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  • 12 Jul, 2019
  • 12 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन को रोकने में वनों की भूमिका

यह लेख द हिंदू में प्रकाशित "Turning down the heat: on forest restoration" पर आधारित है। इस लेख में जलवायु परिवर्तन के शमन में वनों की भूमिका के विषय में बात की गई है।

संदर्भ

वनों में जलवायु परिवर्तन को कम करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता होती है। वनीकरण द्वारा जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है। पौधे एवं वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाई ऑक्साइड में कमी लाते हैं, साथ ही मृदा भी पौधों और जीवों से निकलने वाले जैविक कार्बन को रोके रखती है। मृदा में कार्बन की मात्रा भूमि के उपयोग, खेती के प्रकारों, मृदा के पोषण तथा तापमान पर निर्भर करती है।

एक अध्ययन के संदर्भ में बात करें तो

हाल ही में, एक अध्ययन में यह प्रदर्शित हुआ है कि यदि विश्व में 0.9 बिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्ष आच्छादित किये जाते हैं तो यह विश्व की दो तिहाई हरित गृह गैस के उत्सर्जन को कम करने में सक्षम हैं। इस प्रकार से जलवायु परिवर्तन के विश्व पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव को समाप्त या टाला जा सकता है किंतु वैश्विक तथा राष्ट्रीय नीतियों में वनीकरण को प्रायः तरजीह नहीं दी जाती है।

UNFCCC के अंतर्गत वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में सम्मेलन (COP-21) हुआ था। इस सम्मेलन में प्रत्येक देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) के माध्यम से अपनी क्षमता के आधार पर जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैश्विक समस्या से निपटने के प्रयास करने का वादा किया था।

भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान

(India’s Nationally Determined Contribution)

  • पेरिस समझौते के अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contribution) की संकल्पना को प्रस्तावित किया गया है, इसमें प्रत्येक राष्ट्र से यह अपेक्षा की गई है कि वह ऐच्छिक तौर पर अपने लिये उत्सर्जन के लक्ष्यों का निर्धारण करे।
  • NDC राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों (Nationally Determined Contributions -NDCs) का बिना शर्त क्रियान्वयन और तुलनात्मक कार्यवाही के परिणामस्वरूप पूर्व औद्योगिक स्तरों के सापेक्ष वर्ष 2100 तक तापमान में लगभग 2⁰C की वृद्धि होगी, जबकि यदि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों का सशर्त कार्यान्वयन किया जाएगा तो इसमें कम-से-कम 0.2% की कमी आएगी।
  • जीवाश्म ईंधन और सीमेंट उत्पादन का ग्रीनहाउस गैसों में 70% योगदान होता है। रिपोर्ट में 2030 के लक्षित उत्सर्जन स्तर और 2⁰C और 5⁰C के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपनाए जाने वाले मार्गों के बीच विस्तृत अंतराल है।
  • वर्ष 2030 के लिये सशर्त और शर्त रहित एनडीसी के पूर्ण क्रियान्वयन हेतु तापमान में 2⁰C की बढ़ोतरी 11 से 5 गीगाटन कार्बन-डाइऑक्साइड के समान है।

वर्ष 2030 तक का लक्ष्य

  • भारत का वर्ष 2030 तक GDP में हरित गृह गैस के उत्सर्जन की तीव्रता को एक तिहाई कम करना है।
  • कुल बिजली उत्पादन का 40 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ईंधन से प्राप्त करने का लक्ष्य है।
  • वर्ष 2030 तक भारत ने अतिरिक्त वन एवं वृक्ष आच्छादन को बढ़ाकर 2.5 से 3 बिलियन टन के कार्बन सिंक के निर्माण का भी वादा किया है। कार्बन सिंक से तात्पर्य ऐसी क्षमता के निर्माण से है जिसके द्वारा पर्यावरण से उसी अनुपात में कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित किया जाता है।
  • यद्यपि हाल में हुए एक अध्ययन में, भारत के वन सर्वेक्षण (FSI) में NDC लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त वन एवं वृक्ष आच्छादन का अनुमान लगाया है।
  • जलवायु संबंधित प्रभावों को कम करने के अतिरिक्त वनों के अन्य लाभ भी हैं जो मानव एवं प्रकृति दोनों के दृष्टिकोण से ध्यान देने योग्य हैं।
  • वैश्विक स्तर पर, 1.6 बिलियन लोग (विश्व जनसंख्या का लगभग 25%) अपने जीवन यापन के लिये वनों पर निर्भर करते हैं, इनमें से अधिकाश आबादी विश्व के सबसे गरीब लोगों की है।
  • वन हमें स्वच्छ जल तथा स्वस्थ मृदा जैसी वस्तुओं और सेवाओं के रूप में प्रत्येक वर्ष 75-100 बिलियन डॉलर का लाभ पहुँचाते हैं।
  • विश्व की 80 प्रतिशत ज़मीनी जैव-विविधता वनों में ही मौज़ूद हैं। इसको ध्यान में रखते हुए अतिरिक्त कार्बन सिंक को जैसा कि रिपोर्ट में सिफारिश की गई है, निम्नलिखित प्रयासों से प्राप्त किया जा सकता है:
    • खुले वनों की सघनता को बढ़ावा प्रदान करके
    • बंजर भूमि को उर्वर बनाना
    • कृषि वानिकी के माध्यम से
    • हरित गलियारों के निर्माण द्वारा
    • रेलवे ट्रैक, सड़क, नेहरों के किनारे वृक्षारोहण द्वारा
    • शहरों के खुले स्थानों जैसे पार्कों आदि में वृक्ष आवरण बढ़ाकर
  • FSI के अध्ययन में इंगित किया गया है कि यदि ऐसे वन जिनकी सघनता में कमी आई है, की सघनता को वर्ष 2030 तक बढ़ाकर 3.39 बिलियन टन CO2 के बराबर कार्बन सिंक का निर्माण किया जा सकता है जिसकी लागत लगभग ₹2.46 लाख करोड़ होगी।

