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डेली न्यूज़

  • 23 Jun, 2023
  • 32 min read
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शासन व्यवस्था

कोल इंडिया और CCI

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, सर्वोच्च न्यायालय, कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002

मेन्स के लिये:

बाज़ार की बदलती गतिशीलता के कारण प्रतिस्पर्द्धा आयोग का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत CIL के आचरण की जाँच करने के भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) के अधिकार को बरकरार रखते हुए कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की अपील को खारिज कर दिया

न्यायालय ने CIL को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के दायरे से बाहर करने हेतु कोई ठोस प्रमाण नहीं पाया, जिस पर पहले अनुचित गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया गया था।

संबंधित मुद्दा: 

  • परिचय: 
    • वर्ष 2017 में CCI ने विद्युत उत्पादकों के साथ ईंधन आपूर्ति समझौतों (Fuel Supply Agreements- FSA) में अनुचित और भेदभावपूर्ण शर्तें आरोपित करने हेतु CIL पर 591 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया था।
      • इस कंपनी को उच्च कीमतों पर कम गुणवत्ता वाले कोयले की आपूर्ति करने एवं आपूर्ति मापदंडों तथा गुणवत्ता के संबंध में अनुबंध में अपारदर्शी शर्तों का अनुसरण करते हुए पाया गया था।
    • CCI ने तर्क दिया कि कोल इंडिया और उसकी सहायक कंपनियाँ बाज़ार की ताकतों से स्वतंत्र होकर काम करती हैं और भारत में गैर-कोकिंग कोयले के उत्पादन एवं आपूर्ति में बाज़ार प्रभुत्व का लाभ लेती हैं।

नोट: 

  • कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो भारत में सबसे बड़ा कोयला उत्पादक और आपूर्तिकर्त्ता है।
  • यह कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 के तहत संचालित होता है, जो इसे देश में कोयला खनन और वितरण पर एकाधिकार देता है।
  • वर्ष 2010 में विनिवेश तक CIL पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाली इकाई थी। वर्तमान में सरकार के पास 67% शेयर प्रतिशत के साथ बहुमत हिस्सेदारी है।

CIL और CCI के तर्क:

  • CIL का रुख:
    • "कॉमन गुड" का सिद्धांत:
      • CIL "कॉमन गुड" को बढ़ावा देने और एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में कोयले का समान वितरण सुनिश्चित करने के सिद्धांतों के आधार पर काम करती है।
    • एकाधिकार की स्थिति:
      • कुशल कोयला उत्पादन और वितरण के लिये स्थापित "एकाधिकार" के रूप में अपनी स्थिति का दावा करने हेतु CIL 1973 के राष्ट्रीयकरण अधिनियम को संदर्भित करता है।
    • विभेदक मूल्य निर्धारण:
      • CIL बड़े परिचालन पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने और कल्याणकारी उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से कैप्टिव कोयला उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये विभेदक मूल्य निर्धारण लागू करता है।
    • राष्ट्रीय नीतियों के लिये निहितार्थ:
      • CIL की कोयला आपूर्ति राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन करती है, जैसे बढ़े हुए आवंटन के माध्यम से आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना।
      • CIL कोयला आपूर्ति की राष्ट्रीय नीतियों का समर्थन करती है, जैसे बढ़े हुए आवंटन के माध्यम से आर्थिक रूप से वंचित क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना।
  •   CCI का पक्ष: 
    • राघवन समिति की रिपोर्ट (2020):  
      • CCI ने राघवन समिति की रिपोर्ट (2020) का हवाला दिया, जिसका निष्कर्ष था कि CIL जैसी राज्य के एकाधिकार (Monopoly) वाली कंपनियाँ राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में नहीं हैं और उन्हें प्रतिस्पर्द्धी होना चाहिये।
      • यह बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा और जवाबदेही को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
    • गैर-आवश्यक वस्तु वर्गीकरण:  
      • CCI ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वर्ष 2007 से कोयले को "आवश्यक वस्तु" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है।
        • राष्ट्रीयकरण अधिनियम को भी वर्ष 2017 में नौवीं अनुसूची (ऐसे कानून जिन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती) से हटा दिया गया था।
      • इससे पता चलता है कि कोयला बाज़ार की गतिशीलता के अधीन है और इसे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 से छूट नहीं दी जानी चाहिये।
    • उपभोक्ताओं पर प्रभाव:
      • CCI ने कोयले की कीमतों और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव से विद्युत उत्पादक कंपनियों पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभावों की ओर ध्यान आकृष्ट किया, जिसका उपभोक्ताओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है।
      • CIL द्वारा अनुचित मूल्य निर्धारण अथवा आपूर्ति प्रणाली का सीधा असर उपभोक्ताओं के हितों पर पड़ेगा। 
    • सरकारी स्वामित्व और आपूर्ति संबंधी आवंटन:
      • CIL द्वारा विद्युत कंपनियों को की जाने वाली कोयला आपूर्ति राष्ट्र के कल्याण हेतु कोयला आपूर्ति से जुड़ी है।
      • CCI का तर्क था कि कोयले की निरंतर आपूर्ति, अनुबंधों का अनुपालन, उचित मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता सुनिश्चित करना आम लोगों के हित में है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीयकरण अधिनियम, 1973 के आधार पर छूट संबंधी CIL के तर्क को खारिज कर दिया और फैसला सुनाया कि इसे प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम से छूट नहीं दी जा सकती।
    • न्यायालय ने "प्रतिस्पर्द्धी तटस्थता" के विचार और समान अवसर की आवश्यकता की पुष्टि की तथा फैसला सुनाया कि विशेषज्ञता क्षेत्र की परवाह किये बिना संगठनों के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और समानता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।
    • यह निर्णय कुशल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में प्रतिस्पर्द्धा के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। 

कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973: 

  • कोयला संसाधन के तर्कसंगत, समन्वित और वैज्ञानिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये भारतीय संसद द्वारा कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973 लागू किया गया था।
    • इस अधिनियम के तहत कोयला खनन विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिये आरक्षित था।
  • लोहे एवं इस्पात उत्पादन में निजी कंपनियों द्वारा कैप्टिव खनन तथा अलग-अलग छोटे क्षेत्रों में उप-पट्टे पर देने के लिये वर्ष 1976 में अपवाद पेश किये गए थे।
  • वर्ष 1993 में हुए संशोधनों ने विद्युत उत्पादन, कोयला धुलाई और अन्य अधिसूचित अंतिम उपयोगों के लिये कैप्टिव कोयला खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी।
    • कैप्टिव उपयोग के लिये कोयला खदानों का आवंटन एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
    • सरकारी अधिसूचना द्वारा सीमेंट उत्पादन में कैप्टिव उपयोग के लिये कोयले के खनन की अनुमति दी गई थी।
  • इस अधिनियम ने सीमित प्रावधानों के साथ भारत में विशिष्ट क्षेत्रों एवं उद्देश्यों के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी हेतु कोयला खनन पर सरकारी नियंत्रण को स्थापित किया।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग:

  • परिचय: 
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 को लागू करने का उत्तरदायित्व इस सांविधिक निकाय पर है।
    • यह मार्च 2009 में एकाधिकारी तथा प्रतिबंधकारी व्यापार अधिनियम, 1969 की जगह स्थापित किया गया।
    • इस अर्द्ध-न्यायिक निकाय का कार्य मामलों में राय देना और उनका समाधान करना है।
  • संरचना: 
    • इसमें एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
  • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002:
    • प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम शुरुआत में वर्ष 2002 में पारित किया गया था तथा बाद में वर्ष 2007 के प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया था। इसे बाद में वर्ष 2023 के प्रतिस्पर्द्धा संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित किया गया है।
      • इस नवीनतम संशोधन का उद्देश्य लेन-देन मूल्य के आधार पर विलय और अधिग्रहण को विनियमित करना, मामलों का निपटान करना तथा प्रतिबद्धता के साथ जाँच के आधार पर त्वरित समाधान हेतु एक रूपरेखा तैयार करना और अधिनियम के तहत कुछ विनिर्दिष्ट अपराधों को अपराध की श्रेणी से हटाना है
    • यह प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी समझौतों और प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग पर रोक लगाता है।
    • यह भारत के भीतर प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले संयोजनों को नियंत्रित करता है।
    • संशोधित अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) की स्थापना की गई है।
    • सरकार ने वर्ष 2017 में COMPAT को बदलकर इसे राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) कर दिया।
  • CCI के कार्य और भूमिका: 
    • प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली प्रथाओं को समाप्त करना और उपभोक्ता हितों की रक्षा करना।
    • वैधानिक प्राधिकारियों द्वारा संदर्भित प्रतिस्पर्द्धा संबंधी मुद्दों पर राय देना।
    • प्रतिस्पर्द्धा की वकालत करना, सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ना और प्रतिस्पर्द्धा के मुद्दों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
    • आर्थिक वृद्धि एवं विकास के लिये उपभोक्ता कल्याण और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
    • आर्थिक संसाधनों के कुशल उपयोग के लिये प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना। 

