छठी वार्षिक बैठक: AIIB
प्रिलिम्स के लिये:एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक, पेरिस समझौता मेन्स के लिये:एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक द्वारा भारत की विभिन्न परियोजनाओं के लिये आवंटित ऋण का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (Asian Infrastructure Investment Bank- AIIB) के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की छठी वार्षिक बैठक में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- भारत का पक्ष:
- कोविड में मदद:
- भारत सहित सदस्य देशों को कोविड-19 को नियंत्रित करने और उसका मुकाबला करने के उनके प्रयासों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करने में AIIB की त्वरित कार्रवाई की सराहना की गई।
- बहुपक्षीय बैंकिंग:
- कोविड-19 संकट और आसन्न जलवायु संकट से निपटने के लिये देशों के प्रयासों के पूरक के रूप में बहुपक्षीय बैंकों (Multilateral Banks) के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया।
- बैंक से अपेक्षाएँ:
- सामाजिक बुनियादी ढाँचे के क्षेत्र में संपत्ति के निर्माण और विकास में निवेश के अवसरों का पता लगाने की आवश्यकता है।
- समावेशी एवं हरित विकास के लिये निजी क्षेत्र से पूंजी जुटाने की प्रक्रिया को और तेज करना।
- जवाबदेही, पारदर्शिता और संचालन एवं निवेश की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये एक रेजिडेंट बोर्ड व क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित करना।
- कोविड में मदद:
- AIIB का पक्ष:
- भारत के लिये सुझाव:
- इसे भौतिक बुनियादी ढाँचे और सामाजिक बुनियादी ढाँचे जैसे स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के बीच संतुलन बनाना चाहिये।
- भारत में भविष्य के प्रयास:
- यह आने वाले वर्षों में भारत में सामाजिक और जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचे दोनों को वित्तपोषित करेगा।
- यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ अपने कार्यों को संरेखित करेगा।
- भारत के लिये सुझाव:
भारत और AIIB:
- वर्ष 2016 में स्थापित AIIB के 57 संस्थापक सदस्यों में से भारत एक है।
- भारत, AIIB में चीन (26.06%) के बाद दूसरा सबसे बड़ा शेयरधारक (7.62% वोटिंग शेयर के साथ) है।
- भारत ने AIIB से 4.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण प्राप्त किया है जो किसी भी देश द्वारा प्राप्त सबसे अधिक ऋण राशि है। AIIB द्वारा अब तक 24 देशों में 87 परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये 19.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण को मंज़ूरी दी गई है।
- तुर्की 1.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ ऋण प्राप्ति में दूसरे स्थान पर है।
- AIIB द्वारा भारत में ऊर्जा, परिवहन एवं जल जैसे क्षेत्रों के अलावा बंगलूरू मेट्रो रेल परियोजना (335 मिलियन अमेरिकी डॉलर), गुजरात में ग्रामीण सड़क परियोजना (329 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तथा मुंबई शहरी परिवहन परियोजना के चरण-3 (500 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के वित्तपोषण के लिये मंज़ूरी दी गई है।
- भारत को आधुनिक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने की ज़रूरत है और बैंक के प्रस्तावों के आधार पर सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि उन बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाए जो जलवायु परिवर्तन से निपट सकें।
- हाल ही में एक आभासी बैठक में भारत द्वारा कहा गया कि COVID-19 संकट के दौरान AIIB से अपेक्षा की जाती है कि वह AIIB पुनर्प्राप्ति प्रतिक्रिया (AIIB Recovery Response) अर्थात् ‘क्राइसिस रिकवरी फैसिलिटी’ द्वारा सामाजिक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने तथा जलवायु परिवर्तन एवं सतत् ऊर्जा संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास को एकीकृत करने के लिये नए वित्त संसाधनों को उपलब्ध कराए।
- इसका निहितार्थ यह है कि हाल ही में भारत द्वारा चीन के साथ अपने व्यापार और निवेश को कम किया गया है, इसके बावजूद भारत का चीन के नेतृत्व वाले एशियाई इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक के साथ अपने सहयोग को बदलने या कम करने का कोई इरादा नहीं है।
एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक:
- एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जिसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक-आर्थिक परिणामों को बेहतर बनाना है।
- यह नई पूंजी को अनलॉक करके और हरित, प्रौद्योगिकी-सक्षम एवं क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने वाले बुनियादी ढाँचे में निवेश कर ग्राहकों की ज़रूरतों को पूरा करता है।
- इसकी स्थापना AIIB आर्टिकल्स ऑफ एग्रीमेंट (25 दिसंबर, 2015 से लागू) नामक एक बहुपक्षीय समझौते के माध्यम से की गई है।
- समझौते के पक्षकारों (57 संस्थापक सदस्य) हेतु बैंक की सदस्यता अनिवार्य है।
- AIIB के सदस्य देशों की संख्या अब बढ़कर 102 तक पहुँच गई है।
- इसका मुख्यालय बीजिंग में है और जनवरी 2016 में इसका परिचालन शुरू हुआ।
स्रोत: द हिंदू
वायुमंडल में हीट-ट्रैपिंग गैसों पर रिपोर्ट: WMO
प्रिलिम्स के लिये:हीट-ट्रैपिंग ग्रीनहाउस गैस मेन्स के लिये:ग्रीनहाउस गैसों का कारण और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन के अनुसार, वायुमंडल में हीट-ट्रैपिंग ग्रीनहाउस गैसों की प्रचुरता वर्ष 2020 में एक बार फिर नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गई, यह स्तर वर्ष 2011-2020 के औसत वार्षिक दर से अधिक थी।
- यह रिकॉर्ड स्तर महामारी से संबंधित प्रतिबंधों के कारण वर्ष 2020 में जीवाश्म ईंधन CO2 उत्सर्जन में लगभग 5.6% की गिरावट के बावजूद देखा गया है।
- इससे पहले WMO ने यूनाइटेड इन साइंस 2021 नामक एक रिपोर्ट जारी की थी। WMO मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा संबंधित भूभौतिकीय विज्ञान के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- WMO ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच प्रोग्राम ग्रीनहाउस गैसों और अन्य वायुमंडलीय घटकों के व्यवस्थित अवलोकन तथा विश्लेषण का समन्वय करता है।
प्रमुख बिंदु
- डेटा विश्लेषण:
- सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सांद्रता वर्ष 2020 में 413.2 पार्ट्स प्रति मिलियन तक पहुँच गई और यह पूर्व-औद्योगिक स्तर का 149% है।
- कई देश अब कार्बन तटस्थ लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं और उम्मीद है कि ये COP26 (जलवायु सम्मेलन) प्रतिबद्धताओं के मद्देनज़र इस प्रकार की वृद्धि को संदर्भित करेंगे।
- औद्योगिक काल के प्रारंभ होने से पूर्व अर्थात् लगभग वर्ष 1750 के स्तर से मीथेन (CH4) का 262% और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का 123% अधिक उत्पादन हुआ है।
- कोविड-19 के कारण आर्थिक मंदी का ग्रीनहाउस गैसों के वायुमंडलीय स्तर और उनकी विकास दर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, हालाँकि नए उत्सर्जन में अस्थायी गिरावट आई थी।
- वर्ष 1990 से 2020 के दौरान लंबे समय तक रहने वाली ग्रीनहाउस गैसों के विकिरणकारी दबाव के कारण जलवायु पर 47% उष्मन वृद्धि दर्ज की गई है, इस वृद्धि में लगभग 80% हिस्से के लिये CO2 ज़िम्मेदार है।
