डेली न्यूज़ (25 Jul, 2023)



बाल गंगाधर तिलक


पशुधन क्षेत्र के लिये क्रेडिट गारंटी योजना

प्रिलिम्स के लिये:

MSMEs, मत्स्य पालन मंत्रालय, किसान उत्पादक संगठन (FPO), ब्याज अनुदान योजना

मेन्स के लिये:

पशुपालन और अर्थव्यवस्था, MSME 

चर्चा में क्यों? 

मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशुधन क्षेत्र में MSME के लिये संपार्श्विक-मुक्त ऋण की सुविधा हेतु पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF) के तहत पहली ‘क्रेडिट गारंटी योजना’ शुरू की है।

क्रेडिट गारंटी योजना की मुख्य विशेषताएँ:

  • उद्देश्य: 
    • ऋण वितरण प्रणाली को मज़बूत करना तथा पशुधन क्षेत्र के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small & Medium Enterprises- MSME) के लिये ऋण के सुचारु प्रवाह की सुविधा सुनिश्चित करना।
    • पहली पीढ़ी के उद्यमियों और समाज के वंचित वर्गों पर ध्यान केंद्रित करते हुए गैर-सेवित (Un-served) तथा अल्प-सेवित (Under-served) पशुधन क्षेत्र की वित्त तक पहुँच बढ़ाना। 
  • क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट: 
    • ऋण देने वाले संस्थानों द्वारा पात्र MSME को दी जाने वाली क्रेडिट सुविधाओं के 25% तक क्रेडिट गारंटी कवरेज प्रदान करने के लिये 750 करोड़ रुपए का क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट स्थापित किया गया है।
  • ब्याज अनुदान: 

पशुपालन अवसंरचना विकास निधि: 

  • AHIDF की स्थापना इसलिये की गई है क्योंकि MSME और निजी कंपनियों को भी प्रसंस्करण तथा मूल्य संवर्द्धन बुनियादी ढाँचे में उनकी भागीदारी के लिये बढ़ावा देने एवं प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। 
  • AHIDF प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रोत्साहन पैकेज के अंतर्गत 15000 करोड़ रुपए के निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है:
    • डेयरी प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन बुनियादी ढाँचा।
    • मांस प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन बुनियादी ढाँचा।
    • पशु चारा संयंत्र
    • नस्ल सुधार प्रौद्योगिकी और नस्ल गुणन फार्म।
    • पशु अपशिष्ट से धन प्रबंधन (कृषि अपशिष्ट प्रबंधन)।
    • पशु चिकित्सा वैक्सीन और औषधि विनिर्माण सुविधाओं की स्थापना।
  • इस फंड के माध्यम से व्यक्तिगत उद्यमियों, निजी कंपनियों, MSME, किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और धारा 8 के तहत शामिल कंपनियों को पशुधन क्षेत्र में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषितर रोज़गार और आय का प्रबंध करने के लिये पशुधन पालन की  बड़ी संभाव्यता है। भारत में इस क्षेत्र की प्रोन्नति करने के उपयुक्त उपाय सुझाते हुए चर्चा कीजिये। (2015) 

स्रोत: पी.आई.बी.


त्वरित सुधार जल प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

अमृत सरोवर मिशन, अटल भूजल योजना, त्वरित सुधार जल समाधान 

मेन्स के लिये:

जल का अभाव और संबंधित कदम, जल संसाधन, संसाधनों का संरक्षण

चर्चा में क्यों?

भारत में बढ़ते जल संकट की समस्या को हल करने में गैर-लाभकारी और नागरिक समाज संगठनों द्वारा त्वरित-सुधार समाधानों के तहत अहम भूमिका निभाई जा रही है।

  • हालाँकि ये त्वरित सुधार लंबे समय तक स्थायी नहीं हो सकते हैं। इन त्वरित सुधारों की सावधानीपूर्वक जाँच करना तथा यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि हम ऐसी रणनीतियाँ अपनाएँ जो भविष्य में स्थायी बनी रह सकें।

त्वरित-सुधार जल समाधान:

