अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये कोई क्रीमी लेयर मानक नहीं
चर्चा में क्यों?
सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि "क्रीमी लेयर" अवधारणा को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (ST/SC) समुदायों पर लागू नहीं किया जा सकता है, जो सदियों से पीड़ित रहे हैं।
प्रमुख बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने तर्क देते हुए कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति एक समरूप समूह है और आर्थिक या सामाजिक उन्नति के आधार पर उनके पुन: समूहन के लिये कोई कार्रवाई करना उचित नहीं होगा।
- श्री वेणुगोपाल ने कहा कि एससी/एसटी की सूची में समुदायों को शामिल करने के लिये कठोर रूपरेखा निर्धारित की गई है।
- उन्होंने न्यायालय को बताया कि अनुसूचित जाति की सूची में समुदायों को शामिल करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक अस्पृश्यता का पारंपरिक तौर पर उपयोग किया जाता है|
- वेणुगोपाल से पूछा गया था कि क्या क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू करके उन लोगों को लाभ से वंचित किया जा सकता है जो इससे बाहर आ चुके हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एससी/एसटी समुदाय के पिछड़े लोगों तक आरक्षण का लाभ पहुँच सके|
- पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं|
- पाँच न्यायाधीशों की पीठ यह देख रही है कि सरकारी नौकरियों में पदोन्नति के मामले में आरक्षण के संबंध में ‘क्रीमी लेयर’ से जुड़े उसके 12 वर्ष पुराने फैसले को सात सदस्यीय पीठ द्वारा फिर से देखने की जरूरत तो नहीं है|
नागराज केस
- सरकार नागराज मामले में 2006 के फैसले को रद्द करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के एक बड़े बेंच में जाना चाहती है।
- एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के एम नागराज के फैसले में 2006 में पाँच जजों ने संशोधित संवैधानिक प्रावधान अनुच्छेद 16(4)(ए), 16(4)(बी) और 335 को तो सही ठहराया था लेकिन कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने से पहले सरकार को उनके पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आँकड़े जुटाने होंगे।
- इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को सरकारी नौकरी के दौरान पदोन्नति में आरक्षण तभी दे सकती है जब आँकड़ों के आधार पर यह तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है|
सरकार की राय
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 341 व 342 में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों आदि को निर्धारित करने के लिये राष्ट्रपति को सशक्त किया गया है। एजी ने ज़ोर देकर कहा कि नौकरियों में पदोन्नति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों के लिये “आनुपातिक प्रतिनिधित्व” के आधार पर होना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि सरकार की राय मात्रात्मक डेटा पर आधारित हो तभी प्रोन्नति के लिये विचार होना चाहिये| न्यायालय ने पूछा कि क्या क्रीमी लेयर को बाहर रखना चाहिये| सरकार को इस मुद्दे पर विचार करना चाहिये|
- हालाँकि एजी ने कहा कि एससी/एसटी जो सदियों से भेदभाव के शिकार हैं, अनुच्छेद 16 (4) (ए) के तहत सकारात्मक कार्रवाई के हिस्से के रूप में पदोन्नति में आरक्षण के हकदार हैं।
- वेणुगोपाल ने न्यायालय को बताया कि सरकार सार्वजनिक नौकरियों में एससी/एसटी के पदोन्नति के लिये 22.5% (अनुसूचित जातियों के लिये 15% तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये 7%) पदों को आरक्षित करना चाहती है।