उसे त्यागपत्र में उपाध्यक्ष को संबोधित करना होगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: B

व्याख्या:

  • अध्यक्ष का चुनाव लोकसभा के सदस्यों द्वारा उसके सदस्यों में से किया जाता है (जितनी जल्दी हो सके, उसकी पहली बैठक के बाद)। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • जब भी अध्यक्ष का पद रिक्त होता है, लोकसभा रिक्ति को भरने के लिये किसी अन्य सदस्य का चुनाव करती है। अध्यक्ष के चुनाव की तिथि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है। आमतौर पर स्पीकर लोकसभा के कार्यकाल के दौरान अपने पद पर बना रहता है। हालाँकि उसे निम्नलिखित तीन मामलों में से किसी एक में अपना कार्यालय पहले खाली करना होगा।
  • यदि वह लोकसभा का सदस्य नहीं रहता है। यदि वह उपाध्यक्ष को लिखित रूप में त्यागपत्र देता है। अत: कथन 3 सही है।
  • यदि उसे लोकसभा के सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाता है। ऐसा प्रस्ताव 14 दिन की अग्रिम सूचना देकर ही पेश किया जा सकता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मुख्य परीक्षा:

Q भारतीय संविधान में संसद के दोनों सदनों का संयुक्त सत्र बुलाने का प्रावधान है। उन अवसरों  को गिनाइये जब सामान्यतः ऐसा किया जाता है और उन अवसरों को भी जब ऐसा नहीं किया जा सकता और इसका कारण भी बताइये। (2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गूगल स्ट्रीट व्यू: राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र, रिमोट सेंसिंग, जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली), जीएनएसएस (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम), 3 डी मॉडलिंग, भारत में भू-स्थानिक क्षेत्र के लिये नए दिशा-निर्देश।

मेन्स के लिये:

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र - चुनौतियाँ और अवसर, भू-स्थानिक क्षेत्र में उदारीकरण का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

गूगल स्ट्रीट व्यू को राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP), 2021 के दिशा-निर्देशों के तहत भारत के दस शहरों में लॉन्च किया गया है।

  • NGP, 2021 भारतीय कंपनियों को मैप संबंधी आँकड़े एकत्र करने और दूसरों को लाइसेंस देने की सुविधा देती है।

गूगल स्ट्रीट व्यू:

  • परिचय:
    • गूगल स्ट्रीट व्यू, शहर की सड़कों पर घूमने वाले डेटा संग्राहकों द्वारा वाहनों या बैकपैक्स पर लगे विशेष कैमरों का उपयोग करके कैप्चर किये गए स्थान का 360-डिग्री दृश्य है।
    • फिर छवियों को 360-डिग्री दृश्य बनाने के लिये एक साथ किया जाता है जिसे उपयोगकर्त्ता स्थान का विस्तृत दृश्य प्राप्त करने के लिये उपयोग कर सकते हैं।
      • यह एप का उपयोग करके या वेब व्यूअर के रूप में एंड्रॉइड और आईओएस पर देखने के लिये उपलब्ध है।
  • प्रतिबंध:
    • भारत में सरकारी संपत्तियों, रक्षा प्रतिष्ठानों और सैन्य क्षेत्रों जैसे प्रतिबंधित क्षेत्रों के लिये सड़क दृश्य/स्ट्रीट व्यू की अनुमति नहीं है।
    • इसका मतलब है कि दिल्ली जैसी जगह पर छावनी क्षेत्र स्ट्रीट व्यू कीे सीमा से बाहर होगा।
  • स्ट्रीट व्यू के साथ समस्याएँ:
    • पिछले कुछ वर्षों में स्ट्रीट व्यू के संबंध में बहुत सारी गोपनीयता और अन्य मुद्दों को उठाया गया है।
    • इनमें से बहुत से लोगों के चेहरे और अन्य पहचाने जाने योग्य पहलुओं, जैसे कार नंबर प्लेट और घर का नंबर, कैमरे द्वारा विभिन्न तरीकों से कैप्चर किये जा रहे हैं तथा उनका दुरुपयोग किया जाता हैं।
    • विशेष रूप से संवेदनशील स्थानों के संबंध में इस तरह के दृश्य उपलब्ध होने से सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी बढ़ गई हैं।
    • गूगल को भारत, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसे देशों में स्थानीय अधिकारियों के साथ समस्याएँ हैं

राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2021:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति, 2021 भू-स्थानिक क्षेत्र को उदार बनाती है और सार्वजनिक वित्त के उपयोग से उत्पन्न डेटासेट का लोकतंत्रीकरण करती है।
    • यह नीति नागरिकों और उद्यमों को देश के विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भू-स्थानिक डेटा एवं सूचना का उपयोग करने तथा सुरक्षा हितों की रक्षा करने हेतु सशक्त बनाने का प्रयास करती है।
    • यह भू-स्थानिक ज्ञान सृजन, कौशल सेट और विशेषज्ञता आदि को प्रोत्साहित करके देश के साथ-साथ विश्व स्तर पर भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने का प्रावधान करती है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • भारतीय सर्वेक्षण स्थलाकृतिक आँकड़ों को व्यापक रूप से और आसानी से सुलभ बनाएगा।
    • राष्ट्रीय डेटा साझाकरण और अभिगम्यता नीति (2012) के अनुसार सार्वजनिक धन का उपयोग करके उपलब्ध भू-स्थानिक डेटा संबंधी जानकारी साझा की जाएगी।
    • भू-स्थानिक डेटा के भंडारण स्वरूपों को मानकीकृत करने का प्रयास किया जाएगा ताकि यह एक इंटरऑपरेबल मशीन द्वारा पढ़े जाने केे रूप में उपलब्ध हो सके।
    • भू-स्थानिक डेटा शिक्षा के लिये एक मानकीकृत पाठ्यक्रम विकसित किया जाएगा।
    • सर्वेक्षणकर्त्ताओं जैसे पेशेवरों की प्रथाओं की समीक्षा करने और भू-स्थानिक शिक्षा में पाठ्यक्रमों के पूरा होने पर व्यक्तियों को प्रमाणित करने हेतु एक प्रमाणित निकाय का गठन किया जाएगा।
  • आवश्यकता:
    • विभिन्न सरकारी एजेंसियाँ अक्सर भू-स्थानिक डेटा का डिज़िटलीकरण और संग्रहण का कार्य करती हैं। अक्सर प्रयासों का दोहराव तब होता है जब कई एजेंसियां ऐसे डेटा को संग्रहीत करती हैं तो संसाधनों की बर्बादी होती है।
    • भू-स्थानिक डेटा भंडारण और प्रसार के प्रारूपों को मानकीकृत करके इस अपव्यय को कम करने की आवश्यकता है
    • यद्यपि लगभग 200 विश्वविद्यालयों/संस्थानों में भू-स्थानिक शिक्षा प्रदान की जाती है, लेकिन इसके पाठ्यक्रम में कोई मानकीकरण नहीं है।
    • व्यवसायों और व्यक्तियों दोनों सहित गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा भू-स्थानिक डेटा तक पहुँच प्रतिबंधित है।
    • सरकार द्वारा साझा किया गया डेटा अक्सर मशीन द्वारा पठनीय नहीं होता है।

भारत में भू-स्थानिक पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति:

