भारतीय अर्थव्यवस्था
ग्रीन बॉण्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सूचना विषमता (Asymmetric Information) के कारण ग्रीन बॉण्ड जारी करने की लागत प्रायः अन्य बॉण्डों की तुलना में अधिक रही है।
प्रमुख बिंदु:
ग्रीन बॉण्ड (विवरण):
- ग्रीन बॉण्ड के बारे में:
- ग्रीन बॉण्ड ऋण प्राप्ति का एक साधन है जिसके माध्यम से ग्रीन ’परियोजनाओं के लिये धन जुटाया जाता है, यह मुख्यतः नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन, स्थायी जल प्रबंधन आदि से संबंधित होता है।
- बॉण्ड जो कि आय का एक निश्चित साधन होता है, एक निवेशक द्वारा उधारकर्त्ता (आमतौर पर कॉर्पोरेट या सरकारी) को दिये गए ऋण का प्रतिनिधित्व करता है।
- पारंपरिक बॉण्ड (ग्रीन बॉण्ड के अलावा अन्य बॉण्ड) द्वारा निवेशकों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान किया जाता है।
- ग्रीन बॉण्ड ऋण प्राप्ति का एक साधन है जिसके माध्यम से ग्रीन ’परियोजनाओं के लिये धन जुटाया जाता है, यह मुख्यतः नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन, स्थायी जल प्रबंधन आदि से संबंधित होता है।
- वृद्धि:
- वर्ष 2007 में यूरोपीय निवेश बैंक और विश्व बैंक जैसे कुछ बैंकों द्वारा ग्रीन बॉण्ड लॉन्च किया गया। इसके बाद वर्ष 2013 में कॉरपोरेट्स द्वारा भी इन्हें जारी किया गया जिस कारण इसका समग्र विकास हुआ।
- विनियमन:
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India- SEBI) द्वारा ग्रीन बॉण्ड जारी करने एवं इन्हें सूचीबद्ध करने हेतु पारदर्शी मानदंडों को लागू किया गया है।
- लाभ:
- प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी:
- ग्रीन बॉण्ड जारीकर्त्ता की प्रतिष्ठा को बढ़ाते हैं, क्योंकि यह सतत् विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने में सहायक है।
- प्रतिबद्धताओं की पूर्ति:
- इनमें जलवायु समझौतों और इन पर हस्ताक्षरकर्त्ताओं द्वारा अन्य हरित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की क्षमता है ।
- भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Intended Nationally Determined Contribution- INDC) दस्तावेज़ जलवायु सुधार की दिशा में भारत के योगदान और प्रगति के लिये एक कम कार्बन पथ का अनुसरण करने के लक्ष्य का उल्लेख करता है।
- कम लागत को बढ़ावा:
- आमतौर पर वाणिज्यिक बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण की तुलना में ग्रीन बॉण्ड पर कम ब्याज लिया जाता है।
- हरित निवेश विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के साथ-साथ पूंजी जुटाने की लागत को कम करने में मदद कर सकता है।
- सनराइज़ सेक्टर
- ग्रीन बॉण्ड अक्षय ऊर्जा जैसे सनराइज़ सेक्टर के वित्तपोषण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण रहे हैं, इस प्रकार यह भारत के सतत् विकास में योगदान देते हैं।
- प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी:
RBI द्वारा किये गए हालिया अध्ययन का विवरण:
- वर्तमान शेयर:
- वर्ष 2018 के बाद से भारत में जारी सभी प्रकार के बॉण्ड में ग्रीन बॉण्ड का हिस्सा मात्र 0.7% रहा है।
- हालाँकि मार्च 2020 तक गैर-पारंपरिक ऊर्जा के लिये बैंकों द्वारा दिया जाने वाला ऋण, विद्युत क्षेत्र के बकाया कुल बैंक ऋण का लगभग 7.9 प्रतिशत है।
- भारत में ज़्यादातर ग्रीन बॉण्ड सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों या कॉर्पोरेट्स द्वारा बेहतर वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखकर जारी किये जाते हैं।
- चुनौतियाँ :
- उच्च कूपन दर:
- 5 से 10 वर्षों के मध्य की परिपक्व अवधि के साथ वर्ष 2015 के बाद से जारी किये गए ग्रीन बॉण्ड के लिये औसत कूपन दर सामान्यत: इसी अवधि की कॉर्पोरेट सरकार (Corporate Government) के बॉण्ड की तुलना में अधिक होती है।
- उधार लेने की उच्च लागत:
- सूचना विषमता के कारण यह सबसे महत्त्वपूर्ण चुनौती रही है। उच्च कूपन दर अधिक उधार लेने की लागत के कारणों में से एक है।
- सूचना विषमता, जिसे "सूचना विफलता" के रूप में भी जाना जाता है, की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब आर्थिक लेन-देन के लिये एक पक्ष के पास दूसरे पक्ष की तुलना में अधिक भौतिक ज्ञान होता है।