भारतीय बाज़ार एकाधिकार से संबंधित अन्य निर्णय: 

  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम भारतीय इस्पात प्राधिकरण लिमिटेड (SAIL) (2010):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय रेलवे को रेल की आपूर्ति में प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं के लिये SAIL की जाँच करने हेतु CCI के आदेश को बरकरार रखा। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि SAIL को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम से छूट नहीं थी और प्रारंभिक चरण में इस आदेश पर कोई अपील नहीं किया जा सकती थी।
    • न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि COMPAT के समक्ष किसी भी अपील में CCI एक आवश्यक अथवा उचित पक्ष था।
  • भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग बनाम गूगल LLC एवं अन्य (2021):
    • CCI ने भारत के स्मार्ट टीवी और एंड्रॉइड एप स्टोर बाज़ारों में गूगल द्वारा कथित प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी प्रथाओं की जाँच करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपील की।
    • उच्च न्यायालय  ने अधिकार क्षेत्र की कमी और गूगल के पास अपना मामला पेश करने का कोई अवसर न होने के कारण CCI के आदेश को रद्द कर दिया।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने CCI की जाँच पर रोक लगा दी और इसमें शामिल सभी पक्षों को नोटिस जारी किया

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अमेरिका के साथ भारत का जेट इंजन समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

हल्का लड़ाकू विमान तेजस Mk2, F414 इंजन, रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु भारत के प्रयासों का महत्त्व, महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी में सहयोग के संभावित लाभ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के दौरान भारत ने अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निगम जनरल इलेक्ट्रिक (GE) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के बीच एक महत्त्वपूर्ण समझौते की घोषणा की है। इस समझौते में महत्त्वपूर्ण जेट इंजन प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण तथा भारत के हल्के लड़ाकू विमान (LCA) तेजस Mk2 के लिये GE के F414 इंजन का निर्माण शामिल है।

  • यह समझौता भारत की उन्नत लड़ाकू जेट इंजन प्रौद्योगिकी के विकास में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा।

नोट: 

  • प्रधानमंत्री की मौजूदा यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका डिफेंस एक्सेलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X) भी लॉन्च किया गया।
  • INDUS-X का उद्देश्य भारतीय और अमेरिकी स्टार्ट-अप एवं तकनीकी कंपनियों के लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों के सह-विकास एवं सह-उत्पादन में सहयोग करना है।

GE का F414 इंजन: 

  • परिचय: 
    • GE का F414 इंजन एक टर्बोफैन इंजन है जिसका उपयोग अमेरिकी नौसेना 30 वर्षों से अधिक समय से कर रही है।
      • यह एक दोहरे चैनल फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC), छह-चरण वाला उच्च दबाव कंप्रेसर, उन्नत उच्च दबाव टरबाइन और नोजल नियंत्रण हेतु "फ्यूलड्रॉलिक" प्रणाली से युक्त है।
    • यह असाधारण थ्रॉटल प्रतिक्रिया, उत्कृष्ट प्रकाश और स्थिरता एवं आवश्यकता पड़ने पर यह इंजन उच्च क्षमता का प्रदर्शन करता है।
    • F414 इंजन आठ देशों में सैन्य विमानों को संचालित करता है, जिससे यह आधुनिक लड़ाकू जेट हेतु एक विश्वसनीय विकल्प बन गया है।

  • भारत की इंजन आवश्यकताएँ:  
    • भारत के लिये विशेषकर LCA तेजस Mk2 के संदर्भ में F414 इंजन बहुत महत्त्व रखता है।
      • DRDO की एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) ने LCA तेजस Mk2 हेतु इंजन के भारत-विशिष्ट संस्करण का चयन किया है, जिसे F414-INS6 के नाम से जाना जाता है।
    • यह रणनीतिक निर्णय भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने और विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य को दर्शाता है।

LCA तेजस Mk2:  

  • LCA तेजस Mk2 भारत में विकसित स्वदेशी लड़ाकू विमान का उन्नत संस्करण है।
  • इसमें आठ बियॉन्ड-विज़ुअल-रेंज (BVR) मिसाइलों को एक साथ ले जाने और अन्य देशों के स्थानीय एवं उन्नत दोनों प्रकार के हथियारों को एकीकृत करने की क्षमता है।
  • LCA Mk2 अपने पूर्ववर्ती की तुलना में 120 मिनट की मिशन संचालन शक्ति के साथ बेहतर रेंज प्रदान करता है, जबकि LCA तेजस Mk1 के लिये यह 57 मिनट है। 
  • इसका उद्देश्य जगुआर, मिग-29 और मिराज 2000 के प्रतिस्थापन के रूप में काम करना है क्योंकि वे आने वाले दशक में सेवामुक्त हो जाएंगे। विनिर्माण पहले ही शुरू हो चुका है और विमान के वर्ष 2024 तक तैयार होने की उम्मीद है।

