जैव विविधता और पर्यावरण
यूरोप में सूखा
प्रिलिम्स के लिये:सूखा, ग्रीष्म लहरें, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन। मेन्स के लिये:सूखा - प्रभाव, कारण और इससे निपटने के तरीके। |
चर्चा में क्यों?
यूरोप में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी के बाद 500 वर्षों में वर्ष 2022 सबसे खराब सूखा वर्ष हो सकता है। बड़ी नदियाँ सूख रहीं हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
- चीन और अमेरिका भी सूखे की स्थिति का सामना कर रहे हैं।
सूखा
- परिचय:
- सूखे को आम तौर पर विस्तारित अवधि में वर्षा में कमी के रूप में माना जाता है, आमतौर पर एक मौसम या उससे अधिक जिसके परिणामस्वरूप जल की कमी होती है जिससे वनस्पति, जानवरों और लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- सूखे को आम तौर पर विस्तारित अवधि में वर्षा में कमी के रूप में माना जाता है, आमतौर पर एक मौसम या उससे अधिक जिसके परिणामस्वरूप जल की कमी होती है जिससे वनस्पति, जानवरों और लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- कारण:
- वर्षा में परिवर्तनशीलता
- मानसूनी हवाओं के मार्ग में विचलन
- मानसून की जल्दी वापसी
- वनाग्नि
- जलवायु परिवर्तन एवं भूमि क्षरण
- प्रकार:
- मौसम संबंधी सूखा:
- यह सूखापन या वर्षा की कमी और शुष्क दीर्घावधि पर आधारित है।
- हाइड्रोलॉजिकल सूखा:
- यह जल आपूर्ति पर वर्षा की कमी के प्रभाव पर आधारित है जैसे कि धारा प्रवाह, जलाशय और झील का स्तर और भूजल स्तर में गिरावट।
- कृषि सूखा:
- यह वर्षा की कमी, मिट्टी में जल की कमी, निम्न भू-जल स्तर अथवा सिंचाई के लिये आवश्यक जलाशय के स्तर जैसे कारकों द्वारा कृषि पर प्रभाव को संदर्भित करता है।
- सामाजिक-आर्थिक सूखा:
- यह फलों, सब्जियों, अनाज और मांँस जैसे कुछ आर्थिक सामग्री की आपूर्ति और मांग पर सूखे की स्थिति (मौसम विज्ञान, कृषि, या जल विज्ञान संबंधी सूखे) के प्रभाव पर विचार करता है।
- मौसम संबंधी सूखा:
यूरोप में सूखे की स्थिति
- वर्तमान परिदृश्य:
- यह सूखा 500 वर्षों में सबसे चरम सूखा है। वर्ष 1540 में यूरोप में गर्मी इतनी शुष्क थी की एक साल के सूखे ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थी।
- हालाँकि इससे पहले वर्ष 2003, 2010 और 2018 जैसे यूरोपीय सूखे की तुलना भी वर्ष 1540 की घटना से की गई थी।
- यूरोप की कुछ सबसे बड़ी नदियाँ - राइन, पो, लॉयर, डेन्यूब, जो आमतौर पर महत्त्वपूर्ण जलमार्ग हैं, मध्यम आकार के जहाज़ों के परिवहन में असमर्थ हैं।
- यूरोपीय आयोग की एजेंसी वैश्विक सूखा वेधशाला (GDO) की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, महाद्वीप का लगभग 64% भूभाग सूखे की स्थिति का सामना कर रहा था।
- स्विट्रज़लैंड और फ्राँस में लगभग 90% भौगोलिक क्षेत्र, जर्मनी में लगभग 83% और इटली में 75% के करीब क्षेत्र, कृषि सूखे का सामना कर रहा है।
- आने वाले महीनों में स्थिति में सुधार होने की संभावना नहीं है।
- यह सूखा 500 वर्षों में सबसे चरम सूखा है। वर्ष 1540 में यूरोप में गर्मी इतनी शुष्क थी की एक साल के सूखे ने हज़ारों लोगों की जान ले ली थी।
- कारण:
- सूखे प्राकृतिक जलवायु प्रणाली का हिस्सा हैं और यूरोप में असामान्य नहीं हैं। असाधारण शुष्क मौसम सामान्य मौसम प्रतिरूप से लंबे समय तक और महत्त्वपूर्ण विचलन का परिणाम रहा है।
- ग्रीष्म लहरों के कारण कई देशों में तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है।
- असामान्य रूप से उच्च तापमान के कारण सतही जल और मिट्टी की नमी का वाष्पीकरण बढ़ गया है।
- चूँकि यह वर्ष 2018 के सूखे कि घटना के मात्र चार वर्ष के अंतराल पर घटित हो रहा है इसलिये इस सूखे की गंभीरता और बढ़ गई है।
- यूरोप के कई क्षेत्रों अभी पिछले सूखे (वर्ष 2018) से उबर भी नहीं पाए थे तथा वहाँ मिट्टी की नमी भी सामान्य नहीं हो पाई थी।
- सूखे प्राकृतिक जलवायु प्रणाली का हिस्सा हैं और यूरोप में असामान्य नहीं हैं। असाधारण शुष्क मौसम सामान्य मौसम प्रतिरूप से लंबे समय तक और महत्त्वपूर्ण विचलन का परिणाम रहा है।
ग्रीष्म लहर:
- ग्रीष्म लहरें असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि है जो आमतौर पर मार्च और जून के महीनों के बीच होती है और कुछ दुर्लभ मामलों में जुलाई तक भी विस्तारित होती हैं।
- भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, जब किसी स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30C० तक पहुँच जाता है, तो उसे ग्रीष्म लहर घोषित की कहा जाता है।
- प्रभाव:
- परिवहन: यूरोप विद्युत संयंत्रों के लिये कोयले व अन्य सामग्री के वहनीय परिवहन हेतु इन नदियों पर निर्भर है। कुछ हिस्सों में जल स्तर एक मीटर से भी कम होने के कारण, अधिकांश बड़े जहाज़ो के परिचालन में समस्याएँ आ रहीं हैं।