- उच्च कूपन दर:
- सुझाव:
- भारत में एक बेहतर सूचना प्रबंधन प्रणाली विकसित करने से परिपक्वता असमानता को कम करने, उधार लेने की उच्च लागत और विभिन्न चरणों में उधार लेने की लागत और संसाधनों के कुशल आवंटन में मदद मिल सकती है।
अन्य चुनौतियाँ:
धन का दुरुपयोग:
- यह गंभीर चर्चा का विषय है कि क्या ग्रीन बॉण्ड जारी करने वालों द्वारा लक्षित परियोजनाएंँ पर्याप्त रूप से हरित परियोजनाएँ ही हैं क्योंकि ग्रीन बॉण्ड से प्राप्त आय का उपयोग पर्यावरण को नुकसान पहुंँचाने वाली परियोजनाओं के वित्तपोषण हेतु किया जा रहा है।
क्रेडिट रेटिंग का अभाव:
- हरित परियोजनाओं और बॉण्डों के लिये क्रेडिट रेटिंग या रेटिंग दिशा-निर्देशों का अभाव है।
अल्पावधि:
- भारत में ग्रीन बॉण्ड की अवधि लगभग 10 वर्ष होती है, जबकि एक सामान्य ऋण की न्यूनतम अवधि 13 वर्ष होती है। इसके अलावा ग्रीन प्रोजेक्ट्स का लाभ मिलने में भी अधिक समय लगता है।
आगे की राह:
- सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक ग्रीन बॉण्ड बाज़ार को विकसित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू दिशा-निर्देशों एवं मानकों के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। हरित निवेश के संदर्भ में भी समरूपता की आवश्यकता होती है, क्योंकि विभिन्न कर-सीमाएँ एक निर्धारित सीमा से परे ग्रीन बॉण्ड बाज़ार के लिये विरोधाभासी होंगी।
- उभरते बाज़ारों में जारीकर्त्ताओं के लिये उचित क्षमता निर्माण का प्रयास, जो ग्रीन बॉण्ड से संबंधित लाभों और प्रक्रियाओं की जानकारी प्रदान करते हों, इस बाज़ार में प्रवेश करने हेतु संस्थागत बाधाओं को दूर करने में सहायक होगा।
- रणनीतिक रूप से ग्रीन बॉण्ड के संदर्भ में सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश निजी निवेश को आकर्षित करने और साथ ही ग्रीन बॉण्ड बाज़ार में निवेशकों का विश्वास स्थापित करने में मदद करता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
कानून का निर्माण और निरसन
चर्चा में क्यों?
किसानों ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को एक से डेढ़ वर्ष तक टालने के सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। किसान ज़ोर देकर कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं।
- ज्ञात हो कि बीते कुछ वर्षों में संसद ने कई कानूनों को निरस्त किया है और ऐसे भी कई कानून हैं, जो पारित होने के बावजूद कई वर्षों तक लागू नहीं किये गए।
प्रमुख बिंदु
कानून लाना/निरस्त करना
- संसद के पास देश के लिये कानून बनाने और उसे निरस्त करने अथवा समाप्त करने की शक्ति है। (यदि कोई कानून असंवैधानिक है तो न्यायपालिका के पास भी उस कानून को समाप्त करने की शक्ति है।)
- विधेयक एक प्रकार का प्रस्तावित मसौदा होता है, जिसका लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पारित होना आवश्यक है और केवल राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कोई विधेयक अधिनियम बनता है।
- कानून के संबंध निरसन का अर्थ किसी विशिष्ट कानून को रद्द करने अथवा उसे समाप्त करने से है। कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए किसी भी अधिनियम को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से समाप्त अथवा निरस्त किया जा सकता है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति
- संविधान के अनुच्छेद 111 के मुताबिक, राष्ट्रपति या तो विधेयक पर हस्ताक्षर कर सकता है या अपनी स्वीकृति को सुरक्षित रख सकता है।
- यदि राष्ट्रपति विधेयक पर अपनी सहमति देता है तो विधेयक को संसद के समक्ष पुनर्विचार के लिये प्रस्तुत किया जाएगा और यदि संसद एक बार पुनः इस विधेयक को पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति के पास उस विधेयक को मंज़ूरी देने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं होगा।
- इस तरह राष्ट्रपति के पास ‘निलंबनकारी वीटो’ की शक्ति होती है।
कानून का परिचालन
- नियम एवं विनियम: संसद सरकार को किसी भी अधिनियम के कुशल क्रियान्वयन के लिये नियम एवं विनियम बनाने का दायित्व देती है।
- सरकार के पास न केवल नियम बनाने की शक्ति है, बल्कि वह स्वयं द्वारा बनाए गए नियम और विनियम को समाप्त कर सकती है।