  • सांख्यिकी:
    • भारतीय भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था का मूल्य वर्तमान में 38,972 करोड़ रुपए है जिसमे लगभग 4.7 लाख लोग कार्यरत हैं।
    • वर्ष 2021 में भू-स्थानिक बाज़ार में रक्षा और खुफिया (14.05%) क्षेत्र, शहरी विकास (12.93%) एवं यूटिलिटीज़ सेगमेंट,(11%) का वर्चस्व रहा जिसका कुल भू-स्थानिक बाज़ार में 37.98% का योगदान था।
  • क्षेत्र का महत्त्व:
    • एक संभावित क्षेत्र: 'भारत भू-स्थानिक अर्थ रिपोर्ट-2021’ के अनुसार, इस क्षेत्र में वर्ष 2025 के अंत तक 12.8% की दर से 63,100 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी होने की क्षमता है।
    • रोज़गार: अमेज़न, ज़ोमेटो जैसी निजी कंपनियाँ अपने वितरण कार्यों को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु इस तकनीक का उपयोग करती हैं, जिससे आजीविका सृजन में मदद मिलती है।
    • योजनाओं का क्रियान्वयन: गति शक्ति कार्यक्रम जैसी योजनाओं को भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके सुचारू रूप से लागू किया जा सकता है।
    • मेक इन इंडिया: इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से भारतीय कंपनियाँ गूगल मैप्स के भारतीय संस्करण की तरह स्वदेशी एप विकसित कर सकती हैं।
    • भूमि अभिलेखों का प्रबंधन: प्रौद्योगिकी का उपयोग कर बड़ी संख्या में जोत से संबंधित डेटा को उचित रूप से टैग और डिजिटाइज़ किया जा सकता है।
      • यह न केवल बेहतर लक्ष्यीकरण में मदद करेगा बल्कि न्यायालयों में भूमि विवादों की संख्या को भी कम करेगा।
    • संकट प्रबंधन: कोविड-19 टीकाकरण अभियान के दौरान भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का काफी बेहतरीन प्रयोग किया गया था।
    • इंटेलीजेंट मैप और मॉडल: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग इंटेलीजेंट मैप और मॉडल बनाने हेतु किया जा सकता है, जिसे STEM (विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित) के अनुप्रयोग में वांछित परिणाम प्राप्त करने हेतु अंतःक्रियात्मक रूप से या सामाजिक जाँच एवं नीति-आधारित अनुसंधान की वकालत करने हेतु उपयोग किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गिफ्ट सिटी और बुलियन एक्सचेंज

प्रिलिम्स के लिये:

IFSCA, IIBX, SEZ, RBI, SEBI।

मेन्स के लिये:

गिफ्ट सिटी और उसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

 हाल ही में प्रधानमंत्री ने गांधीनगर के गिफ्ट (GIFT) सिटी में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) के मुख्यालय भवन की आधारशिला रखी।

  • इमारत को प्रतिष्ठित संरचना के रूप में अवधारणाबद्ध किया गया है, जो अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र के रूप में GIFT-IFSC की बढ़ती प्रमुखता और विस्तार को दर्शाता है।
  • उन्होंने इंडिया इंटरनेशनल बुलियन एक्सचेंज (IIBX), GIFT-IFSC में भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय बुलियन एक्सचेंज, NSE IFSC-SGX कनेक्ट भी लॉन्च किया।

बुलियन एक्सचेंज:

  • बुलियन:
    • बुलियन उच्च शुद्धता के सोने और चाँदी को संदर्भित करता है जिसे अक्सर बार, सिल्लियाँ या सिक्कों के रूप में रखा जाता है।
    • बुलियन को कभी-कभी कानूनी निविदा माना जा सकता है और इसे अक्सर केंद्रीय बैंकों द्वारा भंडार के रूप में रखा जाता है या संस्थागत निवेशकों द्वारा रखा जाता है।
    • सरकार ने अगस्त 2020 में बुलियन स्पॉट डिलीवरी अनुबंध और बुलियन डिपॉज़िटरी रसीद (BDR) के बारे में अधिसूचित किया था जिसमें वित्तीय उत्पाद के रूप में बुलियन और वित्तीय सेवाओं के रूप में संबंधित सेवाएँ शामिल थीं।
  • बुलियन एक्सचेंज:
    • बुलियन एक्सचेंज एक ऐसा बाज़ार है जिसके माध्यम से खरीदार और विक्रेता सोने और चाँदी के साथ-साथ संबंधित डेरिवेटिव का व्यापार करते हैं।
    • लंदन बुलियन मार्केट के साथ दुनिया भर में विभिन्न बुलियन मार्केट हैं, जिन्हें सोने और चाँदी के लिये प्राथमिक वैश्विक बाज़ार ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के रूप में जाना जाता है।

सरकार ने अगस्त 2020 में बुलियन स्पॉट डिलीवरी अनुबंध और बुलियन डिपॉज़िटरी रसीद (बीडीआर) के बारे में अधिसूचित किया था जिसमें वित्तीय उत्पाद के रूप में बुलियन और वित्तीय सेवाओं के रूप में संबंधित सेवाएँ शामिल थीं।

इंडिया इंटरनेशनल बुलियन एक्सचेंज (IIBX):

