भारतीय अर्थव्यवस्था
फार्मास्युटिकल उद्योग को सुदृढ़ बनाना
प्रिलिम्स के लिये:फार्मास्युटिकल उद्योग योजना का सुदृढ़ीकरण, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री। मेन्स के लिये:भारतीय दवा उद्योग, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) की रणनीतिक भूमिका को ध्यान में रखते हुए 'फार्मास्युटिकल उद्योग को सुदृढ़ बनाने' (SPI) के लिये योजनाएँ शुरू की हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह योजना फार्मास्युटिकल क्षेत्र में MSME इकाइयों के प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये क्रेडिट लिंक्ड पूंजी और ब्याज़ सब्सिडी के साथ-साथ फार्मा क्लस्टर्स में रिसर्च सेंटर, टेस्टिंग लैब और ETP (इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) सहित सामान्य सुविधाओं के लिये 20 करोड़ रुपए तक की सहायता प्रदान करती है। .
- MSME इकाई के पास पूंजीगत सब्सिडी या इंटरेस्ट छूट में से किसी एक को चुनने का विकल्प होगा।
- SIDBI (लघु उद्योग विकास बैंक ऑफ इंडिया) इस योजना को लागू करने के लिये परियोजना प्रबंधन सलाहकार है।
- घटक:
- फार्मास्युटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS):
- यह फार्मास्युटिकल क्षेत्र में MSME को उनकी तकनीक को उन्नत करने के लिये सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड के साथ सुविधा प्रदान करेगा।
- इसमें तीन वर्ष की न्यूनतम अवधि के साथ अधिकतम 10 करोड़ रुपए तक के ऋण पर 10% की पूंजीगत सब्सिडी या शेष राशि को कम करने पर 5% तक ब्याज़ में छूट (SC/ST के स्वामित्व वाली इकाइयों के मामले में 6%) का प्रावधान है।
- सामान्य सुविधाओं हेतु फार्मास्युटिकल उद्योग को सहायता (APICF):
- यह निरंतर विकास के लिये मौजूदा फार्मास्युटिकल क्लस्टर्स की क्षमता को मज़बूत करेगा।
- यह स्वीकृत परियोजना लागत का 70% या 20 करोड़ रुपए, (जो भी कम हो) तक की सहायता प्रदान करता है।
- हिमालय और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के मामले में सहायता अनुदान 20 करोड़ रुपए प्रति क्लस्टर या परियोजना लागत का 90% (जो भी कम हो) होगा।
- फार्मास्युटिकल एंड मेडिकल डिवाइसेस प्रमोशन एंड डेवलपमेंट स्कीम (PMPDS):
- इसमें भारतीय फार्मा और चिकित्सा उपकरण उद्योग के लिये महत्त्व के विषयों पर अध्ययन रिपोर्ट तैयार करना शामिल होगा।
- इस योजना का उद्देश्य फार्मा और चिकित्सा उपकरण क्षेत्रों का डेटाबेस बनाना है।
- फार्मास्युटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS):
- उद्देश्य:
- गुणवत्ता और मूल्य दोनों में और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाते हुए दवा उद्योग में भारत की क्षमताओं को बढ़ाना तथा भारतीय फार्मा एमएसएमई को प्रोत्साहन देकर वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनाना है।
महत्त्व:
- यह मौजूदा बुनियादी सुविधाओं को मज़बूत करेगा और भारत को फार्मा क्षेत्र में वैश्विक नेता बनाएगा।
- इससे न केवल गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि क्लस्टर्स का सतत् विकास भी सुनिश्चित होगा।
- यह योजना देश भर में फार्मा उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए फार्मा समूहों और एमएसएमई को उनकी उत्पादकता, गुणवत्ता एवं स्थिरता में सुधार के लिये आवश्यक समर्थन प्रदान करेगी।
- यह योजना निवेश बढ़ाएगी, अनुसंधान और नवाचार को प्रोत्साहित करेगी तथा उद्योग को भविष्य के उत्पादों और विचारों को विकसित करने में सक्षम बनाएगी।
फार्मा सेक्टर से संबंधित योजनाएँ:
- बल्क ड्रग पार्क योजना को बढ़ावा देना:
- सरकार का लक्ष्य देश में थोक दवाओं और उनके निर्माण लागत के लिये अन्य देशों पर निर्भरता को कम करने हेतु राज्यों के साथ साझेदारी में भारत में 3 मेगा बल्क ड्रग पार्क विकसित करना है।
- यह योजना दवाओं की निरंतर आपूर्ति के साथ-साथ नागरिकों को सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में भी मदद करेगी।
- उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना:
