विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ऑस्ट्रेलिया की ‘डिफेंस स्पेस कमांड’ एजेंसी
प्रिलिम्स के लिये:दुनिया भर में स्पेस कमांड की संरचना, रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन। मेन्स के लिये:अंतरिक्ष सैन्यीकरण, भारत के लिये अंतरिक्ष रक्षा की आवश्यकता, अंतरिक्ष उपयोग पर बहुपक्षीय बाध्यकारी समझौते की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने अंतरिक्ष में रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये एक नई डिफेंस स्पेस कमांड एजेंसी की स्थापना की घोषणा की है।
- यह सरकार, उद्योग, सहयोगियों और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के अंतरिक्ष-विशिष्ट प्राथमिकताओं को विकसित करने और उनकी वकालत करने में ऑस्ट्रेलिया की मदद करेगा।
डिफेंस स्पेस कमांड एजेंसी का कार्य:
- यह एजेंसी अंतरिक्ष क्षेत्र में विशेषज्ञता, रणनीतिक अंतरिक्ष योजना बनाने में सहायता और अंतरिक्ष नीति के परिशोधन के संबंध में किसी भी विकास का हिस्सा बनने में सक्षम होने के लिये कर्मियों को प्रशिक्षण प्रदान करेगी।
- साथ ही ऑस्ट्रेलिया वैज्ञानिक एवं अंतरिक्ष प्राथमिकताओं को भी स्थापित करेगा और एक कुशल अंतरिक्ष संरचना बनाने की दिशा में काम करेगा।
- एजेंसी का संचालन- डिज़ाइन, निर्माण, रखरखाव सहित सभी कार्य ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्रालय के मानकों एवं सीमा के दायरे में होंगे।
दुनिया भर में स्पेस कमान संरचनाएँ:
- स्पेसकॉम- यूएस स्पेस फोर्स।
- रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA)- भारत
- संयुक्त स्पेस कमांड (फ्राँस)
- ईरानी स्पेस कमांड (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स एयरोस्पेस फोर्स)
- रूसी अंतरिक्ष बल (रूसी एयरोस्पेस बल)
- यूनाइटेड किंगडम स्पेस कमांड (रॉयल वायु सेना)
बाह्य अंतरिक्ष के सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण की अवधारणा:
- ‘अंतरिक्ष शस्त्रीकरण’ की अवधारणा 1980 के दशक की शुरुआत में ‘सामरिक रक्षा पहल’ (SDI) के माध्यम से सामने आई, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘स्टार वार्स कार्यक्रम’ के रूप में भी जाना जाता है।
- यह बड़ी संख्या में उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने का विचार था जो दुश्मन की मिसाइलों के प्रक्षेपण का पता लगाएंगे और फिर उन्हें मार गिराएंगे।
- बाह्य अंतरिक्ष का सैन्यीकरण बनाम शस्त्रीकरण:
- शस्त्रीकरण ऐसे अंतरिक्ष-आधारित उपकरणों को कक्षा में स्थापित करने को संदर्भित करता है, जिनमें विनाशकारी क्षमता होती है।
- बाह्य अंतरिक्ष का सैन्यीकरण थल, समुद्र और वायु-आधारित सैन्य अभियानों के समर्थन में अंतरिक्ष के उपयोग को संदर्भित करता है।
अंतरिक्ष के सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण से संबंधित विवाद:
- ग्लोबल कॉमन्स अंडर थ्रेट: वर्तमान में ग्लोबल कॉमन्स फॉर आउटर स्पेस खतरे में है। बाहरी अंतरिक्ष के बढ़ते सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण से देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिल रही है।
- उदाहरण के लिये एंटी-सैट मिसाइलें बाहरी अंतरिक्ष में उपग्रहों को नष्ट कर सकती हैं।
- वैश्विक संचार प्रणाली के लिये खतरा: एंटी-सैटेलाइट मिसाइलें संचार उपग्रहों को नष्ट कर सकती हैं जिससे संचार प्रणाली में बाधा उत्पन्न हो सकती हैं।
- उपग्रहों के अपलिंक और डाउनलिंक जैमिंग के कारण भी संचार प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- भविष्य की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले राष्ट्रों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिससे अंतरिक्ष में प्रतिद्वंद्विता बढ़ रही है, साथ ही सैन्यीकरण और शस्त्रीकरण को रोकने के लिये अंतरिक्ष सुरक्षा को लेकर सामान्य आधार बनाने में परिणामी विफलता देखी गई है।