  • परिचय: 
    • त्वरित-सुधार जल समाधान से तात्पर्य विशेष रूप से जल की कमी या जल प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करने वाले क्षेत्रों में जल से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये लागू किये गए तत्काल और अक्सर अस्थायी उपायों से है।
  • विभिन्न हस्तक्षेप: 
    • नदियों को चौड़ा और गहरा करना: जल-वहन क्षमता बढ़ाने के लिये प्राकृतिक जलस्रोतों को संशोधित करना।
    • जल संचयन प्रतियोगिताएँ: विभिन्न समुदायों को वर्षा जल संचयन और जल-बचत प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना।
      • व्यापक जल प्रबंधन रणनीतियों के बिना सीमित प्रभाव। 
    • नदी किनारे वृक्षारोपण: यह विधि मिट्टी को स्थिर रखती है और कटाव को रोकती है।
      • बड़े जल प्रबंधन मुद्दों को पूरी तरह से संबोधित नहीं किया जा सकता है।
    • त्वरित अवसंरचना विकास: सीवेज उपचार संयंत्रों और जल ग्रिड जैसी जल सुविधाओं का तेज़ी से निर्माण करना।
    • जलभृतों का कृत्रिम पुनर्भरण: भूजल स्तर की पुनः प्राप्ति हेतु भूमिगत जलभृतों में जल भरना।
      • इससे निपटने के लिये सतत् स्थायी प्रबंधन की आवश्यकता है।
    • अलवणीकरण संयंत्र: जल की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये समुद्री जल को मीठे जल में परिवर्तित करना।
      • ऊर्जा-गहन और महँगा होने के कारण यह कुछ क्षेत्रों में कम व्यवहार्य हो जाता है।
  • त्वरित सुधार जल समाधान पहल: 
    • जलयुक्त शिवार अभियान:  
      • महाराष्‍ट्र सरकार की पहल (2014) का उद्देश्‍य नदी को चौड़ा करने, गहरा करने,बाँधों की जाँच करने और गाद निकालने के माध्‍यम से वर्ष 2019 तक राज्‍य को सूखा मुक्‍त बनाना है।
      • विशेषज्ञ इसे अवैज्ञानिक, पारिस्थितिक रूप से हानिकारक होने के कारण इसकी आलोचना करते हैं, जिससे अपरदन, जैवविविधता हानि और बाढ़ के जोखिम में वृद्धि होती है।
    • वाटर कप:  
      • वर्ष 2016 में एक गैर-लाभकारी संगठन द्वारा शुरू की गई एक प्रतियोगिता ने महाराष्ट्र के गाँवों को सूखे से बचाव हेतु जल संचयन के लिये प्रोत्साहित किया।
      • आलोचक वैधता और स्थिरता पर सवाल उठाते हैं, क्योंकि इसमें जल की गुणवत्ता, भूजल प्रभाव, सामाजिक समानता तथा रखरखाव तंत्र की अनदेखी की गई है।

जल प्रबंधन के त्वरित समाधान में चुनौतियाँ:

  • पर्यावरणीय प्रभाव:
    • नदी को चौड़ा और गहरा करने जैसे तीव्र हस्तक्षेप से पारिस्थितिक क्षति हो सकती है।
    • जल्दबाजी वाली परियोजनाओं के कारण अपरदन, अवसादन और जैवविविधता का नुकसान हो सकता है। 
  • सीमित सामुदायिक सहभागिता:
    • त्वरित सुधार दृष्टिकोण में हितधारकों के साथ पर्याप्त भागीदारी और परामर्श की कमी हो सकती है।
    • सामाजिक आयाम की उपेक्षा से प्रतिरोध और संघर्ष की स्थिति हो सकती है। 
  • फंडिंग निर्भरता:
    • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) फंडिंग पर भरोसा करने से निर्णय लेने की स्वतंत्रता सीमित हो सकती है।
    • सामुदायिक आवश्यकताओं के बजाय दाताओं के हितों से प्रभावित परियोजनाओं को प्राथमिकता देना।
  • भूजल प्रबंधन की उपेक्षा:
    • सतही जल समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने से भूजल की महत्त्वपूर्ण भूमिका की अनदेखी हो सकती है। 
    • सतत् जल आपूर्ति के लिये भूजल पुनर्भरण और प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।
  • परस्पर विरोधी कार्यक्रम:
    • कुछ राज्य परियोजनाएँ सामुदायिक और पर्यावरणीय हितों के अनुरूप नहीं हो सकती हैं।
    • उदाहरण: नदी तट विकास, केंद्रीकृत सीवेज ट्रीटमेंट, विशाल जल ग्रिड।
  • महत्त्वपूर्ण भागीदारी से बदलाव: 
    • गहन विश्लेषण और समझ से "तकनीकी-प्रबंधकीय दृष्टिकोण" की ओर मानसिकता में बदलाव। 
      • इसका अर्थ  है तकनीकी ज्ञान और समस्या-समाधान पर बहुत अधिक ज़ोर देना, जिससे जल प्रबंधन से संबंधित महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक तथा पारिस्थितिक पहलुओं की अनदेखी हो सकती है।