प्राकृतिक वन

  • भारत को अभी भी यह निर्धारित करना है कि कैसे कार्बन सिंक से संबंधित लक्ष्यों को पूरा किया जाए।
  • वायुमंडल से कार्बन को कम करने का सबसे सुरक्षित तरीका है कि कार्बन को पौधों, वनस्पतियों और मृदा में बदल दिया जाए।
  • प्राकृतिक वनों में जल की गुणवत्ता को सुधारने, आद्रभूमि में जल संग्रहण को बढ़ाने, भूमि अपरदन को रोकने, जैव-विविधता को सुरक्षित करने तथा रोज़गार के नए अवसरों का सृजन करने की अधिक क्षमता विद्यमान है।
  • एक अनुमान के अनुसार, यदि भूमि को प्राकृतिक रूप से वनों में परिवर्तित किया जाए तो यह वृक्षारोपण के मुकाबले 42 गुना तथा कृषि वानिकी के मुकाबले 6 गुना अधिक कार्बन को कम कर सकते हैं।
  • सिर्फ वृक्षारोपण जैसे हरित उपाय जलवायु परिवर्तन को कम नहीं कर सकते हैं। साथ ही यह जैव-विविधता को सुधारने तथा इसके लाभ उपलब्ध कराने में भी कारगर सिद्ध नहीं हो सकते हैं।

पुनर्वनीकरण के प्रकार

कार्बन के संग्रहण की मात्रा वनीकरण के प्रकार पर निर्भर करती है।

  • भारत सहित विश्व के विभिन्न देशों में बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया गया है किंतु वृक्षारोपण में कार्बन को कम करने की क्षमता बहुत कम मात्रा में होती है एवं जब इनकी कटाई की जाती है तब लकड़ी के जलने से दोबारा कार्बन वायुमंडल में मुक्त हो जाता है।
  • अतः भारत को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वनों की कटाई को अधिकतम सीमा तक रोका जाए। साथ ही FSI रिपोर्ट में बताए गए ऐसे क्षेत्र जिनका उपयोग वन की गुणवत्ता को सुधारने में किया जाना है, ऐसे क्षेत्रों को पूर्णतः प्राकृतिक वनों तथा कृषि वानिकी के रूप में विकसित किया जाना चाहिये।
  • वृक्षारोपण के स्थान पर वनों को विकसित करने से स्थानीय समुदायों को भी अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। स्थानीय समुदायों का भारत में वन के साथ संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। इस प्रकार भारत जलवायु और पर्यावरण के साथ-साथ सामाजिक न्याय जैसे लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकता है।

वैश्विक स्तर पर क्या किया जा सकता है?

  • वन हानि तथा वन क्षरण को कम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को आरंभ करने तथा समर्थन जिसमें वनों पर न्यूयॉर्क घोषणा भी शामिल । इस घोषणा में वर्ष 2020 वैश्विक प्राकृतिक वन हानि को आधा करना तथा वर्ष 2030 तक इस हानि को समाप्त करना है।
  • बॉन चैलेंज (Bonn Challenge) के अंतर्गत वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर तथा वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर की वनों की स्थिति को सुधारना है।
  • 350 मिलियन हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुँचने पर यह 1.7 गीगाटन के बराबर CO2 को कम कर सकता है।
  • अधिकार आधारित भूमि उपयोग की अवधारणा भूमि के उपयोग में समुदाय की भूमिका बढ़ाती है। वन एवं समुदाय के मध्य संबंध गरीबी निवारण, महिला सशक्तीकरण, जैव-विविधिता को बढ़ाने तथा वनों की धारणीयता को भी बढ़ाने में सक्षम हैं।
  • REDD+ (Reducing Emissions from Deforestation and Forest Degradation in Developing Countries) जैसे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जा रहा है। इस कार्यक्रम से विकासशील देश अपने संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित कर सकेंगे। साथ ही इसके माध्यम से स्थानीय समुदायों को भी लाभ प्राप्त हो सकेगा।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों कम करने तथा इसको दूर करने के लिये वन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समाधान प्रस्तुत करते हैं। लगभग 2.6 बिलियन टन CO2 जो जीवाश्म ईधन द्वारा निकलने वाली CO2 का एक तिहाई है, को प्रत्येक वर्ष वनों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए वनाच्छादन में वृद्धि करना तथा उसे बनाए रखना जलवायु परिवर्तन के समाधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न: जलवायु अनुकूलन को जलवायु शमन (Climate mitigaton) से जोड़ने की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन में शमन की भूमिका के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये?


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