भारतीय अर्थव्यवस्था
वित्तीय समावेशन: चुनौतियाँ व समाधान
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में वित्तीय समावेशन व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
किसी भी देश के आर्थिक विकास का मुख्य आधार उस देश का बुनियादी ढाँचा होता है। यदि बुनियादी ढाँचा ही कमज़ोर हो तो कितना भी प्रयास किया जाए व्यवस्था को मज़बूत नहीं बनाया जा सकता है। यही कारण है कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विकास एवं उन्नति हेतु किये जाने वाले प्रयासों को बल प्रदान करने के एक लिये नीति निर्माताओं द्वारा एक ऐसे मार्ग का अनुसरण किया जाता है जिसके माध्यम से सरकार आम आदमी को अर्थव्यवस्था के औपचारिक माध्यम में शामिल कर सके।
वस्तुतः यही कारण है कि 'वित्तीय समावेशन' के तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को भी आर्थिक विकास के लाभों से संबद्ध किया जा सके, कोई भी व्यक्ति आर्थिक सुधारों से वंचित न रहे।
वित्तीय समावेशन की पहुँच बिना किसी रुकावट के विकास के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति तक करने के लिये सरकार द्वारा ‘डिजिटल भारत’ अभियान प्रारंभ किया गया। भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज व ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम की नींव रखी गई। वित्तीय समावेशन और डिजिटल भारत के सम्मिलित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये ही ‘जैम त्रयी’ (जनधन-आधार-मोबाइल) की आधारशिला रखी गई। वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान ज़रूरतमंदों तक सरकारी सहायता पहुँचने में जैम त्रयी की भूमिका सराहनीय रही है।
इस आलेख में वित्तीय समावेशन की आवश्यकता, उसके अभाव में उत्पन्न चुनौतियाँ, वित्तीय समावेशन से होने वाले लाभ और इस दिशा में सरकार के द्वारा किये गए प्रयासों की समीक्षा की जाएगी।
वितीय समावेशन से तात्पर्य
- वित्तीय समावेशन कम आय वाले लोग और समाज के वंचित वर्ग को वहनीय कीमत पर भुगतान, बचत, ऋण आदि सहित वित्तीय सेवायें पहुँचाने का प्रयास है। इसे ‘समावेशी वित्तपोषण’ भी कहा जाता है।
- वित्तीय समावेशन का मुख्य उद्देश्य उन प्रतिबंधों को दूर करना है जो वित्तीय क्षेत्र में भाग लेने से लोगों को बाहर रखते हैं और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय सेवाओं को उपलब्ध कराना है।
वित्तीय समावेशन की आवश्यकता क्यों?
- वित्तीय समावेशन के अभाव में बैंकों की सुविधा से वंचित लोग मज़बूरीवश अनौपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ने के लिये बाध्य हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में ब्याज की दरें भी अधिक होती हैं और उधार दी गई राशि की मात्रा भी काफी कम होती है।
- चूँकि अनौपचारिक बैंकिंग ढाँचा कानून की परिधि से बाहर होता है, अत: उधार देने वालों और उधार लेने वालों के बीच उत्पन्न किसी भी प्रकार के विवाद का कानूनी तरीके से निपटान नहीं किया जा सकता है।
- जहाँ तक सवाल है वित्तीय समावेशन के सामाजिक लाभों का, तो आपको बताते चलें कि वित्तीय समावेशन के परिणामस्वरूप न केवल उपलब्ध बचत राशि में वृद्धि होती है, बल्कि वित्तीय मध्यस्थता की दक्षता में भी वृद्धि होती है। इतना ही नहीं नित नए व्यावसायिक अवसरों का सृज़न करने की सुविधा भी प्राप्त होती है।
- इस परिस्थिति में सरकार द्वारा प्रायोजित सर्वसुलभ बैंकिंग प्रणाली के परिणामस्वरूप अधिक प्रतिस्पर्धी बैंकिंग परिवेश की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक आर्थिक विविधीकरण में योगदान प्राप्त हुआ है।
वित्तीय समावेशन पहल
- जनधन-आधार-मोबाइल त्रयी
- आधार, प्रधानमंत्री जनधन योजना और मोबाइल संचार में वृद्धि ने नागरिकों तक सरकारी सेवाओं के पहुँचने का तरीका बदल दिया है।
- मार्च 2020 में अनुमान के अनुसार, जनधन योजना के तहत लाभार्थियों की कुल संख्या 380 मिलियन से अधिक रही है।
- व्यक्तिगत पहचान की अवधारणा में महत्त्वपूर्ण बदलाव के साथ आधार न केवल एक सुरक्षित और आसानी से सत्यापन योग्य प्रणाली है, बल्कि वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में यह एक महत्त्वपूर्ण टूल है।