भारत में जल संकट से निपटने के लिये सरकारी योजनाएँ:

  • अमृत सरोवर मिशन: 
    • अमृत सरोवर मिशन 24 अप्रैल, 2022 को लॉन्च किया गया, इस मिशन का लक्ष्य आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के हिस्से के रूप में प्रत्येक ज़िले में 75 जल निकायों को विकसित और पुनर्जीवित करना है।
    • मिशन का उद्देश्य स्थानीय जल निकायों की जल भंडारण क्षमता और गुणवत्ता में सुधार करना, बेहतर जल उपलब्धता और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य में योगदान देना है।
  • अटल भू-जल योजना: 
    • यह योजना गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों को लक्षित करती है।
    • अटल भू-जल योजना का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी भू-जल प्रबंधन के लिये स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए वैज्ञानिक तरीकों से भू-जल की मांग का प्रबंधन करना है।
  • केंद्रीय भू-जल प्राधिकरण (CGWA):  
    • CGWA देश भर में उद्योगों, खनन परियोजनाओं और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं द्वारा भू-जल के उपयोग को नियंत्रित और विनियमित करता है।
    • CGWA और राज्य दिशा-निर्देशों के अनुरूप भू-जल निकासी के लिये अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) जारी करते हैं, जिससे जल का उत्तरदायित्वपूर्ण उपयोग सुनिश्चित होता है।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (NAQUIM):
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड देश में 25.15 लाख वर्ग किमी. के क्षेत्र को शामिल करने वाले जलभृतों के मानचित्रण के लिये NAQUIM लागू कर रहा है।
    • सूचित हस्तक्षेप की सुविधा के लिये अध्ययन रिपोर्ट और प्रबंधन योजनाएँ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के साथ साझा की जाती हैं।
  • भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान- 2020:
    • इस योजना में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से तैयार मास्टर प्लान में लगभग 1.42 करोड़ रुपए की लागत से वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण की रूपरेखा है।
    • योजना का लक्ष्य 185 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) जल का उपयोग करना, जल संरक्षण और पुनर्भरण को बढ़ावा देना है

आगे की राह 

  • तात्कालिक ज़रूरतों और दीर्घकालिक चुनौतियों, दोनों का हल करने वाली व्यापक और धारणीय जल प्रबंधन रणनीतियों को अपनाया जाना।
  • जल प्रबंधन संबंधी निर्णयों में समुदायों के दृष्टिकोण को शामिल करते हुए प्रभावी सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • भविष्य में जल संकट से निपटने के लिये जल संबंधी बुनियादी ढाँचे और क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में निवेश को प्राथमिकता देना।
  • जल प्रबंधन पहल की प्रभावशीलता और प्रभाव का आकलन करने के लिये ठोस निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र की स्थापना करना।
  • भावी पीढ़ियों हेतु पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार भू-जल प्रबंधन और संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की एक शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) 

(a) धोलावीरा
(b) कालीबंगन
(c) राखीगढ़ी
(d) रोपड़

उत्तर: (a)


प्रश्न. 'वाटर क्रेडिट' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य करने के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है।
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (2020) 

प्रश्न. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइये। (2020) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


PM-कुसुम

प्रिलिम्स के लिये:

PM-कुसुम, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, कृषि अवसंरचना कोष (AIF), प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र ऋण (PSL) दिशा-निर्देश, भूजल संसाधन

मेन्स के लिये:

PM कुसुम में हाल के महत्त्वपूर्ण विकास, PM-कुसुम से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?  

केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित प्रतिक्रिया के माध्यम से प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM) योजना की वर्तमान स्थिति प्रस्तुत की।

PM-कुसुम

  • परिचय:  
    • PM-कुसुम भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में शुरू की गई एक प्रमुख योजना है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य सौर ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देकर कृषि क्षेत्र में बदलाव लाना है।
    • यह मांग-संचालित दृष्टिकोण पर कार्य करती है। विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) से प्राप्त मांगों के आधार पर क्षमताओं का आवंटन किया जाता है।
    • विभिन्न घटकों और वित्तीय सहायता के माध्यम से PM-कुसुम का लक्ष्य 31 मार्च, 2026 तक 30.8 गीगावाट की महत्त्वपूर्ण सौर ऊर्जा क्षमता वृद्धि हासिल करना है।
  • PM-कुसुम का उद्देश्य:  
    • कृषि क्षेत्र का डी-डिजिटलाइज़ेशन: इस योजना का उद्देश्य सौर ऊर्जा संचालित पंपों और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करके सिंचाई के लिये डीज़ल पर निर्भरता को कम करना है।
      • इसका उद्देश्य सौर पंपों के उपयोग के माध्यम से सिंचाई लागत को कम करके और उन्हें ग्रिड को अधिशेष सौर ऊर्जा बेचने में सक्षम बनाकर किसानों की आय में वृद्धि करना है।
    • किसानों के लिये जल और ऊर्जा सुरक्षा: सौर पंपों तक पहुँच प्रदान करके तथा सौर-आधारित सामुदायिक सिंचाई परियोजनाओं को बढ़ावा देकर, इस योजना का उद्देश्य किसानों के लिये जल एवं ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है।
    • पर्यावरण प्रदूषण पर अंकुश: स्वच्छ और नवीकरणीय सौर ऊर्जा को अपनाकर इस योजना का उद्देश्य पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के कारण होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को कम करना है।
  • घटक:  
    • घटक-A: किसानों की बंजर/परती/चरागाह/दलदली/कृषि योग्य भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेंद्रीकृत ग्राउंड/स्टिल्ट माउंटेड सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना
    • घटक-B: ऑफ-ग्रिड क्षेत्रों में 20 लाख स्टैंड-अलोन सौर पंपों की स्थापना।
    • घटक-C: 15 लाख ग्रिड से जुड़े कृषि पंपों का सोलराइज़ेशन: व्यक्तिगत पंप सोलराइज़ेशन और फीडर लेवल सोलराइज़ेशन।
  • हाल के महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम:
    • योजना की अवधि का विस्तार: किसानों को सौर ऊर्जा समाधानों को व्यापक रूप से अपनाने की सुविधा प्रदान करने के लिये PM-कुसुम को 31 मार्च, 2026 तक बढ़ा दिया गया है।
    • राज्य-स्तरीय निविदा: स्टैंडअलोन सौर पंपों की खरीद के लिये राज्य-स्तरीय निविदा की अनुमति है, जिससे प्रक्रिया अधिक सुव्यवस्थित और कुशल हो गई है।
    • AIF और PSL दिशा-निर्देशों में शामिल करना: PM-कुसुम के अंतर्गत पंपों के सौर्यीकरण को भारतीय रिज़र्व बैंक के कृषि अवसंरचना कोष (AIF) और प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL) दिशा-निर्देशों में शामिल किया गया है।

नोट:  

  • कृषि अवसंरचना कोष (AIF): AIF फसल कटाई के बाद प्रबंधन, बुनियादी ढाँचे और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये 8 जुलाई, 2020 को प्रारंभ की गई एक वित्तपोषण सुविधा है।
    • इस योजना के अंर्तगत वित्तीय वर्ष 2025-26 तक 1 लाख करोड़ रुपए का वितरण किया जाना है तथा साथ ही वर्ष 2032-33 तक ब्याज छूट एवं क्रेडिट गारंटी सहायता दी जाएगी।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (PSL): RBI बैंकों को अपने धन का एक निश्चित भाग कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों को उधार देने के लिये बाध्य करता है।

