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चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स: ‘यूनिसेफ’

  • 27 Aug 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये

चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 

मेन्स के लिये

बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: भारतीय और वैश्विक परिदृश्य, संबंधित सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘यूनिसेफ’ ने फ्राइडे फॉर फ्यूचर’ के सहयोग से 'द क्लाइमेट क्राइसिस इज़ ए चाइल्ड राइट्स क्राइसिस: इंट्रोड्यूसिंग द चिल्ड्रन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स' नाम से एक रिपोर्ट लॉन्च की है।

  • यह बच्चे के दृष्टिकोण से किया गया जलवायु जोखिम का पहला व्यापक विश्लेषण है।
  • इससे पूर्व ‘नोट्रे डेम ग्लोबल एडाप्टेशन इनिशिएटिव’ (ND-GAIN) इंडेक्स पर आधारित एक विश्लेषण ने दुनिया भर के बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को स्पष्ट किया था।

विभिन्न देशों पर जलवायु जोखिम का स्तर

Climate-Risk-Index

प्रमुख बिंदु

  • चिल्ड्रेन क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स 
    • यह आवश्यक सेवाओं तक बच्चों की पहुँच के आधार पर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय घटनाओं, जैसे कि चक्रवात और हीटवेव आदि के प्रति बच्चों की भेद्यता के आधार पर विभिन्न देशों को रैंक प्रदान करता है।
    • पाकिस्तान (14वाँ), बांग्लादेश (15वाँ), अफगानिस्तान (25वाँ) और भारत (26वाँ) उन दक्षिण एशियाई देशों में शामिल हैं, जहाँ बच्चों पर जलवायु संकट के प्रभाव का जोखिम सबसे अधिक है।
  • भारतीय परिदृश्य
    • भारत उन चार दक्षिण एशियाई देशों में शामिल है, जहाँ बच्चों को जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में खतरों का सामना करना पड़ता है।
    • अनुमान है कि आगामी वर्षों में 600 मिलियन से अधिक भारतीयों को 'पानी की गंभीर कमी' का सामना करना पड़ेगा, जबकि साथ ही वैश्विक तापमान में 2 सेल्सियस से ऊपर की वृद्धि के बाद भारत के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में ‘फ्लैश फ्लडिंग’ की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
      • ज्ञात हो कि वर्ष 2020 में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर भारत में थे।
  • वैश्विक परिदृश्य:
    • अधिकतम सुभेद्यता वाले देश:
      • मध्य अफ्रीकी गणराज्य, चाड, नाइजीरिया, गिनी और गिनी-बिसाऊ में रहने वाले युवाओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सबसे अधिक खतरा है।
      • इन देशों में बच्चों को पानी और स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा जैसी अपर्याप्त आवश्यक सेवाओं के कारण उच्च जोखिम के साथ कई जलवायु और पर्यावरणीय समस्याओं के जोखिम के घातक संयोजन का सामना करना पड़ता है।
    • जलवायु और पर्यावरणीय खतरों का प्रभाव :
      • दुनिया भर में लगभग हर बच्चे को  कम-से-कम एक जलवायु और पर्यावरणीय खतरे जिनमें तटीय बाढ़, नदी की बाढ़, चक्रवात, वेक्टर जनित रोग, सीसा प्रदूषण, हीटवेव और पानी की कमी शामिल हैं, से खतरा है।
        • दुनिया भर में 850 मिलियन बच्चों में से अनुमानित 3 में से 1 बच्चा ऐसे क्षेत्र में रहता है जहांँ उपर्युक्त में से कम-से-कम चार जलवायु और पर्यावरणीय खतरे व्याप्त होते हैं।
        • दुनिया भर में 330 मिलियन बच्चों में से 7 में से 1 बच्चा कम-से-कम उपर्युक्त पांँच बड़े जलवायु खतरों से प्रभावित क्षेत्र में रहता है।
    • असमान प्रभाव:
      • जहांँ ग्रीनहाउस गैसों (GHG) का उत्सर्जन होता है, और जहांँ बच्चे सबसे महत्त्वपूर्ण जलवायु-संचालित प्रभावों को सहन कर रहे हैं, ऐसे क्षेत्रों के मध्य एक प्रकार के अलगाव की स्थिति है।
        • सबसे कम ज़िम्मेदार देशों के बच्चों के इससे सबसे ज़्यादा पीड़ित होने की आशंका है।
      • जलवायु परिवर्तन में अत्यधिक असमानता विद्यमान है, जबकि कोई भी बच्चा बढ़ते वैश्विक तापमान के लिये ज़िम्मेदार नहीं है, फिर भी वे सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
    • बच्चों के लिये अधिक संदिग्ध स्थिति:
      • वयस्कों की तुलना में बच्चों को अपने शरीर के वज़न के अनुसार प्रति यूनिट अधिक भोजन और पानी की आवश्यकता होती है, वे चरम मौसम की घटनाओं से बचने में कम सक्षम होते हैं और अन्य कारकों के बीच ज़हरीले रसायनों, तापमान परिवर्तन तथा बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
    • जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में राष्ट्र सक्षम नहीं:
      • वर्ष 2030 तक पेरिस समझौते के तहत निर्धारित कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य में शामिल 184 देश ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये नहीं हैं।
      • आशंका है कि कुछ देश अपने वादों को पूरा नहीं करेंगे और विश्व के कुछ सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश अपने उत्सर्जन में वृद्धि जारी रखेंगे।
  • सिफारिशें:
    • निवेश बढ़ाना :
      • बच्चों के लिये प्रमुख सेवाओं में जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन में निवेश बढ़ाना।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना :
      • देशों को वर्ष 2030 तक अपने उत्सर्जन में कम-से-कम 45% (2010 के स्तर की तुलना में) की कटौती करनी होगी ताकि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
    • जलवायु संबंधी शिक्षा प्रदान करना :
      • बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उनके अनुकूलन हेतु तैयारी के लिये महत्त्वपूर्ण जलवायु शिक्षा और हरित कौशल प्रदान करना। 
    • निर्णयों में युवा लोगों को शामिल करना :
      • सभी राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं एवं निर्णयों में युवा लोगों को शामिल किया जाना चाहिये, जिसमें COP 26 (पार्टियों का सम्मेलन- एक जलवायु सम्मेलन) शामिल है जिसे नवंबर 2021 में ग्लासगो, यूके में आयोजित किया जाएगा। 
    • महामारी से बचाव हेतु समावेशी विधियाँ अपनाना :
      •  कोविड -19 महामारी से उबरने के लिये हरित, निम्न-कार्बन और समावेशी विधियाँ सुनिश्चित की जानी चाहिये, ताकि आने वाली पीढ़ियों को जलवायु संकट का समाधान करने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता से समझौता न करना पड़े।

आगे की राह 

  • लक्ष्य को पूरा करना :
    • जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक शुद्ध मानव जनित उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक लगभग आधा करने का लक्ष्य रखा गया है और वर्ष 2050 तक इसके "शुद्ध शून्य" तक पहुँचने की संभावना है।
  • सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को बढ़ाना:
    • बच्चों और उनके परिवारों पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों का समाधान करने के लिये अनुकूली और शॉक-रिस्पॉन्सिव सोशल प्रोटेक्शन सिस्टम्स- जैसे गर्भवती माताओं और बच्चों के लिये अनुदान को बढ़ाना।
  • बाल अधिकारों के प्रति संयुक्त दृष्टिकोण:
    • प्रत्येक बच्चे को गरीबी से सुरक्षित रखने के लिये अधिक देशों को बाल अधिकारों पर कन्वेंशन में अपनी प्रतिबद्धता की दिशा में काम करने की आवश्यकता है, उदाहरण के लिये बच्चों की बेहतरी में सुधार और लचीलेपन द्वारा सार्वभौमिक बाल लाभ प्रदान किया जाना।

स्रोत : डाउन टू अर्थ

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