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प्रश्न :
समानता. स्वतंत्रता एवं भातृत्व ने फ्रांसीसी क्रांति के प्रथम चरण और साथ ही द्वितीय चरण को भी नेतृत्व प्र्दान किया टिप्पणी करें।
12 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• फ्रांसीसी क्रांति में समानता, स्वतंत्रता एवं भातृत्व की भूमिका
• निष्कर्ष
1789 ई. में सम्पन्न फ्रांसीसी क्रांति मुख्यत: निरंकुश, अराजक राजतंत्र के विरुद्ध प्रतिक्रिया थी जिसने जनता ने अपने अधिकारों को पाने संगठित संघर्ष किया गया तथा सत्ता परिवर्तन कर जनरल असेम्बली या काउन्सिल के शासन को स्थापित किया।
इस क्रांति का सूत्र वाक्य स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व था। जहाँ स्वतंत्रता से आशय स्पष्ट रूप से रूसो जैसे विचारकों का समर्थन था जहाँ मनुष्य को जन्म से ही स्वतंत्र माना गया था। इसके अलावा अन्य दार्शनिकों- जैसे वाल्टेयर, माण्टेम्यू आदि के विचार भी वास्तविक अधिकार के प्रति जनता को प्रेरित करने में सफल रहे तथा स्वतंत्रता बोध के आधार पर क्रांति को संगठित करने में सफल रहे।
मध्यम वर्गीय चिंतकों का मानना था कि उच्च वर्गीय पादरी हो या सामंत कोई भी वर्ग विशेष किसी भी प्रकार के विशेषाधिकार तथा राज्य हवा के योग्य नहीं है। बल्कि राज्य के द्वारा सभी को समान अधिकार प्रदान किये जाने चाहिये।
भ्रातृत्व के सिद्धांत से आशय वर्ग-विभेद होते हुए भी सभी के मध्य समतामूलक तथा मानवतावादी विचारों का प्रसार किया जाना चाहिये। इन सम्मिलित उद्देश्यों को लेकर फ्रांसीसी क्रांति के प्रथम चरण को नेतृत्व प्रदान किया गया।
किंतु सत्ता परिवर्तन के बाद असेम्बली के द्वारा जब पुन: राजतंत्र की कमियों को स्वीकार किया जाने लगा तो जनता उद्वेलित हुई जिसका लाभ नेपोलियन ने उठाया। नेपोलियन ने पुन: स्वतंत्रता, समानता बंधुत्व का नारा देकर अराजक राज्य को समाप्त करने का प्रयास किया जिसमें नेपोलियन सफल हुआ किंतु जनता को पुन: निराशा ही हाथ लगी क्योंकि नेपोलियन ने सभी शक्तियों का अधिग्रहण कर निरंकुश राजतंत्र की स्थापना कर दी।
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