- पृथ्वी ही हमारा एकमात्र घर है: बाहरी अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण से राष्ट्रों के बीच अनिश्चितता, संदेह, गलत अनुमान, प्रतिस्पर्द्धा एवं आक्रामता का माहौल उत्पन्न होगा, जो युद्ध को जन्म दे सकता है।
- अंतरिक्ष युद्ध इतना विनाशकारी होगा कि यह पृथ्वी, जो हमारा एकमात्र घर है, को नष्ट कर सकता है।
बाह्य अंतरिक्ष शस्त्रीकरण में भारत की स्थिति:
- भारत ने मार्च 2019 में एक सफल एंटी-सैटेलाइट परीक्षण किया। भारत इस परीक्षण के बाद एंटी-सैटेलाइट क्षमता वाले देशों (चीन, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका) में शामिल हो गया है।
- वर्ष 2019 में भारत ने अंतरिक्ष हेतु रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (DSRO) और रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी (DSA) की भी स्थापना की है।
- DSRO एक शोध संगठन है जो सैन्य उद्देश्यों हेतु नागरिक अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास की सुविधा के लिये तैयार है, जबकि DSA संयुक्त राज्य अमेरिका में एक लड़ाकू कमांड के रूप में भूमिका निभाने के साथ-साथ सेना, नौसेना और वायु सेना को एकीकृत करता है तथा इसके लिये रणनीति तैयार करता है।
- भारत ने जुलाई 2019 में अपना पहला एकीकृत अंतरिक्ष युद्ध अभ्यास किया, जिसमें सभी सेवाओं के कर्मियों को एक साथ लाया गया। यह अभ्यास भारतीय सैन्य संपत्तियों की सीमा और शक्ति को एकीकृत करने के लिये संचार एवं सैनिक परीक्षण उपग्रहों का उपयोग करने पर केंद्रित है, जो अंतरिक्ष तक पहुँच की आवश्यकता हेतु दृढ़ समझ का संकेत देता है।
- भारतीय रक्षा समुदाय के कुछ लोगों ने कुछ आक्रामक सुधारों के लिये तर्क दिये है, जिसमें अमेरिकी अंतरिक्ष बल के समान एक सैन्य अंतरिक्ष सेवा की स्थापना भी शामिल है।
- यह भारत के बढ़ते उपग्रह नेटवर्क की रक्षा की सुविधा प्रदान करेगा, साथ ही दुश्मन देश के खिलाफ कार्रवाई हेतु आधार तैयार करेगा।
अंतरिक्ष से संबंधित वैश्विक नियम और मांगें:
- वर्ष 1967 में की गई बाहरी अंतरिक्ष संधि:
- यह संधि सदस्य देशों को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाहरी अंतरिक्ष का प्रयोग करने की इज़ाज़त देती है। साथ ही यह संधि अंतरिक्ष की बाह्य कक्षा में ऐसे हथियार तैनात करने पर पाबंदी लगाती है, जो जनसंहारक हों।
- यह ऐसे हथियारों को आकाशीय पिंडों जैसे- चंद्रमा या बाहरी अंतरिक्ष में रखने पर भी रोक लगाती है। चंद्रमा और अन्य खगोलीय पिंडों का उपयोग सभी देशों द्वारा विशेष रूप से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये संधि को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा।
- भारत बाह्य अंतरिक्ष संधि का एक पक्षकार देश है।
- चार और बहुपक्षीय संधियाँ हैं जो बाहरी अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) से सहमत विशिष्ट अवधारणाओं से संबंधित हैं:
- वर्ष 1967 का ‘रेस्क्यू एग्रीमेंट’
- वर्ष 1972 का स्पेस लायबिलिटी कन्वेंशन
- वर्ष 1976 का रजिस्ट्रेशन कन्वेंशन
- वर्ष 1979 का ‘मून एग्रीमेंट’
- बाहरी अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति ( United Nations Committee on the Peaceful Uses of Outer Space- COPUOS) इन संधियों तथा अंतरिक्ष क्षेत्राधिकार से संबंधित अन्य मुद्दों पर अपनी नज़र रखती है। हालांँकि इनमें से कोई भी संधि विभिन्न देशों के एंटी सैटेलाइट मिशनों (Anti-Sat Missions) को प्रतिबंधित नहीं करती है।
- TCBMS: अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच बाहरी अंतरिक्ष गतिविधियों में पारदर्शिता और विश्वास-निर्माण उपायों (Transparency and Confidence-building Measures-TCBMs) को पेश करने की आवश्यकता पर बहस जारी है।
- इस संबंध में यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने एक आचार संहिता (Code of Conduct- CoC) का मसौदा भी तैयार किया है। हालांँकि प्रमुख शक्तियांँ अभी तक CoC आचरण स्थापित करने के विचार पर सहमत नहीं हैं।.