  • परिचय:
    • भारत में ज्वैलर्स द्वारा सोने के आयात को आसान बनाने के लिये पहली बार केंद्रीय बजट वर्ष 2020 में इंडिया इंटरनेशनल बुलियन एक्सचेंज (IIBX) की घोषणा की गई थी।
    • यह एक ऐसा मंच है जो न केवल ज्वैलर्स को एक्सचेंज में व्यापार करने के लिये नामांकित करता है, बल्कि सोने और चाँदी के भंडारण के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचा भी स्थापित करता है।
    • IIBX भारत में सोने के वित्तीयकरण को बढ़ावा देने के अलावा ज़िम्मेदार और गुणवत्ता के आश्वासन के साथ कुशल मूल्य खोज की सुविधा प्रदान करेगा।
      • IFSCA को IIBX के माध्यम से सीधे सोने का आयात करने के लिये भारत में पात्र योग्य जौहरियों को अधिसूचित करने का कार्य सौंपा गया है।
  • महत्त्व:
    • यह भारत को वैश्विक सर्राफा बाज़ार (Bullion Market) में अपनी पहुँच सुनिश्चित करने तथा अखंडता और गुणवत्ता के साथ वैश्विक मूल्य शृंखला हेतु सशक्त बनाएगा।
    • IIBX भारत को एक प्रमुख उपभोक्ता के रूप में वैश्विक बुलियन कीमतों को प्रभावित करने की दिशा में सक्षम बनाएगा तथा यह भारत सरकार की प्रतिबद्धता को भी फिर से लागू करता है।

गिफ्ट सिटी:

  • गिफ्ट (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी) सिटी गांधीनगर, गुजरात में स्थित है।
  • इसमें एक बहु-सेवा विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) शामिल है जिसमें भारत का पहला अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (आईएफएससी) और एक विशेष घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) है।
  • गिफ्ट सिटी (Gujarat International Finance Tec-City) को न केवल भारत बल्कि विश्व के लिये वित्तीय और प्रौद्योगिकी सेवाओं हेतु एक एकीकृत केंद्र के रूप में परिकल्पित किया गया है।
    • IFSCA भारत में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (IFSCs) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों के विकास एवं विनियमन के लिये एकीकृत नियामक है।
  • शहर में सामाजिक बुनियादी ढाँचे में स्कूल, चिकित्सा सुविधाएँ, प्रस्तावित अस्पताल, इनडोर और आउटडोर खेल सुविधाओं के साथ गिफ्ट सिटी बिज़नेस क्लब शामिल हैं। साथ ही इसमें एकीकृत सुनियोजित आवासीय परियोजनाएँ भी शामिल हैं जो गिफ्ट सिटी को वास्तव में "वॉक टू वर्क" शहर बनाती हैं।

एनएसई-आईएफएससी एसजीएक्स कनेक्ट:

  • यह गिफ्ट इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज़ सेंटर (IFSC) और सिंगापुर एक्सचेंज लिमिटेड (SGX) में एनएसई की सहायक कंपनी के बीच एक अवसंरचना है।
  • कनेक्ट के तहत सिंगापुर एक्सचेंज के सदस्यों द्वारा दिये गए निफ्टी डेरिवेटिव पर सभी ऑर्डर एनएसई-आईएफएससी ऑर्डर मैचिंग और ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर मैच किये जाएंगेे।
  • भारत और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों के ब्रोकर-डीलरों से कनेक्ट के माध्यम से ट्रेडिंग डेरिवेटिव हेतु बड़ी संख्या में भाग लेने की उम्मीद है।
  • यह GIFT-IFSC में व्युत्पन्न बाज़ाारों में तरलता को मज़बूती तथा वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पैदा करने के साथ ही अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों को आकर्षित करेगा।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण:

  • स्थापना:
    • IFSCA की स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक, 2019 के तहत की गई थी।
      • इसका मुख्यालय गांधीनगर (गुजरात) की गिफ्ट सिटी (GIFT City) में स्थित है।
  • कार्य:
    • इसके अंतर्गत IFSC में ऐसी सभी वित्तीय सेवाओं, उत्पादों और संस्थाओं को विनियमित किया जाएगा, जिन्हें वित्तीय क्षेत्र के नियामकों द्वारा IFSCs के लिये पहले ही अनुमति दी जा चुकी है। प्राधिकरण ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, सेवाओं को भी विनियमित करेगा जो समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किये जा सकते हैं। यह केंद्र सरकार को ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों की भी सिफारिश कर सकता है जिन्हें IFSC में अनुमति दी जा सकती है।
  • शक्तियाँ:
  • प्राधिकरण की प्रक्रियाएँ:
    • प्राधिकरण द्वारा अपनाई जाने वाली अन्य प्रक्रियाएँ वित्तीय उत्पादों, सेवाओं या संस्थानों पर लागू भारत की संसद के संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार शासित होंगी।
  • केंद्र सरकार द्वारा अनुदान:
    • केंद्र सरकार को इस संबंध में संसद द्वारा कानून के उचित विनियोजन के बाद प्राधिकरण को इस तरह के धन को अनुदान के रूप में देना होगा क्योंकि केंद्र सरकार प्राधिकरण के प्रयोजनों के लिये इसके उपयोग को समझती है।
  • विदेशी मुद्रा में लेन-देन:
  • IFSCs के ज़रिये विदेशी मुद्रा में वित्तीय सेवाओं का लेन-देन प्राधिकरण द्वारा केंद्र सरकार के परामर्श से किया जाएगा।

स्रोत: पी.आई.बी.


भूजल स्तर में कमी

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB), अटल भूजल योजना (अटल जल), जल शक्ति अभियान (JSA), भूजल की कमी।

मेन्स के लिये:

भूजल की कमी, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा हाल ही में किये गए विश्लेषण के अनुसार, देश के कुछ हिस्सों में भूजल स्तर कम हो रहा है।

  • नवंबर 2011 से नवंबर 2020 के दशकीय औसत की तुलना में नवंबर 2021 के दौरान CGWB द्वारा एकत्र किये गए आँकड़ों से पता चलता है कि लगभग 70% कुओं ने जल स्तर में वृद्धि दर्ज की है, जबकिं लगभग 30% कुओं में भूजल स्तर में गिरावट (ज़्यादातर 0 - 2 मीटर की सीमा में) दर्ज की गई है।

भारत में भूजल की कमी की वर्तमान स्थिति:

  • भूजल की कमी की स्थिति:
    • CGWB के अनुसार, भारत में कृषि भूमि की सिंचाई के लिये हर साल 230 बिलियन मीटर क्यूबिक भूजल निकाला जाता है, जिससे देश के कई हिस्सों में भूजल का तेज़ी से क्षरण हो रहा है।
    • भारत में कुल अनुमानित भूजल की कमी 122-199 बिलियन मीटर क्यूबिक की सीमा में है।
    • निकाले गए भूजल का 89% सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किया जाता है, जिससे यह देश में उच्चतम श्रेणी का उपयोगकर्त्ता बन जाता है।
      • इसके बाद घरेलू उपयोग के लिये भूजल का स्थान आता है जो निकाले गए भूजल का 9% है। भूजल का औद्योगिक उपयोग 2% है। शहरी जल की 50 फीसदी और ग्रामीण घरेलू जल की 85 फीसदी ज़रूरत भी भूजल से ही पूरी होती है।
  • कारण:
    • हरित क्रांति: हरित क्रांति ने सूखा प्रवण/जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल गहन फसलों को उगाने में सक्षम बनाया, जिससे भूजल की अधिक निकासी हुई।
      • इसकी पुनःपूर्ति की प्रतीक्षा किये बिना ज़मीन से जल को बार-बार पंप करने से इसमें त्वरित कमी आई।
      • इसके अलावा बिजली पर सब्सिडी और पानी की अधिक खपत वाली फसलों के लिये उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
    • उद्योगों की आवश्यकता: लैंडफिल, सेप्टिक टैंक, टपका हुआ भूमिगत गैस टैंक और उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अति प्रयोग से होने वाले प्रदूषण के मामले में जल प्रदूषण के कारण भूजल संसाधनों की क्षति और इनमें कमी आती है।
    • अपर्याप्त विनियमन: भूजल का अपर्याप्त विनियमन तथा इसके लिये कोई दंड न होना भूजल संसाधनों की समाप्ति को प्रोत्साहित करता है।
    • संघीय मुद्दा: जल एक राज्य का विषय है, जल संरक्षण और जल संचयन सहित जल प्रबंधन पर पहल तथा देश में नागरिकों को पर्याप्त पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना मुख्य रूप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है।

केंद्रीय भूमि जल बोर्ड (CGWB):

  • यह जल संसाधन मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है और राष्ट्रीय शीर्ष एजेंसी है जिसे देश के भूजल संसाधनों के प्रबंधन, अन्वेषण, निगरानी, मूल्यांकन, वृद्धि तथा और विनियमन हेतु वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के अधीन अन्वेषण कार्य ट्यूबवेल संगठन (Exploratory Tubewells Organization) का नाम बदलकर की गई थी जिसे वर्ष 1972 के दौरान भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूजल प्रभाग के साथ विलय कर दिया गया था।
  • इसका मुख्यालय भूजल भवन, फरीदाबाद, हरियाणा में है।
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत गठित केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) द्वारा देश में भूजल विकास के नियमन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों की देखरेख की जा रही है।

सरकार द्वारा की गई पहलें:

  • केंद्र सरकार:
    • यह समुदायों/हितधारकों की भागीदारी के माध्यम से वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई ग्राम/ग्राम पंचायत स्तर की जल सुरक्षा योजना के आधार पर सतह और भूजल के संयुक्त उपयोग की अवधारणा को बढ़ावा दे रही है।
    • अटल भूजल योजना (अटल जल): यह सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिये विश्व बैंक की सहायता से 6000 करोड़ रुपए की केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।
    • जल शक्ति अभियान (JSA): इन क्षेत्रों में भूजल की स्थिति सहित पानी की उपलब्धता में सुधार हेतु देश के 256 जल संकटग्रस्त ज़िलों में वर्ष 2019 में इसे शुरू किया गया था।
      • इसमें पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण, पारंपरिक जल निकायों के कायाकल्प, गहन वनीकरण आदि पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
    • जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम: CGWB द्वारा जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (Aquifer Mapping Programme) शुरू किया गया है।
      • कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ जलभृत/क्षेत्र विशिष्ट भूजल प्रबंधन योजना तैयार करने हेतु जलभृत की स्थिति और उनके लक्षण व वर्णन को चित्रित करना है।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन हेतु अटल मिशन (AMRUT): मिशन अमृत शहरों में शहरी बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि पानी की आपूर्ति, सीवरेज़ और सेप्टेज प्रबंधन, बेहतर जल निकासी, पर्यावरणीय अनुकूल स्थान और पार्क व गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन आदि।
  • राज्य सरकार:
    • राज्य सरकारों द्वारा भी विभिन्न पहलें की गई हैं जैसे:
      • मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान, राजस्थान
      • जलयुक्त शिबार, महाराष्ट्र
      • सुजलाम सुफलाम अभियान, गुजरात
      • मिशन काकतीय, तेलंगाना
      • नीरू चेट्टू, आंध्र प्रदेश
      • जल जीवन हरियाली, बिहार
      • जल ही जीवन, हरियाणा
      • कूदीमरामथु (Kudimaramath) योजना, तमिलनाडु

आगे की राह:

  • भूजल का कृत्रिम तरीके से संभरण: यह मृदा के माध्यम से अंत:स्पंदन को बढ़ानेे के लिये भूमि पर जल का प्रसार करने या उसे अवरुद्ध कर जलभृत में प्रवेश कराने या कुओं से सीधे जलभृत में जल डालने की प्रक्रिया है।
  • भूजल प्रबंधन संयंत्र: स्थानीय स्तर पर भूजल प्रबंधन संयंत्र स्थापित करने से लोगों को अपने क्षेत्र में भूजल की उपलब्धता के बारे में जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी, जिससे वे इसका बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग कर सकेंगे।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत की गई है।
  2. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एक वैधानिक निकाय है।
  3. राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना 1962 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 4 के तहत की गई थी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्यकर्त्ता । अतः कथन 2 सही है।
  • इसका गठन भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया गया था। इसने गंगा नदी को भारत की 'राष्ट्रीय नदी' घोषित किया। यह तत्कालीन जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) के अधीन कार्य करता है। इसे गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण, और प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय कार्यान्वयन परिषद के रूप में भी जाना जाता है। इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न: जल तनाव क्या है? यह भारत में क्षेत्रीय रूप से कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)

प्रश्न: जल संरक्षण और जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (2020)

स्रोत: पी.आई.बी.