- सरकार ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने और देश में गरीबों तथा असंबद्ध लोगों को सशक्त बनाने व उन्हें वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिये कई योजनाएँ शुरू की हैं। जिनमें प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, स्टैंड-अप-इंडिया योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना प्रमुख हैं।
- ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में वित्तीय सेवाओं का विस्तार
भारतीय रिज़र्व बैंक और नाबार्ड ने ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये पहल की है। इनमें प्रमुख हैं-
- इनमें दूरदराज के इलाकों में बैंक शाखाएँ खोलना शामिल है।
- किसान क्रेडिट कार्ड जारी करना।
- बैंकों के साथ स्व-सहायता समूहों का जुड़ाव।
- ऑटोमेटेड टेलर मशीनों (एटीएम) की संख्या बढ़ाना।
- बैंकिंग क्षेत्र में व्यावसायिक अभिकर्त्ता मॉडल।
- डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा
- भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (National Payments Corporation of India-NPCI) द्वारा यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस को मजबूत करने के साथ, पूर्व की तुलना में डिजिटल भुगतान को सुरक्षित बनाया गया है।
- आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली, आधार सक्षम बैंक खाते को किसी भी समय और किसी भी स्थान पर माइक्रो एटीएम का उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
- ऑफलाइन लेनदेन सक्षम करने वाले प्लेटफॉर्म अवसंरचनात्मक पूरक सेवा डेटा (Unstructured Supplementary Service Data-USSD) के कारण भुगतान प्रणाली को और अधिक सुलभ बनाया गया है , जिससे सामान्य मोबाइल हैंडसेट पर भी इंटरनेट के बिना मोबाइल बैंकिंग सेवाओं का उपयोग करना संभव हो जाता है।
- वित्तीय साक्षरता बढ़ाना
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘वित्तीय साक्षरता’ नामक एक परियोजना शुरू की है।
- इस परियोजना का उद्देश्य केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में विभिन्न लक्षित समूहों जिनमें स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चे, महिलाएँ, ग्रामीण और शहरी गरीब, और वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं, को वित्तीय जानकारी उपलब्ध कराना है।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India-SEBI) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट्स (National Institute of Securities Markets-NISM’s) ने ‘पॉकेट मनी’ नामक एक प्रमुख कार्यक्रम लॉन्च किया है, जिसका उद्देश्य स्कूली छात्रों में वित्तीय साक्षरता बढ़ाना है।
वित्तीय समावेशन से लाभ
- विश्व बैंक की वैश्विक वित्तीय समावेशन डेटाबेस या ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट-2017 के अनुसार, वर्ष 2014 में अनुमानित 53% भारतीय वयस्कों के अपेक्षा वर्तमान में 80% वयस्कों के पास एक बैंक खाता है।
- जहाँ एक ओर इससे समाज में कमज़ोर तबके के लोगों को उनकी ज़रूरतों तथा भविष्य की आवश्यकताओं के लिये धन की बचत करने, विभिन्न वित्तीय उत्पादों जैसे-बैंकिंग सेवाओं, बीमा और पेंशन उत्पादों आदि में भाग लेकर देश के आर्थिक क्रियाकलापों से लाभ प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहन प्राप्त होता है।
- वहीं दूसरी ओर इससे देश को 'पूंजी निर्माण' की दर में वृद्धि करने में भी सहायता प्राप्त होती है। इसके फलस्वरूप होने वाले धन के प्रवाह से देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलने के साथ-साथ आर्थिक क्रियाकलापों को भी संवर्धन प्राप्त होता है।
- पूर्व में निजी वित्तीय संस्थान सीमित आय वाले ग्राहकों के साथ संलग्न नहीं थे, परंतु अब समय बदल गया है, और इस वर्ग के साथ भी निजी वित्तीय संस्थानों (पेटीएम, एयरटेल मनी और जियो मनी जैसे पेमेंट बैंक) की सक्रिय भागीदारी हुई है, क्योंकि उन्होंने यह महसूस किया है कि गरीबों को वित्तीय दायरे में लाना उनके व्यवसाय मॉडल के लिये भी फायदेमंद है।
- वितीय सेवाओं का एकीकरण जैसे प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना का जैम त्रयी योजना के साथ सम्मिलन लाभदायक प्रयोग सिद्ध हुआ।