प्रमुख चुनौतियाँ:  

  • भौगोलिक परिवर्तनशीलता: भारत के विभिन्न क्षेत्रों में सौर विकिरण का स्तर अलग-अलग है, जो सौर प्रतिष्ठानों की दक्षता तथा प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।
    • इसके अतिरिक्त सौर पंपों की प्रभावशीलता पर्याप्त सूर्य के प्रकाश पर निर्भर है, जो घने बादलों की अवधि के दौरान या लंबे समय तक मानसून वाले क्षेत्रों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • भूमि की उपलब्धता एवं एकत्रीकरण: सौर परियोजनाओं के लिये उपयुक्त भूमि की उपलब्धता एवं खंडित भूमि खंडों का एकत्रीकरण बड़े पैमाने पर सौर उर्जा स्थापित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
    • भूमि अधिग्रहण तथा एकत्रीकरण में समय लग सकता है, साथ ही इससे परियोजना के निष्पादन में देरी हो सकती है।
  • अपर्याप्त ग्रिड अवसंरचना: उन क्षेत्रों में जहाँ ग्रिड अवसंरचना कमज़ोर या अविश्वसनीय है, ग्रिड में सौर ऊर्जा को एकीकृत करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है
    • यह योजना के लाभों को सीमित कर सकता है, विशेष रूप से उन किसानों के लिये जो अधिशेष सौर ऊर्जा को ग्रिड में वापस बेचना चाहते हैं।
  • जल विनियमन का अभाव: सौर पंपों को अपनाने के साथ सिंचाई की मांग में वृद्धि हो सकती है क्योंकि किसानों को भूमिगत स्रोतों से जल को पंप करना अधिक सुलभ और लागत प्रभावी लगता है। 
    • उचित जल प्रबंधन प्रथाओं की अनुपस्थिति सौर पंपों के माध्यम से अत्यधिक जल निकासी को बढ़ा सकती है तथा भू-जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। 

आगे की राह 

  • मोबाइल सोलर पंपिंग: मोबाइल सोलर पंप स्टेशन लागू करने चाहिये जिन्हें सिंचाई आवश्यकताओं के आधार पर विभिन्न स्थानों पर ले जाया जा सके।
    • यह सुविधा दूरदराज़ या बदलते कृषि क्षेत्रों में किसानों के लिये जल की उपलब्धता को बढ़ा सकती है।
  • जल विनियमन और निगरानी: भूजल निकासी को नियंत्रित करने के लिये प्रभावी जल विनियमन नीतियों और निगरानी तंत्र को लागू करना चाहिये।
    • सरकार को जलभृत पुनर्भरण दरों और समग्र जल उपलब्धता के आधार पर जल निकासी सीमा तय करने के लिये स्थानीय प्राधिकरणों के साथ सहयोग करना चाहिये।
  • मनरेगा से जोड़ना: PM-कुसुम योजना के प्रभाव को बढ़ाने और ग्रामीण रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये इस योजना को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) से जोड़ा जा सकता है।
    • मनरेगा योजना सौर पंपों के उपयोग के पूरक ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों की स्थापना में सहायक हो सकती है।
    • यह संयोजन जल-उपयोग दक्षता और फसल उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020) 

स्रोत: पी.आई.बी.


वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

वैज्ञानिक प्रकाशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन, ग्लोबल साउथ  से संबंधित चिंताएँ।

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्वीकृत नेशनल रिसर्च फाउंडेशन को सुलभ, न्यायसंगत और वित्तीय रूप से ज़िम्मेदार वैज्ञानिक-प्रकाशन के लिये एक अग्रणी मार्गदर्शक के रूप में देखा जाता है।

  • अनुसंधान को संप्रेषित करना वैज्ञानिक प्रयास का एक अभिन्न अंग है। यह वैज्ञानिक समझ को आगे बढ़ाता है तथा विज्ञान तथा समाज के बीच संबंध स्थापित करता है। 

वैज्ञानिक-प्रकाशन की प्रक्रिया:

  • अकादमिक प्रकाशन: 
    • अकादमिक प्रकाशन की शुरुआत वैज्ञानिकों द्वारा पत्रिकाओं में अपने शोध निष्कर्ष प्रस्तुत करने से होती है।
    • इन पांडुलिपियों को सहकर्मी समीक्षा से गुज़रना पड़ता है, जहाँ विशेषज्ञ कठोर तथा मान्य शोध सुनिश्चित करने के लिये स्वैच्छिक टिप्पणियाँ प्रदान करते हैं।
    • स्वीकृति के पश्चात् पत्रों को या तो ऑनलाइन या प्रिंट के माध्यम से प्रकाशित किया जाता है, जिससे शोध व्यापक समुदाय के लिये सुलभ हो जाता है।
  • मॉडल पढ़ने के लिये भुगतान: 
    • पारंपरिक अकादमिक प्रकाशन 'पढ़ने के लिये भुगतान', मॉडल पर निर्भर करता है, जहाँ पुस्तकालय तथा संस्थान प्रकाशित शोध तक पहुँचने के लिये शुल्क का भुगतान करते हैं।
    • यह प्रणाली वैज्ञानिक सामग्री तक पहुँच को प्रतिबंधित करती है, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में जहांँ संस्थानों को सदस्यता शुल्क वहन करने के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है।
  • पे टू पब्लिश मॉडल:
    • यह गोल्ड ओपन-एक्सेस मॉडल है जहाँ लेखक अपने काम को ऑनलाइन मुफ्त में उपलब्ध कराने के लिये आर्टिकल प्रोसेसिंग चार्ज (APC) का भुगतान करते हैं। 
      • हालाँकि यह ओपन-एक्सेस को बढ़ावा देता है। इसने शोधकर्ताओं के लिये वित्तीय निहितार्थों के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं। 

भारत में वैज्ञानिक प्रकाशन से संबंधित मुद्दे: 

  • सार्वजनिक धन से लाभ:
    • अकादमिक प्रकाशन एक आकर्षक उद्योग है जिसका विश्व भर में राजस्व 19 बिलियन अमेरिकी डॉलर और व्यापक लाभ मार्जिन 40% तक है।
    • मुद्दा इस तथ्य में निहित है कि यह लाभ सार्वजनिक धन से प्राप्त होता है लेकिन ये कुछ चुनिंदा कंपनियों की ओर निर्देशित होते हैं, जबकि अकादमिक वैज्ञानिक अनुसंधान का उद्देश्य एक गैर-लाभकारी प्रयास है।
    • भारत की अनुसंधान निधि में मामूली वृद्धि और ठहराव देखा गया है जिससे गोल्ड ओपन-एक्सेस (OA) पत्रिकाओं की उच्च APC वैज्ञानिकों के लिये एक चुनौती बन गई है।
      • गोल्ड OA एक प्रकार का ओपन-एक्सेस प्रकाशन मॉडल है जो बिना किसी सदस्यता या भुगतान बाधाओं के शोधकर्ताओं के ऑनलाइन लेखों तक अप्रतिबंधित और तत्काल पहुँच की अनुमति देता है।
  • प्रिडेटरी प्रकाशन (Predatory Publishing):  
    • भारत को प्रिडेटरी प्रकाशन की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रिडेटरी  पत्रिकाएँ पर्याप्त सहकर्मी समीक्षा और संपादकीय सेवाएँ प्रदान किये बिना "भुगतान-से-प्रकाशन" मॉडल का फायदा उठाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप निम्न-गुणवत्ता वाले प्रकाशन किये जाते हैं जो भारतीय अनुसंधान की विश्वसनीयता को कमज़ोर कर सकते हैं। 
  • खुली पहुँच का अभाव:
    • दस्यता-आधारित मॉडल या महँगे पेवॉल (Paywalls) के कारण वैज्ञानिक शोध पत्रों तक पहुँच अधिकतर प्रतिबंधित रहती है।
    • इससे शोधकर्ताओं के बीच ज्ञान के प्रसार और सहयोग में बाधा आती है।
  • साहित्यिक चोरी और नैतिकता:
    • कुछ शोधकर्ता, विभिन्न कारणों से साहित्यिक चोरी या अन्य अनैतिक प्रथाओं का सहारा लेते हैं, जो भारतीय शोध प्रकाशनों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को नष्ट कर सकते हैं।
  • फंडिंग संबंधी बाधाएँ: 
    • अनुसंधान और प्रकाशन के लिये सीमित फंडिंग और संसाधनों से प्रकाशन लागत को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें ओपन-एक्सेस (Open-Access ) पत्रिकाओं के लिये लेख प्रसंस्करण शुल्क भी शामिल है।
  • अनुसंधान मूल्यांकन:
    • शोध की गुणवत्ता के माप के रूप में पत्रिकाओं के  प्रभाव कारक पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया है, जो शोधकर्ताओं को उनके काम की प्रासंगिकता या योगदान पर विचार किये बिना उच्च प्रभाव वाली पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।