- विद्युत उत्पादन: इस घटना से यूरोप में विद्युत उत्पादन प्रभावित हुआ है, जिससे यहाँ विद्युत-आपूर्ति में कमी आ गई है तथा ऊर्जा की कीमतों में और वृद्धि हुई है जो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पहले से ही अधिक थी।
- पर्याप्त जल की कमी ने परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के संचालन को प्रभावित किया है, जो शीतलक के रूप में बड़ी मात्रा में जल का उपयोग करते हैं।
- खाद्य सुरक्षा: कई देशों में खाद्य पदार्थों की कीमतें तेज़ी से बढ़ी हैं और कुछ क्षेत्रों में पीने के पानी के लिये संघर्ष की स्थिति देखी जा रही है इसी क्रम में कृषि भी बुरी तरह प्रभावित हुई है।
अमेरिका और चीन में सूखे की स्थिति:
- चीन में सूखा:
- चीन के भी कई हिस्से गंभीर सूखे की ओर बढ़ रहे हैं जिसे 60 वर्षों में सबसे खराब स्थिति बताया जा रहा है।
- देश की सबसे लंबी नदी यांग्त्ज़ी, जो लगभग एक तिहाई चीनी आबादी की जल आवश्यकता को पूरा करती है, के जल स्तर में रिकॉर्ड गिरावट देखी जा रही है।
- देश की दो सबसे बड़ी मीठे जल की झीलें, पोयांग और डोंगटिंग वर्ष 1951 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई हैं।
- जल की कमी यूरोप की तरह ही समस्याओं को जन्म दे रही है।
- सूखे ने चीन में शरद ऋतु के अनाज उत्पादन हेतु एक "गंभीर खतरा" उत्पन्न किया है जिसमें देश के वार्षिक अनाज का लगभग 75% उत्पादित होता है।
- कुछ क्षेत्रों में विद्युत की कमी ने कारखानों पर वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर दबाव डालना शुरू कर दिया है।
- अमेरिका में सूखा:
- अमेरिकी सरकार के अनुसार, संयुक्त राज्य में भी 40% से अधिक क्षेत्र वर्तमान में सूखे की स्थिति में है, जिससे लगभग 130 मिलियन लोग प्रभावित हैं।
भारत में सूखा घोषित होने की शर्तें:
- भारत में सूखे की कोई एकल, कानूनी रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है। जब किसी क्षेत्र को सूखा प्रभावित घोषित करने की बात आती है तो राज्य सरकार अंतिम प्राधिकरण होती है।
- सूखे के प्रबंधन के संबंध में भारत सरकार ने दो महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ प्रकाशित किये हैं।
- पहला कदम दो अनिवार्य संकेतकों - वर्षा विचलन और शुष्क अवधि को देखना है।
- मैनुअल विचलन की सीमा के आधार पर शुष्कता की विभिन्न स्थितियों को निर्दिष्ट करता है जिन्हें सूखा का संकेतक माना जा सकता है या नहीं।
- दूसरा कदम चार महत्त्वपूर्ण संकेतकों - कृषि, रिमोट सेंसिंग पर आधारित वनस्पति सूचकांक, मिट्टी की नमी और हाइड्रोलॉजी को देखना है।
- राज्य सूखे के आकलन, आपदा की तीव्रता के आकलन के लिये चार महत्त्वपूर्ण संकेतकों (प्रत्येक में से एक) के किन्हीं तीन प्रकारों पर विचार कर सकते हैं और निर्णय ले सकते हैं।
- यदि चुने गए सभी तीन संकेतक 'गंभीर' श्रेणी में हैं, तो यह गंभीर सूखे की श्रेणी में आता है; और अगर तीन चुने हुए संकेतकों में से दो 'मध्यम' वर्ग में हैं, तो यह संतुलित सूखा है।
- इन दो जाँचों के अतिरि, तीसरे चरण की शुरुआत होती है। उस घटना में, “राज्य सूखे का अंतिम निर्धारण करने के लिये मिट्टी का सैंपल सर्वेक्षण करती है”।
- क्षेत्र सत्यापन अभ्यास (field verification exercise) का निष्कर्ष सूखे की तीव्रता को 'गंभीर' या 'संतुलित' के रूप में आँकने का अंतिम आधार होगा।
- पहला कदम दो अनिवार्य संकेतकों - वर्षा विचलन और शुष्क अवधि को देखना है।
- एक बार सूखे का निर्धारण हो जाने के बाद, राज्य सरकार को भौगोलिक सीमा को निर्दिष्ट करते हुए एक अधिसूचना जारी करनी होगी। अधिसूचना छह महीने के लिये वैध होगी जब तक कि पहले से अधिसूचित नहीं किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स: प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014)
उपरोक्त युग्मों में से कौन सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स: प्रश्न. मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया में जलवायु सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरण सहित पुष्टि कीजिये। (2020) प्रश्न. भारत के सूखाग्रस्त और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में सूक्ष्म जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में मदद करती हैं? (2016) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
लद्दाख में भू-तापीय उर्जा
प्रिलिम्स के लिये:भू-तापीय ऊर्जा, लद्दाख की भौगोलिक अवस्थिति। मेन्स के लिये:भू-तापीय ऊर्जा, इसके उपयोग और लाभ, भारत के लिये भू-तापीय ऊर्जा का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों ?
