एजियन सागर
प्रमुख बिंदु
- भौगोलिक विस्तार:
- यह भूमध्य सागर की एक शाखा है। पूर्वी भूमध्यसागरीय बेसिन में इसके पश्चिम में ग्रीक प्रायद्वीप और पूर्व में अनातोलिया (तुर्किये के एशियाई भाग से मिलकर) स्थित है।
- एजियन दार्दनस के जलडमरूमध्य, मरमरा के सागर और बोस्फोरस के माध्यम से काला सागर से जुड़ा हुआ है, जबकि क्रेते द्वीप को दक्षिण में सीमा को चिह्नित करने के रूप में लिया जा सकता है।
- तुर्की-ग्रीस विवाद:
- एजियन सागर समुद्री विवाद में तीन मुख्य मुद्दे शामिल हैं: प्रादेशिक समुद्र की चौड़ाई; द्वीपों की उपस्थिति और दो राज्यों के बीच महाद्वीपीय मग्नतट का परिसीमन।
- वर्ष 1936 से ग्रीस ने 6 समुद्री मील (NM) प्रादेशिक समुद्र का दावा किया है। तुर्किये भी ईजियन में 6-NM प्रादेशिक समुद्र का दावा करता है। हालाँकि समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 1982 (UNCLOS) राज्यों को अपने क्षेत्रीय समुद्र को किनारे से 12 NM तक बढ़ाने की अनुमति देता है।
- ग्रीस ने कन्वेंशन को अपनाया है, लेकिन तुर्किये ने अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग दृष्टिकोण नहीं अपनाया है।
- संबंधित संधि: वर्ष 1923 की लॉज़ेन की संधि।
भारतीय मुद्रा डिज़ाइन तंत्र
प्रिलिम्स के लिये:नोटों और सिक्कों को जारी करने के संबंध में RBI और केंद्र सरकार की शक्तियाँ मेन्स के लिये:मुद्रा डिज़ाइन और मुद्रण की प्रक्रिया |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक राजनीतिक दल के प्रमुख ने देश में "समृद्धि" लाने के लिये केंद्र सरकार से नोटों (मुद्रा) पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश के चित्र छापने का अनुरोध किया।
भारतीय बैंक नोटों एवं सिक्कों के डिज़ाइन व जारी करने में कौन-कौन शामिल होता है?
- विषय:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और केंद्र सरकार बैंक नोटों एवं सिक्कों के डिज़ाइन तथा स्वरूप में बदलाव का फैसला करते हैं।
- करेंसी नोट के डिज़ाइन में किसी भी बदलाव को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के केंद्रीय बोर्ड और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिये।
- सिक्कों के डिज़ाइन में बदलाव करना केंद्र सरकार का विशेषाधिकार है।
- नोट जारी करने में RBI की भूमिका:
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 22, RBI को भारत में बैंक नोट जारी करने का "एकमात्र अधिकार" प्रदान करती है।
- केंद्रीय बैंक आंतरिक रूप से डिज़ाइन तैयार करता है, जिसे RBI के केंद्रीय बोर्ड के सामने रखा जाता है।
- धारा 25 में कहा गया है कि "बैंक नोटों का डिज़ाइन, स्वरूप और सामग्री ऐसी होनी चाहिये जैसा कि RBI के केंद्रीय बोर्ड द्वारा की गई सिफारिशों पर विचार करने के बाद केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया हो"।
- RBI के मुद्रा प्रबंधन विभाग के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता में मुद्रा प्रबंधन के कार्य को प्रशासित करने की ज़िम्मेदारी है।
- यदि किसी करेंसी नोट का डिज़ाइन बदलना है, तो विभाग डिज़ाइन पर काम करता है और इसे RBI को प्रस्तुत करता है, जो केंद्र सरकार को इसकी अनुशंसा करता है। सरकार अंतिम मंज़ूरी देती है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 22, RBI को भारत में बैंक नोट जारी करने का "एकमात्र अधिकार" प्रदान करती है।
- सिक्कों की ढलाई में केंद्र सरकार की भूमिका:
- सिक्का अधिनियम, 2011 के अनुसार, विभिन्न मूल्यवर्ग के सिक्कों की रूपरेखा तैयार करने (डिज़ाइनिंग) तथा ढलाई की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किये जाने वाले सिक्कों के वितरण करने तक सीमित है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक से वार्षिक आधार पर प्राप्त होने वाले मांगपत्र (इंडेंट) के आधार पर ढाले जाने वाले सिक्कों की मात्रा का निर्धारण भारत सरकार करती है।
- सिक्कों की ढलाई भारत सरकार के स्वामित्व वाली चार टकसालों में की जाती है। ये टकसाल मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता तथा नोएडा में स्थित हैं।