- यदि सरकार नियम एवं विनियम नहीं बनाती है तो वह पूरा अधिनियम अथवा उस अधिनियम का कुछ विशिष्ट हिस्सा लागू नहीं होगा।
- वर्ष 1988 का बेनामी लेन-देन अधिनियम इस तथ्य का प्रत्यक्ष उदाहरण है, जो कि विनियमों के अभाव में लागू नहीं हो सका था।
- समयावधि: संसद की सिफारिश के मुताबिक, सरकार को कानून पारित होने के बाद छः माह के भीतर नियम बनाने होते हैं।
- संसदीय समिति के मुताबिक, विभिन्न मंत्रालयों द्वारा इन सिफारिशों का उल्लंघन किया जा रहा है।
राष्ट्रपति की वीटो शक्तियाँ
- प्रकार: राष्ट्रपति के पास मुख्यतः तीन प्रकार की वीटो शक्तियाँ होती हैं- (1) आत्यंतिक वीटो, (2) निलंबनकारी वीटो और (3) पॉकेट वीटो
- अपवाद: संविधान संशोधन विधेयक को लेकर राष्ट्रपति के पास कोई भी वीटो शक्ति नहीं है।
- आत्यंतिक वीटो
- अर्थ: इसका संबंध राष्ट्रपति की उस शक्ति से है जिसमें वह संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को अपने पास सुरक्षित रखता है। इस प्रकार वह विधेयक समाप्त हो जाता है और वह अधिनियम नहीं बन पाता है।
- इसे प्रायः निम्नलिखित दो स्थितियों में प्रयोग किया जाता है:
- जब संसद द्वारा पारित विधेयक एक गैर-सरकारी विधेयक अथवा निजी विधेयक हो।
- जब विधेयक पर राष्ट्रपति की अनुमति मिलने से पूर्व ही मंत्रिमंडल द्वारा त्यागपत्र दे दिया जाए और नया मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को विधेयक पर सहमति न देने की सलाह दे।
- निलंबनकारी वीटो
- अर्थ: राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है जब वह किसी विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा देता है।
- यदि संसद उस विधेयक को पुनः किसी संशोधन के बिना अथवा संशोधन के साथ पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजती है तो राष्ट्रपति उस पर अपनी स्वीकृति देने के लिये बाध्य है।
- अपवाद: राष्ट्रपति द्वारा धन विधेयक के संबंध में ‘निलंबनकारी वीटो’ की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- अर्थ: राष्ट्रपति इस वीटो का प्रयोग तब करता है जब वह किसी विधेयक को संसद के पुनर्विचार हेतु लौटा देता है।
- पॉकेट वीटो
- अर्थ: इस मामले में राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक पर न तो अपनी सहमति देता है, न उसे अस्वीकृत करता है और न ही लौटता है, किंतु एक अनिश्चितकाल के लिये विधेयक को लंबित कर सकता है।
- अमेरिकी राष्ट्रपति जिसे 10 दिनों के भीतर विधेयक को वापस भेजना होता है, के विपरीत भारतीय राष्ट्रपति के समक्ष कोई बाध्यकारी समयसीमा नहीं है।
- अर्थ: इस मामले में राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक पर न तो अपनी सहमति देता है, न उसे अस्वीकृत करता है और न ही लौटता है, किंतु एक अनिश्चितकाल के लिये विधेयक को लंबित कर सकता है।
- राज्य विधेयकों पर वीटो
- राज्यपाल के पास राष्ट्रपति के विचार के लिये राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विशिष्ट प्रकार के विधेयकों को आरक्षित करने का अधिकार है।
- राष्ट्रपति न केवल पहली बार बल्कि दूसरी बार भी राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर अस्वीकृति प्रकट कर सकता है।
- इस तरह राज्य विधेयकों के मामले में राष्ट्रपति को आत्यंतिक वीटो की शक्ति प्राप्त होती है, न कि निलंबनकारी वीटो की शक्ति।
- इसके अलावा राष्ट्रपति द्वारा राज्य विधेयकों के संबंध में भी पॉकेट वीटो की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
LLP अधिनियम के तहत अपराधों का डिक्रिमिनलाइज़ेशन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कंपनी कानून समिति (Company Law Committee- CLC) ने सीमित देयता भागीदारी अधिनियम (Limited Liability Partnership Act), 2008 के तहत आने वाले अपराधों में से 12 अपराधों को डिक्रिमिनलाइज़ (अपराध की श्रेणी से बाहर) करने और LLPs को गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (Non-Convertible Debenture- NCD) जारी करने की अनुमति देने की सिफारिश की है ताकि LLP फर्मों के लिये व्यापार सुगमता में सुधार के उद्देश्य से धन जुटाया जा सके।