भारत-अमेरिका जेट इंजन समझौते का महत्त्व:   

  • संवेदनशील तकनीकों में आत्मनिर्भरता: 
    • लड़ाकू विमानों हेतु इंजन बनाने के लिये उन्नत तकनीक और धातु विज्ञान की आवश्यकता होती है, जिनका निर्माण केवल अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्राँस में ही होता है। 
      • भारत, क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन सहित महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता के लिये बल देने के बावजूद इस सूची में शामिल नहीं हो पाया है।  
    • जिन देशों के पास लड़ाकू विमानों के लिये उन्नत इंजन बनाने की तकनीक है, वे परंपरागत रूप से उन्हें साझा करने के लिये तैयार नहीं हैं, यही कारण है कि यह समझौता पथ-प्रदर्शक के रूप में है। 
  • iCET का महत्त्वपूर्ण घटक: 
  • DRDO द्वारा विकास के प्रयास:: 
    • DRDO के गैस टर्बाइन अनुसंधान प्रतिष्ठान (GTRE) ने LCA के लिये GTX-37 इंजन के विकास की शुरुआत की, इसके बाद 1989 में महत्त्वाकांक्षी कावेरी इंजन परियोजना शुरू की गई।
      • 9 पूर्ण प्रोटोटाइप इंजन और 4 कोर इंजन के विकास एवं व्यापक परीक्षण के बावजूद इंजन लड़ाकू विमान की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते थे, जिससे यह सौदा रक्षा क्षमताओं के लिये महत्त्वपूर्ण हो गया।
  • प्रौद्योगिकी अस्वीकरण व्यवस्था का अंत:
    • यह समझौता अंततः उस बात पर विराम लगाता है जिसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री (2008 में) ने अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिम द्वारा भारत पर थोपी गई "प्रौद्योगिकी अस्वीकरण व्यवस्था" के रूप में वर्णित किया था।
    • यह जेट इंजन प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौता इस यात्रा में एक और महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है। 

रक्षा क्षेत्र में भारत के हालिया विकास:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

महिला उद्यमियों हेतु UNDP और DAY-NULM

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, DAY-NULM, बिज़-सखिस, केयर इकॉनमी

मेन्स के लिये:

भारत में महिला उद्यमी, भारत में महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियाँ, भारत में महिला उद्यमिता को सुविधाजनक बनाना

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) और दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (Deendayal Antyodaya Yojana-National Urban Livelihoods Mission- DAY-NULM) ने भारत में महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने हेतु समझौता किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • उद्देश्य: 
    • इस साझेदारी का उद्देश्य केयर इकॉनमी, डिजिटल अर्थव्यवस्था, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, अपशिष्ट प्रबंधन, खाद्य पैकेजिंग और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में अपने स्वयं के उद्यम शुरू करने या विस्तार करने की इच्छुक महिलाओं को सहायता प्रदान करना है।
    • DAY-NULM को क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करके शहरी गरीबी उन्मूलन और आजीविका संवर्द्धन हेतु राष्ट्रीय स्तर की योजनाओं के कार्यान्वयन को बढ़ाना।
    • महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों का समाधान करने के लिये विशेष रूप से अर्थव्यवस्था क्षेत्र में देखभाल, नवीन समाधानों का संचालन करना।
  • कवरेज और समय अवधि:
    • यह परियोजना शुरुआती चरण में आठ शहरों को कवर करेगी और वर्ष 2025 से आगे विस्तार की संभावना के साथ तीन वर्षों तक चलेगी।
  • UNDP की भूमिका: 
    • UNDP ज्ञान सृजन और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए DAY-NULM को राष्ट्रीय स्तर की क्षमता निर्माण सहायता प्रदान करेगा, जैसे शहरी गरीबी से संबंधित सर्वोत्तम प्रथाओं का संग्रह संकलित करना।
    • UNDP और DAY-NULM संयुक्त रूप से ऑन-ग्राउंड मोबिलाइज़ेशन गतिविधियों में संलग्न होंगे जिसमें शहरी गरीबी और संभावित उद्यमियों की पहचान करने के साथ-साथ व्यवसाय विकास सेवाओं तक पहुँच की सुविधा भी शामिल है।
    • UNDP चयनित परियोजना स्थानों में बिज़-सखिस (Biz-Sakhis) नामक सामुदायिक व्यवसाय सलाहकारों को विकसित करके पहल में योगदान देगा।
      • ये सलाहकार नए और मौजूदा उद्यमों का समर्थन कर सकते हैं और बाद के चरण में DAY-NULM के लिये एक संसाधन के रूप में काम कर सकते हैं।
  • महत्त्व: 
    • महिला उद्यमिता गरीबी उन्मूलन, वित्तीय स्वतंत्रता और लिंग मानदंडों को नया आकार देने के लिये एक सिद्ध रणनीति है।
      • वर्तमान में भारत में कुल उद्यमियों में केवल 15% महिलाएँ हैं। यदि संख्या को बढ़ाया जाए, तो साझेदारी से न केवल महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है, बल्कि आर्थिक विकास को भी गति प्रदान करने के साथ ही एक खुशहाल और स्वस्थ समाज सुनिश्चित किया जा सकता है। 
    • इस साझेदारी से UNDP के अनुभव का उपयोग करते हुए 200,000 से अधिक महिलाओं को बेहतर रोज़गार के अवसरों से जोड़ने में मदद मिल सकती है और DAY-NULM के जनादेश के तहत स्थायी आजीविका अवसरों के माध्यम से शहरी समुदायों के उत्थान की संभावनाएँ पैदा होती हैं।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन: 

  • यह मिशन वर्ष 2014 में लॉन्च किया गया था और इसे आवास तथा शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य कौशल विकास के माध्यम से स्थायी आजीविका के अवसरों में वृद्धि करके शहरी गरीबों का उत्थान करना है।
  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीयन का अनुपात 75:25 होगा। पूर्वोत्तर राज्यों तथा विशेष श्रेणी के लिये यह अनुपात 90:10 का होगा।
  • DAY-NULM द्वारा भारत भर में 8.4 मिलियन से अधिक शहरी गरीब महिलाओं को संगठित करने के साथ ही वर्ष 2023 तक 4,000 से अधिक शहरों में 8,31,000 से अधिक स्वयं सहायता समूहों का निर्माण करना है। 

महिला उद्यमियों की चुनौतियाँ:

  • महिला संरक्षक और अनुकरणीय व्यक्तियों का अभाव।
  • पारंपरिक रूप से पुरुषों के प्रभुत्व वाले व्यावसायिक नेटवर्क की तुलना में महिला नेटवर्क बढ़ाने में कठिनाई।
  • तार्किक और सहानुभूतिपूर्ण क्षमताओं के संबंध में लैंगिक रूढ़ियाँ एवं पूर्वाग्रह वाली विचारधारा।
  • पितृसत्तात्मक संरचनाओं और पारिवारिक बाधाओं जैसी सामाजिक बाधाएँ। 
  • पूंजी जुटाने में चुनौतियाँ और समर्थन की कमी।
  • वित्तीय प्रबंधन के सीमित विकल्प तथा दूसरों पर निर्भरता

भारत में महिला उद्यमिता से संबंधित पहल: 

  • भारत सरकार और अनेक राज्य सरकारें महिलाओं के लिये वित्तीय समावेशन में सुधार हेतु विभिन्न योजनाएँ चला रही हैं। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना महिलाओं के लिये एक उच्च क्षमता वाली योजना है क्योंकि यह संपार्श्विक मुक्त ऋण प्रदान करती है।
  • देना शक्ति योजना कृषि, विनिर्माण, माइक्रो-क्रेडिट, खुदरा स्टोर या छोटे उद्यमों में महिला उद्यमियों को 20 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करती है।
    • यह योजना ब्याज दर पर 0.25% की रियायत भी प्रदान करती है।
  • भारत सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों जैसे वंचित क्षेत्र के लोगों तक पहुँचने के लिये संस्थागत ऋण संरचना का लाभ उठाने हेतु स्टैंड-अप इंडिया योजना शुरू की है।
  • स्त्री शक्ति योजना और ओरिएंट महिला विकास योजना उन महिलाओं का समर्थन करती है जिनके पास अधिकांश व्यवसयों में स्वामित्व है।
  • वे महिलाएँ जो स्वयं को कैटरिंग व्यवसाय में नामांकित करना चाहती हैं, अन्नपूर्णा योजना के माध्यम से ऋण प्राप्त कर सकती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. "जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये महिलाओं को सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण है।" चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये? (2015)

प्रश्न. महिला संगठन को लैंगिक पूर्वाग्रह से मुक्त बनाने के लिये पुरुष सदस्यता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। टिप्पणी कीजिये। (2013)

स्रोत: पी.आई.बी.


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