सरकार द्वारा संचालित अन्वेषक तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC) भारत-चीन वास्तविक सीमा रेखा पर चुमार सड़क से दूर लद्दाख में स्थित पूगा घाटी में विद्युत उत्पन्न करने के लिये भू-तापीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना करेगा।
पूगा परियोजना:
- पूगा घाटी:
- पूगा घाटी साल्ट लेक घाटी से लगभग 22 किलोमीटर दूर लद्दाख के दक्षिण-पूर्वी भाग में चांगथांग घाटी में स्थित है।
- यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और भू-तापीय गतिविधियों के लिये जाना जाता है।
- पूगा घाटी अपने सल्फर युक्त ऊष्ण झरने/हॉट सल्फर स्प्रिंग्स ( Hot Sulphur Springs) के लिये भी जानी जाती है।
- भू-तापीय उर्जा परियोजना:
- यह भारत की पहली भू-तापीय ऊर्जा परियोजना है जो 14,000 फीट की ऊँचाई पर दुनिया की सबसे ऊँची परियोजना भी होगी।
- ONGC ने परियोजना के लिये अपने पहले कुएँ की खुदाई भी शुरू कर दी है और यह प्रति घंटे 100 टन भू-तापीय ऊर्जा के निर्वहन दर के साथ 100 C० पर उच्च दबाव वाली वाष्प उर्जा उत्पन्न कर सकती है, जिसे परियोजना के लिये एक अच्छा संकेत माना जाता है।
- विभिन्न चरण:
- पायलट परियोजना के तौर पर कंपनी पहले चरण में एक मेगावाट विद्युत् संयंत्र संचालन के लिये 1,000 मीटर गहरे कुओं की खुदाई करेगी।
- दूसरे चरण में भू-तापीय जलाशय की गहन खोज और एक उच्च क्षमता प्रदर्शन संयंत्र की परिकल्पना की गई है।
- तीसरे चरण में भू-तापीय संयंत्र का वाणिज्यिक विकास शामिल होगा।
- संभावित लाभ:
- यह सौर या पवन ऊर्जा के व्यापक क्षेत्र के क्षितिज का विस्तार करके लद्दाख की देश की स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में से एक के रूप में उभरने की क्षमता को बढ़ावा देगा।
- पायलट परियोजना के तहत यह संयंत्र सुमडो और आसपास के क्षेत्रों में तिब्बती चरवाहा शरणार्थी बस्तियों की आस-पास की बस्तियों को विद्युत् और उष्मन की ज़रूरतें प्रदान करेगा।
- एक बड़ा संयंत्र दूर-दराज की बस्तियों और पूर्वी क्षेत्र में बड़े रक्षा प्रतिष्ठानों के लिए 24X7 आपूर्ति प्रदान करेगा, जिससे जनरेटर चलाने के लिये डीज़ल पर उनकी निर्भरता कम होगी।
- यह संयंत्र दक्षिण-पश्चिम में पास के मैदानों में 15-गीगावाट सौर/पवन परियोजना हेतु एक स्थिरक के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- भू-तापीय ऊर्जा की स्थिति:
- राष्ट्रीय:
- भारतीय भू-गर्भीय सर्वेक्षण ने देश में लगभग 340 भू-तापीय उष्ण झरनों की पहचान की है। उनमें से अधिकांश का सामान्य तापमान 370C° से 900C° की सीमा में हैं, जो प्रत्यक्ष उष्मीय अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त है।
- इन स्थलों पर विद्युत उत्पादन की क्षमता लगभग 10,000 मेगावाट है।
- देश में उष्ण झरनों को सात भू-तापीय क्षेत्रों में बाँटा गया है:
- हिमालय, सहारा घाटी, खंभात बेसिन, सोन-नर्मदा-ताप्ती लिनियामेंट बेल्ट, पश्चिमी तट, गोदावरी बेसिन और महानदी बेसिन।
- कुछ प्रमुख स्थान जहाँ भू-तापीय ऊर्जा के आधार पर एक विद्युत् संयंत्र स्थापित किया जा सकता है:
- हिमाचल प्रदेश में मणिकर्ण
- महाराष्ट्र में जलगाँव
- उत्तराखंड में तपोवन
- पश्चिम बंगाल में बकरेश्वर
- गुजरात में तुवा
- भारतीय भू-गर्भीय सर्वेक्षण ने देश में लगभग 340 भू-तापीय उष्ण झरनों की पहचान की है। उनमें से अधिकांश का सामान्य तापमान 370C° से 900C° की सीमा में हैं, जो प्रत्यक्ष उष्मीय अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त है।
- वैश्विक:
- गीगावाट-आकार की भू-तापीय क्षमताएँ:
- अमेरिका:
- भू-तापीय विद्युत् उत्पादन के मामले में अमेरिका दुनिया में प्रथम स्थान पर है।
- इंडोनेशिया:
- इंडोनेशिया दूसरा सबसे बड़ा भू-तापीय विद्युत् उत्पादक देश था।
- फिलीपींस
- तुर्की
- न्यूज़ीलैंड
- अमेरिका:
- मेक्सिको और इटली के पास 900 मेगावाट भू-तापीय उर्जा से अधिक क्षमता है, जबकि केन्या के पास 800 मेगावाट से अधिक है, इसके बाद आइसलैंड, जापान और अन्य देशों का स्थान है।
- गीगावाट-आकार की भू-तापीय क्षमताएँ:
- राष्ट्रीय:
भू-तापीय ऊर्जा
- परिचय:
- भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी से निकलने वाली ऊष्मा है। इस ऊर्जा का इस्तेमाल इमारतों को गर्म करने और विद्युत् उत्पादन में किया जाता है।
- जियोथर्मल शब्द ग्रीक शब्द जियो (पृथ्वी) और थर्म (ऊष्मा) से आया है, और भू-तापीय ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है क्योंकि पृथ्वी के भीतर लगातार ऊष्मा उत्पन्न होती रहती है।
- स्रोत:
- पृथ्वी में गहरे बसे गर्म पानी या भाप के जलाशयों तक ड्रिलिंग द्वारा पहुँचा जाता है।
- पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित भू-तापीय जलाशय अधिकांशतः पश्चिमी अमेरिका, अलास्का और हवाई में स्थित हैं।
- पृथ्वी की सतह के पास की उथली जमीन 50-60 F° का अपेक्षाकृत स्थिर तापमान बनाए रखती है।
- प्रयोग:
- जलाशयों से गर्म पानी और भाप का उपयोग जनरेटर चलाने तथा उपभोक्ताओं के लिये विद्युत् का उत्पादन करने के लिये किया जा सकता है।
- भू-तापीय उर्जा से उत्पन्न ऊष्मा के अन्य अनुप्रयोग सीधे भवनों, सड़कों, कृषि और औद्योगिक संयंत्रों में विभिन्न उपयोगों के लिये किये जाते हैं।
- घरों और अन्य इमारतों में गर्मी प्रदान करने के लिये ऊष्मा का उपयोग सीधे भूमि से भी किया जा सकता है।
- लाभ:
- नवीकरणीय स्रोत:
- उचित जलाशय प्रबंधन के माध्यम से, ऊर्जा निष्कर्षण की दर को जलाशय के प्राकृतिक ताप पुनर्भरण दर के साथ संतुलित किया जा सकता है।
- निरंतर आपूर्ति:
- भू-तापीय विद्युत संयंत्र मौसम की स्थिति का ध्यान दियेे बिना लगातार विद्युत का उत्पादन करते हैं।
- कम आयात निर्भरता:
- ईंधन आयात किये बिना विद्युत उत्पादन के लिये भू-तापीय संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है।
- छोटे पदचिह्न (Small Footprint):
- भू-तापीय विद्युत संयंत्र सुगठित होते हैं और कोयला (3642 वर्ग मीटर) पवन (1335 वर्ग मीटर) या सेंटर स्टेशन (3237 वर्ग मीटर) के साथ सोलर फोटो वोल्टिक की तुलना में प्रति GWH (404 वर्ग मीटर) कम भूमि का उपयोग करते हैं।
- स्वच्छ ऊर्जा:
- आधुनिक क्लोज-लूप भू-तापीय विद्युत संयंत्र ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं या कम करते हैं; उत्सर्जित GHG (50 g CO2 eq/kWhe) का जीवन चक्र सोलर फोटो वोल्टिक से चार गुना कम और प्राकृतिक गैस से 6-20 गुना कम प्रभावी है।
- भू-तापीय विद्युत संयंत्र सबसे पारंपरिक पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों की तुलना में ऊर्जा उत्पादन में औसतन कम जल की खपत करते हैं।
- नवीकरणीय स्रोत:
- हानि:
- यदि अनुचित तरीके से दोहन किया जाता है तो यह कभी-कभी प्रदूषक पैदा हो सकता है।
- पृथ्वी पर अनुचित ड्रिलिंग खतरनाक खनिजों और गैसों का पृथ्वी की गहराई में उत्सर्जन कर सकती है।
तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ONGC):
- ONGC सार्वजनिक क्षेत्र की एक पेट्रोलियम कंपनी है।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्त्व में 1955 में भारतीय भू-गर्भीय सर्वेक्षण के अधीन तेल एवं गैस प्रभाग के रूप में ONGC का शिलान्यास किया गया था।
- विदित हो कि 14 अगस्त, 1956 को इसे तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग का नाम दिया गया और 1994 में तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग को एक निगम में रूपांतरित कर दिया गया था।
- वर्ष 1997 में इसे भारत सरकार द्वारा नवरत्न का, जबकि वर्ष 2010 में महारत्न का दर्ज़ा दिया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त में से कौन पृथ्वी की सतह पर गतिशील परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार हैं? (a) केवल 1, 2, 3 और 4 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
भारतीय अर्थव्यवस्था
संयुक्त अरब अमीरात को सोने के आभूषण निर्यात में 42% की वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार समझौतों के प्रकार, व्यापार समझौतों के विभिन्न प्रकार। मेन्स के लिये:भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA। |
चर्चा में क्यों?
मई 2022 में लागू हुए मुक्त व्यापार समझौते के दो महीनों के भीतर ही भारत से संयुक्त अरब अमीरात को होने वाले सोने के आभूषणों का निर्यात 42% बढ़ा है।
- मई-जून, 2022 में संयुक्त अरब अमीरात को कुल निर्यात 5.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर को छू गया, जो वित्तीय वर्ष की तुलना में 17% अधिक है।
आभूषण निर्यात की वृद्धि से लाभ:
- भारतीय निर्यातकों को तुर्की जैसे देशों से सोने के आभूषणों में कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा था और मुक्त व्यापार समझौते के पहले सोने का निर्यात गिरावट दर्ज कर रहा था।
- मुक्त व्यापार समझौता मई 2022 में खाड़ी राष्ट्र में आभूषणों पर निःशुल्क पहुँच की पेशकश के साथ लागू हुआ। इस शुल्क को हटाने से निर्यात को लाभ हुआ है।
- संयुक्त अरब अमीरात के बाज़ार में भारत अब ड्यूटी-फ्री आभूषणों का निर्यात कर सकता है जिस पर पहले 5 प्रतिशत शुल्क लगता था और इस तरह भारतीय उत्पाद संभवतः दक्षिणी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और मध्य एशिया के बाज़ारों में भी प्रवेश कर सकेगा।
- इसके बदले में भारत ने व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) के तहत 200 टन तक के शिपमेंट के लिये संयुक्त अरब अमीरात से सोने के आयात पर 1% शुल्क रियायत की अनुमति दी है।
भारत-यूएई व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता
- वस्तु व्यापार:
- भारत को संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रदान की जाने वाले अधिमान्यता विशेष रूप से सभी श्रम प्रधान क्षेत्रों के लिये बाज़ार पहुँच से लाभ होगा।
- जैसे- रत्न और आभूषण, कपड़ा, चमड़ा, जूते, खेल के सामान, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि तथा लकड़ी के उत्पाद, इंजीनियरिंग उत्पाद, चिकित्सा उपकरण एवं ऑटोमोबाइल।
- सेवा व्यापार:
- भारत और संयुक्त अरब अमीरात दोनों ने व्यापक सेवा क्षेत्रों में एक-दूसरे को बाज़ार पहुँच की पेशकश की है।
- जैसे- व्यावसायिक सेवाएँ, संचार सेवाएँ, निर्माण और संबंधित इंजीनियरिंग सेवाएँ, वितरण सेवाएँ, शैक्षिक सेवाएँ', पर्यावरण सेवाएँ, वित्तीय सेवाएँ, स्वास्थ्य संबंधी और सामाजिक सेवाएँ, पर्यटन एवं यात्रा-संबंधित सेवाएँ, 'मनोरंजक सांस्कृतिक व खेल सेवाएँ' तथा 'परिवहन सेवाएँ' आदि।
- ट्रेड-इन फार्मास्यूटिकल्स:
- दोनों पक्षों ने निर्दिष्ट मानदंडों को पूरा करने वाले उत्पादों के लिये 90 दिनों में भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उत्पादों विशेष रूप से स्वचालित पंजीकरण और विपणन प्राधिकरण तक पहुँच की सुविधा हेतु फार्मास्यूटिकल्स पर एक अलग अनुबंध पर भी सहमति व्यक्त की है।
व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)
- यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है।
- यह व्यापार सुविधा और सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार कर सकता है।
- साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
- CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।
- भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं।
अन्य प्रकार के व्यापारिक समझौते:
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA):
- यह एक ऐसा समझौता है जिसे दो या दो से अधिक देशों द्वारा भागीदार देश को वरीय व्यापार समझौतों, टैरिफ रियायत या सीमा शुल्क में छूट आदि प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है।
- भारत ने कई देशों के साथ FTA पर बातचीत की है जैसे- श्रीलंका और विभिन्न व्यापारिक ब्लॉकों से आसियान के मुद्दे पर।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) आसियान के दस सदस्य देशों और छह देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, भारत और न्यूज़ीलैंड) के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसके साथ आसियान के मौजूदा FTAs भी शामिल हैं।
- अधिमान्य या वरीय व्यापार समझौता (PTA):
- इस प्रकार के समझौते में दो या दो से अधिक भागीदार कुछ उत्पादों के संबंध में प्रवेश का अधिमान्य या वरीय अधिकार देते हैं। यह टैरिफ लाइन्स की एक सहमत संख्या पर शुल्क को कम करके किया जाता है।
- यहाँ तक कि PTA में भी कुछ उत्पादों के लिये शुल्क को घटाकर शून्य किया जा सकता है। भारत ने अफगानिस्तान के साथ एक PTA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA):
- व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA ) आमतौर पर केवल व्यापार शुल्क और टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) दरों को बातचीत के माध्यम से तय करता है। यह CECA जितना व्यापक नहीं है। भारत ने मलेशिया के साथ CECA पर हस्ताक्षर किये हैं।
- द्विपक्षीय निवेश संधियाँ (BIT):
- यह एक द्विपक्षीय समझौता है जिसमें दो देश एक संयुक्त बैठक करते हैं तथा दोनों देशों के नागरिकों और फर्मों/कंपनियों द्वारा निजी निवेश के लिये नियमों एवं शर्तों को तय किया जाता है।
- व्यापार और निवेश फ्रेमवर्क समझौता (TIFA):
- यह दो या दो से अधिक देशों के बीच एक व्यापार समझौता है जो व्यापार के विस्तार और देशों के बीच मौजूदा विवादों को हल करने के लिये एक रूपरेखा तय करता है।
भारत का अन्य देशों के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर:
अनुक्रमांक |
समझौते का नाम |
1. |
भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (FTA) |
2. |
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र पर समझौता (SAFTA) |
3. |
भारत-नेपाल व्यापार संधि |
4. |
व्यापार, वाणिज्य और पार-गमन पर भारत-भूटान समझौता |
5. |
भारत-थाईलैंड FTA- अर्ली हार्वेस्ट स्कीम (EHS) |
6. |
भारत-सिंगापुर व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) |
7. |
भारत-आसियान CECA - वस्तु, सेवाओं का व्यापार और निवेश समझौते (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) |
8. |
भारत-दक्षिण कोरिया व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) |
9. |
भारत-जापान CEPA |
10. |
भारत-मलेशिया CECA |
11. |
भारत-मॉरीशस व्यापक आर्थिक सहयोग और साझेदारी समझौता (CEPA) |
12. |
भारत-UAE CEPA |
13. |
भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA) |
इसके अलावा भारत ने निम्नलिखित 6 सीमित कवरेज़ वरीय व्यापार समझौतों (PTA) पर हस्ताक्षर किये हैं:
अनुक्रमांक |
समझौते का नाम |
1. |
एशिया प्रशांत व्यापार समझौता (APTA) |
2. |
ग्लोबल सिस्टम ऑफ ट्रेड प्रिफरेंस (GSTP) |
3. |
सार्क वरीय व्यापार समझौता (SAPTA) |
4. |
भारत-अफगानिस्तान PTA |
5. |
भारत-मर्कोसुर (MERCOSUR) PTA |
6. |
भारत-चिली PTA |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक' साझेदारी' शब्द अक्सर समाचारों में देखा जाता है इसे देशों के एक समूह के मामलों के रूप में जाना जाता है: (2016) (a) जी 20 उत्तर: (b) प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
स्रोत: मिंट
भारतीय समाज
जन्म के समय लिंगानुपात
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, लिंग निर्धारण, सरकारी पहल। मेन्स के लिये:असंतुलित लिंगानुपात का मुद्दा, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, संतुलित लिंगानुपात सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ, सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही के एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में "पुत्र पूर्वाग्रह" में गिरावट आ रही है क्योंकि जन्म के समय लिंग अनुपात वर्ष 2011 में प्रति 100 लड़कियों पर 111 लड़कों से कम होकर वर्ष 2019-21 में प्रति 100 लड़कियों पर लड़कों का अनुपात 108 हो गया।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
- राष्ट्रीय परिदृश्य:
- भारत में "लापता" बच्चियों की औसत वार्षिक संख्या वर्ष 2010 के लगभग 4.8 लाख से कम होकर वर्ष 2019 में 4.1 लाख हो गई।
- यहाँ "लापता" का अर्थ है कि इस समय के दौरान कितने और महिला जन्म हुए होते यदि महिला-चयनात्मक गर्भपात नहीं होते।
- भारत की वर्ष 2011 की जनगणना में प्रति 100 लड़कियों पर 111 लड़कों से राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट में जन्म के समय लिंगानुपात थोड़ा कम होकर लगभग 109 और NFHS-5 (वर्ष 2019-21) में यह संख्या लड़कों की संख्या 108 हो गई है।