- देश में कानून का पालन करने वाले कॉरपोरेट्स को व्यवसाय में सुगमता मुहैया कराने और बड़े पैमाने पर हितधारकों के लिये कॉरपोरेट अनुपालन में सुधार करने के उद्देश्य से कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा सितंबर, 2019 में कंपनी कानून समिति (Company Law Committee- CLC) की स्थापना की गई थी।
प्रमुख बिंदु
कंपनी कानून समितियों की सिफारिशें:
- अपराधों का डिक्रिमिनलाइज़ेशन:
- LLP की भागीदारी की स्थिति में बदलाव पर वार्षिक रिपोर्ट और फाइलिंग आदि जैसे समय पर फाइलिंग से संबंधित विभिन्न अपराध जो धोखाधड़ी से संबंधित नहीं हैं, को डिक्रिमिनलाइज़ करने की सिफारिश की गई है।
- यद्यपि डिक्रिमिनलाइजेशन के लिये अनुशंसित अपराधों में से किसी के लिये भी वर्तमान समय में संभावित दंड के रूप में कारावास की सज़ा का प्रावधान नहीं है फिर भी समिति ने यह सिफारिश की है कि न्यायालय द्वारा किसी भागीदार या LLP के दुराचार का दोषी पाए जाने के बाद लगाए गए जुर्माने के बजाय कंपनियों को गैर-अनुपालन के लिये अर्थदंड का भुगतान करने की आवश्यकता है।
- अर्थदंड से संबंधित मामले:
- समिति ने उल्लेख किया है कि न्यायालयों द्वारा लगाए गए ज़ुर्माने के मामले में दोषी व्यक्ति के विभिन्न पदों से अयोग्य ठहराए जाने या अयोग्य होने का जोखिम होता है लेकिन एक उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा दंड लगाए जाने के मामले में इस प्रकार का कोई जोखिम नहीं होगा।
- दंड आरोपित करने वाले प्राधिकारी:
- LLP अधिनियम के प्रावधानों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन किये जाने की स्थिति में दंड आरोपित का अधिकार कंपनी के रजिस्ट्रार (Registrar of Company- ROC) के पास होना चाहिये।
- विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कवर करने वाले कंपनी अधिनियम की धारा 609 के तहत नियुक्त ROC का प्राथमिक कर्त्तव्य है कि वह संबंधित राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यान्वित कंपनियों तथा LLPs का पंजीकरण करे।
- गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (NCD) जारी करने की अनुमति:
- LLPs जिन्हें वर्तमान में ऋण प्रतिभूतियाँ जारी करने की अनुमति नहीं है, को NCD जारी करने की अनुमति दी जानी चाहिये ताकि पूंजी जुटाने और वित्तपोषण से संबंधित कार्यों को सुगम बनाया जा सके।
लाभार्थी:
- इस कदम से उन क्षेत्रों में स्टार्टअप्स और छोटी कंपनियों के लाभान्वित होने की संभावना है, जिनके लिये अधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
सीमित देयता भागीदारी (LLP)
- यह एक भागीदारी है जिसमें कुछ या सभी भागीदारों (क्षेत्राधिकार के आधार पर) की सीमित देयताएँ होती हैं।
- एक LLP में एक भागीदार, दूसरे भागीदार के कदाचार या लापरवाही के लिये ज़िम्म्मेदार नहीं होता है।
- भागीदारों में परिवर्तन के बावजूद LLP अपने अस्तित्व को जारी रख सकता है। यह अनुबंधों को स्वीकार करने और अपने नाम पर संपत्ति का स्वामित्त्व रखने में सक्षम है।
- LLP एक पृथक विधिक इकाई है। यह अपनी संपत्ति को पूरी क्षमता तक बढ़ाने के लिये उत्तरदायी है लेकिन LLP में भागीदारों की देयता इनके स्वीकृत योगदान तक सीमित है।
LLP बनाम पारंपरिक भागीदारी फर्म:
- "पारंपरिक भागीदारी फर्म" (Traditional Partnership Firm) के तहत प्रत्येक भागीदार अन्य सभी भागीदारों के साथ संयुक्त रूप से तथा व्यक्तिगत रूप से फर्म के सभी कार्यों के लिये उत्तरदायी होता है।
- LLP संरचना के तहत भागीदार की जवाबदेहिता उसके द्वारा स्वीकृत योगदान तक सीमित है। इस प्रकार प्रत्येक भागीदार व्यक्तिगत रूप से अन्य भागीदारों के गलत कृत्यों या दुराचार के मामले में संयुक्त जवाबदेहिता से परिरक्षित हैं।
कंपनी बनाम LLP:
- किसी कंपनी की आंतरिक प्रशासनिक संरचना को कानून (कंपनी अधिनियम, 2013) द्वारा विनियमित किया जाता है जबकि LLP में आतंरिक प्रशासन भागीदारों के बीच एक संविदात्मक समझौते द्वारा तय होता है।
- LLP में कंपनी की तरह प्रबंधन-स्वामित्व का विभाजन नहीं होता है।
- LLP में तुलनात्मक रूप से कंपनी से अधिक लचीलापन होता है।
- कंपनी की तुलना में LLP के लिये अनुपालन आवश्यकताएँ कम होती हैं।
गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (NCD)
- ऋणपत्र दीर्घकालिक वित्तीय साधन हैं जिन्हें कंपनियों द्वारा धन उधार लेने के लिये जारी किया जाता है।
- कुछ ऋणपत्रों में एक निश्चित समय के बाद शेयर में परिवर्तित होने की विशेषता होती है तथा ऋणपत्र धारक अपने विवेक के आधार पर उस ऋणपत्र को शेयर में बदल सकता है।
- जिन ऋणपत्रों को शेयरों में परिवर्तित नहीं किया जा सकता, उन्हें गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (NCD) कहा जाता है।
- NCDs दो प्रकार के होते हैं- प्रतिभूत तथा और प्रतिभूति-रहित या गैर-जमानती।
- प्रतिभूत NCD: यह कंपनी की संपत्ति द्वारा समर्थित होता है। यदि कंपनी दायित्व का भुगतान करने में विफल रहती है तो ऋणपत्र धारक निवेशक उन परिसंपत्तियों के परिशोधन (Liquidation) का दावा कर सकते हैं।
- प्रतिभूति-रहित NCD: प्रतिभूत NCD के विपरीत इस प्रकार की NCD में कंपनी द्वारा अपने दायित्व का भुगतान करने में विफल रहने की स्थिति में इसके धारक को किसी प्रकार की सुरक्षा प्राप्त नहीं है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
श्रमशक्ति पोर्टल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय ने प्रवासी श्रमिकों के लिये राज्य और राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों के निर्माण को सुचारु बनाने के लिये एक राष्ट्रीय प्रवासन सहायता पोर्टल- ‘श्रमशक्ति’ शुरू किया है।
- इसके अलावा श्रमिकों के लिये एक प्रशिक्षण पुस्तिका ‘श्रमसाथी’ का भी शुभारंभ किया गया।
प्रमुख बिंदु
पोर्टल के बारे में
- इस पोर्टल की शुरुआत आदिवासी प्रवासी श्रमिकों से संबंधित डेटा एकत्र करने और उस डेटा को मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने के लिये की गई है।
पोर्टल का उद्देश्य
- डेटा अंतराल को संबोधित करना
- ‘श्रमशक्ति’ पोर्टल के ज़रिये एकत्रित किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के डेटा में जनसांख्यिकीय रूपरेखा, आजीविका विकल्प, कौशल संबंधी सूचना और प्रवासन के रुझान से जुड़े विवरण आदि शामिल होंगे।
- यह उन प्रवासी श्रमिकों को सशक्त बनाने मदद करेगा, जो रोज़गार और आय की तलाश में पलायन करते हैं।
- नीति निर्माण में सहायक
- यह राष्ट्रीय और राज्य सरकारों को स्रोत और गंतव्य दोनों राज्यों में प्रवासी श्रमिकों के कल्याण के लिये प्रभावी रणनीति तैयार करने और नीतिगत निर्णय लेने में सहायता करेगा।
- प्रवासियों से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित करना
- तस्करी
- मज़दूरों के वेतन और उनके उत्पीड़न से संबंधित मुद्दे
- कार्यस्थल पर व्यावसायिक जोखिम आदि
- अन्य योजनाओं से जोड़ना
- यह पोर्टल प्रवासी श्रमिकों को ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत मौजूदा कल्याण योजनाओं से जुड़ने का अवसर प्रदान करेगा।
प्रवासी श्रमिकों की सहायता के लिये भारत सरकार की हालिया पहलें
- असीम पोर्टल
- कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) ने कुशल कामगारों को आजीविका अवसर खोजने में मदद के लिये आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण यानी असीम (Aatamanirbhar Skilled Employee-Employer Mapping-ASEEM) पोर्टल लॉन्च किया।
- भारत के विभिन्न राज्यों से अपने घरों को वापस लौटे श्रमिकों तथा वंदे भारत मिशन के तहत स्वदेश लौटे भारतीय नागरिकों, जिन्होंने ‘कौशल कार्ड’ में पंजीकरण कराया है, के डेटाबेस को भी इस पोर्टल के साथ एकीकृत किया गया है।
- ‘राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली’ डैशबोर्ड
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने एक ऑनलाइन डैशबोर्ड ‘राष्ट्रीय प्रवासी सूचना प्रणाली’ (NMIS) विकसित की है।
- यह ऑनलाइन पोर्टल प्रवासी कामगारों का केंद्रीय कोष बनाएगा और उनके मूल स्थानों तक की यात्रा हेतु व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये अंतर-राज्यीय संचार/समन्वय में मदद करेगा।
- श्रम कानूनों का श्रम संहिताओं में समायोजन
- हाल ही में सरकार द्वारा अलग-अलग श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में समायोजित किया गया है- वेतन संहिता अधिनियम-2019; औद्योगिक संबंध संहिता-2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता-2020; पेशागत सुरक्षा, स्वास्थ्य व कार्य शर्त संहिता-2020।