- PPWT: यह एक और महत्त्वपूर्ण विचार है जो रूस एवं चीन द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत किया गया है। यह केवल सामूहिक विनाश के हथियारों के बजाय बाह्य अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ की रोकथाम (Prevention of the Placement of Weapons in Outer Space- PPWT) से संबंधित है जिसका अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा विरोध किया जाता है।
आगे की राह
- संपूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु यह अनिवार्य है कि अंतरिक्ष की वैश्विक साझा धारणा को बहाल किया जाए।
- एक केंद्र नियंत्रित शासन प्रणाली की स्थापना करना जो अंतरिक्ष अन्वेषण हेतु एक ज़िम्मेदार और सुरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र सुनिश्चित करेगी तथा हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिये शांतिपूर्ण पारिस्थितिकी सुनिश्चित करेगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-यूएई व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार समझौतों के प्रकार, भारत-यूएई सीईपीए, व्यापार समझौतों के विभिन्न रूप। मेन्स के लिये:भारत और उसके पड़ोसी, द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत-यूएई संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) को अंतिम रूप दिया गया।
- भारत-यूएई CEPA पर भारत-यूएई वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान 18 फरवरी, 2022 को हस्ताक्षर किये गए थे, यह समझौता 1 मई, 2022 से लागू होने की उम्मीद है।
- CEPA दोनों देशों के बीच व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु एक संस्थागत तंत्र प्रदान करता है।
भारत-यूएई CEPA की मुख्य विशेषताएँ
- यह एक व्यापक समझौता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे:
- ट्रेड-इन गुड्स।
- उत्पत्ति के नियम।
- ट्रेड-इन सर्विसेज़।
- व्यापार के लिये तकनीकी बाधाएँ (TBT)।
- स्वच्छता और स्वास्थ संबंधी (एसपीएस) उपाय।
- विवाद निपटान।
- व्यक्तियों की आवाजाही।
- दूरसंचार।
- सीमा शुल्क प्रक्रिया।
- दवा उत्पाद।
- सरकारी खरीद।
- बौद्धिक संपदा अधिकार, निवेश, डिजिटल व्यापार और अन्य क्षेत्रों में सहयोग।
भारत-यूएई CEPA के लाभ:
- ट्रेड-इन गुड्स: भारत को संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रदान की जाने वाले विशेष रूप से सभी श्रम प्रधान क्षेत्रों के लिये बाज़ार पहुँच से लाभ होगा।
- जैसे- रत्न और आभूषण, कपड़ा, चमड़ा, जूते, खेल के सामान, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि तथा लकड़ी के उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, चिकित्सा उपकरण एवं ऑटोमोबाइल।
- ट्रेड-इन सर्विसेज़: भारत और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ने व्यापक सेवा क्षेत्रों में एक-दूसरे को बाज़ार पहुँच की पेशकश की है।
- जैसे- व्यावसायिक सेवाएँ, संचार सेवाएँ, निर्माण और संबंधित इंजीनियरिंग सेवाएँ, वितरण सेवाएँ, शैक्षिक सेवाएँ', पर्यावरण सेवाएँ, वित्तीय सेवाएँ, स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक सेवाएँ, पर्यटन एवं यात्रा -संबंधित सेवाएँ, 'मनोरंजक सांस्कृतिक व खेल सेवाएँ' तथा 'परिवहन सेवाएँ'।
- फार्मास्यूटिकल्स संबंधी विशिष्ट अनुबंध: दोनों पक्षों ने निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा करने वाले उत्पादों के लिये 90 दिनों में भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उत्पादों, स्वचालित पंजीकरण एवं विपणन प्राधिकरण तक पहुँच की सुविधा के लिये फार्मास्यूटिकल्स को लेकर एक अलग अनुबंध पर भी सहमति व्यक्त की है।
भारत-यूएई CEPA की पृष्ठभूमि
- परिचय: भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध मौजूद हैं, जो काफी हद तक ऐतिहासिक हैं और जिनमें घनिष्ठ सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत समानताएँ मौजूद हैं। दोनों देशों के संबंधों को लगातार उच्च स्तरीय राजनीतिक वार्ता और लोगों से लोगों के बीच जीवंत संबंधों द्वारा पोषित किया जाता है।
- भारत-यूएई व्यापक रणनीतिक साझेदारी वर्ष 2015 में भारत के प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा के दौरान शुरू की गई थी।