- सिक्का अधिनियम, 2011 के अनुसार, विभिन्न मूल्यवर्ग के सिक्कों की रूपरेखा तैयार करने (डिज़ाइनिंग) तथा ढलाई की ज़िम्मेदारी भारत सरकार की है।
भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रा प्रबंधन प्रणाली:
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा केंद्र सरकार तथा अन्य साझेदारों के परामर्श से एक वर्ष में मूल्यवर्ग वार संभावित आवश्यक बैंक नोटों की मात्रा का आकलन किया जाता है और बैंक नोटों की आपूर्ति हेतु विभिन्न करेंसी प्रिंटिंग प्रेसों को मांगपत्र (इंडेंट) सौंपता है ।
- भारत सरकार की दो प्रिंटिंग प्रेस नासिक (पश्चिमी भारत) तथा देवास (मध्य भारत) में स्थित हैं तथा भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण लिमिटेड (BRBNML) की दो अन्य प्रेस मैसूर (दक्षिण भारत) तथा सालबोनी (पूर्वी भारत) में स्थित हैं ।
- संचलन से वापस लिये गए बैंक नोटों की जाँच की जाती है तथा जो संचलन के योग्य हैं उन्हें पुन: जारी किया जाता है, जबकि अन्य (गंदे तथा कटे-फटे) को नष्ट कर दिया जाता है ताकि संचलन में बैंक नोटों की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सके।
अब तक जारी नोटों के प्रकार:
- अशोक स्तंभ वाले बैंक नोट: स्वतंत्र भारत में पहला बैंक नोट वर्ष 1949 में जारी किया गया जो कि 1 रुपए का नोट था। मौज़ूदा डिज़ाइन को जारी रखते हुए नए बैंक नोटों में किंग जॉर्ज के चित्र की बजाय वॉटरमार्क वाले स्थान में सारनाथ के अशोक स्तंभ की लायन कैपिटल के प्रतीक का उपयोग किया गया।
- महात्मा गांधी (एमजी) शृंखला वाले नोट, 1996: इस शृंखला के सभी बैंक नोटों पर अशोक स्तंभ की लायन कैपिटल के प्रतीक के स्थान पर आगे की तरफ महात्मा गांधी का चित्र है, जिसे वॉटरमार्क वाले स्थान के बाईं ओर रखा गया था। इन बैंक नोटों में महात्मा गांधी वॉटरमार्क के साथ-साथ महात्मा गांधी का चित्र भी है।
- महात्मा गांधी शृंखला वाले नोट, 2005: "MG सीरीज़ 2005" के तहत 10 रुपए, 20 रुपए, 50 रुपए, 100 रुपए, 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोट जारी किये गए थे। इन नोटों में 1996 की MG सीरीज़ की तुलना में कुछ अतिरिक्त/नई सुरक्षा संबंधी विशेषताएँ हैं। इस शृंखला के 500 और 1,000 रुपए के नोटों को 8 नवंबर, 2016 की मध्यरात्रि के बाद वापस ले लिया गया था।
- महात्मा गांधी (नई) शृंखला वाले नोट, 2016: "MGNS" नोट देश की सांस्कृतिक विरासत और वैज्ञानिक उपलब्धियों को उजागर करते हैं। छोटे आकार के होने के कारण ये नोट वॉलेट के लिये अधिक अनुकूल हैं, इनके खराब होने की संभावना भी कम होती है। इन नोटों का रंग साफ़ और स्पष्ट है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
7वीं आसियान-भारत मंत्रिस्तरीय बैठक
प्रिलिम्स के लिये:आसियान, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी मेन्स के लिये:भारत को शामिल करने वाले और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृषि और वानिकी पर 7वीं आसियान-भारत मंत्रिस्तरीय बैठक (AIMMAF) आभासी रूप में आयोजित की गई थी।
बैठक की मुख्य विशेषताएंँ:
- आसियान को बनाए रखने का भारत का विज़न:
- भारत ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) को भारत की एक्ट ईस्ट नीति के केंद्र में रखने के अपने दृष्टिकोण को दोहराया।
- इसने क्षेत्र में कृषि के लिये सतत् और समावेशी विकास सुनिश्चित करने हेतु आसियान के साथ पारस्परिक रूप से घनिष्ठ क्षेत्रीय सहयोग पर भी ज़ोर दिया।
- कदन्न उत्पादन की दिशा में कदम:
- भारत ने पोषक भोजन के रूप में बाजरा (पोषक-अनाज) के महत्त्व और अंतर्राष्ट्रीय पोषण-अनाज वर्ष 2023 का उल्लेख करते हुए आसियान के सदस्य देशों से बाजरा के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन और खपत को बढ़ाने में भारत के प्रयासों का समर्थन करने का आग्रह किया।
- भारत लोगों के स्वास्थ्य और पोषण के लिये पौष्टिक अनाज उत्पादों को बढ़ावा देगा।
- पोषक अनाज कम संसाधन आवश्यकताओं और अधिक कुशल कृषि-खाद्य प्रणालियों के साथ पोषक तत्त्वों के निर्माण में मदद करते हैं।
