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डेली न्यूज़

  • 23 Aug, 2022
  • 50 min read
इन्फोग्राफिक्स

जल जीवन मिशन

Jal-Jivan

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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय ऊर्जा विनिमय खरीद

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय ऊर्जा विनिमय खरीद, विद्युत अधिनियम, 2003, केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग

मेन्स के लिये:

डिस्कॉम का विनियमन और भारत के विद्युत क्षेत्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तेलंगाना की विद्युत उपयोगिताओं (डिस्कॉम) के प्रबंधन को विद्युत खरीद के लिये इंडियन एनर्जी एक्सचेंज (IEX) के साथ डे-अहेड मार्केट (DAM) में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया।

  • डिस्कॉम द्वारा भुगतान किये जाने के बावजूद उन पर प्रतिबंध इस आधार पर लगाया गया कि उन्होंने जेनकोस (एक पॉवर जनरेटर कंपनी) को बकाया का भुगतान नहीं किया था।
  • हालाँकि किये गए भुगतान से संबंधित खातों का मिलान करने के बाद अब प्रतिबंध हटा लिया गया है।

प्रतिबंध के संदर्भ में

  • राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र (National Load Despatch Centre-NLDC) ने संबंधित खातों का जेनकोस के खातों के साथ मिलान किये बिना ही ऊर्जा खरीद (Energy Procurement) में तेलंगाना (डिस्कॉम) द्वारा बोली लगाने पर प्रतिबंध लगा दिया।
    • तेलंगाना (डिस्कॉम) ने प्रतिबंध लगाने से पहले एजेंसी द्वारा बताए गए 1,381 करोड़ रुपए के बकाया में से 1,360 करोड़ रुपए का भुगतान कर दिया है।
  • डिस्कॉम के अनुसार, एजेंसी वर्तमान में लागू विद्युत अधिनियम, 2003 के अधिदेश से परे कार्य कर रही थी।
    • वर्ष 2003 के अधिनियम के अनुसार, एजेंसी को केवल ग्रिड नियम बद्धता की निगरानी और रख-रखाव करना चाहिये न कि अपने वर्तमान एकतरफा निर्णय जैसे किसी भी व्यावसायिक गतिविधि में शामिल होना चाहिये।
  • आधिकारिक तौर पर 19 अगस्त, 2022 को प्रतिबंध हटा लिया गया था, जिससे डिस्कॉम को विद्युत की खरीद की अनुमति मिल गई है।

इंडियन एनर्जी एक्सचेंज

  • परिचय:
  • मिशन:
    • उपभोक्ताओं को वहनीय, विश्वसनीय ऊर्जा प्रदान करने के लिये पारदर्शी एवं कुशल ऊर्जा बाज़ार स्थापित करने में प्रौद्योगिकी एवं नवाचार की उपस्थिति का लाभ उठाना।
  • व्यापारिक मंच:
    • ऊर्जा बाज़ार:
      • डे-अहेड मार्केट (DAM):
        • यह मध्यरात्रि से शुरू होने वाले अगले दिन के 24 घंटों में किसी भी/कुछ/पूर्ण समय के वितरण हेतु भौतिक विद्युत व्यापार बाज़ार है।
      • टर्म-अहेड मार्केट (TAM):
        • TAM के तहत यह अनुबंध 11 दिनों की अवधि के लिये विद्युत के क्रय/विक्रय की सीमा को कवर करता है।
        • यह प्रतिभागियों को दैनिक अनुबंधों के माध्यम से सात दिनों के रोलिंग हेतु  दैनिक आधार पर अगले दिन के लिये इंट्रा-डे अनुबंधों के माध्यम से उसी दिन विद्युत के क्रय में सक्षम बनाता है।
      • रियल टाइम मार्केट:
        • बाज़ार में प्रत्येक 30 मिनट में एक नया नीलामी सत्र आयोजित होता है, जिसमें 4 टाइम ब्लॉक्स या नीलामी बंद होने के एक घंटे बाद विद्युत की आपूर्ति की जाती है।
        • विद्युत की कीमत और मात्रा द्विपक्षीय एवं बंद नीलामी प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित की जाती है।
      • सीमा पार विद्युत व्यापार:
        • विद्युत के क्षेत्र में सीमा पार एक एकीकृत दक्षिण एशियाई विद्युत बाज़ार के निर्माण की दिशा में भारतीय विद्युत बाज़ार का विस्तार करने का एक प्रयास है
        • ग्रिड से जुड़े दक्षिण एशियाई देश जैसे नेपाल, भूटान और बांग्लादेश विनिमय पर डे फॉरवर्ड मार्केट और टर्म फॉरवर्ड मार्केट में भाग ले सकेंगे।
    • ग्रीन मार्केट:
      • ग्रीन टर्म अहेड मार्केट:
        • ग्रीन-टर्म अहेड मार्केट (G-TAM), CERC की मंजूरी के बाद अक्षय ऊर्जा में व्यापार के लिये उपलब्ध एक नया बाज़ार है।
        • नए बाज़ार खंड में शामिल अनुबंध हैं:
          • ग्रीन-इंट्रा डे
          • ग्रीन-डे-अहेड कांटेन्जेन्सी  (DAC)
          • ग्रीन-डेली और ग्रीन-वीकली।
        • ग्रीन-इंट्रा डे, ग्रीन-DAC और ग्रीन-डेली अनुबंध हेतु मैचिंग मैकेनिज्म निरंतर/त्वरित व्यापार की व्यवस्था, जबकि ग्रीन-वीकली के लिये द्विपक्षीय एवं खुली नीलामी की प्रक्रिया लागू की जानी है।
      • ग्रीन-डे-अहेड मार्केट:
        • ग्रीन डे फॉरवर्ड मार्केट अगले दिन अक्षय ऊर्जा में अनामिकता और द्विपक्षीय बंद सामूहिक नीलामी की प्रक्रिया को निर्धारित करता है।
        • यह विनिमय, पारंपरिक और नवीकरणीय उत्पादों के लिये अलग-अलग बिडिंग विंडो के माध्यम से एकीकृत माध्यम से बोलियों को आमंत्रित करता है।
        • पारंपरिक खंड के बाद ट्रांसमिशन कॉरिडोर की उपलब्धता पर विचार करते हुए, अनिवार्य रूप से नवीकरणीय खंड में क्रमिक समाशोधन होता है।
    • प्रमाणपत्र बाज़ार:
      • अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC):
        • REC तंत्र के तहत, एक उत्पादक देश के किसी भी हिस्से में अक्षय संसाधनों के माध्यम से विद्युत उत्पादन कर सकता है।
          • विद्युत के हिस्से के लिये उत्पादक किसी भी पारंपरिक स्रोत से लागत के बराबर मूल्य प्राप्त करता है, जबकि पर्यावरण विशेषता को बाज़ार निर्धारित मूल्य पर विनिमय के माध्यम से बेचा जाता है।
        • देश के किसी भी हिस्से से बाध्य संस्थाएँ इन REC को अपने नवीकरणीय खरीद दायित्व (RPO) अनुपालन को पूरा करने के लिये क्रय कर सकती हैं।
          • बाध्य संस्थाएँ या तो अक्षय ऊर्जा का क्रय कर सकती हैं या संबंधित राज्यों के RPO के तहत अपने RPO को पूरा करने के लिये REC खरीद सकती हैं।
      • ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESCerts):

विद्युत अधिनियम, 2003 और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग:

  • विद्युत अधिनियम 2003:
    • विद्युत अधिनियम, 2003 विद्युत क्षेत्र को विनियमित करने वाला केंद्रीय कानून है।
    • इस अधिनियम में केंद्र और राज्य दोनों स्तरों (CERC और SERCs) पर विद्युत नियामक आयोग का प्रावधान किया  गया है।
      • इन आयोगों के कार्यों में शामिल हैं:
        • टैरिफ का विनियमन और निर्धारण
        • प्रसारण के लिये लाइसेंस जारी करना
        • वितरण और विद्युत का व्यापार
        • अपने-अपने क्षेत्राधिकार के भीतर विवादों का समाधान।
  • केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग:
    • CERC भारत में विद्युत क्षेत्र का नियामक है।
    • यह थोक विद्युत बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा, दक्षता और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार, निवेश को बढ़ावा देने और सरकार की मांग आपूर्ति अंतर को कम करने हेतु संस्थागत बाधाओं को दूर करने की सलाह देता है।
    • यह विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत अर्ध-न्यायिक स्थिति के साथ कार्यरत एक वैधानिक निकाय है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्र. सरकार की एक योजना 'उदय' का उद्देश्य निम्नलिखित में से कौन सा है? (2016)

(a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्ट-अप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
(b) वर्ष 2018 तक देश के हर घर तक विद्युत पहुँचाना।
(c) समय के साथ कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों को प्राकृतिक गैस, परमाणु, सौर, पवन और ज्वारीय विद्युत संयंत्रों से बदलना।
(d)  विद्युत वितरण कंपनियों के वित्तीय बदलाव और पुनरुद्धार प्रदान करना। (to provide for)

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • विद्युत मंत्रालय द्वारा उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY) शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य राज्य विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMS) को वित्तीय और परिचालन रूप से स्वस्थ बनाने में मदद करना है ताकि वे सस्ती दरों पर पर्याप्त विद्युत की आपूर्ति कर सकें।
  • इसमें वित्तीय बदलाव, परिचालन सुधार, विद्युत उत्पादन की लागत में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास, ऊर्जा दक्षता और संरक्षण की परिकल्पना की गई है।
  • यह योजना वित्तीय और परिचालन रूप से मजबूत DISCOMs, विद्युत की बढ़ती मांग, उत्पादन संयंत्रों के प्लांट लोड फैक्टर (PLF) में सुधार, स्ट्रेस्ड एसेट्स में कमी, सस्ते फंड की उपलब्धता, पूंजी निवेश में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के विकास को प्रभावित करने का प्रयास करती है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिन्दू


शासन व्यवस्था

ग्रामीण उद्यमी परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC), ग्रामीण उद्यमी परियोजना, कौशल विकास और उद्यम मंत्रालय (MSDE)।

मेन्स के लिये:

ग्रासरूट स्तर पर उद्यमिता की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही मे राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) ने सेवा भारती और युवा विकास सोसायटी के साथ साझेदारी में ग्रामीण उद्यमी परियोजना के दूसरे चरण का शुभारंभ किया।

  • इस पहल क उद्देश्य भारत के युवाओं को बहु-कौशल तथा उन्हें आजीविका उपार्जन के लिये सक्षम बनाने हेतु कार्यात्मक कौशल प्रदान करना है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम:

  • राष्ट्रीय कौशल विकास निगम एक गैर-लाभकारी सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है। इसकी स्थापना 31 जुलाई, 2008 को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8 के अनुरूप) के तहत की गई थी।
    • NSDC की स्थापना वित्त मंत्रालय ने सरकारी निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) मॉडल के रूप में की थी।
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के माध्यम से भारत सरकार के पास NSDC का 49% हिस्सा है, जबकि निजी क्षेत्र के पास शेष 51% का स्वामित्त्व है।
    • यह कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने वाले उद्यम, कंपनियों और संगठनों को धन प्रदान करके कौशल विकास में उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।

ग्रामीण उद्यमी परियोजना:

  • परिचय:
    • यह एक अनूठी बहु-कौशल परियोजना है, जो NSDC द्वारा वित्त पोषित है, जिसका उद्देश्य मध्य प्रदेश और झारखंड में 450 आदिवासी छात्रों को प्रशिक्षित करना है।
      • यह परियोजना छह राज्यों- महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड और गुजरात में लागू की जा रही है।
  • महत्त्व:
    • आदिवासी स्तर पर स्वामित्त्व बढ़ाने की सख्त ज़रूरत है ताकि ऐसी योजनाओं और पहलों के बारे में जागरूकता पैदा हो।
      • आदिवासी युवाओं में इतनी शक्ति और क्षमता है कि हमें बस इतना करना है कि वे अपनी प्रतिभा का सही जगह उपयोग कर सकें।
    • यह पहल हमारी आदिवासी आबादी को आर्थिक सशक्तीकरण प्रदान करेगी।
  • उद्देश्य:
    • ग्रामीण/स्थानीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि
    • रोज़गार के अवसर बढ़ाना
    • स्थानीय अवसरों की कमी के कारण प्रवास के दबाव को कम करना
    • प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण

ग्रामीण उद्यमी परियोजना का क्रियान्वयन:

  • चरण एक:
    • प्रशिक्षण के पहले चरण में महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गुजरात के ग्रामीण तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रतिभागियों को शामिल किया गया है।
      • प्रतिभागियों को परिवहन, खान-पान और आवास की सुविधा प्रदान की गई थी ताकि वे संसाधनों की कमी के कारण सीखने के अवसर से न चूक जाएँ।
  • दूसरा चरण:
    • राँची में शुरू की गई पायलट परियोजना के दूसरे चरण को युवा विकास सोसायटी द्वारा सेवा भारती केंद्र के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
      • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के तत्त्वावधान में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ने सेवा भारती केंद्र कौशल विकास केंद्र में सेक्टर स्किल काउंसिल (SSCS) के माध्यम से प्रयोगशालाओं और कक्षाओं की स्थापना में सहायता की है।
  • परियोजना के अंतर्गत प्रशिक्षण निम्नलिखित नौकरी की भूमिकाओं में उपयोग किया जाएगा जो स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिये प्रासंगिक हैं।
    • इलेक्ट्रीशियन और सोलर पीवी इंस्टालेशन टेक्निशियन।
    • प्लम्बिंग और मेसनरी।
    • दोपहिया वाहनों की मरम्मत एवं रख-रखाव।
    • ई-गवर्नेंस के साथ आईटी/आईटीईएस।
    • कृषि यंत्रीकरण।

कौशल विकास के लिये सरकार द्वारा की गई पहल:

  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
  • रोज़गार मेला।
  • प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (PMKK)।
  • क्षमता निर्माण योजना।
  • स्कूल पहल और उच्च शिक्षा।
  • इंडिया इंटरनेशनल स्किल सेंटर्स (IISCs)।
  • प्रस्थान पूर्व उन्मुखीकरण प्रशिक्षण (PDOT)।

आगे की राह:

  • राष्ट्रीय औसत की तुलना में कौशल और शिक्षा की कमी के कारण आदिवासी आजीविका में संगठित क्षेत्रों का योगदान काफी कम है।
    • इसलिये, ग्रामीण उद्यमी परियोजना जैसी परियोजनाएँ उनके सुधार और यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं कि वे अपना जीवन यापन कर सकें।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'पूर्व शिक्षा योजना की मान्यता' का उल्लेख कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में किया जाता है? (2017)

(a) पारंपरिक चैनलों के माध्यम से निर्माण श्रमिकों द्वारा अर्जित कौशल का प्रमाणन।
(b) दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों के लिये विश्वविद्यालयों में व्यक्तियों का नामांकन करना।
(c) कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये कुछ कुशल नौकरियां आरक्षित करना।
(d) राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षुओं द्वारा अर्जित कौशल को प्रमाणित करना।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE), भारत सरकार ने वर्ष 2015 में प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की शुरुआत की। इस कौशल प्रमाणन योजना का उद्देश्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना था जो उन्हें बेहतर आजीविका हासिल करने में मदद करेगा।
  • PMKVY के एक घटक के रूप में शुरू की गई पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL) प्रमुख तौर पर मूल्यांकन प्रक्रिया को संदर्भित करती है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति के मौजूदा कौशल, ज्ञान और अनुभव का मूल्यांकन करने हेतु किया जाता है जो औपचारिक, गैर-औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा द्वारा प्राप्त किया जाता है, न कि राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के तहत।
  • इसके तीन उद्देश्य हैं: देश के गैर-विनियमित कार्यबल की दक्षताओं को मानकीकृत राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे (NSQF) के साथ संरेखित करना। किसी व्यक्ति के रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के साथ-साथ उच्च शिक्षा के लिए वैकल्पिक मार्ग प्रदान करना। ज्ञान के कुछ रूपों को दूसरों पर विशेषाधिकार प्रदान किये बिना असमानताओं को कम करने के अवसर प्रदान करना।

अतः विकल्प (a) सही है।


प्रश्न. भारत में जनसांख्यिकी लाभांश केवल सैद्धांतिक ही रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और रचनात्मक नहीं हो जाती। हमारी जनसंख्या की क्षमता को अधिक उत्पादक और रोज़गार योग्य बनाने हेतु सरकार द्वारा क्या उपाय किये गए हैं? (मुख्य परीक्षा, 2016)

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

भारत में महिला वैज्ञानिक

प्रिलिम्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान ज्योति कार्यक्रम, विज्ञान प्रौद्योगिकी इंजीनियरिंग और गणित (STEM), CURIE कार्यक्रम, गति कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

विज्ञान और संबद्ध सरकारी पहल में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व।

चर्चा में क्यों?

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा संकलित डेटा के अनुसार, वर्ष 2018-19 में बाह्य अनुसंधान और विकास परियोजनाओं में प्रतिभागियों में से 28% महिलाएँ थीं, जो वर्ष 2000-01 की तुलना में 13% अधिक हैं, यह सरकार द्वारा की गई विभिन्न सकारात्मक पहलों का परिणाम है।

  • मंत्रालय का लक्ष्य वर्ष 2030 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी (S&T) में महिलाओं की भागीदारी को 30% तक बढ़ाना है।
  • वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research -CSIR) की पहली महिला महानिदेशक के रूप में डॉ एन. कलाइसेल्वी की हालिया नियुक्ति ने विज्ञान अनुसंधान में महिलाओं की भागीदारी की महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति को रेखांकित किया।

प्रमुख बिंदु

  • DST निष्कर्ष:
    • शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में मुख्य अनुसंधानकर्त्ता महिलाओं की संख्या वर्ष 2000-01 में 232 से बढ़कर वर्ष 2016-17 में 941 हो गई थी।
    • शोधकर्त्ताओं में महिलाओं का प्रतिशत वर्ष 2015 में 13.9% से बढ़कर वर्ष 2018 में 18.7% हो गया।
    • जबकि समग्र डेटा ऊपर की ओर रुझान दिखाते हैं, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में महिला शोधकर्त्ता प्राकृतिक विज्ञान, स्वास्थ्य और कृषि की तुलना में कम हैं।
      • हालाँकि, सामाजिक विज्ञान और मानविकी में महिला शोधकर्त्ताओं का प्रतिशत 36.4% से बहुत अधिक है।
    • डॉक्टरेट के बाद के स्तर पर, वैश्विक औसत से कम महिला शोधकर्त्ता हैं।
    • स्नातकोत्तर स्तर तक महिलाओं की स्वस्थ भागीदारी है।
      • लेकिन अधिकांश शोध अनुसंधान वाले पोस्ट-डॉक्टरेट स्तर पर महिला भागीदारी में कमी है, हालाँकि यह अनुपात बढ़ रहा है लेकिन अभी भी वैश्विक औसत के 30% के  से बहुत कम है।
  • उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (AISHE) 2019:
    • AISHE के अनुसार, स्नातक स्तर पर विज्ञान शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी क्रमश: 53% और स्नातकोत्तर स्तर पर 55% है।
      • लेकिन डॉक्टरेट स्तर पर, 44% महिला स्नातक पुरुषों के 56% से कम हैं।

विज्ञान क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की समग्र स्थिति:

  • राष्ट्रीय स्थिति :
    • भारत में विज्ञान शोधकर्त्ताओं की संख्या वर्ष 2014 में 30,000 से दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 60,000 से अधिक हो गई है।
    • जैव प्रौद्योगिकी में महिलाओं की भागीदारी सबसे अधिक 40% और चिकित्सा में 35% है।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग:
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के 97 वैज्ञानिकों में से 35 महिलाएँ हैं।
    • सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि DST में 18 में से 11 डिवीजन का नेतृत्त्व महिलाओं द्वारा किया जा रहा है तथा यह किसी भी सरकारी विभाग में नेतृत्त्व करने वाली महिलाओं का सबसे बड़ा प्रतिशत है।
  • अन्य संस्थान:
    • आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI) में 18%, राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (NIPER), हैदराबाद में 21% और बंगलुरु में डिफेंस बायो-इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रो-मेडिकल लैब (DEBEL) में महिलाओं की हिस्सेदारी 33% हैं।
    • दिल्ली विश्वविद्यालय में महिलाओं की भागीदारी 33% है, जबकि असम में तेजपुर विश्वविद्यालय में 17% है।

विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के लिये सरकार द्वारा की गई पहल:

  • संस्थानों में बदलाव हेतु लैंगिक उन्नति (GATI)/ गति:
    • विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा संस्थानों में बदलाव हेतु लैंगिक उन्नति (GATI) के लिये लैंगिक उन्नत्ति कार्यक्रम लॉन्च किया गया था।
    • यह विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) में लैंगिक समानता का आकलन करने के लिये एक व्यापक चार्टर और एक रूपरेखा विकसित करेगा।
    • गति के पहले चरण में DST द्वारा 30 शैक्षिक और अनुसंधान संस्थानों का चयन किया गया है, जिसमें नेतृत्त्व भूमिका संकाय में महिलाओं की भागीदारी और महिला छात्रों और शोधकर्त्ताओं की संख्या पर ध्यान दिया गया है।
  • विज्ञान ज्योति योजना:
    • विज्ञान ज्योति योजना, DST द्वारा शुरू की गई है।
    • इसका उद्देश्य हाई स्कूल में मेधावी लड़कियों के लिये विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) को उनकी उच्च शिक्षा में आगे बढ़ाने के लिये एक समान अवसर प्रदान करना है।
    • यह ग्रामीण पृष्ठभूमि की छात्राओं को विज्ञान के क्षेत्र में स्कूल से उनकी पसंद की नौकरी तक की यात्रा की योजना बनाने में मदद करने के लिये एक्सपोजर भी प्रदान करता है।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा (STEMM) कार्यक्रम में महिलाओं के लिये भारत-अमेरिका फैलोशिप:
    • महिला वैज्ञानिक अमेरिका में रिसर्च लैब में काम कर सकती हैं।
  • महिला विश्वविद्यालयों में नवाचार और उत्कृष्टता के लिये विश्वविद्यालय अनुसंधान का समेकन (CURIE) कार्यक्रम:
    • महिला विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में उत्कृष्टता पैदा करने के लिये अनुसंधान एवं विकास अवसंरचना में सुधार करना और अत्याधुनिक अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

पांडुरंग खानखोजे और स्वामी विवेकानंद

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय इतिहास के महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, गदर पार्टी

मेन्स के लिये:

स्वतंत्रता के लिये भारत के संघर्ष में महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों की भूमिका

चर्चा में क्यों?

भारत के लोकसभा अध्यक्ष स्वामी विवेकानंद और महाराष्ट्र में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी और कृषिविद् पांडुरंग खानखोजे (1883-1967) की प्रतिमाओं का अनावरण करने के लिये मैक्सिको की यात्रा करेंगे।

  • अध्यक्ष की यात्रा भारत के बाहर कम चर्चित भारतीय मूल के नेताओं को सम्मानित करने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है।

पांडुरंग खानखोजे:

Pandurang-Khankhoje

  • जन्म:
    • पांडुरंग खानखोजे का जन्म 19वीं सदी के अंत में वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था।
  • क्रांतिकारी संबंध:
    • पांडुरंग खानखोजे जल्द ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए।
      • हिंदू सुधारक स्वामी दयानंद और उनका आर्य समाज आंदोलन, जिसमें सुधार और सामाजिक परिवर्तन की भावना का आह्वान किया गया, में खानखोजे एक युवा छात्र समूह के नायक बन गए।
    • खानखोजे फ्राँसीसी क्रांति और अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के प्रबल प्रशंसक थे।
    • विदेश में प्रशिक्षण के लिये भारत छोड़ने से पहले उन्होंने बाल गंगाधर तिलक से मुलाकात की जिनसे वे बहुत प्रेरित हुए ।
  • विदेश में जीवन:
    • खानखोजे ने क्रांतिकारी तरीकों और सैन्य रणनीति में आगे के प्रशिक्षण के लिये विदेश जाने का फैसला किया।
    • जापान और चीन के राष्ट्रवादियों के साथ समय बिताने के बाद, खानखोजे अंततः अमेरिका चले गए, जहाँ उन्होंने कृषि के छात्र के रूप में कॉलेज में दाखिला लिया।
      • एक वर्ष बाद, वह भारत छोड़ने के अपने मूल उद्देश्य को पूरा करने के लिये कैलिफोर्निया में माउंट तमालपाइस सैन्य अकादमी में शामिल हो गए।

खानखोजे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल:

  • खानखोजे और गदर पार्टी:
    • अमेरिका में, खानखोजे ने स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में एक भारतीय बौद्धिक शिक्षक लाला हरदयाल से मुलाकात की।
      • हरदयाल ने एक प्रचार अभियान शुरू किया था, जिसमें एक समाचार पत्र प्रकाशित किया गया था जिसमें भारत की स्थानीय भाषाओं में देशभक्ति गीत और लेख शामिल थे।
        • इन्हीं प्रारंभिक प्रयासों से वर्ष 1913 में गदर पार्टी उभर कर आई ।
    • पांडुरंग खानखोजे वर्ष 1913 में विदेशों में रहने वाले भारतीयों द्वारा स्थापित गदर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, सामान्यतः गदर पार्टी के सदस्य पंजाब से संबंधित थे।
      • इसका उद्देश्य भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी लड़ाई का नेतृत्त्व करना था।

खानखोजे और मेक्सिको के मध्य संबंध:

  • अमेरिका में मेक्सिकोवासियों के साथ संबंध:
    • अमेरिका में सैन्य अकादमी में खानखोजे ने मेक्सिको के कई लोगों से मुलाकात की।
      • खानखोजे "1910 की मैक्सिकन क्रांति" से प्रेरित थे, जिसने तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका था।
    • जब वे भारतीय स्वतंत्रता के विचार पर चर्चा करने के उद्देश्य से अमेरिका में भारतीय कृषक-मज़दूरों से मिलने जा रहे थे, तो उन्होंने मैक्सिको के श्रमिकों से भी मुलाकात की थी।
    • वह पेरिस में भीकाजी कामा से मिले और अन्य नेताओं के साथ रूस में व्लादिमीर लेनिन से मुलाकात कर भारत की स्वतंत्रता के लिये समर्थन मांगा।
      • वह यूरोप में निर्वासन का सामना कर रहे थे और वह भारत नहीं जा सकते थे इस दौरान उन्होंने मेक्सिको में शरण मांगी।
  • मेक्सिको में जीवन:
    • मेक्सिको में कुछ मित्रों की सहायता से उन्हें मेक्सिको सिटी के पास चैपिंगो में नेशनल स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर में प्रोफेसर नियुक्त किया गया।
    • उन्होंने मकई, गेहूँ, दाल और रबर पर शोध किया, शीत और सूखा प्रतिरोधी किस्मों का विकास किया तथा मैक्सिको में हरित क्रांति लाने के प्रयास में शामिल थे।
      • बाद में 20वीं शताब्दी में भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले अमेरिकी कृषि विज्ञानी डॉ. नॉर्मन बोरलॉग ने मैक्सिकन गेहूँ की किस्म का भारत में उपयोग शुरू किया गया।
    • खानखोजे मेक्सिको में एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में प्रतिष्ठित थे।
      • प्रसिद्ध मैक्सिकन कलाकार डिएगो रिवेरा ने भित्ति चित्रों में खानखोजे को चित्रित किया गया था, जिसमें 'अवर डेली ब्रेड' शीर्षक भी शामिल था, जिसमें प्रमुख रूप से उन्हें एक मेज के चारों ओर बैठे लोगों के साथ भोजन करते हुए दिखाया गया था।

स्वामी विवेकानंद:

Swami-Vivekananda

  • जन्म:
    • स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्रनाथ दत्त था जिनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था।
    • स्वामी विवेकानंद की जयंती के उपलक्ष्य में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
    • वर्ष 1893 में, खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर, उन्होंने 'विवेकानंद' नाम अपनाया।
  • योगदान:
    • विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया।
      • उन्होंने पश्चिमी लेंस के माध्यम से हिंदू धर्म की व्याख्या, 'नव-वेदांत' का प्रचार किया और आध्यात्मिकता को भौतिक प्रगति के साथ जोड़ने की कोशिशें कीं।
    • हमारी मातृभूमि के उत्थान के लिये शिक्षा पर सबसे अधिक ज़ोर दिया। ऐसी शिक्षा जो मानव निर्मित चरित्र-निर्माण करे उसकी वकालत की।
    • वर्ष 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने भाषण के लिये सबसे अधिक प्रसिद्धि मिली।
    • सांसारिक सुख और मोह से मोक्ष प्राप्त करने के चार मार्गों को अपनी पुस्तकों में वर्णित किया है:
      • राज-योग
      • कर्म योग
      • ज्ञान-योग
      • भक्ति योग
    • नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा था।
  • संबद्ध संगठन:
    • वह 19वीं सदी के समाज सुधारक रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे और उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
      • रामकृष्ण मिशन एक ऐसा संगठन है जो मूल्य आधारित शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण, युवा तथा आदिवासी कल्याण एवं राहत और पुनर्वास के क्षेत्र में काम करता है।
    • वर्ष 1899 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की, जो उनका स्थायी निवास बना।
  • मृत्यु:
    • वर्ष 1902 में बेलूर मठ में उनका निधन हुआ।
    • बेलूर मठ, पश्चिम बंगाल में स्थित, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है

गदर पार्टी:

  • यह एक भारतीय क्रांतिकारी संगठन था, जिसका उद्देश्य भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना था।
    • 'गदर' विद्रोह के लिये प्रयुक्त एक उर्दू शब्द है।
  • वर्ष 1913 में पार्टी का गठन संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवासी भारतीयों द्वारा किया गया जिसमें ज़्यादातर पंजाबी शामिल थे । हालांँकि पार्टी में भारत के सभी हिस्सों से भारतीय भी शामिल थे।
    • गदर पार्टी की स्थापना का उद्देश्य भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सशस्त्र संघर्ष छेड़ना था।
  • पार्टी के अध्यक्ष सोहन सिंह भकना को बनाया गया तथा लाला हरदयाल के नेतृत्व में प्रशांत तट पर सैन फ्रांसिस्को में हिंदी संघ के रूप में इसे स्थापित किया गया था।
    • पार्टी के योगदान को भविष्य में भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों की नींव रखने के लिये जाना जाता है जिसने स्वतंत्रता संग्राम में एक और  कदम के रूप में कार्य किया।
  • गदर पार्टी के अधिकांश सदस्य किसान वर्ग से संबंधित थे, जिन्होंने पहली बार 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब से एशिया के शहरों जैसे- हॉन्गकॉन्ग, मनीला और सिंगापुर में प्रवास करना शुरू किया था।
  • बाद में कनाडा और अमेरिका में काष्ठ उद्योग के विकसित होने के साथ कई लोग उत्तरी अमेरिका चले गए जहांँ उन्होंने अपना प्रसार किया लेकिन उन्हें संस्थागत नस्लवाद का भी सामना करना पड़ा।
  • गदर आंदोलन ने 'औपनिवेशिक भारत के सामाजिक ढांँचे में अमेरिकी संस्कृति के समतावादी मूल्यों (समतावाद) को स्थानांतरित करने का कार्य किया था।
    • समतावाद समानता की धारणा पर आधारित एक सिद्धांत है, अर्थात् सभी लोग समान हैं और उनका सभी संसाधनों पर समान अधिकार है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रिलिम्स:

प्रश्न: गदर क्या था: (2014)

(a) भारतीयों का क्रांतिकारी संघ जिसका मुख्यालय सैन फ्रांसिस्को में था।
(b)  एक राष्ट्रवादी संगठन जो सिंगापुर से संचालित होता था।
(c) उग्रवादी संगठन जिसका मुख्यालय बर्लिन में था।
(d) भारत की स्वतंत्रता के लिए कम्युनिस्ट आंदोलन जिसका मुख्यालय ताशकंद में था।

उत्तर: (a)


प्र. निम्नलिखित उद्धरण का आपके लिये क्या अर्थ है?

“प्रत्येक कार्य की सफलता से पहले उसे सैकड़ों कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। जो दृढ़ निश्चयी हैं, वे देर-सबेर प्रकाश को देख पाएँगे।" - स्वामी विवेकानंद (मुख्य परीक्षा, 2021)

किसी की निंदा न कीजिये: यदि आप मदद का हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ऐसा कीजिये। यदि नहीं, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये और उन्हें अपने रास्ते पर जाने दीजिये" - स्वामी विवेकानंद (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नाविकों पर भारत-ईरान समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

नाविकों पर भारत-ईरान समझौता, नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी के मानकों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय (1978), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, तेहरान घोषणा, ईरान का महत्त्व, कैस्पियन सागर

मेन्स के लिये:

भारत-ईरान संबंधों का महत्त्व।

चर्चा में क्यों

भारत और ईरान ने नाविकों (1978) के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी मानकों (STCW) पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय के प्रावधानों के अनुसार दोनों देशों के नाविकों की आवाजाही को सुगम बनाने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया है।

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नाविकों के लिये STCW पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

  • यह समुद्र में जाने वाले व्यापारी जहाज़ों पर स्वामी, अधिकारियों और निगरानी कर्मियों के लिये योग्यता मानक निर्धारित करता है।
  • STCW को वर्ष 1978 में लंदन में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) में एक अभिसमय द्वारा अपनाया गया था और यह वर्ष 1984 में लागू हुआ था। वर्ष 1995 मेंं अभिसमय में व्यापक स्तर पर संशोधन किया गया था।
  • वर्ष 1978 का STCW अभिसमय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी पर बुनियादी आवश्यकताओं को स्थापित करने वाला पहला था।
  • यह नाविकों के लिये प्रशिक्षण, प्रमाणन और निगरानी से संबंधित न्यूनतम मानकों को निर्धारित करता है जिन्हें पूरा करने या उससे अधिक करने के लिये देश बाध्य हैं।
  • अभिसमय की एक विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह गैर-पार्टी राज्यों के जहाज़ों पर लागू होता है, जब वे उन राज्यों के बंदरगाहों पर जाते हैं जोअभिसमय के पक्षकार हैं।

भारत-ईरान संबंध

  • भारत एवं ईरान फारसी साम्राज्य और भारतीय साम्राज्यों के युग से ही घनिष्ठ सभ्यतागत संबंध रखते हैं।
  • भारत के पड़ोस में ईरान एक महत्त्वपूर्ण देश है। वस्तुतः वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता तथा विभाजन से पहले तक दोनों देश सीमा भी साझा करते थे।
  • प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ईरान यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित ‘तेहरान घोषणापत्र’ ने ‘‘समान, बहुलवादी और सहकारी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था’’ के लिये दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण की पुष्टि की थी।
  • इसने तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति मोहम्मद खतामी के ‘‘सभ्यताओं के बीच संवाद’’ के दृष्टिकोण को सहिष्णुता, बहुलवाद और विविधता के सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रतिमान के रूप में चिह्नित किया था।

भारत-ईरान संबंधों का महत्त्व:

  • अवस्थिति एवं संपर्क:
    • ईरान, फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के बीच एक रणनीतिक तथा महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति रखता है।
    • ईरान फारस की खाड़ी और कैस्पियन सागर के बीच रणनीतिक तथा महत्त्वपूर्ण भौगोलिक स्थिति में अवस्थित है।
    • ईरान भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत को (पाकिस्तान के माध्यम से स्थल मार्ग का उपयोग करने की अनुमति के अभाव में) अफगानिस्तान और मध्य एशियाई गणराज्यों तक संपर्क हेतु एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।
  • कच्चे तेल की सस्ती आपूर्ति:
    • भारत ईरान से तेल आयात को फिर से शुरू करने पर विचार कर सकता है।
    • भारत द्वारा नीति परिवर्तन और ईरानी तेल आयात की पुनर्बहाली संभावित रूप से अन्य देशों को भी इस राह पर आगे बढ़ने और बाज़ार में अतिरिक्त तेल की उपलब्धता के लिये (जो अंततः कच्चे तेल मूल्यों को नीचे ला सकता है) प्रोत्साहित कर सकती है।
  • यूरेशिया के साथ संपर्क निर्माण:
    • इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) इस सदी की शुरुआत में लॉन्च की गई एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारत, ईरान, अफगानिस्तान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप को मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट के माध्यम से जोड़ना है ताकि मालों के पारगमन समय में पर्याप्त कमी लाई जा सके।
    • यद्यपि इसका कुछ भाग कार्यान्वित किया गया है, लेकिन ईरान पर प्रतिबंधों के कारण इसकी पूरी क्षमता साकार नहीं हो सकी है। भारत और ईरान परिणामी व्यापार के लाभों को प्राप्त करने हेतु INSTC को आवश्यक प्रोत्साहन देने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा:
    • ईरान-ओमान-भारत गैस पाइपलाइन (IOI) भी एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो लंबे समय से अटकी हुई है। आशाजनक है कि नये ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हालिया यात्रा के दौरान ईरान और ओमान ने अपनी समुद्री सीमाओं के साथ दो गैस पाइपलाइन तथा एक तेल क्षेत्र विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यदि यह परियोजना आगे बढ़ती है तो भविष्य में पाइपलाइन को भारत तक भी विस्तारित किया जा सकता है। यह विफल रहे ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन का एक विकल्प प्रदान करते हुए भारत को प्राकृतिक गैस की आपूर्ति की सुविधा प्रदान करेगी।

आगे की राह

  • दोनों देशों को अभिसरण के उन क्षेत्रों की ओर देखने की आवश्यकता है जहाँ दोनों देश एक-दूसरे के साझा हितों की परस्पर समझ रखते हैं और इसकी प्राप्ति के लिये मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • भारत और ईरान परस्पर सहयोग से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। भारत द्वारा अपनाई जा रही मुखर कूटनीति एक ताज़ा और स्वागतयोग्य बदलाव है जहाँ अपने पड़ोसी एवं मित्र देशों के साथ खड़े रहने पर बल दिया गया है और अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति को सर्वोपरि माना गया है।
    • यदि भारत ईरान के साथ अपने संबंधों की दिशा में इसी दृष्टिकोण का विस्तार कर सके तो यह इन दो महान राष्ट्रों और सभ्यताओं के बीच सहयोग के लिये एक व्यापक संभावना का द्वार खोल सकता है। संबंध पुनर्बहाली के लिये यही उपयुक्त समय भी है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

Q. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017)

(a) अफ्रीकी देशों के साथ भारत के व्यापार में अत्यधिक वृद्धि होगी।
(b) तेल उत्पादक अरब देशों के साथ भारत के संबंध मज़बूत होंगे।
(c) भारत अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच के लिये पाकिस्तान पर निर्भर नहीं रहेगा।
(d) पाकिस्तान इराक और भारत के बीच एक गैस पाइपलाइन की स्थापना की सुविधा और सुरक्षा प्रदान करेगा।

उत्तर: (c)


मेन्स:

Q. कई बाहरी शक्तियों ने मध्य एशिया में अपनी जड़ें जमा ली हैं, जो भारत के लिये रुचि का क्षेत्र है। इस संदर्भ में भारत के अश्गाबात समझौते, 2018 में शामिल होने के निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2018)

Q. अमेरिकी ईरान परमाणु समझौते के विवाद से भारत के राष्ट्रीय हित किस तरह प्रभावित होंगे? भारत को इस स्थिति पर कैसे प्रतिक्रिया देनी चाहिये? (2018)

Q. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017)

स्रोत:पी.आई.बी


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