- वर्ष 2000-2019 के बीच महिला-चयनात्मक गर्भपात के कारण नौ करोड़ महिला जन्म "लापता" हो गए।
- भारत में "लापता" बच्चियों की औसत वार्षिक संख्या वर्ष 2010 के लगभग 4.8 लाख से कम होकर वर्ष 2019 में 4.1 लाख हो गई।
- धर्म के अनुसार लिंगानुपात:
- रिपोर्ट में धर्म के आधार पर लिंग चयन का भी विश्लेषण किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सिखों के लिये यह अंतर सबसे अधिक था।
- वर्ष 2001 की जनगणना में सिखों का लिंगानुपात प्रति 100 महिलाओं पर 130 पुरुषों का था, जो उस वर्ष के राष्ट्रीय औसत 110 से कहीं अधिक था।
- वर्ष 2011 की जनगणना तक, सिखों का लिंगानुपात अनुपात प्रति 100 लड़कियों पर 121 लड़कों तक सीमित हो गया था।
- नवीनतम NFHS के अनुसार, यह अब 110 के आसपास है, जो देश के हिंदू बहुसंख्यक में जन्म के समय पुरुषों और महिलाओं के अनुपात (109) के समान है।
- ईसाई (105 लड़के पर 100 लड़कियाँ) और मुस्लिम (106 लड़के पर 100 लड़कियाँ) में लिंगानुपात प्राकृतिक मानदंड के निकट है।
- रिपोर्ट में धर्म के आधार पर लिंग चयन का भी विश्लेषण किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सिखों के लिये यह अंतर सबसे अधिक था।
- लापता लड़कियों में धर्मवार हिस्सेदारी:
- भारतीय जनसंख्या में हिस्सेदारी:
- सिख: 2%
- हिंदू: 80%
- मुसलमान: 14%
- ईसाई: 2.3%
- लिंग-चयनात्मक गर्भपात के कारण लापता लड़कियों में हिस्सेदारी:
- सिख: 5%
- हिंदू: 87%
- मुसलमान: 7%
- ईसाई: 0.6%
- भारतीय जनसंख्या में हिस्सेदारी:
भारत में लिंगानुपात का इतिहास
- विश्व स्तर पर लड़कों की संख्या जन्म के समय लड़कियों की संख्या से कम है अर्थात् प्रति 100 महिला शिशुओं के लिये लगभग 105 पुरुष शिशुओं के अनुपात में।
- भारत में यह अनुपात वर्ष 1950 और 1960 के दशक में देश भर में प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण उपलब्ध होने से पूर्व था।
- समस्या की शुरुआत वर्ष 1970 के दशक में प्रसवपूर्व निदान तकनीक की उपलब्धता के साथ हुई, जो लिंग चयन गर्भपात की अनुमति देती है।
- भारत ने वर्ष 1971 में गर्भपात को वैध कर दिया लेकिन अल्ट्रासाउंड तकनीक की शुरुआत के कारण वर्ष 1980 के दशक में लिंग चयन का चलन शुरू हो गया।
- 1970 के दशक में, भारत का लिंगानुपात 105-100 के वैश्विक औसत के बराबर था, लेकिन 1980 के दशक की शुरुआत में यह बढ़कर प्रति 100 लड़कियों पर 108 लड़कों तक पहुँच गया और 1990 के दशक में प्रति 100 लड़कियों पर 110 लड़कों तक पहुँच गया।
संतुलित जन्म लिंग अनुपात सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ:
- प्रतिगामी मानसिकता:
- सामान्यता केरल और छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में पुत्रों को वरीयता दी जाती है।
- लड़कों को प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति प्रतिगामी मानसिकता से संबंधित है, क्योंकि लड़कियों के मामले में दहेज प्रथा का प्रचलन है।
- तकनीक का दुरुपयोग:
- अल्ट्रासाउंड जैसी सस्ती तकनीक से लिंग चयन की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है।
- कानून के कार्यान्वयन में विफलता:
- गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक अधिनियम (PC-PNDT), 1994 जो स्वास्थ्य पेशेवरों और माता-पिता को बच्चे के लिंग के बारे में प्रसवपूर्व जाँच करने पर कारावास तथा भारी जुर्माने का प्रावधान करता है, लिंग चयन को नियंत्रित करने में विफल रहा है।
- रिपोर्ट में PC-PNDT को लागू करने वाले कर्मियों के प्रशिक्षण में बड़े स्तर पर खामियाँ पाई गईं।
- उचित प्रशिक्षण के अभाव का तात्पर्य है कि वे दोषियों को कानून के अनुसार दंड दिलाने में असमर्थ/अक्षम हैं।
- निरक्षरता:
- 15-49 वर्ष के प्रजनन आयु-वर्ग की निरक्षर महिलाएँ, साक्षर महिलाओं की तुलना में अधिक बच्चों को जन्म देती हैं।
आगे की राह:
- व्यवहार में पारिवर्तन लाना:
- महिला शिक्षा और आर्थिक समृद्धि में वृद्धि से लिंग अनुपात में सुधार करने में सहायता मिलती है। इसी प्रयास में सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान ने समाज में व्यवहार परिवर्तन लाने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
- युवाओं को संवेदनशील बनाना:
- प्रजनन, स्वास्थ्य शिक्षा और सेवाओं के साथ-साथ लैंगिक समानता के मानदंडों के विकास के लिये युवाओं तक पहुँचने की तत्काल आवश्यकता है।
- इसके लिये, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) की सेवाओं का लाभ खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में उठाया जा सकता है।
- कानून का सख्त प्रवर्तन:
- भारत को गर्भधारण पूर्व एवं प्रसवपूर्व निदान-तकनीक अिनियम (PC-PNDT), 1994 को और अधिक सख्ती से लागू करना चाहिये और लड़कों की प्राथमिकता वाले मुद्दों से निपटने के लिये और अधिक संसाधन समर्पित करने चाहिये।
- इस संदर्भ में ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड का ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में अल्ट्रासाउंड मशीनों को शामिल करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. आप उन आँकड़ों की व्याख्या कैसे करते हैं जो यह दर्शाते हैं कि भारत में जनजातियों में लिंगानुपात अनुसूचित जातियों की तुलना में महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल है? (2015) प्रश्न. भारत के कुछ सबसे समृद्ध क्षेत्रों में महिलाओं के लिये प्रतिकूल लिंगानुपात क्यों है? अपने तर्क दीजिये। (2014) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