लागत का समाधान:

  • सरकार 'वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन' जैसे विकल्प तलाश रही है, जो एक निश्चित लागत पर विद्वत्तापूर्ण प्रकाशनों तक पहुँच प्रदान करता है लेकिन वाणिज्यिक प्रकाशकों के एकाधिकार को बढ़ा सकता है।
  • एक अन्य दृष्टिकोण पेशेवरों द्वारा प्रबंधित एक स्वतंत्र रूप से सुलभ और उच्च गुणवत्ता वाले ऑनलाइन रिपॉजिटरी की स्थापना करके खुली पहुँच से मुक्त प्रकाशन की ओर स्थानांतरित करना है।  
    • यह रिपॉजिटरी अकादमिक अनुसंधान मूल्यांकन के लिये संख्यात्मक मेट्रिक्स से हटकर, विशेषज्ञों और जनता की समीक्षाओं के साथ निरंतर मूल्यांकन तथा जुड़ाव की अनुमति देता है।

निष्कर्ष:

  • भारत अकादमिक प्रकाशन पर पुनर्विचार करने के अपने प्रयास से अनुसंधान तक समान पहुँच को प्राथमिकता देकर विश्व का नेतृत्व कर सकता है।
  • नवोन्मेषी मॉडल लागू करके और नव स्वीकृत राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन का लाभ उठाकर भारत सुलभ एवं परिवर्तनकारी अनुसंधान प्रकाशन की दिशा में प्रगति कर सकता है, जिससे न केवल वैज्ञानिक समुदाय बल्कि बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।

स्रोत: द हिंदू


ज़ीरो FIR

प्रिलिम्स के लिये:

FIR प्रावधान, ज़ीरो FIR, संज्ञेय अपराध, POCSO अधिनियम

मेन्स के लिये:

FIR- प्रावधान, सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?  

मणिपुर में हिंसा और अपराध की हालिया घटनाओं में शून्य/ज़ीरो प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) की अवधारणा की सबसे अधिक चर्चा की गई है।

ज़ीरो FIR

  • परिचय : 
    • ज़ीरो FIR, जिसे किसी भी पुलिस स्टेशन द्वारा क्षेत्राधिकार की परवाह किये बिना, तब दर्ज किया जा सकता है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में शिकायत मिलती है।
    • इस स्तर पर कोई नियमित FIR नंबर निर्दिष्ट नहीं किया जाता है।
    • ज़ीरो FIR दर्ज होने  के बाद रेवेन्यू पुलिस स्टेशन नई FIR दर्ज करता है और जाँच शुरू करता है।
    • इसका उद्देश्य गंभीर अपराधों के पीड़ितों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों को बगैर एक पुलिस स्टेशन से दूसरे पुलिस स्टेशन गए, जल्दी और आसानी से शिकायत दर्ज कराने में सहायता करना है।
    • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना भी है कि शिकायत दर्ज करने में देरी के कारण सबूत और गवाहों के साथ छेड़छाड़ न की जाए।
    • इन्हें संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ अपराध हुआ है या जहाँ जाँच की जानी है।
  • ज़ीरो FIR का कानूनी आधार:
    • ज़ीरो FIR जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के बाद प्रस्तुत की गई थी, जिसे वर्ष 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले के बाद स्थापित किया गया था।
    • ज़ीरो FIR का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों द्वारा भी समर्थित है।
      • उदाहरण के लिये ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले (वर्ष 2014) में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि जब सूचना किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती है तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
      • सतविंदर कौर बनाम दिल्ली राज्य मामले (वर्ष 1999) में दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि एक महिला को घटना स्थल के अलावा किसी भी स्थान से अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR): 

