संपत्ति नष्ट करने के मामले में कोई संसदीय प्रतिरक्षा नहीं: सर्वोच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मेन्स के लिये:व्यक्तिगत विशेषाधिकार, सामूहिक विशेषाधिकार के संदर्भ में संसदीय विशेषाधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने विधानसभा में आरोपित विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस लेने की केरल सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है।
- वर्ष 2015 में सत्तारूढ़ केरल सरकार ने राज्य विधानसभा में सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने और बजट भाषण को बाधित करने वाले अपने विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामला वापस लेने हेतु सर्वोच न्यायालय से अपील की थी।
प्रमुख बिंदु:
याचिकाकर्त्ता की दलीलें:
- केरल सरकार ने यह तर्क देते हुए संसदीय विशेषाधिकार का दावा किया था कि घटना विधानसभा हॉल के अंदर हुई थी।
- याचिकाकर्त्ता ने आपराधिक अभियोजन हेतु छूट का दावा प्रस्तुत किया था।
- उन्होंने तर्क दिया था कि पुलिस द्वारा FIR दर्ज करने से पहले अध्यक्ष की पूर्व मंज़ूरी आवश्यक थी।
निर्णय के मुख्य बिंदु:
- संसदीय विशेषाधिकार का प्रयोग प्रतिरक्षा हेतु नहीं: जो विधायक तोड़फोड़ और सामान्य तबाही में लिप्त हैं, वे संसदीय विशेषाधिकार एवं आपराधिक अभियोजन से उन्मुक्ति का दावा नहीं कर सकते हैं।
- बर्बरता आवश्यक विधायी कार्रवाई नहीं है: सांसदों के पास ऐसे विशेषाधिकार होते हैं जो सार्वजनिक कार्यों को करने के लिये आवश्यक होते हैं।
- विधायी कार्य करने हेतु सदन के अंदर तोड़फोड़ और संपति को नष्ट करना आवश्यक नहीं है।
- बर्बरता और विरोध का अधिकार: विधानसभा में तोड़फोड़ की तुलना विपक्षी विधायकों के विरोध के अधिकार से नहीं की जा सकती।
- निर्वाचित विधायिका का कोई भी सदस्य आपराधिक कानून (लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984) के प्रतिबंधों से ऊपर होकर विशेषाधिकार या प्रतिरक्षा का दावा नहीं कर सकता है, यह सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है।
- सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने की तुलना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रयोग से नहीं की जा सकती।
- सार्वजनिक विश्वास बनाए रखना: विधायकों को अपना कर्तव्य निभाने के लिये सार्वजनिक विश्वास के मापदंडों के भीतर कार्य करना चाहिये।
- क्योंकि उन्होंने संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा की शपथ लेते हुए पदभार ग्रहण किया था।
- इसलिये उन्हें भारत की संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखना एवं अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये।
संसदीय विशेषाधिकार के विषय में:
- संसदीय विशेषाधिकार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से संसद सदस्यों द्वारा प्राप्त कुछ अधिकार तथा उन्मुक्तियाँ हैं, ताकि वे "अपने कार्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन" कर सकें।
- जब इनमें से किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना की जाती है तो अपराध को विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है तथा यह संसद के कानून के तहत दंडनीय है।
- संविधान (संसद के लिये अनुच्छेद 105 और राज्य विधानसभाओं हेतु अनुच्छेद 194) में दो विशेषाधिकारों (संसद में बोलने की स्वतंत्रता तथा इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार) का उल्लेख है।
- लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 में नियम संख्या 222 और राज्यसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 16 में नियम 187 के अनुरूप विशेषाधिकार को नियंत्रित करता है।
व्यक्तिगत विशेषाधिकार:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संसद/राज्य विधानसभा के सदस्यों को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।
- किसी भी सदस्य से सदन की चारदीवारी के बाहर कहीं भी कार्य नहीं लिया जा सकता है (उदाहरणतः कानून की अदालत) या सदन और उसकी समितियों में विचार व्यक्त करने के लिये उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
- हालाँकि एक सदस्य को संसद में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार है, उसे संसद के बाहर इसे पेश करने का कोई अधिकार नहीं है।
- गिरफ्तारी से मुक्ति: किसी भी सदस्य को दीवानी मामले में सदन के स्थगन के 40 दिन पहले और बाद में तथा सदन के सत्र के दौरान भी गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
- इसका अर्थ यह भी है कि किसी भी सदस्य को उस सदन की अनुमति के बिना संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जिससे वह संबंधित है।
- गवाहों के रूप में उपस्थिति से छूट: संसद/विधानसभा के सदस्यों को भी गवाह के रूप में उपस्थित होने से स्वतंत्रता प्राप्त है।
सामूहिक विशेषाधिकार:
- वाद-विवाद और कार्यवाही प्रकाशित करने का अधिकार: संसद/विधानसभा आवश्यकता पड़ने पर प्रेस को अपनी कार्यवाही प्रकाशित करने से रोक सकती है।
- अजनबियों को बाहर करने का अधिकार: संसद/विधानसभा को किसी भी समय गलियारा (Galleries) से अजनबियों (कोई सदस्य या आगंतुक) को बाहर करने और बंद दरवाज़ों में बहस करने का अधिकार प्राप्त है।
- सदस्यों और बाहरी लोगों को दंडित करने का अधिकार: भारत में संसद/विधानसभा को सदन की अवमानना के दोषी लोगों को दंडित करने के लिये दंडात्मक शक्तियाँ दी गई हैं।
स्रोत: द हिंदू
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लियेकिशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 मेन्स के लियेसंशोधन विधेयक संबंधी प्रमुख प्रावधान और इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 राज्यसभा में पारित किया गया है।
- यह विधेयक ‘किशोर न्याय अधिनियम, 2015’ में संशोधन करना चाहता है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने वर्ष 2020 में ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस’ (CCIs) का ऑडिट किया था, जिनमें से 90% ‘गैर-सरकारी सगठनों’ द्वारा चलाए जा रहे थे, इसमें पाया गया कि वर्ष 2015 में संशोधन लाए जाने के बाद भी 39% CCIs पंजीकृत नहीं थे।
- इसमें यह भी पाया गया कि 20% से कम CCIs, विशेष रूप से लड़कियों के लिये, असम में स्थापित ही नहीं किये गए थे और 26% में बाल कल्याण अधिकारियों की ही नियुक्ति नहीं की गई थी।
- इसके अलावा प्रत्येक पाँच में से तीन ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन’ में शौचालय नहीं है, दस में से एक CCI में पीने का पानी ही उपलब्ध नहीं है और 15% में अलग बिस्तर या आहार योजना के प्रावधान नहीं हैं।
- ‘चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशंस’ के लिये बच्चों का पुनर्वास प्राथमिकता नहीं है, बल्कि बच्चों को कथित तौर पर फंड प्राप्त करने के लिये ऐसे संस्थानों में रखा जाता है।
विधेयक द्वारा प्रस्तावित प्रमुख संशोधन:
- गंभीर अपराध: गंभीर अपराधों की श्रेणी में ऐसे अपराध शामिल होंगे, जिनके लिये अधिकतम सज़ा सात वर्ष से अधिक है, जबकि न्यूनतम सज़ा या तो निर्धारित नहीं की गई है या फिर सात वर्ष से कम है।
- वर्तमान में गंभीर अपराध वे हैं, जिनके लिये भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य कानून के तहत तीन से सात वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है।
- असंज्ञेय अपराध:
- वर्तमान अधिनियम के मुताबिक, तीन से सात वर्ष तक की सज़ा वाले अपराध संज्ञेय (जहाँ बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति है) और गैर-जमानती हैं।
- यह विधेयक इस प्रावधान में संशोधन करते हुए इस प्रकार के अपराधों को गैर-संज्ञेय घोषित करता है।
- वर्तमान अधिनियम के मुताबिक, तीन से सात वर्ष तक की सज़ा वाले अपराध संज्ञेय (जहाँ बिना वारंट के गिरफ्तारी की अनुमति है) और गैर-जमानती हैं।
- दत्तक ग्रहण: वर्तमान में न्यायालय यह प्रावधान करता है कि अदालत के बजाय ज़िला मजिस्ट्रेट (अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट सहित) ऐसे गोद लेने के आदेश जारी करेगा।
- अपील: बिल में प्रावधान है कि ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित गोद लेने के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति इस तरह के आदेश के पारित होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
- ज़िला मजिस्ट्रेट के अन्य कार्य: इनमें शामिल हैं: जिला बाल संरक्षण इकाई का पर्यवेक्षण और बाल कल्याण समिति के कामकाज की त्रैमासिक समीक्षा करना।
- नामित न्यायालय: विधेयक का प्रस्ताव है कि पहले के अधिनियम के तहत सभी अपराधों की सुनवाई बाल न्यायालय में की जाए।
- बाल कल्याण समितियाँ (सीडब्ल्यूसी): यह प्रावधान करती है कि कोई ऐसा व्यक्ति सीडब्ल्यूसी का सदस्य बनने के योग्य नहीं होगा यदि वह-
- मानव अधिकारों या बाल अधिकारों के उल्लंघन का दोषी है,
- नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है,
- केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी सरकारी उपक्रम की सेवा से हटा दिया गया है या बर्खास्त कर दिया गया है,
- एक ज़िले में एक बाल देखभाल संस्थान के प्रबंधन का हिस्सा है।
- सदस्यों को हटाना: समिति के किसी भी सदस्य की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा जाँच के बाद समाप्त कर दी जाएगी यदि वह बिना किसी वैध कारण के लगातार तीन महीने तक सीडब्ल्यूसी की कार्यवाही में भाग लेने में विफल रहता है या यदि एक वर्ष में तीन-चौथाई से कम बैठकों में उपस्थित होने में विफल रहता है।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015
- संसद ने किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को बदलने के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 को पारित किया था।
- यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
- इस अधिनियम में गोद लेने के लिये माता-पिता की योग्यता और गोद लेने की पद्धति को शामिल किया गया है। अधिनियम ने हिंदू दत्तक ग्रहण व रखरखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक रूप से सुलभ दत्तक कानून के साथ बदल दिया।
- अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) को वैधानिक निकाय बनाता है यह भारतीय अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में शामिल होंगे गैर-बैंक PSPs
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, ई-कुबेर, नाबार्ड मेन्स के लिये:केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में शामिल होने की अनुमति प्राप्त गैर-बैंक PSPs का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने गैर-बैंक भुगतान प्रणाली प्रदाताओं (PSPs) को केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली (CPS - RTGS और NEFT) में प्रत्यक्ष सदस्य के रूप में भाग लेने की अनुमति दी है।
प्रमुख बिंदु
चरणबद्ध तरीके से अनुमति:
- पहले चरण में प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट्स (पीपीआई), कार्ड नेटवर्क और व्हाइट लेबल एटीएम (डब्ल्यूएलए) ऑपरेटरों जैसे पीएसपी को एक्सेस की अनुमति होगी।
- गैर-बैंकों द्वारा स्थापित एवं उनके स्वामित्व वाले और संचालित एटीएम को WLAs कहा जाता है।
- वर्तमान में केवल बैंक और चुनिंदा गैर-बैंक जैसे- नाबार्ड (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट) और एक्ज़िम बैंक (एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ इंडिया) को RBI के स्वामित्व वाले सीपीएस - एनईएफटी तथा आरटीजीएस तक पहुँच की अनुमति है।
गैर-बैंकों के लिये अलग IFSC:
- इसका अर्थ है गैर-बैंकों को एक अलग भारतीय वित्तीय प्रणाली कोड (IFSC) का आवंटन, RBI के साथ अपने कोर बैंकिंग सिस्टम (ई-कुबेर) में एक चालू खाता खोलना और आरबीआई के साथ एक निपटान खाता बनाए रखना।
- IFSC 11 अंकों का कोड है जो उन व्यक्तिगत बैंक शाखाओं की पहचान करने में मदद करता है जो NEFT और RTGS जैसे विभिन्न ऑनलाइन मनी ट्रांसफर विकल्पों में भाग लेते हैं।
- कोर बैंकिंग सिस्टम एक ऐसा समाधान है जो बैंकों को 24x7 आधार पर कई ग्राहक-केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
- इसका अर्थ भारतीय वित्तीय नेटवर्क (INFINET) की सदस्यता और CPS के साथ संवाद करने के लिये संरचित वित्तीय संदेश प्रणाली (SFMS) का उपयोग भी है।
- INFINET एक ‘बिना सदस्यता वाला उपयोगकर्त्ता समूह’ (CUG) नेटवर्क है जिसमें RBI, सदस्य बैंक और वित्तीय संस्थान शामिल हैं।
- SFMS अंतर-बैंक वित्तीय संदेश और सीपीएस के लिये प्रमुख प्रणाली है।
महत्त्व:
- भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र के जोखिम को कम करना:
- गैर-बैंकों के लिये ‘केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली’ तक सीधी पहुँच भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में समग्र जोखिम को कम कर सकती है।
- भुगतान की लागत में कमी:
- यह गैर-बैंकों को भुगतान की लागत में कमी, बैंकों पर निर्भरता में कमी, भुगतान पूरा करने में लगने वाले समय में कमी जैसे लाभ भी प्रदान करता है।
- निधि निष्पादन में विफलता या विलंब में कमी:
- गैर-बैंक संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष लेन-देन शुरू करने और संसाधित किये जाने पर फंड ट्रांसफर के निष्पादन में विफलता या देरी के जोखिम से भी बचा जा सकता है।
- कार्यक्षमता में बढ़ोतरी और बेहतर जोखिम प्रबंधन
- गैर-बैंक संस्थाएँ परिचालन समय के दौरान अपने चालू खाते से RTGS निपटान खाते में और RTGS निपटान खाते से अपने चालू खाते में हस्तांतरित करने में सक्षम होंगी।
- यह दक्षता और नवाचार में बढ़ोतरी तथा डेटा सुरक्षा के मानकों में सुधार करने के साथ-साथ बेहतर जोखिम प्रबंधन में भी सहायता करेगी।
केंद्रीकृत और विकेंद्रीकृत भुगतान प्रणाली
- भारत में केंद्रीकृत भुगतान प्रणाली में रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली और राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक निधि अंतरण (NEFT) प्रणाली तथा किसी भी अन्य प्रणाली के रूप में शामिल होंगे जिस पर समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जा सकता है।
- RTGS: यह लाभार्थियों के खाते में वास्तविक समय पर धनराशि के हस्तांतरण की सुविधा को सक्षम बनाता है और इसका प्रयोग मुख्य तौर पर बड़े लेन-देनों के लिये किया जाता है।
- यहाँ ‘रियल टाइम’ अथवा वास्तविक समय का अभिप्राय निर्देश प्राप्त करने के साथ ही उनके प्रसंस्करण (Processing) से है, जबकि ‘ग्रॉस सेटलमेंट’ या सकल निपटान का तात्पर्य है कि धन हस्तांतरण निर्देशों का निपटान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है।
- NEFT: यह एक देशव्यापी भुगतान प्रणाली है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है।
- इसका उपयोग आमतौर पर 2 लाख रुपए तक के फंड ट्रांसफर के लिये किया जाता है।
- विकेंद्रीकरण भुगतान प्रणाली में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समाशोधन व्यवस्था [चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS)] के साथ-साथ अन्य बैंक [एक्सप्रेस चेक क्लियरिंग सिस्टम (ECCS) केंद्रों की जाँच] और किसी अन्य प्रणाली के रूप शामिल होंगे जिसमें समय-समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
ई-कुबेर
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक का कोर बैंकिंग समाधान है जिसे वर्ष 2012 में पेश किया गया था।
- इस प्रकार केंद्रीकरण वित्तीय सेवाओं हेतु सुविधा मुहैया कराता है। कोर बैंकिंग समाधान (CBS) का उपयोग करके ग्राहक अपने खातों को किसी भी शाखा से, किसी भी जगह से एक्सेस कर सकते हैं।
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) सहित वाणिज्यिक बैंकों की लगभग सभी शाखाओं को कोर-बैंकिंग के दायरे में लाया गया है।
- ई-कुबेर प्रणाली को या तो INFINET या इंटरनेट के द्वारा एक्सेस किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम’ (DICGC) विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम मेन्स के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी की आवश्यकता एवं महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘जमा बीमा और ऋण गारंटी निगम’ (DICGC) विधेयक, 2021 को मंज़ूरी दी है।
- पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक आदि की विफलता ने भारतीय बैंकों में ग्राहकों द्वारा जमा राशि के विरुद्ध बीमा के अभाव को लेकर एक बार पुनः बहस शुरू कर दी है।
नोट
- जमा बीमा: यदि कोई बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये पैसे नहीं होते हैं तथा उसे परिसमापन के लिये जाना पड़ता है, तो यह बीमा बैंक जमा को होने वाले नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवर प्रदान करता है।
- क्रेडिट गारंटी: यह वह गारंटी है जो प्रायः लेनदार को उस स्थिति में एक विशिष्ट उपाय प्रदान करती है जब उसका देनदार अपना कर्ज़ वापस नहीं करता है।
प्रमुख बिंदु
कवरेज
- यह विधेयक बैंकिंग प्रणाली में जमाकर्त्ताओं के 98.3% और जमा मूल्य के 50.9% हिस्से को कवर करेगा, जो कि वैश्विक स्तर पर क्रमशः 80% और 20-30% से अधिक है।
- इसके तहत सभी प्रकार के बैंक शामिल होंगे, जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और सहकारी बैंक भी शामिल हैं।
- यह पहले से ही अधिस्थगन की स्थिति में मौजूद बैंकों के साथ-साथ भविष्य में अधिस्थगन के तहत आने वाले बैंकों को भी कवर करेगा।
- अधिस्थगन ऋण के भुगतान में देरी की कानूनी रूप से अधिकृत अवधि है।
बीमा कवर:
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा लगाए गए स्थगन के तहत बैंक आगमन की स्थिति में 90 दिनों के भीतर एक खाताधारक को 5 लाख रुपए तक की धनराशि प्रदान करेगा।
- इससे पहले खाताधारकों को अपनी जमा राशि प्राप्त करने के लिये एक ऋणदाता के परिसमापन या पुनर्गठन का वर्षों तक इंतजार करना पड़ता था, जो कि डिफॉल्ट गतिविधियों के विरुद्ध बीमित होते हैं।
- 5 लाख रुपए का जमा बीमा कवर वर्ष 2020 में 1 लाख रुपए से बढ़ा दिया गया था।
- 'बैंकों में ग्राहक सेवा' (2011) पर दामोदरन समिति ने कैप 5 लाख रुपए में आय के बढ़ते स्तर और व्यक्तिगत बैंक जमाओं के बढ़ते आकार के कारण पाँच गुना वृद्धि की सिफारिश की थी। ।
- बैंक को स्थगन के तहत रखे जाने के पहले 45 दिनों के भीतर DICGC जमा खातों से संबंधित सभी जानकारी एकत्र करेगा। अगले 45 दिनों में यह जानकारी की समीक्षा करेगा और जमाकर्त्ताओं को उनकी धनराशि अधिकतम 90 दिनों के भीतर चुकाएगा।
बीमा प्रीमियम:
- यह जमा बीमा प्रीमियम को तुरंत 20% और अधिकतम 50% तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
- प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है। बीमित बैंक पिछले छमाही के अंत में अपनी जमा राशि के आधार पर प्रत्येक वित्तीय छमाही की शुरुआत से दो महीने के भीतर अर्द्धवार्षिक रूप से निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान करते हैं।
- इसे प्रत्येक 100 रुपए जमा करने के लिये 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दिया गया है और 15 पैसे की सीमा लगाई गई है।
- यह केवल एक सक्षम प्रावधान है। देय प्रीमियम में वृद्धि के निर्धारण हेतु RBI के साथ परामर्श करना होगा और सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी।
जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम
परिचय:
- यह वर्ष 1978 में जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया।
- यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है।
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है।
कवरेज:
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्रीय बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित अन्य बैंकों को DICGC से जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है।
कवर की गई जमाराशियों के प्रकार: DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर अन्य सभी बैंक जमाओं जैसे- बचत, सावधि, चालू, आवर्ती, आदि का बीमा करता है।
- विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ।
- केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ।
- अंतर-बैंक जमा।
- राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ।
- भारत के बाहर प्राप्त किसी भी जमा राशि पर शेष कोई भी राशि।
- कोई भी राशि जिसे निगम द्वारा RBI की पिछली मंज़ूरी के साथ विशेष रूप से छूट दी गई है।
फंड:
- निगम निम्नलिखित निधियों का रखरखाव करता है:
- जमा बीमा कोष
- क्रेडिट गारंटी फंड
- सामान्य निधि
- पहले दो को क्रमशः बीमा प्रीमियम और प्राप्त गारंटी शुल्क द्वारा वित्तपोषित किया जाता है तथा संबंधित दावों के निपटान के लिये उपयोग किया जाता है।
- सामान्य निधि का उपयोग निगम की स्थापना और प्रशासनिक खर्चों को पूरा करने के लिये किया जाता है।
स्रोत : द हिंदू
अमेरिकी विदेश मंत्री की भारत यात्रा
प्रिलिम्स के लिये:जी-7, जी-20 , क्वाड, यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा मेन्स के लिये:अमेरिकी विदेश मंत्री की भारत यात्रा का महत्त्व एवं लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अपनी भारत यात्रा के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री ने उल्लेख किया कि भारत और अमेरिका की संयुक्त कार्रवाई 21वीं सदी को आकार देगी।
- यह यात्रा भारत के विदेश मंत्री (EAM) की मई 2021 की अमेरिकी यात्रा का प्रतिफल है।
- अमेरिकी विदेश मंत्री और भारत के विदेश मंत्री ने ब्रिटेन (जी-7 बैठक में) एवं इटली (जी-20 बैठक में) में भी विस्तृत बातचीत की।
प्रमुख बिंदु
प्रमुख चर्चाएँ:
- अफगानिस्तान:
- संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है और देश पर बलपूर्वक कब्जा करने से तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता या वैधता हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी, जिसमें तालिबान नेतृत्त्व के खिलाफ प्रतिबंध और यात्रा प्रतिबंध हटाना शामिल है।
- भारत ने उल्लेख किया है कि पाकिस्तान शांतिपूर्ण राजनीतिक समाधान हेतु आम सहमति स्थापित करने में अपवाद है।
- अफगानिस्तान जो कि अपने लोगों के अधिकारों का सम्मान नहीं करता है और जिसने अपने लोगों के खिलाफ अत्याचार किया है, वह वैश्विक समुदाय का हिस्सा नहीं होगा।
- अफगानिस्तान को समावेशी और पूरी तरह से अफगान जनता का प्रतिनिधि होना चाहिये।
- संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं है और देश पर बलपूर्वक कब्जा करने से तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता या वैधता हासिल करने में मदद नहीं मिलेगी, जिसमें तालिबान नेतृत्त्व के खिलाफ प्रतिबंध और यात्रा प्रतिबंध हटाना शामिल है।
- भारत-प्रशांत सहयोग:
- दोनों स्वतंत्र, खुले, सुरक्षित और समृद्ध इंडो-पैसिफिक को लेकर व्यक्तव्य साझा करते हैं।
- जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड (चतुर्भुज फ्रेमवर्क) के हिस्से के रूप में इंडो-पैसिफिक में सहयोग पर प्रकाश डाला गया और स्पष्ट किया गया कि क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं है।
- कोविड- टीकाकरण:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत द्वारा निर्मित कोविड-टीके उपलब्ध कराने के लिये क्वाड पहल पर चर्चा की गई।
- अमेरिका ने भारत के वैक्सीन कार्यक्रम के लिये 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुदान की घोषणा की और उत्पादन बढ़ाने के लिये वैक्सीन आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने का वादा किया।
- जलवायु परिवर्तन:
- अप्रैल 2021 में शुरू किये गए ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा’, 2030 पार्टनरशिप के तहत दोनों पक्षों का लक्ष्य एक नई जलवायु कार्रवाई की शुरुआत और वित्त जुटाने के साथ-साथ संवाद एवं रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी को फिर से शुरू करना है।
अमेरिका का नज़रिया:
- भारत-अमेरिका संबंधों को विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण साझेदारियों में से एक माना जाता है।
- दोनों देश लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को साझा करते हैं जो इनके संबंधों के आधार का हिस्सा है और भारत के बहुलवादी समाज तथा सद्भाव के इतिहास को दर्शाता है।
- दोनों मानवीय गरिमा, अवसर की समानता, कानून के शासन, मौलिक स्वतंत्रता, जिसमें धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता शामिल है, में विश्वास करते हैं।
- दोनों देशों के लोगों को बोलने का अधिकार दिया गया है जिससे लोग अपनी बात उठा सकते हैं, इसके साथ ही दोनों देशों की सरकारें अपने सभी नागरिकों के साथ एक समान व्यवहार करती हैं।
- समग्र संबंधों के कुछ प्रमुख स्तंभों के रूप में व्यापार सहयोग, शैक्षिक जुड़ाव, धार्मिक और आध्यात्मिक संबंधों तथा लाखों परिवारों के बीच संबंधों को उद्धृत किया गया है।
- लोकतंत्र और अंतर्राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिये बढ़ते वैश्विक खतरों के उल्लेख के साथ ही लोकतांत्रिक मंदी (चीन में मानवाधिकारों के मुद्दे) के बारे में बात की गई, यह देखते हुए कि भारत तथा अमेरिका हेतु इन आदर्शों के समर्थन में एक साथ खड़े रहना महत्त्वपूर्ण है।
- अंतर्धार्मिक संबंध, मीडिया स्वतंत्रता, किसानों का विरोध, लव जिहाद हिंसा और अल्पसंख्यक अधिकार आदि उस चर्चा का हिस्सा थे जो अमेरिकी विदेश मंत्री ने दलाई लामा के एक प्रतिनिधि सहित लोगों के एक समूह के साथ की थी।
भारत का नज़रिया:
- भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध एक ऐसे स्तर तक बढ़े हैं जो दोनों देशों को बड़े मुद्दों पर सहयोगात्मक रूप से निपटने में सक्षम बनाता है।
- भारत, भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने के लिये अमेरिकी प्रतिबद्धता का स्वागत करता है जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित है।
- इसने कई बिंदुओं के साथ मुद्दों पर अमेरिकी चिंताओं का जवाब दिया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि एक अधिक परिपूर्ण लोकतंत्र की तलाश अमेरिका और भारत दोनों पर लागू होती है।
- पिछले कुछ वर्षों की भारत की नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से की गई गलतियों को ठीक करने की रही हैं, लेकिन इनकी तुलना शासन की कमी से नहीं की जानी चाहिये।
भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति:
रक्षा:
- भारत और अमेरिका के मध्य पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौते संपन्न हुए है तथा क्वाड (QUAD) के चार देशों के गठबंधन को भी औपचारिक रूप दिया गया है।
- इस गठबंधन को हिंद-प्रशांत में चीन के एक महत्त्वपूर्ण प्रतिकार के रूप में देखा जा रहा है।
- नवंबर 2020 में मालाबार अभ्यास (Malabar Exercise) ने भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों में एक उच्च बिंदु को चित्रित किया है, यह 13 वर्षों में पहली बार था कि क्वाड के सभी चार देश चीन को एक मज़बूत संदेश देते हुए एक साथ आए।
- भारत के पास अब अफ्रीका के जिबूती (Djibouti) से लेकर प्रशांत महासागर में गुआम जैसे अमेरिकी ठिकानों तक पहुंँच है। यह अमेरिकी रक्षा में उपयोग की जाने वाली उन्नत संचार तकनीक तक भी पहुंँच सकता है।
- भारत और अमेरिका के बीच चार मूलभूत रक्षा समझौते हैं:
- भू-स्थानिक खुफिया के लिये बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA)
- सैन्य सूचना समझौते के तहत सामान्य सुरक्षा (GSOMIA)
- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA)
- संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA)
व्यापार:
- पिछली अमेरिकी सरकार ने भारत की विशेष व्यापार स्थिति (India’s Special Trade Status- GSP withdrawal) को समाप्त कर दिया और कई प्रतिबंध भी लगाए, भारत ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिबंध के साथ जवाबी कार्रवाई की।
- वर्तमान अमेरिकी सरकार ने पिछली सरकार द्वारा लगाए गए सभी प्रतिबंधों को समाप्त करने की अनुमति दी है।
भारतीय डायस्पोरा:
- अमेरिका में सभी क्षेत्रों में भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति बढ़ रही है। उदाहरण के लिये अमेरिका की वर्तमान उप-राष्ट्रपति (कमला हैरिस) का भारत से गहरा संबंध है।
- वर्तमान अमेरिकी प्रशासन में कई भारतीय मूल के लोग मज़बूत नेतृत्वकारी पदों पर हैं।
कोविड-सहयोग:
- पिछले वर्ष जब अमेरिका घातक कोविड लहर की चपेट में था तो भारत ने महत्त्वपूर्ण चिकित्सा आपूर्ति उपलब्ध कराई और देश की मदद के लिये निर्यात प्रतिबंधों में ढील दी थी।
- शुरू में अमेरिका ने भारत को ज़रूरत के समय समर्थन देने में झिझक दिखाई थी लेकिन जल्दी ही अमेरिका ने अपना रुख बदल लिया और भारत को आपूर्ति पहुँचा दी।
आगे की राह
- विशेष रूप से दोनों देशों में चीन विरोधी भावना बढ़ने के कारण देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने की बहुत अधिक संभावना है।
- इस प्रकार वार्ता में विभिन्न गैर-टैरिफ बाधाओं के समाधान और अन्य बाज़ार पहुँच सुधारों पर यथाशीघ्र ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- समुद्री क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिये भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका और अन्य भागीदारों के साथ पूरी तरह से जुड़ने की आवश्यकता है, ताकि नेविगेशन की स्वतंत्रता व नियम-आधारित व्यवस्था को संरक्षित किया जा सके।
- अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में न कोई स्थायी मित्र होता है और न ही कोई स्थायी शत्रु, केवल स्थायी हित होते हैं। ऐसे में भारत को रणनीतिक हेजिंग की अपनी विदेश नीति को जारी रखना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक
प्रिलिम्स के लिये:शंघाई सहयोग संगठन, आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन मेन्स के लिये:भारत के हितों को शामिल करते हुए जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, आर्थिक विकास जैसी चुनौतियों से निपटने में शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दुशांबे, ताजिकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक हुई।
- बैठक को संबोधित करते हुए भारत के रक्षामंत्री ने कहा कि भारत एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण क्षेत्र बनाने तथा बनाए रखने में मदद करने के लिये एससीओ ढाँचे के भीतर काम करने हेतु प्रतिबद्ध है।
प्रमुख बिंदु
रक्षामंत्री के संबोधन की प्रमुख विशेषताएँ:
- आतंकवाद अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये सबसे गंभीर खतरा है तथा आतंकवाद के किसी भी कृत्य का समर्थन मानवता के खिलाफ अपराध है।
- भारत आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों से लड़ने के अपने संकल्प की पुष्टि करता है।
- भारत की भू-रणनीतिक स्थिति इसे "यूरेशियन भूमि शक्ति" (Eurasian Land Power) के साथ-साथ भारत-प्रशांत में एक हितधारक बनाती है।
- महामारी, जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, जल सुरक्षा और संबंधित सामाजिक व्यवधान जैसी गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियाँ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को प्रभावित कर सकती हैं।
- कोविड-19 महामारी से निपटने में भारत अपनी वैक्सीन कूटनीति के माध्यम से देशों को सहायता पहुँचाने में सबसे आगे रहा है।
- आपदा प्रबंधन अवसंरचना पर अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) को लेकर भारत की पहल भी इस बात का एक उदाहरण थी कि कैसे देश मानवीय सहायता और आपदा राहत मुद्दों से निपटने के लिये क्षमताओं के निर्माण तथा उन्हें साझा करने हेतु एक साथ आ रहे थे।
शंघाई सहयोग संगठन
- इसकी स्थापना वर्ष 2001 में शंघाई में रूस, चीन, किर्गिज़ गणराज्य, कज़ाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों द्वारा एक शिखर सम्मेलन में की गई थी।
- वर्तमान में इसके सदस्य देशों में कज़ाखस्तान, चीन, किर्गिज़स्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।
- एससीओ राष्ट्र एक साथ लगभग आधी मानव आबादी को शामिल करते हैं और यह भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में यूरेशियन महाद्वीप के लगभग 3/5 हिस्से को कवर करता है।
- SCO, जिसे नाटो के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, आठ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में से एक के रूप में उभरा है।
- भारत को वर्ष 2005 में इसका पर्यवेक्षक बनाया गया था।
- वर्ष 2017 में भारत और पाकिस्तान इसके स्थायी सदस्य बने।
शंघाई सहयोग संगठन और भारत के लिये अवसर:
- क्षेत्रीय सुरक्षा: यूरेशियन सुरक्षा समूह के एक अभिन्न हिस्से के रूप में ‘शंघाई सहयोग संगठन’ भारत को धार्मिक उग्रवाद और आतंकवाद जैसे खतरों का मुकाबला करने में सक्षम बनाएगा।
- यही कारण है कि भारत ने ‘शंघाई सहयोग संगठन’ व इसके ‘क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढाँचे’ (RATS), जो विशेषतः सुरक्षा से जुड़े मुद्दों से संबंधित है, के साथ अपने सुरक्षा संबंधी सहयोग को और मज़बूत करने में दिलचस्पी दिखाई है।
- मध्य एशिया के साथ जुड़ाव: भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ नीति को आगे बढ़ाने के लिये ‘शंघाई सहयोग संगठन’ भी एक संभावित मंच है।
- ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के साथ भारत के मौजूदा जुड़ाव को मध्य एशिया के साथ संबंधों को फिर से जोड़ने और सक्रिय बनाने के भारत के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, जिसके साथ भारत के काफी अच्छे संबंध रहे हैं और इसे भारत का विस्तारित पड़ोस माना जाता है।
- पाकिस्तान और चीन का मुकाबला: यह संगठन भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ चीन और पाकिस्तान दोनों को एक साथ क्षेत्रीय संदर्भ में संबोधित कर भारत के सुरक्षा हितों को प्रस्तुत किया जा सकता है।
- अफगानिस्तान में स्थिरता लाना: SCO अफगानिस्तान में तेज़ी से बदलती स्थिति में स्थिरता लाने के लिये एक वैकल्पिक क्षेत्रीय मंच भी है।
- भारत ने अब तक अफगानिस्तान में 500 परियोजनाएँ पूरी की हैं और 3 अरब डॉलर की कुल विकास सहायता के साथ कुछ अन्य परियोजनाओं को जारी रखा है।
- सामरिक महत्त्व: SCO के सामरिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने यूरेशिया में 'SECURE' के मूलभूत आयाम को स्पष्ट किया था। SECURE शब्द अर्थ है:
- S हमारे नागरिकों की सुरक्षा के लिये,
- E सभी के आर्थिक विकास के लिये,
- C क्षेत्र को जोड़ने के लिये,
- U हमारे लोगों को एकजुट करने के लिये,
- R संप्रभुता और अखंडता के सम्मान के लिये,
- E पर्यावरण संरक्षण के लिये।
आगे की राह:
- SCO के भीतर सुरक्षा क्षेत्र में "विश्वास के सुदृढ़ीकरण" के साथ-साथ समानता, आपसी सम्मान और समझ के आधार पर समूह के भागीदारों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये उच्च प्राथमिकता प्रदान करने की आवश्यकता है।
- SCO सदस्य देशों को संयुक्त संस्थागत क्षमता विकसित करनी चाहिये जो व्यक्तिगत राष्ट्रीय संवेदनशीलता का सम्मान करे और लोगों, समाज तथा राष्ट्रों के बीच संपर्क बनाने के लिये सहयोग की भावना पैदा करे।
- सदस्य देशों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि उन्हें एक सुरक्षित और स्थिर क्षेत्र बनने के लिये यह एक सामूहिक दाँव हैं जो मानव विकास सूचकांकों की प्रगति एवं सुधार में योगदान दे सकता है।
स्रोत- द हिंदू
अर्थ ओवरशूट डे, 2021
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर,फुटप्रिंट,पारिस्थितिक पदचिह्न मेन्स के लिये:अर्थ ओवरशूट डे से संबंधित वैश्विक पहल |
चर्चा में क्यों?
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के अनुसार, मानव प्रजाति ने पुन: उन सभी जैविक संसाधनों का उपयोग 29 जुलाई, 2021 तक कर लिया है जो पृथ्वी पर संपूर्ण वर्ष के लिये निर्धारित किये गए हैं।
- मानव प्रजाति वर्तमान में पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा उत्पादित 74% अधिक जैविक संसाधनों का उपयोग करती है, जिसका अर्थ है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का 1.75 गुना अधिक तेज़ी से प्रयोग कर रहे हैं।
- अर्थ ओवरशूट दिवस से लेकर वर्ष के अंत तक मानव प्रजाति पारिस्थितिक घाटे की स्थिति में रहती है।
प्रमुख बिंदु
- यह दिन उस तारीख को चिह्नित करता है जब किसी दिये गए वर्ष में पारिस्थितिक संसाधनों (उदाहरण के लिये मछली और जंगल) तथा सेवाओं के संदर्भ में मानव प्रजाति की मांग उसी वर्ष के दौरान पृथ्वी पर पुनः उत्पादन किये जा सकने वाले संसाधनों की मात्रा से अधिक होती है।
- अर्थ ओवरशूट डे की अवधारणा पहली बार यूके थिंक टैंक न्यू इकोनॉमिक्स फाउंडेशन के एंड्रयू सिम्स द्वारा प्रस्तुत की गई थी, जिसने वर्ष 2006 में ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के साथ मिलकर पहला ग्लोबल अर्थ ओवरशूट डे अभियान को शुरू किया था।
- ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क वर्ष 2003 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन है। इसकी प्रमुख रणनीति मज़बूत पारिस्थितिक पदचिह्न डेटा उपलब्ध कराना है।
- पारिस्थितिक पदचिह्न एक मीट्रिक है जो प्रकृति की पुन: उत्पन्न करने की क्षमता के विरुद्ध प्रकृति पर मानव मांग की व्यापक रूप से तुलना करता है।
- अर्थ ओवरशूट डे की गणना ग्रह की जैव क्षमता (उस वर्ष पृथ्वी द्वारा उत्पन्न पारिस्थितिक संसाधनों की मात्रा) को मनुष्यों के पारिस्थितिक पदचिह्न (उस वर्ष के लिये मानवता की मांग) से विभाजित करके तथा 365 से गुणा करके, एक वर्ष में दिनों की संख्या की गणना द्वारा की जाती है:
- (पृथ्वी की जैव क्षमता/मानवता का पारिस्थितिक पदचिह्न) x 365 = अर्थ ओवरशूट डे।
कारण:
- इस वर्ष ओवरशूट डे की वापसी का प्रमुख कारण वर्ष 2020 के दौरान वैश्विक कार्बन फुटप्रिंट में 6.6% की वृद्धि थी।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा पर लोगों की गतिविधियों के प्रभाव की एक माप है और इसे टन में उत्पादित CO2 उत्सर्जन के भार के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- अमेज़न वर्षावनों की कटाई में वृद्धि के कारण 'वैश्विक वन जैव क्षमता' में भी 0.5% की कमी आई थी।
- अकेले ब्राज़ील जो कि अमेज़न वर्षावनों का सबसे बड़ा क्षेत्र है, में लगभग 1.1 मिलियन हेक्टेयर वर्षावन समाप्त हो गए।
पूर्वानुमान:
- वर्ष 2021 में वनों की कटाई में साल-दर-साल 43% की वृद्धि होगी।
- इस वर्ष परिवहन के कारण होने वाला कार्बन फुटप्रिंट महामारी पूर्व स्तरों की तुलना में कम होगा।
- सड़क परिवहन और घरेलू हवाई यात्रा से होने वाला CO2 उत्सर्जन वर्ष 2019 के स्तर से 5% कम होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय उड्डयन के कारण CO2 उत्सर्जन वर्ष 2019 के स्तर से 33% कम होगा।
- लेकिन अर्थव्यवस्थाओं द्वारा कोविड-19 के प्रभाव से उबरने की कोशिश के चलते वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन पिछले वर्ष की तुलना में 4.8% बढ़ जाएगा।
- वैश्विक रूप से कोयले का उपयोग कुल कार्बन फुटप्रिंट का 40% होने का अनुमान है।
सुझाव:
- यदि विश्व ओवरशूट डे (World Overshoot Day) की तारीख को पीछे किया जाए तो सामान्य रूप से व्यवसाय का परिदृश्य काम नहीं करेगा।
- कई उपाय किये जा सकते हैं जैसे कि भोजन की बर्बादी को कम करना, भवनों के लिये वाणिज्यिक प्रौद्योगिकियाँ, औद्योगिक प्रक्रियाएँ और बिजली उत्पादन तथा परिवहन में कटौती करना।
संबंधित वैश्विक पहल:
- कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP):
- लगभग तीन दशकों से संयुक्त राष्ट्र (UN) COP नामक वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन के लिये पृथ्वी पर लगभग हर देश को साथ लाने का काम कर रहा है।
- तब से जलवायु परिवर्तन एक मामूली मुद्दे से वैश्विक प्राथमिकता बन गया है।
- इस वर्ष यह 26वाँ वार्षिक शिखर सम्मेलन होगा जिसे COP26 नाम दिया जाएगा जिसका आयोजन UK के ग्लासगो में होगा।
- पेरिस समझौता:
- यह जलवायु परिवर्तन पर कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है। इसे दिसंबर 2015 में पेरिस में हुए COP21 में 196 पार्टियों द्वारा अपनाया गया था और नवंबर 2016 में लागू हुआ था।
- इसका लक्ष्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है।
कुछ भारतीय पहल:
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंड
- उजाला योजना
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)