निक्षय पोषण योजना
प्रिलिम्स के लिये:टीबी रोग, टीबी से लड़ने के प्रयास। मेन्स के लिये:निक्षय पोषण योजना, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
केवल दो-तिहाई तपेदिक से पीड़ित लोग केंद्र सरकार की एकमात्र पोषण सहायता योजना, निक्षय पोषण योजना (NPY), 2021 से लाभान्वित हुए, जो प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का प्रमुख विषय है।
ट्यूबरक्लोसिस (टीबी)
- परिचय:
- टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है, जो लगभग 200 सदस्यों वाले माइकोबैक्टीरियासी परिवार से संबंधित है।
- कुछ माइकोबैक्टीरिया से मनुष्यों में टीबी और कुष्ठ जैसी बीमारियाँ होती हैं और कुछ जानवरो को संक्रमित करते हैं।
- टीबी, मनुष्यों में सबसे अधिक फेफड़ों (पल्मोनरी टीबी) को प्रभावित करता है, लेकिन यह अन्य अंगों (एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी) को भी प्रभावित कर सकता है।
- टीबी एक बहुत ही प्राचीन बीमारी है और इसके प्रमाण 3000 ईसा पूर्व मिस्र में पाए गए हैं।
- टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है, जो लगभग 200 सदस्यों वाले माइकोबैक्टीरियासी परिवार से संबंधित है।
- संचरण:
- टीबी हवा संक्रमण वायु के माध्यम से होता है। जब फेफड़े की टीबी से पीड़ित लोग खाँसते, छींकते या थूकते हैं, तो वे टीबी के कीटाणु वायु में फैल जाते हैं।
- लक्षण:
- फेफड़े की सक्रिय टीबी के सामान्य लक्षण बलगम और खून के साथ खाँसी, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार और रात को पसीना आना हैं।
- उपचार:
- टीबी एक इलाज योग्य बीमारी है। इसका इलाज रोगी को सूचना, पर्यवेक्षण और सहायता प्रदान करने के साथ ही 4 रोगाणुरोधी दवाओं को मानक 6 महीने की समयावधि तक सेवन करा के किया जाता है।
- मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस का उपयोग दशकों से किया जा रहा है और सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में 1 या अधिक दवाओं के रेसिस्टेंट उपभेदों को दर्ज किया गया है।
- मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) टीबी का एक प्रकार है जो ऐसे बैक्टीरिया के कारण होता है जो 2 सबसे शक्तिशाली पहली-पंक्ति की एंटी-टीबी दवाओं- आइसोनियाज़िड और रिफाम्पिसिन को निष्क्रिय कर देता है। इसका इलाज दूसरी-पंक्ति के दवाओं का उपयोग कर के किया जाता है।
- व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी टीबी (XDR-TB) MDR-TB का एक अधिक गंभीर रूप है जो उस बैक्टीरिया के कारण होता है जो सबसे प्रभावी दूसरी-पंक्ति एंटी-टीबी दवाओं को भी निष्क्रिय कर देता है तब रोगियों के उपचार का कोई विकल्प नहीं बचता।
निक्षय पोषण योजना:
- परिचय :
- टीबी रोगियों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के लिये अप्रैल 2018 में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में निक्षय पोषण योजना शुरुआत की गई है।
- इस योजना के तहत टीबी रोगियों को उपचार की पूरी अवधि के लिये प्रतिमाह 500 रुपए मिलते हैं।
- इसका उद्देश्य पोषण संबंधी ज़रूरतों के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से प्रति माह 500 रुपए की राशि प्रदान कर तपेदिक (TB) रोगी की सहायता करना है।
- इसकी स्थापना के बाद से73 मिलियन अधिसूचित लाभार्थियों को लगभग 1,488 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
- प्रदर्शन:
- भारत टीबी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार वर्ष 2021 देश भर में1 मिलियन अधिसूचित मामलों में से केवल 62.1% को में कम से कम एक किश्त का ही भुगतान किया गया है।
- दिल्ली में जहाँ प्रति 100,000 लोगों पर टीबी के सर्वाधिक 747 मामले हैं, वहाँ केवल2% मरीजों को DBT की एक ही किश्त प्राप्त हुई है।
- अन्य खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य पंजाब, झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं। पूर्वोत्तर में मणिपुर और मेघालय का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
- चुनौतियाँ:
- स्वास्थ्य प्रदाताओं और मरीजों दोनों के लिये DBT में कई बाधाएँ विद्यमान हैं जैसे बैंक खातों की अनुपलब्धता और इन खातों का अन्य दस्तावेजों जैसे आधार, पैन-कार्ड आदि से संबद्ध न होना है।
- संचार का कमी, सामाजिक-कलंक, निरक्षरता और बहु-चरणीय अनुमोदन प्रक्रिया प्रमुख बाधाओं के रूप में विद्यमान हैं।
- राज्यों की अपनी पोषण संबंधी सहायता योजनाएँ हैं, लेकिन कुछ योजनाएँ केवल टीबी की दवाओं के प्रति प्रतिरोध दिखाने वाले रोगियों के लिये ही हैं।
भारत में टीबी की स्थिति:
- भारत टीबी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार वर्ष 2021 की अवधि में टीबी रोगियों की कुल संख्या 19 लाख से अधिक थी जो वर्ष 2020 में यह संख्या लगभग 16 लाख थी अर्थात् इन मामलों में 19% की वृद्धि देखी गई है।
- भारत में, वर्ष 2019 से 2020 के बीच सभी प्रकार की टीबी के मामलों के कारण मृत्युदर में 11% की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2020 के लिये अनुमानित टीबी से संबंधित मौतों की कुल संख्या93 लाख थी, जो वर्ष 2019 के अनुमान से 13% अधिक है।
- कुपोषण, एड्स, मधुमेह, शराब और तंबाकू का धूम्रपान ऐसे कारक हैं जो टीबी से पीड़ित व्यक्ति को प्रभावित करती हैं।
टीबी से निपटने हेतु पहल
- वैश्विक प्रयास:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ग्लोबल फंड और स्टॉप टीबी पार्टनरशिप के साथ एक संयुक्त पहल “फाइंड. ट्रीट. ऑल. #EndTB” की शुरुआत की है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘ग्लोबल ट्यूबरकुलोसिस रिपोर्ट’ भी जारी करता है।
- भारत के प्रयास:
- क्षय रोग उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025), निक्षय पारिस्थितिकी तंत्र (राष्ट्रीय टीबी सूचना प्रणाली), निक्षय पोषण योजना (NPY- वित्तीय सहायता), ‘टीबी हारेगा, देश जीतेगा अभियान’।
- वर्तमान में, टीबी के लिये दो टीके- VPM (वैक्सीन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट) 1002 और MIP (माइकोबैक्टीरियम इंडिकस प्राणी) विकसित किये गए हैं और यह चरण-3 नैदानिक परीक्षण के तहत हैं।
- सक्षम परियोजना: यह टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) की एक परियोजना है जो DR-TB रोगियों को मनो-सामाजिक परामर्श प्रदान करती रही है।
आगे की राह
- भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये देश को चिकित्सा पहलुओं के अलावा अन्य पहलुओं परभी विचार करना होगा।
- सरकार को इस बात का जायज़ा लेने की जरूरत है कि बाधाएँ कहाँ पर हैं। एक विफल प्रणाली में अधिक धन लगाने का कोई अर्थ नहीं है।
- यदि टीबी से लड़ने वाले लोग खाली पेट रह रहे हैं तो नैदानिक उपचार में कोई भी निवेश अप्रासंगिक है। यह सबसे गरीब आबादी को प्रभावित करता है तथा लगभग हर परिवार चिकित्सा लागत और मज़दूरी न मिल पाने के कारण वित्तीय संकट में है।
- टीबी को रोकने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, रोगी के निकट संपर्क में रहने वालों के लिये भोजन सहायता को शामिल करने हेतु योजनाएँ होनी चाहिये क्योंकि वे भी बीमारी के उच्च जोखिम में हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
रॉयल मलेशियाई नौसेना के प्रमुख का भारत दौरा
प्रिलिम्स के लिये:भारत मलेशिया संबंध, भारत मलेशिया के मध्य व्यापार और विनिमय की प्रवृत्ति। मेन्स के लिये:भारत-मलेशिया संबंध और हालिया घटनाक्रम। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रॉयल मलेशियाई नौसेना के प्रमुख ने भारत के नौसेना अध्यक्ष के निमंत्रण पर भारत का दौरा किया।
- दोनों देशों की नौसेना ने मई 2022 में द्विपक्षीय अभ्यास समुद्र लक्ष्मण और जून 2022 में नौसेना स्टाफ वार्ता का समापन किया है।
भारत-मलेशिया संबंध:
- भारत ने वर्ष 1957 में मलेशिया के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- आर्थिक संबंध:
- भारत और मलेशिया ने व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- CECA एक तरह का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है।
- भारत ने 10 सदस्यीय दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) के साथ सेवाओं और निवेश में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर भी हस्ताक्षर किये हैं।
- मलेशिया, आसियान में तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- भारत और मलेशिया के मध्य द्विपक्षीय व्यापार मलेशिया के पक्ष में झुका हुआ है।
- भारत और मलेशिया ने व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- रक्षा और सुरक्षा सहयोग:
- संयुक्त सैन्य अभ्यास "हरिमऊ शक्ति" दोनों देशों के बीच प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।
- पारंपरिक चिकित्सा:
- भारत और मलेशिया ने अक्तूबर 2010 में पारंपरिक चिकित्सा के क्षेत्र में सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
- मलेशिया सरकार मलेशिया में आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी) प्रणालियों को लोकप्रिय बनाने के लिये काम कर रही है।
- मलेशिया में आयुष प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
- हाल के घटनाक्रम:
- वर्ष 2020 में भारत और मलेशिया दोनों देशों के बीच राजनयिक कूटनीति के बाद चार महीने के अंतराल के पश्चात् मलेशियाई पाम आयल की खरीद फिर से शुरू हुई।
- मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की आलोचना की थी जिसे भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप माना गया।
भारत के लिये मलेशिया का महत्त्व:
- एक ऐसे देश के रूप में जहाँ 7.2 प्रतिशत जनसंख्या भारतीय मूल की है, मलेशिया भारत की विदेश नीति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- मलक्का जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर जैसे संचार की व्यस्त समुद्री लाइनों से घिरा, मलेशिया भी भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक प्रमुख स्तंभ है और भारत की समुद्री संपर्क रणनीतियों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था और समाज में भारतीय प्रवासियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस संदर्भ में दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रवासी भारतीयों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये। (2017). प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के संबंध में, समुद्री क्षेत्रीय विवाद और बढ़ते तनाव पूरे क्षेत्र में नौवहन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की रक्षा करने की आवश्यकता की पुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014) |