  • परिचय: 
    • किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा तैयार किया गया लिखित दस्तावेज़ होता है।
    • यह जाँच प्रक्रिया की दिशा में पहला कदम है।
    • यह पुलिस द्वारा जाँच तथा आगे की कार्रवाई को गति प्रदान करता है।
  • संज्ञेय अपराधों में FIR का पंजीकरण: 
    •  CrPC की धारा 154(1) पुलिस को संज्ञेय अपराधों के लिये FIR दर्ज करने की अनुमति देती है।
  •  FIR दर्ज न करना: 
    • न्यायाधीश जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिश के आधार पर IPC में धारा 166A जोड़ी गई।
    • संज्ञेय अपराध से संबंधित जानकारी दर्ज करने में विफल रहने वाले लोक सेवकों के लिये यह दंड का प्रावधान करता है।
    • सज़ा में दो वर्ष तक की कैद और जुर्माना शामिल है।

संज्ञेय और गैर-संज्ञेय अपराध

  • संज्ञेय अपराध: 
    • संज्ञेय अपराधों में एक अधिकारी न्यायालय के वारंट की मांग किये बिना किसी संदिग्ध का संज्ञान ले सकता है तथा उसे गिरफ्तार कर सकता है, यदि उसके पास "विश्वास करने का कारण" है कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है और संतुष्ट है कि कुछ निश्चित आधारों पर गिरफ्तारी आवश्यक है। 
    • गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर अधिकारी को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा हिरासत की पुष्टि करनी होगी। 
    • 177वें विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, संज्ञेय अपराध वे हैं जिनमें तत्काल गिरफ्तारी की आवश्यकता होती है। 
    • संज्ञेय अपराध आमतौर पर जघन्य या गंभीर प्रकृति के होते हैं जैसे कि हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी, दहेज हत्या आदि। 
    • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) केवल संज्ञेय अपराधों के मामले में दर्ज की जाती है। 
  • गैर-संज्ञेय अपराध: 
    • गैर-संज्ञेय अपराध के मामले में पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार नहीं कर सकती है और साथ ही अदालत की अनुमति के बिना जाँच शुरू नहीं कर सकती।
    • जालसाज़ी, धोखाधड़ी, मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव आदि अपराध गैर-संज्ञेय अपराधों की श्रेणी में आते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021) 

  1. न्यायिक हिरासत का अर्थ है कि एक अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में है और ऐसे अभियुक्त को पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा जाता है, न कि जेल में।
  2. न्यायिक हिरासत के दौरान मामले के प्रभारी पुलिस अधिकारी, न्यायालय की अनुमति के बिना संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ नहीं कर सकते हैं। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों   
(d) न तो 1 और न ही  2 

उत्तर: (b) 

  • न्यायिक हिरासत में एक अभियुक्त संबंधित मजिस्ट्रेट की हिरासत में होता है और जेल में बंद रखा जाता है, जबकि पुलिस हिरासत के मामले में ऐसे अभियुक्त को पुलिस स्टेशन के हवालात में रखा जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • न्यायिक हिरासत के दौरान मामले का प्रभारी पुलिस अधिकारी संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ कर सकता है लेकिन मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति के साथ। पुलिस हिरासत के मामले में पुलिस अधिकारी संदिग्ध व्यक्ति से पूछताछ कर सकता है लेकिन उसे 24 घंटे के भीतर न्यायालय के सामने पेश करना होगा। अतः कथन 2 सही है।

इसलिये विकल्प (B) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस