भारतीय अर्थव्यवस्था
गिफ्ट सिटी में बीमा व्यवसायों के लिये उदार व्यवस्था: IFSCA
- 26 Oct 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण मेन्स के लिये:गिफ्ट सिटी में बीमा व्यवसाय संबंधी प्रस्ताव और इनके लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) ने गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (Gujarat International Finance Tec City- GIFT City) में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय बीमा व्यवसायों के गठन की सुविधा के लिये एक नई उदार नियामक व्यवस्था की घोषणा की।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) बीमा कार्यालय और IFSC बीमा मध्यस्थ कार्यालय स्थापित करने के नियमों को IFSCA द्वारा अक्तूबर 2021 से पहले अधिसूचित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- संस्थाएँ जो बीमा व्यवसाय स्थापित कर सकती हैं:
- गैर-बीमा संस्थाएँ भी IFSC में सार्वजनिक कंपनियों को शामिल कर सकती हैं और बीमा या पुनर्बीमा व्यवसाय कर सकती हैं।
- बीमा वित्तीय नुकसान से सुरक्षा का एक साधन है। यह जोखिम प्रबंधन का एक रूप है, जिसका उपयोग मुख्यतः आकस्मिक या अनिश्चित नुकसान के जोखिम से बचाव हेतु किया जाता है।
- पुनर्बीमा (Reinsurance) द्वारा बीमाकर्त्ता बीमा दावे के परिणामस्वरूप किसी बड़े दायित्व के भुगतान को कम करने के लिये किसी प्रकार के समझौते द्वारा अपने जोखिम पोर्टफोलियो के कुछ हिस्सों को अन्य पक्षों को हस्तांतरित करते हैं।
- इसी तरह भारतीय बीमा कंपनियाँ बीमा मध्यस्थ कार्यालय (Insurance Intermediaries Offices) के रूप में बीमा या पुनर्बीमा व्यवसाय करने के लिये सहायक कंपनियाँ स्थापित कर सकती हैं।
- विदेशी मध्यवर्ती संस्थाओं (Foreign Intermediaries) को भी भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) द्वारा पंजीकृत मध्यस्थों जैसे- बीमा दलालों और कॉर्पोरेट एजेंटों के साथ IIO स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी।
- गैर-बीमा संस्थाएँ भी IFSC में सार्वजनिक कंपनियों को शामिल कर सकती हैं और बीमा या पुनर्बीमा व्यवसाय कर सकती हैं।
- चुकता पूंजी आवश्यकता (Paid Up Capital Requirement):
- एक शाखा के रूप में किसी कंपनी को पूंजी जुटाने की आवश्यकता नहीं होती है और सहायक कंपनियों के संबंध में नई बीमा या पुनर्बीमा कंपनियों को बीमा हेतु 100 करोड़ रुपए और पुनर्बीमा के लिये 200 करोड़ रुपए की चुकता पूंजी (बीमा अधिनियम, 1938 के अनुसार) की आवश्यकता होगी।
- नए नियम निर्दिष्ट करते हैं कि बीमा मध्यस्थ कार्यालय को शाखा स्थापित करने वाले विदेशी बीमाकर्त्ता या विदेशी पुनर्बीमाकर्त्ता को किसी स्थानीय/घरेलू पूंजी की आवश्यकता नहीं होगी। 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की नियत पूंजी को गृह क्षेत्राधिकार में बनाए रखा जा सकता है।
- इसके अलावा IFSC में बीमा मध्यस्थ कार्यालय के लिये कोई स्थानीय\घरेलू शोधन क्षमता (किसी के ऋण का भुगतान करने की क्षमता) की आवश्यकता नहीं है।
- नियत पूंजी शोधन क्षमता मार्जिन को गृह क्षेत्राधिकार में बनाए रखना होगा।
- सॉल्वेंसी कैपिटल की आवश्यकता वह कुल राशि है जो बीमा और पुनर्बीमा कंपनियों को रखने की आवश्यकता होती है।
- संस्थाएँ जो बीमा व्यवसाय स्थापित कर सकती हैं:
- महत्त्व:
- नए नियमों में वैश्विक बीमा कंपनियों और पुनर्बीमाकर्त्ताओं के लिये अवसरों को खोलने की क्षमता है।
- नियामक ढाँचा बहुत अनुकूल है और कंपनियों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करता है।
- नई सुविधाओं से भारत को सिंगापुर, दुबई और हॉन्गकॉन्ग जैसे उन अपतटीय वित्तीय केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हुए देश में एक वैश्विक पुनर्बीमा केंद्र विकसित करने में मदद मिलेगी, जो वर्तमान में एशिया में बीमा व्यवसाय पर हावी हैं।
- नए नियमों में वैश्विक बीमा कंपनियों और पुनर्बीमाकर्त्ताओं के लिये अवसरों को खोलने की क्षमता है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण
- स्थापना:
- इसकी स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम, 2019 के तहत की गई थी।
- इसका मुख्यालय गांधीनगर (गुजरात) की गिफ्ट सिटी (GIFT City) में स्थित है।
- इसकी स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम, 2019 के तहत की गई थी।
- कार्य:
- इसके अंतर्गत IFSC में ऐसी सभी वित्तीय सेवाओं, उत्पादों और संस्थाओं को विनियमित किया जाएगा, जिन्हें वित्तीय क्षेत्र के नियामकों द्वारा IFSCs के लिये पहले ही अनुमति दी जा चुकी है। प्राधिकरण ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, सेवाओं को भी विनियमित करेगा जो समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किये जा सकते हैं। यह केंद्र सरकार को ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों की भी सिफारिश कर सकता है जिन्हें IFSC में अनुमति दी जा सकती है।
- शक्तियाँ:
- अधिनियम के तहत संबंधित वित्तीय क्षेत्र नियामक (भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, IRDAI तथा पेंशन निधि नियामक एवं विकास प्राधिकरण आदि) द्वारा प्रयोग की जाने वाली सभी शक्तियाँ प्राधिकरण द्वारा IFSC में वित्तीय रूप से नियमन के अनुसार पूरी तरह से प्रयोग की जाएंगी।
- प्राधिकरण की प्रक्रियाएँ:
- प्राधिकरण द्वारा अपनाई जाने वाली अन्य प्रक्रियाएँ वित्तीय उत्पादों, सेवाओं या संस्थानों पर लागू भारत की संसद के संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार शासित होंगी।
- केंद्र सरकार द्वारा अनुदान:
- केंद्र सरकार को इस संबंध में संसद द्वारा कानून के उचित विनियोजन के बाद प्राधिकरण को इस तरह के धन को अनुदान के रूप में देना होगा क्योंकि केंद्र सरकार प्राधिकरण के प्रयोजनों के लिये इसके उपयोग को समझती है।
- विदेशी मुद्रा में लेन-देन:
- IFSCs के ज़रिये विदेशी मुद्रा में वित्तीय सेवाओं का लेन-देन प्राधिकरण द्वारा केंद्र सरकार के परामर्श से किया जाएगा।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र
- IFSC वित्तीय सेवाओं और लेन-देन में सक्षम बनाता है जो वर्तमान में भारतीय कॉर्पोरेट संस्थाओं और विदेशी शाखाओं/वित्तीय संस्थानों की सहायक कंपनियों (जैसे- बैंक, बीमा कंपनियाँ आदि) द्वारा भारत में अपतटीय वित्तीय केंद्रों में किये जाते हैं।
- यह एक व्यापार और नियामक वातावरण प्रदान करता है जो लंदन तथा सिंगापुर जैसे विश्व के अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्रों के समान है।
- IFSC का उद्देश्य भारतीय कॉरपोरेट्स को वैश्विक वित्तीय बाज़ारों तक आसान पहुँच प्रदान करना तथा भारत में वित्तीय बाज़ारों के विकास को पूरक और बढ़ावा देना है।