- इन चार संहिताओं का उद्देश्य पूरे देश में औद्योगीकरण की प्रकिया को आसान बनाना और इस प्रकार अंततः तनावग्रस्त प्रवासी मज़दूरों को राहत प्रदान करना है।
आदिवासी कल्याण से संबंधित पहलें
- प्रधानमंत्री वन धन योजना
- यह एक बाज़ार आधारित आदिवासी उद्यमिता विकास कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य आदिवासी स्वयं सहायता समूहों (SHGs) का क्लस्टर बनाना और उन्हें जनजातीय उत्पादक कंपनियों के रूप में विकसित करना है।
- इसका लक्ष्य मुख्यतः आदिवासी ज़िलों में जनजातीय समुदाय के स्वामित्व वाले लघु वन-उपज केंद्र (MFP) और वन धन विकास केंद्रों की स्थापना करना है।
- एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल
- एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल (EMRS) योजना की शुरुआत वर्ष 1997-98 में दूरस्थ स्थानों पर अनुसूचित जनजाति के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण माध्यमिक और उच्च-स्तरीय शिक्षा प्रदान करने हेतु की गई थी, ताकि उन बच्चों को गैर-अनुसूचित जनजाति के बच्चों के समान ही शिक्षा के सर्वोत्तम अवसरों तक पहुँच प्रदान की जा सके।
- ये स्कूल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 275(1) के तहत प्रदान किये गए अनुदान द्वारा स्थापित किये जाते हैं।
- भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (ट्राईफेड)
- वर्ष 1987 में स्थापित भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (TRIFED) राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है, जो जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रशासकीय नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
- ट्राइफेड का प्रमुख उद्देश्य जनजातीय उत्पादों, जैसे- धातु कला, जनजातीय टेक्सटाइल और जनजातीय पेंटिंग आदि, जिन पर जनजातीय लोग अपनी आय के एक बड़े भाग हेतु बहुत अधिक निर्भर हैं, के विपणन विकास द्वारा देश में जनजातीय लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
असमानता वायरस रिपोर्ट: ऑक्सफैम इंटरनेशनल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ऑक्सफैम इंटरनेशनल द्वारा जारी की गई असमानता वायरस रिपोर्ट (The Inequality Virus Report) में बताया गया है कि COVID-19 महामारी ने भारत और दुनिया भर में मौजूदा असमानताओं में अत्यधिक वृद्धि की है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि COVID-19 ने लगभग हर देश में आर्थिक असमानता को बढाया है।
प्रमुख बिंदु:
महामारी का अमीरों और गरीबों पर तुलनात्मक प्रभाव:
- भारत ने महामारी के शुरुआती दौर में ही लॉकडाउन को कठोरता से लागू किया। इस लॉकडाउन के प्रवर्तन के कारण अर्थव्यवस्था में ठहराव की स्थिति पैदा हो गई, जिससे बेरोज़गारी, भुखमरी, संकटकालीन पलायन जैसी समस्याएँ देखी गईं।
- जहाँ अमीर लोग महामारी के सबसे बुरे प्रभाव से बचने में सक्षम थे; वहीं औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने खुद को आइसोलेट करते हुए घर से काम किया, साथ ही कुछ अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों ने अपनी आजीविका खो दी।
- भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में लॉकडाउन के दौरान 35% की वृद्धि हुई जो कि वर्ष 2009 के बाद पहली बार 90% की वृद्धि के साथ 422.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गई। इससे भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्राँस के बाद विश्व में छठी रैंकिंग पर आ गया।
अनौपचारिक क्षेत्र पर प्रभाव
- भारत के अनौपचारिक क्षेत्र के कार्यबल पर COVID-19 का सबसे बुरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि इस क्षेत्र में 122 मिलियन नौकरियों में से लगभग 75% समाप्त हो गईं।
- अनौपचारिक श्रमिकों के लिये घर से काम करने के अपेक्षाकृत कम अवसर थे। इसी कारण औपचारिक क्षेत्र की तुलना में इस क्षेत्र में अधिक नौकरियाँ समाप्त हो गईं।
शिक्षा पर प्रभाव:
- पिछले वर्ष जैसे-जैसे शिक्षा को ऑनलाइन किया गया, भारत ने असमानताओं के एक नए विकराल रूप ‘डिजिटल डिवाइड’ (Digital Divide) को देखा।
- एक तरफ जहाँ निजी प्रदाताओं ने घातीय वृद्धि का अनुभव किया है, वहीं दूसरी तरफ भारती के सबसे गरीब 20% परिवारों में से केवल 3% के पास कंप्यूटर और सिर्फ 9% की इंटरनेट तक पहुँच थी।
- यह भी देखा गया कि स्कूली शिक्षा के लंबे समय तक बाधित होने के कारण स्कूल ड्रॉपिंग रेट (विशेष रूप से गरीबों के बीच) के दोगुना होने का जोखिम बढ़ गया है।
स्वास्थ्य संबंधी असमानताएँ:
- ऑक्सफैम ने पाया कि चूँकि भारत सामाजिक-आर्थिक या सामाजिक श्रेणियों में विभक्त डेटा संबंधी मामलों को रिपोर्ट नहीं करता है, इसलिये विभिन्न समुदायों के बीच स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का अनुमान लगाना मुश्किल है।
- वर्तमान में भारत में COVID-19 के पॉज़िटिव मामलों की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी संचयी संख्या है और विश्व स्तर पर गरीब, वंचित और कमज़ोर वर्गों में COVID-19 की व्यापकता दर अधिक है।
- बीमारी का प्रसार उन गरीब समुदायों में तेज़ी से हुआ, जो प्रायः गंदगीयुक्त और अधिक घनत्व वाले क्षेत्रों में रहते थे और आम सुविधाओं जैसे- शौचालय और पानी के स्रोतों का साझा उपयोग करते थे।
स्वास्थ्य सुविधा:
- भारत के शीर्ष 20% परिवारों के 93% की तुलना में केवल 20% गरीब परिवारों में से 6% परिवारों की बेहतर स्वच्छता के गैर-साझा स्रोतों तक पहुँच थी।
- जाति के संदर्भ में अनुसूचित जातियों के सिर्फ 37.2% परिवारों और अनुसूचित जनजातियों के 25.9% परिवारों की गैर-साझा स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच थी, जबकि सामान्य आबादी के लिये यह 65.7% थी।
लैंगिक असमानता:
- रोज़गार:
- महिलाओं में बेरोज़गारी की दर 15% (COVID-19 से पहले) से बढ़कर 18% हो गई है।
- महिला बेरोज़गारी में वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) में लगभग 8% या 218 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
- ‘इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ ट्रस्ट’ (Institute of Social Studies Trust) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, जिन महिलाओं ने अपनी नौकरी नहीं गवाई उनको भी अपनी आय में 83% तक कटौती का सामना करना पड़ा।
- स्वास्थ्य:
- आय और नौकरी के नुकसान के अलावा गरीब महिलाओं को नियमित स्वास्थ्य सेवा तथा आँगनवाड़ी केंद्रों से मिलने वाला लाभ भी प्रभावित हुआ।
- यह अनुमान लगाया गया है कि परिवार नियोजन सेवाओं के बंद होने से 2.95 मिलियन अनपेक्षित गर्भधारण, 1.80 मिलियन गर्भपात (1.04 मिलियन असुरक्षित गर्भपात सहित) और 2,165 मातृ मृत्यु की घटनाएँ हो चुकी हैं।
- घरेलू हिंसा:
- महामारी ने महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को भी बढ़ावा दिया। घरेलू हिंसा के मामलों में नवंबर 2020 तक (पिछले 12 महीनों में) लगभग 60% की वृद्धि हुई।
सुझाव:
- नीति निर्माताओं को धनी व्यक्तियों और अमीर कॉरपोरेट्स पर तत्काल कर लगाने की आवश्यकता है तथा उस पैसे का निवेश सभी के लिये मुफ्त गुणवत्ता वाली सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा में किया जाए।
- असमानता के अंतर को कम करना बहुत महत्त्वपूर्ण है लेकिन यह एक मध्यम अवधि का लक्ष्य होना चाहिये। भारत को विकास और वितरण के बीच के अनुक्रमण को (Sequencing) सही करना होगा।
- भारत को सभी लोगों तक सार्वजनिक सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था की समान पहुँच प्रदान करने से पहले विकास की ज़रूरत है। अन्यथा यह कम आय के जाल में फँस सकता है।
ऑक्सफैम इंटरनेशनल
- ऑक्सफैम इंटरनेशनल का गठन वर्ष 1995 में हुआ था जो स्वतंत्र गैर-सरकारी संगठनों का एक समूह है।
- "ऑक्सफैम" नाम ब्रिटेन में वर्ष 1942 में स्थापित ‘अकाल राहत के लिये ऑक्सफोर्ड सहायता समिति’ (Oxford Committee for Famine Relief) से लिया गया है।
- इस समूह ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ग्रीस में भूख से पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिये भोजन की आपूर्ति हेतु अभियान चलाया।
- इसका उद्देश्य वैश्विक गरीबी और अन्याय को कम करने के लिये कार्य क्षमता को बढ़ाना है।
- ऑक्सफैम का अंतर्राष्ट्रीय सचिवालय नैरोबी (केन्या) में स्थित है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय समाज