- भारत ने पोषक भोजन के रूप में बाजरा (पोषक-अनाज) के महत्त्व और अंतर्राष्ट्रीय पोषण-अनाज वर्ष 2023 का उल्लेख करते हुए आसियान के सदस्य देशों से बाजरा के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्यवर्द्धन और खपत को बढ़ाने में भारत के प्रयासों का समर्थन करने का आग्रह किया।
विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन:
- आसियान-भारत सहयोग (वर्ष 2021-2025) की मध्यावधि कार्ययोजना के तहत विभिन्न कार्यक्रमों और गतिविधियों के कार्यान्वयन में प्रगति की समीक्षा की गई।
कृषि में सहयोग:
- कृषि और वानिकी में आसियान-भारत सहयोग की प्रतिबद्धता की फिर से पुष्टि की गई।
कोविड-19 महामारी:
- आसियान और भारत को सुरक्षित एवं पौष्टिक कृषि उत्पादों का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करके कोविड-19 महामारी के अभूतपूर्व प्रभाव को कम करने के लिये महामारी के बाद की रिकवरी के कार्यान्वयन हेतु आसियान-भारत सहयोग के तहत निरंतर उपाय करना आवश्यक है।
- भारत ने खाद्य सुरक्षा, पोषण, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन, डिजिटल खेती, प्रकृति के अनुकूल कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, मूल्य श्रृंखला, कृषि विपणन और क्षमता निर्माण में आसियान के साथ भारत के सहयोग को बढ़ाने की प्रतिबद्धता सुनिश्चित की।
दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ:
- परिचय:
- यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है।
- इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर एवं थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई।
- इसके सदस्य राज्यों को अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है।
- आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- अप्रैल 2021- फरवरी 2022 की अवधि में भारत और आसियान क्षेत्र के बीच कमोडिटी व्यापार 98.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है। भारत के व्यापारिक संबंध मुख्य तौर पर इंडोनेशिया, सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम तथा थाईलैंड के साथ हैं।
- सदस्य:
- आसियान दस दक्षिण पूर्व एशियाई देशों- ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम को एक मंच पर लाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये:(2018)
उपर्युक्त में से कौन आसियान (ASEAN) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं? (A) केवल 1, 2, 4 और 5 उत्तर: C व्याख्या:
अतः विकल्प (C) सही उत्तर है। प्रश्न. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership) पद किन देशों के समूहों के संदर्भ में अक्सर सुर्ख़ियों में रहता है? (A) जी20 उत्तर: (B) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही है। प्रश्न. मेकांग-गंगा सहयोग जो कि छह देशों की एक पहल है, निम्नलिखित में से कौन-सा/से देश प्रतिभागी नहीं है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. शीत युद्ध के बाद के अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की पूर्व की ओर देखो नीति के आर्थिक और रणनीतिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016) |
स्रोत: पीआईबी
भारत-ब्रिटेन संबंध
प्रिलिम्स के लिये:इंडो-पैसिफिक, FTA मेन्स के लिये:भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ने ब्रिटेन के 57वें प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
- वह देश में वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता के परिदृश्य में पिछले 50 दिनों के भीतर सत्ताधारी कंज़रवेटिव पार्टी के तीसरे प्रधानमंत्री हैं इससे पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और उसके बाद लिज़ को अविश्वास के माध्यम से पद से हटा दिया गया था।
ऋषि सुनक:
भारत-ब्रिटेन संबंधों के लिये अवसर:
- यह भारत और ब्रिटेन के लिये वैश्विक मुद्दों पर एक साथ मिलकर काम करने एवं ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में भारतीय मूल के व्यक्ति के उत्थान के साथ द्विपक्षीय संबंधों हेतु रोडमैप 2030 को लागू करने का एक अवसर है।.
- भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय संबंधों के परिप्रेक्ष्य में ब्रिटेन का दृष्टिकोण केवल भारत में वस्तुओं को बेचने के अवसर से, काफी आगे निकल गया है, और अब ब्रिटेन को भी "भारत से सीखना" चाहिये।
- भारत और ब्रिटेन के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते से आयात और निर्यात प्रवाह में वृद्धि, निवेश प्रवाह (बाहरी तथा आवक दोनों) में वृद्धि, संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के लिये अधिक खुलेपन से आर्थिक विकास एवं समृद्धि में वृद्धि होने की उम्मीद है।
भारत-ब्रिटेन साझेदारी क्यों महत्त्वपूर्ण है:
- UK के लिये: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाज़ार हिस्सेदारी और रक्षा दोनों ही विषयों में UK के लिये एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है जो वर्ष 2015 में भारत तथा UK के बीच ‘रक्षा एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा साझेदारी’ (Defence and International Security Partnership) पर हस्ताक्षर द्वारा रेखांकित भी हुआ।
- ब्रिटेन के लिये भारत के साथ सफलतापूर्वक FTA का संपन्न होना ‘ग्लोबल ब्रिटेन’ की उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देगा क्योंकि UK ‘ब्रेक्जिट’ (Brexit) के बाद से यूरोप से परे भी अपने बाज़ारों के विस्तार की आवश्यकता तथा इच्छा रखता है।
- ब्रिटेन एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में वैश्विक मंच पर अपनी जगह सुदृढ़ करने के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र की विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अवसरों का लाभ उठाने की कोशिश कर रहा है।
- भारत से अच्छे द्विपक्षीय संबंधों के साथ वह इस लक्ष्य को बेहतर ढंग से हासिल कर सकने में सक्षम होगा।
- भारत के लिये: हिंद प्रशांत में UK एक क्षेत्रीय शक्ति है क्योंकि इसके पास ओमान, सिंगापुर, बहरीन, केन्या और ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएँ हैं।
- यूके(UK) ने भारत में अक्षय ऊर्जा के उपयोग का समर्थन करने के लिये ब्रिटिश अंतर्राष्ट्रीय निवेश निधि के 70 मिलियन अमेरिकी डॉलर की भी पुष्टि की है, जिससे इस क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा बुनियादी ढाँचे के निर्माण एवं सौर ऊर्जा के विकास में मदद मिलेगी।
- भारत ने मत्स्य पालन, फार्मा और कृषि उत्पादों के लिये बाज़ार तक आसान पहुँच के साथ-साथ श्रम-गहन निर्यात के लिये शुल्क रियायत की भी मांग की है।
दोनों देशों के बीच वर्तमान प्रमुख द्विपक्षीय मुद्दे क्या हैं?
- भारतीय आर्थिक अपराधियों का प्रत्यर्पण:
- यह मुद्दा भारतीय आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण का है जो वर्तमान में ब्रिटेन की शरण में हैं और अपने लाभ के लिये कानूनी प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं।
- स्पष्ट रूप से भारतीय आपराधिक मामले, जिनमे प्रत्यर्पण का आह्वान होता है, दर्ज़ होने के बावजूद विजय माल्या, नीरव मोदी और अन्य अपराधियों ने लंबे समय से ब्रिटिश व्यवस्था की शरण ली हुई है।
- ब्रिटिश और पाकिस्तानी डीप स्टेट के बीच अम्बिलिकल लिंक:
- वोट बैंक की राजनीति के अलावा ब्रिटेन में उपमहाद्वीप से एक बड़े मुस्लिम समुदाय का अस्तित्व, विशेष रूप से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में मीरपुर जैसे स्थानों के कारण विसंगति को बढ़ावा देता है।
- वाइट ब्रिटेन की गैर-स्वीकृति:
- एक अन्य चिंता वाइट ब्रिटेन द्वारा वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के विकास को अस्वीकार करना है, विशेष कर मीडिया में।
- वर्तमान प्रधानमंत्री के नेतृत्त्व में भारत ने GDP के मामले में ब्रिटेन को पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पीछे छोड़ दिया है और निरंतर आगे बढ़ रहा है।
- नस्ल के आधार या ब्रिटिश साम्राज्य की शाही विरासत के मामले में एक आधुनिक और आत्मविश्वासी भारत एवं एक ब्रिटिश औपनिवेशिक भारत के बीच कोई अंतर नहीं है।
- एक अन्य चिंता वाइट ब्रिटेन द्वारा वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के विकास को अस्वीकार करना है, विशेष कर मीडिया में।
ब्रिटिश और भारतीय संसदीय प्रणाली में अंतर:
- भारत में सरकार की संसदीय प्रणाली काफी हद तक ब्रिटिश संसदीय प्रणाली पर आधारित है। हालाँकि यह कभी भी ब्रिटिश प्रणाली की प्रतिकृति नहीं बनी और निम्नलिखित मामलों में भिन्न है:
- भारत में ब्रिटिश राजतंत्रीय व्यवस्था के स्थान पर एक गणतांत्रिक व्यवस्था है। दूसरे शब्दों में भारत में राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) चुना जाता है, जबकि ब्रिटेन में राज्य के प्रमुख (राजा या रानी) को वंशानुगत पद प्राप्त होता है।
- ब्रिटिश प्रणाली संसद की संप्रभुता के सिद्धांत पर आधारित है, जबकि संसद भारत में सर्वोच्च नहीं है और लिखित संविधान, संघीय प्रणाली, न्यायिक समीक्षा एवं मौलिक अधिकारों के कारण सीमित तथा प्रतिबंधित शक्तियों का उपयोग करती है।
- ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) का सदस्य होना चाहिये। भारत में प्रधानमंत्री संसद के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो सकता है।
- आमतौर पर केवल संसद सदस्यों को ही ब्रिटेन में मंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है। भारत में व्यक्ति जो संसद का सदस्य नहीं है, उसे भी मंत्री के रूप में नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अधिकतम छह महीने की अवधि के लिये।
- ब्रिटेन में मंत्री की कानूनी ज़िम्मेदारी की व्यवस्था है, जबकि भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। ब्रिटेन के विपरीत भारत में मंत्रियों को राज्य के प्रमुख के आधिकारिक कृत्यों पर प्रतिहस्ताक्षर करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- 'छाया कैबिनेट' ब्रिटिश कैबिनेट प्रणाली की एक अद्वितीय संस्था है। इसका गठन विपक्षी दल द्वारा सत्तारूढ़ कैबिनेट को संतुलित करने और अपने सदस्यों को भविष्य के मंत्रिस्तरीय कार्यालय के लिये तैयार करने हेतु किया जाता है। भारत में ऐसी कोई संस्था नहीं है।
आगे की राह
- संस्कृति, इतिहास और भाषा के गहरे संबंध पहले से ही यूके को एक संभावित मज़बूत आधार प्रदान करते हैं जिससे भारत के साथ संबंधों को और गहरा किया जा सकता है।
- पूरी तरह से नई परिस्थितियों के साथ भारत और ब्रिटेन को यह समझना चाहिये कि दोनों को अपने बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हमने ब्रिटिश मॉडल के आधार पर संसदीय लोकतंत्र को अपनाया, लेकिन हमारा मॉडल उस मॉडल से कैसे अलग है?( 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न: भारत और ब्रिटेन की न्यायिक व्यवस्था हाल के दिनों में अभिसरण के साथ-साथ अलग-अलग होती दिख रही है। न्यायिक प्रथाओं के संदर्भ में दोनों देशों के बीच अभिसरण एवं विचलन के प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) |
स्रोत: द हिंदू
नाविक
प्रिलिम्स के लिये:इसरो, जीपीएस, आईएमओ, आईआरएनएसएस, L बैंड, ग्लोनास, गैलीलियो, बीडौ।ँ मेन्स के लिये:NavIC का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
भारत अपनी क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली NaVIC (भारतीय नक्षत्र में नेविगेशन) का विस्तार करने की योजना बना रहा है, ताकि देश की सीमाओं से दूर यात्रा करने वाले नागरिक क्षेत्र और जहाज़ों, विमानों में इसके उपयोग को बढ़ाया जा सके।
नाविक:
- परिचय:
- कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी तक केवल सात ही सक्रिय हैं।
- भूस्थिर कक्षा में तीन और भू-समकालिक कक्षा में चार उपग्रह स्थापित हैं।
- नाविक या भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (IRNSS) को 7 उपग्रहों के एक समूह और 24 x 7 पर चलने वाले ग्राउंड स्टेशनों के नेटवर्क के साथ डिज़ाइन किया गया है।
- कुल आठ उपग्रह हैं लेकिन अभी तक केवल सात ही सक्रिय हैं।
- नाविक का पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को लॉन्च किया गया था और आठवांँ उपग्रह RNSS-1 अप्रैल 2018 में लॉन्च किया गया था।
- तारामंडल के उपग्रह (IRNSS-1G) के सातवें प्रक्षेपण के साथ 2016 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर NaVIC कर दिया गया।
- इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये वर्ल्ड-वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम (WWRNS) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई थी।
संभावित उपयोग:
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
- आपदा प्रबंधन;
- वाहन ट्रैकिंग और बेड़ा प्रबंधन (विशेषकर खनन व परिवहन क्षेत्र के लिये);
- मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
- सटीक समय (एटीएम और पावर ग्रिड के लिये);
- मानचित्रण और जियोडेटिक डेटा कैप्चर
महत्त्व:
- यह 2 सेवाओं के लिये वास्तविक समय की जानकारी देता है अर्थात् नागरिक उपयोग के लिये मानक स्थिति सेवा और जिसे सेना के लिये अधिकृत एन्क्रिप्ट की जाने वाली प्रतिबंधित सेवा का संचालन करता है।
- भारत उन 5 देशों में से एक बन गया जिनके पास अपना नेविगेशन सिस्टम है। इसलिये नेविगेशन उद्देश्यों के लिये अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है।
- यह भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में मदद करेगा। यह देश की संप्रभुता और सामरिक आवश्यकताओं के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- अप्रैल 2019 में, सरकार ने निर्भया मामले के फैसले के अनुसार देश के सभी वाणिज्यिक वाहनों के लिये नाविक-आधारित वाहन ट्रैकर्स को अनिवार्य कर दिया।
- साथ ही, क्वालकॉम टेक्नोलॉजीज ने नाविक का समर्थन करने वाले मोबाइल चिपसेट का अनावरण किया है
- इसके अलावा व्यापक कवरेज के साथ परियोजना के भविष्य के उपयोगों में से एक में सार्क देशों के साथ परियोजना को साझा करना शामिल है। इससे क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली को और एकीकृत करने में मदद मिलेगी तथा इस क्षेत्र के देशों के प्रति भारत की ओर से कूटनीतिक सद्भावना का संकेत मिलेगा।
मुद्दे एवं उनमें सुधार
- L बैंड:
- इसरो ने कम से कम पाँच उपग्रहों को बेहतर L-बैंड से बदलने की योजना बनाई है, जो इसे जनता को बेहतर वैश्विक स्थिति सेवाएंँ प्रदान करने में सक्षम बनाएगा क्योंकि इस समूह के कई उपग्रहों की कार्यावधि को समाप्त कर दिया गया है।
- निष्क्रिय उपग्रहों को बदलने के लिये समय-समय पर पाँच और उपग्रह प्रक्षेपित किये जाएंगे।
- नए उपग्रहों में L-1, L-5 और S बैंड होंगे।
- L1, L2 और L5 GPS आवृत्ति हैं, जहाँ L1 आवृत्ति का उपयोग GPS उपग्रह स्थान को ट्रैक करने के लिये किया जाता है, L2 आवृत्ति का उपयोग GPS उपग्रहों की स्थिति को ट्रैक करने के लिये किया जाता है और L5 आवृत्ति का उपयोग नागरिक उपयोग के लिये सटीकता जैसे कि विमान की सटीकता में सुधार करने के लिये किया जाता है।
- S बैंड 8-15 सेमी की तरंग दैर्ध्य और 2-4 गीगाहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर काम करता है। तरंग दैर्ध्य और आवृत्ति के कारण, S बैंड रडार आसानी से क्षीण नहीं होते हैं। यह उन्हें निकट और दूर के मौसम के अवलोकन के लिये उपयोगी बनाता है।
- इसरो ने कम से कम पाँच उपग्रहों को बेहतर L-बैंड से बदलने की योजना बनाई है, जो इसे जनता को बेहतर वैश्विक स्थिति सेवाएंँ प्रदान करने में सक्षम बनाएगा क्योंकि इस समूह के कई उपग्रहों की कार्यावधि को समाप्त कर दिया गया है।
- सामरिक क्षेत्र के लिये लॉन्ग कोड:
- वर्तमान में इसरो केवल शाॅर्ट कोड प्रदान कर रहा है। अब शॉर्ट कोड को रणनीतिक क्षेत्र के उपयोग के लिये लॉन्ग कोड बनना होगा ताकि सिग्नल का उल्लंघन या वह अनुपलब्ध हो सके।
- ऐसा इसलिये किया जाएगा ताकि यूज़र बेस को चौड़ा किया जा सके और इसे यूज़र फ्रेंडली बनाया जा सके।
- मोबाइल संगतता:
- वर्तमान में भारत में मोबाइल फोन को इसके संकेतों को संसाधित करने के लिये अनुकूल नहीं बनाया गया है।
- भारत सरकार निर्माताओं पर अनुकूल ब्राॅडबैंड के लिये दबाव बना रही है और जनवरी 2023 की समय-सीमा तय की है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि वर्ष 2025 से पहले इसकी संभावना नहीं है।
दुनिया में अन्य नेविगेशन सिस्टम:
- चार वैश्विक प्रणालियाँ:
- अमेरिका का जीपीएस
- रूस का ग्लोनास
- यूरोपीय संघ का गैलीलियो
- चीन का बाइडू
- दो क्षेत्रीय प्रणालियाँ:
- भारत का नाविक
- जापान का QZSS
नाविक की आवश्यकता, अन्य नेवीगेशन प्रणालियों के समांतर:
- GPS और ग्लोनास आदि देशों की रक्षा एजेंसियों द्वारा संचालित होती है।
- यह संभव है कि नागरिक सेवा को बाधित या अस्वीकार किया जा सकता है।
- नाविक भारतीय क्षेत्र में एक स्वतंत्र क्षेत्रीय प्रणाली है और सेवा क्षेत्र के भीतर स्थिति सेवा प्रदान करने के लिये अन्य प्रणालियों पर निर्भर नहीं है।
- यह पूरी तरह से भारत सरकार के नियंत्रण में है।
आगे की राह
- नाविक को वास्तव में जीपीएस की तरह वैश्विक बनाने के लिये वर्तमान प्रणाली की तुलना में अधिक उपग्रहों को पृथ्वी के करीब एक कक्षा में स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
- अभी नाविक की पहुंँच भारतीय क्षेत्र से केवल 1,500 किमी. दूर है लेकिन इससे आगे की यात्रा करने वाले हमारे जहाज़ों और हवाई जहाज़ों के लिये हमें मध्यम पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों की आवश्यकता होगी। इसे किसी बिंदु पर वैश्विक बनाने के लिये हम MEO उपग्रहों को जोड़ना जारी रख सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:Q. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (A) मेन्सप्रश्न. भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) की आवश्यकता क्यों है? यह नेविगेशन में कैसे मदद करता है? (2018) |
स्रोत: द हिंदू
ब्लू फ्लैग प्रमाणीकरण
प्रिलिम्स के लिये:UNEP, UNWTO, फाउंडेशन फॉर इनवॉयरमेंटल एजुकेशन (FEE), IUCN। मेन्स के लिये:ब्लू फ्लैग प्रमाणन और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लक्षद्वीप में दो नए समुद्र तटों मिनिकॉय थुंडी बीच और कदमत बीच (Minicoy Thundi Beach and Kadmat Beach) दोनों को ब्लू फ्लैग प्रमाणन दिया गया है।
- जिसके पश्चात् देश में ब्लू फ्लैग प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाले समुद्र तटों की कुल संख्या 12 हो गई है।
ब्लू फ्लैग प्रमाणीकरण:
- परिचय:
- यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक इको-लेबल है जिसे 33 मानदंडों के आधार पर प्रदान किया जाता है। इन मानदंडों को 4 प्रमुख शीर्षकों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं-
- पर्यावरण शिक्षा और सूचना
- स्नान के पानी की गुणवत्ता
- पर्यावरण प्रबंधन
- समुद्र तटों पर संरक्षण और सुरक्षा सेवाएँ
- ब्लू फ्लैग समुद्र तटों को दुनिया का सबसे साफ समुद्र तट माना जाता है। यह एक ईको-टूरिज़्म मॉडल है, जो पर्यटकों/समुद्र तट पर आने वालों को नहाने के लिये साफ एवं स्वच्छ जल, सुविधाओं, सुरक्षित एवं स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के साथ क्षेत्र के सतत् विकास को बढ़ावा देने का प्रयास करता है।
- यह प्रतिष्ठित सदस्यों- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO), डेनमार्क स्थित एनजीओ फाउंडेशन फॉर एन्वायरनमेंटल एजुकेशन (FEE) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) से गठित एक अंतर्राष्ट्रीय जूरी द्वारा प्रदान किया जाता है।
- ब्लू फ्लैग सर्टिफिकेशन की तरह ही भारत ने भी अपना इको-लेबल बीच एन्वायरनमेंट एंड एस्थेटिक्स मैनेजमेंट सर्विसेज़’ (Beach Environment and Aesthetics Management Services- BEAMS) लॉन्च किया है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एक इको-लेबल है जिसे 33 मानदंडों के आधार पर प्रदान किया जाता है। इन मानदंडों को 4 प्रमुख शीर्षकों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार हैं-
- अन्य 10 समुद्र तट जिन्हें ब्लू फ्लैग प्रमाणन प्राप्त हुआ है:
- शिवराजपुर, गुजरात
- घोघला, दमन व दीव
- कासरकोड, कर्नाटक
- पदुबिद्री तट, कर्नाटक
- कप्पड़, केरल
- रुशिकोंडा, आंध्र प्रदेश
- गोल्डन बीच, ओडिशा
- राधानगर तट, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह
- कोवलम (तमिलनाडु)
- ईडन (पुद्दुचेरी)
BEAMS:
- बीच एन्वायरनमेंट एंड एस्थेटिक्स मैनेजमेंट सर्विस, एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management- ICZM) परियोजना के तहत आती है।
- इसे सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट (Society of Integrated Coastal Management- SICOM) एवं केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Union Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा लॉन्च किया गया था।
- BEAMS कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:
- तटीय जल प्रदूषण को न्यून करना।
- समुद्र तट पर सुविधाओं के सतत् विकास को बढ़ावा देना।
- तटीय पारिस्थितिकी तंत्र एवं प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और संरक्षण।
- स्वच्छता के उच्च मानकों को मज़बूत करना और उन्हें बनाए रखना।
- तटीय वातावरण एवं नियमों के अनुसार समुद्र तट के लिये स्वच्छता और सुरक्षा।
- इसने पुनर्चक्रण के माध्यम से 1,100 मिली/वर्ष नगरपालिका के पानी को बचाने में मदद की है; समुद्र तट पर जाने वाले 1,25,000 लोगों को समुद्र तटों पर ज़िम्मेदार व्यवहार बनाए रखने के लिये शिक्षित किया गया। प्रदूषण में कमी, सुरक्षा और सेवाओं के माध्यम से 500 मछुआरा परिवारों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किये गए तथा समुद्र तटों पर मनोरंजन गतिविधियों के लिये पर्यटकों की संख्या में लगभग 80% की वृद्धि हुई है जिससे आर्थिक विकास हुआ है।