- पीएलआई योजना का उद्देश्य देश में क्रिटिकल की-स्टार्टिंग मैटेरियल्स (KSMs)/ड्रग इंटरमीडिएट और सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (APIs) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (250 शब्द) [2015] |
स्रोत : पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
एंटीबायोटिक दवाओं की बढ़ती प्रभावकारिता
प्रिलिम्स के लिये:एएमआर। मेन्स के लिये:एएमआर, स्वास्थ्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिकों ने मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं की प्रभावकारिता को अधिक सक्रिय बनाने के लिये एक नई विधि विकसित की हैं।
प्रमुख बिंदु
- वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक एडज़ुवेंट्स के संयोजन में एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया है, ये ऐसे तत्त्व है जो मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध का मुकाबला करने में मदद कर सकते हैं।
- एंटीबायोटिक एडज़ुवेंट्स गैर-एंटीबायोटिक यौगिक हैं जो प्रतिरोध को अवरुद्ध करके या संक्रमण से प्रभावित मेज़बान की प्रतिक्रिया को बढ़ाकर एंटीबायोटिक प्रभाव को बढ़ाते हैं।
- वैज्ञानिकों ने एक ट्रायमाइन युक्त यौगिक में चक्रीय हाइड्रोफोबिक मौएट्स (अणु का हिस्सा) को शामिल किया, इस प्रकार विकसित हुए एडज़ुवेंट्स बैक्टीरिया की झिल्ली को प्रभावित करते हैं।
- एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध विभिन्न आणविक तंत्रों के माध्यम से होता है, जिसमें दवा की पारगम्यता में कमी, सक्रिय प्रवाह, दवा के लक्ष्य में परिवर्तन या बाईपास, एंटीबायोटिक-संशोधित एंज़ाइमों का उत्पादन और बायोफिल्म जैसे शारीरिक अवस्थाएँ शामिल हैं जो एंटीबायोटिक गतिविधि के लिये कम संवेदनशील हैं।
- ट्रायमाइन (Triamine): एक यौगिक जिसमें तीन अमीनो समूह होते हैं।
- हाइड्रोफोबिक मोएटिस: ये जल से दूर भागते हैं और जल में अघुलनशील हैं।
- चक्रीय: अणु चक्रीय होता है यदि उसके परमाणु एक वलय संरचना बनाते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप झिल्ली से जुड़े प्रतिरोधक तत्त्वों जैसे- पारगम्यता अवरोध और इफ्लक्स पंपों द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं के निष्कासन का सामना किया गया।
- इफ्लक्स पंप इंट्रासेल्युलर एंटीबायोटिक सांद्रता को कम करता है, जिससे बैक्टीरिया उच्च एंटीबायोटिक सांद्रता में जीवित रह सकते हैं।
- जब इन सहायक पदार्थों का उपयोग एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन में किया जाता है (जो ऐसे झिल्ली से जुड़े प्रतिरोधक तत्त्वों के कारण अप्रभावी हो गए थे) तो एंटीबायोटिक्स शक्तिशाली हो जाते हैं और संयोजन बैक्टीरिया को मारने में प्रभावी होता है।
अध्ययन का महत्त्व:
- यह रणनीति बैक्टीरिया के सबसे महत्त्वपूर्ण समूह का मुकाबला कर सकती है जिससे मौजूदा एंटीबायोटिक को जटिल संक्रमणों के लिये फिर से उपयोग किया जा सके। यह रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) के बढ़ते खतरे का मुकाबला करने में मदद कर सकता है।
- यह अप्रचलित एंटीबायोटिक दवाओं की गतिविधि को मज़बूत करने और जटिल संक्रमणों के इलाज़ के लिये उन्हें वापस उपयोग में लाने में मदद कर सकता है।
एंटीबायोटिक्स और ड्रग प्रतिरोधकता:
- एंटीबायोटिक्स:
- एंटीबायोटिक्स उल्लेखनीय दवाएँ हैं जो शरीर को नुकसान पहुँचाए बिना किसी के शरीर में जैविक जीवों को मारने में सक्षम हैं।
- इनका उपयोग सर्जरी के दौरान संक्रमण को रोकने से लेकर कीमोथेरेपी के दौर से गुज़र रहे कैंसर रोगियों की सुरक्षा तक के लिये किया जाता है।
- भारत एंटीबायोटिक दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत द्वारा अत्यधिक एंटीबायोटिक उपयोग बैक्टीरिया में एक शक्तिशाली उत्परिवर्तन पैदा कर रहा है जो पहले कभी नहीं देखा गया।
- दवा प्रतिरोधक क्षमता:
- दवा प्रतिरोध तब होता है जब मनुष्यों, जानवरों और पौधों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
- जब एक नया एंटीबायोटिक पेश किया जाता है, तो इसके बहुत अच्छे, यहाँ तक कि जीवन रक्षक परिणाम हो सकते हैं लेकिन केवल कुछ समय के लिये। उसके बाद बैक्टीरिया अनुकूल हो जाते हैं और धीरे-धीरे एंटीबायोटिक्स कम प्रभावी हो जाते हैं।
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध जीवन के किसी भी चरण में लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। जब कोई व्यक्ति एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया से संक्रमित होता है, तो न केवल उस रोगी का इलाज मुश्किल हो जाता है, बल्कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया अन्य लोगों में भी प्रसारित हो सकता है।
- जब एंटीबायोटिक्स काम नहीं करते हैं, तो यह स्थिति धीरे-धीरे अधिक जटिल बीमारियों, मज़बूत और महँगी दवाओं के उपयोग तथा बैक्टीरिया के संक्रमण से होने वाली मौतों को बढ़ा सकती है।
- दुनिया भर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध का प्रसार जीवाणु संक्रमण से लड़ने में दशकों की प्रगति को कमज़ोर कर रहा है।
- दवा प्रतिरोध तब होता है जब मनुष्यों, जानवरों और पौधों के उपचार में एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
दवा प्रतिरोध से संबंधित पहलें:
- भारत:
- AMR नियंत्रण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्यों के मेडिकल कॉलेजों में प्रयोगशालाओं की स्थापना करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
- AMR पर राष्ट्रीय कार्ययोजना: यह स्वास्थ्य दृष्टिकोण पर केंद्रित है और अप्रैल 2017 में विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- AMR सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था ताकि देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के सबूत और प्रवृत्तियों तथा पैटर्न का अनुसरण किया जा सके।
- AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाओं को विकसित करने की पहल की है।
- एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम: ICMR ने अस्पताल के वार्डों और ICU में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग एवं अति प्रयोग को नियंत्रित करने के लिये पूरे भारत में एक पायलट परियोजना पर एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप कार्यक्रम (AMSP) शुरू किया है।
वैश्विक उपाय:
- विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (WAAW):
- वर्ष 2015 से सालाना आयोजित किया जाने वाला WAAW एक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बारे में जागरूकता को बढ़ाना और दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के विकास एवं प्रसार को धीमा करने के लिये आम जनता, स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं के बीच सर्वोत्तम उपायों को प्रोत्साहित करना है।
- वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (GLASS):
- वर्ष 2015 में WHO ने ज्ञान अंतराल को समाप्त करने और सभी स्तरों पर रणनीतियों को लागू करने हेतु ग्लास (GLASS) को लॉन्च किया।
- ग्लास की कल्पना मनुष्यों में AMR की निगरानी, रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग की निगरानी, खाद्य शृंखला और पर्यावरण में AMR डेटा को प्राप्त करने के लिये की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में माइक्रोबियल रोगजनकों में बहु-दवा प्रतिरोध की घटना के कारण हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न: क्या डॉक्टर के निर्देश के बिना एंटीबायोटिक दवाओं का अति प्रयोग और मुफ्त उपलब्धता भारत में दवा प्रतिरोधी रोगों के उद्भव में योगदान कर सकते हैं? निगरानी एवं नियंत्रण के लिये उपलब्ध तंत्र क्या हैं? इसमें शामिल विभिन्न मुद्दों पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014, मुख्य परीक्षा) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
अरावली को हरित संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:अरावली रेंज का भौतिक भूगोल, पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम 1980 मेन्स के लिये:अरावली रेंज का महत्त्व, वन संरक्षण, सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पर्वतमाला में वन भूमि के लिये हरित संरक्षण का विस्तार किया।
- न्यायालय के निर्णय का अर्थ है कि हरियाणा में अरावली और शिवालिक में लगभग 30,000 हेक्टेयर वन भूमि मानी जाएगी।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हरियाणा में पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) की धारा 4 के तहत जारी विशेष आदेशों के अंतर्गत आने वाली सभी भूमि को वन क्षेत्र माना जाएगा तथा यह भूमि 1980 के वन संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षण की हकदार होगी।
- धारा 4 के तहत आने वाली ऐसी भूमि में केंद्र सरकार की सहमति के बिना कोई व्यावसायिक गतिविधि या इसका गैर-वन उपयोग नहीं किया जा सकता है।
- यह भी कहा गया है कि PLPA की धारा 4 के तहत जारी विशेष आदेशों के अंतर्गत आने वाली भूमि तथा वन अधिनियम की धारा 2 के तहत आने वाली सभी भूमि वन के रूप में शामिल होगी।
- न्यायालय ने राज्य सरकार को तीन महीने में ऐसी भूमि से किसी भी गैर-वन गतिविधि को हटाने और अनुपालन रिपोर्ट देने का निर्देश दिया।
- पीठ ने सितंबर 2018 के एक निर्णय पर विचार किया जिसमें PLPA के तहत सभी भूमि को वन क्षेत्र माना जा सकता है।
- हाल के निर्णय ने स्पष्ट किया कि पिछला निर्णय PLPA की धारा 4 और वन अधिनियम की धारा 2 के संबंध में इसके कानूनी प्रभाव की बारीकी से जाँच करने में विफल रहा।
PLPA की धारा 4 और वन अधिनियम की धारा 2:
- पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम (PLPA) की धारा 4:
- PLPA की धारा 4 के तहत विशेष आदेश का तात्पर्य राज्य सरकार द्वारा एक निर्दिष्ट क्षेत्र में वनों की कटाई (जिससे मिट्टी का क्षरण हो सकता है) को रोकने के लिये जारी किये गए प्रतिबंधात्मक प्रावधान से है।
- जब राज्य सरकार इस बात से संतुष्ट हो जाती है कि बड़े क्षेत्र का हिस्सा बनने वाले वन क्षेत्र के वनों की कटाई से मिट्टी का क्षरण होने की संभावना है, तो धारा 4 के तहत शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है।
- इसलिये जिस विशिष्ट भूमि के संबंध में PLPA की धारा 4 के तहत विशेष आदेश जारी किया गया है, उसमें वन अधिनियम द्वारा शासित वन के सभी नियम शामिल होंगे।
- जबकि PLPA की धारा 4 के विशेष आदेशों के तहत अधिसूचित भूमि वन भूमि होगी, PLPA के तहत सभी भूमि वास्तव में वन अधिनियम के अर्थ में वन भूमि नहीं मानी जाएगी।
- वन अधिनियम की धारा 2:
- वन अधिनियम की धारा 2 केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना वनों के अनारक्षण या गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
- किसी भूमि को वन अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत शामिल करने के बाद चाहे धारा 4 के अंतर्गत विशेष आदेश जारी हो या नहीं, वह वन भूमि ही मानी जाएगी।
- किसी भूमि को वन अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत शामिल करने के बाद चाहे धारा 4 के अंतर्गत विशेष आदेश जारी हो या नहीं, वह वन भूमि ही मानी जाएगी।
- वन अधिनियम की धारा 2 केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना वनों के अनारक्षण या गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि के उपयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
अरावली रेंज:
- अवस्थिति:
- अरावली रेंज का विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से दिल्ली तक लगभग 720 किमी. की दूरी तक है, जो हरियाणा और राजस्थान तक विस्तारित है।
- रचना:
- अरावली रेंज लाखों साल पुराना है, जिसका निर्माण भारतीय उपमहाद्वीपीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट की मुख्य भूमि से टकराने के कारण हुआ।
- आयु:
- कार्बन डेटिंग से पता चला है कि अरावली रेंज में ताँबे और अन्य धातुओं का खनन लगभग 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में किया गया था।
- विशेषताएँ:
- अरावली विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, जो अब एक अवशिष्ट पर्वत के रूप में विद्यमान है, इसकी ऊँचाई 300 मीटर से 900 मीटर के बीच है।
- अरावली रेंज की सबसे ऊँची चोटी माउंट आबू पर स्थित गुरु शिखर (1,722 मीटर) है।
- यह मुख्य रूप से वलित पर्वत है, जिसका निर्माण दो प्लेटों के अभिसरण के कारण हुआ है।
- विस्तार:
- पहाड़ों को राजस्थान में दो मुख्य श्रेणियों सांभर सिरोही रेंज और सांभर खेतड़ी रेंज में विभाजित किया गया है, जहाँ उनका विस्तार लगभग 560 किमी. तक है।
- दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक फैले अरावली का अदृश्य भाग गंगा और सिंधु नदियों के जल के बीच एक विभाजन बनाता है।
- महत्त्व:
- मरुस्थलीकरण को रोकने में:
- अरावली पहाड़ी पूर्व में उपजाऊ मैदानों और पश्चिम में रेतीले रेगिस्तान के बीच एक बाधा के रूप में कार्य करती है।
- ऐतिहासिक रूप से यह कहा जाता है कि अरावली शृंखला ने थार मरुस्थल को गंगा के मैदानों तक विस्तारित होने से रोकने का कार्य किया है जो नदियों और मैदानों के जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करता था।
- जैवविविधता में समृद्ध:
- यह पौधों की 300 स्थानिक प्रजातियों, 120 पक्षी प्रजातियों और सियार तथा नेवले जैसे कई विशिष्ट जानवरों को आश्रय प्रदान करता है।
- पर्यावरण पर प्रभाव:
- अरावली का उत्तर-पश्चिम भारत और उसके बाहर की जलवायु पर प्रभाव पड़ता है।
- यह रेंज मानसून के दौरान बादलों को शिमला और नैनीताल की ओर मोड़ने में सहायता करता है, जिससे उप-हिमालयी नदियों को जल प्राप्त होता है और इस जल से उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों को पानी की प्राप्ति होती है।
- सर्दियों के मौसम में यह उपजाऊ जलोढ़ नदी घाटियों को मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पश्चिमी हवाओं से बचाता है।
- मरुस्थलीकरण को रोकने में:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों विचार कीजिये: (2015) तीर्थ स्थान
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प A सही है। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
भारतीय राजनीति
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण
प्रिलिम्स के लिये:विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987, लोक अदालत, अनुच्छेद 39, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कानून और न्याय मंत्री ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा भारत में कानूनी सहायता कार्यक्रम के संचालन के लिये विधिक सेवा प्राधिकरणों को आवंटित धन के विवरण की जानकारी दी।
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA):
- परिचय:
- NALSA की स्थापना 1995 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत कानूनी सहायता कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की निगरानी और समीक्षा करने तथा अधिनियम के तहत कानूनी सेवाएँ प्रदान करने के लिये नियमों एवं सिद्धांतों को विकसित करने के उद्देश्य से की गई थी।
- यह राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों और गैर-लाभकारी संगठनों को विधिक सहायता प्रणालियों तथा पहलों को निष्पादित करने में मदद के लिये धन एवं अनुदान का भी वितरण करता है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- भारत के संविधान के अनुच्छेद- 39A में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देता है और विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं द्वारा या किसी अन्य तरीके से मुफ्त विधिक सहायता प्रदान करेगा। यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक स्थिति या दिव्यांगता के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसरों से वंचित न किया जाए।
- अनुच्छेद 14 और 22(1) भी राज्य के लिये विधि के समक्ष समानता तथा सभी के लिये समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाते हैं।
- कानूनी सेवा प्राधिकरणों का उद्देश्य:
- निःशुल्क कानूनी सहायता और सलाह प्रदान करना।
- कानूनी जागरूकता का विस्तार करना।
- लोक अदालतों का आयोजन करना।
- वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR ) तंत्र के माध्यम से विवादों के निपटारे को बढ़ावा देना।
- विभिन्न प्रकार के ADR तंत्र हैं जैसे- मध्यस्थता, सुलह, न्यायिक समझौता जिसमें लोक अदालत के माध्यम से निपटान या मध्यस्थता शामिल है।
- अपराध के पीड़ितों को मुआवज़ा प्रदान करना।
विभिन्न स्तरों पर कानूनी सेवा संस्थान:
- राष्ट्रीय स्तर: नालसा (NALSA) का गठन कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत किया गया था। भारत का मुख्य न्यायाधीश पैट्रन-इन-चीफ है।
- राज्य स्तर: राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण। इसकी अध्यक्षता राज्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है जो इसका मुख्य संरक्षक होता है।
- ज़िला स्तर: ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण। ज़िले का ज़िला न्यायाधीश इसका पदेन अध्यक्ष होता है।
- तालुका/उप-मंडल स्तर: तालुका/उप-मंडल विधिक सेवा समिति। इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ सिविल जज करता है।
- उच्च न्यायालय: उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति।
- सर्वोच्च न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति।
निःशुल्क कानूनी सेवाएँ प्राप्त करने हेतु पात्र:
- महिलाएँ और बच्चे
- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्य
- औद्योगिक कामगार
- सामूहिक आपदा, हिंसा, बाढ़, सूखा, भूकंप, औद्योगिक आपदा के शिकार।
- विकलांग व्यक्ति
- हिरासत में लिया गया व्यक्ति
- वे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित राशि से कम है, यदि मामला सर्वोच्च न्यायालय के अलावा किसी अन्य न्यायालय के समक्ष है, और 5 लाख रुपए से कम है, यदि मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है।
- मानव तस्करी के शिकार या बेगार।
संबंधित पहल:
- कानूनी सेवा मोबाइल एप:
- न्याय तक समान पहुँच को सक्षम करने हेतु नालसा (NALSA) ने आम नागरिकों को कानूनी सहायता तक आसान पहुँच में सक्षम बनाने के लिये एंड्रॉइड और iOS संस्करणों पर कानूनी सेवा मोबाइल एप लॉन्च किया है।
- दिशा योजना:
- न्याय विभाग (DoJ) ने 2021-26 तक लागू की जा रही "न्याय तक समग्र पहुँच के लिये अभिनव समाधान तैयार करना (दिशा)" नामक एक योजना के माध्यम से अखिल भारतीय स्तर पर न्याय तक पहुँच पर व्यापक, समग्र, एकीकृत और व्यवस्थित समाधान शुरू किया है।
- सभी न्यायिक कार्यक्रमों को दिशा योजना के तहत मिला दिया गया है तथा इसे अखिल भारतीय स्तर तक बढ़ा दिया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न :राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013))
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
स्वास्थ्य का अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:स्वास्थ्य का अधिकार, सातवीं अनुसूची, निजी विधेयक, सार्वजनिक विधेयक मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में स्वास्थ्य क्षेत्र का महत्त्व, समावेशी स्वास्थ्य प्राप्त करने में चुनौतियाँ, सरकारी पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा में एक निजी सदस्य के विधेयक “स्वास्थ्य का अधिकार विधेयक” पर गहन चर्चा हुई।
- इसका लक्ष्य सभी विकास नीतियों में निवारक और प्रोत्साहक स्वास्थ्य देखभाल अभिविन्यास के माध्यम से सभी उम्र के सभी लोगों हेतु स्वास्थ्य और कल्याण के उच्चतम संभव स्तर को प्राप्त करना है।
- विधेयक सभी नागरिकों के लिये स्वास्थ्य को एक मौलिक अधिकार बनाने और गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु अनुकूल शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के मानक के समान पहुँच तथा रखरखाव सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
स्वास्थ्य का अधिकार:
- परिचय:
- अन्य अधिकारों की तरह स्वास्थ्य के अधिकार में भी स्वतंत्रता एवं पात्रता दोनों घटक शामिल हैं:
- स्वतंत्रता में स्वयं के स्वास्थ्य और शरीर को नियंत्रित करने का अधिकार (उदाहरण के लिये यौन एवं प्रजनन अधिकार) तथा हस्तक्षेप से मुक्ति का अधिकार शामिल है (उदाहरण के लिये यातना एवं गैर-सहमति चिकित्सा उपचार और प्रयोग से मुक्ति)।
- ‘पात्रता’ के तहत स्वास्थ्य सुरक्षा की एक प्रणाली का अधिकार शामिल है, जो सभी को स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य स्तर का लाभ प्राप्त करने का अवसर देता है।.
- भारत में संबंधित प्रावधान:
- अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
- भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा (1948) के अनुच्छेद-25 का हस्ताक्षरकर्त्ता है जो भोजन, कपड़े, आवास, चिकित्सा देखभाल और अन्य आवश्यक सामाजिक सेवाओं के माध्यम से मनुष्यों को स्वास्थ्य कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार देता है।
- मूल अधिकार:
- भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है।
- स्वास्थ्य का अधिकार गरिमायुक्त जीवन के अधिकार में निहित है।
- राज्य नीति के निदेशक तत्त्व (DPSP):
- अनुच्छेद 38, 39, 42, 43 और 47 ने स्वास्थ्य के अधिकार की प्रभावी प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का मार्गदर्शन किया है।
- न्यायिक उद्घोषणा:
- पश्चिम बंगाल खेत मज़दूर समिति मामले (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार का प्राथमिक कर्तव्य लोगों का कल्याण सुनिश्चित करना और उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा प्रदान करना है।
- परमानंद कटारा बनाम भारत संघ मामले (1989) में अपने ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि हर डॉक्टर चाहे वह सरकारी अस्पताल में हो या फिर अन्य कहीं, जीवन की रक्षा के लिये उचित विशेषज्ञता के साथ अपनी सेवाएँ देना उसका पेशेवर दायित्व है।
- अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय:
- महत्त्व:
- स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार:
- लोग स्वास्थ्य के अधिकार के हकदार हैं और सरकार द्वारा इस दिशा में कदम उठाना उसका उत्तरदायित्त्व है।
- स्वास्थ्य सेवाओं तक व्यापक पहुँच:
- यह सभी को सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है और सुनिश्चित करता है कि सेवाओं की गुणवत्ता उन लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिये पर्याप्त है।
- व्यय को कम करना:
- लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर व्यय करने के वित्तीय परिणामों से बचाता है और उन्हें गरीबी में धकेलने जैसे जोखिम को कम करता है।
- स्वास्थ्य सेवा आधारित अधिकार:
स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियाँ:
- प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में कमी:
- देश में मौजूदा सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का दायरा सीमित है।
- यहाँ तक कि एक अच्छी तरह से कार्यरत सार्वजनिक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी केवल गर्भावस्था देखभाल, सीमित चाइल्ड केयर और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों से संबंधित कुछ सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
- अपर्याप्त धन:
- भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य निधि पर व्यय लगातार कम रहा है (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.3%)।
- OECD के अनुसार, भारत का कुल ‘आउट-ऑफ-पॉकेट’ खर्च जीडीपी का लगभग 2.3% है।
- उप-इष्टतम सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली:
- स्वास्थ्य प्रणाली में त्रुटियों के कारण गैर-संचारी रोगों से निपटना चुनौतीपूर्ण है, जो कि रोकथाम और रोगों का शीघ्र पता लगाने से संबंधित है।
- यह कोविड-19 महामारी जैसे नए एवं उभरते खतरों की तैयारियों में कमी और इनके प्रभावी प्रबंधन को कमज़ोर करता है।
आगे की राह
- अधिक धन आवंटित करना:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में की गई परिकल्पना के अनुसार, स्वास्थ्य पर सार्वजनिक वित्त को जीडीपी के कम-से-कम 2.5% तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- इस संबंध में स्वास्थ्य के अधिकार को शामिल करने वाला एक व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून संसद द्वारा पारित किया जा सकता है।
- नोडल स्वास्थ्य एजेंसी का निर्माण:
- रोग की निगरानी के लिये नामित और स्वायत्त एजेंसी बनाने की आवश्यकता है, जो प्रमुख गैर-स्वास्थ्य संबंधी विभागों की नीतियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव की जानकारी एकत्र करे, राष्ट्रीय स्वास्थ्य आँकड़ों का रखरखाव करे ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य नियमों का प्रवर्तन और इससे संबंधित सूचनाओं का प्रसार जनता तक हो।
- अन्य उपाय:
- स्वास्थ्य को संविधान के तहत सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में स्थानांतरित किया जाना चाहिये। वर्तमान में 'स्वास्थ्य' राज्य सूची के अंतर्गत है।
- स्वास्थ्य देखभाल निवेश के लिये एक समर्पित विकासात्मक वित्त संस्थान (DFI) की आवश्यकता है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D व्याख्या:
अतः विकल्प D सही है। प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है" विश्लेषण कीजिये। (2021) |