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना का प्रदर्शन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 2015 में लॉन्च हुई बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ( Beti Bachao Beti Padhao- BBBP) योजना के 6 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। राष्ट्रीय बालिका दिवस (24 जनवरी) के अवसर पर BBBP योजना के अब तक के प्रदर्शन पर चर्चा की गई।
- राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत वर्ष 2008 में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा की गई थी।
प्रमुख बिंदु:
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं (BBBP) योजना के बारे में:
- मुख्य उद्देश्य:
- लिंग आधारित चयन पर रोकथाम।
- बालिकाओं के अस्तित्व और सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
- बालिकाओं के लिये शिक्षा की उचित व्यवस्था तथा उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना।
- बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करना।
- बहुक्षेत्रीय राष्ट्रव्यापी अभियान:
- BBBP एक राष्ट्रीय अभियान है जो सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को कवर करते हुए बाल लिंग अनुपात (Child Sex Ratio- CSR) हेतु चयनित100 ज़िलों में मल्टीसेक्टोरल एक्शन (Multisectoral Action) पर केंद्रित है।
- यह महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
BBBP योजना का प्रदर्शन:
- जन्म के समय लिंग अनुपात:
- स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (Health Management Information System- HMIS) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014-15 में जन्म के समय लिंग अनुपात 918 था जो वर्ष 2019-20 में 16 अंकों के सुधार के साथ बढ़कर 934 हो गया है।
- BBBP के अंतर्गत शामिल 640 ज़िलों में से 422 में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2018-2019 तक SRB में सुधार देखा गया है।
- महत्त्वपूर्ण उदाहरण:
- मऊ (उत्तर प्रदेश) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक लिंग अनुपात 694 से बढ़कर 951 हुआ है ।
- करनाल (हरियाणा) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक यह अनुपात 758 से बढ़कर 898 हो गया है।
- महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2019-20 तक यह 791 से बढ़कर 919 हुआ है।
- स्वास्थ्य:
- ANC पंजीकरण: पहली तिमाही में प्रसव पूर्व देखभाल (AnteNatal Care- ANC) पंजीकरण में सुधार का रुझान वर्ष 2014-15 के 61% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 71% देखा गया है।
- संस्थागत प्रसव में सुधार का प्रतिशत वर्ष 2014-15 के 87% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 94% तक पहुँच गया है।
- शिक्षा:
- सकल नामांकन अनुपात (GER): शिक्षा के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE) के अंतिम आंँकड़ों के अनुसार, माध्यमिक स्तर पर स्कूलों में बालिकाओं के सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) में 77.45 (वर्ष 2014-15) से 81.32 (वर्ष 2018-19) तक सुधार हुआ है।
- बालिकाओं के लिये शौचालय: बालिकाओं के लिये अलग शौचालय वाले स्कूलों का प्रतिशत वर्ष 2014-15 के 92.1% से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 95.1% हो गया है।
सोच में परिवर्तन:
- BBBP योजना कन्या भ्रूण हत्या, बालिकाओं में शिक्षा की कमी और जीवन चक्र की निरंतरता के अधिकार से उन्हें वंचित करने जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम है।
- बेटी जन्मोत्सव प्रत्येक ज़िले में मनाए जाने वाले प्रमुख कार्यक्रमों में से एक है।
बालिकाओं के लिये अन्य पहलें:
- उज्ज्वला (UJJAWALA): यह मानव तस्करी की समस्या से निपटने से संबंधित है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिये किये गए यौन शोषण व तस्करी के शिकार पीड़ितों और उनके बचाव, पुनर्वास तथा एकीकरण के लिये एक व्यापक योजना है।
- किशोरी स्वास्थ्य कार्ड: किशोर लड़कियों का वज़न, ऊंँचाई, बॉडी मास इंडेक्स (Body Mass Index- BMI) के बारे में जानकारी दर्ज करने के उद्देश्य से इन स्वास्थ्य कार्डों को आंँगनवाड़ी केंद्रों के माध्यम से बनाया जाता है।
- किशोरियों के लिये योजना (Scheme for Adolescent Girls- SAG)।
- सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samridhi Yojana) आदि।