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डेली न्यूज़

  • 28 Aug, 2020
  • 56 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रधानमंत्री जन धन योजना के 6 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:  

प्रधानमंत्री जन धन योजना, जन धन दर्शक एप

मेन्स के लिये:

वित्तीय समावेशन, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में प्रधानमंत्री जन धन योजना की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार द्वारा देश के नागरिकों तक बैंकिंग सुविधाओं की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2014 में शुरू की गई ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana- PMJDY) ने 28 अगस्त 2020 को 6 वर्ष पूरे किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 15 अगस्त, 2014 को प्रधानमंत्री जन धन योजना की घोषणा की गई थी।
  •  इस योजना को 28 अगस्त 2014 को औपचारिक रूप से शुरू किया गया था। 

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  • इस योजना की शुरुआत से लेकर अब तक इसके तहत 40.35 करोड़ बैंक खाते खोले जा चुके हैं।
    • गौरतलब है कि इस योजना को लागू करने के पहले वर्ष में इसके तहत 17.90 करोड़ बैंक खाते खोले गए थे।
  • हालिया आँकड़ों के अनुसार, देश के विभिन्न बैंकों में जन धन खातों में जमा धनराशि 1.30 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। 

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  • इस योजना के तहत खोले गए कुल बैंक खातों में से 63.6% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं।
  • प्रधानमंत्री जन धन योजना में महिलाओं की भागीदारी 55.2% रही है।

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उद्देश्य:

  • किफायती मूल्य पर वित्तीय उत्पादों और सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना।
  • लागत में कमी लाने और पहुंच को व्‍यापक बनाने हेतु तकनीकी के प्रयोग को बढ़ावा देना।

मूल सिद्धांत :

  • बैंकिंग पहुँच से दूर व्यक्तियों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना (Banking the unbanked)
  • सुरक्षा प्रदान करना (Securing the unsecured)
  • वित्‍त पोषण की सुविधा प्रदान करना (Funding the unfunded)

उपलब्धियाँ:

  • अगस्त 2020 तक के आँकड़ों के अनुसार, इस योजना के तहत खोले गए 40.35 करोड़ PMJDY खातों में से 34.81 करोड़ (86.3%) खाते सक्रिय हैं।
  • अगस्त 2015 से लेकर अगस्त 2020 के बीच इस योजना के तहत खातों की संख्या में 2.3 गुना वृद्धि और जमा राशि में 5.7 गुना वृद्धि देखी गई है। 
  • वर्तमान में इस योजना के तहत प्रति खाता औसत जमा राशि 3,239 रुपए तक पहुँच गई है, अगस्त, 2015 की तुलना में इस योजना के तहत प्रति खाता औसत जमा राशि में 2.5 गुने की वृद्धि देखी गई है।  
    • गौरतलब है कि इस योजना के तहत खोले गए बैंक खातों में न्यूनतम धनराशि जमा  रखने की अनिवार्यता नहीं होती है।  
  • इस योजना के तहत कैशलेस बैंकिंग को बढ़ावा देने के लिये अब तक 29.75 करोड़ खाताधारकों को रूपे कार्ड (RuPay card) जारी किये जा चुके हैं।  ]
  • इस योजना के माध्यम से बैंकों पर बिना किसी अतिरिक्त दबाव के वित्तीय समावेशन के लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में महत्त्वपूर्ण प्रगति देखी गई है।   
  • इस योजना के क्रियान्वयन में सरकार की तत्परता से निम्न आय वर्ग के परिवारों को बचत करने का एक साधन प्राप्त हुआ है।  
  •  इस योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में लोगों तक बैंकिंग पहुँच में वृद्धि हुई है तथा इसके तहत महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भी इस योजना की एक बड़ी सफलता है। 

योजना को प्रभावी बनाने के प्रयास:

  • इस योजना की सफलता को देखते हुए केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में योजना के तहत खोले गए नए खातों (28 अगस्त, 2018 के बाद) पर ‘रूपे कार्ड बीमा’ (RuPay Card Insurance) के माध्यम से दुर्घटना बीमा कवर को 1 लाख रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया था।
  • सरकार ने इस योजना के तहत खोले गए बैंक खातों में ओवरड्राफ्ट  (Overdraft) की सीमा को 5,000 रुपए से बढ़ाकर 10,000 रुपए करने के साथ इस सुविधा के लिये 18-60 वर्ष आयु सीमा को बढ़ाकर 18-65 वर्ष कर दिया गया।
  • सरकार ने इस योजना के क्रियान्वयन को अधिक प्रभावी बनाने हेतु अपना ध्यान ‘प्रत्येक घर’ से हटाकर ‘हर बैंक खातारहित वयस्क’(Every Unbanked Adult) पर किया।  
  • COVID-19 महामारी के दौरान महिलाओं को आर्थिक चुनौतियों से निपटने हेतु सहायता के रूप में सरकार ने 26 मार्च, 2020 को सभी महिला जन धन खाता धारकों के खातों में तीन माह तक 500-500 रुपए जमा करने की घोषणा की थी।

अन्य सुधार: 