- भविष्य में ‘सिंक’ के रूप में कार्य करने के लिये भूमि पारिस्थितिक तंत्र और महासागरों की क्षमता प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है, इस प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने तथा तापमान वृद्धि के खिलाफ बफर के रूप में कार्य करने की उनकी क्षमता कम हो सकती है।
- सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की सांद्रता वर्ष 2020 में 413.2 पार्ट्स प्रति मिलियन तक पहुँच गई और यह पूर्व-औद्योगिक स्तर का 149% है।
- चिंताएँ:
- इस सदी के अंत तक पेरिस समझौते के अंतर्गत निर्धारित तापमान में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होने की संभावना है।
- कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने वाले अमेज़न वर्षावन जैसे क्षेत्रों का क्षरण हो रहा है और इस क्षेत्र में वनों की कटाई एवं आर्द्रता कम होने के कारण ये CO2 के स्रोत में रूपांतरित हो रहे हैं।
- CO2 के लंबे जीवनकाल को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस तापमान वृद्धि का प्रभाव कई दशकों तक कार्बन उत्सर्जन की शून्यता की स्थिति के बावजूद बना रहेगा। बढ़ते तापमान के साथ-साथ तीव्र गर्मी और वर्षा, बर्फ पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि तथा समुद्र के अम्लीकरण के दूरगामी सामाजिक आर्थिक प्रभावों सहित कई चरम मौसमी स्थितियाँ उत्पन्न होंगी।
- संबंधित भारतीय पहल:
- पशुओं द्वारा उत्सर्जित मीथेन को कम करने के लिये समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा
- भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना
- भारत चरण-VI मानदंड
ग्रीन हाउस के प्रकार |
स्रोत |
निष्कासन स्रोत |
गैस प्रतिक्रिया |
कार्बन डाइऑक्साइड |
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नाइट्रस ऑक्साइड |
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फ्लोरिनेटेड गैंसें |
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मीथेन |
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स्रोत: द हिंदू
व्यापक पूर्वोत्तर मानसून: IMD
प्रिलिम्स के लिये:भारत मौसम विज्ञान विभाग, मानसून मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर मानसून के कारक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने 24 अक्तूबर, 2021 तक तमिलनाडु में व्यापक वर्षा की चेतावनी जारी की थी।
- प्रायः पूर्वोत्तर मानसून 20 अक्तूबर के आसपास लौटता है।
प्रमुख बिंदु
- मानसून के विषय में:
- आमतौर पर दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में मानसून का अनुभव लगभग 20°N और 20°S के बीच होता है।
- भारत की जलवायु को 'मानसून' के रूप में वर्णित किया जाता है।
- एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्य रूप से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में पाई जाती है।
- भारत में वर्षा:
- दक्षिण-पश्चिम मानसून: देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 75% जून और सितंबर के बीच दक्षिण-पश्चिम मानसून से प्राप्त होता है।
- पूर्वोत्तर मानसून: यह अक्तूबर से दिसंबर के दौरान आता है।
- पूर्वोत्तर मानसून (NEM):
- शीतकालीन मानसून: यह अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर होता है और केवल दक्षिणी प्रायद्वीप तक ही सीमित रहता है।
- इसे शीत मानसून भी कहा जाता है।
- पूर्वोत्तर मानसून के कारक:
- हवा के पैटर्न में बदलाव: अक्तूबर के मध्य तक देश से दक्षिण-पश्चिम मानसून की पूर्ण वापसी के बाद हवा का पैटर्न तेज़ी से दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में बदल जाता है।
- चक्रवाती गतिविधियाँ: दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम के बाद की अवधि यानी अक्तूबर से दिसंबर तक की अवधि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी को कवर करने वाले उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवाती गतिविधि के लिये महत्त्वपूर्ण समय है।
- निम्न दबाव प्रणालियों, अवसादों या चक्रवातों के निर्माण से जुड़ी हवाएँ इस मानसून को प्रभावित करती हैं, इसलिये वर्षा होती है।
- वैश्विक जलवायु पैरामीटर: पूर्वोत्तर मानसूनी वर्षा वैश्विक जलवायु मापदंडों जैसे- ENSO (अल नीनो/ला नीना और दक्षिणी दोलन सूचकांक- SOI), हिंद महासागर डिपोल (IOD) एवं मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन (MJO) से भी प्रभावित होती है।
- अल नीनो, सकारात्मक IOD और ‘मैडेन-जूलियन ऑसिलेशन’ प्रायः बेहतर पूर्वोत्तर मानसूनी वर्षा से जुड़े होते हैं।
- साथ ही सीज़न की दूसरी छमाही के दौरान ला नीना और सकारात्मक SOI भी बेहतर पूर्वोत्तर मानसून गतिविधि के लिये अनुकूल हैं।
- संबंधित क्षेत्र:
- तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, कराईकल, तटीय आंध्र प्रदेश, केरल, उत्तर कर्नाटक, माहे और लक्षद्वीप।
- इस अवधि के दौरान तमिलनाडु अपनी वार्षिक वर्षा का लगभग 48% रिकॉर्ड करता है, जिससे यह राज्य में कृषि गतिविधियों और जलाशय प्रबंधन हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- शीतकालीन मानसून: यह अपेक्षाकृत छोटे पैमाने पर होता है और केवल दक्षिणी प्रायद्वीप तक ही सीमित रहता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत-अमेरिका रक्षा सौदा
प्रिलिम्स के लिये:चैफ एंड फ्लेयर्स, MK 54, पी-8आई गश्ती विमान मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका रक्षा सौदा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने विदेशी सैन्य बिक्री (FMS) के तहत भारतीय नौसेना के लिये MK 54 टॉरपीडो और एक्सपेंडेबल (चैफ एंड फ्लेयर्स) की खरीद के लिये अमेरिकी सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- FMS यू.एस. सरकार का अपने अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को रक्षा उपकरण, सेवाओं एवं प्रशिक्षण के लिये कार्यक्रम है।
- एक्सपेंडेबल्स (Expendables) एक ऐसा उपकरण है जिसका इस्तेमाल उड़ान के दौरान किया जा सकता है और इसकी रिकवरी नहीं की जा सकती है।
प्रमुख बिंदु
- MK 54 टारपीडो:
- यह एक सिगार के आकार की स्व-चालित पानी के सतह के नीचे की मिसाइल है, जिसे पनडुब्बी, सतह के जहाज़ या हवाई जहाज़ से लॉन्च किया जाता है और सतह पर जहाज़ों और पनडुब्बियों में विस्फोट के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- MK 54 सूचना का विश्लेषण करने, गलत लक्ष्यों या प्रतिवादों को समझने और फिर पहचाने गए खतरों का पीछा करने के लिये परिष्कृत प्रसंस्करण एल्गोरिदम का उपयोग करता है।
- इस उपकरण का प्राथमिक उपयोग आक्रामक उद्देश्यों जैसे- पनडुब्बी रोधी युद्धक विमानों और हेलीकॉप्टरों के माध्यम से हमले हेतु किया जाता है और रक्षात्मक उद्देश्यों जैसे तीव्र परमाणु पनडुब्बियों और धीमी गति से चलने वाली, शांत, डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की सुरक्षा के लिये किया जाता है।
- भारत का उद्देश्य Mk 54 टॉरपीडो का उपयोग P-8I गश्ती विमान के साथ करना है।
- एक्सपेंडेबल्स:
- चैफ:
- चैफ काउंटरमेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम (CMDS) का एक हिस्सा है, जो एक पैसिव एक्सपेंडेबल्स इलेक्ट्रॉनिक काउंटर उपकरण है जिसका उपयोग रेडियो फ्रीक्वेंसी के आधार पर दुश्मन के रडार और मिसाइलों से नौसेना के जहाज़ों की सुरक्षा के लिये किया जाता है।
- CMDS रडार निर्देशित और इन्फ्रारेड मिसाइलों के खिलाफ विमान को परिष्कृत, विविध और जटिल खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- यह कई छोटे एल्यूमीनियम या जस्ता लेपित फाइबर से बना होता है जो विमान में ट्यूबों में संग्रहीत होता है।
- यदि विमान को किसी भी रडार ट्रैकिंग मिसाइल से खतरा महसूस होता है, तो विमान के पीछे हवा के अशांत वातावरण में चैफ को बाहर निकाल दिया जाता है।
- चैफ काउंटरमेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम (CMDS) का एक हिस्सा है, जो एक पैसिव एक्सपेंडेबल्स इलेक्ट्रॉनिक काउंटर उपकरण है जिसका उपयोग रेडियो फ्रीक्वेंसी के आधार पर दुश्मन के रडार और मिसाइलों से नौसेना के जहाज़ों की सुरक्षा के लिये किया जाता है।
- फ्लेयर:
- एक फ्लेयर या डिकॉय फ्लेयर भी CMDS का एक हिस्सा है, जिसका इस्तेमाल एक इंफ्रारेड होमिंग ("हीट-सीकिंग") सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल या हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइल का मुकाबला करने के लिये एक विमान या हेलीकॉप्टर द्वारा किया जाता है।
- फ्लेयर्स आमतौर पर मैग्नीशियम या किसी अन्य गर्म जलती हुई धातु पर आधारित संरचना है, जो ज्वलनशील इंजन के निकास के तापमान के बराबर गर्म होता है।
- इन्फ्रारेड फ्लेयर्स का उपयोग इन्फ्रारेड गाइडेड मिसाइलों (सतह से हवा और हवा से हवा दोनों खतरों) से लड़ाकू और परिवहन विमानों को बचाने के लिये किया जाता है।
- फायर किये जाने पर फ्लेयर्स गर्मी वाली एंटी-एयर मिसाइलों को एक वैकल्पिक मज़बूत आईआर (इन्फ्रारेड) स्रोत प्रदान करते हैं ताकि उन्हें विमान से दूर ले जाया जा सके।
- चैफ:
- इस समझौते का महत्त्व:
- यह पनडुब्बी रोधी युद्ध अभियानों का संचालन करने की भारत की क्षमता में सुधार करेगा और "क्षेत्रीय खतरों के लिये एक निवारक के रूप में भारत की रक्षा को मज़बूत करने के लिये" काम करेगा।
- यह भारत के साथ अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी साझा करने और दोनों देशों को एक सुरक्षित और स्थिर दक्षिण एशिया के मद्देनज़र अमेरिका की प्रतिबद्धता का हिस्सा है।
- चीन से दोनों देशों के लिये जो खतरा है, उसे देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण है। हाल के दिनों में चीन ने हिंद महासागर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है, जिसे भारत के लिये खतरे के रूप में देखा जा सकता है।
- यह अमेरिका की चीन को चेतावनी देने और भू-राजनीतिक संदर्भ में संतुलन बनाए रखने की कोशिश के रूप में अनुमानित है।
- हाल के दिनों में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका से बने क्वाड कलेक्टिव में कहा गया था कि वे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति सुनिश्चित करने के लिये हर संभव प्रयास करेंगे।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जलवायु सुभेद्यता सूचकांक
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु सुभेद्यता सूचकांक मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और परिमाण,जलवायु परिवर्तन में मानवजनित गतिविधियों की भूमिका |
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थान ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) द्वारा "मैपिंग इंडियाज़ क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी- ए डिस्ट्रिक्ट-लेवल असेसमेंट" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई है।
- परिषद ने रिपोर्ट के साथ ही एक विशिष्ट प्रकार का पहला जलवायु सुभेद्यता सूचकांक भी लॉन्च किया है।
- इस सूचकांक में भारत के 640 ज़िलों का विश्लेषण किया गया और विश्लेषण के निष्कर्षों में पाया गया कि इनमें से 463 ज़िले अत्यधिक बाढ़, सूखे और चक्रवात से प्रभावित हैं।
प्रमुख बिंदु
- प्रभावित राज्य: 27 भारतीय राज्य और केंद्रशासित प्रदेश गंभीर जलवायु घटनाओं से ग्रस्त हैं जहाँ स्थानीय अर्थव्यवस्था बाधित तथा कमज़ोर समुदाय विस्थापित होने जैसी घटनाओं से प्रभावित हैं।
- भारत में बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी गंभीर जलवायु घटनाओं का प्रति असम,आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार जैसे राज्य अधिक संवेदनशील हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: 80% से अधिक ज़िले जलवायु जोखिमों के प्रति संवेदनशील ज़िलों के रूप में वर्गीकृत किये गए हैं।
- देश में प्रति 20 में से 17 लोग जलवायु जोखिमों के प्रति संवेदनशील हैं, जिनमें से हर पाँच भारतीय ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जो बेहद संवेदनशील हैं।
- इनमें से 45% से अधिक ज़िलों में "अस्थिर परिदृश्य और उनके बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन" हुआ है।
- अनुकूलन क्षमता का निम्न स्तर: 60% से अधिक भारतीय ज़िलों में गंभीर मौसमी घटनाओं से निपटने के लिये मध्यम से निम्न स्तर की अनुकूलन क्षमता है।
- मानवजनित गतिविधियों की भूमिका: मानवजनित गतिविधियों ने पहले ही संवेदनशील ज़िलों को प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों के प्रति और अधिक संवेदनशील बना दिया है। यह निम्नलिखित गतिविधियों के कारण हुआ है:
- प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करने वाले आर्द्रभूमि और मैंग्रोव का क्षरण।
- प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र का ह्रास, वन आवरण में कमी, संवेदनशील क्षेत्र में अधिक निर्माण।
- आसन्न वित्तीय संकट: बढ़ती आवृत्ति और गंभीर जलवायु घटनाओं का मुकाबला करने के लिये भारत जैसे विकासशील देश में वित्त की कमी है।
- इन घटनाओं से तटों के नज़दीक के आवास, परिवहन मार्गों और उद्योगों जैसे बुनियादी ढाँचे को खतरा होगा। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते मौसम से संबंधित वित्तीय नुकसान अगले आसन्न बड़े संकट की संभावना प्रकट करता है।
सुझाव:
- विकेंद्रीकृत योजना: चूँकि भारत के अधिकांश ज़िले चरम मौसम की घटनाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं, इसलिये ज़िले वार जलवायु कार्य योजना की आवश्यकता है।
- CEEW के अध्ययन ने यह भी संकेत दिया है कि भारत के केवल 63% ज़िलों में ज़िला आपदा प्रबंधन योजना (District Disaster Management Plan- DDMP) संचालित है।
- नीति निर्माताओं, उद्यमियों और नागरिकों को प्रभावी जोखिम-सूचित निर्णय लेने के लिये ज़िला-स्तरीय विश्लेषण का उपयोग करना चाहिये।
- वित्त की व्यवस्था: जलवायु संकट के कारण तेज़ी से हो रहे नुकसान और क्षति को देखते हुए भारत को COP-26 (जलवायु सम्मेलन) में अनुकूलन-आधारित जलवायु कार्यों के लिये जलवायु वित्त की मांग करनी चाहिये।
- COP-26 में विकसित देशों द्वारा की गई प्रतिबद्धता- वर्ष 2009 से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता के वादे को पूरा करके विश्वास हासिल करना चाहिये और आने वाले दशक में जलवायु वित्त के सहयोग के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
- इसके अलावा भारत को ग्लोबल रेजिलियेशन रिज़र्व फंड बनाने के लिये अन्य देशों के साथ सहयोग करना चाहिये, जो जलवायु संकट के खिलाफ बीमा के रूप में कार्य कर सकता है।
- जलवायु जोखिम की पहचान: अंत में भारत के लिये एक जलवायु जोखिम एटलस विकसित करने से नीति निर्माताओं को चरम जलवायु घटनाओं से उत्पन्न होने वाले जोखिमों की बेहतर पहचान और आकलन करने में मदद मिलेगी।
- भौतिक और पारिस्थितिक तंत्र के बुनियादी ढाँचे का जलवायु-प्रमाणन भी अब एक राष्ट्रीय अनिवार्यता बन गई है।
- संस्थागत सेटअप: भारत को पर्यावरणीय जोखिम रहित मिशन के समन्वय के लिये एक नया जलवायु जोखिम आयोग बनाना चाहिये।
- उन्नत जलवायु वित्त भारत के नेतृत्व वाली वैश्विक एजेंसियों जैसे आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे हेतु गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure- CDRI) को भी मुख्यधारा की जलवायु क्रियाओं के लिये समर्थन कर सकता है।
जलवायु परिवर्तन से संबंधित अन्य सूचकांक
- जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (जर्मनवॉच, न्यू क्लाइमेट इंस्टीट्यूट और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क)
- वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 (जर्मनवॉच)
- पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (विश्व आर्थिक मंच के सहयोग से येल विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय)।
- हंगर हॉटस्पॉट रिपोर्ट (FAO और WFP)
- चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (यूनिसेफ)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
ड्रोन के लिये ‘ट्रैफिक मैनेजमेंट फ्रेमवर्क’
प्रीलिम्स के लिये:यातायात प्रबंधन फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:भारत में ड्रोन के संचालन से संबंधित नियम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने ड्रोन के लिये यातायात प्रबंधन नीति फ्रेमवर्क’को अधिसूचित किया है। इसे ‘बियॉन्ड विज़ुअल लाइन ऑफ साइट’ (बीवीएलओएस) ड्रोन संचालन की अनुमति देने की दिशा में पहला कदम माना जा सकता है।
प्रमुख बिंदु
- यातायात प्रबंधन फ्रेमवर्क: नियमों में सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने हेतु निजी, तृतीय-पक्ष सेवा प्रदाताओं की परिकल्पना की गई है।
- फ्रेमवर्क के तहत ‘मानव रहित यातायात प्रबंधन सेवा प्रदाता’ (UTMSP) पारंपरिक वायु यातायात प्रबंधन (ATM) प्रणालियों की तरह ध्वनि संचार के बजाय स्वचालित, एल्गोरिथम-संचालित सॉफ्टवेयर सेवाओं का विस्तार करेंगे।
- नियमन का दायरा: सभी ड्रोन (ग्रीन ज़ोन में काम कर रहे नैनो ड्रोन को छोड़कर) को नेटवर्क के माध्यम से अपनी वास्तविक समय स्थिति साझा करने की आवश्यकता होगी।
- कानून प्रवर्तन और सुरक्षा एजेंसियों की इससे संबंधित जानकारी तक पहुँच होगी।
- UTMSP का दायित्व: वे मुख्य रूप से देश में 1,000 फीट से नीचे के हवाई क्षेत्र में विभिन्न ड्रोन और मानवयुक्त विमानों से एक-दूसरे को अलग करने तथा सुरक्षित करने हेतु उत्तरदायी होंगे।
- UTMSP को ‘सप्लीमेंट्री सर्विस प्रोवाइडर्स’ (SSPs) द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी, जो क्षेत्र, मौसम, मानवयुक्त विमानों के स्थान के बारे में डेटा एकत्रित करेंगे और बीमा, डेटा एनालिटिक्स तथा ड्रोन फ्लीट मैनेजमेंट जैसी सेवाएँ प्रदान करेंगे।
- विनियामक प्राधिकरण: डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म सरकारी हितधारकों के लिये ड्रोन ऑपरेटरों को मंज़ूरी और अनुमति प्रदान करने के लिये इंटरफेस बना रहेगा।
- डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म भारत में ड्रोन से संबंधित गतिविधियों के लिये एंड-टू-एंड गवर्नेंस प्रदान करता है।
- वित्तीय प्रावधान: यह नीति यूटीएमएसपी को उपयोगकर्त्ताओं पर सेवा शुल्क लगाने की भी अनुमति देती है, जिसका एक छोटा हिस्सा भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के साथ भी साझा किया जाएगा।
- नियमों का महत्त्व: भारत ने मानव रहित विमानों का उपयोग करके माल की डिलीवरी जैसे उन्नत उपयोग के मामलों को सक्षम करने की दिशा में कदम उठाना शुरू कर दिया है और मानव रहित विमानों का उपयोग करके यह मानव परिवहन की भी संभावना तलाश रहा है।