- व्यापार की स्थिति: भारत और संयुक्त अरब अमीरात एक-दूसरे के प्रमुख व्यापारिक भागीदार रहे हैं।
- व्यापार: 1970 के दशक में प्रतिवर्ष 180 मिलियन अमेरिकी डॉलर से भारत-यूएई द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2019-20 में लगातार बढ़कर 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया, जिससे संयुक्त अरब अमीरात, भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
- निर्यात: यूएई भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है।
- निवेश: संयुक्त अरब अमीरात 18 अरब अमेरिकी डॉलर के अनुमानित निवेश के साथ भारत में आठवाँ सबसे बड़ा निवेशक भी है।
- इसके अलावा भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने हाल ही में एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके तहत यूएई ने भारत में बुनियादी अवसंरचना के विकास के लिये 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता जताई है।
- यूएई का आर्थिक महत्त्व: यूएई भारत की ऊर्जा आपूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है और रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार, अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम पेट्रोलियम क्षेत्रों के विकास में भारत का एक प्रमुख भागीदार है।
- महत्त्व: भारत-यूएई CEPA दोनों देशों के बीच पहले से ही गहरे, घनिष्ठ एवं रणनीतिक संबंधों को और मज़बूत करेगा तथा रोज़गार के नए अवसर पैदा करेगा, जीवन स्तर बढ़ाएगा व दोनों देशों के लोगों के सामान्य कल्याण में सुधार करेगा।
CEPA के बारे में:
- यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है।
- यह व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार कर सकता है।
- साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
- CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।
- भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं।
अन्य प्रकार के व्यापारिक समझौते:
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
- यह एक ऐसा समझौता है जिसे दो या दो से अधिक देशों द्वारा भागीदार देश को तरजीही व्यापार समझौतों, टैरिफ रियायत या सीमा शुल्क में छूट आदि प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है।
- भारत ने कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है जैसे- श्रीलंका और विभिन्न व्यापारिक ब्लॉकों से आसियान के मुद्दे पर।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) आसियान के दस सदस्य देशों और छह देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत और न्यूज़ीलैंड) के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसके साथ आसियान के मौजूदा FTAs भी शामिल हैं।
- अधिमान्य या तरजीही व्यापार समझौता (PTA):
- इस प्रकार के समझौते में दो या दो से अधिक भागीदार कुछ उत्पादों के संबंध में प्रवेश का अधिमान्य या तरजीही अधिकार देते हैं। यह टैरिफ लाइन्स की एक सहमत संख्या पर शुल्क को कम करके किया जाता है।
- यहाँ तक कि PTA में भी कुछ उत्पादों के लिये शुल्क को घटाकर शून्य किया जा सकता है। भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक PTA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA):
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA ) आमतौर पर केवल व्यापार शुल्क और टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) दरों को बातचीत के माध्यम से तय करता है। यह CECA जितना व्यापक नहीं है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BIT):
- यह एक द्विपक्षीय समझौता है जिसमें दो देश एक संयुक्त बैठक करते हैं तथा दोनों देशों के नागरिकों और फर्मों/कंपनियों द्वारा निजी निवेश के लिये नियमों एवं शर्तों को तय किया जाता है।
- व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौता (TIFA):
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापार समझौता है जो व्यापार के विस्तार और देशों के बीच मौजूदा विवादों को हल करने के लिये एक रूपरेखा तय करता है।