  • केवाईसी (KYC) की जटिल औपचारिकताओं से जुड़ी समस्या को दूर करने हेतु सरलीकृत केवाईसी/ई-केवाईसी (e-KYC) की शुरुआत।
  • रूपे डेबिट कार्ड या आधार समर्थित भुगतान प्रणाली (Aadhaar enabled Payment System-AePS) के माध्यम से अंतर-संचालन (Inter-Operability) की सुविधा।
  • पूर्व की ऑफ-लाइन प्रणाली के स्थान पर इस योजना के तहत खोले गए सभी खाते ऑनलाइन होते हैं, जिन्हें बैंकों की कोर बैंकिंग प्रणाली से संबद्ध किया गया है।  
  • जन धन दर्शक एप (Jan Dhan Darshak App): सरकार द्वारा नागरिकों को बैंक शाखाओं, एटीएम, बैंक मित्रों, डाक घरों आदि की अवस्थिति की जानकारी हेतु जन धन दर्शक एप लॉन्च किया गया है। 
    • इस एप का प्रयोग ऐसे गावों की पहचान के लिये भी किया जाता है जहां 5 किमी. के दायरे में किसी भी प्रकार की बैंकिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसके तहत चिन्हित गाँवों में 'राज्य स्तरीय बैंकर्स समितियों' के सहयोग से बैंक शाखा शुरू करने का प्रयास किया जाता है। 

आगे की राह: 

  • PMJDY खाताधारकों का सूक्ष्म बीमा योजनाओं के तहत कवरेज सुनिश्चित करने हेतु पात्र खाताधारकों ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ (PMJJBY) और ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’ (PMSBY) के तहत शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है।   
  • रूपे कार्ड और अन्य सुविधाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में कैशलेस विनिमय को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। 
  • जन धन योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्यमों के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये। 

  स्रोत:  पीआईबी


शासन व्यवस्था

स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति का मसौदा

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण, स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का महत्त्व और डेटा संरक्षण संबंधी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (National Health Authority-NHA) ने टिप्पणियों और प्रतिक्रियाओं के लिये स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति (Health Data Management Policy) का मसौदा जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि स्वास्थ्य डेटा प्रबंधन नीति का मसौदा स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित डेटा की गोपनीयता और उसकी सुरक्षा के लिये न्यूनतम मानक निर्धारित करने हेतु एक मार्गदर्शक दस्तावेज़ के रूप में कार्य करेगा।
  • उद्देश्य
    • आम नागरिकों के व्यक्तिगत एवं संवेदनशील डेटा के सुरक्षित प्रसंस्करण हेतु पर्याप्त मार्गदर्शन प्रदान करना एवं एक रूपरेखा निर्मित करना।
    • व्यक्तिगत और चिकित्सा संबंधी डेटा को डिजिटल रूप प्रदान करना, ताकि स्वास्थ्य सेवा  प्रदाताओं और आम नागरिकों द्वारा इसे आसानी से प्राप्त किया जा सके, साथ ही यह पूर्ण रूप से स्वैच्छिक प्रकृति का होगा और इसे एक व्यक्ति की सहमति और अंतर्राष्ट्रीय मानकों का पालन करके ही एकत्रित किया जाएगा।
    • डेटा की गोपनीयता और उसकी सुरक्षा के संबंध में जागरुकता प्रदान करना ।
    • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र का मूल्यांकन करने के लिये आवश्यक संस्थागत तंत्र स्थापित करना।
    • भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र में विद्यमान सूचना प्रणाली का लाभ उठाना।

व्यक्तिगत डेटा का अर्थ

सरल और बुनियादी रूप में व्यक्तिगत डेटा किसी भी प्रकार के डेटा का वह समूह होता है, जिसमें व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी शामिल होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि व्यक्तिगत डेटा को देखकर अथवा उसका विश्लेषण कर किसी व्यक्ति विशिष्ट की पहचान करना संभव होता है।

  • प्रमुख प्रावधान
    • यह मसौदा नीति मुख्य तौर पर उन व्यक्तियों के संवेदनशील डेटा को सुरक्षित रखने के लिये रूपरेखा प्रस्तुत करती है जो राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं।
    • संबंधित दस्तावेज़ के अनुसार, राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के तहत एकत्र किये गए डेटा को केंद्रीय स्तर, राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर और स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर न्यूनतमता (Minimality) के सिद्धांत को अपनाकर संग्रहीत किया जाएगा।
    • प्रस्तावित मसौदे में कहा गया है कि ‘स्वास्थ्य आईडी’ (Health ID) के विकल्प का चयन करने वाले रोगियों को अपने व्यक्तिगत तथा संवेदनशील डेटा को एकत्र करने और उसे संसाधित करने के संबंध में संपूर्ण नियंत्रण और अधिकार दिया जाएगा।
      • इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि रोगी किसी भी समय व्यक्तिगत डेटा को एकत्र करने को लेकर दी गई अपनी सहमति वापस ले सकते हैं।
    • स्वास्थ्य सूचना प्रदाताओं और उपयोगकर्त्ताओं समेत डेटा का प्रसंस्करण करने वाले सभी संस्थानों को एक ‘व्यक्तिगत डेटा उल्लंघन प्रबंधन तंत्र’ बनाना होगा, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्तिगत डेटा के अनधिकृत या आकस्मिक प्रकटीकरण, साझाकरण, परिवर्तन या उपयोग आदि की स्थिति में राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) और अन्य संबंधित संस्थाओं को तत्काल सूचना मिल सके।
    • मसौदे के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) रोगियों के व्यक्तिगत डेटा उल्लंघन की घटनाओं को पहचानने, उन्हें ट्रैक करने, उनकी समीक्षा करने और उनकी जाँच करने के लिये आवश्यक प्रक्रिया निर्मित करेगा।

पृष्ठभूमि

  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष 2017 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (National Health Policy) जारी की थी, जिसमें एक एकीकृत स्वास्थ्य सूचना प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से एक डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी तंत्र के निर्माण की परिकल्पना की गई थी। 
  • जिसके पश्चात् जुलाई, 2019 में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के तत्कालीन अध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित एक समिति ने नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट (NDHB) जारी किया।
  • नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट (NDHB) के तहत राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) गठित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया।
  • इसके पश्चात् 74वें स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2020) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने वक्तव्य में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) की घोषणा की।

राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) 

  • 74वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया से जुड़ी तीन परियोजनाओं की घोषणा की थी, जिसमें राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन भी शामिल था।
  • राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) एक पूर्ण डिजिटल स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र होगा, जिसके तहत चार प्रमुख डिजिटल पहलों; हेल्थ आईडी, व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड, डिजी डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधा रजिस्ट्री को लॉन्च किया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी का प्रसार इस बात की याद दिलाता है कि हम बीमारियों के प्रकोप को नियंत्रित करने तथा समझने में कितने पीछे हैं। यह इस ओर संकेत करता है कि 'एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम' की अवधारणा वर्तमान समय में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रही है। 

प्रमुख बिंदु:

  • वैज्ञानिक समुदाय COVID-19 के कारक SARS-CoV-2 वायरस का पता लगाने में समर्थ है परंतु वैज्ञानिक समुदाय कई बार अनेक बीमारियों के कारण का पता लगाने में विफल रहे हैं।
  • भारत में रोगों के प्रकोप के अध्ययन की ज़िम्मेदारी ‘राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र’ (National Centre for Disease Control- NCDC) के पास है।

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र:

  • यह देश में रोगों की निगरानी के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है। 
  • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य, प्रयोगशाला विज्ञान एंटोमोलॉजिकल (Entomological) सेवाओं हेतु विशेष कार्यबल के प्रशिक्षण के लिये राष्ट्रीय स्तर का संस्थान भी है और विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों में शामिल है।

एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP):

पृष्ठभूमि:

  • रोगों के प्रकोप का शीघ्रता से पता लगाने और अनुक्रिया देने के लिये नवंबर, 2004 में ‘विश्व बैंक’ की सहायता से 'एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम' (Integrated Disease Surveillance Programme- IDSP) शुरू किया गया था।
  • एक ‘केंद्रीय निगरानी इकाई’ (Central Surveillance Unit- CSU) की स्थापना 'राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र’, दिल्ली में की गई है।
  • सभी राज्यों तथा ज़िलों (SSU/DSU) में निगरानी इकाइयों की स्थापना की गई है। 

IDSP का उद्देश्य:

  • रोगों की प्रवृत्ति पर निगरानी रखने के लिये विकेंद्रीकृत निगरानी प्रणाली को मज़बूत करना।
  • प्रशिक्षित रैपिड रिस्पांस टीम (Rapid Response Team- RRTs) के माध्यम से शुरुआती चरण में प्रकोपों ​​का पता लगाना एवं प्रतिक्रिया देना।
  • डेटा के संग्रह, संकलन, विश्लेषण और प्रसार के लिये सूचना संचार प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को मज़बूत बनाना।

IDSP कार्यक्रम से जुड़ी चुनौतियाँ:

रोगों का उचित वर्गीकरण नहीं:

  • IDSP के तहत बीमारियों को वर्गीकृत करने के लिये छह सिंड्रोमों; जिसमें बुखार, तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी, तीव्र शारीरिक पक्षाघात (Acute flaccid Paralysis), डायरिया, पीलिया, असामान्य घटनाओं के कारण मृत्यु या अस्पताल में भर्ती होना शामिल हैं, की पहचान की गई है।
  • स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं द्वारा रोगी के सामान्य लक्षणों को देखकर सामान्य बुखार के रूप में वर्गीकृत कर दिया जाता है, तथा वास्तविक बीमारी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। 

डेटा के लिये राज्यों पर निर्भरता: 

  • IDSP के पास रोगों के प्रकोप के संबंध में पर्याप्त जानकारी का अभाव रहता है। IDSP रोगों की निगरानी के लिये मीडिया रिपोर्ट तथा राज्य मशीनरी पर निर्भर करता है।

सार्वजनिक डोमेन में सूचना का अभाव:

  • यह देखा गया है कि अनेक बीमारियों के प्रकोप में जब मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया और स्क्रब टायफस आदि की जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई, इनमें से अनेक मामलों की रिपोर्ट आगे जांच के लिये भेजी गई। परंतु इसके परिणाम सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं।
  • IDSP वेबसाइट पर मासिक 'रोग चेतावनी' जारी की जाती है। नवीनतम मासिक रिपोर्ट, सितंबर 2019 में उपलब्ध कराई गई थी।

आगे की राह:

  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में संसाधनों की कमी, कार्य का अधिक बोझ, कानूनों का अप्रभावी कार्यान्वयन जैसी कई समस्याएँ विद्यमान हैं। यदि हम भारत को एक स्वस्थ राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं तो उपर्युक्त समस्याओं को दूर किया जाना आवश्यक है।
  • COVID- 19 की भयावह स्थिति ने मानव तथा पशुओं (घरेलू एवं जंगली) के स्वास्थ्य के बीच के संबंधों को उजागर किया है, ऐसे में एकीकृत स्वास्थ्य फ्रेमवर्क- जिसे ’वन हेल्थ माॅडल’ (Onehealth Model) के रूप में भी जाना जाता है, को देश में लागू करने का यह उचित समय है।

भारत में रहस्यमयी बीमारियों के कुछ मामले:

असम का तेज़पुर ज़िला:

  • अगस्त 2019 में, असम के तेज़पुर में 164 लोगों के संबंध में एक रहस्यमय बुखार की सूचना प्राप्त हुई। रोगियों में सभी उम्र के लोग शामिल थे और महिला और पुरुष दोनों प्रभावित थे।
  • इन रोगियों पर मलेरिया के लिये परीक्षण किया गया था, लेकिन सभी की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी। 
  • इन रोगियों के वास्तविक रोग का पता नहीं चल सका है  लेकिन लक्षणों के आधार पर रोगियों का इलाज किया गया।

राजस्थान का सवाई माधोपुर ज़िला:

  • राजस्थान के सवाई माधोपुर ज़िले के चान गाँव में सितंबर 2019 में बुखार के 1,000 से अधिक मामलों के कारण के बारे में कोई उचित जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • कुल 28 रक्त नमूने एकत्र किये गए जिनमें से आधे मामले डेंगू, चिकनगुनिया या स्क्रब टाइफस से पॉज़िटिव पाए गए।
  • तीन बच्चे कोरियनेबैक्टीरियम (Corynebacterium) पॉज़िटिव पाए गए। 
    • कोरियनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया और मलेरिया का कारण होता है।

ओडिशा का मल्कानगिरि ज़िला:

  • ओडिशा के मल्कानगिरि ज़िले के एक गाँव में 15 लोगों की रहस्यमयी बुखार से मृत्यु हो गई।
  • इसी प्रकार बरेली (उत्तरप्रदेश), सूरत (गुजरात) में भी रहस्यमयी बुखार के मामले देखने को मिले हैं।  

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

वोल्बाचिया बैक्टीरिया के माध्यम से डेंगू प्रसार पर नियंत्रण

प्रिलिम्स के लिये: 

वोल्बाचिया बैक्टीरिया, एडीज़ एजिप्टी, राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

वेक्टर जनित रोग और उनके नियंत्रण के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडोनेशिया के कुछ शोधकर्त्ताओं ने एक परीक्षण के दौरान मच्छरों के ‘वोल्बाचिया’ (Wolbachia) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होने पर डेंगू के मामलों में भारी गिरावट दर्ज की है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस शोध के तहत वैज्ञानिकों ने दो वर्ष पहले मादा मच्छरों के एक समूह को ‘वोल्बाचिया’ (Wolbachia) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित कर इंडोनेशिया के ‘योग्याकार्ता’ (Yogyakarta) शहर के कुछ हिस्सों में छोड़ दिया था।
  • 26 अगस्त, 2020 को वैज्ञानिकों द्वारा जारी परिणाम के अनुसार, इस शोध में शामिल किये गए शहर के हिस्सों में डेंगू के मामलों में 77% की गिरावट देखी गई है।
  • इस शोध के सकारात्मक परिणाम से डेंगू के साथ मच्छर जनित कुछ अन्य बीमारियों के बड़े पैमाने पर नियंत्रित करने की संभावनाएँ देखी जा रहीं हैं।

वोल्बाचिया बैक्टीरिया:   

  • यह बैक्टीरिया कीड़ों की कुछ प्रजातियों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है जिनमें मच्छरों की भी कुछ प्रजातियाँ शामिल हैं।
  • हालाँकि यह बैक्टीरिया एडीज़ एजिप्टी प्रजाति के मच्छरों में नहीं पाया जाता है।
    • ध्यातव्य है कि ‘एडीज़ एजिप्टी’ (Aedes Aegypti) प्रजाति के मच्छर डेंगू, चिकनगुनिया, ज़िका (Zika) और पीत ज्वर (Yellow Fever) जैसी गंभीर बीमारियों के प्रसार के लिये उत्तरदायी हैं।   
  • वर्ष 2008 में ऑस्ट्रेलिया के एक अनुसंधान/शोध समूह ‘वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम’ (World Mosquito Program- WMP) द्वारा एडीज़ एजिप्टी’ प्रजाति के मच्छरों में वोल्बाचिया बैक्टीरिया की भूमिका पर शोध किया गया। 
  • इस शोध में पाया गया कि यदि एडीज़ एजिप्टी मच्छर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित हों तो ये डेंगू फैलाने में सक्षम नहीं होते हैं।
  • एडीज़ एजिप्टी’ मच्छरों में इस बैक्टीरिया के उपस्थित होने पर डेंगू के विषाणुओं को अपनी प्रतिकृति तैयार करने में कठिनाई होती है।   

वोल्बाचिया बैक्टीरिया द्वारा डेंगू पर नियंत्रण:

  • वोल्बाचिया बैक्टेरिया से संक्रमित मच्छर को किसी क्षेत्र में छोड़ा जाता है तो वे अन्य स्थानीय जंगली मच्छरों के साथ संकरण (Interbreeding) करते हैं।
  • इस प्रकार समय के साथ धीरे-धीरे मच्छरों की कई पीढ़ियाँ प्राकृतिक रूप से वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होने लगती हैं।
  • इस प्रक्रिया में एक ऐसी स्थिति आएगी जब उस क्षेत्र में मच्छरों की आबादी का एक बड़ा हिस्सा वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित होगा, जिससे मच्छरों के काटने से लोगों को डेंगू होने की संभावनाएँ कम हो जाएंगी।
  • इंडोनेशिया में किये गए परीक्षण के दौरान शोधार्थियों ने ‘योग्याकार्ता’ (Yogyakarta) शहर को 24 क्लस्टर में बाँट दिया और अगले कुछ महीनों के दौरान इनमें से अनियमित रूप से चुने 12 क्लस्टरों में वोल्बाचिया मच्छरों को छोड़ा गया।
  • इन मच्छरों के कारण क्षेत्र के अधिकांश मच्छर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित हो गए और 27 महीनों बाद एकत्र किये गए आँकड़ों में शोधार्थियों द्वारा वोल्बाचिया संक्रमित मच्छरों वाले क्षेत्र में गैर-वोल्बाचिया संक्रमित मच्छरों वाले क्षेत्र की तुलना में डेंगू के मामलों में 77% तक गिरावट देखी गई। 

महत्त्व:

  • इस प्रयोग के माध्यम से वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया है कि यह विधि एक शहर में डेंगू के नियंत्रण में सफल रही है, ऐसे में यदि इसे व्यापक पैमाने पर अपना कर विश्व के अनेक हिस्सों से अगले कई वर्षों के लिये डेंगू को समाप्त किया जा सकता है। 
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, यह विधि केवल एक विषाणु को ही नहीं बल्कि कई फ्लेवीवायरस (Flaviviruses) को रोकती है, ऐसे में यह ‘एडीज़ एजिप्टी’ से फैलने वाली अन्य बीमारियों को भी रोकने में प्रभावी होगी। 

अन्य देश की प्रतिक्रिया:  

  • वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम द्वारा इससे पहले ऑस्ट्रेलिया और अन्य 11 देशों में भी छोटे स्तर पर ऐसे परीक्षण किये जा चुके हैं परंतु इंडोनेशिया में पहली बार यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomised Controlled Trial) का प्रयोग किया गया। 
  • फ्राँस की इनोवाफीड (InnovaFeed) नामक एक कंपनी ने पहली बार औद्योगिक स्तर पर वोल्बाचिया बैक्टीरिया से संक्रमित मच्छरों के विकास हेतु वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम के साथ एक साझेदारी की है।  

डेंगू (Dengue):

  • डेंगू बुखार और डेंगू रक्तस्रावी बुखार (Dengue Haemorrhagic Fever) एक तीव्र बुखार है जो चार अलग-अलग डेंगू वायरस सिरोटाइप (डेन 1,2,3 और4) के कारण होता हैं। 
  • यह वायरस एडीज़ एजिप्टी प्रजाति के मादा मच्छरों से फैलता है।
  • वेक्टर एडीज़ एजिप्टी घरों के आसपास इकट्ठा स्वच्छ जल में प्रजनन करती हैं और ये शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में पाई जाती हैं ।    
  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organisation)के अनुसार, हाल के कुछ दशकों में वैश्विक स्तर पर डेंगू के मामलों में तीव्र वृद्धि देखी गई है, हालाँकि इनमें से अधिकांश मामले आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं किये जाते।   
  • WHO के अनुमान के अनुसार, विश्व भर में प्रतिवर्ष डेंगू संक्रमण के लगभग 39 करोड़ मामले देखे जाते हैं जिनमें से सिर्फ 9.6 करोड़ मामलों में डेंगू के लक्षण स्पष्ट होते हैं।
  • ‘राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम’ (National Vector-Borne Disease Control Programme) के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत में डेंगू के 1 लाख से अधिक मामले दर्ज किये गए जबकि वर्ष 2019 में इनकी संख्या बढ़कर 1.5 लाख से अधिक पहुँच गई थी।

मच्छर जनित अन्य बीमारियाँ:

  • एडीज़ एजिप्टी  के अतिरिक्त मादा एनाफिलीज मच्छर (Anopheles Mosquitoes)-मलेरिया और क्यूलेक्स प्रजाति जापानी इन्सेफेलाइटिस, लिम्फेटिक फाइलेरिया तथा वेस्ट नाइल फीवर के लिये उत्तरदाई होते हैं।

राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम’

(National Vector-Borne Disease Control Programme): 

  • राष्ट्रीय वेक्टर-जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2003-04 में की गई थी।
  •  राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम , राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम और कालाजार नियंत्रण कार्यक्रम का विलय कर इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी।
  • इस कार्यक्रम के तहत जापानी इंसेफलाइटिस (Japanese Encephalitis) और डेंगू (Dengue) को भी शामिल किया गया है।

उद्देश्य: 

  • रोग और प्रकोप की निगरानी। 
  • त्वरित निदान और  प्रबंधन। 
  • सामुदायिक भागीदारी और सामाजिक गतिशीलता के माध्यम से वेक्टर नियंत्रण। 
  • क्षमता निर्माण। 

विश्व मच्छर दिवस (World Mosquito Day): ब्रिटिश चिकित्सक, सर रोनाल्ड रॉस की स्मृति में प्रतिवर्ष 20 अगस्त को विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है।  सर रोनाल्ड रॉस ने 20अगस्त, 1897 में मनुष्यों में मलेरिया के संक्रमण के लिये मादा मच्छरों के उत्तरदायी होने की खोज की थी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

जीएसटी मुआवज़े की कमी और ऋण का विकल्प

प्रिलिम्स के लिये

वस्तु एवं सेवा कर, GST क्षतिपूर्ति संबंधी नियम, जीएसटी परिषद

मेन्स के लिये

जीएसटी मुआवज़े की कमी का मुद्दा

चर्चा में क्यों?

कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और उसके आर्थिक प्रभावों को ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानी ‘दैवीय आपदा’ की संज्ञा देते हुए वित्तीय मंत्रालय ने स्वीकार किया कि राज्यों को इस वर्ष 2.35 लाख करोड़ रुपए के GST मुआवज़े की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • जीएसटी परिषद की 41वीं बैठक में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यों को अनुमानित मुआवज़े की कमी के विवादास्पद मुद्दे को हल करने के लिये दो विकल्प प्रस्तुत किये।

पहला विकल्प 

  • वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किये गए पहले विकल्प के अंतर्गत केंद्र सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से राज्यों को उचित ब्याज़ दर पर अनुमानित जीएसटी कमी, जो कि लगभग 97,000 करोड़ रुपए है, को ऋण के रूप में लेने के लिये एक विशेष विंडो प्रदान करेगी।
  • राज्य सरकारों द्वारा यह धनराशि उपकर संग्रह के माध्यम से जीएसटी कार्यान्वयन के 5 वर्ष बाद (यानी वर्ष 2022 के बाद) चुकाई जा सकती है।

दूसरा विकल्प

  • वित्त मंत्रालय द्वारा राज्यों को प्रस्तुत किये गए दूसरे विकल्प के अंतर्गत राज्य सरकारें मौजूदा वित्तीय वर्ष में जीएसटी राजस्व में आई संपूर्ण कमी को उधार के रूप में ले सकती हैं, जिसमें केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) राज्यों की मदद करेंगे। इस वर्ष के जीएसटी राजस्व में कुल 2.35 लाख रुपए की कमी अनुमानित है।
  • यहाँ यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत पहले विकल्प (97,000 करोड़ रुपए की राशि) में केवल जीएसटी कार्यान्वयन के कारण आई राजस्व की कमी को शामिल किया गया है, जबकि मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत दूसरे विकल्प में जीएसटी कार्यान्वयन के साथ-साथ मौजूदा कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रभाव को भी शामिल किया गया है।

निर्णय की आलोचना

  • दोनों ही विकल्पों से यह स्पष्ट है कि उधार ली गई राशि राज्य सरकारों द्वारा ही वहन की जाएगी, यद्यपि यह ऋण उचित ब्याज़ दर पर दिया जाएगा, ऐसे में राज्यों पर ऋण का बोझ काफी अधिक बढ़ जाएगा।
  • ध्यातव्य है कि कई राज्यों ने मांग की है कि राज्य सरकारों के स्थान पर केंद्र सरकार ही आवश्यक राशि ऋण के रूप में उधार ले और क्षतिपूर्ति के रूप में राज्यों को वितरित करे।
  • कई राज्यों के वित्त मंत्रियों ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गए विकल्प से संतुष्टि व्यक्त की है।
  • पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत समाधान राज्यों पर ज़बरदस्ती लागू किया जा रहे हैं और यह पंजाब के लिये स्वीकार्य नहीं हैं।
  • वित्त मंत्रालय के इस निर्णय का विरोध करते हुए दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि ‘दिल्ली का कुल राजस्व संग्रह निर्धारित लक्ष्य से तकरीबन 57 प्रतिशत कम है। ऐसे में यदि मुआवज़ा नहीं मिलता है तो दिल्ली सरकार के समक्ष गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है।

जीएसटी क्षतिपूर्ति और राजस्व संग्रह में कमी

  • नियम के अनुसार, वर्ष 2022 यानी GST कार्यान्वयन शुरू होने के बाद पहले पाँच वर्षों तक GST कर संग्रह में 14% से कम वृद्धि (आधार वर्ष 2015-16) दर्शाने वाले राज्यों के लिये क्षतिपूर्ति की गारंटी दी गई है। केंद्र द्वारा राज्यों को प्रत्येक दो महीने में क्षतिपूर्ति का भुगतान किया जाता है।
  • हालाँकि, क्षतिपूर्ति भुगतान में होने होने वाली देरी राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जिसकी शुरुआत बीते वर्ष अक्तूबर में हुई थी, जब राज्यों के जीएसटी राजस्व में कमी होना शुरू हो गया था।
  • अप्रैल-जून तिमाही में जीएसटी राजस्व में 41 प्रतिशत की गिरावट के साथ कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी ने जीएसटी राजस्व के इस अंतराल को और अधिक बढ़ा दिया है।
  • केंद्र सरकार ने इसी वर्ष 27 जुलाई को राज्यों को मार्च माह के लिये 13,806 करोड़ रुपए जारी किये थे, हालाँकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में चार माह (अप्रैल-जुलाई) के लिये मुआवज़ा अभी लंबित है।
  • इस वर्ष वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक वार्षिक जीएसटी मुआवज़े के लिये लगभग 3 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी, वहीं इसके भुगतान के लिये उपकर संग्रह लगभग 65,000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। इस प्रकार कुल 2.35 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित कमी हो सकती है।
    • इस प्रकार वित्त मंत्रालय की गणना के अनुसार, GST मुआवज़े में GST कार्यान्वयन के कारण मात्र 97,000 करोड़ रुपए की कमी हुई है, जबकि शेष कमी COVID-19 के प्रभाव के कारण हुई है।

Yawning-deficit

वस्तु एवं सेवा कर (GST)- पृष्ठभूमि

  • ऐतिहासिक वस्तु एवं सेवा कर 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। 1 जुलाई, 2018 को GST लागू किये जाने के एक वर्ष पूरा होने पर भारत सरकार द्वारा इस दिन को GST दिवस के रूप में मनाया गया था।
  • गौरतलब है कि GST एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे भारत को एकीकृत साझा बाज़ार बनाने के उद्देश्य से लागू किया गया है। यह निर्माता से लेकर उपभोक्ताओं तक वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति पर लगने वाला एकल कर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

आरक्षण के उप-वर्गीकरण की अवधारणा

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण का उप-वर्गीकरण, जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामला, अनुच्छेद- 341, क्रीमी लेयर की अवधारणा, केरल राज्य बनाम एन. एम. थॉमस मामला

मेन्स के लिये:

आरक्षण के उप-वर्गीकरण की अवधारणा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण के उप-वर्गीकरण (कोटा के भीतर कोटा) पर कानूनी बहस को फिर से शुरू कर दिया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति वर्ग में सभी अनुसूचित जातियों का समान प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित करने के लिये कुछ को अधिमान्य उपचार देने के पक्ष का समर्थन किया है। 
  • वर्ष 2005 'ई. वी. चिनैय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (E V Chinnaiah v State of Andhra Pradesh and Others) मामले में पाँच न्यायाधीशों की एक पीठ ने निर्णय दिया था कि राज्य सरकारों के पास आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने की कोई शक्ति नहीं है।
  • चूंकि समान शक्ति (इस मामले में पाँच न्यायाधीश) की एक पीठ पिछले निर्णय को रद्द नहीं कर सकती, अत: मामले में निर्णय लेने के लिये इसे एक बड़ी संवैधानिक पीठ को भेजा गया है। 
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्थापित की गई बड़ी खंडपीठ दोनों निर्णयों (अनुसूचित जातियों की उप-श्रेणियाँ बनाने तथा इस संबंध में राज्यों को अधिकार) पर पुनर्विचार करेगी।

'ई. वी. चिनैय्या बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य मामला:

(E V Chinnaiah v State of Andhra Pradesh and Others) 

  • वर्ष 2005 के इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि किसी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में शामिल करने या बहिष्कृत करने की शक्ति केवल राष्ट्रपति के पास है, और राज्य सूची के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं।

आरक्षण का उप-वर्गीकरण:

  • अनेक राज्यों का मानना है कि अनुसूचित जातियों में भी कुछ अनुसूचित जातियों का सकल  प्रतिनिधित्त्व अन्य की तुलना में कम है।
    • अनुसूचित जातियों के भीतर की असमानता को कई रिपोर्टों में रेखांकित किया गया है। 
  • इस असमानता को संबोधित करने के लिये आरक्षण के उप-वर्गीकरण अर्थात कोटा के अंदर कोटा प्रदान करने की बात की जाती है।

राज्यों में आरक्षण का उप-वर्गीकरण:

बिहार:

  • वर्ष 2007 में बिहार सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के भीतर पिछड़ी जातियों की पहचान करने के लिये 'महादलित आयोग' का गठन किया गया था।

तमिलनाडु:

  • राज्य सरकार द्वारा गठित न्यायमूर्ति एम. एस. जनार्थनम (Janarthanam) की रिपोर्ट में पाया गया है कि राज्य में अनुसूचित जाति की आबादी राज्य की आबादी की 16% होने के बावजूद उनका सरकारी नौकरियों में केवल 0-5% प्रतिनिधित्त्व  था।
  • तमिलनाडु सरकार द्वारा अनुसूचित जाति कोटे के भीतर 3% कोटा अरुंधतिअर (Arundhatiyar) जाति को प्रदान किया गया है। 

आंध्र प्रदेश:

  • वर्ष 2000 में, न्यायमूर्ति रामचंद्र राजू की रिपोर्ट के आधार पर आंध्र प्रदेश की विधायिका द्वारा 57 अनुसूचित जनजातियों को मिलाकर एक उप-समूह का निर्माण किया गया। 
  • इन अनुसूचित जनजातियों का उनकी आबादी के अनुपात में अनुसूचित जातियों के कोटे में 15% कोटा निर्धारित किया गया।

पंजाब:

  • पंजाब सरकार द्वारा भी अनुसूचित जाति कोटा में बाल्मीकि और मज़हबी सिखों को वरीयता देने वाला कानून बनाया है। 

उप-वर्गीकरण के आधार:

क्रीमी लेयर की अवधारणा:

  • सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि आरक्षण का लाभ 'सबसे कमज़ोर लोगों को' (Weakest of the Weak) प्रदान किया जाना चाहिये। 
  • वर्ष 2018 में 'जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले' में अनुसूचित जनजातियों के भीतर एक 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा के निर्णय को कायम रखा गया।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने ही 12 वर्ष पुराने ‘एम. नागराज बनाम भारत’ सरकार मामले में दिये गए पूर्ववर्ती निर्णय पर सहमति व्यक्त की गई थी।
    • एम. नागराज मामले में सर्वोच्च न्यायालय का मानना था कि अनुसूचित जाति और जनजाति (SC/ST) को मिलने वाला लाभ समाज के सभी वर्गों को मिल सके इसके लिये आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा का प्रयोग करना आवश्यक है।
  • वर्ष 2018 में पहली बार अनुसूचित जातियों की पदोन्नति में क्रीमी लेयर' की अवधारणा को लागू किया गया था।
  • केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 के जरनैल सिंह मामले में निर्णय की समीक्षा की मांग की है और मामला वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।

अनुच्छेद- 341:

  • संविधान के अनुच्छेद- 341 के तहत अनुसूचित जातियों को निर्धारित करने के लिये राष्ट्रपति को सशक्त किया गया है।
  • एक राज्य में SC के रूप में अधिसूचित जाति दूसरे राज्य में SC रूप में हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती।
  • न्यायालय का मानना है कि केवल वरीयता देने, पुनर्व्यवस्थित करने, उप-वर्गीकरण करने से अनुच्छेद- 341 के तहत अधिसूचित सूची में कोई परिवर्तन नहीं आता है। अनुच्छेद 341 राष्ट्रपति की सहमति के बिना किसी भी जाति का समावेश या बहिष्करण करने की मनाही करता है, न कि उप-वर्गीकरण की।

समानता का अधिकार:

  • निश्चित कारणों तथा आधारों पर किया गया उप-वर्गीकरण समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। 
  • उप-वर्गीकरण से सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जनजातियों में न केवल 'आनुपातिक समानता' की प्राप्ति होगी अपितु 'वास्तविक समानता' की प्राप्ति होगी।

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क: 

अनुसूचित जातियाँ  एक वर्ग:

  • 1976 के ‘केरल राज्य बनाम एन. एम. थॉमस मामले’ में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि 'अनुसूचित जातियाँ (SC) कोई जाति नहीं हैं, अपितु वे वर्ग हैं।
  • इस मामले में यह तर्क दिया गया कि 'सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन' की शर्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति पर लागू नहीं किया जा सकता है।
  • अस्पृश्यता के कारण सभी अनुसूचित जातियों को विशेष उपचार दिया जाना चाहिये। 

वोट बैंक की राजनीति संभव:

  • आरक्षण के उप-वर्गीकरण में सरकार द्वारा लिये जाने वाले निर्णय वोट बैंक की राजनीति के आधार पर हो सकते हैं।
  • इस तरह के संभावित मनमाने बदलाव से बचने के लिये अनुच्छेद- 341 में राष्ट्रपति की सूची की परिकल्पना की गई थी। 

आगे की राह:

  • सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखे बिना सामाजिक परिवर्तन का संवैधानिक लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अत: इस दिशा में उचित आरक्षण उप-वर्गीकरण प्रणाली को अपनाना एक प्रभावी कदम हो सकता है।

भारत में अनुसूचित जनजातियाँ:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों का प्रतिशत भारत की जनसंख्या का 16.6% है। 
  • सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2018-19 में देश में कुल 1,263 अनुसूचित जनजातियाँ थी। 
  • अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप में किसी भी समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में निर्दिष्ट नहीं किया गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय समाज

एमनेस्टी इंटरनेशनल और दिल्ली के दंगे

प्रिलिम्स के लिये

एमनेस्टी इंटरनेशनल

मेन्स के लिये

मानवाधिकारों के संबंध में एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

चर्चा में क्यों?

मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने अपनी एक रिपोर्ट में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के दौरान पुलिस द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के सभी आरोपों की स्वतंत्र जाँच करने की मांग की है।

प्रमुख बिंदु

  • 50 से अधिक वकीलों, दंगे से सुरक्षित बचे लोगों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का साक्षात्कार करने के पश्चात् एमनेस्टी इंटरनेशनल (AI) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हिंसा के दौरान कई घटनाओं में पुलिसकर्मियों का आचरण चिंता का विषय है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, दंगों में सुरक्षित बचे कई लोगों ने दावा किया है कि 23 से 29 फरवरी के बीच दंगों के दौरान कई अवसरों पर पुलिस ने कॉल का कोई जवाब नहीं दिया।
  • वहीं दिल्ली पुलिस ने दावा किया है कि दिल्ली दंगों के सभी मामलों की जाँच पूरी तरह कानूनी और पेशेवर तरीके से की गई है। 
  • गौरतलब है कि इसी वर्ष 23 फरवरी को पूर्वोत्तर दिल्ली में नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और उसके विरोधियों के बीच दंगे भड़क उठे और जल्द ही इन दंगों ने सांप्रदायिक रंग ले लिया। 
  • दिल्ली में हुए इन सांप्रदायिक दंगों ने एक बार पुनः देश में विभिन्न धर्मों के बीच गहराती जा रही खाई को उजागर किया था। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के केंद्रबिंदु में हुए इन दंगों में 50 से अधिक लोग मारे गए थे।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल (AI) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोई भी व्यक्ति कानून से अधिक नहीं है और खासकर वे लोग जो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिये उत्तरदायी हैं।
  • ध्यातव्य है कि इतिहास में ऐसे बहुत कम अवसर दिखाई देते है जब सांप्रदायिक हिंसा के दौरान पुलिस अधिकारियों को उनकी भूमिका के लिये उत्तरदायी ठहराया गया हो।
    • वर्ष 1987 के हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 31 वर्ष बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने 16 अधिकारियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के बारे में

  • एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) लंदन स्थित एक गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1961 में पीटर बेन्सन नामक एक ब्रिटिश वकील द्वारा की गई थी।
  • पीटर बेन्सन ने एक जनांदोलन के रूप में इसकी स्थापना मुख्य तौर पर दुनिया भर में उन कैदियों को रिहा कराने के उद्देश्य से की थी, जिन्हें अपनी राजनीतिक, धार्मिक, या अन्य धर्मनिरपेक्ष मान्यताओं की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये कैद किया गया हो, भले ही उन्होंने न कभी हिंसा का इस्तेमाल किया और न ही इसकी वकालत की।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल (AI) का लक्ष्य एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संबंधी दस्तावेज़ों में निर्धारित अधिकारों का उपयोग कर सके।
    • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1948 को पेरिस में अपनाया गया था और इसी दस्तावेज़ के माध्यम से पहली बार मानवधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास किया गया था।
  • यह संगठन मुख्य तौर पर मानवाधिकार के विषय पर अनुसंधान करता है, मानव अधिकारों के गंभीर दुरुपयोग को रोकने के लिये कार्रवाई करता है और उन लोगों के लिये न्याय की मांग करता है जिनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
  • इसे वर्ष 1977 में ‘अत्याचारों के विरुद्ध मानवीय गरिमा की रक्षा करने’ के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से और वर्ष 1978 में मानव अधिकारों के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया, एमनेस्टी इंटरनेशनल (AI) द्वारा शुरू किये गए मानवाधिकार आंदोलन का हिस्सा है, जिसका पंजीकृत कार्यालय कर्नाटक के बंगलूरू में स्थिति है।

स्रोत: द हिंदू


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