- वित्तीय समावेशन से सरकार को सरकारी सब्सिडी तथा कल्याणकारी कार्यक्रमों में अंतराल एवं हेराफेरी पर रोक लगाने में भी मदद मिलती है, क्योंकि इससे सरकार उत्पादों पर सब्सिडी देने के बजाय सब्सिडी की राशि सीधे लाभार्थी के खाते में अंतरित कर सकती है।
संबंधित चुनौतियाँ
- सभी की बैंकों तक पहुँच नहीं: बैंक खाते सभी वित्तीय सेवाओं के लिये एक प्रवेश द्वार हैं। लेकिन विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 190 मिलियन वयस्कों के पास बैंक खाता नहीं है, जिससे भारत, चीन के बाद गैर बैंकिंग आबादी के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है।
- डिजिटल डिवाइड: कम आय वाले उपभोक्ता जो डिजिटल सेवाओं तक पहुँचने के लिये आवश्यक तकनीक का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं। इन लोगों में तकनीकी कौशल की भी कमी है।
- नीतियों के सुचारू क्रियान्वयन का अभाव: जन धन योजना के परिणामस्वरूप कई हज़ार निष्क्रिय खाते खुल गए हैं, जिनमें वास्तविक बैंकिंग लेनदेन कभी नहीं हुआ। ऐसी सभी गतिविधियाँ संस्थानों का खर्च बढ़ती हैं, और विशाल परिचालन लागत संस्थानों की वित्तीय स्थिति के लिये हानिकारक साबित होती हैं। इन विपरीत परिणामों से बचने के लिये, यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी हितधारक इस तरह के कार्यक्रमों में उचित उद्देश्य के साथ भाग लें, न कि केवल औपचारिकता के लिये।
- अनौपचारिक और नकद आधारित अर्थव्यवस्था: भारत एक नकदी आधारित अर्थव्यवस्था है, जो डिजिटल भुगतान अपनाने की दिशा में एक चुनौती है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, भारत में लगभग 81% व्यक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं। लेनदेन के लिये नकदी आधारित अर्थव्यवस्था पर उच्च निर्भरता के साथ एक विशाल अनौपचारिक क्षेत्र का संयोजन डिजिटल वित्तीय समावेशन के लिये एक बाधा बन गया है।
- वित्तीय समावेशन में लैंगिक अंतराल: ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट-2017 के अनुसार, भारत में 15 वर्ष से अधिक आयु के 83% पुरुषों के अपेक्षा 77% महिलाओं ने ही किसी वित्तीय संस्थान में खाते का संचालन किया। इस अंतराल के लिये सामाजिक-आर्थिक कारक उत्तरदायी है, जिसमें मोबाइल हैंडसेट की उपलब्धता और इंटरनेट डेटा की सुविधा महिलाओं की तुलना में पुरुषों के बीच अधिक है।
वितीय समावेशन में वृद्धि हेतु किये जाने वाले प्रयास
- देश के प्रत्येक कोने में बैंकिंग शाखाओं की स्थापना करने में अधिक समय लग सकता है। ऐसे में भावी ग्राहकों तक बैंकिंग गतिविधियों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘बैंकिंग संवाददाता मॉडल’ का उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार, बैंकिंग संवाददाताओं के लिये बेहतर मौद्रिक प्रोत्साहन के साथ-साथ उन्हें बेहतर प्रशिक्षण प्रदान करने की आवश्यकता है।
- जैम त्रयी योजना के साथ उचित तकनीकी विकास को जोड़कर एक डेटा शेयरिंग फ्रेमवर्क की स्थापना की जा सकती है।
- वित्तीय समावेशन हेतु डिजिटलीकरण की दिशा में बढ़ने के साथ ही देश में साइबर सुरक्षा और डेटा सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने की भी आवश्यकता है।
- विभेदीकृत बैंक जैसे- भुगतान बैंक और छोटे वित्त बैंक पिछड़े क्षेत्रों में भुगतान प्रणाली को बढ़ाने में कारगर विकल्प साबित हो सकते हैं।
- ‘वित्तीय समावेशन हेतु राष्ट्रीय कार्यनीति’ निर्माण की प्रक्रिया एक प्रभावी कदम साबित हो सकती है।
निष्कर्ष
भारत में वित्तीय समावेशन की सफलता के लिये, एक बहुआयामी दृष्टिकोण होना चाहिये, जिसके माध्यम से मौजूदा डिजिटल प्लेटफॉर्म, बुनियादी ढाँचे, मानव संसाधन, और नीतिगत ढाँचे को मज़बूत किया जाए और नए तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा दिया जाए। यदि मौजूदा समस्याओं के समाधान के लिये पर्याप्त उपाय किये जाते हैं, तो वित्तीय समावेशन के द्वारा गरीबों को भी आर्थिक विकास के लाभ प्राप्त होंगे।
प्रश्न- वित्तीय समावेशन से आप क्या समझते हैं? वितीय समावेशन देश के आर्थिक विकास का एक मज़बूत स्तंभ है। विश्लेषण कीजिये।