विगत वर्षों के प्रश्न प्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त में से कौन-से देश आसियान के 'मुक्त-व्यापार समझौते' में भागीदार हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (c) प्रश्न: 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक' साझेदारी' शब्द अक्सर समाचारों में देखा जाता है इसे देशों के एक समूह के मामलों के रूप में जाना जाता है: (2016) (a) जी 20 उत्तर: (b) |
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय राजनीति
प्रवासी नागरिकों के लिये मतदान का अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:एनआरआई, ईसीआई, पोस्टल बैलेट, ईटीपीबीएस। मेन्स के लिये:विदेशी नागरिकों के लिये मतदान का अधिकार। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि सरकार अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिये ऑनलाइन वोटिंग की अनुमति देने की संभावना तलाश रही है।
प्रष्ठभूमि:
- वर्ष 2020 में भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने कानून मंत्रालय को एक प्रस्ताव में वर्ष 2021 में होने वाले विभिन्न राज्य विधानसभा चुनावों के लिये योग्य एनआरआई को डाक मतपत्र की सुविधा का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया।
- चुनाव आयोग ने तब इस सुविधा की अनुमति देने के लिये चुनाव आचरण नियम, 1961 में संशोधन का प्रस्ताव रखा था।
- डाक मतपत्रों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से अनिवासी भारतीयों को भेजा जाना था जिसके बाद वे डाक के माध्यम से अपना उम्मीदवार चुनने के बाद मतपत्र वापस भेज देंगे।
भारतीय चुनावों में प्रवासी मतदाताओं के लिये वर्तमान मतदान प्रक्रिया:
- जन प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 2010 के माध्यम से पात्र एनआरआई जो छह महीने से अधिक समय तक विदेश में रहे थे, को मतदान करने की अनुमति दी गई थी, लेकिन केवल मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से जहाँ उन्हें एक विदेशी मतदाता के रूप में नामांकित किया गया था।
- वर्ष 2010 से पहले एक भारतीय नागरिक जो एक पात्र मतदाता है तथा छह महीने से अधिक समय से विदेश में रह रहा था, वह चुनाव में मतदान नहीं कर सकता था। ऐसा इसलिये था क्योंकि NRI का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया था, अगर वह देश से बाहर छह महीने से अधिक समय तक रहा हो।
- एक NRI निर्वाचन क्षेत्र में अपने निवास स्थान पर मतदान कर सकता है, जैसा कि पासपोर्ट में उल्लिखित है।
- वह केवल व्यक्तिगत रूप से मतदान कर सकता है और पहचान स्थापित करने के लिये उसे मतदान केंद्र पर अपना पासपोर्ट मूल रूप में प्रस्तुत करना होगा।
मौजूदा सुविधा द्वारा अब तक की कार्य-विधि:
- योग्य प्रवासियों का कम अनुपात:
- वर्ष 2014 में पंजीकृत केवल 11,846 प्रवासी मतदाताओं की संख्या वर्ष 2019 में एक लाख के करीब पहुंँच गई। हालांँकि ऐसे मतदाताओं के केवल कम अनुपात ने ही मतदान में हिस्सा लिया।
- हतोत्साहित पात्र मतदाताओं के लिये मतदान केंद्र पर जाने का प्रावधान:
- मतदान केंद्र पर व्यक्तिगत रूप से जाने के प्रावधान ने पात्र मतदाताओं को अपने जनादेश का प्रयोग करने से हतोत्साहित किया है।
प्रवासी मतदाताओं के लिये सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- वर्ष 2017 में संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 20ए के तहत लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का प्रस्ताव रखा था।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 20A के तहत उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करने के लिये शारीरिक रूप से उपस्थित होना आवश्यक है।
- चुनाव आचरण नियम, 1961 में निर्धारित शर्तों के अधीन, विधेयक विदेशी मतदाताओं को अपनी ओर से वोट डालने के लिये एक प्रॉक्सी नियुक्त करने में सक्षम बनाते हैं।
- विधेयक में वर्ष 2018 में पारित किया गया था, लेकिन 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह समाप्त हो गया।
- चुनाव आयोग ने तब सरकार से संपर्क किया था कि NRIs को डाक मतपत्रों के माध्यम से मतदान करने की अनुमति दी जाए।
- पोस्टल बैलेट, सरकारी सेवा में सेवा मतदाताओं (संघीय सशस्त्र बलों के सदस्य; या किसी ऐसे बल का सदस्य जिस पर सेना अधिनियम, 1950 के प्रावधान लागू होते हैं) द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रणाली के समान है। इसे इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक बैलेट सिस्टम कहा जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित डाक बैलेट सिस्टम (ETPBS):
- परिचय:
- सेवा मतदाताओं (Service Voters) के लिये:
- सेवा मतदाताओं को ETPBS का उपयोग करने की अनुमति देने हेतु चुनाव आचरण नियम, 1961 में वर्ष 2016 में संशोधन किया गया था।
- इस प्रणाली के तहत, डाक मतपत्र पंजीकृत सेवा मतदाताओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजे जाते हैं।
- सेवा मतदाता तब ETPB (घोषणा पत्र एवं कवर के साथ) डाउनलोड कर सकते हैं, मतपत्र पर अपना जनादेश दर्ज कर सकते हैं और इसे सामान्य मेल के माध्यम से निर्वाचन क्षेत्र के रिटर्निंग अधिकारी को भेज सकते हैं।
- इस पोस्ट में एक सत्यापित घोषणा पत्र शामिल होता है (मतदाता द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद एक नियुक्त वरिष्ठ अधिकारी की उपस्थिति में जो इसे सत्यापित करेगा)।
- NRIs के लिये (प्रस्तावित):
- NRI, मतदाताओं के मामले में, जो ETPBS के माध्यम से मतदान करना चाहते हैं, उन्हें चुनाव की अधिसूचना के कम-से-कम पाँच दिन बाद रिटर्निंग ऑफिसर को सूचित करना होगा।
- इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर ईटीपीबीएस के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से मतपत्र भेजेंगे।
- इसके बाद एनआरआई मतदाता अपना जनादेश बैलेट प्रिंटआउट पर पंजीकृत कर सकता है तथा सेवा मतदाता के समान प्रक्रिया में एक सत्यापित घोषणा के साथ इसे वापस भेज सकता है।
- सेवा मतदाताओं (Service Voters) के लिये:
- लाभ:
- पोस्टल बैलेट पद्धति को इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस द्वारा विदेशी मतदाताओं को अपने अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देने के साधन के रूप में मान्यता दी गई है, जो आमतौर पर विदेश में बिताए गए समय या विदेश में किये गए कार्य से संबंधित कुछ शर्तों के अधीन है।
- लोकतंत्र और चुनावी सहायता के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थान एक अंतर-सरकारी संगठन है जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थानों का समर्थन करने के लिये कार्य करता है।
- पोस्टल बैलेट पद्धति को इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस द्वारा विदेशी मतदाताओं को अपने अधिकार का प्रयोग करने की अनुमति देने के साधन के रूप में मान्यता दी गई है, जो आमतौर पर विदेश में बिताए गए समय या विदेश में किये गए कार्य से संबंधित कुछ शर्तों के अधीन है।
आगे की राह
- एक प्रभावी डाक प्रणाली तथा एक डाक मतपत्र तंत्र जो नामित कांसुलर/दूतावास कार्यालयों में मतपत्र के उचित प्रमाणीकरण की अनुमति देता है, को अनिवासी भारतीयों के लिये आसान बनाया जाना चाहिये, लेकिन देश से दूर बिताए गए समय के आधार पर पात्रता हेतु नियमों को स्पष्ट रूप से तैयार किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-मालदीव सुरक्षा साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:सार्क, एसएएसईसी, ऑपरेशन कैक्टस, मिशन सागर, ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट। मेन्स के लिये:भारत-मालदीव संबंध, भारत और उसके पडोसी, द्विपक्षीय समूह और समझौते। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री द्वारा मालदीव की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एन्फोर्समेंट (National College for Policing and Law Enforcement- NCPLE) का उद्घाटन किया गया।
- द्वीपीय राष्ट्र मालदीव के अड्डू शहर में एनसीपीएलई भारत की सबसे बड़ी वित्तपोषित परियोजनाओं में से एक है।
प्रमुख बिंदु
यात्रा की मुख्य विशेषताएंँ:
- नेशनल कॉलेज फॉर पुलिसिंग एंड लॉ एन्फोर्समेंट (NCPLE): इस प्रशिक्षण अकादमी का एक उद्देश्य हिंसक उग्रवाद की चुनौतियों का समाधान करना और कट्टरपंथ को रोकना है।
- इससे इन मुद्दों से निपटने में दोनों देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
- घरेलू स्तर पर यह प्रशिक्षण अकादमी कानून प्रवर्तन क्षमताओं को मज़बूत करने और मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने में मदद करेगी जो देश (मालदीव) में एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- प्रशिक्षण हेतु समझौता ज्ञापन: मालदीव पुलिस सेवा और भारत की सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी द्वारा प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में सहयोग बढ़ाने के लिये एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भारत ने पुलिस अकादमी में मालदीव के लिये प्रशिक्षण स्लॉट/समूहों की संख्या बढ़ाकर आठ कर दी है।
- अवसंरचना निर्माण हेतु सहायता: भारत का एक्ज़िम बैंक 61 पुलिस थानों, संभागीय मुख्यालयों, डिटेंशन सेंटर्स और बैरकों सहित पूरे मालदीव में पुलिस अवसंरचना सुविधाएंँ सृजित करने हेतु 40 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान कर रहा है।
- अन्य परियोजनाएंँ: अड्डू रिक्लेमेशन एंड शोर प्रोटेक्शन प्रोजेक्ट (Addu Reclamation and Shore Protection Project) हेतु 80 मिलियन अमेंरिकी डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- अड्डू में एक ड्रग डिटॉक्सिफिकेशन एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (Drug Detoxification And Rehabilitation Centre ) का निर्माण भारत की मदद से किया गया है। यह सेंटर/केंद्र स्वास्थ्य, शिक्षा, मत्स्यपालन, पर्यटन, खेल और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में भारत द्वारा कार्यान्वित की जा रही 20 उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं में से एक है।
भारत-मालदीव संबंधों की वर्तमान स्थिति:
- भू-सामरिक महत्त्व:
- मालदीव, हिंद महासागर में एक टोल गेट:
- इस द्वीप शृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भाग में दो महत्त्वपूर्ण ‘सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन’ (Sea Lines Of Communication- SLOCs) स्थित हैं।
- ये SLOC पश्चिम एशिया में अदन और होर्मुज़ की खाड़ी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत के विदेशी व्यापार का लगभग 50% और इसकी ऊर्जा आयात का 80% हिस्सा अरब सागर में इन SLOCs के माध्यम से होता है।
- महत्त्वपूर्ण समूहों का हिस्सा: इसके अलावा भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) तथा दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (एसएएसईसी) के सदस्य हैं।
- मालदीव, हिंद महासागर में एक टोल गेट:
- भारत और मालदीव के बीच सहयोग:
- रक्षा सहयोग: दशकों से भारत ने मालदीव की मांग पर उसे तात्कालिक आपातकालीन सहायता पहुँचाई है।
- वर्ष 1988 में जब हथियारबंद आतंकवादियों ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम सरकार के तख्तापलट की कोशिश की, तो भारत ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ (Operation Cactus) के तहत पैराट्रूपर्स और नेवी जहाज़ों को भेजकर वैध सरकार को पुनः बहाल किया।
- भारत और मालदीव ‘एकुवेरिन’ (Ekuverin) नामक एक संयुक्त सैन्य अभ्यास का संचालन करते हैं।
- कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव, जो भारत, श्रीलंका, मालदीव और मॉरीशस का एक समुद्री सुरक्षा समूह है, के तहत इन हिंद महासागरीय देशों के बीच समुद्री एवं सुरक्षा मामलों पर सहयोग स्थापित करना है।
- कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की पाँचवीं बैठक के दौरान मॉरीशस को कॉन्क्लेव के नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
- आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 में सुनामी और इसके एक दशक बाद मालदीव में पेयजल संकट कुछ अन्य ऐसे मौके थे जब भारत ने उसे आपदा सहायता पहुँचाई।
- मालदीव, भारत द्वारा अपने सभी पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई जा रही COVID-19 सहायता और वैक्सीन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।
- मालदीव, भारतीय वैक्सीन मैत्री पहल का पहला लाभार्थी था।
- COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के अवरुद्ध रहने के दौरान भी भारत ने मिशन सागर (SAGAR) के तहत मालदीव को महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी।
- मालदीव, भारत द्वारा अपने सभी पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई जा रही COVID-19 सहायता और वैक्सीन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।
- नागरिक संपर्क: मालदीव के छात्र भारत के शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करते हैं और भारत द्वारा विस्तारित उदार वीज़ा-मुक्त व्यवस्था का लाभ लेते हुए मालदीव के मरीज़ उच्च कोटि की स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने के लिये भारत आते हैं।
- आर्थिक सहयोग: पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वर्तमान में मालदीव कुछ भारतीयों के लिये एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और कई अन्य भारतीय वहाँ रोज़गार के लिये जाते हैं।
- अगस्त 2021 में एक भारतीय कंपनी, ‘एफकॉन’ (Afcons) ने मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी बुनियादी अवसंरचना परियोजना- ग्रेटर मेल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) हेतु एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये थे।
- रक्षा सहयोग: दशकों से भारत ने मालदीव की मांग पर उसे तात्कालिक आपातकालीन सहायता पहुँचाई है।
भारत-मालदीव संबंधों में चुनौतियाँ और तनाव:
- राजनीतिक अस्थिरता: भारत की सुरक्षा और विकास पर मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता का संभावित प्रभाव, एक बड़ी चिंता का विषय है।
- गौरतलब है कि फरवरी 2015 में आतंकवाद के आरोपों में मालदीव के विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद की गिरफ्तारी और इसके बाद के राजनीतिक संकट ने भारत की नेबरहुड पाॅलिसी के लिये वास्तव में एक कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया था।
- कट्टरपंथ: मालदीव में पिछले लगभग एक दशक में इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकवादी समूहों और पाकिस्तान स्थित मदरसों तथा जिहादी समूहों की ओर झुकाव वाले नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- यह पाकिस्तानी आतंकी समूहों द्वारा भारत और भारतीय हितों के खिलाफ आतंकवादी हमलों के लिये मालदीव के सुदूर द्वीपों को एक लॉन्च पैड के रूप में उपयोग करने की संभावना को जन्म देता है।
- चीनी पक्ष: हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में चीन के सामरिक दखल में वृद्धि देखने को मिली है। मालदीव दक्षिण एशिया में चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है।
- चीन-भारत संबंधों की अनिश्चितता को देखते हुए मालदीव में चीन की रणनीतिक उपस्थिति चिंता का विषय है।
- इसके अलावा मालदीव ने भारत के साथ सौदेबाज़ी के लिये 'चाइना कार्ड' का उपयोग शुरू कर दिया है।
आगे की राह
- यद्यपि भारत मालदीव का एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है, किंतु भारत को अपनी स्थिति पर संतुष्ट नहीं होना चाहिये और मालदीव के विकास के प्रति अधिक ध्यान देना चाहिये।
- दक्षिण एशिया और आसपास की समुद्री सीमाओं में क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत को हिंद-प्रशांत सुरक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये।
- इंडो-पैसिफिक सिक्योरिटी स्पेस को भारत के समुद्री प्रभाव क्षेत्र में अतिरिक्त-क्षेत्रीय शक्तियों (विशेषकर चीन की) की वृद्धि की प्रतिक्रिया के रूप में विकसित किया गया है।
- वर्तमान में 'इंडिया आउट' अभियान को सीमित आबादी का समर्थन प्राप्त है, लेकिन इसे भारत सरकार द्वारा समर्थन प्रदान नहीं किया जा सकता है।
- यदि 'इंडिया आउट' के समर्थकों द्वारा उठाए गए मुद्दों को सावधानी से नहीं संभाला जाता है और भारत, मालदीव के लोगों को द्वीप राष्ट्र पर परियोजनाओं के पीछे अपने इरादों के बारे में प्रभावी ढंग से नहीं समझाता है, तो यह अभियान मालदीव में घरेलू राजनीतिक स्थिति को बदल सकता है।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: निम्नलिखित में से द्वीपों का कौन सा युग्म '10 डिग्री चैनल' द्वारा एक-दूसरे से अलग होता है? (2014) (a) अंडमान और निकोबार उत्तर: (a)
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